Published on: 10 February 2022, 17:38 pm IST Show
नवजात शिशुओं में पीलिया बहुत आम बात है। आमतौर पर नवजात शिशुओं में पीलिया होने का खतरा ज्यादा होता है। हालांकि, यह बच्चे में एक से दो सप्ताह के भीतर अपने आप आसानी से ठीक हो जाता है। अगर पीलिया का स्तर ऊंचा है, तो बच्चे को हॉस्पिटल में भर्ती कराना पड़ सकता है। ऐसे में आपके मन में भी यही ख्याल आता होगा कि इतनी देखभाल के बाद भी आखिर बेबी को पीलिया क्यों हो गया! तो परेशान न हों, क्योंकि आपके सभी सवालों के जवाब लेकर हम यहां हैं। क्यों हो जाता है नवजात शिशुओं को पीलियानवजात में पीलिया होने के कई कारण हैं। पूना स्थित सह्याद्री हॉस्पिटल के नियोनेटोलॉजिस्ट डॉक्टर प्रदीप सूर्यवंशी कहते हैं कि नवजात में पीलिया होने की सबसे बड़ी वजह मां और शिशु का ब्लड ग्रुप अलग-अलग होना है। अगर मां का ब्लड ग्रुप नेगेटिव है और बेबी का ब्लड ग्रुप पॉजिटिव है, तो नवजात को पीलिया हो सकता है। तो आइए जानते हैं नवजात शिशुओं में पीलिया किन परिस्थितयों में हो सकता है और इसका उपचार क्या है? नवजात शिशुओं में पीलिया के कारण क्या है?
कैसे पहचानें कि बेबी को पीलिया हुआ है
कब आपको डॉक्टर के सहायता की जरूरत होगी
डॉक्टर आपको ये टेस्ट करवाने के लिए कह सकते हैं
नवजात शिशुओं में पीलिया के कुछ घरेलू नुस्खेजन्म के समय बच्चे को पीलिया होना सामान्य बात है। हालांकि, इसके उपचार के कई तरीके हैं,जिन्हें आप नवजात शिशुओं में पीलिया के इलाज के लिए आजमा सकते हैं-
यदि आपके नवजात शिशु को पीलिया है, तो उसे बार-बार दूध पिलाएं। नवजात शिशु को बार-बार स्तनपान कराने से रक्तप्रवाह बढ़ता है और बिलीरुबिन के मल और मूत्र के जरिए बाहर निकालने में मदद मिलती है। बता दें कि पीलिया होने पर बच्चे बहुत सोते हैं। अगर आपके बच्चे को पीलिया है, तो वह भी बहुत सो सकता है। लेकिन उसे दूध पिलाने या खाने के लिए नियमित समय जगाएं।
इसके अलावा जो मां नवजात शिशुओं को स्तनपान कराती है उन्हें हेल्दी डाइट को फॉलो करना चाहिए। मां को अपने आहार में ताजा, पौष्टिक, संतुलित भोजन शामिल करना चाहिए। इसके लिए हरी पत्तेदार सब्जियां, सप्ताह में एक बार सी फूड, हेल्दी फैट वाले खाद्य पदार्थ, सीड्स, नट्स, फल, मांस और फाइबर युक्त आहार खाएं। एक्सपर्ट का मानना है कि मां जब अपने बच्चे को स्तनपान कराती है। तब दोनों की स्कीन एकदूसरे के संपर्क में आती है। इससे भी बिलीरूबिन का स्तर घटता है।
अगर आपके शिशु को पीलिया है तो उसे रोजाना 1-2 घंटे धूप में रखें। हालाँकि, इस दौरान एकदम तीखी धूप की बजाय सुबह सुबह की धूप हो। सूर्य की किरणें रक्त में बिलीरुबिन की मात्रा को कम करने और पीलिया को ठीक में मददगार है।
एक स्टडी से पता चला है कि हर दिन हल्की धूप में बच्चे की तेल से मालिश करने से बच्चे के आसानी मल त्याग में मदद मिलती है। जिससे बिलीरुबिन को बाहर निकालने में सहायता मिलती है। यह भी पढ़ें: क्या आपका बेबी भी नींद से अचानक जागकर रोने लगता है? ये हो सकते हैं स्लीप टेरर के लक्षण पीलिया कितने पॉइंट पर खतरनाक होता है?रक्तरस में पित्तरंजक (Billrubin) नामक एक रंग होता है, जिसके आधिक्य से त्वचा और श्लेष्मिक कला में पीला रंग आ जाता है। इस दशा को कामला या पीलिया (Jaundice) कहते हैं। सामान्यत: रक्तरस में पित्तरंजक का स्तर 1.0 प्रतिशत या इससे कम होता है, किंतु जब इसकी मात्रा 2.5 प्रतिशत से ऊपर हो जाती है तब कामला के लक्षण प्रकट होते हैं।
बच्चों में पीलिया कितने पॉइंट होना चाहिए?३४ माइक्रोन/एल (2 मिलीग्राम/डीएल) से अधिक एक बिलीरुबिन स्तर दिखाई दे सकता है। अन्यथा स्वस्थ शिशुओं में चिंता तब होती हैं जब स्तर ३०८ माइक्रोन/एल (18 मिलीग्राम/डीएल) से अधिक होते हैं, जीवन के पहले दिन में जांदी देखी जाती है, स्तरों में तेजी से वृद्धि होती है, जौनिस दो सप्ताह से अधिक रहता है, या बच्चा अस्वस्थ दिखता है।
कौन सा पीलिया खतरनाक होता है?परन्तु कभी-कभी रोग की भीषणता के कारण कठिन लीवर (यकृत) दोष उत्पन्न हो जाता है। बी प्रकार का पीलिया (वायरल हैपेटाइटिस) ज्यादा गम्भीर होता है इसमें जटिलताएं अधिक होती है। इसकी मृत्यु दर भी अधिक होती है।
10 दिन के बच्चे को पीलिया हो जाए तो क्या करें?क्या पीलिया के लिए कोई उपचार की आवश्यकता है? अधिकांश पीलिया पीड़ित बच्चों को उपचार की आवश्यकता नहीं होती है। शिशुओं के लिवर के विकसित होते ही पीलिया अपने आप ठीक हो जाएगा। यदि बिलिरूबिन का स्तर बहुत अधिक है या बहुत तेज़ी से बढ़ता है, तो आपके बच्चे को अस्पताल में फोटोथेरेपी की आवश्यकता होगी।
|