कवि ने राम और कस्तूरी में क्या समानता बताई है - kavi ne raam aur kastooree mein kya samaanata bataee hai

कबीर

साखी

ऐसी बाँणी बोलिए मन का आपा खोई।
अपना तन सीतल करै औरन कैं सुख होई।।

बात करने की कला ऐसी होनी चाहिए जिससे सुनने वाला मोहित हो जाए। प्यार से बात करने से अपने मन को शांति तो मिलती ही है साथ में दूसरों को भी सुख का अनुभव होता है। आज के जमाने में भी कम्युनिकेशन का बहुत महत्व है। किसी भी क्षेत्र में तरक्की करने के लिए वाक्पटुता की अहम भूमिका होती है।

कस्तूरी कुण्डली बसै मृग ढ़ूँढ़ै बन माहि।
ऐसे घटी घटी राम हैं दुनिया देखै नाँहि॥

हिरण की नाभि में कस्तूरी होता है, लेकिन हिरण उससे अनभिज्ञ होकर उसकी सुगंध के कारण कस्तूरी को पूरे जंगल में ढ़ूँढ़ता है। ऐसे ही भगवान हर किसी के अंदर वास करते हैं फिर भी हम उन्हें देख नहीं पाते हैं। कबीर का कहना है कि तीर्थ स्थानों में भटक कर भगवान को ढ़ूँढ़ने से अच्छा है कि हम उन्हें अपने भीतर तलाश करें।

जब मैं था तब हरि नहीं अब हरि हैं मैं नाँहि।
सब अँधियारा मिटी गया दीपक देख्या माँहि॥

जब मनुष्य का मैं यानि अहँ उसपर हावी होता है तो उसे ईश्वर नहीं मिलते हैं। जब ईश्वर मिल जाते हैं तो मनुष्य का अस्तित्व नगण्य हो जाता है क्योंकि वह ईश्वर में मिल जाता है। ये सब ऐसे ही होता है जैसे दीपक के जलने से सारा अंधेरा दूर हो जाता है।

सुखिया सब संसार है खाए अरु सोवै।
दुखिया दास कबीर है जागे अरु रोवै।।

पूरी दुनिया मौज मस्ती करने में मशगूल रहती है और सोचती है कि सब सुखी हैं। लेकिन सही मायने में सुखी तो वो है जो दिन रात प्रभु की आराधना करता है।

बिरह भुवंगम तन बसै मन्त्र लागै कोई।
राम बियोगी ना जिवै जिवै तो बौरा होई।।

जिस तरह से प्रेमी के बिरह के काटे हुए व्यक्ति पर किसी भी मंत्र या दवा का असर नहीं होता है, उसी तरह भगवान से बिछड़ जाने वाले जीने लायक नहीं रह जाते हैं; क्योंकि उनकी जिंदगी पागलों के जैसी हो जाती है।

निंदक नेड़ा राखिये, आँगणि कुटी बँधाइ।
बिन साबण पाँणीं बिना, निरमल करै सुभाइ॥

जो आपका आलोचक हो उससे मुँह नहीं मोड़ना चाहिए। यदि संभव हो तो उसके लिए अपने पास ही रहने का समुचित प्रबंध कर देना चाहिए। क्योंकि जो आपकी आलोचना करता है वो बिना पानी और साबुने के आपके दुर्गुणों को दूर कर देता है।

पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुवा, पंडित भया कोइ।
एकै अषिर पीव का, पढ़ै सु पंडित होइ॥

मोटी मोटी किताबें पढ़ने से कोई ज्ञानी नहीं बन पाता है। इसके बदले में अगर किसी ने प्रेम का एक अक्षर भी पढ़ लिया तो वो बड़ा ज्ञानी बन जाता है। विद्या के साथ साथ व्यावहारिकता भी जरूरी होती है।

हम घर जाल्या आपणाँ, लिया मुराड़ा हाथि।
अब घर जालौं तास का, जे चलै हमारे साथि॥

लोगों में यदि प्रेम और भाईचारे का संदेश फूंकना हो तो उसके लिए आपको पहले अपने मोह माया और सांसारिक बंधन त्यागने होंगे। कबीर जैसे साधु के पथ पर चलने की योग्यता पाने के लिए यही सबसे बड़ी कसौटी है।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए:
  1. मीठी वाणी बोलने से औरों को सुख और अपने तन को शीतलता कैसे प्राप्त होती है?

    उत्तर:जब हम मीठी वाणी में बोलते हैं तो इससे सुनने वाले को अच्छा लगता है और वह हमारी बात अच्छे तरीके से सुनता है। सुनने वाला हमारे बारे में अपनी अच्छी राय बनाता है जिसके कारण हम आत्मसंतोष का अनुभव कर सकते हैं। सही तरीके से बातचीत होने के कारण सुनने वाले और बोलने वाले दोनों को सुख की अनुभूति होती है।

  1. दीपक दिखाई देने पर अँधियारा कैसे मिट जाता है? साखी के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए।

    उत्तर:इस साखी में कबीर ने दीपक की तुलना उस ज्ञान से की है जिसके कारण हमारे अंदर का अहं मिट जाता है। कबीर का कहना है कि जबतक हमारे अंदर अहं व्याप्त है तब तक हम परमात्मा को नहीं पा सकते हैं। लेकिन जैसे ही ज्ञान का प्रकाश जगता है वैसे ही हमारे अंदर से अहंरूपी अंधकार समाप्त हो जाता है।

  1. ईश्वर कण-कण में व्याप्त है, पर हम उसे क्यों नहीं देख पाते?

    उत्तर:ईश्वर कण-कण में व्याप्त है फिर भी हम उसे देख नहीं पाते क्योंकि हम उसे उचित जगह पर तलाशते ही नहीं हैं। ईश्वर तो हमारे भीतर है लेकिन हम उसे अपने भीतर ढ़ूँढ़ने की बजाय अन्य स्थानों; जैसे तीर्थ स्थल, मंदिर, मस्जिद आदि में ढ़ूँढ़ते हैं।

  2. संसार में सुखी व्यक्ति कौन है और दुखी कौन? यहाँ ‘सोना’ और ‘जागना’ किसके प्रतीक हैं? इसका प्रयोग यहाँ क्यों किया गया है? स्पष्ट कीजिए।

    उत्तर: कबीर के अनुसार वह व्यक्ति दुखी है जो हमेशा भोगविलास और दुनियादारी में उलझा रहता है। जो व्यक्ति सांसारिक झंझटों से परे होकर ईश्वर की आराधना करता है वही सुखी है। यहाँ पर ‘सोने’ का मतलब है ईश्वर के अस्तित्व से अनभिज्ञ रहना। ठीक इसके उलट, ‘जागने का मतलब है अपनी मन की आँखों को खोलकर ईश्वर की आराधना करना।

  1. अपने स्वभाव को निर्मल रखने के लिए कबीर ने क्या उपाय सुझाया है?

    उत्तर:अपने स्वभाव को निर्मल रखने के लिए बड़ा ही कारगर उपाय सुझाया है। कबीर ने कहा है कि हमें अपने आलोचक से मुँह नहीं फेरना चाहिए। कबीर ने कहा है कि हो सके तो आलोचक को अपने आस पास ही रहने का प्रबंध कर दें। ऐसा होने से आलोचक हमारी कमियो को बताता रहेगा ताकि हम उन्हें दूर कर सकें। इससे हमारा स्वभाव निर्मल हो जाएगा।

  2. ‘एकै अषिर पीव का, पढ़ै सु पँडित होइ’ इस पंक्ति द्वारा कवि क्या कहना चाहता है?

    उत्तर:इस पंक्ति के द्वारा कबीर ने कहा है कि यदि कोई व्यक्ति प्रेम का पाठ पढ़ ले तो वह ज्ञानी हो जाएगा। प्रेम और भाईचारे के पाठ से बढ़कर कोई ज्ञान नहीं है। मोटी-मोटी किताबें पढ़कर भी वह ज्ञान नहीं मिल पाता।

  1. कबीर की उद्धत साखियों की भाषा विशेषता स्पष्ट कीजिए।

    उत्तर:कबीर की साखियाँ अवधी भाषा की स्थानीय बोली में लिखी गई है। ऐसी बोली बनारस के आसपास के इलाकों में बोली जाती है। यह भाषा आम लोगों के बोलचाल की भाषा हुआ करती थी। कबीर ने अपनी साखियों में रोजमर्रा की वस्तुओं को उपमा के तौर पर इस्तेमाल किया है। अन्य शब्दों में कहा जाए तो कबीर की भाषा ठेठ है। इस तरह की भाषा किसी भी ज्ञान को जनमानस तक पहुँचाने के लिए अत्यंत कारगर हुआ करती थी। कबीर ने अपनी रचना को दोहों के रूप में लिखा है। एक दोहे में दो पंक्तियाँ होती हैं। इसलिए गूढ़ से गूढ़ बात को भी बड़ी सरलता से कम शब्दों में कहा जा सकता है।

निम्नलिखित का भाव स्पष्ट किजिए:

  1. बिरह भुवंगम तन बसै, मंत्र न लागै कोइ।

    उत्तर:जब बिरह का साँप तन के अंदर बैठा हो तो कोई भी मंत्र काम नहीं आता है। यहाँ पर कवि ने प्रेमी के बिरह से पीड़ित व्यक्ति की तुलना ऐसे व्यक्ति से की जिससे ईश्वर दूर हो जाते हैं। ऐसा व्यक्ति हमेशा व्यथा में ही रहता है क्योंकि उसपर किसी भी दवा या उपचार का असर नहीं होता है।

  2. कस्तूरी कुंडलि बसै, मृग ढ़ूँढ़ै बन माँहि।

    उत्तर:हिरण की नाभि में कस्तूरी रहता है जिसकी सुगंध चारों ओर फैलती है। हिरण इससे अनभिज्ञ पूरे वन में कस्तूरी की खोज में मारा मारा फिरता है। इस दोहे में कबीर ने हिरण को उस मनुष्य के समान माना है जो ईश्वर की खोज में दर दर भटकता है। कबीर कहते हैं कि ईश्वर तो हम सबके अंदर वास करते हैं लेकिन हम उस बात से अनजान होकर ईश्वर को तीर्थ स्थानों के चक्कर लगाते रहते हैं।

  3. जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाँहि।

    उत्तर:जब मनुष्य का मैं यानि अहँ उसपर हावी होता है तो उसे ईश्वर नहीं मिलते हैं। जब ईश्वर मिल जाते हैं तो मनुष्य का अस्तित्व नगण्य हो जाता है क्योंकि वह ईश्वर में मिल जाता है। ये सब ऐसे ही होता है जैसे दीपक के जलने से सारा अंधेरा दूर हो जाता है।

  1. पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुवा, पंडित भया न कोइ।

    उत्तर:मोटी मोटी किताबें पढ़ने से कोई ज्ञानी नहीं बन पाता है। इसके बदले में अगर किसी ने प्रेम का एक अक्षर भी पढ़ लिया तो वो बड़ा ज्ञानी बन जाता है। विद्या के साथ साथ व्यावहारिकता भी जरूरी होती है।

मीरा

पद

हरि आप हरो जन री भीर।

इस पद में मीरा ने भगवान विष्णु की भक्तवात्सल्यता का चित्रण किया है। हरि विष्णु का एक प्रचलित नाम है। मीरा ने कई उदाहरण देकर यह बताया है कि कैसे भगवान विष्णु भक्तों की पीड़ा हरते हैं।

द्रोपदी री लाज राखी, आप बढ़ायो चीर।

जब द्रौपदी की लाज संकट में पड़ गई थी तो हरि ने कृष्ण के अवतार में अनंत साड़ी प्रदान करके द्रौपदी की लाज बचाई थी।

भगत कारण रूप नरहरि, धरयो आप सरीर।
बूढ़तो गजराज राख्यो, काटी कुञ्जर पीर।

प्रह्लाद भी विष्णु के अनन्य भक्तों में से एक थे। जब प्रह्लाद का जीवन संकट में पड़ गया था तब विष्णु ने नरसिंह का अवतार लेकर प्रह्लाद की रक्षा की थी। जब ऐरावत को मगरमच्छ ने पकड़ लिया था तो विष्णु ने मगरमच्छ को मारकर ऐरावत की जान बचाई थी।

दासी मीराँ लाल गिरधर, हरो म्हारी भीर॥

मीराबाई का कहना है कि जो भी सच्चे मन से हरि की आराधना करेगा हरि हमेशा उसका कष्ट दूर करेंगे। मीरा कहती हैं कि वो भी कृष्ण की दासी हैं। चूँकि कृष्ण हरि के ही रूप हैं इसलिए वो मीरा का भी दुख दूर करेंगे।

स्याम म्हाने चाकर राखो जी,
गिरधारी लाला म्हाँने चाकर राखोजी।
चाकर रहस्यूँ बाग लगास्यूँ नित उठ दरसण पास्यूँ।
बिंदरावन री कुंज गली में, गोविंद लीला गास्यूँ।
चाकरी में दरसण पास्यूँ, सुमरण पास्यूँ खरची।
भाव भगती जागीरी पास्यूँ, तीनूं बाताँ सरसी।

इन पंक्तियों में मीरा ने भक्ति की चरम सीमा का वर्णन किया है। वह कृष्ण की भक्ति में उनके यहाँ नौकर तक बनने को तैयार हैं। नौकरों की सामाजिक स्थिति से हम सभी पूरी तरह से परिचित हैं। उनकी बड़ी दयनीय दशा होती है। हर कोई उन्हें तिरस्कार से देखता है। फिर भी मीरा भगवान के यहाँ नौकर या दासी बनना चाहती हैं। इसमे मीरा को क्या क्या लाभ होने वाले हैं, इसका मीरा ने बड़ा ही सुंदर चित्रण किया है। जब मीरा बाग लगाएँगी तो उसी बहाने रोज उन्हें श्याम के दर्शन होंगे। फिर वे भक्ति भाव से अभिभूत होकर वृन्दावन की संकरी गलियों में गोविंद की लीला गाती फिरेंगी। चाकरी से मीरा को तीन मुख्य फायदे होंगे। उन्हें दर्शन और सुमिरन खर्चे के लिए मिलेंगे और भाव और भक्ति की जागीर मिलेगी।

मोर मुगट पीताम्बर सौहे, गल वैजंती माला।
बिंदरावन में धेनु चरावे, मोहन मुरली वाला।

कृष्ण के उस रूप का वर्णन मीरा ने किया है जो जग जाहिर है। कृष्ण के पीले वस्त्र, मोर का मुकुट और गले में वैजयंती माला बहुत सुंदर लगती है। कृष्ण जब वृंदावन में इस रूप में गाय चराते हैं तो उनका रूप मोहने वाला होता है। हिंदू संस्कृति में पीला रंग सूर्य के तेज और उत्तम स्वास्थ्य की निशानी मानी जाती है। पीला रंग बसंत के आगमन का भी सूचक है। इसलिए हमारे यहाँ पूजा में गेंदे के फूल का मुख्य स्थान रहता है। कृष्ण का गाय चराना भी हमारी पुरानी अर्थव्यवस्था का प्रतीक है। पुराने जमाने में पशुधन का बहुत महत्व होता था। कृष्ण की गाय चराने की प्रक्रिया उसी पशु धन की रक्षा और उसकी वृद्धि का सूचक है।

ऊँचा, ऊँचा महल बणावं बिच बिच राखूँ बारी।
साँवरिया रा दरसण पास्यूँ, पहर कुसुम्बी साई।
आधी रात प्रभु दरसण, दीज्यो जमनाजी रा तीरां।
मीरां रा प्रभु गिरधर नागर, हिवड़ो घणो अधीराँ।

अगली पंक्तियों में मीरा कहती हैं कि ऊँचे महलों में वो बगीचे बनवाएँगी। उन्हीं बगीचों में वे पूरे साज श्रृंगार करके कृष्ण के दर्शन करेंगी। अब मीरा का हृदय इतना अधीर हो गया है कि वे चाहती हैं कि भगवान उन्हें आधी रात में ही दर्शन दे दें।

अभ्यास:

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए:
  1. पहले पद में मीरा ने हरि से अपनी पीड़ा हरने की विनती किस प्रकार की है?

    उत्तर:पहले पद में मीरा ने हरि को याद दिलाया है कि कैसे उन्होंने अपने कई भक्तों की मदद की थी। मीरा ने द्रौपदी, प्रह्लाद और ऐरावत के उदाहरण देते हुए हरि से विनती की है कि वे मीरा के दुख को भी दूर करें।

  2. दूसरे पद में मीराबाई श्याम की चाकरी क्यों करना चाहती हैं? स्पष्ट कीजिए।

    उत्तर:मीराबाई कृष्ण के दर्शन करने का कोई भी मौका छोड़ना नहीं चाहती हैं। वे चाहती हैं कि दिन रात श्याम उनके सामने ही रहें। इसलिए मीराबाई श्याम की नौकरी करना चाहती हैं ताकि उन्हें श्याम को बार-बार देखने का मौका मिले।

  1. मीराबाई ने श्रीकृष्ण के रूप-सौंदर्य का वर्णन कैसे किया है?

    उत्तर:कृष्ण के उस रूप का वर्णन मीरा ने किया है जो जग जाहिर है। कृष्ण के पीले वस्त्र, मोर का मुकुट और गले में वैजयंती माला बहुत सुंदर लगती है। कृष्ण जब वृंदावन में इस रूप में गाय चराते हैं तो उनका रूप मोहने वाला होता है।

  • मीराबाई की भाषा शैली पर प्रकाश डालिए।

    उत्तर:मीराबाई की भाषा में राजस्थान की बोली का पुट है क्योंकि वे राजस्थान की थीं। उन्होंने सामान्य बोलचाल में प्रयुक्त होने वाले शब्दों का प्रयोग किया है। मीरा के पद को आसानी से संगीतबद्ध किया जा सकता है। उनकी सरल शब्दावली के कारण मीरा के पद आसानी से लोगों की जुबान पर चढ़ जाते हैं।

  • वे श्रीकृष्ण को पाने के लिए क्या-क्या कार्य करने को तैयार हैं?

    उत्तर:वे श्रीकृष्ण को पाने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं। यहाँ तक कि वे कृष्ण के यहाँ दासी बनने को भी तैयार हैं।

निम्नलिखित पंक्तियों का काव्य सौंदर्य स्पष्ट कीजिए:

  1. हरि आप हरो जन री भीर।
    द्रौपदी री लाज राखी, आप बढ़ायो चीर।
    भगत कारण रूप नरहरि धरयो आप सरीर।

    उत्तर:इन पंक्तियों में भगवान के महात्म्य का वर्णन है। ऐसा माना जाता है कि भगवान हर किसी के दुख को दूर करते हैं। जब द्रौपदी पर गहरा संकट आया था, उनकी लाज पर खतरा था तब भगवान ने उन्हें कभी न खत्म होने वाली साड़ी प्रदान करके उनकी लाज बचाई थी। भगवान अपने भक्तों के दुख दूर करने के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते हैं। प्रह्लाद की जान बचाने के लिए तो भगवान ने नरसिंह का शरीर धारण कर लिया था।

  1. बूढ़तो गजराज राख्यो, काटी कुञ्जर पीर।
    दासी मीराँ लाल गिरधर, हरो म्हारी भीर॥

    उत्तर:इन पंक्तियों में मीरा ने उस घटना का उल्लेख किया है जब ऐरावत एक मगरमच्छ के चंगुल में फँस गया था। भगवान ने समय पर आकर ऐरावत की जान बचाई थी। मीरा चाहती हैं कि उसी तरह से भगवान आकर उनके दुख को भी दूर करें।

चाकरी में दरसण पास्यूँ, सुमरण पास्यूँ खरची।
भाव भगती जागीरी पास्यूँ, तीनूं बाताँ सरसी।

उत्तर: इन पंक्तियों में भक्त की उस भावना का वर्णन है जब उसके मन में कोई भी छल कपट नहीं है बल्कि एक सीधी सी योजना है अपने आराध्य के दर्शण करने की। मीरा बताती हैं कि भगवान के यहाँ नौकरी करने से उन्हें क्या क्या लाभ मिलने वाले हैं। भगवान की नौकरी करते करते उन्हें मुफ्त में ही भगवान के दर्शण होंगे। भगवान के सुमिरन का मौका तो जैसे जेब खर्च के समान होगा। और इन सबके कारण जो भक्ति उन्हें प्राप्त होगी वह तो उनके लिए किसी भी जागीर से कम नहीं होगी।

बिहारी

दोहे

सोहत ओढ़ैं पीतु पटु स्याम, सलौनैं गात।
मनौ नीलमनि सैल पर आतपु परयौ प्रभात॥

इस दोहे में कवि ने कृष्ण के साँवले शरीर की सुंदरता का बखान किया है। कवि का कहना है कि कृष्ण के साँवले शरीर पर पीला वस्त्र ऐसी शोभा दे रहा है, जैसे नीलमणि पहाड़ पर सुबह की सूरज की किरणें पड़ रही हैं।

कहलाने एकत बसत अहि मयूर, मृग बाघ।
जगतु तपोवन सौ कियौ दीरघ दाघ निदाघ।।

इस दोहे में कवि ने भरी दोपहरी से बेहाल जंगली जानवरों की हालत का चित्रण किया है। भीषण गर्मी से बेहाल जानवर एक ही स्थान पर बैठे हैं। मोर और सांप एक साथ बैठे हैं। हिरण और बाघ एक साथ बैठे हैं। कवि को लगता है कि गर्मी के कारण जंगल किसी तपोवन की तरह हो गया है। जैसे तपोवन में विभिन्न इंसान आपसी द्वेषों को भुलाकर एक साथ बैठते हैं, उसी तरह गर्मी से बेहाल ये पशु भी आपसी द्वेषों को भुलाकर एक साथ बैठे हैं।

बतरस लालच लाल की मुरली धरी लुकाइ।
सौंह करैं भौंहनु हँसै, दैन कहैं नटि जाइ॥

इस दोहे में कवि ने गोपियों द्वारा कृष्ण की बाँसुरी चुराए जाने का वर्णन किया है। कवि कहते हैं कि गोपियों ने कृष्ण की मुरली इस लिए छुपा दी है ताकि इसी बहाने उन्हें कृष्ण से बातें करने का मौका मिल जाए। साथ में गोपियाँ कृष्ण के सामने नखरे भी दिखा रही हैं। वे अपनी भौहों से तो कसमे खा रही हैं लेकिन उनके मुँह से ना ही निकलता है।

कहत, नटत, रीझत, खिझत, मिलत, खिलत, लजियात।
भरे भौन मैं करत हैं नैननु हीं सब बात॥

इस दोहे में कवि ने उस स्थिति को दर्शाया है जब भरी भीड़ में भी दो प्रेमी बातें करते हैं और उसका किसी को पता तक नहीं चलता है। ऐसी स्थिति में नायक और नायिका आँखों ही आँखों में रूठते हैं, मनाते हैं, मिलते हैं, खिल जाते हैं और कभी कभी शरमाते भी हैं।

बैठि रही अति सघन बन, पैठि सदन तन माँह।
देखि दुपहरी जेठ की छाँहौं चाहति छाँह॥

इस दोहे में कवि ने जेठ महीने की गर्मी का चित्रण किया है। कवि का कहना है कि जेठ की गरमी इतनी तेज होती है की छाया भी छाँह ढ़ूँढ़ने लगती है। ऐसी गर्मी में छाया भी कहीं नजर नहीं आती। वह या तो कहीं घने जंगल में बैठी होती है या फिर किसी घर के अंदर।

कागद पर लिखत न बनत, कहत सँदेसु लजात।
कहिहै सबु तेरौ हियौ, मेरे हिय की बात॥

इस दोहे में कवि ने उस नायिका की मन:स्थिति का चित्रण किया है जो अपने प्रेमी के लिए संदेश भेजना चाहती है। नायिका को इतना लम्बा संदेश भेजना है कि वह कागज पर समा नहीं पाएगा। लेकिन अपने संदेशवाहक के सामने उसे वह सब कहने में शर्म भी आ रही है। नायिका संदेशवाहक से कहती है कि तुम मेरे अत्यंत करीबी हो इसलिए अपने दिल से तुम मेरे दिल की बात कह देना।

प्रगट भए द्विजराज कुल, सुबस बसे ब्रज आइ।
मेरे हरौ कलेस सब, केसव केसवराइ॥

कवि का कहना है कि श्रीकृष्ण ने स्वयं ही ब्रज में चंद्रवंश में जन्म लिया था मतलब अवतार लिया था। बिहारी के पिता का नाम केसवराय था। इसलिए वे कहते हैं कि हे कृष्ण आप तो मेरे पिता समान हैं इसलिए मेरे सारे कष्ट को दूर कीजिए।

जपमाला, छापैं, तिलक सरै न एकौ कामु।
मन काँचै नाचै बृथा, साँचै राँचै रामु॥

आडम्बर और ढ़ोंग किसी काम के नहीं होते हैं। मन तो काँच की तरह क्षण भंगुर होता है जो व्यर्थ में ही नाचता रहता है। माला जपने से, माथे पर तिलक लगाने से या हजार बार राम राम लिखने से कुछ नहीं होता है। इन सबके बदले यदि सच्चे मन से प्रभु की आराधना की जाए तो वह ज्यादा सार्थक होता है।

अभ्यास

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए:
  1. छाया भी कब छाया ढ़ूँढ़ने लगती है?

    उत्तर:जेठ महीने की गर्मी बहुत प्रचंड होती है। ऐसे में छाया भी छाया ढ़ूँढ़ने लगती है।

  1. बिहारी की नायिका यह क्यों कहती है ‘कहिहै सबु तेरौ हियौ, मेरे हिय की बात’ – स्पष्ट कीजिए।

    उत्तर:उसे अपने संदेशवाहक पर बहुत विश्वास है। उसे पता है कि उसका संदेशवाहक पूरी इमानदारी से उसका संदेश पहुँचाएगा। साथ में उसे लगता है कि संदेश लिखने के लिए कागज छोटा पड़ जाएगा। उसे अपना संदेश बोलने में शर्म भी आती है। इसलिए वह अपने संदेशवाहक से ऐसा कहती है।

  1. सच्चे मन में राम बसते हैं – दोहे के संदर्भानुसार स्पष्ट कीजिए।

    उत्तर:इस दोहे में कहा गया है कि झूठमूठ के आडंबर से कोई फायदा नहीं होता है। लेकिन यदि सच्चे मन से पूजा की जाए तो फिर भगवान अवश्य मिल जाते हैं।

  2. गोपियाँ श्रीकृष्ण की बाँसुरी क्यों छिपा लेती हैं?

    उत्तर:गोपियाँ कृष्ण से बात करने की लालसा से बाँसुरी छिपा लेती हैं।

  1. बिहारी कवि ने सभी की उपस्थिति में भी कैसे बात की जा सकती है, इसका वर्णन किस प्रकार किया है? अपने शब्दों में लिखिए।

    उत्तर:इस दोहे में कवि ने उस स्थिति को दर्शाया है जब भरी भीड़ में भी दो प्रेमी बातें करते हैं और उसका किसी को पता तक नहीं चलता है। ऐसी स्थिति में नायक और नायिका आँखों ही आँखों में रूठते हैं, मनाते हैं, मिलते हैं, खिल जाते हैं और कभी कभी शरमाते भी हैं।

निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए:
  1. मनौ नीलमनि सैल पर आतपु परयौ प्रभात।

    उत्तर:इस दोहे में कवि ने कृष्ण के साँवले शरीर की सुंदरता का बखान किया है। कवि का कहना है कि कृष्ण के साँवले शरीर पर पीला वस्त्र ऐसी शोभा दे रहा है, जैसे नीलमणि पहाड़ पर सुबह की सूरज की किरणें पड़ रही हैं।

  1. जगतु तपोबन सौ कियौ दीरघ दाघ निदाघ।

    उत्तर:इस दोहे में कवि ने भरी दोपहरी से बेहाल जंगली जानवरों की हालत का चित्रण किया है। भीषण गर्मी से बेहाल जानवर एक ही स्थान पर बैठे हैं। मोर और सांप एक साथ बैठे हैं। हिरण और बाघ एक साथ बैठे हैं। कवि को लगता है कि गर्मी के कारण जंगल किसी तपोवन की तरह हो गया है। जैसे तपोवन में विभिन्न इंसान आपसी द्वेषों को भुलाकर एक साथ बैठते हैं, उसी तरह गर्मी से बेहाल ये पशु भी आपसी द्वेषों को भुलाकर एक साथ बैठे हैं।

  2. जपमाला, छापैं, तिलक सरै न एकौ कामु।
    मन काँचै नाचै बृथा, साँचै राँचै रामु॥

    उत्तर:आडम्बर और ढ़ोंग किसी काम के नहीं होते हैं। मन तो काँच की तरह क्षण भंगुर होता है जो व्यर्थ में ही नाचता रहता है। माला जपने से, माथे पर तिलक लगाने से या हजार बार राम राम लिखने से कुछ नहीं होता है। इन सबके बदले यदि सच्चे मन से प्रभु की आराधना की जाए तो वह ज्यादा सार्थक होता है।

मैथिलीशरण गुप्त

मनुष्यता

विचार लो कि मर्त्य हो न मृत्यु से डरो कभी,
मरो, परंतु यों मरो कि याद जो करें सभी।
हुई न यों सुमृत्यु तो वृथा मरे, वृथा जिए,
मरा नहीं वही कि जो जिया न आपके लिए।
वही पशु प्रवृत्ति है कि आप आप ही चरे,
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे॥

उस आदमी का जीना या मरना अर्थहीन है जो अपने स्वार्थ के लिए जीता या मरता है। जिस तरह से पशु का अस्तित्व सिर्फ अपने जीवन यापन के लिए होता है, मनुष्य का जीवन वैसा नहीं होना चाहिए। ऐसा जीवन जीने वाले कब जीते हैं और कब मरते हैं कोई ध्यान ही नहीं देता है। हमें दूसरों के लिए कुछ ऐसे काम करने चाहिए कि मरने के बाद भी लोग हमें याद रखें। साथ में हमें ये भी अहसास होना चाहिए कि हम अमर नहीं हैं। इससे हमारे अंदर से मृत्यु का भय चला जाता है।

उसी उदार की कथा सरस्वती बखानती,
उसी उदार को धरा कृतार्थ भाव मानती।
उसी उदार की सदा सजीव कीर्ति कूजती;तथा उसी उदार को समस्त सृष्टि पूजती।
अखंड आत्म भाव जो असीम विश्व में भरे,
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे॥

जो आदमी पूरे संसार में अत्मीयता और भाईचारा का संचार करता है उसी उदार की कीर्ति युग युग तक गूँजती है। धरती भी सदैव उसकी कृतघ्न रहती है। समस्त सृष्टि उस उदार की पूजा करती है और सरस्वती उसका बखान करती है।

क्षुधार्त रतिदेव ने दिया करस्थ थाल भी,
तथा दधीचि ने दिया परार्थ अस्थिजाल भी।
उशीनर क्षितीश ने स्वमांस दान भी किया,
सहर्ष वीर कर्ण ने शरीर चर्म भी दिया।
अनित्य देह के लिए अनादि जीव क्या डरे?
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे॥

पौराणिक कथाओं में ऐसे कई महादानियों की कहानियाँ भरी पड़ी हैं जिन्होंने दूसरों के हित के लिए अपना सब कुछ दान कर दिया। रतिदेव ने अपने हाथ की आखिरी थाली भी दान में दे दी थी। दधिची ने वज्र बनाने के लिए अपनी हड्डी देवताओं को दे दी थी जिससे सबका भला हो पाया। सिबि ने कबूतर की जान बचाने के लिए बहेलिए को अपने शरीर का मांस दे दिया। ऐसे बहुत से महापुरुष इस दुनिया में पैदा हुए हैं जिनके परोपकार के कारण आज भी लोग उन्हें याद करते हैं।

सहानुभूति चाहिए, महाविभूति है यही;
वशीकृता सदैव है बनी हुई स्वयं मही।
विरुद्धवाद बुद्ध का दया प्रवाह में बहा,
विनीत लोकवर्ग क्या न सामने झुका रहा?
अहा! वही उदार है परोपकार जो करे,
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे॥

पूरी दुनिया पर उपकार करने की इक्षा ही सबसे बड़ा धन होता है। ईश्वर भी ऐसे लोगों के वश में हो जाते हैं। जब भगवान बुद्ध से लोगों का दर्द नहीं सहा गया तो वे दुनिया के नियमों के खिलाफ हो गए। उनका दुनिया के विरुद्ध जाना लोगों की भलाई के लिए था, इसलिए आज भी लोग उन्हें पूजते हैं।

रहो न भूल के कभी मदांध तुच्छ वित्त में,
सनाथ जान आपको करो न गर्व चित्त में।
अनाथ कौन है यहाँ? त्रिलोकनाथ साथ हैं,
दयालु दीनबंधु के बड़े विशाल हाथ हैं।
अतीव भाग्यहीन है अधीर भाव जो करे,
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे॥

यहाँ पर कोई भी अनाथ नहीं है। भगवान के हाथ इतने बड़े हैं कि उनका हाथ सबके सिर पर होता है। इसलिए यह सोचकर कभी भी घमंड नहीं करना चाहिए कि तुम्हारे पास बहुत संपत्ति या यश है। ऐसा अधीर व्यक्ति बहुत बड़ा भाग्यहीन होता है।

अनंत अंतरिक्ष में अनंत देव हैं खड़े,
समक्ष ही स्वबाहु जो बढ़ा रहे बड़े-बड़े।
परस्परावलंब से उठो तथा बढ़ो सभी,
अभी अमर्त्य अंक में अपंक हो चढ़ो सभी।
रहो न यों कि एक से न काम और का सरे,
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे॥

जिस तरह से ब्रह्माण्ड में अनंत देवी देवता जनहित के लिए एक दूसरे के साथ मिलजुलकर काम करते हैं, उसी तरह इंसान को भी आपसी भाईचारे से काम करना चाहिए। ऐसा नहीं होना चाहिए कि किसी से किसी और का काम न चले, बल्कि सभी एक दूसरे के काम आएँ।

‘मनुष्य मात्र बंधु है’ यही बड़ा विवेक है,
पुराणपुरुष स्वयंभू पिता प्रसिद्ध एक है।
फलानुसार कर्म के अवश्य वाह्य भेद हैं,
परंतु अंतरैक्य में प्रमाणभूत वेद हैं।
अनर्थ है कि बंधु ही न बंधु की व्यथा हरे,
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे॥

सभी मनुष्य एक दूसरे के भाई बंधु हैं और सबके माता पिता परम परमेश्वर हैं। कोई काम बड़ा है या छोटा ऐसा केवल बाहर से दिखता है। अंदर से अभी एक समान हैं। इसलिए कर्म के आधार पर किसी को बड़ा या छोटा नहीं समझना चाहिए। भाई अगर भाई की पीड़ा ना हरे तो मानव जीवन व्यर्थ है। ये पंक्तियाँ कहीं न कहीं हमारी जाति व्यवस्था की तरफ इशारा करती हैं।

चलो अभीष्ट मार्ग में सहर्ष खेलते हुए,
विपत्ति, विघ्न जो पड़ें उन्हें ढ़केलते हुए।
घटे न हेलमेल हाँ, बढ़े न भिन्नता कभी,
अतर्क एक पंथ के सतर्क पंथ हों सभी।
तभी समर्थ भाव है कि तारता हुआ तरे,
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे॥

हमें अपने लक्ष्य की ओर हँसते हुए और रास्ते की बाधाओं को हटाते हुए चलते रहना चाहिए। जो रास्ता आपने चुना है उसपर बिना किसी बहस के पूरी निष्ठा से चलना चाहिए। इसमें भेदभाव बढ़ने की कोई गुंजाइश नहीं होनी चाहिए, बल्कि भाईचारा जितना बढ़े उतना ही अच्छा है। वही समर्थ है जो खुद तो पार हो ही और दूसरों की नैया को भी पार लगाए।

यह पूरी कविता सहोपकारिता और परोपकारिता का उपदेश देती है। जीवन के हर परिप्रेक्ष्य में हम एक दूसरे के सहयोग पर निर्भर करते हैं। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और पूरा मानव समाज इसी सहयोग पर आधारित है। जो दूसरे की भलाई में जीवन लगाता है, उसे आने वाली पीढ़ियाँ हमेशा याद रखती हैं।

अभ्यास

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए:
  1. कवि ने कैसी मृत्यु को ‘सुमृत्यु’ कहा है?

    उत्तर:जो मनुष्य दूसरों के लिए अच्छे काम कर जाता है उस मनुष्य को मरने के बाद भी लोग याद रखते हैं। कवि ने ऐसी मृत्यु को ही सुमृत्यु कहा है।

  1. उदार व्यक्ति की पहचान कैसे हो सकती है?

    उत्तर:जो आदमी पूरे संसार में अत्मीयता और भाईचारा का संचार करता है उसी व्यक्ति को उदार माना जा सकता है।

  1. कवि ने दधीचि, कर्ण आदि महान व्यक्तियों का उदाहरण देकर ‘मनुष्यता’ के लिए क्या संदेश दिया है?

    उत्तर:कवि ने दधीचि, कर्ण आदि महान व्यक्तियों का उदाहरण देकर मनुष्यता के लिए एक अहम संदेश दिया है। वे परोपकार का संदेश देना चाहते हैं। दूसरे का भला करने में चाहे अपना नुकसान ही क्यों न हो, लेकिन हमेशा दूसरे का भला करना चाहिए।

  1. कवि ने किन पंक्तियों में यह व्यक्त किया है कि हमें गर्व रहित जीवन व्यतीत करना चाहिए?

    उत्तर:कवि ने निम्न पंक्तियों में यह व्यक्त किया है कि हमें गर्व रहित जीवन व्यतीत करना चाहिए।
    रहो न भूल के कभी मदांध तुच्छ वित्त में,
    सनाथ जान आपको करो न गर्व चित्त में।

  2. ‘मनुष्य मात्र बंधु है’ से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।

    उत्तर:इन शब्दओं से हमें यह शिक्षा मिलती है कि सभी मनुष्य हमारे भाई बंधु हैं। कवि के अनुसार इस बात की समझ एक बहुत बड़ा विवेक है।

  3. कवि ने सबको एक होकर चलने की प्रेरणा क्यों दी है?

    उत्तर:मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। मनुष्य का जीवन आपसी सहकारिता पर निर्भर करता है। इसलिए कवि ने सबको एक होकर चलने की प्रेरणा दी है।

  1. व्यक्ति को किस प्रकार का जीवन व्यतीत करना चाहिए? इस कविता के आधार पर लिखिए।

    उत्तर:किसी भी व्यक्ति को केवल अपने लिए जीने की कोशिश नहीं करना चाहिए। मनुष्य को दूसरों के लिए जीना चाहिए । इसी में सबका भला है।

  1. ‘मनुष्यता’ कविता के माध्यम से कवि क्या संदेश देना चाहता है?

    उत्तर:इस कविता के माध्यम से कवि आपसी भाईचारे का संदेश देना चाहते हैं।

निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए:

सहानुभूति चाहिए, महाविभूति है यही;
वशीकृता सदैव है बनी हुई स्वयं मही।
विरुद्धवाद बुद्ध का दया प्रवाह में बहा,
विनीत लोकवर्ण क्या न सामने झुका रहा?

उत्तर: पूरी दुनिया पर उपकार करने की इक्षा ही सबसे बड़ा धन होता है। ईश्वर भी ऐसे लोगों के वश में हो जाते हैं। जब भगवान बुद्ध से लोगों का दर्द नहीं सहा गया तो वे दुनिया के नियमों के खिलाफ हो गए। उनका दुनिया के विरुद्ध जाना लोगों की भलाई के लिए था, इसलिए आज भी लोग उन्हें पूजते हैं।

रहो न भूल के कभी मदांध तुच्छ वित्त में,
सनाथ जान आपको करो न गर्व चित्त में।
अनाथ कौन है यहाँ? त्रिलोकनाथ साथ हैं,
दयालु दीनबंधु के बड़े विशाल हाथ हैं।

उत्तर: यहाँ पर कोई भी अनाथ नहीं है। भगवान के हाथ इतने बड़े हैं कि उनका हाथ सबके सिर पर होता है। इसलिए यह सोचकर कभी भी घमंड नहीं करना चाहिए कि तुम्हारे पास बहुत संपत्ति या यश है। ऐसा अधीर व्यक्ति बहुत बड़ा भाग्यहीन होता है।

चलो अभीष्ट मार्ग में सहर्ष खेलते हुए,
विपत्ति, विघ्न जो पड़े उन्हें ढ़केलते हुए।
घटे न हेलमेल हाँ, बढ़े न भिन्नता कभी,
अतर्क एक पंथ के सतर्क पंथ हों सभी।

उत्तर: हमें अपने लक्ष्य की ओर हँसते हुए और रास्ते की बाधाओं को हटाते हुए चलते रहना चाहिए। जो रास्ता आपने चुना है उसपर बिना किसी बहस के पूरी निष्ठा से चलना चाहिए। इसमें भेदभाव बढ़ने की कोई गुंजाइश नहीं होनी चाहिए, बल्कि भाईचारा जितना बढ़े उतना ही अच्छा है।

सुमित्रानंदन पंत

पर्वत प्रदेश में पावस

पावस ऋतु थी, पर्वत प्रदेश,
पल-पल परिवर्तित प्रकृति वेश।

पावस यानि सर्दी का मौसम है जिसमे प्रकृति का रूप हर पल बदलता रहता है। कभी धूप खिल जाती है तो कभी काले घने बादल सूरज को ढ़ँक लेते हैं। ये सब हर पल एक नए दृष्टांत की रचना करते हैं।

मेखलाकार पर्वत अपार
अपने सहस्र दृग सुमन फाड़,
अवलोक रहा है बार बार
नीचे जल में निज महाकार,
जिसके चरणों में पला ताल
दर्पण सा फैला है विशाल।

यहाँ पर पर्वत श्रृंखला की तुलना करघनी (कमर में पहनने वाला गहना) से की गई है। विशाल पर्वत अपने सैंकड़ों फूल जैसी आँखों को फाड़कर नीचे पानी में जैसे अपना ही अक्स निहार रहा हो। साधारण भाषा में कहा जाये तो पानी में पहाड़ का प्रतिबिम्ब बन रहा है। पहाड़ के चरणों में जलराशि किसी विशाल आईने की तरह फैली हुई है।

गिरि का गौरव गाकर झर झर
मद में नस-नस उत्तेजित कर
मोती की लड़ियों से सुंदर
झरते हैं झाग भरे निर्झर।

इन पंक्तियों में कवि ने झरनों की सुंदरता का बखान किया है। झरने मोती की लड़ियों की तरह झर रहे हैं। उनकी कल-कल ध्वनि से ऐसा लगता है जैसे वे पहाड़ के प्रताप के गाने गा रहे हैं और पहाड़ के गौरव के नशे में चूर हैं। झरनों के झरने में एक तरह का नशा है। जिस तरह नशे में आदमी लड़खड़ाकर चलता है उसी तरह झरनों के गिरने में थोड़ा बेबाकपन है।

गिरिवर के उर से उठ-उठ कर
उच्चाकांक्षाओं से तरुवर
हैं झाँक रहे नीरव नभ पर
अनिमेष, अटल, कुछ चिंतापर।

पहाड़ के ऊपर और आस पास पेड़ भी होते हैं जो उस दृष्टिपटल की सुंदरता को बढ़ाते हैं। पर्वत के हृदय से पेड़ उठकर खड़े हुए हैं और शांत आकाश को अपलक और अचल होकर किसी गहरी चिंता में मग्न होकर बड़ी महात्वाकांक्षा से देख रहे हैं। ये हमें ऊँचा, और ऊँचा उठने की प्रेरणा दे रहे हैं।

उड़ गया अचानक लो, भूथर
फड़का अपार पारद के पर।
रव-शेष रह गए हैं निर्झर
है टूट पड़ा भू पर अंबर।

अचानक मौसम बदल जाता है और लगता है जैसे पर्वत अचानक अपने पारे जैसे चमकीले पंख फड़फड़ाकर कहीं उड़ गया है। अब केवल झरने की आवाज निशानी के तौर पर रह गई है; क्योंकि धरती पर आसमान टूट पड़ा है। जब सर्दियों में बारिश होने लगती है तो घने कोहरे की वजह से दूर कुछ भी नजर नहीं आता है। इसलिए ऐसा लगता है जैसे पहाड़ उड़कर कहीं चला गया है।

धँस गए धरा में सभय शाल
उठ रहा धुआँ जल गया ताल
यों जलद यान में विचर विचर
था इंद्र खेलता इंद्रजाल।

बारिश हो रही है तो ऐसा लग रहा है जैसे इंद्र बादलों के विमान में घूम घूम कर कोई इंद्रजाल या जादू कर रहे हों। इस जादू के असर से इतना धुआँ उठ रहा है जैसे पूरा ताल जल रहा हो। ये कोहरे का चित्रण है। इस जादू के डर से शाल के विशाल पेड़ भी गायब हो गए हैं जैसे डर के मारे जमीन में धँस गए हों।

अभ्यास

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए:
  1. पावस ऋतु में प्रकृति में कौन-कौन से परिवर्तन आते हैं? कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए।

    उत्तर:पावस यानि सर्दी का मौसम है जिसमे प्रकृति का रूप हर पल बदलता रहता है। कभी धूप खिल जाती है तो कभी काले घने बादल सूरज को ढ़ँक लेते हैं।

  1. ‘मेखलाकार’ शब्द का क्या अर्थ है? कवि ने इस शब्द का प्रयोग यहाँ क्यों किया है?

    उत्तर:मेखला एक आभूषण है जिसे कमर में पहना जाता है। यह ऊपर नीचे उठती हुई तरंगों जैसी रेखा बनाती है। पर्वत श्रृंखला भी ऐसी ही दिखाई देती है। इसलिए कवि ने ‘मेखलाकार’ शब्द का प्रयोग किया है।

  1. ‘सहस्र दृग-सुमन’ से क्या तात्पर्य है? कवि ने इस पद का प्रयोग किसके लिए किया होगा?

    उत्तर:पहाड़ पर उग आए पेड़ों पर असंख्य रंग बिरंगे फूल दिखाई देते हैं। ऐसा लगता है कि पहाड़ की असंख्य आँखें हैं। इसलिए कवि ने यहाँ पर इस पद का प्रयोग किया है।

  2. कवि ने तालाब की समानता किसके साथ दिखाई है और क्यों?

    उत्तर:तालाब या किसी भी अन्य जलराशि में आस पास की चीजों का प्रतिबिंब दिखाई देता है। इसलिए कवि ने तालाब की तुलना किसी विशाल दर्पण से की है।

  1. पर्वत के हृदय से उठकर ऊँचे-ऊँचे वृक्ष आकाश की ओर क्यों देख रहे हैं और वे किस बात को प्रतिबिंबित करते हैं?

    उत्तर:पर्वत के हृदय से पेड़ उठकर खड़े हुए हैं और शांत आकाश को अपलक और अचल होकर किसी गहरी चिंता में मग्न होकर बड़ी महात्वाकांक्षा से देख रहे हैं। ये हमें ऊँचा, और ऊँचा उठने की प्रेरणा दे रहे हैं।

  1. शाल के वृक्ष भयभीत होकर धरती में क्यों धँस गए?

    उत्तर:घने कोहरे में शाल के वृक्ष दिखाई देना बंद हो गए हैं। ऐसा लगता है कि वे उस घने कोहरे से डरकर धरती में समा गए हैं।

  1. झरने किसके गौरव का गान कर रहे हैं? बहते हुए झरने की तुलना किससे की गई है?

    उत्तर:झरने पहाड़ के गौरव का गान कर रहे हैं। कवि ने झरनों की तुलना झरते हुए मोतियों से की है। फिर कवि ने झरनों की बेकाबू गति की तुलना किसी ऐसे व्यक्ति से की है जो नशे के प्रभाव में लड़खड़ाकर चल रहा हो।

निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए:

  1. है टूट पड़ा भू पर अंबर।

    उत्तर:जब तेज बारिश होती है तो लगता है कि धरती पर आसमान ही टूटकर गिरने लगा हो।

  1. यों जलद-यान में विचर-विचर
    था इंद्र खेलता इंद्रजाल।

    उत्तर:इन पंक्तियों में कवि ने तेज बारिश का चित्रण किया है। बादलों की तुलना उसने किसी विमान से की है। ऐसा लगता है कि उन विमानों में बैठकर इंद्र भगवान कोई जादू कर रहे हों।

  1. गिरिवर के उर से उठ उठ कर
    उच्चाकांक्षाओं से तरुवर
    हैं झाँक रहे नीरव नभ पर
    अनिमेष, अटल, कुछ चिंतापर।

    उत्तर:पहाड़ के ऊपर और आस पास पेड़ भी होते हैं जो उस दृष्टिपटल की सुंदरता को बढ़ाते हैं। पर्वत के हृदय से पेड़ उठकर खड़े हुए हैं और शांत आकाश को अपलक और अचल होकर किसी गहरी चिंता में मग्न होकर बड़ी महात्वाकांक्षा से देख रहे हैं। ये हमें ऊँचा, और ऊँचा उठने की प्रेरणा दे रहे हैं।

महादेवी वर्मा

मधुर मधुर मेरे दीपक जल

  1. मधुर मधुर मेरे दीपक जल
    युग युग प्रतिदिन प्रतिक्षण प्रतिपल,
    प्रियतम का पथ आलोकित कर।
  1. इस कविता में अपने मन के दीपक को जला कर दूसरों को राह दिखाने की प्रेरणा दी गई है। मन का दीपक मधुर होकर यदि हर घड़ी, हर दिन करके युगों तक जले तो हर किसी के रास्ते को प्रकाशित कर सकता है। जलने की प्रक्रिया में दीपक अपनी कुर्बानी देता है और पूरे संसार को रौशन करता है। इस शहादत में भी कवयित्री ने दीपक को अपनी मधुरता कायम रखने की प्रेरणा दी है।

सौरभ फैला विपुल धूप बन,
मृदुल मोम सा घुल रे मृदु तन;
दे प्रकाश का सिंधु अपरिमित,
तेरे जीवन का अणु गल गल
पुलक पुलक मेरे दीपक जल।

जिस तरह से धूप या अगरबत्ती की खुशबू चारों ओर फैल जाती है उसी तरह से आपकी कीर्ति चारों ओर फैलनी चाहिए। दीपक को खुश होकर ऐसे जलना चाहिए जिससे उसका एक एक अणु गलकर उसके मुलायम शरीर को विलुप्त कर दे। इसमें अनंत रोशनी वैसे ही निकलनी चाहिए जैसे सूरज पूरे संसार में सबेरा लाता है। अंधेरा कई तरह का हो सकता है। अज्ञान का अंधेरा उन्हीं में से एक है। इसे दूर करने के लिए बहुत शक्तिशाली दीपक की जरूरत है।

  1. सारे शीतल कोमल नूतन,
    माँग रहे तुझसे ज्वाला कण
    विश्व शलभ सिर धुन कहता ‘मैं
    हाय न जल पाया तुझमें मिल।
    सिहर सिहर मेरे दीपक जल।

जब दिए की लौ काँपते हुए जले तो इतना प्रभाव पड़ना चाहिए कि सभी कोमल और शीतल चीजें उससे ज्वाला की इच्छा रखें। यहाँ पर ज्वाला का मतलब उस असीमित ऊर्जा से है जो आपको कुछ भी कर गुजरने की शक्ति दे सके। जब पतंगों को काँपती लौ से टकराने का मौका न मिले तो वे भी हताशा में अपना सर धुनने लगें। मतलब ऊष्मा इतनी ही होनी चाहिए जिससे वह किसी के काम आ सके और उसे जलाकर भष्म न कर दे।

जलते नभ में देख असंख्यक,
स्नेहहीन नित कितने दीपक;
जलमय सागर का उर जलता,
विद्युत ले घिरता है बादल।
विहँस विहँस मेरे दीपक जल।

आकाश में असंख्य तारे हैं लेकिन उनके पास स्नेह नहीं है। उनके पास अपनी रोशनी तो है पर वे दुनिया को रौशन नहीं कर पाते। वहीं दूसरी ओर, जल से भरे सागर का हृदय भी जलकर बादल की रचना करता है जिससे पूरी दुनिया में बारिश होती है। दीपक को ऐसे ही अपने लिए नहीं बल्कि दूसरों की भलाई के लिए जलना चाहिए।

अभ्यास

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए:
  1. प्रस्तुत कविता में ‘दीपक’ और ‘प्रियतम’ किसके प्रतीक हैं?

    उत्तर:इस कविता में दीपक स्वयं का प्रतीक है और प्रियतम उस लक्ष्य का जिस तक कोई मनुष्य पहुँचना चाहता है।

  1. दीपक से किस बात का आग्रह किया जा रहा है और क्यों?

    उत्तर:दीपक से इस बात का आग्रह किया जा रहा है कि वह हर पल और हर दिन जलता रहे। यहाँ पर जलने की प्रक्रिया को हम अपने कर्मों की तरह देख सकते हैं। किसी भी व्यक्ति को अपना लक्ष्य प्राप्त करने के लिए प्रतिदिन कर्म करना पड़ता है। एक पुरानी कहावत है कि कोई भी बड़ा काम एक ही दिन में नहीं होता बल्कि उसमें वर्षों लग जाते हैं।

  1. ‘विश्व शलभ’ दीपक के साथ क्यों जल जाना चाहता है?

    उत्तर:पतंगा दीपक के साथ इसलिए जल जाना चाहता है कि वह दीपक में समा जाए। यहाँ पर दीपक का मतलब है ईश्वर।

  2. आपकी दृष्टि में ‘मधुर मधुर मेरे दीपक जल’ कविता का सौंदर्य इनमें से किस पर निर्भर है:
    (क) शब्दों की आवृत्ति पर।
    (ख) सफल बिंब अंकन पर।

    उत्तर:इस कविता का सौंदर्य दोनों बातों में है। कवयित्री ने कई शब्दों को बार बार दोहराकर कविता की लयबद्धता को बनाए रखा है। इसके साथ ही कई गूढ़ विषयों को अनेक तरह के प्रतीकों और बिंबों के माध्यम से चित्रित किया है। यही एक सफल छायावाद कविता की पहचान होती है।

  1. कवयित्री किसका पथ आलोकित करना चाह रही हैं?

    उत्तर:कवयित्री अपने प्रियतम का पथ आलोकित करना चाह रही हैं। यहाँ पर प्रियतम के कई मतलब हो सकते हैं। ईश्वर या कोई ऐसा जो आपके करीब हो। कुछ लोगों के लिए पूरा संसार भी प्रिय हो सकता है।

  1. कवयित्री को आकाश के तारे स्नेहहीन क्यों प्रतीत होते हैं?

    उत्तर:आकाश के तारों के पास अपनी रोशनी तो है लेकिन वह इस दुनिया के किसी काम की नहीं है। तारों की रोशनी से किसी का कोई भला नहीं हो पाता है। इसलिए कवयित्री को आकाश के तारे स्नेहहीन लगते हैं।

  1. पतंगा अपने क्षोभ को किस प्रकार व्यक्त कर रहा है?

    उत्तर:पतंगा जब दीपक की लौ से टकरा नहीं पाता है तो वह भन्नाकर अपना क्षोभ व्यक्त कर रहा है।

  2. कवयित्री ने दीपक को हर बार अलग-अलग तरह से ‘मधुर मधुर, पुलक पुलक, सिहर सिहर और बिहँस बिहँस’ कर जलने को क्यों कहा है? स्पष्ट कीजिए।

    उत्तर:आग में बड़ी ताकत होती है। जब तक हम उसपर नियंत्रण रखते हैं तब तक वह हमारे बड़े काम आती है। जो आग घर का चूल्हा जलाकर लोगों का पेट पालती है वही यदि नियंत्रण से बाहर हो जाए तो कई घरों को जला देती है। इस कविता में कवयित्री ने आग को प्यार से और हौले से जलने को कहा है ताकि उसके अनुकूल परिणाम मिल सकें।

  1. नीचे दी गई काव्य पंक्तियों को पढ़िए और प्रश्नों के उत्तर दीजिए:
    जलते नभ में देख असंख्यक,
    स्नेहहीन नित कितने दीपक;
    जलमय सागर का उर जलता,
    विद्युत ले घिरता है बादल।
    विहँस विहँस मेरे दीपक जल।
  1. स्नेहहीन दीपक से क्या तात्पर्य है?

    उत्तर:यहाँ पर तारों को स्नेहहीन दीपक कहा गया है क्योंकि वे संसार को कोई लाभ नहीं पहुँचा पाते हैं।

  1. सागर को ‘जलमय’ कहने का क्या अभिप्राय है और उसका हृदय क्यों जलता है?

    उत्तर:जल की ठंडक आग की तपिश के ठीक विपरीत होती है। यहाँ पर कवयित्री ने उस जलमय सागर का उदाहरण इसलिए लिया है ताकि वे बता सकें कि कोई चाहे तो अदम्य इच्छाशक्ति से दूसरों का भला कर सकता है; चाहे उसके पास इसकी सामर्थ्य भी न हो।

  1. बादलों की क्या विशेषता बताई गई है?

    उत्तर:बादलों में बिजली होती है।

  1. कवयित्री दीपक को ‘बिहँस बिहँस’ जलने के लिए क्यों कह रही हैं?

    उत्तर:कवयित्री शायद ये कहना चाहती हैं की अनमने भाव से किया हुआ परोपकार कभी भी परोपकार नहीं हो सकता। आप यदि अपनी स्वेच्छा से किसी का भला करते हैं तभी इससे सभी का भला हो सकता है।

  1. क्या मीराबाई और ‘आधुनिक मीरा’ महादेवी वर्मा इन दोनों ने अपने-अपने आराध्य देव से मिलने के लिए जो युक्तियाँ अपनाई हैं, उनमें कुछ समानता या अंतर प्रतीत होता है? अपने विचार प्रकट कीजिए।

    उत्तर:मीराबाई अपने आराध्य से मिलने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार रहती हैं। उसी तरह महादेवी वर्मा भी अपने आराध्य से मिलने के लिए जल जाने को भी तैयार हैं। इसलिए यह कहा जाता है कि दोनों में काफी समानता है।

निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए:

  1. दे प्रकाश का सिंधु अपरिमित
    तेरे जीवन का अणु गल गल।

    उत्तर:दीपक को खुश होकर ऐसे जलना चाहिए जिससे उसका एक एक अणु गलकर उसके मुलायम शरीर को विलुप्त कर दे। इसमें अनंत रोशनी वैसे ही निकलनी चाहिए जैसे सूरज पूरे संसार में सबेरा लाता है। अंधेरा कई तरह का हो सकता है। अज्ञान का अंधेरा उन्हीं में से एक है। इसे दूर करने के लिए बहुत शक्तिशाली दीपक की जरूरत है।

  1. युग युग प्रतिदिन प्रतिक्षण प्रतिपल
    प्रियतम का पथ आलोकित कर।

    उत्तर:मन का दीपक मधुर होकर यदि हर घड़ी, हर दिन करके युगों तक जले तो हर किसी के रास्ते को प्रकाशित कर सकता है।

  1. मृदुल मोम सा घुल रे मृदु तन

    उत्तर:जिस तरह से मोम जलकर पिघल जाता है उसी तरह से आपका सबकुछ पिघल जाना चाहिए। इसका मतलब है कि आप अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए जो काम कर रहे हैं उसमें पूरी तरह से खो जाएँ।

वीरेन डंगवाल

तोप

कंपनी बाग के मुहाने पर
धर रखी गई है यह १८५७ की तोप
इसकी होती है बड़ी सम्हाल, विरासत में मिले कंपनी बाग की तरह साल में चमकाई जाती है दो बार।

पार्क के गेट पर अंग्रेजों के जमाने की तोप बहुत संभाल के विरासत के तौर पर रखी हुई है। विरासत में मिली चीजें ऐतिहासिक महत्व की होती हैं। इसलिए इस तोप की भी पूरी देखभाल होती है। साल में दो बार यानि गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस के दिन इसे कायदे से चमकाया जाता है। इतिहास के प्रतीक अच्छे भी हो सकते हैं और बुरे भी। जैसे कि कंपनी का बाग और कंपनी की तोप। दोनों ही स्थिति में उन्हें धरोहर की तरह सम्भालना चाहिए। क्योंकि इतिहास हमें बताता है कि कहाँ हमने सही किया और कहाँ हमसे चूक हुई।

सुबह शाम कंपनी बाग में आते हैं बहुत से सैलानी
उन्हें बताती है यह तोप
कि मैं बड़ी जबर
उड़ा दिए थे मैंने
अच्छे अच्छे सूरमाओं के धज्जे
अपने जमाने में

जो भी सैलानी वहाँ घूमने आते हैं उन्हें इस तोप का विशाल आकार मौन रहकर भी अपने उत्कर्ष के दिनों की कहानी सुनाता है। कोई भी इसकी कल्पना मात्र से सिहर उठ सकता है कि कैसे इस तोप ने कितने ही देशप्रेमियों को मौत के घाट उतार दिया होगा।

अब तो बहरहाल
छोटे लड़कों की घुड़सवारी से अगर यह फारिग हो तो उसके ऊपर बैठकर
चिड़ियाँ ही अक्सर करती हैं गपशप
कभी-कभी शैतानी में वे उसके भीतर भी घुस जाती हैं
खासकर गौरैयें
वे बताती हैं कि दरअसल कितनी भी बड़ी हो तोप
एक दिन तो होना ही है उसका मुँह बंद।

ये पंक्तियाँ तोप की वर्तमान दशा को चित्रित करती हैं। सत्ता और सफलता के मद में चूर व्यक्ति जब बढ़ चढ़कर बोलने लगता ऐ तो उसे एक बड़ा तोप कहा जाता है। लेकिन ये एक कड़वी सच्चाई है कि बड़े से बड़े तोप का मुँह भी एक न एक दिन बंद हो जाता है।

इस तोप की भी आजकल यही दशा है। इस पर बच्चे घुड़सवारी करते हैं और चिड़िया इसपर बैठकर चहचहाती हैं। बच्चों और चिड़ियों की उपमा इस लिए दी गई है कि ये दोनों निर्बलता और कोमलता के प्रतीक हैं। जो तोप किसी जमाने में सूरमाओं की धज्जियाँ उड़ा देता था आज ये आलम है कि चिड़िया जैसी निरीह प्राणी भी उसके मुँह के अंदर घुसकर खिलवाड़ करती हैं।

अभ्यास

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए:
  1. विरासत में मिली चीजों की बड़ी सँभाल क्यों होती है? स्पष्ट कीजिए।

    उत्तर:विरासत में हमें अच्छी और बुरी दोनों तरह की चीजें मिल सकती हैं। अच्छी चीजें हमें ये बताती हैं कि हमारे पूर्वजों ने कौन से अच्छे काम किये ताकि हम उन्हें दोहरा सकें। बुरी चीजें हमें ये बताती हैं कि हमारे पूर्वजों ने क्या गलतियाँ कीं ताकि हम उन्हें फिर से न दोहराएँ।

  1. इस कविता से आपको तोप के विषय में क्या जानकारी मिलती है?

    उत्तर:इस कविता से हमें तोप के बारे में यह पता चलता है कि वह ईस्ट इंडिया कंपनी के जमाने की है। यह एक विशाल तोप है जिसने अपने जमाने में कितने ही सूरमाओं की धज्जियाँ उड़ा दी थी। ऐतिहासिक दृष्टिकोण से यह तोप हमारे लिए महत्वपूर्ण है।

कंपनी बाग में रखी तोप क्या सीख देती है?

उत्तर: कंपनी बाग में रखी तोप एक अहम सीख देती है। कंपनी का बाग और कंपनी का तोप; दोनों ही अंग्रेजी राज की निशानी हैं। बाग एक अच्छी निशानी है तो तोप एक बुरी निशानी है। एक ओर तो अंग्रेजी राज से हमें आधुनिक शिक्षा और रेल मिली तो दूसरी ओर हमें गुलामी की बेड़ियाँ मिलीं। यह तथ्य बताता है कि हर चीज के दो पहलू होते हैं; एक अच्छा और एक बुरा।

कविता में तोप को दो बार चमकाने की बात की गई है। ये दोनों अवसर कौन से होंगे?

उत्तर: ये दोनों अवसर हमारे राष्ट्रीय त्योहार; स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस हो सकते हैं।

निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए :

  1. अब तो बहरहाल
    छोटे लड़कों की घुड़सवारी से अगर यह फारिग हो
    तो उसके ऊपर बैठकर
    चिड़ियाँ ही अकसर करती हैं गपशप।

    उत्तर:ये पंक्तियाँ उस तोप की वर्तमान दशा का चित्रण करती हैं। अब उस तोप से कोई नहीं डरता है। बच्चे उसे खेल का सामान मानते हैं और चिड़ियाँ उसे अपना क्लब मानती हैं। बच्चे और चिड़िया निर्बल होते हुए भी उस तोप से नहीं डरते जिसका कभी बहुत खौफ हुआ करता था।

  1. वे बताती हैं कि दरअसल कितनी भी बड़ी हो तोप
    एक दिन तो होना ही है उसका मुँह बंद।

    उत्तर:चिड़िया तोप के मुँह के भीतर घुसकर यह सिद्ध करने की कोशिश करती हैं कि अब वह बेजान लोहे के सिवा कुछ भी नहीं है। जो तोप कभी आग उगलती थी अब वह पूरी तरह से खामोश है।

उड़ा दिए थे मैंने
अच्छे अच्छे सूरमाओं के धज्जे।

उत्तर: ये पंक्तियाँ उस तोप के उत्कर्ष के दिनों का बयान करती हैं। कभी वो भी दिन हुआ करते थे जब उस तोप का इस्तेमाल लोगों की धज्जियाँ उड़ाने में किया जाता था।

कैफी आजमी

कर चले हम फिदा

कर चले हम फिदा जानो-तन साथियों
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों
साँस थमती गई, नब्ज जमती गई
फिर भी बढ़ते कदम को न रुकने दिया
कट गए सर हमारे तो कुछ गम नहीं
सर हिमालय का हमने न झुकने दिया
मरते मरते रहा बाँकपन साथियो
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो

यह कविता भारत चीन युद्ध की पृष्ठभूमि पर बनी फिल्म ‘हकीकत’ के लिए लिखी गई थी। इसमें एक सिपाही की उस समय की भावना को चित्रित किया गया है जब उसकी शहादत का समय नजदीक आ गया है। सिपाही की साँस थमने लगी है और नब्ज भी रुकने लगी है। फिर भी दुश्मन की तरफ उसके बढ़ते कदम रुक नहीं रहे हैं। उसका साहस इस कदर है कि मौत के सामने भी उसका संकल्प अदम्य है। सैनिक देश के लिए अपनी जान और अपना शरीर सब निछावर कर रहा है और आगे आने वाली पीढ़ी के लिए देश सौंप रहा है। उसे पूरी उम्मीद है कि अगली पीढ़ी भी देश का उतना ही हिफाजत करेगी|

जिंदा रहने के मौसम बहुत हैं मगर
जान देने की रुत रोज आती नहीं
हुस्न और इश्क दोनों को रुस्वा करे
वो जवानी जो खूँ में नहाती नहीं
आज धरती बनी है दुल्हन साथियो
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो

जिन्दा रहने के बहुत से अवसर आते हैं इसलिए जिंदगी जी लेना बहुत महत्वपूर्ण नहीं है। वतन पे जान देने के मौके बहुत ही कम बार मिलते हैं। वो युवा जो देश के लिए खून की होली न खेले उसकी जवानी को सराहने के लिए कोई भी सुंदरी तैयार नहीं होती है। हिम्मती पुरुषों की दुनिया हमेशा से कायल रही है। जवानों के खून से ऐसा लगता है जैसे धरती को लाल चुनरी पहना दी गई हो।

राह कुर्बानियों की न वीरान हो
तुम सजाते ही रहना नए काफिले
फतह का जश्न इस जश्न के बाद है
जिंदगी मौत से मिल रही है गले
बाँध लो अपने सर से कफन साथियो
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो

शहीद होने वाले सैनिक को पूरी उम्मीद है कि उसने जो कुर्बानी की राह बनाई है उसपर अनंत समय तक वीरों का काफिला ऐसे ही चलता रहेगा। जिंदगी मौत से इस तरह गले मिल रही है जैसे वह दुश्मन पर विजय का उत्सव मना रही हो।

खींच दो अपने खूँ से जमीं पर लकीर
इस तरफ आने पाए न रावन कोई
तोड़ दो हाथ अगर हाथ उठने लगे
छू न पाए सीता का दामन कोई
राम भी तुम, तुम्हीं लक्ष्मण साथियो
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो।

सैनिक कहता है सीमा पर अपने खून से लक्ष्मण रेखा खींच देनी चाहिए ताकि उसे लाँघकर कोई भी रावण अंदर नहीं आ सके। यदि कोई हाथ हम पर उठने लगे तो उस हाथ को फौरन तोड़ देना चाहिए। यहाँ पर मातृभूमि की तुलना सीता से की गई है जिसका दामन छूने की कोई साहस न कर सके। सैनिक यह भी प्रेरणा देता है कि हमीं में राम भी हैं और लक्ष्मण भी। अर्थात हम हर तरह से अपनी मातृभूमि की रक्षा करने में सक्षम हैं।

एक पूरे संदेश के तौर पर देखा जाए तो यह वीर रस और करुण रस का मिला जुला रूप लगता है; खासकर जिस तरीके से इस गाने को फिल्म में प्रस्तुत किया गया है। जिस परिवेश में यह फिल्म बनी थी उस समय भारत हाल ही में आजाद हुआ था। उस समय देश में बहुत सारी समस्याएँ थीं। चीन से युद्ध का भारत की अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल असर पड़ा था। उस समय एक ऐसे संदेश की जरूरत थी जो देशवासियों को उसके वीरों की कुर्बानिओं से परिचित कराये और स्वावलंबी बनने की प्रेरणा दे सके। तत्कालीन प्रधानमंत्री ने ‘जय जवान जय किसान’ का नारा देकर जनता में नई प्रेरणा दी थी। यह गीत उस समय की सामरिक तथा सामाजिक मन:स्थिति का बड़ा ही सटीक चित्रण करता है।

अभ्यास

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए:
  1. क्या इस गीत की कोई ऐतिहासिक पृष्ठभूमि है?

    उत्तर:यह गीत सन १९६२ के भारत चीन युद्ध की पृष्ठभूमि में लिखा गया था।

  1. ‘सर हिमालय का हमने न झुकने दिया’ इस पंक्ति में हिमालय किस बात का प्रतीक है?

    उत्तर:हिमालय को भारत का ताज माना जाता है। हिमालय के झुकने का मतलब है भारत का सर झुकना यानि भारत की इज्जत कम होना।

  1. इस गीत में धरती को दुल्हन क्यों कहा गया है?

    उत्तर:भारत देश में पारंपरिक तरीके से दुल्हन को लाल चुनरी पहनाई जाती है। कवि को लगता है कि शहीदों के खून से धरती का रंग लाल हो गया है जो इस बात का सूचक है कि मातृभूमि एक दुल्हन की तरह सज गई है।

  2. गीत में ऐसी क्या खास बात होती है कि वे जीवन भर याद आते हैं?

    उत्तर:कुछ गीत के शब्द बड़े आसान होने की वजह से आसानी से जुबान पर चढ़ जाते हैं। कुछ गीत में भावनाओं का अच्छा समावेश होने के कारण मन पर एक अमिट छाप पड़ जाती है। इसलिए वे जीवन भर याद आते हैं।

  1. कवि ने ‘साथियों’ संबोधन का प्रयोग किसके लिए किया है?

    उत्तर:कवि ने ‘साथियों’ संबोधन का प्रयोग देशवासियों के लिए किया है; खासकर युवाओं के लिए।

  1. कवि ने इस कविता में किस काफिले को आगे बढ़ाते रहने की बात कही है?

    उत्तर:एक सैनिक यदि शहीद होता है तो उसके स्थान पर दूसरा सैनिक लड़ाई जारी रखने के लिए आ जाता है। इस तरह से कोई भी लड़ाई अपने सही मुकाम पर पहुँच पाती है। इस कविता में काफिला आगे बढ़ाने का मतलब है युद्ध में अपने प्राण न्योछावर करने वाले सैनिकों की कभी न खत्म होने वाली पंगत तैयार करना।

  2. इस गीत में ‘सर पर कफन बाँधना’ किस ओर संकेत करता है?

    उत्तर:सर पर कफन बाँधने का मतलब है हर समय शहीद होने के लिए तैयार रहना। जो आदमी मौत से डरता है वह कभी भी एक सच्चा सैनिक नहीं बन सकता है।

  1. इस कविता का प्रतिपाद्य अपने शब्दों में लिखिए।

    उत्तर:युद्ध बहुत ही विनाशक होता है इसलिए किसी भी देश को हमेशा युद्ध को टालने की कोशिश करना चाहिए। लेकिन युद्ध के लिए हमेशा तैयार रहना भी अत्यंत जरूरी है। इससे दुश्मनों में भी डर बना रहता है और वे कुछ भी उल्टा सीधा करने से पहले सौ बार सोचने को मजबूर हो जाते हैं। दुनिया का लगभग हर बड़ा देश अपनी सीमा की सुरक्षा के लिए अरबों रुपये खर्च करता है ताकि उसकी सेना हमेशा किसी अनहोनी के लिए तैयार रहे। उत्तम हथियारों से लैस सेना तब तक कारगर नहीं होती जब तक कि उसके सैनिकों में अदम्य साहस और जोश न हो। यह कविता उसी जोश को जगाए रखने का काम आसानी से कर सकती है।

निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए :

  1. साँस थमती गई नब्ज जमती गई
    फिर भी बढ़ते कदम को न रुकने दिया

    उत्तर:ये पंक्तियाँ यह दिखाती हैं कि किस तरह से एक वीर सैनिक अपने आखिरी दम तक हार नहीं मानता। चाहे साँस उखड़ जाए या फिर नब्ज रुक जाए, लेकिन एक सच्चा सैनिक मरते दम तक अपने कदम आगे ही बढ़ाता है।

  1. खींच दो अपने खूँ से जमीं पर लकीर
    इस तरफ आने पाए न रावन कोई

    उत्तर:इन पंक्तियों में दुश्मन की तुलना रावण से की गई है। आपको पता होगा कि किस तरह से लक्ष्मण ने सीता के चारों ओर लक्ष्मण रेखा खींच दी थी ताकि वे सुरक्षित रहें। कवि का कहना है कि इसी तरह से यदि सैनिक अपने खून से लक्ष्मण रेखा खींच दे तो कोई भी दुश्मन हमारी सीमा को लाँघने की हिम्मत नहीं करेगा।

  1. छू न पाए सीता का दामन कोई
    राम भी तुम, तुम्हीं लक्ष्मण साथियो

    उत्तर:यहाँ पर मातृभूमि की तुलना सीता से की गई है। वन में सीता की रक्षा में राम और लक्ष्मण दोनों ही तत्पर रहते थे। दोनों की अलग-अलग भूमिका थी जिसे वे आपसी तालमेल से निभाते थे। यहाँ पर कवि ने कहा है कि हर एक युवा को राम और लक्ष्मण दोनों बनकर सीता जैसी मातृभूमि की रक्षा करनी होगी।

रवींद्रनाथ टैगोर

आत्मत्राण

विपदाओं से मुझे बचाओ, यह मेरी प्रार्थना नहीं
केवल इतना हो (करुणामय)
कभी न विपदा में पाऊँ भय।

ये कविता एक ऐसे व्यक्ति की प्रार्थना है जो स्वयं सुब कुछ करना चाहता है। किसी हारे हुए जुआरी की तरह वह सब कुछ भगवान भरोसे नहीं छोड़ना चाहता है। उसका अपने आप पर पूरा भरोसा है। उसे भरोसा है कि वह हर मुसीबत का सामना कर सकता है और भगवान से सिर्फ मनोबल पाने की इच्छा रखता है।

दुख ताप से व्यथित चित्त को न दो सांत्वना नहीं सही
पर इतना होवे (करुणामय)
दुख को मैं कर सकूँ सदा जय।

जब दुख से मन व्यथित हो जाए तब उसे ईश्वर से सांत्वना की अभिलाषा नहीं है, बल्कि वह ये प्रार्थना करता है कि उसे हमेशा दुख पर विजय प्राप्त हो।

कोई कहीं सहायक न मिले
तो अपना बल पौरुष न हिले;
हानि उठानी पड़े जगत में लाभ अगर वंचना रही
तो भी मन में ना मानूँ क्षय।

कहीं किसी से मदद ना मिले तो भी उसका पुरुषार्थ नहीं हिलना चाहिए। लाभ की जगह कभी हानि भी हो जाए तो भी मन में अफसोस नहीं होना चाहिए।

मेरा त्राण करो अनुदिन तुम यह मेरी प्रार्थना नहीं
बस इतना होवे (करुणामय)
तरने की हो शक्ति अनामय।

वह भगवान से ये नहीं चाहता है कि वो उसकी नैया को पार लगा दें, बल्कि उसमें नाव खेने और तैरने की असीम शक्ति दे दें। इससे वह खुद ही मुसीबतों के भँवर से पार हो सकता है।

मेरा भार अगर लघु करके न दो सांत्वना नहीं सही।
केवल इतना रखना अनुनय
वहन कर सकूँ इसको निर्भय।

वह भगवान से अपनी जिम्मेदारियाँ कम करने की विनती नहीं करता। वह तो इतनी दृढ़शक्ति चाहता है जिससे वह जीवन के भार को निर्भय उठाकर जी सके।

नव शिर होकर सुख के दिन में
तव मुह पहचानूँ छिन-छिन में।
दुख रात्रि में करे वंचना मेरी जिस दिन निखिल मही
उस दिन ऐसा हो करुणामय
तुम पर करूँ नहीं कुछ संशय।

इन पंक्तियों में ये संदेश दिया गया है कि सफलता के नशे में चूर होकर ईश्वर को भूलना नहीं चाहिए। हर उस व्यक्ति को याद रखना चाहिए जिसने आपको सफल बनाने में थोड़ा भी योगदान दिया हो। जब मेरे दिन बहुत बुरे चल रहे हों और पूरी दुनिया मुझ पर अंगुली उठा रही हो तब भी ऐसा न हो कि मैं तुमपर कोई शक करूँ।

एक कहावत है कि भगवान भी उसी की मदद करते हैं जो अपनई मदद खुद करता है। किस्मत के ताले की एक ही चाभी है और वो है कड़ी मेहनत और दृढ़ संकल्प। ईश्वर का काम है मनोबल और मार्गदर्शन, लेकिन अपनी मंजिल तक पहुँचने के लिए आपको चलना तो खुद ही पड़ेगा।

आप अगर आधुनिक युग के सफल व्यक्तियों के बारे में पढ़ेंगे तो आपको उनकी कठिन दिनचर्या का अहसास होगा। साथ में इन सब व्यक्तियों में एक और समानता है और वो है उनका अहंकारहीन व्यक्तित्व।

अभ्यास

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए:
  1. कवि किससे और क्या प्रार्थना कर रहा है?

    उत्तर:कवि ईश्वर से प्रार्थना कर रहा है। वह यह चाहता है कि वह हर मुसीबत का सामना खुद करे। भगवान उसे केवल इतनी शक्ति दें कि मुसीबत में वह घबड़ा न जाए। वह भगवान से केवल आत्मबल चाहता है और स्वयं सब कुछ के लिए मेहनत करना चाहता है।

  1. ‘विपदाओं से मुझे बचाओ, यह मेरी प्रार्थना नहीं’ – कवि इस पंक्ति के द्वारा क्या कहना चाहता है?

    उत्तर:इस पंक्ति में कवि ने यह बताया है कि वह ये नहीं चाहता कि भगवान आकर उसकी मदद करें। वह भगवान को किसी भी काम के लिए परेशान नहीं करना चाहता अपितु स्वयं हर चीज का सामना करना चाहता है।

  2. कवि सहायक के न मिलने पर क्या प्रार्थना करता है?

    उत्तर:जब किसी काम में उसे किसी की मदद न भी मिले तो भी उसका पुरुषार्थ अडिग रहना चाहिए।

  1. अंत में कवि क्या अनुनय करता है?

    उत्तर:जब मेरे दिन बहुत बुरे चल रहे हों और पूरी दुनिया मुझ पर अंगुली उठा रही हो तब भी ऐसा न हो कि मैं तुमपर कोई शक करूँ। इस तरह से कवि भगवान से यह भी अनुरोध करता है चाहे कितनी भी विपरीत परिस्थितियाँ क्यों न आ जाएँ, उसका विश्वास भगवान में हमेशा बना रहे।

  2. ‘आत्मत्राण’ शीर्षक की सार्थकता कविता के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए।

    उत्तर:आत्मत्राण का मतलब है अपने आप को किसी भी स्थिति में ऊपर उठाना। इस कविता में कवि ने अपने सब कार्य स्वयं करने की बात की है। भगवान से मदद के नाम पर वे केवल इतना चाहता है कि भगवान उसके मनोबल को बढ़ाए रखें। दूसरे शब्दों में अपनी सभी जिम्मेदारियाँ वह स्वयं ही निभाना चाहता है। इसलिए ‘आत्मत्राण’ शीर्षक इस कविता के लिए बिलकुल सही है।

  1. अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए आप प्रार्थना के अतिरिक्त और क्या-क्या प्रयास करते हैं? लिखिए।

    उत्तर:अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए मैं हर संभव प्रयास करता हूँ। मैं किसी भी काम में अपनी पूरी लगन और हुनर लगा देता हूँ।

  1. क्या कवि की ये प्रार्थना आपको अन्य प्रार्थना गीतों से अलग लगती है? यदि हाँ, तो कैसे?

    उत्तर:अधिकतर प्रार्थनाओं में भगवान से कुछ न कुछ माँगा जाता है। इसके अलावा भगवान के रूप और उसकी शक्तियों की प्रशंसा की जाती है। इस कविता में कवि ने भगवान से कुछ भी नहीं माँगा है। साथ में वे भगवान की बिना मतलब की तारीफों के पुल भी नहीं बाँध रहे हैं।

निम्नलिखित अंशों के भाव स्पष्ट कीजिए:

  1. नव शिर होकर सुख के दिन में
    तव मुख पहचानूँ छिन-छिन में।

    उत्तर:इन पंक्तियों में ये संदेश दिया गया है कि सफलता के नशे में चूर होकर ईश्वर को भूलना नहीं चाहिए। हर उस व्यक्ति को याद रखना चाहिए जिसने आपको सफल बनाने में थोड़ा भी योगदान दिया हो।

  1. हानि उठानी पड़े जगत में लाभ अगर वंचना रही
    तो भी मन में मानूँ न क्षय।

    उत्तर:लाभ की जगह कभी हानि भी हो जाए तो भी मन में अफसोस नहीं होना चाहिए। नफा नुकसान जिंदगी में लगे ही रहते हैं। जरूरी नहीं कि हर वक्त किसी को लाभ ही हो। हानि के समय भी हिम्मत न टूटे ऐसा ईश्वर से विनती है।

  1. तरने की हो शक्ति अनामय
    मेरा भार अगर लघु करके न दो सांत्वना नहीं सही।

    उत्तर:कवि ये नहीं चाहता है कि भगवान उसकी जिम्मेदारियों को कम कर दें। बल्कि वह तो ये चाहता है कि भगवान उसमें उन जिम्मेदारियों को उठाने की भरपूर शक्ति दे दें।

प्रेमचंद

बड़े भाई साहब

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक से दो पंक्तियों में दीजिए:
  1. कथा नायक की रुचि किन कार्यों में थी?

    उत्तर:कथा नायक की रुचि सिर्फ खेलकूद और ऊधम मचाने में थी।

  1. बड़े भाई साहेब छोटे से हर समय पहला सवाल क्या पूछते थे?

    उत्तर:बड़े भाई साहेब छोटे के कहीं से लौटने पर हमेशा पूछते, “कहाँ थे?”

  1. दूसरी बार पास होने के बाद छोटे के व्यवहार में क्या परिवर्तन आया?

    उत्तर:दूसरी बार पास होने के बाद छोटे भाई के मन में बड़े भाई के लिए इज्जत बढ़ गई थी।

  1. बड़े भाई साहेब छोटे से उम्र में कितने बड़े थे और वे किस कक्षा में पढ़ते थे?

    उत्तर:बड़े भाई साहेब उम्र में पाँच साल बड़े थे। कहानी की शुरुआत में छोटे से तीन कक्षा आगे पढ़ते थे।

  1. बड़े भाई साहेब दिमाग को आराम देने के लिए क्या करते थे?

    उत्तर:बड़े भाई साहेब दिमाग को आराम देने के लिए किताब पर कुछ तस्वीरें खींचा करते थे और कभी शब्दों के अजीबोगरीब मेल बनाया करते थे।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर २५ – ३० शब्दों में दीजिए :

  1. छोटे भाई ने पढ़ाई के लिए टाइम टेबल बनाते समय क्या-क्या सोचा और फिर उसका पालन क्यों नहीं कर पाया?

    उत्तर:छोटे भाई ने टाइम टेबल बनाने में हर विषय के लिए उपयुक्त समय देने की योजना बनाई और सोचा की पढ़ाई के प्रति गंभीर हो जाएगा। लेकिन खेलकूद की ललक ने उसे टाइम टेबल का पालन नहीं करने दिया।

  1. एक दिन जब गुल्ली-डंडा खेलने के बाद छोटा भाई बड़े भाई साहेब के सामने पहुँचा तो उनकी क्या प्रतिक्रिया हुई?

    उत्तर:भाई साहेब ने छोटे भाई को घमंड न करने की सलाह दी और बताया कि कैसे कड़ी मेहनत ही लगातार सफलता दिला सकती है। बड़े भाई ये नहीं चाहते थे कि सफलता के नशे में कहीं छोटा भाई अपना समय न बर्बाद कर दे।

  1. बड़े भाई साहेब को अपनी मन की इक्षाएँ क्यों दबानी पड़ती थी?

    उत्तर:बड़े भाई साहेब ऐसा कोई काम नहीं करना चाहते थे जिससे छोटे भाई को गलत सीख मिले। वह अपने छोटे भाई के लिए सही व्यवहार की मिसाल रखना चाहते थे। वहाँ पर वो ही छोटे भाई के अभिभावक और सच्चे मित्र थे।

  1. बड़े भाई साहेब छोटे भाई को क्या सलाह देते थे और क्यों?

    उत्तर:बड़े भाई साहेब छोटे भाई को समय का सदुपयोग करने की सलाह देते थे। वे ये नहीं चाहते थे कि छोटा भाई अपने मुख्य उद्देश्य से भटक जाए।

  1. छोटे भाई ने बड़े भाई साहेब के नर्म व्यवहार का क्या फायदा उठाया?

    उत्तर:छोटे भाई ने बड़े भाई की नजर बचाकर खेलकूद में ज्यादा समय लगाना शुरु किया। हालाँकि अब दोनों भाइयों एक ही दर्जे का अंतर था लेकिन फिर भी छोटा भाई बड़े भाई की इज्जत करता था। इसलिए वह जो भी शरारत करता था, अपने बड़े भाई की नजर बचाकर ही करता था।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर ५० – ६० शब्दों में दीजिए:
  1. बड़े भाई की डाँट फटकार अगर न मिलती तो क्या छोटा भाई अपनी कक्षा में अव्वल आता? अपने विचार प्रकट कीजिए।

    उत्तर:हालाँकि छोटा भाई मेधावी लगता है, लेकिन बड़ों की नसीहत तो हर किसी के लिए जरूरी होती है। बड़े भाई साहेब की डाँट फटकार कहीं न कहीं उसे रास्ते से विचलित न होने में मदद करती है।

  1. बड़े भाई साहेब पाठ में लेखक ने समूची शिक्षा के किन तौर तरीके पर व्यंग्य किया है? क्या आप उनके विचार से सहमत हैं?

    उत्तर:शिक्षा पद्धति का सबसे बड़ा दोष है कि छात्रों से किताबी बातें कंठस्थ करने की उम्मीद की जाती है। इसमें कहीं न कहीं मौलिक विचारों को दबाया जाता है। कुछ बातें जानना जरूरी है, लेकिन क्यों जरूरी है यह बात छात्रों को नहीं बताई जाती है। हर कोई छोटे भाई की तरह मेधावी नहीं हो सकता है। मध्यम दर्जे के छात्रों के लिए अध्यापकों को अपने पढ़ाने की शैली में बदलाव की आवश्यकता है।

  1. बड़े भाई साहेब के अनुसार जीवन की समझ कैसे आती है?

    उत्तर:बड़े भाई साहेब के अनुसार किताबी ज्ञान जीवन की समझ पाने के लिए काफी नहीं है। जीवन के अच्छे और बुरे अनुभव इस ज्ञान को पुख्ता करने में अपनी अहम भूमिका निभाते हैं। बड़े भाई ने अपने बुजुर्गों को गौर से देखा और समझा है। वह उनके व्यावहारिक ज्ञान से बहुत प्रभावित है। व्यावहारिक ज्ञान एक तरह से किताबी ज्ञान के पूरक की तरह काम करता है।

  1. छोटे भाई के मन में बड़े भाई के प्रति श्रद्धा क्यों उत्पन्न हुई?

    उत्तर:जब छोटे भाई को यह पता चला कि बड़े भाई ने उसकी देखभाल कितने ढ़ंग से की, उसके लिए कितनी कुर्बानिआं दी, अपनी सभी इच्छाओं पर नियंत्रण रखा ताकि छोटा भाई गुमराह न हो जाए, तब छोटे भाई को अपने भाई के बड़प्पन का अहसास हुआ। इससे छोटे भाई के मन में बड़े भाई के लिए श्रद्धा उत्पन्न हुई।

  1. बड़े भाई की स्वभावगत विशेषताएँ बताइए।

    उत्तर:बड़े भाई में हर चीज को नाप तौल कर करने की आदत है। वे सभी नियम और कानून का पालन करते हैं। वे अपने छोटे भाई की हमेशा तरक्की चाहते हैं। कहीं कहीं पर ऐसा लगता है जैसे वे अपनी उम्र से कुछ ज्यादा ही बड़े हैं। शायद छोटे भाई की जिम्मेदारी ने उनका लड़कपन छीन लिया है। आखिर उस हॉस्टल में अपने भाई के सब कुछ वो ही तो हैं।

निम्नलिखित के आश्य स्पष्ट कीजिए:

  1. इम्तिहान पास कर लेना कोई चीज नहीं, असल चीज है बुद्धि का विकास।

    उत्तर:यह कथन कहीं न कहीं हमारी आज की अंकों की दौड़ की मानसिकता पर आघात करती है। हर कोई 90% से ज्यादा लाने के चक्कर में रहता है। जरूरी नहीं कि जिसने ज्यादा नंबर लाए हों वह जीवन की दौड़ में भी आगे रहेगा। आज के जमाने में भी ऐसे कई उदाहरण हैं जहाँ मामूली शिक्षा दीक्षा वाला आदमी सफलता के शिखर पर पहुँचा है। एक सच्चा इंसान बनने के लिए असली ज्ञान और विकास ज्यादा जरूरी होता है।

  1. फिर भी जैसे मौत और विपत्ति के बीच भी आदमी मोह और माया के बंधन में जकड़ा रहता है, मैं फटकार और घुड़कियाँ खाकर भी खेलकूद का तिरस्कार नहीं कर पाता था।

    उत्तर:इस वाक्य में बड़ी ही चरम सीमा के उदाहरण का प्रयोग किया है। लेखक चरम उदाहरण का प्रयोग करके पाठक का पूरा ध्यान घटना पर केंद्रित करने की कोशिश की है। मौत उस निश्चित अंत की तरफ इशारा करता है जिसका सामना हर किसी को करना पड़ता है। छोटे भाई के लिए बड़े भाई की फटकार सुनना उसी भयानक विपत्ति की तरह हुआ करता था। वह हमेशा उस विपत्ति के आमने सामने होता था। लेकिन जैसे मरते समय भी मनुष्य माया मोह के बंधन नहीं तोड़ पाता है उसी तरह छोता भाई खेल कूद का मोह नहीं छोड़ पाता था।

  1. बुनियाद ही पुख्ता न हो, तो मकान कैसे पायेदार बने?

    उत्तर:बड़े भाई साहेब को सही नींव डालने की चिंता हमेशा खाए रहती थी। इसलिए वे हमेशा ही किसी विषय की गहराई में जाने की कोशिश करते थे। शायद इस कोशिश में वे ज्यादा उलझ जाते थे और मूल विषय को नहीं पकड़ पाते थे। फिर भी उनका कथन सोलह आने सही था। चाहे किसी मकान का निर्माण हो या आपके जीवन का, नींव हमेशा ही मजबूत होनी चाहिए क्योंकि मजबूत नींव पर ही कोई भी संरचना ज्यादा टिकाऊ होती है।

  1. आँखें आसमान की ओर थीं और मन उस आकाशगामी पथिक की ओर, जो मंद गति से झूमता पतन की ओर चला जा रहा था, मानो कोई आत्मा स्वर्ग से निकलकर विरक्त मन से नए संस्कार ग्रहण करने जा रही हो।

    उत्तर:इन पंक्तियों में उस घटना का वर्णन है जब छोटा भाई कटी पतंग लूटने के लिए भागता है। अधिकतर वयस्कों को किसी बच्चे की ये हरकत किसी अर्थहीन क्रियाकलाप की तरह लगेगी। लेकिन प्रेमचंद ने उस मामूली सी घटना का भी बड़े रोचक ढ़ंग से चित्रण किया है। कोई भी बच्चा जब पतंग लूटने के लिए भागता है तो उसकी आँखें अपलक आसमान की ओर होती हैं। कटी हुई पतंग दिशाहीन लहराती है और धीरे धीरे जमीन की तरफ गिरती है। डोर कट जाने से पतंग के सारे बंधन टूट जाते हैं। यह वैसा ही होता है जैसे आत्मा का शरीर से निकलने के बाद होता है। लेखक को ऐसा लगता है जैसे आत्मा फिर स्वर्ग से निकलकर पूरी विरक्ति से नया जीवन ग्रहण करने जा रही हो और उसे अब अपने पिछले जीवन से कोई सरोकार नहीं है। पतंग भी इसी तरह से अपने नए मालिक की तरफ चली जाती है, इस बात से बेखबर कि हो सकता है नया मालिक फाड़कर उसका अस्तित्व ही मिटा दे।

सीताराम सेकसरिया

डायरी का एक पन्ना

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक दो पंक्तियों में दीजिए:
  1. कलकत्तावासियों के लिए २६ जनवरी १९३९ का दिन क्यों महत्वपूर्ण था?

    उत्तर:२६ जनवरी १९३९ को कलकत्तावासी महात्मा गाँधी द्वारा घोषित आजादी की दूसरी सालगिरह मना रहे थे। इसलिए वह दिन उनके लिए महत्वपूर्ण था।

  2. सुभाष बाबू के जुलूस का भार किस पर था?

    उत्तर:सुभाष बाबू के जुलूस का भार पूर्णोदास पर था।

  1. विद्यार्थी संघ के मंत्री अविनाश बाबू के झंडा गाड़ने पर क्या प्रतिक्रिया हुई?

    उत्तर:विद्यार्थी संघ के मंत्री अविनाश बाबू को पुलिस ने पकड़ लिया तथा और लोगों को मारा और भगा दिया।

  1. लोग अपने अपने मकानों तथा सार्वजनिक स्थानों पर राष्ट्रीय झंडा फहराकर क्या संकेत देना चाहते थे?

    उत्तर:लोग अपने-अपने मकानों तथा सार्वजनिक स्थानों पर राष्ट्रीय झंडा फहराकर आजादी की भावना का संकेत देना चाहते थे।

  1. पुलिस ने बड़े-बड़े पार्कों तथा मैदानों को क्यों घेर लिया था?

    उत्तर:पुलिस बड़े पार्कों तथा मैदानों को घेरकर ज्यादा लोगों के जमाव को रोकना चाहती थी, जिससे माहौल नियंत्रण में रहे।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर २५ – ३० शब्दों में लिखिए:

  1. २६ जनवरी १९३९ को अमर बनाने के लिए क्या-क्या तैयारियाँ की गई थी?

    उत्तर:२६ जनवरी १९३९ को अमर बनाने के लिए मुख्य कार्यकर्ताओं ने अधिक से अधिक लोगों को जुटाने की पूरी तैयारी की थी। इसके साथ ही जन-जन तक आजादी की भावना को पहुँचाने की कोशिश की थी। हर गली और हर मोहल्ले में जबरदस्त सजावट की गई थी। हर तरफ का माहौल जोश से भरा हुआ लगता था।

  1. ‘आज जो बात थी वह निराली थी’ किस बात से पता चल रहा है कि आज का दिन निराला था? स्पष्ट कीजिए।

    उत्तर:लोगों की तैयारी और उनका जोश देखते ही बनता था। एक तरफ पुलिस की पूरी कोशिश थी कि स्थिति उनके काबू में रहे, तो दूसरी ओर लोगों का जुनून पुलिस की कोशिश के आगे भारी पड़ रहा था। हर पार्क तथा मैदान में भारी संख्या में लोग इकट्ठा हुए थे। जोश भरा माहौल बता रहा था कि वह दिन वाकई निराला था।

  1. पुलिस कमिश्नर के नोटिस और काउंसिल के नोटिस में क्या अंतर था?

    उत्तर:पुलिस कमिश्नर की नोटिस सभा और आजादी के जश्न को रोकने के लिए थी। दूसरी तरफ काउंसिल की नोटिस लोगों का आह्वान कर रही थी कि वे भारी संख्या में आकर आजादी का उत्सव मनाएँ। दोनों नोटिस एक दूसरे के विरोधाभाषी थे।

  1. धर्मतल्ले के मोड़ पर आकर जुलूस क्यों टूट गया?

    उत्तर:धर्मतल्ले के मोड़ पर पुलिस ने कुछ लोगों को पकड़ लिया तथा लाठी भी चलाई। कुछ लोग आगे बढ़ने में कामयाब हो गये। इस तरह वहाँ पर आकर जुलूस टूट गया।

  1. डॉ. दासगुप्ता जुलूस में घायल लोगों की देखभाल तो कर ही रहे थे, उनकी फोटो भी उतरवा रहे थी। फोटो उतारने की क्या वजह हो सकती है?

    उत्तर:फोटो उतरवाने का एक ही मकसद हो सकता है। प्रेस में घायलों की फोटो जाने से राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत के स्वाधीनता संग्राम को प्रचार मिल सकता था। इसके साथ ही सरकार द्वारा अपनाई गई बर्बरता को भी दिखाया जा सकता था।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर ५० – ६० शब्दों में लिखिए:
  1. सुभाष बाबू के जुलूस में स्त्री समाज की क्या भूमिका थी?

    उत्तर:सुभाष बाबू के जुलूस में सुभाष बाबू को तो शुरु में ही पकड़ लिया गया था। उसके बाद स्त्रियों ने पूरी तरह से जुलूस को आगे बढ़ाने का जिम्मा ले लिया था। धर्मतल्ले के मोड़ पर ५० – ६० स्त्रियों ने धरना दे दिया। आखिर में करीब १०५ स्त्रियाँ पकड़ी गईं। जिस तरह से स्त्रियों ने जुलूस के तितर बितर होने के बाद भी मामले को आगे बढ़ाया उससे साफ जाहिर होता है कि स्त्रियों ने बखूबी उस दिन अपना योगदान दिया था।

  1. जुलूस के लालबाजार आने पर लोगों की क्या दशा हुई?

    उत्तर:लालबाजार आने पर ज्यादातर लोगों पर लाठियाँ चलाई गई। अधिकाँश लोगों को पकड़ लिया गया। बहुत से लोग घायल हुए। इस तरह से वहाँ पर जाकर जुलूस समाप्त हो गया।

  1. “जब से कानून भंग का काम शुरु हुआ है तब से आज तक इतनी बड़ी सभा ऐसे मैदान में नहीं की गई थी और यह सभा तो कहना चाहिए एक ओपन लड़ाई थी”। यहाँ पर कौन से और किसके कानून के भंग करने की बात कही गई है? क्या कानून भंग करना उचित था? पाठ के संदर्भ में अपने विचार प्रकट कीजिए।

    उत्तर:प्रस्तुत कथन में अंग्रेजों द्वारा लगाए गए प्रतिरोध को भंग करने की बात की गई है। पाठ में जिस तरह से आजादी के जोश का चित्रण हुआ है उससे स्पष्ट होता है कि उस माहौल में कानून भंग करना उचित था।

  1. बहुत से लोग घायल हुए, बहुतों को लॉक-अप में रखा गया, बहुत सी स्त्रियाँ जेल गईं, फिर भी इस दिन को अपूर्व बताया गया है। आपाके विचार में ये सब अपूर्व क्यों है?

    उत्तर:जैसा कि आखिरी पारा में वर्णन किया गया है, इसके पहले कलकत्ता में इतने बड़े पैमाने पर आजादी की लड़ाई में लोगों ने शिरकत नहीं की थी। उस दिन जनसमूह का बड़ा सैलाब कलकत्ता की बुरी छवि को कुछ हद तक धोने में कामयाब होता दिख रहा था। इसलिए लेखक को वह दिन अपूर्व लग रहा था।

निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए:

  1. आज जो कुछ हुआ वह अपूर्व हुआ है। बंगाल के नाम या कलकत्ता के नाम पर कलंक था कि यहाँ काम नहीं हो रहा है वह आज बहुत अंश में धुल गया।

    उत्तर:उस सभा के पहले कलकत्ता में पहले कभी लोगों ने इतना बढ़ चढ़ कर स्वाधीनता संग्राम में हिस्सा नहिं लिया था। इस कारण से कुछ लोग हमेशा कलकत्ता पर यह आरोप लगाते थे कि वहाँ के लोग गुलामी को ही पसंद करते हैं। लेकिन उस दिन जो कुछ हुआ उससे कलकत्ता के नाम पर लगा दाग धुलने में बहुत सहायता मिली होगी।

  1. खुला चैलेंज देकर ऐसी सभा पहले नहीं की गई थी।

    उत्तर:पुलिस और प्रशासन के मना करने के बावजूद लोगों ने उस कार्यक्रम में बड़ी संख्या में हिस्सा लिया। नौकरी जाने की परवाह किये बिना कई सरकारी मुलाजिमों ने भी अपनी शिरकत की इसलिए कहा गया है कि खुला चैलेंज देकर ऐसी सभा पहले नहीं की गई थी।

लीलाधर मंडलोई

तताँरा वामीरो कथा

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक दो पंक्तियों में दीजिए :
  1. तताँरा वामीरो कहाँ की कथा है?

    उत्तर:तताँरा वामीरो निकोबार द्वीप की कथा है।

  1. वामीरो अपना गाना क्यों भूल गई?

    उत्तर:लहरों से भीग जाने के कारण वामीरो के ध्यान में खलल आया और वह अपना गाना भूल गई।

  1. तताँरा ने वामीरो से क्या याचना की?

    उत्तर:तताँरा ने वामीरो से रोज वहाँ पर आने की याचना की।

  1. तताँरा और वामीरो के गाँव की क्या रीति थी?

    उत्तर:तताँरा और वामीरो के गाँव की रीति थी कि कोई भी अपने गाँव से बाहर शादी नहीं कर सकता था।

  1. क्रोध में तताँरा ने क्या किया?

    उत्तर:क्रोध में तताँरा ने अपनी तलवार पूरी ताकत से जमीन में घुसेड़ दी। उसके बाद उसने उस द्वीप को दो टुकड़ों में चीड़ दिया।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर २५ – ३० शब्दों में दीजिए:

  1. तताँरा की तलवार के बारे में लोगों का क्या मत था?

    उत्तर:हालाँकि वह लकड़ी की तलवार थी, पर लोगों का मानना था कि उसमे अद्भुत शक्ति थी। वे मानते थे कि तताँरा अपने कारनामे उसी तलवार की मदद से करता था।

  1. वामीरो ने तताँरा को बेरुखी से क्या जवाब दिया?

    उत्तर:वामीरो ने बेरुखी से तताँरा से पूछा कि वह कौन है और अजनबी होने के बावजूद उससे सवाल क्यों कर रहा है। उसने गाँव के नियम का हवाला देते हुए ये भी बताया कि दूसरे गाँव के लोगों के सवालों के जवाब देने को वो बाध्य नहीं थी।

  1. तताँरा वामीरो की त्यागमयी मृत्यु से निकोबार में क्या परिवर्तन आया?

    उत्तर:तताँरा वामीरो की त्यागमयी मृत्यु से निकोबार के लोगों ने अपनी कठोर नीति को तोड़ दिया। तबसे लोगों की शादियाँ दूसरे गाँवों में भी होने लगी।

  1. निकोबार के लोग तताँरा को क्यों पसंद करते थे?

    उत्तर:तताँरा परिचित और अजनबी सबकी एक जैसी मदद करता था। वह ताकतवर होने के बावजूद बड़ा ही शाँत और सौम्य था। इसलिए निकोबार के लोग तताँरा को पसंद करते थे।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर ५० – ६० शब्दों में लिखिए:
  1. निकोबार द्वीपसमूह के विभक्त होने के बारे में निकोबारियों का क्या विश्वास है?

    उत्तर:निकोबार द्वीपसमूह के विभक्त होने के बारे में एक दंतकथा प्रसिद्ध है। जब वो एक ही द्वीप हुआ करता था, तब तताँरा नाम के एक युवक को दूसरे गाँव की वामीरो नाम की युवती से प्रेम हो गया। उन दिनों के नियम के अनुसार उनकी शादी होना संभव नहीं था। दोनों के गाँव वाले इसके खिलाफ थे। अपनी असह्य स्थिति देखकर तताँरा को एक दिन इतना गुस्सा आया कि उसने अपनी तलवार से द्वीप को दो टुकड़ों में काट दिया। उसके बाद लोगों की आँखें खुलीं और उन्होंने पुराने नियमों को तोड़ दिया।

  1. तताँरा खूब परिश्रम करने के बाद कहाँ गया? वहाँ के प्राकृतिक सौंदर्य का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।

    उत्तर:तताँरा खूब परिश्रम करने के बाद समुद्र के किनारे गया। उस समय शाम का समय था। दूर क्षितिज पर सूरज डूब रहा था। चिड़ियों का झुंड अपने घोसलों की तरफ जा रहा था। ठंडी-ठंडी हवा मन को शांति प्रदान कर रही थी। डूबते सूरज की लाली से समुद्र के पानी पर रंगबिरंगी आकृतियाँ बन रही थीं। आसमान भी तरह-तरह के रंगों की छटा बिखेर रहा था।

  1. वामीरो से मिलने के बाद तताँरा के जीवन में क्या परिवर्तन आया?

    उत्तर:वामीरो से मिलने के बाद तताँरा की जिंदगी ही बदल गई थी। उसका पूरा दिन उबाऊ हो गया। किसी काम में उसका मन नहीं लग रहा था। जीवन में पहली बार वह किसी का इंतजार कर रहा था। उसे लग रहा था कि दिन कभी खत्म ही नहीं होगा।

  1. प्राचीन काल में मनोरंजन और शक्ति प्रदर्शन के लिए किस प्रकार के आयोजन किए जाते थे?

    उत्तर:प्राचीन काल में शक्ति प्रदर्शन और मनोरंजन के लिए पशुओं की लड़ाई का आयोजन करवाया जाता था। कहीं-कहीं पर मनुष्य और पशु की लड़ाई भी होती थी। साथ में नाच और गाने का भी आयोजन होता था। भोज की भी वयवस्था होती थी।

  1. रूढ़ियाँ जब बंधन बन बोझ बनने लगें तब उनका टूट जाना ही अच्छा है। क्यों? स्पष्ट कीजिए।

    उत्तर:ये बात बिलकुल सही है कि रूढ़ियाँ जब बोझ बनने लगें तो उनका टूट जाना ही अच्छा है। कोई भी नियम एक अनूठे सामाजिक परिवेश की देन होता है। समय के साथ चीजें बदल जाती हैं। लोगों की मानसिकता और सामाजिक ढ़ाँचा परिवर्तनशील होता है। जो बात एक खास समय में उचित लगती है, वही बात बदले हुए परिवेश में व्यावहारिक तौर पर अपनी सार्थकता खो देती है। ऐसे में वो बात हमारे लिए बोझ बन जाती है। इसलिए उचित अवसर पर पुरानी प्रणाली को तोड़ना ही अच्छा होता है।

निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए:

  1. जब कोई राह न सूझी तो क्रोध का शमन करने के लिए उसमें शक्ति भर उसे धरती में घोंप दिया और ताकत से उसे खींचने लगा।

    उत्तर:तताँरा बहुत गुस्से में था क्योंकि उसे लगने लगा था कि गाँव वाले उसकी और वामीरो की शादी नहीं होने देंगे। उसकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था। उसने अपने गुस्से पर काबू पाने के लिए अपनी तलवार को पूरी ताकत से जमीन में घोंप दिया। यह उस समय का दृश्य है जब तताँरा के क्रोध से द्वीप के दो टुकड़े हो जाते हैं।

  1. बस आस की एक किरण थी जो समुद्र की देह पर डूबती किरणों की तरह कभी भी डूब सकती थी।

    उत्तर:तताँरा जब वामीरो का इंतजार कर रहा था तो उसे लग रहा था कि उसका इंतजार विफल जाएगा। हाँ उसके पास उम्मीद की एक किरण बाकी थी इसलिए वह इंतजार कर रहा था।

प्रह्लाद अग्रवाल

तीसरी कसम के शिल्पकार शैलेंद्र

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक दो पंक्तियों में दीजिए:
  1. ‘तीसरी कसम’ फिल्म को कौन-कौन से पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है?

    उत्तर:‘तीसरी कसम’ फिल्म को राष्ट्रपति स्वर्ण पदक मिला था। इसे बंगाल फिल्म जर्नलिस्ट एसोसियेशन द्वारा सर्वश्रेष्ठ फिल्म का पुरस्कार मिला था। इसे मास्को फिल्म फेस्टिवल में भी पुरस्कृत किया गया था।

  1. शैलेंद्र ने कितनी फिल्में बनाईं?

    उत्तर:शैलेंद्र ने केवल एक ही फिल्म बनाई थी; तीसरी कसम।

  1. राज कपूर द्वारा निर्देशित कुछ फिल्मों के नाम बताइए।

    उत्तर:मेरा नाम जोकर, सत्यम शिवम सुंदरम, राम तेरी गंगा मैली

  1. ‘तीसरी कसम’ फिल्म के नायक व नायिकाओं के नाम बताइए और फिल्म में इन्होंने किन पात्रों का अभिनय किया है?

    उत्तर:इस फिल्म में राज कपूर ने हीरामन की और वहीदा रहमान ने हीराबाई की भूमिका निभाई थी।

  1. फिल्म ‘तीसरी कसम’ का निर्माण किसने किया था?

    उत्तर:शैलेंद्र

  1. राज कपूर ने ‘मेरा नाम जोकर’ के निर्माण के समय किस बात की कल्पना भी नहीं की थी?

    उत्तर:इस फिल्म के निर्माण के समय राज कपूर ने इस बात की कल्पना भी नहीं की थी कि इसके एक भाग को ही बनाने में छ: साल लग जाएंगे।

  1. राज कपूर की किस बात पर शैलेंद्र का चेहरा मुरझा गया?

    उत्तर:जब राज कपूर ने शैलेंद्र से एडवांस में अपना पारिश्रमिक माँगा तो इस पर शैलेंद्र का चेहरा मुरझा गया।

  1. फिल्म समीक्षक राज कपूर को किस तरह का कलाकार मानते थे?

    उत्तर:फिल्म समीक्षक राज कपूर को आँखों से बात करने वाला कलाकार मानते थे।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर २५ – ३० शब्दों में लिखिए:

  1. ‘तीसरी कसम’ फिल्म को ‘सैल्यूलाइड पर लिखी कविता’ क्यों कहा गया है?

    उत्तर:तीसरी कसम आम मसाला फिल्मों से हटकर है। इसमें गाँव के जीवन का बड़ा ही सटीक चित्रण हुआ है। मुख्य कलाकार राज कपूर और वहीदा रहमान ने अपने सहज अभिनय से ग्रामीण के किरदार में जान फूँक दी है। इसलिए तीसरी कसम को सैल्युलाइड पर लिखी कविता कहा गया है।

  1. ‘तीसरी कसम’ फिल्म को खरीददार क्यों नहीं मिल रहे थे?

    उत्तर:तीसरी कसम व्यावसायिक दृष्टिकोण से अच्छी फिल्म नहीं थी। खरीददारों को तो अपने पैसे पर लाभ कमाने की चिंता ज्यादा होती है। उनके लिए फिल्म की संवेदनशीलता का कोई महत्व नहीं होता है। इसलिए तीसरी कसम को खरीददार नहीं मिल रहे थे।

  1. शैलेंद्र के अनुसार कलाकार का कर्तव्य क्या है?

    उत्तर:शैलेंद्र के अनुसार कलाकार का यह भी कर्तव्य होता है कि वह दर्शकों की रुचियों का परिष्कार करने को भी तैयार रहे। उनके अनुसार कलाकार को दर्शकों को नए दृष्टिकोण से विषय वस्तु को देखने की कला सिखानी चाहिए।

  1. फिल्मों में त्रासद स्थितियों का चित्रांकन ग्लोरिफाई क्यों कर दिया जाता है?

    उत्तर:फिल्मकार हमेशा दर्शकों का भावनात्मक शोषण करना चाहते हैं। इसलिए फिल्मों में त्रासद स्थितियों का चित्रांकन ग्लोरिफाई कर दिया जाता है।

  1. ‘शैलेंद्र ने राज कपूर की भावनाओं को शब्द दिए हैं’ – इस कथन से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।

    उत्तर:तीसरी कसम की सशक्त पटकथा और गीत ने राज कपूर के अभिनय के साथ एक जादुई प्रभाव बनाया है। एक अभिनेता जब पूरी तन्मयता से अभिनय करता है तो किरदार में वह अपनी पूरी भावना उड़ेल देता है। एक अच्छे निर्देशक की तरह शैलेंद्र ने राज कपूर की भावनाओं को इस फिल्म में पूरी तरह से उजागर किया है।

  1. लेखक ने राज कपूर को एशिया का सबसे बड़ा शोमैन कहा है। शोमैन से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।

    उत्तर:शोमैन उस शख्स को कहा जाता है जो लोकप्रियता के चरम शिखर पर होता है। उसके बारे में किंवदंतियाँ मशहूर हो जाती हैं। उसकी चाल ढ़ाल, उसकी पोशाक और उसके बात करने के लहजे का हर कोई अनुसरण करना चाहता है। लोग उसकी एक झलक देखकर पागल हो जाते हैं। राज कपूर में ये सारी खूबियाँ थीं। इसलिए लेखक ने राज कपूर को एशिया का सबसे बड़ा शोमैन कहा है।

  1. फिल्म ‘श्री ४२०’ के गीत ‘रातें दसों दिशाओं से कहेंगी अपनी कहानियाँ’ पर संगीतकार जयकिशन ने आपत्ति क्यों की?

    उत्तर:जयकिशन का कहना था कि यथार्थ में चार दिशाएँ होती हैं और दर्शकों को दस दिशाएँ शायद समझ में ना आयें। इसलिए जयकिशन ने ‘दस दिशाओं’ पर आपत्ति की थी।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर ५०६० शब्दों में लिखिए:
  1. राज कपूर द्वारा फिल्म की असफलता के खतरों से आगाह करने पर भी शैलेंद्र ने यह फिल्म क्यों बनाई?

    उत्तर:हालांकि शैलेंद्र फिल्म इंडस्ट्री में काफी अरसे से थे, फिर भी उन्हें यश या धन की लालसा नहीं थी। वे तो अपनी कृति से आत्मसुख प्राप्त करना चाहते थे। वह अपने अंदर के कलाकार का गला घोंट कर काम करना नहीं चाहते थे। इसलिए राज कपूर के आगाह करने के बावजूद भी उन्होंने यह फिल्म बनाई।

  1. ‘तीसरी कसम’ में राज कपूर का महिमामय व्यक्तित्व किस तरह हीरामन की आत्मा में उतर गया है? स्पष्ट कीजिए।

    उत्तर:राज कपूर हीरामन की आत्मा में उतर गया लगता है। वह खालिस भुच्च जुबान बोलता है। किसी पक्के देहाती की तरह वह हीराबाई की एक-एक अदा पर रीझता है। उसके उकड़ू बैठने का ढ़ंग, बातें करने का ढ़ंग, निराश होने का ढ़ंग; सब में हीरामन ही दिखता है। राज कपूर का व्यक्तित्व कहीं भी नजर नहीं आता है।

  1. लेखक ने ऐसा क्यों लिखा है कि ‘तीसरी कसम’ ने साहित्य रचना के साथ शत-प्रतिशत न्याय किया है?

    उत्तर:तीसरी कसम में ग्रामीण जीवन का सटीक चित्रण हुआ है। किरदारों की पोशाकों से लेकर उनके हाव भाव और बात करने के ढ़ंग तक में लोक जीवन की छाप मिलती है। हालाँकी इस फिल्म में उस जमाने के बड़े-बड़े कलाकारों ने काम किया है, लेकिन किसी भी कलाकार का व्यक्तित्व किरदार पर हावी नहीं हुआ। फिल्म के गीत संगीत ने भी गाँव के माहौल को बखूबी पकड़ा है।

  1. शैलेंद्र के गीतों की क्या विशेषताएँ हैं? अपने शब्दों में लिखिए।

    उत्तर:शैलेंद्र के गीत बड़ी ही साधारण भाषा में होते थे, जिससे आम लोगों को भी उनकी समझ हो जाए। उनके गीतों में झूठे आभिजात्य का अभाव था। लेखन ने उनके गीतों को शांत नदी के प्रवाह और समुद्र की गहराई से युक्त कहा है। इसका मतलब है कि शैलेंद्र के गीतों में शांत नदी जैसी सरलता होती थी और समुद्र की गहराई जैसे अर्थ छुपे हुए थे।

  1. फिल्म निर्माता के रूप में शैलेंद्र की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।

    उत्तर:व्यावसायिक दृष्टि से शैलेंद्र अच्छे निर्माता नहीं थे। मूल रूप से वे एक कवि थे। फिल्में बनाते समय भी उनका कवि हृदय ही मुखर होता था। इसलिए वे भावप्रधान फिल्म बना सकते थे। वे मूल रचना के साथ शत प्रतिशत न्याय करने में विश्वास रखते थे।

  1. शैलेंद्र के निजी जीवन की छाप उनकी फिल्मों में झलकती है – कैसे? स्पष्ट कीजिए।

    उत्तर:अपने निजी जीवन में शैलेंद्र एक सरल इंसान थे जिनके अंदर असीम गहराई थी। उनकी फिल्में और उनके गीतों में भी यही बात होती थी। ऊपरी तौर पर तीसरी कसम एक साधारण से देहात की पृष्ठभूमि की फिल्म लगती है। लेकिन जिस प्रकार से इस फिल्म में लोक जीवन का चित्रण हुआ है वह इस फिल्म की गहराई को दर्शाता है।

  1. लेखक के इस कथन से कि ‘तीसरी कसम’ फिल्म कोई सच्चा कवि-हृदय ही बना सकता था, आप कहाँ तक सहमत हैं? स्पष्ट कीजिए।

    उत्तर:अक्सर फिल्मकार व्यावसायिक सफलता के चक्कर में फिल्म की आत्मा के साथ खिलवाड़ करते हैं। ज्यादातर फिल्मों में ग्रामीण पृष्ठभूमि का मतलब होता है भड़काऊ पोशाक और संगीत। कभी‌-कभी जरूरत से ज्यादा हिंसा भी भरी होती है। लेकिन शैलेंद्र ने तो आम आदमी के जीवन को लेकर फिल्म बनाई है। तीसरी कसम के गीतों में कहीं भी भड़काऊपन नहीं है, बल्कि नौटंकी शैली का गीत और संगीत है। इसमें ग्रामीण जीवन की हताशा का भी चित्रण है, लेकिन उसे दिखाने के लिए हिंसा का सहारा नहीं लिया गया है। इस तरह का चित्रण कोई कवि हृदय ही कर सकता है।

निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए:

  1. वह तो एक आदर्शवादी भावुक कवि था, जिसे अपार संपत्ति और यश तक की इतनी कामना नहीं थी जितनी आत्म-संतुष्टि के सुख की अभिलाषा थी।

    उत्तर:इन पंक्तियों में शैलेंद्र के कवि हृदय व्यक्तित्व के बारे में बताया गया है। शैलेंद्र कभी भी धन या यश की लालच में गीत नहीं लिखते थे बल्कि अपनी आत्म संतुष्टि के लिए गीत लिखते थे।

  1. उनका यह दृढ़ मंतव्य था कि दर्शकों की रुचि की आड़ में हमें उथलेपन को उन पर नहीं थोपना चाहिए। कलाकार का यह कर्तव्य भी है कि वह उपभोक्ता की रुचियों का परिष्कार करने का प्रयत्न करे।

    उत्तर:शैलेंद्र को फार्मूला फिल्मों की तरह फिल्मों में मसाले भरने से सख्त परहेज था। वे उथली बातों को इस बहाने नहीं थोपना चाहते थे कि अधिकतर लोगों की रुचि वैसी ही उथली बातों में थी। साथ में वे ये भी मानते थे कि दर्शकों में अच्छी चीजों के प्रति संवेदनशीलता जगाना भी कलाकार का कर्तव्य होता है।

  1. व्यथा आदमी को पराजित नहीं करती, उसे आगे बढ़ने का संदेश देती है।

    उत्तर:जिंदगी में आदमी को सुख के साथ हताशा और व्यथा भी मिलती है। लेकिन व्यथा और दुख से आदमी को निराश नहीं होना चाहिए। कहा जाता है कि असफलता तो सफलता के लिए सीढ़ी का काम करती है। इस तरह से यह कहा जा सकता है कि व्यथा आदमी को पराजित नहीं करती, उसे आगे बढ़ने का संदेश देती है।

  1. दरअसल इस फिल्म की संवेदना किसी दो से चार बनाने वाले की समझ से परे है।

    उत्तर:जब ‘तीसरी कसम’ फिल्म बनी तो उसे कोई भी वितरक खरीदने को तैयार नहीं था। किसी भी वितरक के लिए लाभ कमाने की मंशा सर्वोपरी होती है। शैलेंद्र की फिल्म में ऐसी कोई गारंटी नहीं थी। उनकी फिल्म व्यावसायिक सफलता की गारंटी नहीं दे रही थी।

  1. उनके गीत भाव प्रवण थे दुरूह नहीं।

    उत्तर:शैलेंद्र के गीतों की भाषा अत्यंत सरल हुआ करती थी। ऐसी भाषा को आम जनमानस आसानी से समझ सकता था। लेकिन उनके गीतों में भावनाओं की प्रचुरता थी।

अंतोन चेखव

गिरगिट

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक दो पंक्तियों में दीजिए:
  1. काठगोदाम के पास भीड़ क्यों इकट्ठी हो गई थी।

    उत्तर:काठगोदाम के पास किसी को कुत्ते ने काट लिया था। वह आदमी उस कुत्ते को पकड़ कर चिल्ला रहा था। उसे देखने के लिए वहाँ पर भीड़ इकट्ठी हो गई थी।

  1. उँगली ठीक न होने की स्थिति में ख्यूक्रिन का नुकसान क्यों होता?

    उत्तर:उँगली ठीक न होने से ख्यूक्रिन का कामकाज कई दिनों के लिए रुक जाता। इससे उसकी आजीविका पर असर पड़ता।

  1. कुत्ता क्यों किकिया रहा था?

    उत्तर:कुत्ते की नाक पर शायद चोट आई थी। दर्द और भय के कारण वह किकिया रहा था।

  1. बाजार के चौराहे पर खामोशी क्यों थी?

    उत्तर:उस इलाके में सरकारी मुलाजिमों का बहुत खौफ था। लोग उनकी तानशाही से डरते थे। इसलिए वहाँ पर सन्नाटा था।

  1. जनरल साहब के बावर्ची ने कुत्ते के बारे में क्या बताया?

    उत्तर:जनरल साहब के बावर्ची ने बताया कि जनरल साहब किसी दूसरे नस्ल के कुत्ते के शौकीन थे। उसने ये भी बताया कि वह कुत्ता जनरल साहब के भाई का था।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर २५ – ३० शब्दों में लिखिए:

  1. ख्यूक्रिन ने मुआवजा पाने की क्या दलील दी?

    उत्तर:ख्यूक्रिन एक सोनार था। उसका कहना था कि उसका काम पेचीदा किस्म का है जिसमें उसकी उँगलियों की दक्षता ही काम आती है। उसका कहना था कि कम से कम एक हफ्ते तक तो उसका काम रुक जाएगा इसलिए उसे मुआवजा मिलना ही चाहिए।

  1. ख्यूक्रिन ने ओचुमेलॉव को उँगली ऊपर उठाने का क्या कारण बताया?

    उत्तर:ख्यूक्रिन ने बताया कि कुत्ते ने उसकी उँगली में काट लिया था। इसलिए वह उँगली को ऊपर उठाए हुए था ताकि लोगों को दिखा सके कि उसके साथ क्या हुआ था।

  1. येल्दीरीन ने ख्यूक्रिन को दोषी ठहराते हुए क्या कहा?

    उत्तर:येल्दीरीन ने कहा कि वह जानती थी कि ख्यूक्रिन हमेशा कोई न कोई शरारत किया करता था। उसने बताया कि ख्यूक्रिन ने जरूर जलती सिगरेट से उस कुत्ते की नाक जला दी होगी।

  1. ओचुमेलॉव ने जनरल साहब के पास यह संदेश क्यों भिजवाया होगा कि ‘उनसे कहना कि यह मुझे मिला और मैंने इसे वापस उनके पास भेजा है?

    उत्तर:ओचुमेलॉव किसी पक्के चापलूस की तरह व्यवहार कर रहा था। वह जनरल साहब के मन में अपनी छाप छोड़ना चाहता था कि वह उनका कितना खयाल रखता था। इसलिए उसने जनरल साहब के पास यह संदेश भिजवाया था।

  1. भीड़ ख्यूक्रिन पर क्यों हँसने लगती है?

    उत्तर:भीड़ ख्यूक्रिन की असहाय स्थिति देखकर हँसने लगती है। भीड़ को जब यह पता चल जाता है कि कुत्ता किसका है तो वह समझ जाती है कि ख्यूक्रिन को न्याय नहीं मिलने वाला है। भीड़ एक तरह से ख्यूक्रिन की बदकिस्मती पर हँसती है कि उसे काटा भी तो जनरल साहब के भाई के कुत्ते ने।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर ५०६० शब्दों में लिखिए:
  1. किसी कील-वील से उँगली छील ली होगी; ऐसा ओचुमेलॉव ने क्यों कहा?

    उत्तर:जब ओचुमेलॉव को ऐसा लगा कि वह कुत्ता जनरल साहब का था तो उसने सारा दोष ख्यूक्रिन पर थोपने की कोशिश की। जहाँ पर अफसरों और शासक वर्ग की तानाशाही चलती है वहाँ अकसर ऐसा देखा जाता है। यदि कोई समर्थ व्यक्ति अपराध करे तो उसे सजा नहीं होती। बदले में किसी कमजोर को दोषी साबित करने की कोशिश की जाती है।

  1. ओचुमेलॉव के चरित्र की विशेषताओं को अपने शब्दों में लिखिए।

    उत्तर:ओचुमेलॉव उस तरह का अफसर है जिसके रग रग में भ्रष्टाचार भरा हुआ है। उसे पता है कि किसकी चापलूसी की जाए और किसके साथ ज्यादती की जाए। उसका अपना विवेक मर चुका है। वह तो केवल अपने आकाओं के हित की रक्षा के लिए काम करना जानता है।

  1. यह जानने के बाद कि कुत्ता जनरल साहब के भाई का है; ओचुमेलॉव के विचारों में क्या परिवर्तन आया और क्यों?

    उत्तर:यह जानने के बाद कि कुत्ता जनरल साहब के भाई का है, ओचुमेलॉव के विचारों में जबरदस्त परिवर्तन आया। जो आदमी पहले उस कुत्ते को मार ही देना चाहता था वही आदमी अब बाइज्जत उस कुत्ते को जनरल साहब के पास पहुँचाना चाहता था। उसे पता था कि जनरल साहब की चापलूसी करने से उसे उसकी नौकरी बचाने में और तरक्की करने में मदद मिल सकती थी।

  1. ख्यूक्रिन का यह कथन कि ‘मेरा एक भाई भी पुलिस में है ..।“ समाज की किस वास्तविकता की ओर संकेत करता है?

    उत्तर:ऐसा हम अपने देश में अक्सर देखते हैं। हर आदमी किसी न किसी नौकरशाह या किसी राजनीतिज्ञ से रिश्ते की दुहाई देता है। यह हमारी सामंतवादी मानसिकता का परिचायक है। जब किसी को ट्राफिक पुलिस नियम तोड़ते हुए पकड़ लेती है तो आदमी किसी सत्ताधारी व्यक्ति की दुहाई देकर बचने की कोशिश करता है।

  1. इस कहानी का शीर्षक ‘गिरगिट’ क्यों रखा होगा? क्या आप इस कहानी के लिए कोई अन्य शीर्षक सुझा सकते हैं? अपने शीर्षक का आधार भी स्पष्ट कीजिए।

    उत्तर:इस कहानी में सरकारी अधिकारी गिरगिट की तरह रंग बदलता है। इसलिए इस कहानी का शीर्षक ‘गिरगिट’ रखा गया है। इस कहानी का एक और शीर्षक हो सकता है ‘बेपेंदे का लोटा’। यह पद ऐसे व्यक्ति के लिए इस्तेमाल होता है जो हर पल पाला बदलता है।

  1. ‘गिरगिट’ कहानी के माध्यम से समाज की किन वसंगतियों पर व्यंग्य किया गया है? क्या आप ऐसी विसंगतियाँ अपने समाज में भी देखते हैं? स्पष्ट कीजिए।

    उत्तर:यह कहानी समाज में सत्ताधारी लोगों द्वारा कमजोर लोगों के दमन के बारे में है। ऐसी विसंगतियाँ हमारे समाज में भी है। उदाहरण के लिए जल बोर्ड के अधिकारी के घर में पानी बिना मतलब बहता रहता है। वहीं बगल की झोपड़पट्टी में रहने वालों को एक बूँद पानी नहीं नसीब होता है।

निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए:

  1. उसकी आँसुओं से सनी आँखों में संकट और आतंक की गहरी छाप थी।

    उत्तर:वह कुत्ता दर्द और भय के मारे आतंकित था। वह जैसे उतनी बड़ी भीड़ को देखकर अपने प्राणों की भीख माँग रहा था।

  1. कानून सम्मत तो यही है ….. कि सब लोग बराबर हैं।

    उत्तर:ख्यूक्रिन अपनी दलील दे रहा है कि उसके केस में कानून के हिसाब से कार्रवाई होनी चाहिए। वह साथ में ओचुमेलॉव की चापलूसी भी कर रहा है ताकि उसे न्याय मिल सके।

  1. हुजूर! यह तो जनशांति भंग हो जाने जैसा कुछ दीख रहा है।

    उत्तर:सिपाही ने भाँप लिया कि वहाँ पर कुछ गड़बड़ थी। वह वहाँ पर जाकर अपनी दादागिरी का मौका हाथ से जाने नहीं देना चाहता था।

निदा फाजली

अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक दो पंक्तियों में दीजिए:
  1. बड़े-बड़े बिल्डर समुद्र को पीछे क्यों धकेल रहे थे?

    उत्तर:बड़े-बड़े बिल्डर समुद्र को पीछे इसलिए धकेल रहे थे ताकि वे मकान बनाने के लिए जमीन हथिया सकें।

  1. लेखक का घर किस शहर में था?

    उत्तर:ग्वालियर

  1. जीवन कैसे घरों में सिमटने लगा है?

    उत्तर:जीवन अब माचिस जैसे छोटे घरों में सिमटने लगा है।

  1. कबूतर परेशानी में इधर उधर क्यों फड़फड़ा रहे थे?

    उत्तर:कबूतर के दोनों अंडे फूट गए थे। इसलिए वे परेशानी में इधर उधर फड़फड़ा रहे थे।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर २५ – ३० शब्दों में लिखिए

  1. अरब में लश्कर को नूह के नाम से क्यों याद करते हैं?

    उत्तर:लश्कर ने एक बार एक कुत्ते को दुत्कार दिया था। इस पर उस कुत्ते ने जवाब दिया था कि कुत्तों और इंसानों में कोई फर्क नहीं होता, क्योंकि दोनों को एक ही भगवान ने बनाया है। इस कारण से लश्कर जिंदगी भर रोते रहे। इसलिए अरब में लश्कर को नूह के नाम से याद किया जाता है।

  1. लेखक की माँ किस समय पेड़ों के पत्ते तोड़ने के लिए मना करती थीं और क्यों?

    उत्तर:लेखक की माँ सूरज ढ़लने के बाद पेड़ों के पत्ते तोड़ने के लिए मना करती थीं। उनका मानना था कि इससे पेड़ रोने लगते हैं।

  1. प्रकृति में आए असंतुलन का क्या परिणाम हुआ?

    उत्तर:प्रकृति में आए असंतुलन का बुरा परिणाम हुआ है। अब अधिक गर्मी, अधिक सर्दी और बेवक्त बारिश होती है। अब भूकंप और तूफानों का भी खतरा बढ़ गया है।

  1. लेखक की माँ ने पूरे दिन का रोजा क्यों रखा?

    उत्तर:लेखक की माँ को लगता था कि उनकी वजह से कबूतर के अंडे टूट गये थे। वे अपराध बोध से ग्रसित थीं। उन्होंने अपनी गलती की माफी मांगने के लिए पूरे दो दिन का रोजा रखा।

  1. लेखक ने ग्वालियर से बंबई तक किन बदलावों को महसूस किया? पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।

    उत्तर:लेखक ने देखा कि ग्वालियर में नए मकानों की इतनी बाढ़ नहीं आई थी कि पशु पक्षियों के लिए जगह ही न बचे। लेकिन बंबई में जंगल के जंगल साफ हो गए थे और उनकी जगह नई बस्तियों ने ले ली थी। इसके कारण असंख्य पशु पक्षियों को बेघर होना पड़ा था।

  1. ‘डेरा डालने’ से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।

    उत्तर:डेरा डालने का मतलब होता है, कहीं पर अस्थाई निवास बनाना। इस पाठ में चिड़ियों द्वारा डेरा डालने की बात की गई है। आपने देखा होगा कि हमारे मकानों के छज्जों और रोशनदानों में अक्सर पंछी अपना घोसला बना लेते हैं। यह उनका प्राकृतिक निवास तो होता नहीं है। लेकिन उनके पास और कोई चारा भी नहीं है, क्योंकि इंसानों ने उनका प्राकृतिक निवास छीन लिया है।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर ५० – ६० शब्दों में दीजिए:
  1. बढ़ती हुई आबादी का पर्यावरण पर क्या प्रभाव पड़ा?

    उत्तर:बढ़ती हुई आबादी का पर्यावरण पर बुरा प्रभाव पड़ा है। बढ़ती हुई आबादी ने समन्दर को पीछे धकेल दिया हैहै और पेड़ों को अपने रास्ते से हटा दिया है। इससे कितने ही पशु पक्षी घर से बेघर हो गए हैं। अब इसके कारण मौसम में अजीबोगरीब बदलाव हो रहे हैं। कहीं सूखा पड़ रहा है तो कहीं बाढ़ आ रही है। पर्यावरण का संतुलन बुरी तरह से बिगड़ चुका है।

  1. लेखक की पत्नी को खिड़की में जाली क्यों लगवानी पड़ी?

    उत्तर:लेखक के फ्लैट में कबूतरों एक घोंसला है जिसमें छोटे-छोटे बच्चे हैं। उन्हें दाना खिलाने के लिए बड़े कबूतर दिन में कई बार आया जाया करते थे। इससे लेखक की दिनचर्या में विघ्न पड़ता था। रोज-रोज की परेशानी से तंग आकर लेखक की पत्नी को खिड़की में जाली लगवानी पड़ी, ताकि कबूतर फिर से उन्हें तंग न कर पाएँ।

  1. समुद्र के गुस्से की क्या वजह थी? उसने अपना गुस्सा कैसे निकाला?

    उत्तर:समुद्र को जब जगह कम पड़ने लगी तो पहले तो वह अपनी टाँगें समेटकर बैठ गया। और जगह कम पड़ी तो फिर उकड़ू होकर बैठ गया। और जगह कम पड़ी तो वह खड़ा हो गया। जब उसे ठीक से खड़े होने की जगह भी नहीं मिली तो उसे गुस्सा आ गया। उसने अपना गुस्सा बड़े भयानक रूप से निकाला। उसने तीन जहाजों को उठाकर यहाँ वहाँ पटक दिया।

  1. ‘मट्टी से मट्टी मिले,
    खो के सभी निशान,
    किसमें कितना कौन है,
    कैसे हो पहचान’
    इन पंक्तियों के माध्यम से लेखक क्या कहना चाहता है? स्पष्ट कीजिए।

    उत्तर:सभी जीव मिट्टी से बने हुए हैं और मरने के बाद सब मिट्टी में मिल जाते हैं। जीव विज्ञान में हमने पढ़ा है कि किस तरह से कुछ अजैविक पदार्थों के मेल से एक जीव का निर्माण होता है और मरने के बाद वे सारे पदार्थ अपघटन की क्रिया द्वारा फिर से वातावरण में वापस हो जाते हैं। मिट्टी को देखकर कोई भी नहीं पकड़ सकता कि इसमें किन किन जीवों से पदार्थ आए हैं। मनुष्य होने के नाते हम इस घमंड में रहते हैं हम अन्य जीवों की तुलना में सर्वश्रेष्ठ हैं। लेकिन मूल तौर पर सभी जीवों का महत्व एक समान है।

निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए:

  1. नेचर की सहनशक्ति की एक सीमा होती है। नेचर के गुस्से का एक नमूना कुछ साल पहले बंबई में देखने को मिला था।

    उत्तर:नेचर हमारी गलतियों को बहुत हद तक बर्दाश्त करता है। लेकिन जब हम वो हदें पार कर जाते हैं तो फिर नेचर अपना गुस्सा दिखाता है। यह हमें प्राकृतिक विपदाओं और उनसे आई तबाही के रूप में दिखता है।

  1. जो जितना बड़ा होता है उसे उतना ही कम गुस्सा आता है।

    उत्तर:छोटे प्राणियों और छोटे दिल के लोगों को जल्दी गुस्सा आता है। लेकिन उनका गुस्सा भी क्षणिक होता है। बड़े प्राणियों और बड़े दिल वाले लोगों को देर से गुस्सा आता है। लेकिन जब उन्हें गुस्सा आता है तो फिर सामने वाले की खैर नहीं होती।

  1. इस बस्ती ने न जाने कितने परिंदों-चरिंदों से उनका घर छीन लिया है। इनमें से कुछ शहर छोड़कर चले गए हैं। जो नहीं जा सके हैं उन्होंने यहाँ वहाँ डेरा डाल लिया है।

    उत्तर:यह हाल किसी भी नई बस्ती में हो सकता है। आज हर बड़े शहर में लाखों की संख्या में फ्लैट बन रहे हैं। इन फ्लैटों को बनाने के लिए जंगल साफ किए जा रहे हैं और ताल तलैयों को भरा जा रहा है। इस कारण से असंख्य पशु पक्षियों से उनका घर छीन लिया जा रहा है। अधिकाँश पशु पक्षी फिर वहाँ से कहीं और चले जाते हैं। जो नहीं जा पाते हैं वे इंसानों के मकानों में ही अपना डेरा डाल देते हैं।

  1. शेख अयाज के पिता बोले, ‘नहीं, यह बात नहीं है। मैंने एक घरवाले को बेघर कर दिया है। उस बेघर को कुएँ पर उसके घर छोड़ने जा रहा हूँ।‘ इन पंक्तियों में छिपी हुई भावना को स्पष्ट कीजिए।

    उत्तर:शेख अयाज के पिता में अन्य जीवों के लिए सम्मान की भावना थी। उन्हें लगा कि चींटी को बेघर करना अच्छी बात नहीं है। इसलिए वे उस चींटी को कुएँ पर छोड़ने जा रहे थे ताकि किसी पाप से बच सकें।

  2. अरब में लश्कर को नूह के नाम से क्यों याद करते हैं?

    उत्तर:लश्कर ने एक बार एक कुत्ते को दुत्कार दिया था। इस पर उस कुत्ते ने जवाब दिया था कि कुत्तों और इंसानों में कोई फर्क नहीं होता, क्योंकि दोनों को एक ही भगवान ने बनाया है। इस कारण से लश्कर जिंदगी भर रोते रहे। इसलिए अरब में लश्कर को नूह के नाम से याद किया जाता है।

  1. लेखक की माँ किस समय पेड़ों के पत्ते तोड़ने के लिए मना करती थीं और क्यों?

    उत्तर:लेखक की माँ सूरज ढ़लने के बाद पेड़ों के पत्ते तोड़ने के लिए मना करती थीं। उनका मानना था कि इससे पेड़ रोने लगते हैं।

  1. प्रकृति में आए असंतुलन का क्या परिणाम हुआ?

    उत्तर:प्रकृति में आए असंतुलन का बुरा परिणाम हुआ है। अब अधिक गर्मी, अधिक सर्दी और बेवक्त बारिश होती है। अब भूकंप और तूफानों का भी खतरा बढ़ गया है।

  1. लेखक की माँ ने पूरे दिन का रोजा क्यों रखा?

    उत्तर:लेखक की माँ को लगता था कि उनकी वजह से कबूतर के अंडे टूट गये थे। वे अपराध बोध से ग्रसित थीं। उन्होंने अपनी गलती की माफी मांगने के लिए पूरे दो दिन का रोजा रखा।

  1. लेखक ने ग्वालियर से बंबई तक किन बदलावों को महसूस किया? पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।

    उत्तर:लेखक ने देखा कि ग्वालियर में नए मकानों की इतनी बाढ़ नहीं आई थी कि पशु पक्षियों के लिए जगह ही न बचे। लेकिन बंबई में जंगल के जंगल साफ हो गए थे और उनकी जगह नई बस्तियों ने ले ली थी। इसके कारण असंख्य पशु पक्षियों को बेघर होना पड़ा था।

  1. ‘डेरा डालने’ से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।

    उत्तर:डेरा डालने का मतलब होता है, कहीं पर अस्थाई निवास बनाना। इस पाठ में चिड़ियों द्वारा डेरा डालने की बात की गई है। आपने देखा होगा कि हमारे मकानों के छज्जों और रोशनदानों में अक्सर पंछी अपना घोसला बना लेते हैं। यह उनका प्राकृतिक निवास तो होता नहीं है। लेकिन उनके पास और कोई चारा भी नहीं है, क्योंकि इंसानों ने उनका प्राकृतिक निवास छीन लिया है।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर ५० – ६० शब्दों में दीजिए:
  1. बढ़ती हुई आबादी का पर्यावरण पर क्या प्रभाव पड़ा?

    उत्तर:बढ़ती हुई आबादी का पर्यावरण पर बुरा प्रभाव पड़ा है। बढ़ती हुई आबादी ने समन्दर को पीछे धकेल दिया हैहै और पेड़ों को अपने रास्ते से हटा दिया है। इससे कितने ही पशु पक्षी घर से बेघर हो गए हैं। अब इसके कारण मौसम में अजीबोगरीब बदलाव हो रहे हैं। कहीं सूखा पड़ रहा है तो कहीं बाढ़ आ रही है। पर्यावरण का संतुलन बुरी तरह से बिगड़ चुका है।

  1. लेखक की पत्नी को खिड़की में जाली क्यों लगवानी पड़ी?

    उत्तर:लेखक के फ्लैट में कबूतरों एक घोंसला है जिसमें छोटे-छोटे बच्चे हैं। उन्हें दाना खिलाने के लिए बड़े कबूतर दिन में कई बार आया जाया करते थे। इससे लेखक की दिनचर्या में विघ्न पड़ता था। रोज-रोज की परेशानी से तंग आकर लेखक की पत्नी को खिड़की में जाली लगवानी पड़ी, ताकि कबूतर फिर से उन्हें तंग न कर पाएँ।

  1. समुद्र के गुस्से की क्या वजह थी? उसने अपना गुस्सा कैसे निकाला?

    उत्तर:समुद्र को जब जगह कम पड़ने लगी तो पहले तो वह अपनी टाँगें समेटकर बैठ गया। और जगह कम पड़ी तो फिर उकड़ू होकर बैठ गया। और जगह कम पड़ी तो वह खड़ा हो गया। जब उसे ठीक से खड़े होने की जगह भी नहीं मिली तो उसे गुस्सा आ गया। उसने अपना गुस्सा बड़े भयानक रूप से निकाला। उसने तीन जहाजों को उठाकर यहाँ वहाँ पटक दिया।

  1. ‘मट्टी से मट्टी मिले,
    खो के सभी निशान,
    किसमें कितना कौन है,
    कैसे हो पहचान’
    इन पंक्तियों के माध्यम से लेखक क्या कहना चाहता है? स्पष्ट कीजिए।

    उत्तर:सभी जीव मिट्टी से बने हुए हैं और मरने के बाद सब मिट्टी में मिल जाते हैं। जीव विज्ञान में हमने पढ़ा है कि किस तरह से कुछ अजैविक पदार्थों के मेल से एक जीव का निर्माण होता है और मरने के बाद वे सारे पदार्थ अपघटन की क्रिया द्वारा फिर से वातावरण में वापस हो जाते हैं। मिट्टी को देखकर कोई भी नहीं पकड़ सकता कि इसमें किन किन जीवों से पदार्थ आए हैं। मनुष्य होने के नाते हम इस घमंड में रहते हैं हम अन्य जीवों की तुलना में सर्वश्रेष्ठ हैं। लेकिन मूल तौर पर सभी जीवों का महत्व एक समान है।

निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए:

  1. नेचर की सहनशक्ति की एक सीमा होती है। नेचर के गुस्से का एक नमूना कुछ साल पहले बंबई में देखने को मिला था।

    उत्तर:नेचर हमारी गलतियों को बहुत हद तक बर्दाश्त करता है। लेकिन जब हम वो हदें पार कर जाते हैं तो फिर नेचर अपना गुस्सा दिखाता है। यह हमें प्राकृतिक विपदाओं और उनसे आई तबाही के रूप में दिखता है।

  1. जो जितना बड़ा होता है उसे उतना ही कम गुस्सा आता है।

    उत्तर:छोटे प्राणियों और छोटे दिल के लोगों को जल्दी गुस्सा आता है। लेकिन उनका गुस्सा भी क्षणिक होता है। बड़े प्राणियों और बड़े दिल वाले लोगों को देर से गुस्सा आता है। लेकिन जब उन्हें गुस्सा आता है तो फिर सामने वाले की खैर नहीं होती।

  1. इस बस्ती ने न जाने कितने परिंदों-चरिंदों से उनका घर छीन लिया है। इनमें से कुछ शहर छोड़कर चले गए हैं। जो नहीं जा सके हैं उन्होंने यहाँ वहाँ डेरा डाल लिया है।

    उत्तर:यह हाल किसी भी नई बस्ती में हो सकता है। आज हर बड़े शहर में लाखों की संख्या में फ्लैट बन रहे हैं। इन फ्लैटों को बनाने के लिए जंगल साफ किए जा रहे हैं और ताल तलैयों को भरा जा रहा है। इस कारण से असंख्य पशु पक्षियों से उनका घर छीन लिया जा रहा है। अधिकाँश पशु पक्षी फिर वहाँ से कहीं और चले जाते हैं। जो नहीं जा पाते हैं वे इंसानों के मकानों में ही अपना डेरा डाल देते हैं।

  2. शेख अयाज के पिता बोले, ‘नहीं, यह बात नहीं है। मैंने एक घरवाले को बेघर कर दिया है। उस बेघर को कुएँ पर उसके घर छोड़ने जा रहा हूँ।‘ इन पंक्तियों में छिपी हुई भावना को स्पष्ट कीजिए।

    उत्तर:शेख अयाज के पिता में अन्य जीवों के लिए सम्मान की भावना थी। उन्हें लगा कि चींटी को बेघर करना अच्छी बात नहीं है। इसलिए वे उस चींटी को कुएँ पर छोड़ने जा रहे थे ताकि किसी पाप से बच सकें।

निदा फाजली

अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक दो पंक्तियों में दीजिए:
  1. बड़े-बड़े बिल्डर समुद्र को पीछे क्यों धकेल रहे थे?

    उत्तर:बड़े-बड़े बिल्डर समुद्र को पीछे इसलिए धकेल रहे थे ताकि वे मकान बनाने के लिए जमीन हथिया सकें।

  1. लेखक का घर किस शहर में था?

    उत्तर:ग्वालियर

  1. जीवन कैसे घरों में सिमटने लगा है?

    उत्तर:जीवन अब माचिस जैसे छोटे घरों में सिमटने लगा है।

  1. कबूतर परेशानी में इधर उधर क्यों फड़फड़ा रहे थे?

    उत्तर:कबूतर के दोनों अंडे फूट गए थे। इसलिए वे परेशानी में इधर उधर फड़फड़ा रहे थे।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर २५ – ३० शब्दों में लिखिए

  1. अरब में लश्कर को नूह के नाम से क्यों याद करते हैं?

    उत्तर:लश्कर ने एक बार एक कुत्ते को दुत्कार दिया था। इस पर उस कुत्ते ने जवाब दिया था कि कुत्तों और इंसानों में कोई फर्क नहीं होता, क्योंकि दोनों को एक ही भगवान ने बनाया है। इस कारण से लश्कर जिंदगी भर रोते रहे। इसलिए अरब में लश्कर को नूह के नाम से याद किया जाता है।

  1. लेखक की माँ किस समय पेड़ों के पत्ते तोड़ने के लिए मना करती थीं और क्यों?

    उत्तर:लेखक की माँ सूरज ढ़लने के बाद पेड़ों के पत्ते तोड़ने के लिए मना करती थीं। उनका मानना था कि इससे पेड़ रोने लगते हैं।

  1. प्रकृति में आए असंतुलन का क्या परिणाम हुआ?

    उत्तर:प्रकृति में आए असंतुलन का बुरा परिणाम हुआ है। अब अधिक गर्मी, अधिक सर्दी और बेवक्त बारिश होती है। अब भूकंप और तूफानों का भी खतरा बढ़ गया है।

  1. लेखक की माँ ने पूरे दिन का रोजा क्यों रखा?

    उत्तर:लेखक की माँ को लगता था कि उनकी वजह से कबूतर के अंडे टूट गये थे। वे अपराध बोध से ग्रसित थीं। उन्होंने अपनी गलती की माफी मांगने के लिए पूरे दो दिन का रोजा रखा।

  1. लेखक ने ग्वालियर से बंबई तक किन बदलावों को महसूस किया? पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।

    उत्तर:लेखक ने देखा कि ग्वालियर में नए मकानों की इतनी बाढ़ नहीं आई थी कि पशु पक्षियों के लिए जगह ही न बचे। लेकिन बंबई में जंगल के जंगल साफ हो गए थे और उनकी जगह नई बस्तियों ने ले ली थी। इसके कारण असंख्य पशु पक्षियों को बेघर होना पड़ा था।

  1. ‘डेरा डालने’ से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।

    उत्तर:डेरा डालने का मतलब होता है, कहीं पर अस्थाई निवास बनाना। इस पाठ में चिड़ियों द्वारा डेरा डालने की बात की गई है। आपने देखा होगा कि हमारे मकानों के छज्जों और रोशनदानों में अक्सर पंछी अपना घोसला बना लेते हैं। यह उनका प्राकृतिक निवास तो होता नहीं है। लेकिन उनके पास और कोई चारा भी नहीं है, क्योंकि इंसानों ने उनका प्राकृतिक निवास छीन लिया है।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर ५० – ६० शब्दों में दीजिए:
  1. बढ़ती हुई आबादी का पर्यावरण पर क्या प्रभाव पड़ा?

    उत्तर:बढ़ती हुई आबादी का पर्यावरण पर बुरा प्रभाव पड़ा है। बढ़ती हुई आबादी ने समन्दर को पीछे धकेल दिया हैहै और पेड़ों को अपने रास्ते से हटा दिया है। इससे कितने ही पशु पक्षी घर से बेघर हो गए हैं। अब इसके कारण मौसम में अजीबोगरीब बदलाव हो रहे हैं। कहीं सूखा पड़ रहा है तो कहीं बाढ़ आ रही है। पर्यावरण का संतुलन बुरी तरह से बिगड़ चुका है।

  1. लेखक की पत्नी को खिड़की में जाली क्यों लगवानी पड़ी?

    उत्तर:लेखक के फ्लैट में कबूतरों एक घोंसला है जिसमें छोटे-छोटे बच्चे हैं। उन्हें दाना खिलाने के लिए बड़े कबूतर दिन में कई बार आया जाया करते थे। इससे लेखक की दिनचर्या में विघ्न पड़ता था। रोज-रोज की परेशानी से तंग आकर लेखक की पत्नी को खिड़की में जाली लगवानी पड़ी, ताकि कबूतर फिर से उन्हें तंग न कर पाएँ।

  1. समुद्र के गुस्से की क्या वजह थी? उसने अपना गुस्सा कैसे निकाला?

    उत्तर:समुद्र को जब जगह कम पड़ने लगी तो पहले तो वह अपनी टाँगें समेटकर बैठ गया। और जगह कम पड़ी तो फिर उकड़ू होकर बैठ गया। और जगह कम पड़ी तो वह खड़ा हो गया। जब उसे ठीक से खड़े होने की जगह भी नहीं मिली तो उसे गुस्सा आ गया। उसने अपना गुस्सा बड़े भयानक रूप से निकाला। उसने तीन जहाजों को उठाकर यहाँ वहाँ पटक दिया।

  2. ‘मट्टी से मट्टी मिले,
    खो के सभी निशान,
    किसमें कितना कौन है,
    कैसे हो पहचान’
    इन पंक्तियों के माध्यम से लेखक क्या कहना चाहता है? स्पष्ट कीजिए।

    उत्तर:सभी जीव मिट्टी से बने हुए हैं और मरने के बाद सब मिट्टी में मिल जाते हैं। जीव विज्ञान में हमने पढ़ा है कि किस तरह से कुछ अजैविक पदार्थों के मेल से एक जीव का निर्माण होता है और मरने के बाद वे सारे पदार्थ अपघटन की क्रिया द्वारा फिर से वातावरण में वापस हो जाते हैं। मिट्टी को देखकर कोई भी नहीं पकड़ सकता कि इसमें किन किन जीवों से पदार्थ आए हैं। मनुष्य होने के नाते हम इस घमंड में रहते हैं हम अन्य जीवों की तुलना में सर्वश्रेष्ठ हैं। लेकिन मूल तौर पर सभी जीवों का महत्व एक समान है।

निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए:

  1. नेचर की सहनशक्ति की एक सीमा होती है। नेचर के गुस्से का एक नमूना कुछ साल पहले बंबई में देखने को मिला था।

    उत्तर:नेचर हमारी गलतियों को बहुत हद तक बर्दाश्त करता है। लेकिन जब हम वो हदें पार कर जाते हैं तो फिर नेचर अपना गुस्सा दिखाता है। यह हमें प्राकृतिक विपदाओं और उनसे आई तबाही के रूप में दिखता है।

  1. जो जितना बड़ा होता है उसे उतना ही कम गुस्सा आता है।

    उत्तर:छोटे प्राणियों और छोटे दिल के लोगों को जल्दी गुस्सा आता है। लेकिन उनका गुस्सा भी क्षणिक होता है। बड़े प्राणियों और बड़े दिल वाले लोगों को देर से गुस्सा आता है। लेकिन जब उन्हें गुस्सा आता है तो फिर सामने वाले की खैर नहीं होती।

  1. इस बस्ती ने न जाने कितने परिंदों-चरिंदों से उनका घर छीन लिया है। इनमें से कुछ शहर छोड़कर चले गए हैं। जो नहीं जा सके हैं उन्होंने यहाँ वहाँ डेरा डाल लिया है।

    उत्तर:यह हाल किसी भी नई बस्ती में हो सकता है। आज हर बड़े शहर में लाखों की संख्या में फ्लैट बन रहे हैं। इन फ्लैटों को बनाने के लिए जंगल साफ किए जा रहे हैं और ताल तलैयों को भरा जा रहा है। इस कारण से असंख्य पशु पक्षियों से उनका घर छीन लिया जा रहा है। अधिकाँश पशु पक्षी फिर वहाँ से कहीं और चले जाते हैं। जो नहीं जा पाते हैं वे इंसानों के मकानों में ही अपना डेरा डाल देते हैं।

  1. शेख अयाज के पिता बोले, ‘नहीं, यह बात नहीं है। मैंने एक घरवाले को बेघर कर दिया है। उस बेघर को कुएँ पर उसके घर छोड़ने जा रहा हूँ।‘ इन पंक्तियों में छिपी हुई भावना को स्पष्ट कीजिए।

    उत्तर:शेख अयाज के पिता में अन्य जीवों के लिए सम्मान की भावना थी। उन्हें लगा कि चींटी को बेघर करना अच्छी बात नहीं है। इसलिए वे उस चींटी को कुएँ पर छोड़ने जा रहे थे ताकि किसी पाप से बच सकें।

रवीन्द्र केलेकर

पतझर में टूटी पत्तियाँ

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक दो पंक्तियों में दीजिए:
  1. शुद्ध सोना और गिन्नी का सोना अलग क्यों होता है?

    उत्तर:शुद्ध सोने में कोई मिलावट नहीं होती, लेकिन गिन्नी के सोने में ताँबा मिला होता है। शुद्ध सोने की तुलना में गिन्नी का सोना अधिक मजबूत और उपयोगी होता है।

  1. प्रैक्टिकल आइडियलिस्ट किसे कहते हैं?

    उत्तर:जो लोग शुद्ध आदर्श में थोड़ी व्यावहारिकता मिलाकर काम चलाते हैं, उन्हें प्रैक्टिकल आइडियलिस्ट कहते हैं।

  1. पाठ के संदर्भ में शुद्ध आदर्श क्या हैं?

    उत्तर:शुद्ध आदर्श वैसा आचार विचार है जिसने इसका पालन करने वालों का उत्थान तो किया ही है साथ में अन्य लोगों का भी उत्थान किया है।

  1. लेखक ने जापानियों के दिमाग में ‘स्पीड’ का इंजन लगने की बात क्यों कही है?

    उत्तर:जापानियों ने अमेरिका से प्रतिस्पर्धा के चक्कर में अपने दिमाग को और तेज दौड़ाना शुरु कर दिया ताकि जापान हर मामले में अमेरिका से आगे निकल सके। इसलिए लेखक ने जापानियों के दिमाग में ‘स्पीड’ का इंजन लगने की बात कही है।

  2. जापानी में चाय पीने की विधि को क्या कहते हैं?

    उत्तर:टी सेरेमनी

  1. जापान में जहाँ चाय पिलाई जाती है, उस स्थान की क्या विशेषता है?

    उत्तर:जापान में जहाँ चाय पिलाई जाती है वहाँ गजब की शांति होती है। माहौल इतना शांत होता है कि पानी के खलबलाने की आवाज भी सुनाई देती है।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर २५ – ३० शब्दों में लिखिए:

  1. शुद्ध आदर्श की तुलना सोने से और व्यावहारिकता की तुलना ताँबे से क्यों की गई है?

    उत्तर:शुद्ध सोना बहुत कीमती होता है। ताँबे के साथ मिलकर यह ताँबे के महत्व को बढ़ा देता है। जबकी दूसरी ओर ताँबा सोने की कीमत को घटा देता है। शुद्ध आदर्श जब व्यावहारिकता के साथ मिलता है तो इससे व्यावहारिकता की कीमत बढ़ जाती है। लेकिन व्यावहारिकता का ठीक उलटा प्रभाव पड़ता है। इसलिए शुद्ध आदर्श की तुलना सोने से और व्यावहारिकता की तुलना ताँबे से की गई है।

  1. चाजीन ने कौन सी क्रियाएँ गरिमापूर्ण ढ़ंग से पूरी की?

    उत्तर:चाजीन ने बड़े अदब से मेहमानों का स्वागत किया और उन्हें बैठने की जगह दिखाई। फिर उसने अंगीठी जलाई और उसपर चायदानी रखी। इसके बाद उसने बरतनों को चमकाया। यह सारी क्रियाएँ उसने गरिमापूर्ण ढ़ंग से पूरी की।

  2. ‘टी सेरेमनी’ में कितने आदमियों को प्रवेश दिया जाता था और क्यों?

    उत्तर:टी सेरेमनी में शांति का अत्यधिक महत्व होता है। इसलिए वहाँ पर एक बार में तीन से अधिक व्यक्तियों को प्रवेश नहीं दिया जाता है।

  1. चाय पीने के बाद लेखक ने स्वयं में क्या परिवर्तन महसूस किया?

    उत्तर:चाय पीने के बाद लेखक को अपार शांति महसूस हुई। उसे लगा कि उसके दिमाग की रफ्तार बंद हो चुकी थी। उसके मन में और आस पास सब कुछ शून्य सा हो गया था।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर ५० – ६० शब्दों में लिखिए:
  1. गांधीजी में नेतृत्व की अद्भुत क्षमता थी; उदाहरण सहित इस बात की पुष्टि कीजिए।

    उत्तर:गांधीजी ने अफ्रीका में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ लोगों को इकट्ठा किया था। जब वे भारत आए थे तब तक स्वाधीनता संग्राम की लहर पूरे भारत में नहीं फैल पाई थी। गांधीजी के अथक प्रयासों के कारण पूरे भारत की जनता उनके साथ हो गई थी। असहयोग आंदोलन और नमक आंदोलन की अपार सफलता से पता चलता है कि उनमें नेतृत्व की अद्भुत क्षमता थी।

  1. आपके विचार से कौन से ऐसे मूल्य हैं जो शाश्वत हैं? वर्तमान समय में इन मूल्यों की प्रासंगिकता स्पष्ट कीजिए।

    उत्तर:आदर्शों के मूल्य शाश्वत हैं। आज की कड़ी प्रतिस्पर्धा वाली जिंदगी में अधिकतर लोगों को ऐसा लगने लगा हि की आज आदर्श बेमानी हो गए हैं और व्यावहारिकता ही जीत की तरफ ले जाती है। लेकिन जो लोग वाकई सफलता के शिखर पर पहुँचे हैं, उनके उदाहरण से हम देख सकते हैं कि आदर्श का आज भी उतना ही महत्व है जितना पहले था।

  1. अपने जीवन की किसी ऐसी घटना का उल्लेख कीजिए जब:
    1. शुद्ध आदर्श से आपको हानि लाभ हुआ हो।

      उत्तर:एक बार मैंने फुटपाथ पर बैठे एक भूखे बच्चे को अपना टिफिन दे दिया था। उस दिन मुझे भूखा रहना पड़ा लेकिन अंदर से एक असीम सी संतुष्टि का अहसास हुआ। मुझे लगा कि मुझे अपना भोजन दूसरे को देकार लाभ ही हुआ।

  1. शुद्ध आदर्श में व्यावहारिकता का पुट देने से लाभ हुआ।

    उत्तर:मुझे हमेशा से पसंद है कि जब मैं नई क्लास में जाऊँ तो मेरे लिए नई किताबें खरीदी जाएं। लेकिन कक्षा 9 में प्रवेश के समय मुझे एक मित्र की पुरानी किताबें आधे दाम पर मिल गईं। मुझे कुछ अच्छा नहीं लगा, लेकिन बचत करने के खयाल से मैंने उसकी सारी किताबें खरीद लीं। इससे मुझे फायदा हुआ।

  1. ‘शुद्ध सोने में ताँबे की मिलावट या ताँबे में सोना’, गांधीजी के आदर्श और व्यवहार के संदर्भ में यह बात किस तरह झलकती है? स्पष्ट कीजिए।

    उत्तर:गांधीजी ताँबे में सोना मिलाने वाले इंसान थे। इससे वे ताँबे की कीमत बढ़ा देते थे। वे व्यावहारिकता में आदर्शों को मिलाते थे। इसे समझने के लिए हम नमक आंदोलन का उदाहरण ले सकते हैं। आंदोलन का उद्देश्य था अंग्रजों को यहाँ की जनता की ताकत दिखाना। नमक एक मामूली सी चीज है लेकिन इसे हिंदुस्तान का हर आदमी रोज इस्तेमाल करता है। इससे हिंदुस्तान का हर अमीर गरीब प्रभावित होता है। नमक जैसी मामूली चीज को गांधीजी ने अपना हथियार बना लिया। जो अंग्रेज पहले गांधीजी के नमक आंदोलन की योजना पर हँस रहे थे, वे उस आंदोलन की सफलता को देखकर गांधीजी का लोहा मान गए थे।

  1. ‘गिरगिट’ कहानी में आपने समाज में व्याप्त अवसरानुसार अपने व्यवहार को पल-पल में बदल डालने की एक बानगी देखी। इस पाठ के अंश ‘गिन्नी का सोना’ के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए कि ‘आदर्शवादिता’ और ‘व्यावहारिकता’ इनमें से जीवन में किसका महत्व है?

    उत्तर:जीवन में आदर्शवादिता और व्यावहारिकता दोनों का महत्व है। लेकिन प्रैक्टिकल आइडियलिस्ट की तरह हमें व्यावहारिकता में आदर्शवादिता मिलाने से बचना चाहिए। इसकी जगह हमें गांधीजी की तरह व्यावहारिकता में आदर्शवादिता मिलाने की सीख लेनी चाहिए।

  1. लेखक के मित्र ने मानसिक रोग के क्या-क्या कारण बताए? आप इन कारणों से कहाँ तक सहमत हैं?

    उत्तर:लेखक के मित्र ने भागदौड़ भरी जिंदगी को मानसिक रोग का कारण बताया। यह बात सही है कि लोग आजकल चल नहीं रहे हैं, बल्कि भाग रहे हैं। आप किसी भी शहर की सड़कों पर सुबह 9 बजे नजर डालिए तो पता लगेगा कि हर कोई कहीं न कहीं भाग रहा है। लोग अत्यधिक तनाव में होने की वजह से बात बात पर झल्लाने लगते हैं। रोज-रोज की उत्तरजीविता के दवाब के कारण मानसिक रोग का खतरा बढ़ गया है।

  1. लेखक के अनुसार सत्य केवल वर्तमान है, उसी में जीना चाहिए। लेखक ने ऐसा क्यों कहा होगा? स्पष्ट कीजिए।

    उत्तर:लेखक का कहना है की हमारा भूतकाल सत्य नहीं है, क्योंकि वह बीत चुका है। भागे हुए साँप की लकीर पर लाठी पीटने से कोई फायदा नहीं होता है। लेखक का कहना है कि भविष्य तो अनिश्चित है, इसलिए उसके बारे में तनाव पालने से भी कोई लाभ नहीं होता है। वर्तमान में जीना सीखने से ही सही सुख मिलता है। वर्तमान पर हम बहुत हद तक नियंत्रण कर सकते हैं और वर्तमान के सुख दुख की पूरी-पूरी अनुभूति भी कर सकते हैं।

निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए:

  1. समाज के पास अगर शाश्वत मूल्यों जैसा कुछ है तो वह आदर्शवादी लोगों का ही दिया हुआ है।

    उत्तर:आदर्शवादी लोग कभी भी अपने बारे में नहीं सोचते हैं। वे हमेशा दूसरों को ऊपर उठाने की कोशिश करते हैं। इस प्रक्रिया में उनका कद भी ऊँचा हो जाता है और पूरे समाज को दीर्घकालीन लाभ होता है। व्यावहारिक लोग तो केवल अपने मतलब की बात करते हैं, जिससे समाज का कोई भला नहीं होता। इसलिए ऐसा कहा जा सकता है कि समाज के पास अगर शाश्वत मूल्यों जैसा कुछ है तो वह आदर्शवादी लोगों का ही दिया हुअ है।

  1. जब व्यावहारिकता का बखान होने लगता है तब ‘प्रैक्टिकल आइडियलिस्टों’ के जीवन से आदर्श धीरे-धीरे पीछे हटने लगते हैं और उनकी व्यावहारिक सूझ-बूझ ही आगे आने लगती है।

    उत्तर:लोगों की आदत होती है कि क्षणिक सफलता के मद में वे प्रैक्टिकल आइडियलिस्टों की सराहना करने लगते हैं। इस प्रशंसा के मद में चूर होकर, प्रैक्टिकल आइडियलिस्ट धीरे-धीरे आदर्शों से दूर होने लगते हैं। एक समय आता है जब केवल उनकी व्यावहारिक बुद्धि ही दिखती है।

  1. हमारे जीवन की रफ्तार बढ़ गई है। यहाँ कोई चलता नहीं बल्कि दौड़ता है। कोई बोलता नहीं, बल्कि बकता है। हम जब अकेले पड़ते हैं तब अपने आपसे लगातार बड़बड़ाते रहते हैं।

    उत्तर:यह टिप्पणी आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी के बारे में है। आप किसी भी शहर की सड़कों पर सुबह 9 बजे नजर डालिए तो पता लगेगा कि हर कोई कहीं न कहीं भाग रहा है। लोग अत्यधिक तनाव में होने की वजह से बात बात पर झल्लाने लगते हैं।

  1. सभी क्रियाएँ इतनी गरिमापूर्ण ढ़ंग से कीं कि उसकी हर भंगिमा से लगता था मानो जयजयवंती के सुर गूँज रहे हों।

    उत्तर:यह पंक्ति चाजीन द्वारा चाय तैयार करने की प्रक्रिया के बारे में है। चाजीन हर काम को एक तयशुदा विधि से बड़ी दक्षता के साथ कर रहा था। उसके हर क्रियाकलाप में इतना अच्छा तालमेल था कि लगता था कि मधुर संगीत बज रहा हो। यहाँ पर लेखक ने राग जयजयवंती का उदाहरण इसलिए दिया क्योंकि यह राग कुछ मुश्किल रागों में से है जिसपर महारत हासिल करने में संगीतकार को वर्षों लग जाते हैं।

हबीब तनवीर

कारतूस

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक दो पंक्तियों में दीजिए:
  1. कर्नल कालिंज का खेमा जंगल में क्यों लगा हुआ था?

    उत्तर:कर्नल कालिंज का खेमा जंगल में वजीर अली पर नजर रखने और उसे गिरफ्तार करने के लिए लगा हुआ था।

  1. वजीर अली से सिपाही क्यों तंग आ चुके थे?

    उत्तर:वजीर अली हमेशा सिपाहियों की आँखों में धूल झोंकने में कामयाब हो जाता था। इसलिए उससे सिपाही तंग आ चुके थे।

  1. कर्नल ने सवार पर नजर रखने के लिए क्यों कहा?

    उत्तर:कर्नल को यह आशंका थी कि कहीं सवार कोई गड़बड़ न कर दे। इसलिए उसने सवार पर नजर रखने के लिए कहा।

  1. सवार ने क्यों कहा कि वजीर अली की गिरफ्तारी बहुत मुश्किल है?

    उत्तर:सवार ने कहा कि वजीर अली एक जाँबाज सिपाही है, इसलिए उसे पकड़ना बहुत मुश्किल है।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर २५ – ३० शब्दों में लिखिए:

  1. वजीर अली के अफसाने सुनकर कर्नल को रॉबिनहुड की याद क्यों आ जाती थी?

    उत्तर:वजीर अली के दिल में अंग्रेजों के लिए बहुत नफरत थी। वह अवध से अंग्रेजों को उखाड़ फेंकने में लगभग कामयाब हो गया था। इसलिए उसके अफसाने सुनकर कर्नल को रॉबिनहुड की याद आ जाती थी।

  1. सआदत अली कौन था? उसने वजीर अली की पैदाइश को अपनी मौत क्यों समझा?

    उत्तर:सआदत अली आसिफउद्दौला का भाई था, लेकिन अपने भाई का दुश्मन भी था। आसिफउद्दौला का कोई वारिस नहीं होता तो सआदत अली गद्दी पर बैठ सकता था। लेकिन वजीर अली के जन्म लेने से उसकी इस उम्मीद पर पानी फिर गया था। इसलिए वजीर अली की पैदाइश को वह अपनी मौत समझ रहा था।

  1. सआदत अली को अवध के तख्त पर बिठाने के पीछे कर्नल का क्या मकसद था?

    उत्तर:सआदत अली आराम से अंग्रेजों के हाथ की कठपुतली बन गया था। वह एक तय वजीफे के बदले में अपनी जायदाद अंग्रेजों को सौंप चुका था। इसलिए कर्नल ने उसे अवध के तख्त पर बिठाया था।

  1. कंपनी के वकील का कत्ल करने के बाद वजीर अली ने अपनी हिफाजत कैसे की?

    उत्तर:कंपनी के वकील का कत्ल करने के बाद वजीर अली आजमगढ़ की तरफ भागा। वहाँ आजमगढ़ के शासकों ने उसे घाघरा तक भागने में मदद की। फिर वह पास के जंगलों में छुप गया। इस तरह वजीर अली ने अपनी हिफाजत की।

  1. सवार के जाने के बाद कर्नल क्यों हक्का बक्का रह गया?

    उत्तर:वह सवार बड़ी ही निडरता से कर्नल के पास आया और कारतूस मांग कर चला गया। जाते-जाते जब उसने अपना परिचय वजीर अली के रूप में दिया तो कर्नल को उसके दुस्साहस पर ताज्जुब हुआ। इसलिए कर्नल हक्का बक्का रह गया।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर ५० – ६० शब्दों में लिखिए:
  1. लेफ़्टीनेंट को ऐसा क्यों लगा कि कंपनी के खिलाफ सारे हिंदुस्तान में एक लहर दौड़ गई है?

    उत्तर:कर्नल ने लेफ़्टीनेंट को बताया कि किस तरह से विभिन्न प्रांतों के नवाबों ने अफगानिस्तान के शासक को अंग्रेजों पर हमला करने के लिए निमंत्रण दिया था। इससे पता चला कि भारत के एक बड़े हिस्से में अंग्रेजों के खिलाफ भावना भड़की हुई थी। इसलिए लेफ्टीनेंट को ऐसा लगा कि कंपनी के खिलाफ सारे हिंदुस्तान में एक लहर दौड़ गई है।

  2. वजीर अली ने कंपनी के वकील का कत्ल क्यों किया?

    उत्तर:वजीर अली को बनारस पहुँचाने के बाद अंग्रेजों ने उसे तीन लाख रुपए सालाना वजिफा देना शुरु किया। बीच बीच में गवर्नर जनरल उसे कलकत्ता बुलाया करता था। इससे वजीर अली नाराज था। उसने यह शिकायत कंपनी के वकील से की तो कंपनी के वकील ने उसे बुरा भला कहा। इसी बात पर उसने कंपनी के वकील का कतल कर दिया।

  1. सवार ने कर्नल से कारतूस कैसे हासिल किए?

    उत्तर:सवार बड़े आराम से कर्नल के पास गया। फिर उसने कर्नल से वहाँ छावनी लगाने का कारण पूछा। फिर उसने बताया कि उसे वजीर अली को गिरफ्तार करने के लिए कारतूस चाहिए। इस तरह सवार ने कर्नल से कारतूस हासिल कर लिए।

  1. वजीर अली एक जाँबाज सिपाही था, कैसे? स्पष्ट कीजिए।

    उत्तर:वजीर अली के साथ मुट्ठी भर लोग ही थे। फिर भी वह अंग्रेजों को कड़ी टक्कर दे रहा था। हद तो तब हो गई जब वह अकेला जाकर कर्नल से कारतूस भी ले आया। इससे पता चलता है कि वजीर अली एक जाँबाज सिपाही था।

निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए:

  1. मुट्ठीभर आदमी और ये दमखम।

    उत्तर:कर्नल कई सालों से अपनी पूरी फौज लिए वजीर अली का पीछा कर रहा था। फिर भी वजीर अली उसके हाथ नहीं आ रहा था। इसलिए कर्नल ने कहा, ‘मुट्ठीभर आदमी और ये दमखम।‘ वह एक तरह से वजीर अली की बहादुरी से बहुत प्रभावित था।

  1. गर्द तो ऐसे उड़ रही है जैसे कि पूरा एक काफिला चला आ रहा हो मगर मुझे तो एक ही सवार नजर आता है।

    उत्तर:सिपाही ने जब बहुत ज्यादा धूल उड़ते देखा तो उसे लगा की कोई बड़ी फौज आ रही होगी। लेकिन गौर से देखने पर पता चला कि एक अकेला सवार आ रहा था। सवार का घोड़ा तेजी से टाप भर रहा था इसलिए अत्यधिक धूल उड़ा रहा था।

राम और कस्तूरी में क्या समानता है?

राम और कस्तूरी में क्या समानता है? (a) दोनों तरल पदार्थ हैं।

कस्तूरी क्या होती है Class 10?

कस्तूरी नाम मूलतः एक ऐसे पदार्थ को दिया जाता है जिसमें एक तीक्ष्ण गंध होती है और जो नर कस्तूरी मृग के पीछे/गुदा क्षेत्र में स्थित एक ग्रंथि से प्राप्त होती है। इस पदार्थ को प्राचीन काल से इत्रके लिए एक लोकप्रिय रासायनिक पदार्थ के रूप में इस्तेमाल किया जाता रहा है और दुनिया भर के सबसे महंगे पशु उत्पादों में से एक है।