मनुस्मृति में विवाह के कितने प्रकारों का वर्णन है विस्तार से लिखिए? - manusmrti mein vivaah ke kitane prakaaron ka varnan hai vistaar se likhie?

हिंदू विवाह कितने प्रकार के हैं?

पाणिग्रहण संस्कार को आप और हम विवाह के नाम से जानते हैं। शास्त्रों के अनुसार विवाह आठ प्रकार के होते हैं। विवाह के ये प्रकार हैं- ब्रह्म, दैव, आर्य, प्राजापत्य, असुर, गन्धर्व, राक्षस और पिशाच। नारद...

मनुस्मृति में विवाह के कितने प्रकारों का वर्णन है विस्तार से लिखिए? - manusmrti mein vivaah ke kitane prakaaron ka varnan hai vistaar se likhie?

लाइव हिन्दुस्तान टीमMon, 17 Jun 2013 07:11 PM

पाणिग्रहण संस्कार को आप और हम विवाह के नाम से जानते हैं। शास्त्रों के अनुसार विवाह आठ प्रकार के होते हैं। विवाह के ये प्रकार हैं- ब्रह्म, दैव, आर्य, प्राजापत्य, असुर, गन्धर्व, राक्षस और पिशाच। नारद पुराण के अनुसार, सबसे श्रेष्ठ प्रकार का विवाह ब्रह्म ही माना जाता है। इसके बाद दैव विवाह और आर्य विवाह को भी बहुत उत्तम माना जाता है। प्राजापत्य, असुर, गंधर्व, राक्षस और पिशाच विवाह को बेहद अशुभ माना जाता है। कुछ विद्वानों के अनुसार प्राजापत्य विवाह भी ठीक है।

ब्रह्म, दैव, आर्य और प्राजापत्य विवाह में शुभ मुहूर्त के बीच अग्नि को साक्षी बना कर मंत्रों के उच्चारण के साथ विवाह संपन्न कराया जाता है। इस तरह के विवाह के समय नाते-रिश्तेदार उपास्थित रहते हैं। आजकल जिस तरह से लड़के-लड़की के बीच प्रेम होता है और उसके बाद प्रेम विवाह होता है, उसे गंधर्व विवाह की श्रेणी में रखा जाता है। इसे हमारे ऋषि-मुनियों ने विवाह का सर्वश्रेष्ठ तरीका क्यों नही माना, यह अचरज की बात है। संभवत उस समय दहेज की समस्या इतनी विकराल नहीं रही होगी या फिर ज्योतिष के हिसाब से श्रेष्ठ मुहूर्त उपलब्ध नहीं होंगे।

पैसा आदि लेकर या देकर विवाह करना असुर विवाह की श्रेणी में आता है। युद्ध के मैदान में विजय प्राप्त करने के बाद लड़की को घर में लाना राक्षस विवाह कहलाता है। लड़की को बहला-फुसला कर भगा ले जाना पिशाच विवाह कहलाता है। बलात्कार आदि के बाद सजा आदि से बचने के लिए विवाह करना, जैसा कि आजकल अखबारों में अक्सर पढ़ने को मिलता है, भी पिशाच विवाह की श्रेणी में आता है।

मनुस्मृति में विवाह के कितने प्रकारों का वर्णन है विस्तार से लिखिए? - manusmrti mein vivaah ke kitane prakaaron ka varnan hai vistaar se likhie?

मनुस्मृति में विवाह के कितने प्रकारों का वर्णन है विस्तार से लिखिए? - manusmrti mein vivaah ke kitane prakaaron ka varnan hai vistaar se likhie?

विवाह एक ऐसा बंधन है जो न केवल दो दिलों को जोड़ता है बल्कि उन दो व्यक्तियों से जुड़े प्रत्येक व्यक्ति के साथ एक नया आपसी सम्बन्ध स्थापित करता है । इसीलिए विवाह के साथ होने वाले रीति – रिवाजों और मान्यताओं की महत्ता और प्रासंगिकता और भी अधिक बढ़ जाती है ।

सामान्यतया विवाह का तात्पर्य दो आत्माओं के मिलन से लिया जाता है । इसलिए महर्षि मनु ने मनुस्मृति में आठ प्रकार के विवाहों का वर्णन किया है । जो क्रमश उत्तम मध्यम और निकृष्ट है ।

मनुस्मृति के अनुसार आठ प्रकार के विवाह होते है – १. ब्राह्म विवाह, २. दैव विवाह, ३. आर्ष विवाह, ४. प्राजापत्य विवाह, ५. आसुर विवाह, ६. गान्धर्व विवाह, ७. राक्षस विवाह और ८. पैशाच विवाह ।

१. ब्राह्म विवाह – जिसने वेदादि – शास्त्रों का अध्ययन किया हो तथा जो कन्या के योग्य सुशील, विद्वान और गुणवान हो । ऐसे वर को स्वयं आमंत्रित करके वस्त्राभूषण आदि अर्पित करके वेदोक्त विधि से वस्त्राभूषण आदि से अलंकृत करके प्रसन्नतापूर्वक कन्या को सौंपना ब्राह्म विवाह कहलाता है ।

वैसे आजकल वेदादि शास्तों का पठन – पाठन करने वाला वर मिलना दुर्लभ है, इसलिए ब्राह्म विवाह भी दुर्लभ है । किन्तु आजकल जो (Arrange Marriage) अर्थात माता – पिता द्वारा अपनी समझ से सद्गुणी और अच्छे काम – धंधे वाले वर का चयन करके शास्त्रोंक्त विधि से जो विवाह करते है, वह भी लगभग ब्राह्म विवाह के समकक्ष ही समझा जा सकता है । यह विवाह उत्तम माना जाता है, यदि इसमें सबकी प्रसन्नता हो ।

२. दैव विवाह – यज्ञादि में उपस्थित वेदमंत्रों का उच्चारण करने वाले विद्वानों का वरण करके तथा अपनी कन्या को वस्त्राभूषण से अलंकृत करके उन्हें सौंपना दैव विवाह कहलाता है । प्राचीनकाल में बड़े – बड़े यज्ञानुष्ठान होते थे । जिनमें विभिन्न गुरुकुलों के ब्रह्मचारी भाग लेते थे । उनमें से किसी सुयोग्य ब्रह्मचारी को चुनकर अपनी कन्या को समर्पित करना दैव विवाह कहलाता है ।

३. आर्ष विवाह – एक गाय, दो बैल का जोड़ा (अन्य कुछ) कन्यापक्ष द्वारा वर पक्ष से लेकर धर्म पूर्वक जो कन्यादान किया जाता है, उसे आर्ष विवाह कहते है । यहाँ ब्राह्म विवाह और दैव विवाह से बिलकुल विपरीत होता है । उनमें वरपक्ष को वस्त्राभूषण आदि उपहार भेंट किये जाते है, जबकि यहाँ कन्यापक्ष द्वारा वर पक्ष से कुछ लिया जा रहा है । आजकल गाय बैल के स्थान पर धनादि अन्य वस्तुएं लेकर अपनी कन्या को देना आधुनिक आर्ष विवाह कहा जा सकता है ।

४. प्राजापत्य विवाह – विवाह की इच्छा से प्रेरित युवक और युवती द्वारा स्वेच्छा से अभीष्ट वर और वधू का चुनाव करके अपने परिजनों को बताना । तत्पश्चात परिजनों द्वारा “ तुम दोनों मिलकर गृहस्थाश्रम का पालन करो ” ऐसा कहकर यथावत विधि से उन्हें भेंट और उपहार देकर विवाह होना, प्राजापत्य विवाह कहलाता है । इस विवाह में परिजनों की देख – रेख में ही वर – वधू एक दुसरे का चुनाव करते है ।

५. आसुर विवाह – वर पक्ष द्वारा कन्या पक्ष को यथाशक्ति धन देकर किये जाने वाले धर्मसम्मत विवाह को आसुर विवाह कहते है । आजकल कहीं – कहीं कन्या पक्ष द्वारा वर पक्ष से विवाह के लिए धन की मांग की जाती है, इसे आधुनिक आसुर विवाह कहा जा सकता है ।

६. गान्धर्व विवाह – युवक और युवती द्वारा स्वयं की इच्छा से प्रेरित होकर मन ही मन परस्पर एक दुसरे को पति – पत्नी मानकर जो सम्बन्ध स्थापित होता है, जिसमें शारीरिक संसर्ग भी संभव है । ऐसे विवाह को गान्धर्व विवाह कहते है । महाभारत के पौराणिक कथानक के अनुसार दुष्यंत और शकुन्तला का विवाह भी गान्धर्व विवाह ही था । आज के परिप्रेक्ष्य से देखा जाये तो पश्चिमी देशों व सिनेमा के प्रभाव से आजकल के अधिकांश युवक – युवतियों का गान्धर्व विवाह हो चूका होता है ।

७. राक्षस विवाह – कन्यापक्ष अर्थात उसके परिजनों, मित्रों आदि को डरा – धमकाकर, क्षतिग्रस्त करके अथवा उनकी हत्या करके कन्या की इच्छा के बिना उसे प्रताड़ित करके, उसका अपहरण करके जो विवाह किया जाता है, उसे राक्षस विवाह कहते है । प्राचीन, मध्य और आधुनिक काल में इस प्रकार के विवाह के कई उदाहरण देखने को मिल सकते है । मध्यकाल में जब किसी राजा या उसके किसी शागिर्द को कोई युवती प्रसंद आ जाती थी तो वह उससे विवाह का आग्रह करते थे । यदि परिजन न माने तो उन्हें डराया और धमकाया जाता था । अंततः अपहरण करके विवाह कर लिया जाता था । मेरे हिसाब से तो यह विवाह भी निकृष्ट श्रेणी में ही रखा जायेगा ।

८. पैशाच विवाह – जब कोई कन्या नींद में सो रही हो, नशे या उन्माद की अवस्था में हो या अपनी सुरक्षा के प्रति अनजान हो तब यदि कोई उसके साथ शारीरिक सम्बन्ध बना लेता है तो उसे पैशाच विवाह कहा जाता है । इसे सबसे निकृष्ट श्रेणी का विवाह कहा जाता है, क्योंकि इसमें अज्ञात रूप से कन्या के साथ सम्बन्ध बनाया जाता है । आजकल इस प्रकार के षड्यन्त्र बहुत चल गये है, जिनमें पहले तो अज्ञात से रूप युवती के साथ सम्बन्ध बनाया जाता है और उसका विडियो रिकॉर्ड कर लिया जाता है । फिर बाद में लोक लज्जा के नाम पर डरा धमकाकर उस अबला का शोषण किया जाता है । आजकल के होने वाले बलात्कार राक्षस विवाह और पैशाच विवाह का मिलाजुला रूप कहा जा सकता है ।

मेरा निष्कर्ष – इस लेख के अंत में मेरा निष्कर्ष केवल इतना है कि प्रारंभ के छह विवाह श्रेष्ट, उत्तम और मध्यम ठीक है । लेकिन अंत के जो दो विवाह है । इनके बारे में न तो किसी को करने की सोचना चाहिए न ही करना चाहिए । क्योंकि मेरे अनुसार जहाँ कन्या की सहमती नहीं, वहाँ विवाह करना अधर्म है, पाप है और सभी जानते है कि अधर्म और पाप विपत्ति का द्वार खोलते है ।

मनुस्मृति में कितने प्रकार के विवाहों का उल्लेख है?

विवाह के ये प्रकार हैं- ब्रह्म, दैव, आर्श, प्राजापत्य, असुर, गन्धर्व, राक्षस और पिशाच। उक्त आठ विवाह में से ब्रह्म विवाह को ही मान्यता दी गई है बाकि विवाह को धर्म के सम्मत नहीं माना गया है।

मनुस्मृति में कितने प्रकार होते हैं?

मनुस्मृति में कुल 12 अध्याय हैं जिनमें 2684 श्लोक हैं। कुछ संस्करणों में श्लोकों की संख्या 2964 है।

प्राचीन भारत में विवाह कितने प्रकार के होते हैं?

प्राचीन भारतीय धर्मशास्त्रकारों ने इन्हीं को ब्राह्म, दैव, आर्ष, प्राजापत्य, आसुर, गांधर्व, राक्षस और पैशाच नामक आठ प्रकार के विवाहों का नाम दिया था।

मनुस्मृति में महिलाओं के बारे में क्या लिखा है?

मनुस्मृति में वर्णित एक श्लोक के मुताबिक एक स्त्री को पुरुष द्वारा सुरक्षित किया जाता है। जब वह बालिका है तो उसकी रक्षा की जिम्मेदारी उसके पिता की है। विवाह के बाद वह अपने पति की जिम्मेदारी है और यदि वह विधवा हो जाए तो यह उसके पुत्र की जिम्मेदारी है कि वह सदैव उसकी रक्षा करे।