G7 2022 की मेजबानी कौन सा देश करेगा? - g7 2022 kee mejabaanee kaun sa desh karega?

जी-7 समूह देशों का 45वां शिखर सम्मेलन फ्रांस में हो रहा है. इस सम्मेलन में भारत को विशेष रूप से आमंत्रित किया गया है. भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रविवार को जी-7 शिखर सम्मेलन में भाग लेने फ्रांस जाएंगे.

लेकिन ये जी-7 क्या है और इसके सदस्य देश कौन-कौन हैं और यह क्या करता है?

जी-7 दुनिया की सात सबसे बड़ी कथित विकसित और उन्नत अर्थव्यवस्था वाले देशों का समूह है, जिसमें कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, ब्रिटेन और अमरीका शामिल हैं. इसे ग्रुप ऑफ़ सेवन भी कहते हैं.

समूह खुद को "कम्यूनिटी ऑफ़ वैल्यूज" यानी मूल्यों का आदर करने वाला समुदाय मानता है. स्वतंत्रता और मानवाधिकारों की सुरक्षा, लोकतंत्र और क़ानून का शासन और समृद्धि और सतत विकास, इसके प्रमुख सिद्धांत हैं.

शुरुआत में यह छह देशों का समूह था, जिसकी पहली बैठक 1975 में हुई थी. इस बैठक में वैश्विक आर्थिक संकट के संभावित समाधानों पर विचार किया गया था. अगले साल कनाडा इस समूह में शामिल हो गया और इस तरह यह जी-7 बन गया.

जी-7 देशों के मंत्री और नौकरशाह आपसी हितों के मामलों पर चर्चा करने के लिए हर साल मिलते हैं.

प्रत्येक सदस्य देश बारी-बारी से इस समूह की अध्यक्षता करता है और दो दिवसीय वार्षिक शिखर सम्मेलन की मेजबानी करता है.

यह प्रक्रिया एक चक्र में चलती है. ऊर्जा नीति, जलवायु परिवर्तन, एचआईवी-एड्स और वैश्विक सुरक्षा जैसे कुछ विषय हैं, जिन पर पिछले शिखर सम्मेलनों में चर्चाएं हुई थीं.

शिखर सम्मेलन के अंत में एक सूचना जारी की जाती है, जिसमें सहमति वाले बिंदुओं का जिक्र होता है.

सम्मलेन में भाग लेने वाले लोगों में जी-7 देशों के राष्ट्र प्रमुख, यूरोपीयन कमीशन और यूरोपीयन काउंसिल के अध्यक्ष शामिल होते हैं.

यूरोपीयन कमीशन के अध्यक्ष ज्यां क्लॉड यंकर हैं, जो स्वास्थ्य कारणों से इस बार के सम्मेलन में भाग नहीं ले रहे हैं. वहीं यूरोपीयन काउंसिल के वर्तमान अध्यक्ष डोनल्ड टस्क हैं, जो इस सम्मेलन में भाग ले रहे हैं.

शिखर सम्मेलन में अन्य देशों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों के प्रतिनिधियों को भी भाग लेने के लिए आमंत्रित किया जाता है. इस साल भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आमंत्रित किया गया है.

इस बार शिखर सम्मेलन में चर्चा का मुख्य विषय "असमानता के ख़िलाफ़ लड़ाई" है.

हर साल शिखर सम्मेलन के ख़िलाफ़ बड़े स्तर पर विरोध-प्रदर्शन होते हैं. पर्यावरण कार्यकर्ताओं से लेकर पूंजीवाद के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने वाले संगठन इन विरोध-प्रदर्शनों में शामिल होते हैं.

प्रदर्शनकारियों को आयोजन स्थल से दूर रखने के लिए बड़ी संख्या में सुरक्षा बलों की तैनाती की जाती है.

जी-7 की आलोचना यह कह कर की जाती है कि यह कभी भी प्रभावी संगठन नहीं रहा है, हालांकि समूह कई सफलताओं का दावा करता है, जिनमें एड्स, टीबी और मलेरिया से लड़ने के लिए वैश्विक फंड की शुरुआत करना भी है. समूह का दावा है कि इसने साल 2002 के बाद से अब तक 2.7 करोड़ लोगों की जान बचाई है.

समूह यह भी दावा करता है कि 2016 के पेरिस जलवायु समझौते को लागू करने के पीछे इसकी भूमिका है, हालांकि अमरीका ने इस समझौते से अलग हो जाने की बात कही है.

चीन इस समूह का हिस्सा क्यों नहीं है?

चीन दुनिया की दूसरी बड़ी अर्थव्यवथा है, फिर भी वो इस समूह का हिस्सा नहीं है. इसकी वजह यह है कि यहां दुनिया की सबसे बड़ी आबादी रहती हैं और प्रति व्यक्ति आय संपत्ति जी-7 समूह देशों के मुक़ाबले बहुत कम है.

ऐसे में चीन को उन्नत या विकसित अर्थव्यवस्था नहीं माना जाता है, जिसकी वजह से यह समूह में शामिल नहीं है. हालांकि चीन जी-20 देशों के समूह का हिस्सा है, इस समूह में शामिल होकर वह अपने यहां शंघाई जैसे आधुनिकतम शहरों की संख्या बढ़ाने पर काम कर रहा है.

साल 1998 में इस समूह में रूस भी शामिल हो गया था और यह जी-7 से जी-8 बन गया था. लेकिन साल 2014 में यूक्रेन से क्रीमिया हड़प लेने के बाद रूस को समूह से निलंबित कर दिया गया था.

अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप का मानना है कि रूस को समूह में फिर से शामिल किया जाना चाहिए "क्योंकि वार्ता की मेज पर हमारे साथ रूस होना चाहिए."

जी-7 समूह देशों के बीच कई असहमतियां भी हैं. पिछले साल कनाडा में हुए शिखर सम्मेलन में अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप का अन्य सदस्य देशों के साथ मतभेद हो गया था.

राष्ट्रपति ट्रंप के आरोप थे कि दूसरे देश अमरीका पर भारी आयात शुल्क लगा रहे हैं. पर्यावरण के मुद्दे पर भी उनका सदस्य देशों के साथ मतभेद था.

समूह की आलोचना इस बात के लिए भी की जाती है कि इसमें मौजूदा वैश्विक राजनीति और आर्थिक मुद्दों पर बात नहीं होती है.

अफ्रीका, लैटिन अमरीका और दक्षिणी गोलार्ध का कोई भी देश इस समूह का हिस्सा नहीं है.

भारत और ब्राज़ील जैसी तेज़ी से बढ़ रही अर्थव्यवस्थाओं से इस समूह को चुनौती मिल रही है जो जी-20 समूह का प्रतिनिधित्व करते हैं लेकिन जी-7 का हिस्सा नहीं हैं.

कुछ वैश्विक अर्थशास्त्रियों का कहना है कि जी-20 के कुछ देश 2050 तक जी-7 के कुछ सदस्य देशों को पीछे छोड़ देंगे.

जी-7 के सम्मेलन में अमेरिका, कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान के अलावा मेहमान देश के तौर पर दक्षिण कोरिया, दक्षिण अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया और भारत ने डिजिटल माध्यम से शिरकत की। जॉनसन ने कहा, ‘‘नेताओं ने सीधे तौर पर या ‘कोवैक्स’ पहल के जरिए दुनिया के गरीब देशों को एक अरब खुराकों की आपूर्ति का संकल्प लिया है। इसमें ब्रिटेन द्वारा दी जाने वाली 10 करोड़ खुराकें भी शामिल हैं। दुनिया के टीकाकरण की दिशा में यह एक बड़ा कदम है।’’

जॉनसन ने ब्रिटेन में विकसित ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका के टीके की खास भूमिका को भी रेखांकित किया। भारत में सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ‘कोविशील्ड’ नाम से इस टीके का उत्पादन कर रही है।

जॉनसन ने कहा, ‘‘ब्रिटेन सरकार की मदद से तैयार (ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका) टीके से आज करीब 50 करोड़ लोग सुरक्षित हैं...और हर दिन यह संख्या बढ़ रही है। किफायती मूल्य पर दुनिया में इस टीके की बिक्री के कारण यह काफी लोकप्रिय है और इस्तेमाल करने में भी यह आसान है। एस्ट्राजेनेका की उदारता के कारण दुनिया में गरीब देशों में करोड़ों लोगों तक टीके पहुंचाए जा रहे हैं। वास्तव में ‘कोवैक्स’ पहल में जितने टीकों की आपूर्ति हुई है उसमें 96 प्रतिशत ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका के टीके थे।’’

ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ने अंतरराष्ट्रीय संस्था ‘ग्लोबल पार्टनरशिप फॉर एडुकेशन’ की भी प्रशंसा की, जिसका लक्ष्य है कि दुनिया में प्रत्येक बच्चे को समुचित शिक्षा का मौका मिला। ब्रिटेन ने भी इस संस्था को 43 करोड़ पाउंड की मदद दी। जॉनसन ने कहा, ‘‘मुझे गर्व है कि जी-7 के देश अगले पांच साल में चार करोड़ और बच्चियों को स्कूल पहुंचाने और प्राथमिक स्कूलों में दो करोड़ बच्चों को पहुंचाने पर राजी हुए और हमने इस सप्ताह इसके लिए शानदार शुरुआत की है।’’

उन्होंने कहा कि इसी साल ब्रिटेन कोप 26 सम्मेलन की मेजबानी करेगा जिसमें जलवायु परिवर्तन से निपटने और आगामी पीढ़ी के लिए सुरक्षित भविष्य तैयार करने पर चर्चा की जाएगी। उन्होंने कहा, ‘‘वैश्विक कार्बन उत्सर्जन में जी-7 के देशों की 20 प्रतिशत भागीदारी है और हम इस पर और कदम उठाने के लिए सहमत हैं।’’

G7 2022 की मेजबानी कौन करेगा?

48वां G7 शिखर सम्मेलन २६ से २८ जून २०२२ तक जर्मनी के बवेरियन आल्प्स के श्लॉस एल्मौ में आयोजित होने वाला है। जर्मनी ने पहले २०१५ में बवेरिया के श्लॉस एल्मौ में G7 शिखर सम्मेलन की मेजबानी की थी।

G 7 में कौन कौन से देश शामिल है?

सात का समूह या जी ७ या जी 7 कनाडा, फ़्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका का एक समूह है। यह संगठन, दुनिया की सात सबसे बड़ी उन्नत अर्थव्यवस्थाओं के साथ, वैश्विक शुद्ध सम्पत्ति ($280 ट्रिलियन) का 62% से अधिक का प्रतिनिधित्व करते हैं

कौन सा देश G7 समिति का सदस्य नहीं है?

जी7 गठबंधन का हिस्सा न होने के बावजूद भारत को इस महत्वपूर्ण शिखर सम्मेलन में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया गया है। जी7 दुनिया के सबसे बड़े औद्योगिक देशों में से सात देशों का समूह है। सात का समूह (जी7) कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका से मिलकर बना समूह है।

शिखर सम्मेलन में कितने देश हैं?

यह यूरोपियन यूनियन एवं 19 देशों का एक अनौपचारिक समूह है. जी20 शिखर सम्मेलन में इसके नेता हर साल जुटते हैं और वैश्विक अर्थव्यवस्था को कैसे आगे बढ़ाया जाए इस पर चर्चा करते हैं. इसका गठन साल 1999 में हुआ था.