ल्यूकेमिया की जांच कैसे होती है? - lyookemiya kee jaanch kaise hotee hai?

यह सब जानते हैं कि कैंसर एक लाइलाज रोग है और अगर समय रहते इसका उपचार न हो तो व्यक्ति मृत्यु से बच नहीं पाता और यदि समय पर इसको पहचानकर इलाज करा लिया जाए तो कैंसर पर काबू किया जा सकता है । 

कैंसर को जानलेवा रोग इसलिए समझा जाता है क्योंकि आरंभ में इस रोग का पता नहीं चल पाता और जब तक पता चलता है, इसे रोकना एक चुनौती बन जाता है । व्यक्ति में कैंसर होने के बाद कुछ शुरुआती लक्षण दिखाई देने लगते हैं लेकिन लोग इन्हे गंभीरता से नहीं लेते और इसे टाल देते हैं ।

ब्लड कैंसर क्यों होता है ?

ब्लड कैंसर होने की कोई उम्र निर्धारित नहीं है, यह किसी भी उम्र में हो सकता है । बल्ड कैंसर होने पर कैंसर की कोशिकाएं यानि सैल्स व्यक्ति के शरीर में खून को बनने नहीं देते  इंसान को, जिस वजह से व्यक्ति में खून की कमी होने लगती है । शरीर के खून के साथ कैंसर व्यक्ति की बोन मैरो को भी नुकसान करता है। 

ब्लड कैंसर के प्रकार

ल्यूकेमिया

यह ब्लड कैंसर का प्राथमिक और प्रमुख प्रकार है, जिसमें व्हाइट ब्लड सेल की मात्रा रेड ब्लड सेल की तुलना में काफी ज्यादा हो जाती है।आमतौर पर ऐसा देखा गया है कि कुछ लोगों में ल्यूकेमिया कैंसर की शुरूआत धीरे-धीरे होती है और बाद में यह खतरनाक हो जाता है।

ल्यूकेमिया कैंसर भी कईं तरह का होता है और लोग इससे अंजान होते हैं । ल्यूकेमिया कैंसर के 4 मुख्य प्रकार हैं :

एक्यूट ल्यूकेमिया :जब रक्त और मौरो के सैल्स तेज़ी से बढ़ते और बढ़कर इकट्ठा होने लगते हैं, तो उसी स्थिति को एक्यूट ल्यूकेमिया कहते हैं । यह कोशिकाएं बहुत तेज़ी से बोन मैरो में जमा होने लगती है ।

क्रोनिक ल्यूकेमिया :शरीर के बाकि सैल्स के अलावा जब शरीर में कुछ अविकसित सैल्स के बनने की प्रक्रिया होती है, तो उसे ही क्रोनिक ल्यूकेमिया कहते हैं । क्रोनिक ल्यूकेमिया भी समय के साथ बढ़ता रहता है और अगर इलाज न कराया जाए तो यह स्थिति को बहुत गंभीर कर देता है ।

लिम्फोसाइटिक ल्यूकेमिया :यह वह स्थिति होती है जब बोन मैरो के सैल्स व्हाइट ब्लड सैल्स में बदलना शुरु हो जाते हैं । 

मायलोजनस ल्यूकेमिया :मौरो सैल्स द्वारा रेड ब्लड सैल्स और व्हाइट ब्लेड सैल्स के अलावा जब प्लेटेट्स का निर्माण होता है, उसे मायलोजनस ल्यूकेमिया कहते हैं । 

इसके अलावा ब्लड के कुछ और भी प्रकार हैं :

  • ल्यूमफोमा :जब इंसान के शरीर में लिम्फोसाइट का विकास बहुत तेज़ी से होता है, तो ऐसे लक्षण को ल्यूमफोमा कहते हैं । ऐसा देखा गया है कि, इसका उपाचर दवाईयों और रेडिएशन थेरेपी से किया जाता है और यह सफल भी रहा है परंतु यदि इसे अनदेखा किया जाए तो फिर सर्जरी ही इससे बचने का एकमात्र उपाय है।
  • माइलोमा :कैंसर के इस प्रकार में व्यक्ति के प्लास्मा सैल्स प्रभावित होते हैं, जिससे उसकी इम्यूनिटी यानि रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती जाती है ।ब्लड कैंसर के इस प्रकार में हड्डियां कमजोर हो जाती है और व्यक्ति के शरीर में कैल्शियम की कमी हो जाती है, जो लगातार कम होती रहती है । 

क्या होते हैं शुरुआती लक्षण?

ब्लड कैंसर से प्रभावित रोगी अक्सर थकान और कमजोरी महसूस करता है। इसकी वजह व्यक्ति के खून में लाल रक्त कोशिकाओं की कमी होना है और इस कारण व्यक्ति में खूनकी कमी हो जाती है। रोगी के पेट में सूजन आ जाती है, जिस वजह से मल त्याग करने में पीड़ा का अहसास होता है, साथ ही साथ भूख भी कम लगती है। 

ध्यान रहे कि अगर ब्लड कैंसर शुरु हो गया है तो रोगी के मुंह, गले, चमड़ी और फेफड़ो में कई तरह की समस्याएं आरंभ हो जाती है।यदि बिना वरजिश या दौड़-भाग के बिना वजन में कमी आए तो यह भी ब्लड कैंसर का एक लक्षण है ।

बल्ड कैंसर यदि रोगी के शरीर में घर कर गया है तो रोगी को अक्सर बुखार हो सकता है और बार-बार हो सकता है ।हड्डियों, मांसपेशियों में पीड़ा का अनुभव होना भी ब्लड कैंसर का भी एक शुरुआती लक्षण हैं।

इसके अलावा बल्ड कैंसर के शुरुआती चरण में माइग्रेन पेन की शिकायत भी कईं लोगों में देखी गई है । इसी के साथ अचानक उल्टियां या दस्त लगना, चमड़ी में खुजली, धब्बे की शिकायत और जबड़ों में सूजन और खून का आना भी बल्ड कैंसर के शुरुआती लक्षणों में गिना गया है । 

ब्लड कैंसर का इलाज 

कैंसर किसी भी प्रकार का हो, उसमें स्टेज अवश्य होती है, जैसे पहली, दूसरी और एडवांस स्टेज । ब्लड कैंसर और दूसरे बाकि कैंसर में यहां अंतर है । डॉक्टर के लिए यह जानना अहम चनौती होती है कि रोगी में बल्ड कैसे हुआ ?

लेकिन तकनीक और आधुनिक चिकित्सा ने इसे मुमकिन बना दिया है । अब ऐसी दवाईयां आ गयी हैं जिससे इसकी शुरुआत की पहचान हो सकती है । यह पता लगाया जा सकता है कि कैंसर किस कोशिका से पनपा और इलाज के माध्यम से उस कोशिका को ही खत्म कर दिया जाता है और इसी आधुनिक चिकित्सा को कीमोथेरेपी कहते हैं ।

जांच में लापरवाही न बरतें

अक्सर यही देखा गया है कि ब्लड कैंसर में प्लेटलेट्स कम हो जाती हैं और रोगी को प्लेटलेट्स चढ़ानी पड़ती है और उसमें भी यह चुनौती होती है कि रोगी का शरीर इसे ग्रहण कर पा रहा है या नहीं । क्योंकि यह प्लेटलेट्स फिर कम हो जाती हैं । यदि रोगी में प्लेटलेट्स 25 हजार से कम हैं, तो यह गंभीर विषय है ।मरीज़ में प्लेटलेट्स अगर 30 हजार से अधिक है, तो फिलहाल चिंता की कोई बात नहीं है ।

एक बात यहां ध्यान देने योग्य और है कि वर्तमान में कैंसर की जांच जिन मशीनों द्वारा हो रही हैं, उनका सही से काम करना बहुत आवश्यक है । भारत जैसे देश में अक्सर ऐसा हुआ है कि कईं अस्पताल मशीनों के ठीक से काम न करने के बावजूद उन्हें बदलते नहीं हैं । 

इसका एक कारण मशीनो का महंगा होना भी है । फिर भी जान का सौदा तो नहीं होना चाहिए । सरकारी अस्पतालों में फिर भी हालात ठीक हैं लेकिन प्राइवेट अस्पताल यह लापरवाही अक्सर कर देते है, और इसका परिणाम यह होता है कि रिपोर्ट गलत आती है और रोगी का रोग बढ़ता रहता है । ऐसे में उन रोगियों को झेलना पड़ता है जो समय पर उपचार शुरु करवा देते हैं, फिर भी उनके साथ धोखा होता है । 

ब्लड कैंसर में तो यह और गंभीर बात हो जाती है । अगर खून की जांच ठीक न हो तो प्लेटलेट्स शरीर में गांठ बना लेते हैं और इस कारण प्लेटलेट्स काउंट मशीन में ज्यादा दिखाती है । इसलिए हमेशा याद रखें कि जब भी टेस्ट कराएं किसी प्रमाणित लैब से करवाएं ।

ल्यूकेमिया का पहला संकेत क्या है?

एक्यूट ल्यूकेमिया के लक्षणों में मसूड़ों का फूलना भी शामिल है। जरुरी नहीं कि दांत में समस्या होने पर ही आपके मसूड़ों में सूजन आए। कभी-कभी पेट फूलने का कारण स्प्लीन के आकार में बढ़ना हो सकता है। यह समस्या एक्यूट और क्रोनिक दोनों तरह के ल्यूकेमिया में हो सकती है।

कैंसर का पता लगाने के लिए कौन सा ब्लड टेस्ट होता है?

कैंसर में ब्लड टेस्ट के प्रकार -ब्लड केमिकल टेस्ट (कैंसर सेल पता करने के लिए.) -सर्कुलेटिंग ट्यूमर सेल टेस्ट. -जेनेटिक मैटेरियल टेस्ट. इन टेस्ट से लोगों की कैंसर का पता अर्ली स्टेज में लगाया जा सकता है.

ल्यूकेमिया किसकी कमी से होता है?

विशेषज्ञ कहते हैं कि जब सफेद रक्त कोशिकाओं के डीएनए को क्षति पहुंचती है, तो ल्यूकेमिया बीमारी विकसित होती है। इस कैंसर की कोशिकाएं अस्थि मज्जा में बढ़ती हैं और अस्थि मज्जा में रहकर ही स्वस्थ रक्त कोशिकाओं को सामान्य रूप से बढ़ने और कार्य करने से रोकती हैं।

ल्यूकेमिया कैसे ठीक होता है?

ल्यूकेमिया के प्रकार के आधार पर विभिन्न कीमोथेरेपी उपचार हैं। बच्चों में, तीव्र लिम्फोब्लास्टिक ल्यूकेमिया का 90% और तीव्र मायलोइड ल्यूकेमिया का 70% अकेले थेरेपी से ही ठीक हो जाता है। लक्षित चिकित्सा में, डॉक्टर कैंसर कोशिकाओं को लक्षित करने के लिए दवाओं का उपयोग करते हैं।