क्या रावण सीता स्वयंवर में गया था - kya raavan seeta svayanvar mein gaya tha

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जानिए, क्या सीता स्वयंवर में गया था लंका नरेश रावण

किदवंती है कि त्रेतायुग में लंका नरेश रावण को विश्व विजेता की उपाधि मिली थी। कालांतर में विश्व विजेता को इच्छा विरुद्ध जाकर पराई स्त्री को छूने की मनाही थी। आसान शब्दों में कहें तो शास्त्र विरुद्ध था। एक बार रावण अप्सरा रंभा के साथ दुराचार करने की कोशिश की।

सनातन धार्मिक ग्रंथों में चार युगों का वर्णन किया गया है, जो क्रमशः सतयुग, त्रेता, द्वापर और कलयुग हैं। त्रेता युग का वर्णन महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण और तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस में है। रामचरितमानस में तुलसीदास ने मर्यादा पुरुषोत्तम राम के बाल्यकाल समेत संपूर्ण जीवन का वर्णन किया है। हालांकि, एक रोचक तथ्य को लेकर विशेषज्ञ एकमत नहीं हैं। रोचक तथ्य है यह कि क्या सीता स्वयंवर में लंका नरेश रावण गया था? इस विषय को लेकर सटीक जानकारी महर्षि वाल्मीकि के रामायण में है। आइए, इसके बारे में सबकुछ जानते हैं-

क्या है कथा

किदवंती है कि त्रेतायुग में लंका नरेश रावण को विश्व विजेता की उपाधि मिली थी। कालांतर में विश्व विजेता को इच्छा विरुद्ध जाकर पराई स्त्री को छूने की मनाही थी। आसान शब्दों में कहें तो शास्त्र विरुद्ध था। एक बार रावण शास्त्र विरुद्ध जाकर स्वर्ग लोक में उपस्थित अप्सरा रंभा के साथ दुराचार करने की कोशिश की। उसी समय रंभा ने लंका नरेश रावण को बताया कि वह उनकी पुत्र वधू (बड़े भाई कुबेर के बेटे नलकुबेर की अर्धांगनी) है। जब नलकुबेर को इसकी जानकारी हुई, तो उन्होंने रावण को श्राप दे दिया कि अगर वह इच्छा विरुद्ध जाकर किसी पराई स्त्री को छूने की कोशिश की, तो उनके सिर के सौ टुकड़े हो जाएंगे। रावण को यह ज्ञात हो गया कि वह अब किसी स्त्री को उनकी मर्जी के बिना छू नहीं सकता है।

कालांतर में जब सीता स्वंयवर हुआ, तो लंका नरेश रावण भी माता सीता को पाने हेतु जनकपुर पहुंचें, किंतु माता जानकी के मन में प्रेम भावना न रहने के चलते लंका नरेश रावण की इच्छा पूरी नहीं हो सकी। तत्पश्चात, रावण स्वंयवर छोड़कर लंका प्रस्थान कर गए। कालांतर में जब भगवान श्रीराम वनवास गए, तो माता सीता को पाने हेतु उनका हरण किया। हालांकि, इस बार भी उनकी इच्छा पूरी नहीं हुई। अंत में भगवान श्रीराम ने रावण का वध किया।

डिसक्लेमर

'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'

Edited By: Umanath Singh

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कुछ यूं हुआ था सीता स्वयंवर, लेकिन क्या सच में आया था रावण?

आध्यात्मिक डायरी में जोड़ें।

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वाल्मीकि रामायण

महर्षि वाल्मीकि रचित ‘रामायण ग्रंथ’ में ऐसी कई कथाएं हैं जिनसे आम जनमानस परिचित नहीं है। ग्रंथ में उल्लेखित एक-एक पात्र, श्रीराम, सीता, राजा दशरथ, लक्ष्मण, रावण, इत्यादि सभी के संबंध में अनगिनत कथाएं हैं। लेकिन फिर भी कुछ ऐसी कहानियां हैं जो इस ग्रंथ का हिस्सा ना होते हुए भी लोगों में प्रसिद्ध हो चुकी हैं।

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अद्भुत कहानियां

कारण समय के साथ इस महान ग्रंथ में कई प्रकार के प्रक्षिप्तांश का जुड़ना। यह कहानियां काफी दिलचस्प हैं, लेकिन इस बात में कोई संदेह नहीं है कि इन कहानियों के उत्पन्न होने का कोई वजूद या सही तथ्य है भी या नहीं।

क्या रावण सीता स्वयंवर में गया था - kya raavan seeta svayanvar mein gaya tha

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सिया के राम

आज वाल्मीकि रामायण से इतर, कुछ अन्य कहानियों को आपके समक्ष प्रस्तुत करने का हमारे पास एक कारण है। दरअसल प्रसिद्ध टीवी चैनल स्टार प्लस पर रामायण काल का वर्णन करते हुए एक टीवी शो को आरंभ किया जा चुका है जिसका नाम है ‘सिया के राम’। यह टीवी शो आम रामायण के टीवी शो से कुछ अलग है, क्योंकि इस शो में सब कुछ मां सीता की दृष्टि से दिखाने की कोशिश की जा रही है।

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सीता की दृष्टि से

रामायण काल के हर क्षण के दौरान मां सीता किस भावना में थीं, हर परिस्थिति में वे क्या महसूस करती थीं, यह सभी सिया के राम टीवी शो का अहम मुद्दा है। बहरहाल इस शो के दौरान राजा जनक की पुत्री सीता के स्वयंवर की तैयारी की जा रही है। स्वयंवर में किन-किन राज्यों के राजा, राजकुमार हिस्सा लेंगे इसके बारे में चर्चा की जा रही है।

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सीता स्वयंवर

इसी बीच राजा जनक द्वारा यह घोषणा भी की गई कि स्वयंवर में मौजूद जो भी पुरुष शिवजी के धनुष को उठाकर उस पर प्रत्यंचा चढ़ाने में सफल हुआ होगा, वही उनकी पुत्री से विवाह करने लायक होगा। राजा जनक द्वारा की गई इस घोषणा का वर्णन वाल्मीकि रामायण में भी मौजूद है।

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राजा जनक की घोषणा

राजा जनक की इस घोषणा पर कई लोगों ने विरोध भी किया और कहा कि शिवजी के इस महान धनुष को एक जगह से दूसरी जगह ले जाने के लिए भी एक बड़ी मात्रा में सेवकों को एकत्रित करना पड़ता है। यह धनुष इतना वजनदार है कि एक अकेला इंसान इसे हिला भी नहीं सकता।

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पुत्री के लिए योग्य वर

इसके उत्तर में राजा जनक बोले, “यदि मेरी पुत्री सीता इन धनुष को एक हाथ से उठा सकती है, तो उसे विवाह करने वाले वर को भी इसे उठाकर दिखाना होगा, तभी वह मेरी पुत्री का योग्य वर कहलाएगा”।

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रावण भी था मौजूद?

टीवी शो में भी ठीक इसी प्रकार से राजा जनक की इस बात को रखा गया है, लेकिन इसके ठीक बाद अगले एपिसोड में यह कहा गया कि सीता के स्वयंवर में न्यौता भेजने की सूची में लंकापति रावण का नाम भी जोड़ा गया है। रावण, जो कि एक महान शिव भक्त, एक महापंडित है यदि वह स्वयंवर में आया तो यकीनन शिवजी के धनुष को उठा लेगा।

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रावण की भक्ति का जोर

रावण, जिसने स्वयं अपनी भक्ति के जोर पर विशाल कैलाश पर्वत को भी अपने हाथों से उठा लिया था, वह शिवजी का धनुष उठाने में सफल जरूर होगा। कुछ कथाओं में ऐसा कहा गया है कि रावण यदि सीता स्वयंवर में आया था तो वह केवल शिव धनुष के लिए।

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रावण की इच्छा

उसे सीता को अपनी रानी बनाने में कोई दिलचस्पी नहीं थी। उसका वहां आने का उद्देश्य मात्र शिव धनुष को पाना था। अन्यथा वह सीता स्वयंवर में आने के लिए कभी भी इच्छुक ना था।

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टीवी शो में क्या दिखाया

टीवी शो के एक टीजर में यह दिखाया जा रहा है कि आने वाले एपिसोड में रावण सीता स्वयंवर में जरूर आएगा, लेकिन किसी कारण से शिवजी का धनुष उठाने में असफल होगा।

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श्रीराम की सफलता

और फिर बाद में श्रीराम इस धनुष को उठाकर उस पर प्रत्यंचा चढ़ाने में सफल होंगे। जिसके बाद राजा जनक श्रीराम-सीता का विवाह करवाते हैं। लेकिन असली वाल्मीकि रामायण में क्या ऐसा हुआ था?

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वाल्मीकि रामायण में क्या बताया गया

दरअसल महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण में सीता स्वयंवर कुछ प्रकार था - स्वयंवर की घोषणा के बाद कई राज्यों में निमंत्रण पत्र भेजे गए। सभी राजा-महाराजा स्वयंवर में उपस्थित हुए। निमंत्रण पत्र अयोध्या के राजा दशरथ के पास भी भेजा गया लेकिन श्रीराम की अनुपस्थिति में स्वयंवर का प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया गया।

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ऋषि विश्वामित्र का आश्रम

क्योंकि उस समय श्रीराम ऋषि विश्वामित्र के आश्रम में अपने अनुज लक्ष्मण के साथ थे। किंतु एक दिन स्वयं ऋषि विश्वामित्र ने श्रीराम और लक्ष्मण से मिथिला (राजा जनक की नगरी) चलकर महान शिव धनुष के दर्शन करने के लिए आग्रह किया। ऋषि विश्वामित्र की आज्ञा का सम्मान करते हुए वे दोनों मिथिला आ पहुंचे।

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श्रीराम-सीता विवाह

लेकिन जब राजा जनक को यह मालूम हुआ कि सीता से विवाह करने के उद्देश्य से विपरीत वे केवल शिव धनुष के दर्शन करने आए हैं, तो राजा जनक ने साफ इनकार कर दिया। और कहा कि यदि आप महान शिव धनुष को उठाकर उस पर प्रत्यंचा चढ़ाने में सफल हुए तो उसके बाद आपको भेंट में मेरी पुत्री से विवाह करना होगा।

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आए थे दैत्य

ऋषि विश्वामित्र के आदेशानुसार श्रीराम स्वयंवर में उपस्थित हुए। वाल्मीकि रामायण में रावण के स्वयंवर में आने का कोई विवरण शामिल नहीं है, अपितु स्वयंवर में राजा-महाराजाओं के अलावा दैत्यों के आने की भी बात कही गई है। लेकिन बड़े से बड़ा देव या दैत्य कोई भी शिव धनुष को उठा ना सका।

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रावण का कोई वर्णन नहीं

फिर बारी आई श्रीराम की, जिन्होंने ईश्वर का ध्यान करने के पश्चात एक ही हाथ से शिव धनुष को उठाया और उस पर प्रत्यंचा चढ़ाई। इसके बाद ही सीता द्वारा श्रीराम के गले में वरमाला डालकर विवाह सम्पन्न किया गया।

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लोककथा

किंतु एक अन्य लोककथा के मुताबिक स्वयंवर के आरंभ होते ही राजा जनक सभी राजाओं के समक्ष प्रस्तुत हुए और एक घोषणा की, ‘जो भी शिवजी के इस महान धनुष को उठाकर इस पर प्रत्यंचा चढ़ाएगा, वही मेरी पुत्री सीता का वर होगा’। यह सुनने के बाद स्वयंवर में मौजूद सभी भागीदार हक्के-बक्के रह गए।

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आया था रावण

इस कथा में लंकापति रावण के भी स्वयंवर में उपस्थित होने की बात कही गई है। रावण शिवजी के धनुष के पास आया और उसने अपने दाहिने हाथ से धनुष उठाने की कोशिश की लेकिन धनुष अपने जगह से हिल भी ना सका। वह हैरान रह गया.....

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लेकिन असफल हुआ

उसके पुन: प्रयास किया फिर भी कुछ ना हुआ, कुछ क्षण बार-बार प्रयास करने के बाद आखिरकार वह धनुष को उठाने में कामयाब तो हुआ लेकिन अचानक धनुष का वजन वह सहन ना कर सका और वह धनुष उसके पेट पर गिर गया। रावण चिल्लाने लगा, राजा जनक के कहने पर सैनिकों को बुलाकर रावण के ऊपर से धनुष हटाया गया और वापस अपने स्थान पर रखा गया।

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फिर आए श्रीराम

इस घटना से लज्जित होने के उपरांत रावण अपने जगह पर जाकर बैठ गया। फिर बारी आई विष्णु अवतार श्रीराम की, भरी सभा में उन्होंने गुरु विश्वामित्र का आशीर्वाद लिया और धनुष को उठाने के लिए आगे बढ़े। उन्होंने सफलतापूर्वक धनुष को एक ही हाथ से उठाया और उस पर प्रत्यंचा भी बढ़ाई।

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सभी यह देख भौचक्के रह गए

स्वयंवर में मौजूद एक-एक प्रतिभागी श्रीराम के इस अद्भुत दृश्य को देखकर भौचक्के रह गए। लेकिन दूसरी ओर राजा जनक अपनी पुत्री के लायक वर को देख बेहद प्रसन्न हुए, जिसके तुरंत बाद सीता को वरमाला प्रदान की गई। आगे बढ़कर उन्होंने श्रीराम को वह वरमाला पहनाई।

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क्या सीता स्वयंवर में रावण आया था?

श्रीराम बड़े हुए तो उनका विवाह राजा जनक की पुत्री सीता के साथ हुआ। सीता का विवाह स्वयंवर के जरिए हुआ जहां श्रीराम और रावण भी मौजूद थे।

सीता के स्वयंवर में रावण को निमंत्रण देने कौन गया था?

इसके बाद मुनि विश्वामित्र को राजा जनक की ओर से सीता स्वयंवर में आने का न्योता मिलता है। जिसमें मुनी जी अपने साथ श्री राम और लक्ष्मण को भी ले जाते हैं। अगले दृश्य में सभी राजा जनक के दरबार में बैठे हुए हैं। इसी दौरान राजा जनक के सामने पड़े शिव धनुष को उठाकर उसका चिल्ला चढ़ाने की सारी बात सुना देते हैं।

सीता स्वयंवर में रावण को क्यों नहीं बुलाया?

कालांतर में जब सीता स्वंयवर हुआ, तो लंका नरेश रावण भी माता सीता को पाने हेतु जनकपुर पहुंचें, किंतु माता जानकी के मन में प्रेम भावना न रहने के चलते लंका नरेश रावण की इच्छा पूरी नहीं हो सकी। तत्पश्चात, रावण स्वंयवर छोड़कर लंका प्रस्थान कर गए। कालांतर में जब भगवान श्रीराम वनवास गए, तो माता सीता को पाने हेतु उनका हरण किया।

रावण धनुष क्यों नहीं उठाया?

कोई अहंकारी उसे नहीं उठा सकता था। रावण एक अहंकारी मनुष्‍य था। वह कैलाश पर्वत तो उठा सकता था लेकिन धनुष नहींधनुष को तो वह हिला भी नहीं सकता था।