कबीर साखी ऐसी बाँणी बोलिए मन का आपा खोई। बात करने की कला ऐसी
होनी चाहिए जिससे सुनने वाला मोहित हो जाए। प्यार से बात करने से अपने मन को शांति तो मिलती ही है साथ में दूसरों को भी सुख का अनुभव होता है। आज के जमाने में भी कम्युनिकेशन का बहुत महत्व है। किसी भी क्षेत्र में तरक्की करने के लिए वाक्पटुता की अहम भूमिका होती है। कस्तूरी कुण्डली बसै मृग ढ़ूँढ़ै बन माहि। हिरण की नाभि में कस्तूरी होता है, लेकिन हिरण उससे अनभिज्ञ होकर उसकी सुगंध के कारण कस्तूरी को पूरे जंगल में ढ़ूँढ़ता है। ऐसे ही भगवान हर किसी के अंदर वास करते हैं फिर भी हम उन्हें देख नहीं पाते हैं। कबीर का कहना है कि तीर्थ स्थानों में भटक कर भगवान को ढ़ूँढ़ने से अच्छा है कि हम उन्हें अपने भीतर तलाश करें। जब मैं
था तब हरि नहीं अब हरि हैं मैं नाँहि। जब मनुष्य का मैं यानि अहँ उसपर हावी होता है तो उसे ईश्वर नहीं मिलते हैं। जब ईश्वर मिल जाते हैं तो मनुष्य का अस्तित्व नगण्य हो
जाता है क्योंकि वह ईश्वर में मिल जाता है। ये सब ऐसे ही होता है जैसे दीपक के जलने से सारा अंधेरा दूर हो जाता है। सुखिया सब संसार है खाए अरु सोवै। पूरी दुनिया मौज मस्ती करने में मशगूल रहती है और
सोचती है कि सब सुखी हैं। लेकिन सही मायने में सुखी तो वो है जो दिन रात प्रभु की आराधना करता है। बिरह भुवंगम तन बसै मन्त्र न लागै कोई। जिस तरह से प्रेमी के बिरह
के काटे हुए व्यक्ति पर किसी भी मंत्र या दवा का असर नहीं होता है, उसी तरह भगवान से बिछड़ जाने वाले जीने लायक नहीं रह जाते हैं; क्योंकि उनकी जिंदगी पागलों के जैसी हो जाती है। निंदक नेड़ा राखिये, आँगणि कुटी बँधाइ। जो आपका आलोचक हो उससे मुँह नहीं मोड़ना चाहिए। यदि संभव हो तो उसके लिए अपने पास ही रहने का समुचित प्रबंध कर देना चाहिए। क्योंकि जो आपकी आलोचना करता है वो बिना पानी और साबुने के आपके दुर्गुणों को दूर कर देता है। पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुवा, पंडित भया न कोइ। मोटी मोटी किताबें पढ़ने से कोई ज्ञानी नहीं बन पाता है। इसके बदले में अगर किसी ने प्रेम का एक अक्षर भी पढ़ लिया तो वो बड़ा ज्ञानी बन जाता है। विद्या के साथ साथ व्यावहारिकता भी जरूरी होती है। हम घर जाल्या आपणाँ,
लिया मुराड़ा हाथि। लोगों में यदि प्रेम और भाईचारे का संदेश फूंकना हो तो उसके लिए आपको पहले अपने मोह माया और सांसारिक बंधन त्यागने होंगे। कबीर जैसे साधु के पथ पर चलने की योग्यता पाने के लिए यही सबसे बड़ी
कसौटी है। उत्तर:जब हम मीठी वाणी में बोलते हैं तो इससे सुनने वाले को अच्छा लगता है और वह हमारी बात अच्छे तरीके से सुनता है। सुनने वाला हमारे बारे में अपनी अच्छी राय बनाता है जिसके कारण हम आत्मसंतोष का अनुभव कर सकते हैं। सही तरीके से
बातचीत होने के कारण सुनने वाले और बोलने वाले दोनों को सुख की अनुभूति होती है। उत्तर:इस साखी में कबीर ने दीपक की तुलना उस ज्ञान से की है जिसके कारण हमारे अंदर का अहं मिट जाता है। कबीर का कहना है कि जबतक हमारे अंदर अहं व्याप्त है तब तक हम परमात्मा को नहीं पा सकते हैं। लेकिन जैसे ही ज्ञान का प्रकाश जगता है वैसे ही हमारे अंदर से अहंरूपी अंधकार समाप्त हो
जाता है। उत्तर:ईश्वर कण-कण में व्याप्त है फिर भी हम उसे देख नहीं पाते क्योंकि हम उसे उचित जगह पर तलाशते ही नहीं हैं। ईश्वर तो हमारे भीतर है लेकिन हम उसे अपने भीतर ढ़ूँढ़ने की बजाय अन्य स्थानों; जैसे तीर्थ स्थल, मंदिर, मस्जिद आदि में ढ़ूँढ़ते हैं। उत्तर: कबीर के अनुसार वह व्यक्ति दुखी है जो हमेशा भोगविलास और दुनियादारी में उलझा रहता है। जो व्यक्ति सांसारिक झंझटों से परे होकर ईश्वर की आराधना करता है वही सुखी है। यहाँ पर ‘सोने’ का मतलब है ईश्वर के अस्तित्व से अनभिज्ञ रहना। ठीक इसके उलट, ‘जागने का मतलब है अपनी मन की आँखों को खोलकर ईश्वर की आराधना करना। उत्तर:अपने
स्वभाव को निर्मल रखने के लिए बड़ा ही कारगर उपाय सुझाया है। कबीर ने कहा है कि हमें अपने आलोचक से मुँह नहीं फेरना चाहिए। कबीर ने कहा है कि हो सके तो आलोचक को अपने आस पास ही रहने का प्रबंध कर दें। ऐसा होने से आलोचक हमारी कमियो को बताता रहेगा ताकि हम उन्हें दूर कर सकें। इससे हमारा स्वभाव निर्मल हो जाएगा। उत्तर:इस पंक्ति के द्वारा कबीर ने कहा है कि यदि कोई व्यक्ति प्रेम का पाठ
पढ़ ले तो वह ज्ञानी हो जाएगा। प्रेम और भाईचारे के पाठ से बढ़कर कोई ज्ञान नहीं है। मोटी-मोटी किताबें पढ़कर भी वह ज्ञान नहीं मिल पाता। उत्तर:कबीर की साखियाँ अवधी भाषा की स्थानीय बोली में लिखी गई है। ऐसी बोली बनारस के आसपास के इलाकों में बोली जाती है। यह भाषा आम लोगों के बोलचाल की भाषा हुआ करती थी। कबीर ने अपनी साखियों में रोजमर्रा की वस्तुओं को उपमा के तौर पर इस्तेमाल किया है। अन्य
शब्दों में कहा जाए तो कबीर की भाषा ठेठ है। इस तरह की भाषा किसी भी ज्ञान को जनमानस तक पहुँचाने के लिए अत्यंत कारगर हुआ करती थी। कबीर ने अपनी रचना को दोहों के रूप में लिखा है। एक दोहे में दो पंक्तियाँ होती हैं। इसलिए गूढ़ से गूढ़ बात को भी बड़ी सरलता से कम शब्दों में कहा जा सकता है। उत्तर:जब बिरह का साँप तन के अंदर बैठा हो तो कोई भी मंत्र काम नहीं आता है। यहाँ पर कवि
ने प्रेमी के बिरह से पीड़ित व्यक्ति की तुलना ऐसे व्यक्ति से की जिससे ईश्वर दूर हो जाते हैं। ऐसा व्यक्ति हमेशा व्यथा में ही रहता है क्योंकि उसपर किसी भी दवा या उपचार का असर नहीं होता है। उत्तर:हिरण की नाभि में कस्तूरी रहता है जिसकी सुगंध चारों ओर फैलती है। हिरण इससे अनभिज्ञ पूरे वन में कस्तूरी की खोज में मारा मारा फिरता है। इस दोहे में कबीर ने हिरण को उस मनुष्य के समान माना है जो ईश्वर की खोज में दर दर भटकता
है। कबीर कहते हैं कि ईश्वर तो हम सबके अंदर वास करते हैं लेकिन हम उस बात से अनजान होकर ईश्वर को तीर्थ स्थानों के चक्कर लगाते रहते हैं। उत्तर:जब मनुष्य का मैं यानि अहँ उसपर हावी होता है तो उसे ईश्वर नहीं मिलते हैं। जब ईश्वर मिल जाते हैं तो मनुष्य का अस्तित्व नगण्य हो जाता है क्योंकि वह ईश्वर में मिल जाता है। ये सब ऐसे ही होता है जैसे दीपक के जलने से सारा अंधेरा दूर हो जाता है। उत्तर:मोटी मोटी किताबें पढ़ने से कोई ज्ञानी नहीं बन पाता है। इसके बदले में अगर किसी ने प्रेम का एक अक्षर भी पढ़ लिया तो वो बड़ा ज्ञानी बन जाता है। विद्या के साथ साथ व्यावहारिकता भी जरूरी होती है। मीरा पद हरि आप हरो जन री भीर। इस पद में मीरा ने भगवान विष्णु की भक्तवात्सल्यता का चित्रण किया है। हरि विष्णु का एक प्रचलित नाम है। मीरा ने कई उदाहरण देकर यह
बताया है कि कैसे भगवान विष्णु भक्तों की पीड़ा हरते हैं। द्रोपदी री लाज राखी, आप बढ़ायो चीर। जब द्रौपदी की लाज संकट में पड़ गई थी तो हरि ने कृष्ण के अवतार में अनंत साड़ी प्रदान करके द्रौपदी की लाज बचाई थी। भगत कारण रूप नरहरि, धरयो आप सरीर। प्रह्लाद भी विष्णु के अनन्य भक्तों में से एक थे। जब प्रह्लाद का जीवन संकट में पड़ गया था तब विष्णु ने नरसिंह का अवतार लेकर प्रह्लाद की रक्षा की थी। जब ऐरावत को मगरमच्छ ने पकड़ लिया था तो विष्णु ने
मगरमच्छ को मारकर ऐरावत की जान बचाई थी। दासी मीराँ लाल गिरधर, हरो म्हारी भीर॥ मीराबाई का कहना है कि जो भी सच्चे मन से हरि की आराधना करेगा हरि हमेशा उसका कष्ट दूर करेंगे। मीरा कहती हैं कि वो भी कृष्ण की दासी हैं। चूँकि कृष्ण हरि के ही रूप हैं इसलिए वो मीरा का भी दुख दूर करेंगे। स्याम म्हाने चाकर राखो जी, इन पंक्तियों में मीरा ने भक्ति की चरम सीमा का वर्णन किया है। वह कृष्ण की भक्ति में उनके यहाँ नौकर तक बनने को तैयार हैं। नौकरों की सामाजिक स्थिति से हम सभी पूरी तरह से परिचित हैं। उनकी बड़ी दयनीय दशा होती है। हर कोई उन्हें तिरस्कार से देखता है। फिर भी मीरा भगवान के यहाँ नौकर या दासी बनना चाहती हैं। इसमे मीरा को क्या क्या लाभ होने वाले हैं, इसका मीरा ने बड़ा ही सुंदर चित्रण किया है। जब मीरा बाग लगाएँगी तो उसी बहाने रोज उन्हें श्याम
के दर्शन होंगे। फिर वे भक्ति भाव से अभिभूत होकर वृन्दावन की संकरी गलियों में गोविंद की लीला गाती फिरेंगी। चाकरी से मीरा को तीन मुख्य फायदे होंगे। उन्हें दर्शन और सुमिरन खर्चे के लिए मिलेंगे और भाव और भक्ति की जागीर मिलेगी। मोर मुगट पीताम्बर सौहे, गल वैजंती माला। कृष्ण के उस रूप का वर्णन मीरा ने किया है जो जग जाहिर है। कृष्ण के पीले वस्त्र, मोर का मुकुट और गले में वैजयंती माला बहुत सुंदर लगती है। कृष्ण जब वृंदावन में इस रूप में गाय चराते
हैं तो उनका रूप मोहने वाला होता है। हिंदू संस्कृति में पीला रंग सूर्य के तेज और उत्तम स्वास्थ्य की निशानी मानी जाती है। पीला रंग बसंत के आगमन का भी सूचक है। इसलिए हमारे यहाँ पूजा में गेंदे के फूल का मुख्य स्थान रहता है। कृष्ण का गाय चराना भी हमारी पुरानी अर्थव्यवस्था का प्रतीक है। पुराने जमाने में पशुधन का बहुत महत्व होता था। कृष्ण की गाय चराने की प्रक्रिया उसी पशु धन की रक्षा और उसकी वृद्धि का सूचक है। ऊँचा, ऊँचा महल बणावं बिच बिच राखूँ बारी। अगली पंक्तियों में मीरा कहती हैं कि ऊँचे महलों में वो बगीचे बनवाएँगी। उन्हीं बगीचों में वे पूरे साज श्रृंगार करके कृष्ण के दर्शन करेंगी। अब मीरा का हृदय इतना अधीर हो गया है कि वे चाहती हैं कि भगवान उन्हें आधी रात में ही दर्शन दे दें। उत्तर:पहले पद में मीरा ने हरि को याद दिलाया है कि कैसे उन्होंने अपने कई भक्तों की मदद की थी। मीरा ने द्रौपदी, प्रह्लाद और ऐरावत के उदाहरण देते हुए हरि से विनती की है कि वे मीरा के दुख को भी दूर करें। उत्तर:मीराबाई कृष्ण के दर्शन करने का कोई भी मौका छोड़ना नहीं चाहती हैं। वे
चाहती हैं कि दिन रात श्याम उनके सामने ही रहें। इसलिए मीराबाई श्याम की नौकरी करना चाहती हैं ताकि उन्हें श्याम को बार-बार देखने का मौका मिले। उत्तर:कृष्ण के उस रूप का वर्णन मीरा ने किया है जो जग जाहिर है। कृष्ण के पीले वस्त्र, मोर का मुकुट और गले में वैजयंती माला बहुत सुंदर लगती है। कृष्ण जब वृंदावन में इस रूप में गाय चराते हैं तो उनका रूप मोहने वाला होता है। उत्तर:मीराबाई की भाषा में राजस्थान की बोली का पुट है क्योंकि वे राजस्थान की थीं। उन्होंने सामान्य बोलचाल में प्रयुक्त होने वाले शब्दों का प्रयोग किया है। मीरा के पद को आसानी से संगीतबद्ध किया जा सकता है। उनकी सरल शब्दावली के कारण मीरा के पद आसानी से लोगों की जुबान पर चढ़ जाते हैं। उत्तर:वे श्रीकृष्ण को
पाने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं। यहाँ तक कि वे कृष्ण के यहाँ दासी बनने को भी तैयार हैं। उत्तर:इन पंक्तियों में भगवान के महात्म्य का वर्णन है। ऐसा माना जाता है कि भगवान हर किसी के दुख को दूर करते हैं। जब द्रौपदी पर गहरा संकट आया था, उनकी लाज पर खतरा था तब भगवान ने उन्हें
कभी न खत्म होने वाली साड़ी प्रदान करके उनकी लाज बचाई थी। भगवान अपने भक्तों के दुख दूर करने के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते हैं। प्रह्लाद की जान बचाने के लिए तो भगवान ने नरसिंह का शरीर धारण कर लिया था। उत्तर:इन पंक्तियों में मीरा ने उस घटना का उल्लेख किया है जब ऐरावत एक मगरमच्छ के चंगुल में फँस गया था। भगवान ने समय पर आकर ऐरावत की जान बचाई थी। मीरा
चाहती हैं कि उसी तरह से भगवान आकर उनके दुख को भी दूर करें। चाकरी में दरसण पास्यूँ, सुमरण पास्यूँ खरची। उत्तर: इन पंक्तियों में भक्त की उस भावना का वर्णन है जब उसके मन में कोई भी छल कपट नहीं है बल्कि एक सीधी सी योजना है अपने आराध्य के दर्शण करने की। मीरा बताती हैं कि भगवान के यहाँ नौकरी करने से उन्हें क्या क्या लाभ मिलने वाले हैं। भगवान की नौकरी करते करते उन्हें मुफ्त में ही भगवान के दर्शण
होंगे। भगवान के सुमिरन का मौका तो जैसे जेब खर्च के समान होगा। और इन सबके कारण जो भक्ति उन्हें प्राप्त होगी वह तो उनके लिए किसी भी जागीर से कम नहीं होगी। बिहारी दोहे सोहत ओढ़ैं पीतु पटु स्याम, सलौनैं गात। इस दोहे में कवि ने कृष्ण के साँवले शरीर की सुंदरता का बखान किया है। कवि का कहना है कि कृष्ण के साँवले शरीर पर पीला वस्त्र ऐसी शोभा दे रहा है, जैसे नीलमणि पहाड़ पर सुबह की सूरज की किरणें पड़ रही हैं। कहलाने एकत बसत अहि मयूर, मृग बाघ। इस दोहे में कवि ने भरी दोपहरी से बेहाल जंगली जानवरों की हालत का चित्रण किया है। भीषण गर्मी से बेहाल जानवर एक ही स्थान पर बैठे हैं। मोर और सांप एक साथ बैठे हैं। हिरण और बाघ एक साथ बैठे हैं। कवि को लगता है कि गर्मी के कारण जंगल किसी तपोवन की तरह हो गया है। जैसे तपोवन में विभिन्न इंसान आपसी द्वेषों को भुलाकर एक साथ बैठते हैं, उसी तरह गर्मी से बेहाल ये पशु भी आपसी द्वेषों को भुलाकर एक साथ बैठे हैं। बतरस लालच लाल
की मुरली धरी लुकाइ। इस दोहे में कवि ने गोपियों द्वारा कृष्ण की बाँसुरी चुराए जाने का वर्णन किया है। कवि कहते हैं कि गोपियों ने कृष्ण की मुरली इस लिए छुपा दी है ताकि इसी बहाने उन्हें कृष्ण से बातें करने का मौका मिल जाए। साथ में गोपियाँ कृष्ण के सामने नखरे भी दिखा रही हैं। वे अपनी भौहों से तो कसमे खा रही हैं लेकिन उनके मुँह से ना ही निकलता है। कहत, नटत, रीझत, खिझत, मिलत, खिलत, लजियात। इस दोहे
में कवि ने उस स्थिति को दर्शाया है जब भरी भीड़ में भी दो प्रेमी बातें करते हैं और उसका किसी को पता तक नहीं चलता है। ऐसी स्थिति में नायक और नायिका आँखों ही आँखों में रूठते हैं, मनाते हैं, मिलते हैं, खिल जाते हैं और कभी कभी शरमाते भी हैं। बैठि रही अति सघन बन, पैठि सदन तन माँह। इस दोहे में कवि ने जेठ महीने की गर्मी का चित्रण किया है। कवि का कहना है कि जेठ की गरमी इतनी तेज होती है की छाया भी छाँह ढ़ूँढ़ने लगती है। ऐसी गर्मी में छाया भी कहीं नजर नहीं
आती। वह या तो कहीं घने जंगल में बैठी होती है या फिर किसी घर के अंदर। कागद पर लिखत न बनत, कहत सँदेसु लजात। इस दोहे में कवि ने उस नायिका की मन:स्थिति का चित्रण किया है जो अपने प्रेमी के लिए संदेश भेजना चाहती है। नायिका को इतना लम्बा संदेश भेजना है कि वह कागज पर समा नहीं पाएगा। लेकिन अपने संदेशवाहक के सामने उसे वह सब कहने में शर्म भी आ रही है। नायिका संदेशवाहक से कहती है कि तुम मेरे अत्यंत करीबी हो इसलिए अपने दिल से तुम मेरे दिल की बात कह
देना। प्रगट भए द्विजराज कुल, सुबस बसे ब्रज आइ। कवि का कहना है कि श्रीकृष्ण ने स्वयं ही ब्रज में चंद्रवंश में जन्म लिया था मतलब अवतार लिया था। बिहारी के पिता का नाम केसवराय था। इसलिए वे कहते हैं कि हे कृष्ण आप तो मेरे पिता समान हैं इसलिए मेरे सारे कष्ट को दूर कीजिए। जपमाला, छापैं, तिलक सरै न एकौ कामु। आडम्बर और ढ़ोंग किसी काम के नहीं होते हैं। मन तो काँच की तरह क्षण भंगुर होता है जो व्यर्थ में ही नाचता
रहता है। माला जपने से, माथे पर तिलक लगाने से या हजार बार राम राम लिखने से कुछ नहीं होता है। इन सबके बदले यदि सच्चे मन से प्रभु की आराधना की जाए तो वह ज्यादा सार्थक होता है। उत्तर:जेठ महीने की गर्मी बहुत प्रचंड होती है। ऐसे में छाया भी छाया ढ़ूँढ़ने लगती है। उत्तर:उसे अपने संदेशवाहक पर बहुत विश्वास है। उसे पता है कि उसका संदेशवाहक पूरी इमानदारी से उसका संदेश पहुँचाएगा। साथ में उसे लगता है कि संदेश लिखने के लिए कागज छोटा पड़ जाएगा। उसे अपना संदेश बोलने में शर्म भी आती है। इसलिए वह अपने संदेशवाहक से ऐसा कहती है। उत्तर:इस दोहे में कहा गया है कि झूठमूठ के आडंबर से कोई फायदा नहीं होता है। लेकिन यदि सच्चे मन से पूजा की जाए तो फिर भगवान अवश्य मिल जाते हैं। उत्तर:गोपियाँ कृष्ण से बात करने की लालसा से बाँसुरी छिपा लेती हैं।
उत्तर:इस दोहे में कवि ने उस स्थिति को दर्शाया है जब भरी भीड़ में भी दो प्रेमी बातें करते हैं और उसका किसी को पता तक नहीं चलता है। ऐसी स्थिति में नायक और नायिका आँखों ही आँखों में रूठते हैं, मनाते हैं, मिलते हैं, खिल जाते हैं और कभी कभी शरमाते भी हैं। उत्तर:इस दोहे में कवि ने कृष्ण के साँवले शरीर की सुंदरता का बखान किया है। कवि का
कहना है कि कृष्ण के साँवले शरीर पर पीला वस्त्र ऐसी शोभा दे रहा है, जैसे नीलमणि पहाड़ पर सुबह की सूरज की किरणें पड़ रही हैं। उत्तर:इस दोहे में कवि ने भरी दोपहरी से बेहाल जंगली जानवरों की हालत का चित्रण किया है। भीषण गर्मी से बेहाल जानवर एक ही स्थान पर बैठे हैं। मोर और सांप एक साथ बैठे हैं। हिरण और बाघ एक साथ बैठे हैं। कवि को लगता है कि गर्मी के कारण जंगल किसी तपोवन की तरह हो गया है। जैसे तपोवन में
विभिन्न इंसान आपसी द्वेषों को भुलाकर एक साथ बैठते हैं, उसी तरह गर्मी से बेहाल ये पशु भी आपसी द्वेषों को भुलाकर एक साथ बैठे हैं। उत्तर:आडम्बर और ढ़ोंग किसी काम के नहीं होते हैं। मन तो काँच की तरह क्षण भंगुर होता है जो व्यर्थ में ही नाचता रहता है। माला जपने से, माथे पर तिलक लगाने से या हजार बार राम राम लिखने से कुछ नहीं होता है। इन सबके बदले यदि सच्चे मन से प्रभु की आराधना
की जाए तो वह ज्यादा सार्थक होता है। मैथिलीशरण गुप्त मनुष्यता विचार लो कि मर्त्य हो न मृत्यु से डरो कभी, उस आदमी का जीना या मरना अर्थहीन है जो अपने स्वार्थ के लिए जीता या मरता है। जिस तरह से पशु का अस्तित्व सिर्फ अपने जीवन यापन के लिए होता है, मनुष्य का जीवन वैसा नहीं होना चाहिए। ऐसा जीवन जीने वाले कब जीते हैं और कब मरते हैं कोई ध्यान ही नहीं देता है। हमें दूसरों के लिए कुछ ऐसे काम करने चाहिए कि मरने के बाद भी लोग हमें याद रखें। साथ में हमें ये भी अहसास होना चाहिए कि हम अमर नहीं हैं। इससे हमारे अंदर से मृत्यु का भय चला जाता है। उसी उदार की कथा सरस्वती बखानती, जो आदमी पूरे संसार में अत्मीयता और भाईचारा का संचार करता है उसी उदार की कीर्ति युग युग तक गूँजती है। धरती भी सदैव उसकी कृतघ्न रहती है। समस्त सृष्टि उस उदार की पूजा करती है और सरस्वती उसका बखान करती है। क्षुधार्त रतिदेव ने दिया करस्थ थाल भी, पौराणिक कथाओं में ऐसे कई महादानियों की कहानियाँ भरी पड़ी हैं जिन्होंने दूसरों के हित के लिए अपना सब कुछ दान कर दिया। रतिदेव ने अपने हाथ की आखिरी थाली भी दान में दे दी थी। दधिची ने वज्र बनाने के लिए अपनी हड्डी देवताओं को दे दी थी जिससे सबका भला हो पाया। सिबि ने कबूतर की जान बचाने के लिए बहेलिए को अपने शरीर का मांस दे दिया। ऐसे बहुत से महापुरुष इस दुनिया में पैदा हुए हैं जिनके परोपकार के कारण आज भी लोग उन्हें याद करते हैं। सहानुभूति चाहिए, महाविभूति है
यही; पूरी दुनिया पर उपकार करने की इक्षा ही सबसे बड़ा धन होता है। ईश्वर भी ऐसे लोगों के वश में हो जाते हैं। जब भगवान बुद्ध से लोगों का दर्द नहीं सहा गया तो वे दुनिया के नियमों के खिलाफ हो गए। उनका दुनिया के विरुद्ध जाना लोगों की भलाई के लिए था, इसलिए आज भी लोग उन्हें पूजते हैं। रहो न
भूल के कभी मदांध तुच्छ वित्त में, यहाँ पर कोई भी अनाथ नहीं है। भगवान के हाथ इतने बड़े हैं कि उनका हाथ सबके सिर पर होता है। इसलिए यह सोचकर कभी भी घमंड नहीं करना चाहिए कि तुम्हारे पास बहुत संपत्ति या यश है। ऐसा अधीर व्यक्ति बहुत बड़ा भाग्यहीन होता है। अनंत अंतरिक्ष में अनंत देव हैं
खड़े, जिस तरह से ब्रह्माण्ड में अनंत देवी देवता जनहित के लिए एक दूसरे के साथ मिलजुलकर काम करते हैं, उसी तरह इंसान को भी आपसी भाईचारे से काम करना चाहिए। ऐसा नहीं होना चाहिए कि किसी से किसी और का काम न चले, बल्कि सभी एक दूसरे के काम आएँ। ‘मनुष्य मात्र बंधु है’ यही बड़ा विवेक है, सभी मनुष्य एक दूसरे के भाई बंधु हैं और सबके माता पिता परम परमेश्वर हैं। कोई काम बड़ा है या छोटा ऐसा केवल बाहर से दिखता है। अंदर से अभी एक समान हैं। इसलिए कर्म के आधार पर किसी को बड़ा या छोटा नहीं समझना चाहिए। भाई अगर भाई की पीड़ा ना हरे तो मानव जीवन व्यर्थ है। ये पंक्तियाँ कहीं न कहीं हमारी जाति व्यवस्था की तरफ इशारा करती हैं। चलो अभीष्ट मार्ग में सहर्ष खेलते हुए, हमें अपने लक्ष्य की ओर हँसते हुए और रास्ते की बाधाओं को हटाते हुए चलते रहना चाहिए। जो रास्ता आपने चुना है उसपर बिना किसी बहस के पूरी निष्ठा से चलना चाहिए। इसमें भेदभाव बढ़ने की कोई गुंजाइश नहीं होनी चाहिए, बल्कि भाईचारा जितना बढ़े उतना ही अच्छा है। वही समर्थ है जो खुद तो पार हो ही और दूसरों की नैया को भी पार लगाए। यह पूरी कविता सहोपकारिता और परोपकारिता का उपदेश देती है। जीवन के हर परिप्रेक्ष्य में हम एक दूसरे के सहयोग पर निर्भर करते हैं। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और पूरा मानव समाज इसी सहयोग पर आधारित है। जो दूसरे की भलाई में जीवन लगाता है, उसे आने वाली पीढ़ियाँ हमेशा याद रखती हैं। अभ्यासनिम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए:
निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए:सहानुभूति चाहिए, महाविभूति है यही; उत्तर: पूरी दुनिया पर उपकार करने की इक्षा ही सबसे बड़ा धन होता है। ईश्वर भी ऐसे लोगों के वश में हो जाते हैं। जब भगवान बुद्ध से लोगों का दर्द नहीं सहा गया तो वे दुनिया के नियमों के खिलाफ हो गए। उनका दुनिया के विरुद्ध जाना लोगों की भलाई के लिए था, इसलिए आज भी लोग उन्हें पूजते हैं। रहो न भूल के कभी मदांध तुच्छ वित्त में, उत्तर: यहाँ पर कोई भी अनाथ नहीं है। भगवान के हाथ इतने बड़े हैं कि उनका हाथ सबके सिर पर होता है। इसलिए यह सोचकर कभी भी घमंड नहीं करना चाहिए कि तुम्हारे पास बहुत संपत्ति या यश है। ऐसा अधीर व्यक्ति बहुत बड़ा भाग्यहीन होता है। चलो अभीष्ट मार्ग में सहर्ष खेलते हुए, उत्तर: हमें अपने लक्ष्य की ओर हँसते हुए और रास्ते की बाधाओं को हटाते हुए चलते रहना चाहिए। जो रास्ता आपने चुना है उसपर बिना किसी बहस के पूरी निष्ठा से चलना चाहिए। इसमें भेदभाव बढ़ने की कोई गुंजाइश नहीं होनी चाहिए, बल्कि भाईचारा जितना बढ़े उतना ही अच्छा है। सुमित्रानंदन पंत पर्वत प्रदेश में पावस पावस ऋतु थी, पर्वत प्रदेश, पावस यानि सर्दी का मौसम है जिसमे प्रकृति का रूप हर पल बदलता रहता है। कभी धूप खिल जाती है तो कभी काले घने बादल सूरज को ढ़ँक लेते हैं। ये सब हर पल एक नए दृष्टांत की रचना करते हैं। मेखलाकार पर्वत अपार यहाँ पर पर्वत श्रृंखला की तुलना करघनी (कमर में पहनने वाला गहना) से की गई है। विशाल पर्वत अपने सैंकड़ों फूल जैसी आँखों को फाड़कर नीचे पानी में जैसे अपना ही अक्स निहार रहा हो। साधारण भाषा में कहा जाये तो पानी में पहाड़ का प्रतिबिम्ब बन रहा है। पहाड़ के चरणों में जलराशि किसी विशाल आईने की तरह फैली हुई है। गिरि का गौरव गाकर
झर झर इन पंक्तियों में कवि ने झरनों की सुंदरता का बखान किया है। झरने मोती की लड़ियों की तरह झर रहे हैं। उनकी कल-कल ध्वनि से ऐसा लगता है जैसे वे पहाड़ के प्रताप के गाने गा रहे हैं और पहाड़ के गौरव के नशे में चूर हैं। झरनों के झरने में एक तरह का नशा है। जिस तरह नशे में आदमी लड़खड़ाकर चलता है उसी तरह झरनों के गिरने में थोड़ा बेबाकपन है। गिरिवर के उर से उठ-उठ कर पहाड़ के ऊपर और आस पास पेड़ भी होते हैं जो उस दृष्टिपटल की सुंदरता को बढ़ाते हैं। पर्वत के हृदय से पेड़ उठकर खड़े हुए हैं और शांत आकाश को अपलक और अचल होकर किसी गहरी चिंता में मग्न होकर बड़ी महात्वाकांक्षा से देख रहे हैं। ये हमें ऊँचा, और ऊँचा उठने की प्रेरणा दे रहे हैं। उड़ गया अचानक लो, भूथर अचानक मौसम बदल जाता है और लगता है जैसे पर्वत अचानक अपने पारे जैसे चमकीले पंख फड़फड़ाकर कहीं उड़ गया है। अब केवल झरने की आवाज निशानी के तौर पर रह गई है; क्योंकि धरती पर आसमान टूट पड़ा है। जब सर्दियों में बारिश होने लगती है तो घने कोहरे की वजह से दूर कुछ भी नजर नहीं आता है। इसलिए ऐसा लगता है जैसे पहाड़ उड़कर कहीं चला गया है। धँस गए धरा में सभय शाल बारिश हो रही है तो ऐसा लग रहा है जैसे इंद्र बादलों के विमान में घूम घूम कर कोई इंद्रजाल या जादू कर रहे हों। इस जादू के असर से इतना धुआँ उठ रहा है जैसे पूरा ताल जल रहा हो। ये कोहरे का चित्रण है। इस जादू के डर से शाल के विशाल पेड़ भी गायब हो गए हैं जैसे डर के मारे जमीन में धँस गए हों। अभ्यासनिम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए:
निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए:
महादेवी वर्मा मधुर मधुर मेरे दीपक जल
सौरभ फैला
विपुल धूप बन, जिस तरह से धूप या अगरबत्ती की खुशबू चारों ओर फैल जाती है उसी तरह से आपकी कीर्ति चारों ओर फैलनी चाहिए। दीपक को खुश होकर ऐसे जलना चाहिए जिससे उसका एक एक अणु गलकर उसके मुलायम शरीर को विलुप्त कर दे। इसमें अनंत रोशनी वैसे ही निकलनी चाहिए जैसे सूरज पूरे संसार में सबेरा लाता है। अंधेरा कई तरह का हो सकता है। अज्ञान का अंधेरा उन्हीं में से एक है। इसे दूर करने के लिए बहुत शक्तिशाली दीपक की जरूरत है।
जब दिए की लौ काँपते हुए जले तो इतना प्रभाव पड़ना चाहिए कि सभी कोमल और शीतल चीजें उससे ज्वाला की इच्छा रखें। यहाँ पर ज्वाला का मतलब उस असीमित ऊर्जा से है जो आपको कुछ भी कर गुजरने की शक्ति दे सके। जब पतंगों को काँपती लौ से टकराने का मौका न मिले तो वे भी हताशा में अपना सर धुनने लगें। मतलब ऊष्मा इतनी ही होनी चाहिए जिससे वह किसी के काम आ सके और उसे जलाकर भष्म न कर दे। जलते नभ में देख असंख्यक, आकाश में असंख्य तारे हैं लेकिन उनके पास स्नेह नहीं है। उनके पास अपनी रोशनी तो है पर वे दुनिया को रौशन नहीं कर पाते। वहीं दूसरी ओर, जल से भरे सागर का हृदय भी जलकर बादल की रचना करता है जिससे पूरी दुनिया में बारिश होती है। दीपक को ऐसे ही अपने लिए नहीं बल्कि दूसरों की भलाई के लिए जलना चाहिए। अभ्यासनिम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए:
निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए:
वीरेन डंगवाल तोप कंपनी बाग के मुहाने पर पार्क के गेट पर अंग्रेजों के जमाने की तोप बहुत संभाल के विरासत के तौर पर रखी हुई है। विरासत में मिली चीजें ऐतिहासिक महत्व की होती हैं। इसलिए इस तोप की भी पूरी देखभाल होती है। साल में दो बार यानि गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस के दिन इसे कायदे से चमकाया जाता है। इतिहास के प्रतीक अच्छे भी हो सकते हैं और बुरे भी। जैसे कि कंपनी का बाग और कंपनी की तोप। दोनों ही स्थिति में उन्हें धरोहर की तरह सम्भालना चाहिए। क्योंकि इतिहास हमें बताता है कि कहाँ हमने सही किया और कहाँ हमसे चूक हुई। सुबह शाम कंपनी बाग में आते हैं बहुत से सैलानी जो भी सैलानी वहाँ घूमने आते हैं उन्हें इस तोप का विशाल आकार मौन रहकर भी अपने उत्कर्ष के दिनों की कहानी सुनाता है। कोई भी इसकी कल्पना मात्र से सिहर उठ सकता है कि कैसे इस तोप ने कितने ही देशप्रेमियों को मौत के घाट उतार दिया होगा। अब तो बहरहाल ये पंक्तियाँ तोप की वर्तमान दशा को चित्रित करती हैं। सत्ता और सफलता के मद में चूर व्यक्ति जब बढ़ चढ़कर बोलने लगता ऐ तो उसे एक बड़ा तोप कहा जाता है। लेकिन ये एक कड़वी सच्चाई है कि बड़े से बड़े तोप का मुँह भी एक न एक दिन बंद हो जाता है। इस तोप की भी आजकल यही दशा है। इस पर बच्चे घुड़सवारी करते हैं और चिड़िया इसपर बैठकर चहचहाती हैं। बच्चों और चिड़ियों की उपमा इस लिए दी गई है कि ये दोनों निर्बलता और कोमलता के प्रतीक हैं। जो तोप किसी जमाने में सूरमाओं की धज्जियाँ उड़ा देता था आज ये आलम है कि चिड़िया जैसी निरीह प्राणी भी उसके मुँह के अंदर घुसकर खिलवाड़ करती हैं। अभ्यासनिम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए:
कंपनी बाग में रखी तोप क्या सीख देती है? उत्तर: कंपनी बाग में रखी तोप एक अहम सीख देती है। कंपनी का बाग और कंपनी का तोप; दोनों ही अंग्रेजी राज की निशानी हैं। बाग एक अच्छी निशानी है तो तोप एक बुरी निशानी है। एक ओर तो अंग्रेजी राज से हमें आधुनिक शिक्षा और रेल मिली तो दूसरी ओर हमें गुलामी की बेड़ियाँ मिलीं। यह तथ्य बताता है कि हर चीज के दो पहलू होते हैं; एक अच्छा और एक बुरा। कविता में तोप को दो बार चमकाने की बात की गई है। ये दोनों अवसर कौन से होंगे? उत्तर: ये दोनों अवसर हमारे राष्ट्रीय त्योहार; स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस हो सकते हैं। निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए :
उड़ा दिए थे मैंने उत्तर: ये पंक्तियाँ उस तोप के उत्कर्ष के दिनों का बयान करती हैं। कभी वो भी दिन हुआ करते थे जब उस तोप का इस्तेमाल लोगों की धज्जियाँ उड़ाने में किया जाता था। कैफी आजमी कर चले हम फिदा कर चले हम फिदा जानो-तन साथियों यह कविता भारत चीन युद्ध की पृष्ठभूमि पर बनी फिल्म ‘हकीकत’ के लिए लिखी गई थी। इसमें एक सिपाही की उस समय की भावना को चित्रित किया गया है जब उसकी शहादत का समय नजदीक आ गया है। सिपाही की साँस थमने लगी है और नब्ज भी रुकने लगी है। फिर भी दुश्मन की तरफ उसके बढ़ते कदम रुक नहीं रहे हैं। उसका साहस इस कदर है कि मौत के सामने भी उसका संकल्प अदम्य है। सैनिक देश के लिए अपनी जान और अपना शरीर सब निछावर कर रहा है और आगे आने वाली पीढ़ी के लिए देश सौंप रहा है। उसे पूरी उम्मीद है कि अगली पीढ़ी भी देश का उतना ही हिफाजत करेगी| जिंदा रहने के मौसम बहुत हैं मगर जिन्दा रहने के बहुत से अवसर आते हैं इसलिए जिंदगी जी लेना बहुत महत्वपूर्ण नहीं है। वतन पे जान देने के मौके बहुत ही कम बार मिलते हैं। वो युवा जो देश के लिए खून की होली न खेले उसकी जवानी को सराहने के लिए कोई भी सुंदरी तैयार नहीं होती है। हिम्मती पुरुषों की दुनिया हमेशा से कायल रही है। जवानों के खून से ऐसा लगता है जैसे धरती को लाल चुनरी पहना दी गई हो। राह कुर्बानियों की न वीरान हो शहीद होने वाले सैनिक को पूरी उम्मीद है कि उसने जो कुर्बानी की राह बनाई है उसपर अनंत समय तक वीरों का काफिला ऐसे ही चलता रहेगा। जिंदगी मौत से इस तरह गले मिल रही है जैसे वह दुश्मन पर विजय का उत्सव मना रही हो। खींच दो अपने खूँ से जमीं पर लकीर सैनिक कहता है सीमा पर अपने खून से लक्ष्मण रेखा खींच देनी चाहिए ताकि उसे लाँघकर कोई भी रावण अंदर नहीं आ सके। यदि कोई हाथ हम पर उठने लगे तो उस हाथ को फौरन तोड़ देना चाहिए। यहाँ पर मातृभूमि की तुलना सीता से की गई है जिसका दामन छूने की कोई साहस न कर सके। सैनिक यह भी प्रेरणा देता है कि हमीं में राम भी हैं और लक्ष्मण भी। अर्थात हम हर तरह से अपनी मातृभूमि की रक्षा करने में सक्षम हैं। एक पूरे संदेश के तौर पर देखा जाए तो यह वीर रस और करुण रस का मिला जुला रूप लगता है; खासकर जिस तरीके से इस गाने को फिल्म में प्रस्तुत किया गया है। जिस परिवेश में यह फिल्म बनी थी उस समय भारत हाल ही में आजाद हुआ था। उस समय देश में बहुत सारी समस्याएँ थीं। चीन से युद्ध का भारत की अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल असर पड़ा था। उस समय एक ऐसे संदेश की जरूरत थी जो देशवासियों को उसके वीरों की कुर्बानिओं से परिचित कराये और स्वावलंबी बनने की प्रेरणा दे सके। तत्कालीन प्रधानमंत्री ने ‘जय जवान जय किसान’ का नारा देकर जनता में नई प्रेरणा दी थी। यह गीत उस समय की सामरिक तथा सामाजिक मन:स्थिति का बड़ा ही सटीक चित्रण करता है। अभ्यासनिम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए:
निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए :
रवींद्रनाथ टैगोर आत्मत्राण विपदाओं से मुझे बचाओ, यह मेरी
प्रार्थना नहीं ये कविता एक ऐसे व्यक्ति की प्रार्थना है जो स्वयं सुब कुछ करना चाहता है। किसी हारे हुए जुआरी की तरह वह सब कुछ भगवान भरोसे नहीं छोड़ना चाहता है। उसका अपने आप पर पूरा भरोसा है। उसे भरोसा है कि वह हर मुसीबत का सामना कर सकता है और भगवान से सिर्फ मनोबल पाने की इच्छा रखता है। दुख ताप से व्यथित चित्त को न दो सांत्वना नहीं सही जब दुख से मन व्यथित हो जाए तब उसे ईश्वर से सांत्वना की अभिलाषा नहीं है, बल्कि वह ये प्रार्थना करता है कि उसे हमेशा दुख पर विजय प्राप्त हो। कोई कहीं सहायक न मिले कहीं किसी से मदद ना मिले तो भी उसका पुरुषार्थ नहीं हिलना चाहिए। लाभ की जगह कभी हानि भी हो जाए तो भी मन में अफसोस नहीं होना चाहिए। मेरा त्राण करो अनुदिन तुम यह मेरी प्रार्थना नहीं वह भगवान से ये नहीं चाहता है कि वो उसकी नैया को पार लगा दें, बल्कि उसमें नाव खेने और तैरने की असीम शक्ति दे दें। इससे वह खुद ही मुसीबतों के भँवर से पार हो सकता है। मेरा भार अगर लघु करके न दो सांत्वना नहीं सही। वह भगवान से अपनी जिम्मेदारियाँ कम करने की विनती नहीं करता। वह तो इतनी दृढ़शक्ति चाहता है जिससे वह जीवन के भार को निर्भय उठाकर जी सके। नव शिर होकर सुख के दिन में इन पंक्तियों में ये संदेश दिया गया है कि सफलता के नशे में चूर होकर ईश्वर को भूलना नहीं चाहिए। हर उस व्यक्ति को याद रखना चाहिए जिसने आपको सफल बनाने में थोड़ा भी योगदान दिया हो। जब मेरे दिन बहुत बुरे चल रहे हों और पूरी दुनिया मुझ पर अंगुली उठा रही हो तब भी ऐसा न हो कि मैं तुमपर कोई शक करूँ। एक कहावत है कि भगवान भी उसी की मदद करते हैं जो अपनई मदद खुद करता है। किस्मत के ताले की एक ही चाभी है और वो है कड़ी मेहनत और दृढ़ संकल्प। ईश्वर का काम है मनोबल और मार्गदर्शन, लेकिन अपनी मंजिल तक पहुँचने के लिए आपको चलना तो खुद ही पड़ेगा। आप अगर आधुनिक युग के सफल व्यक्तियों के बारे में पढ़ेंगे तो आपको उनकी कठिन दिनचर्या का अहसास होगा। साथ में इन सब व्यक्तियों में एक और समानता है और वो है उनका अहंकारहीन व्यक्तित्व। अभ्यासनिम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए:
निम्नलिखित अंशों के भाव स्पष्ट कीजिए:
प्रेमचंदबड़े भाई साहबनिम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक से दो पंक्तियों में दीजिए:
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर २५ – ३० शब्दों में दीजिए :
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर ५० – ६० शब्दों में दीजिए:
निम्नलिखित के आश्य स्पष्ट कीजिए:
सीताराम सेकसरियाडायरी का एक पन्नानिम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक दो पंक्तियों में दीजिए:
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर २५ – ३० शब्दों में लिखिए:
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर ५० – ६० शब्दों में लिखिए:
निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए:
लीलाधर मंडलोईतताँरा वामीरो कथानिम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक दो पंक्तियों में दीजिए :
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर २५ – ३० शब्दों में दीजिए:
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर ५० – ६० शब्दों में लिखिए:
निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए:
प्रह्लाद अग्रवालतीसरी कसम के शिल्पकार शैलेंद्रनिम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक दो पंक्तियों में दीजिए:
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर २५ – ३० शब्दों में लिखिए:
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर ५० – ६० शब्दों में लिखिए:
निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए:
अंतोन चेखवगिरगिटनिम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक दो पंक्तियों में दीजिए:
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर २५ – ३० शब्दों में लिखिए:
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर ५० – ६० शब्दों में लिखिए:
निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए:
निदा फाजलीअब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वालेनिम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक दो पंक्तियों में दीजिए:
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर २५ – ३० शब्दों में लिखिए
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर ५० – ६० शब्दों में दीजिए:
निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए:
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर ५० – ६० शब्दों में दीजिए:
निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए:
निदा फाजलीअब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वालेनिम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक दो पंक्तियों में दीजिए:
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर २५ – ३० शब्दों में लिखिए
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर ५० – ६० शब्दों में दीजिए:
निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए:
रवीन्द्र केलेकरपतझर में टूटी पत्तियाँनिम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक दो पंक्तियों में दीजिए:
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर २५ – ३० शब्दों में लिखिए:
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर ५० – ६० शब्दों में लिखिए:
निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए:
हबीब तनवीरकारतूसनिम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक दो पंक्तियों में दीजिए:
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर २५ – ३० शब्दों में लिखिए:
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर ५० – ६० शब्दों में लिखिए:
निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए:
राम और कस्तूरी में क्या समानता है?राम और कस्तूरी में क्या समानता है? (a) दोनों तरल पदार्थ हैं।
कस्तूरी क्या होती है Class 10?कस्तूरी नाम मूलतः एक ऐसे पदार्थ को दिया जाता है जिसमें एक तीक्ष्ण गंध होती है और जो नर कस्तूरी मृग के पीछे/गुदा क्षेत्र में स्थित एक ग्रंथि से प्राप्त होती है। इस पदार्थ को प्राचीन काल से इत्रके लिए एक लोकप्रिय रासायनिक पदार्थ के रूप में इस्तेमाल किया जाता रहा है और दुनिया भर के सबसे महंगे पशु उत्पादों में से एक है।
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