वर्षा ऋतु में मौसम बदलता रहता है। तेज़ वर्षा होती है। जल पहाड़ों के नीचे इकट्ठा होता है तो दर्पण जैसा लगता है। पर्वत मालाओं पर अनगिनत फूल खिल जाते हैं। ऐसा लगता है कि अनेकों नेत्र खोलकर पर्वत देख रहा है। पर्वतों पर बहते झरने मानो उनका गौरव गान गा रहे हैं। लंबे-लंबे वृक्ष आसमान को निहारते चिंतामग्न दिखाई दे रहे हैं। अचानक काले-काले बादल घिर आते हैं। ऐसा लगता है मानो बादल रुपी पंख लगाकर पर्वत उड़ना चाहते हैं। कोहरा धुएँ जैसा लगता है। इंद्र देवता बादलों के यान पर बैठकर नए-नए जादू दिखाना चाहते हैं। Show Page No 28:Question 2:निम्नलिखित प्रश्न का उत्तर दीजिए − 'मेखलाकार' शब्द का क्या अर्थ है? कवि ने इस शब्द का प्रयोग यहाँ क्यों किया है? Answer:मेखलाकार का अर्थ है गोल, जैसे - कमरबंध। यहाँ इस शब्द का प्रयोग पर्वतों की श्रृंखला के लिए किया गया है। ये पावस ऋतु में दूर-दूर तक गोल आकृति में फैले हुए हैं। Page No 28:Question 3:निम्नलिखित प्रश्न का उत्तर दीजिए − 'सहस्र दृग-सुमन' से क्या तात्पर्य है? कवि ने इस पद का प्रयोग किसके लिए किया होगा? Answer:पर्वतों पर हज़ारों रंग-बिरंगे फूल खिले हुए हैं। कवि को पहाड़ों पर खिले हज़ारों फूल पहाड़ की आँखों के समान लगते हैं। ये नेत्र अपने सुंदर विशालकाय आकार को नीचे तालाब के जल रुपी दर्पण में आश्चर्यचकित हो निहार रहे हैं। Page No 28:Question 4:निम्नलिखित प्रश्न का उत्तर दीजिए − कवि ने तालाब की समानता किसके साथ दिखाई है और क्यों? Answer:कवि ने तालाब की समानता दर्पण से की है। जिस प्रकार दर्पण से प्रतिबिंब स्वच्छ व स्पष्ट दिखाई देता है, उसी प्रकार तालाब का जल स्वच्छ और निर्मल होता है। पर्वत अपना प्रतिबिंब दर्पण रुपी तालाब के जल में देखते हैं। Page No 28:Question 5:निम्नलिखित प्रश्न का उत्तर दीजिए − पर्वत के हृदय से उठकर ऊँचे-ऊँचे वृक्ष आकाश की और क्यों देख रहे थे और वे किस बात को प्रतिबिंबित करते हैं? Answer:ऊँचे-ऊँचे पर्वत पर उगे वृक्ष आकाश की ओर देखते चिंतामग्न प्रतीत हो रहे हैं। जैसे वे आसमान की ऊचाइयों को छूना चाहते हैं। इससे मानवीय भावनाओं को बताया गया है कि मनुष्य सदा आगे बढ़ने का भाव अपने मन में रखता है। Page No 28:Question 6:निम्नलिखित प्रश्न का उत्तर दीजिए − शाल के वृक्ष भयभीत होकर धरती में क्यों धँस गए? Answer:आसमान में अचानक बादलों के छाने से मूसलाधार वर्षा होने लगी। वर्षा की भयानकता और धुंध से शाल के वृक्ष भयभीत होकर धरती में धँस गए प्रतीत होते हैं। Page No 28:Question 7:निम्नलिखित प्रश्न का उत्तर दीजिए − झरने किसके गौरव का गान कर रहे हैं? बहते हुए झरने की तुलना किससे की गई है? Answer:झरने पर्वतों की ऊँची चोटियों से झर-झर करते बह रहे हैं। ऐसा लगता है मानो वे पर्वतों की महानता की गौरव गाथा गा रहे हों। Page No 28:Question 1:भाव स्पष्ट कीजिए − है टूट पड़ा भू पर अंबर। Answer:सुमित्रानंदन पंत जी ने इस पंक्ति में पर्वत प्रदेश के मूसलाधार वर्षा का वर्णन किया है। पर्वत प्रदेश में पावस ऋतु में प्रकृति की छटा निराली हो जाती है। कभी-कभी इतनी धुआँधार वर्षा होती है मानो आकाश टूट पड़ेगा। Page No 28:Question 2:भाव स्पष्ट कीजिए − −यों जलद-यान में विचर-विचर था इंद्र खेलता इंद्रजाल। Answer:कभी गहरे बादल, कभी तेज़ वर्षा और तालाबों से उठता धुआँ − यहाँ वर्षा ऋतु में पल-पल प्रकृति वेश बदल जाता है। यह सब दृश्य देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे बादलों के विमान में विराजमान राजा इन्द्र विभिन्न प्रकार के जादुई खेल-खेल रहे हों। Page No 28:Question 3:भाव स्पष्ट कीजिए − गिरिवर के उर से उठ-उठ कर उच्चाकांक्षाओं से तरुवर हैं झांक रहे नीरव नभ पर अनिमेष, अटल, कुछ चिंतापर। Answer:इन पंक्तियों का भाव यह है कि पर्वत पर उगे विशाल वृक्ष ऐसे लगते हैं मानो इनके हृदय में अनेकों महत्वकांक्षाएँ हैं और ये चिंतातुर आसमान को देख रहे हैं। Page No 29:Question 1:इस कविता में मानवीकरण अलंकार का प्रयोग किया गया है? स्पष्ट कीजिए। Answer:प्रस्तुत कविता में जगह-जगह पर मानवीकरण अलंकार का प्रयोग करके प्रकृति में जान डाल दी गई है जिससे प्रकृति सजीव प्रतीत हो रही है; जैसे − पर्वत पर उगे फूल को आँखों के द्वारा मानवकृत कर उसे सजीव प्राणी की तरह प्रस्तुत किया गया है। "उच्चाकांक्षाओं से तरूवर हैं झाँक रहे नीरव नभ पर " इन पंक्तियों में तरूवर के झाँकने में मानवीकरण अलंकार है, मानो कोई व्यक्ति झाँक रहा हो। Page No 29:Question 2:आपकी दृष्टि में इस कविता का सौंदर्य इनमें से किस पर निर्भर करता है − (क) अनेक शब्दों की आवृति पर (ख) शब्दों की चित्रमयी भाषा पर (ग) कविता की संगीतात्मकता पर Answer:(ख) शब्दों की चित्रमयी भाषा पर ✓ इस कविता का सौंदर्य शब्दों की चित्रमयी भाषा पर निर्भर करता है। कविता में चित्रात्मक शैली का प्रयोग करते हुए प्रकृति का सुन्दर रुप प्रस्तुत किया गया है। Page No 29:Question 3:कवि ने चित्रात्मक शैली का प्रयोग करते हुए पावस ऋतु का सजीव चित्र अंकित किया है। कविता में इन स्थलों पर चित्रात्मक शैली की छटा बिखरी हुई है- कवि ने तालाब की तुलना दर्पण से क्यों की है?कवि ने तालाब की समानता दर्पण से की है। जिस प्रकार दर्पण से प्रतिबिंब स्वच्छ व स्पष्ट दिखाई देता है, उसी प्रकार तालाब का जल स्वच्छ और निर्मल होता है। पर्वत अपना प्रतिबिंब दर्पण रुपी तालाब के जल में देखते हैं।
कवि ने तालाब की पारदर्शिता दिखाने के लिए दर्पण का प्रयोग क्यों किया है?जिस तरह दर्पण में अपना प्रतिबिंब देखते हैं। उसी तरह तालाब में भी अपना स्वच्छ एवं निर्मल प्रतिबिंब आसानी से देखा जा सकता है और पर्वत आदि अपना प्रतिबिंब विशाल तालाब रूपी दर्पण में देखकर निहार रहे हैं। इसलिए कवि ने तालाब की तुलना दर्पण से की है।
कवि ने तालाव की समानता किसके साथ दिखाई है और क्यों?Solution : कवि ने तालाब की समानता दर्पण से की है क्योंकि तालाब का जल बहुत स्वच्छ है जिसमें विशाल आकार वाले पर्वत का प्रतिबिम्ब स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है, जैसे कि दर्पण में देखते हैं।
वृक्ष जल दर्पण में क्या देखना चाहते हैं?कवि के अनुसार उसी तरह तालाब का जल भी दर्पण के समान है, क्योंकि यह अत्यंत स्वच्छ और निर्मल है। इसमें किसी भी वस्तु का प्रतिबिंब आसानी से देखा जा सकता है। प्रकृति के विभिन्न तरह के तत्व जैसे के पर्वत, वृक्ष आदि तालाब दर्पण रूपी जल में अपना प्रतिबिंब निहार कर अपने सौंदर्य पर आत्ममुग्ध हो रहे हैं।
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