मेहनत और भाग्य में क्या अंतर है? - mehanat aur bhaagy mein kya antar hai?

मेहनत या क़िस्मत: सफलता के लिए क्या जरूरी है?

अगर हम जीवन में सफल होना चाहते हैं, तो किसकी भूमिका मुख्य होती है - भाग्य, भगवान, प्रयास, या किस्मत?

ArticleNov 20, 2020

अगर हम जीवन में सफल होना चाहते हैं, तो किसकी भूमिका मुख्य होती है - भाग्य, भगवान, प्रयास, या किस्मत?

सद्गुरुः भाग्य, भगवान, प्रयास, या किस्मत - हो सकता है कि सभी की हो, लेकिन किस अनुपात में? जब आप भाग्य कहते हैं, तो जाहिर है कि यह ऐसी चीज है जिसके बारे में आप कुछ नहीं कर सकते। जब आप किस्मत कहते हैं, तो फिर यह ऐसी चीज है जिसके बारे में आप कुछ नहीं कर सकते। भगवान भी ऐसी चीज नहीं है जिसके बारे में आप कुछ कर सकें। तो प्रयास ही एकमात्र चीज है जो आपके हाथ में है। अपना सौ प्रतिशत अपने प्रयास में लगा दीजिए। जो होना होगा, वह हो जाएगा। अपनी ऊर्जा और अपनी काबिलियत को भाग्य, भगवान, या किस्मत पर मत लगाईये - वह आपका काम नहीं है। अगर ऐसी कोई चीज होती है, तो वह अपना काम करेगी। आपका काम सिर्फ प्रयास करना है, और प्रयास को पैना होना होगा; इसे केंद्रित और सोचा-समझा होना चाहिए। यूं ही प्रयास करते जाना मूर्खता है। सिर्फ कड़ी मेहनत आपको कहीं नहीं ले जाने वाली। सही किस्म का कार्य, सही समय पर, सही जगह पर - सभी महत्वपूर्ण हैं। इन चीजों के होने के लिए, आपको समझ और बुद्धिमत्ता चाहिए। आपको अपने जीवन में बस इतना ही करना चाहिए - लगातार अपनी समझ और अपनी बुद्धिमत्ता को बढ़ाने के तरीके खोजिए। बाकी सब अपने आप होगा। और यह एक ऐसी चीज है जो मानवता दुर्भाग्यवश नहीं कर रही है।

‘मैं अपनी बुद्धिमत्ता को कैसे विकसित करूं?’ उसकी चिंता मत कीजिए। महत्वपूर्ण चीज यह है कि आप अपनी समझ को बढ़ाएं।

मिसाल के लिए, पच्चीस साल पहले हर कोई डाक्टर बनना चाहता था। अगर आप पढ़ना चाहते हैं तो पहला चुनाव डाक्टरी का था। मान लीजिए कि आप डाक्टर बन गए, लेकिन फिर हर कोई योग कार्यक्रम में आ गया और उन्हें डाक्टर के पास जाने की जरूरत नहीं रह गई। तो धंधा कम हो जाएगा। तब यह एक अच्छा पेशा नहीं रह जाएगा। वैसे भी, बहुत कम लोग इसलिए डाक्टर बन रहे हैं क्योंकि वे डाक्टर बनना चाहते हैं। सिर्फ कुछ ही डाक्टर हैं जो वाकई डाक्टर बनना चाहते हैं, मनुष्य के सिस्टम को समझना चाहते हैं और लोगों की सेवा करना चाहते हैं। ज़्यादातर लोग डाक्टर इसलिए बन रहे हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि इस पेशे में बहुत फायदा है। मेरे लिए यह काफी परेशान करने वाली बात है कि किसी की बीमारी एक फायदे का धंधा है, क्योंकि तब आप नहीं चाहेंगे कि हर कोई स्वस्थ बना रहे।

सफलता के लिए कोई नुस्खा बनाने की कोशिश मत कीजिए

अपनी सफलता के लिए कोई नुस्खा बनाने की कोशिश मत कीजिए। असली सफलता तब है जब आप अपनी पूरी क्षमता को इस्तेमाल करते हैं। इससे फर्क नहीं पड़ता कि आप एक डाक्टर बनते हैं या एक राजनेता, या एक योगी, या कुछ और; सफलता का मतलब है कि आप अपना जीवन अपनी पूरी क्षमता में जी रहे हैं। अगर ऐसा होना है, तो आपको समझ और एक सक्रिय बुद्धिमत्ता की जरूरत होती है। ‘मैं अपनी बुद्धिमत्ता को कैसे विकसित करूं?’ उसकी चिंता मत कीजिए। महत्वपूर्ण चीज यह है कि आप अपनी समझ को बढ़ाएं। अगर आप जीवन को बस वैसा ही देख पाते हैं जैसा वह है, तो इसे अच्छे से चलाने के लिए आपके पास जरूरी बुद्धिमत्ता होगी। अगर आप जीवन को वैसा नहीं देख पाते जैसा वह है, तो आपकी बुद्धिमत्ता आपके खिलाफ काम करेगी। इस धरती पर बुद्धिमान लोग आम तौर पर धरती के सबसे दुखी लोग हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि उनके पास एक सक्रिय बुद्धिमत्ता है, लेकिन जीवन की कोई समझ नहीं है।

यह कभी मत सोचिए,‘मैं सफल होना चाहता हूं।’ बस यह देखिए कि खुद को एक संपूर्ण प्राणी कैसे बनाएं, और वह अभिव्यक्ति पा लेगा।

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आज लोग अपने दिमाग का विस्तार करने की कोशिश कर रहे हैं। यह उनको सामाजिक रूप से सफल बना सकता है, न कि सचमुच सफल। अगर आप सचमुच सफल होना चाहते हैं, तो आपको हर चीज को वैसे ही देख पाना चाहिए, जैसी वह है, बिना किसी विकृति के। अगर आप हर चीज को वैसी ही देख सकते हैं जैसी वह है, तो जीवन एक नाटक, एक खेल बन जाता है। आप इसे आनंदपूर्वक खेल सकते हैं और आप इसे यकीनन अच्छे से खेल सकते हैं। अगर आप इसे अच्छे से खेल सकते हैं तो लोग कहेंगे कि आप सफल हैं।आपको सफलता की आकांक्षा नहीं करनी चाहिए। यह अपने जीवन को बनाने का एक तकलीफदेह तरीका है। आप खुद को और हर किसी को पीड़ा और क्लेश पहुंचाएंगे, क्योंकि अभी सफलता की आपकी सोच यह है कि हर किसी को आपसे नीचे होना चाहिए और आपको सबसे ऊपर।

यह सफलता नहीं है; यह बीमारी है। यह कभी मत सोचिए, ‘मैं सफल होना चाहता हूं।’ बस यह देखिए कि खुद को एक संपूर्ण प्राणी कैसे बनाएं, और वह अभिव्यक्ति पा लेगा। अगर वह अच्छी अभिव्यक्ति पाता है तो आपके आस-पास लोग कहेंगे, ‘वह व्यक्ति एक महान सफलता है!’ यह ठीक है। लोगों को पहचानना चाहिए कि आप आप एक सफल व्यक्ति हैं, लेकिन आपको यह नहीं सोचते रहना चाहिए कि कैसे सफल बनें। यह जीवन के प्रति बहुत गलत रवैया है।

क्षमता को खोजने की काबिलियत

एक बार जब आप एक इंसान के रूप में यहां आए हैं, तो एक इंसान होने की क्षमता को, और आप जो हैं उसके सारे आयामों को अनुभव किया जाना चाहिए। सिर्फ तभी मैं कहूंगा कि आप सफल हैं। और उस क्षमता को खोजने की काबिलियत, और क्षमता को खोजने की हिम्मत आपके पास तब आएगी, जब आप एक ऐसी अवस्था में आ जाते हैं, जहां आपके भीतर कष्ट का कोई डर नहीं होता, इससे फर्क नहीं पड़ता कि जीवन की परिस्थिति क्या है, उससे आपके जीवन का अनुभव नहीं बदलता।

मेरा काम दिन में लगभग अट्ठारह से बीस घंटे, हफ्ते के सातों दिन, साल के तीन सौ पैंसठ दिन चलता रहता है। हो सकता है कि किसी दूसरे के दिमाग को यह गुलामी जैसा लगे।

अभी ईशा दो दर्जन सामाजिक परियाजनाओं में लगा हुआ है। उनमें से कुछ तमिलनाडु और दुनिया में विशाल परियोजनाएं हैं। लेकिन मुझे अपने काम की सफलता की कोई चिंता नहीं है। अगर वे अच्छे से होती हैं, तो वे लोगों के लिए लाभदायक होंगी। लेकिन अगर मैं असफल भी होता हूं, तब भी मैं प्रसन्न ही रहूंगा। मैं अपनी ओर से बेहतरीन करूंगा, इसमें कोई सवाल नहीं है, क्योंकि मेरे लिए खोने के लिए या पाने के लिए कुछ नहीं है, जिस भी तरह से हो। लेकिन काम की सफलता कई स्थितियों और लाखों लोगों के सहयोग पर निर्भर करती है। इसलिए इन परियोजनाओं के साथ क्या होता है, या वे दुनिया की नजर में कितनी सफल होती हैं, वह मेरे जीवन के अनुभव को तय नहीं करेगा।

अगर आपको तृप्ति पानी है, अगर आपको कुछ करने के आनंद को जानना है, तो वह आप तभी जानेंगे जब आपका प्रयास संपूर्ण होगा - सौ प्रतिशत। हर चीज जो आप कर रहे हैं, उसमें अगर आप पूरी तरह से सौ प्रतिशत लगे हैं, तो आप गौर करेंगे कि आपके काम में एक उत्साह का भाव होगा। मेरा काम दिन में लगभग अट्ठारह से बीस घंटे, हफ्ते के सातों दिन, साल के तीन सौ पैंसठ दिन चलता रहता है। हो सकता है कि किसी दूसरे के दिमाग को यह गुलामी जैसा लगे। मेरे लिए यह ऐसा नहीं है, क्योंकि मैं अपना दिन पूरे उल्लास में गुजारता हूं, और मेरे आस-पास बहुत से लोगों के लिए भी ऐसा ही है। यह सफलता है, अगर आप इसे यह नाम देना चाहें। लेकिन मैं यह कहूंगा कि यह जीवन है। जीवन, अगर पूरी तरह जिया जाता है, तो वह सफलता है। अगर उसे एक कमजोर तरीके से जिया जाता है, तो वह सफल होना नहीं है। एक बार जब आप यहां हैं, तो आपको अपने जीवन के पूरे आयाम को और उसकी गहराई को खोजना, जीना, और अनुभव करना चाहिए।

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मेहनत और भाग्य में क्या अंतर है? - mehanat aur bhaagy mein kya antar hai?

सद्गुरु, ईशा फाउंडेशन एक योगी और दिव्यदर्शी सद्गुरु, भारत के 50 सबसे अधिक प्रभावशाली व्यक्तियों में से एक हैं। विश्व शांति और खुशहाली की दिशा में निरंतर काम कर रहे सद्गुरु के रूपांतरणकारी कार्यक्रमों से दुनिया के करोड़ों लोगों को एक नई दिशा मिली है। 2017 में भारत सरकार ने सद्गुरु को उनके अनूठे और विशिष्ट कार्यों के लिए पद्मविभूषण पुरस्कार से सम्मानित किया है।

मेहनत और किस्मत में क्या अंतर है?

अब हम किस्मत का संधि विच्छेद करते है किस+मत — किस की मत पर चलते है मतलब यह कि हम पाजीटिव या नेगेटिव मत पर चलते है उससे ही हमारी किस मत बनती है और यह हमारे अभी के कर्म और पूर्व जन्मो के कर्मो के आधार पर होती है। मेहनत अर्थात आर्थिक इच्छाओं और दुसरे कार्य के लिए हम जो श्रम करते है उसे मेहनत कहते है।

मेहनत करने से सफलता मिलती है कैसे?

सफलता मेहनत से मिलती है, इसके लिए कोई शॉर्टकट नहीं होता है। शॉर्टकट के बल पर हासिल की गई सफलता कुछ समय के लिए ही टिकती है। यह सच है कि इसका रास्ता मुश्किलों भरा, लंबा और कुछ हद तक तन्हा होता है। मगर सफलता का एहसास इस रास्ते की सारी तकलीफें भुलाने के लिए काफी होता है।

मेहनत कैसे किया जाता है?

भले ही छोटे-छोटे स्टेप उठायें, छोटी चीजों से शुरुआत करें, रास्ते में चलने के लिए बड़े कदम की ही जरूरत नहीं होती, छोटे-छोटे कदम भी आपको अपनी मंजिल तक पहुंचाते हैं, बस चलते रहिये, कड़ी मेहनत करते रहिये और अपनी मंजिल तक पहुंचकर ही दम लीजिये क्योंकि कड़ी मेहनत से हर चीज संभव है…

क्या भाग्य पहले से तय है?

व्‍यक्ति की किस्‍मत का फैसला उसके पूर्व जन्‍म में किए कर्मों के आधार पर भी होता है. महान विद्वान आचार्य चाणक्‍य कहते हैं कि व्‍यक्ति के भाग्‍य से जुड़ी 5 चीजें तो ऐसी हैं, जो मां के गर्भ में ही तय हो जाती हैं. इसके बाद चाहकर भी उन्‍हें कभी नहीं बदल सकता है.