Bihar Board Class 10 Hindi Book Solutions Godhuli Bhag 2 पद्य खण्ड Chapter 5 भारतमाता Text Book Questions and Answers, Summary, Notes. Show Bihar Board Class 10 Hindi भारतमाता Text Book Questions and Answersकविता के साथ प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रस्तुत व्याख्येय में कवि ने कहा है कि भारत पर अंग्रेजी हुकूमत कायम हो गयी है। यहाँ के लोग अपने ही घर में अधिकार विहीन हो गये हैं। पराधीनता के चलते यहाँ की प्राकृतिक शोभा भी उदासीन प्रतीत हो रही है। ऐसा प्रतीत होता है कि यहाँ कवि की स्वर्णिम फसल पैरों तले रौंद दी गयी है और भारत माता का मन सहनशील बनकर कुंठित हो रही है। इसमें कवि ने पराधीन भारत की कल्पना को मूर्त रूप दिया है। (ख) प्रस्तुत पंक्ति हिन्दी साहित्य के ‘भारत माता’ पाठ से उद्धत है जो सुमित्रानंदन पंत द्वारा रचित है। इसमें कवि ने भारत का मानवीकरण करते हुए पराधीनता से प्रभावित भारत माता के उदासीन, दुःखी एवं चिंतित रूप को दर्शाया है। प्रस्तुत व्याख्येय में कवि ने चित्रित किया है कि गुलामी में जकड़ी भारत माता चिंतित है, उनकी भृकुटि से चिंता प्रकट हो रही है, क्षितिज पर गुलामी रूपी अंधकार की छाया पड़ रही है, माता की आँखें अश्रुपूर्ण हैं और आँसू वाष्प बनकर आकाश को आच्छादित कर लिया है। इसके माध्यम से परतंत्रता की दुःखद स्थिति का दर्शन कराया गया है। पराधीन भारत माता उदासीन है इसका बोध कराने का पूर्ण प्रयास किया है। प्रश्न 8. प्रश्न 9. दीनता से दुखी भारतमाता अपनी आँखें नीचे किए हुए हैं, होठों पर निःशब्द रोदन है और युगों से यहाँ छाए अंधकार से त्रस्त, यह अपने घर में ही बेगानी है। सब कुछ इसी का है, किंतु । नियमित का चक्र है कि आज इसका कुछ नहीं है, दूसरे ने अधिकार जमा लिया
है। भारत के खेतों पर सोना उगता है, पर इस देश को दूसरे अपने पैरों से रौंद रहे हैं, कुठित मन है हृदय हार रहा है, होंट थरथरा रहे हैं पर मुँह से बोली नहीं निकल रही। लगता है इस शरत चन्द्रमा को राहू ने ग्रस लिया है। भारत माता के माथे पर चिंता की रेखाएँ हैं, आँखों में आँसू भरे हैं। मुख-मण्डल की तुलना चन्द्रमा से है किन्तु ‘गीता’ के सन्देश देनेवाली यह जननी मूढ़ बनी है। . किन्तु लगता है, आज इसकी अबतक की तपस्या सफल हो रही है, इसका तप-संयम रंग ला रहा है। अहिंसा का सुधा-पान कराकर यह लोगों का भय, भ्रम और तय दूर करनेवाली जगत जननी नये जीवन का विकास कर रही है। भाषा की बात प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न
4. काव्यांशों पर आधारित अर्थ-ग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर 1. भारतमाता ग्रामवासिनी प्रश्न (ख) प्रस्तुत पद्यांश में हिन्दी काव्य धारा के प्रख्यात सुकुमार कवि सुमित्रानंदन पंत ने भारतमाता का यथार्थ चित्र खींचा है।
गुलामी के जंजीर में जकड़ी हुई भारत माता अंत:करण से कितनी व्यथित है इसी का चित्रण कवि यथार्थवादी धरातल पर कर रहे हैं। यहाँ कवि भारतमाता (ग) कवि मुख्यतः मानवतावादी हैं और प्रकृति के पुजारी हैं। इसलिए यहाँ भी ग्रामीण क्षेत्र के प्रकृति का मानवीकरण करते हुए कहते हैं कि हमारी भारतमाता गाँवों में निवास करती हैं। भारत की भोली-भाली जनता गाँवों में रहती है जहाँ प्रकृति भी अनुपम सौंदर्य के साथ निवास करती है। ग्रामीण क्षेत्रों के विस्तृत भू-भाग में जो फसल लहलहाते हैं वे भारत माता के श्यामले शरीर के समान सुशोभित हो रहे हैं। भारत माता का धरती रूपी विशाल आँचल धूल-धूसरित और मटमैला दिखाई पड़ रहा है। गुलामी की जंजीर में जकड़ी हुई भारत माता कराह रही है। अर्थात् भारतीय जनता के क्रन्दन के साथ ऐसा लगता है कि भारत की प्रकृति भी परतंत्रता के कारण काफी व्यथित है। मिट्टी की प्रतिमा के समान निर्जीव और चेतना रहित होकर चुपचाप शांत अवस्था में भारत माता बैठी हुई है और अंत:करण से कराहती हुई गंगा और यमुना के धारा के रूप में आँसू बहा रही है। यह भारत माता दीनता से जकड़ी हुई है। भारत की परतंत्रता पर अपने आपको आश्रयहीन महसूस कर रही है और जैसे लगता है कि बिना पलक गिराये हुए अपनी दृष्टि को झुकाये हुए कुछ गंभीर चिंता में पड़ी हुई है। हमारी भारत माता अपने ओठों पर बहुत दिनों से क्रंदन की उदासीन भाव रखी हुई है। जैसे लगता है कि बहुत युगों से अंधकार और विषादमय वातावरण में अपने आपको जकड़ी हुई महसूस कर रही है और यह भी प्रतीत हो रहा है कि अपने ही घर में प्रवासिनी बनी हुई है। इसका अभिप्राय यह है कि अंग्रेज शासक खुद भारत में रहकर भारतवासियों को शासन में कर लिया है। (घ) प्रस्तुत अवतरण में भारतीय परतंत्रतावाद का सजीव चित्रण किया गया है। भारत के प्राकृतिक वातावरण का मानवीकरण किया गया है जिसमें भारत माता को रोती हुई मिट्टी की प्रतिमा बनाकर दर्शाया गया है। मिट्टी की प्रतिमा खेतों में लहलहाते फसल और धूल-धूसरित आँचल के माध्यम से कवि भारत के ग्रामीण क्षेत्रों के प्रति असीस आस्था और विश्वास व्यक्त किया है। साथ ही पर्यावरण की सुरक्षा में ग्रामीण क्षेत्रों के प्राकृतिक वातावरण की प्राथमिकता देना चाहता है। (ङ)
2. तीस कोटि सन्तान नग्न तन, प्रश्न (ख) प्रस्तुत अवतरण में हिन्दी छायावादी विचारधारा के महानतम कवि सुमित्रानंदन पंत भारतवासियों का चित्र खींचा है। यहाँ दलित, अशिक्षित निर्धन, कुंठित, भारतवासी अतीत की गरिमा को भुलाकर वर्तमान की वैभवहीनता प्रणाली में जीवनयापन कर रहे हैं। परतंत्रता की जंजीर भारतवासियों को ऐसां जकड़ लिया है कि उनका जीवन अंधकारमय वातावरण में बिलबिलाता हुआ भटक रहा है। (ग) कवि प्रस्तुत अंश में भारतवासियों के बारे में कहता है कि भारत के तीस करोड़ जनता अंग्रेजों के द्वारा शोषित होने के कारण वस्त्रहीन हो गये हैं। अर्थात्
जिस समय भारत गुलाम था उस समय भारत की जनसंख्या तीस करोड़ थी। गरीबी की मार ऐसी थी कि उनके शरीर पर साबुन कपड़े भी नहीं थे। आधा पेट खाकर शोषित होकर, निहत्थे होकर, अज्ञानी और असभ्य होकर जीवनयापन कर रहे थे। दासता का बंधन समस्त भारतीयों को अशिक्षित और निर्धन बना दिया था। जैसे लगता था कि हमारी भारत माता ग्रामीण वृक्षों के नीचे सिर झुकाये हुए कोई गंभीर खेतों में चमकीले सोने के समान लहलहाते हुए फसल किसी दूसरे के पैरों के नीचे रौंदा जा रहा है और हमारी भारत माता धरती के
समान सहनशील होकर हृदय में घुटन और क्रंदन . का वातावरण लेकर जीवन जी रही है। मन ही मन रोने के कारण भारतमाता के अधर काँप रहे (घ) प्रस्तुत अंश में गुलामी से जकड़ा भारतवासियों का बहुत ही दर्दनाक चित्र खींचा गया है। यह चित्र आज भी पूर्ण प्रासंगिक है। इसके माध्यम से कवि समस्त भारतवासियों को अतीत की गहराई में ले जाना चाहते हैं। साथ ही राहुरूपी अंग्रेजों की कट्टरता और संवेदनहीनता का दर्शन करवाते हैं। (ङ)
3. चिंतित भृकटि क्षितिज तिमिरांकित, प्रश्न (ख) प्रस्तुत अवतरण में हिन्दी छायावादी के महान प्रवर्तक सुमित्रानंदन पंत परतंत्रतावाद , में भारतवासियों की स्थिति कितनी कठोरतम थी एवं कितना जटिल जीवन था, इसी का वर्णन यथार्थ के धरातल पर करते हैं। (ग) कवि भारत माता का नाम लेकर सम्पूर्ण भारतीय भाषावाद, जातिवाद, संप्रदायवाद एवं राजनीतिवाद को एकता के सूत्र में पिरोना चाहते हैं। तब तो भारत की तीस करोड़ जनता के मनोभिलाषा को दर्शाते हैं। हमारी भारतमाता की भृकुटी चिंता से ग्रसित है। सम्पूर्ण धरातल, परतंत्रारूपी अंधकार से घिरा हुआ है। सभी भारतवासियों के नेत्र झुके हुए हैं। भारतवासियों का हृदय-रूपी आकाश आँसूरूपी वाष्प से ढंक गया है। चंद्रमा के समान सुन्दर और प्रसन्न मुख उदासीन होकर कोई घोर चिंता के सागर में डूब गया है जो भारतमाता अज्ञानता को समाप्त करनेवाली गीता उत्पन्न की है वही आज अज्ञानता ‘के वातावरण में भटक रही है। इतने कठोरतम जीवन के बाद भी हमारी भारतमाता का तप और संयम में कमी नहीं आयी है। अपने समस्त भारतवासियों को अहिंसा का दूध पिलाकर उनके मन के भय अज्ञानता, प्रेमहीनता एवं भ्रमशीलता को दूर करती हुई सम्पूर्ण जगत की जननी होकर जीवन को विकास करनेवाली है। (घ) प्रस्तुत पद्यांश में पराधीन भारत
की दीन हालत की वास्तविक झलक मिलती है। इसमें पराधीनता से चिंतित भारतमाता की उदासीन चेहरा को जीवंत रूप में चिंत्रित किया गया है। नम आँखें, अश्रुरूपी वाष्प, गुलामी की अंधकाररूपी छाया के माध्यम से भारत माता दुखी भाव को जीवंत रूप में दर्शाया गया है। पद्यांश में भारतमाता विशाल छवि की कल्पना करते हुए जग जननी की संज्ञा देकर इसकी महत्ता को उजागर किया है। इस काव्यांश के माध्यम से ज्ञान, अहिंसा, तप, संयम को धारण करनेवाली भारत माता जीवन विकासिनी है ऐसी चेतना विश्व में जगाने का (ङ)
वस्तुनिष्ठ प्रश्न I. सही विकल्प चुनें- प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. II. रिक्त स्थानों की पूर्ति करें प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. अतिलघु उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. व्याख्या खण्ड प्रश्न 1. प्रश्न 2. कवि भारत माँ की पीड़ा, आकुलता, अभावग्रस्तता को देखकर व्यथित हो उठा है। वह कहता है कि भारत माता दीनता से पीड़ित हैं। आँखें अपलक रूप में नीचे की ओर झुकी हुई हैं। होठों पर बहुत दिनों से मौन दिखायी पड़ता है। युग-युग के अंधकार सदृश्य टूटे मन के साथ निज घर में वास करते हुए भी प्रवासिनी के रूप में यानी अजनबी के रूप में रह रही हैं। इन पंक्तियों के द्वारा कवि ने भारत माता का मानवीकरण किया है और सजीव चित्रण प्रस्तुत किया है। भारतीय जन की पीड़ा, दीनता, रूदन, नैराश्य जीवन, टूट मन, पुराने कष्टप्रद घावों को देखकर कवि का संवेदनशील हृदय पीड़ित हो उठता है और भारत माता को भारतीय जन की पीड़ाओं, चिन्ताओं, कष्टों के रूप में चित्रित कर दिखाना चाहता है। कविता की इन पंक्तियों में भारतीय जन की पीड़ा, चिंता, भारत माता की चिंता है, पीड़ा है, अभावग्रस्तता है। प्रश्न 3. प्रस्तुत पंक्तियों में कवि के कहने का भाव यह है कि भारत के लोग घोर गरीबी, फटेहाली, बेकारी और अभाव में आज भी जी रहे हैं. और कल भी जीने के लिए विवश हैं। प्रश्न 4. शरत के चन्द्रमा की हँसी की तरह यानी चांदनी रात की छटा से युक्त भारत माता का व्यक्तित्व होना चाहिए। वहाँ आज उदासी है, रुदन है, कुंठा है, पीड़ा है, कंपन है, रौंदा हुआ मन है। . इन पंक्तियों के द्वारा कवि ने भारतीय जन के अंतर के संत्रास को भारतमाता की पीड़ा, संत्रास, कुंठा के रूप में चित्रित किया है। भारत माता की विवशता, दीनता, दलित, टूटे मन के भाव को दिखाया गया है। प्रश्न 5. कवि कहता है कि भारत माता की भौंहें ऐसी लगती हैं मानो अंधकार से घिरा हुआ क्षितिज हो। आँखें झुकी हुई हैं जैसे वाष्प से ढंका हुआ नभ दिखता है। चंद्रमा से उपमा दिये जानेवाले मुख की शोभा आज विलुप्त है। पूरे विश्व के मूर्ख जनों को गीता का ज्ञान देनेवाली भारत माता आज स्वयं अंधकार में यानी घोर ज्ञानाभाव, अर्थाभाव के बीच दैन्य जीवन जी रही है। माँ का मुख-मंडल ज्ञान-ज्योति से, प्रभावान रहना चाहिए वह मलिन है पूरा व्यक्तित्व ही दयनीय दशा का बोध करा रहा है। इन पक्तियों के द्वारा कवि भारत की वर्तमान काल की विवशताओं, अभावों, अंधकार में जीने की विवशताओं, कुंठाओं से ग्रसित मन का चित्रण कर हमें भारत माता के मानवीकरण रूप द्वारा भारतीय समाज का सच्चा प्रतिबिंब उपस्थित कर यथार्थ-बोध करा रहा है। प्रश्न 6. कवि कहता है कि आज हम सबका जीवन सफल है क्योंकि भारत माता तप, संयम, सत्य और अहिंसा रूपी अपने स्तन के सुधा का पान कराकर जनमन के भय का हरण कर रही है। भय और अंधकार से मुक्ति दिला रही है। इन पंक्तियों में गांधी और बुद्ध के जीवन-दर्शन और करुणा के उपदेश छिपे हैं। भारत माता के इन सपूतों ने पूरे विश्व को अंधकार से आलोक की ओर चलने का मार्ग दर्शन किया। कवि अपनी काव्य पंक्तियों
द्वारा भारतीय सांस्कृतिक गरिमा का गुणगान करता है और विश्व को याद दिलाता है कि भारत माता के आँचल से, भारत माँ की गोद से ही प्रभा-पुंज का उद्भव हुआ जिससे सारा विश्व आलोकित हुआ। सारा विश्व विश्वबंधुत्व, समता, शांति, अहिंसा, सत्य की ओर अग्रसर हुआ। भारतमाता कवि परिचय सुमित्रानंदन पंत का जन्म सन् 1900 में अलमोड़ा जिले के रमणीय स्थल कौसानी (उत्तरांचल) में हुआ था । जन्म के छह घंटे बाद ही माता सरस्वती देवी का देहान्त हो गया । पिता गंगादत्त पंत कौसानी टी स्टेट में एकाउंटेंट थे । पंतजी की प्राथमिक शिक्षा गाँव में हुई और फिर बनारस से उन्होंने हाईस्कूल की शिक्षा पायी । वे कुछ दिनों तक कालाकांकर राज्य में भी रहे । उसके बाद आजीवन वे इलाहाबाद में रहे 1 29 दिसंबर 1977 ई० में उनका निधन हो गया। पंतजी का आरंभिक काव्य प्रकृति प्रेम और शिशु सुलभ जिज्ञासा को लेकर प्रकट हुआ । उनकी आरंभिक रचनाएँ प्रकृति और सौंदर्य के प्रेमी कवि की संवेदनशील अभिव्यक्तियों से परिपूर्ण हैं। पंतजी प्रवृत्ति से छायावादी हैं, परंतु उनके विचार उदार मानवतावादी हैं । उन्होंने प्रसाद और निराला के समान छंदों और शब्द योजना में नवीन प्रयोग किए । पंतजी की प्रतिभा कलात्मक सूझ से सम्पन्न है, अतः उनकी रचनाओं में एक विलक्षण मृदुता और सौष्ठव मिलता है । युगबोध के अनुसार अपनी काव्यभूमि का विस्तार करते रहना पंत की काव्य-चेतना की विशेषता है । वे प्रारंभ में प्रकृति सौंदर्य से अभिभूत हुए, फिर मानव सौंदर्य से । मानव सौंदर्य ने उन्हें समाजवाद की ओर आकृष्ट किया । समाजवाद से वे अरविन्द दर्शन की ओर प्रवृत्त हुए। वे मानवतावादी कवि थे, जो मानव इतिहास के नित्य विकास में विश्वास करते थे । वे अतिवादिता एवं संकीर्णता के घोर विरोधी रहे । उनका अंतिम काव्य ‘लोकायतन’ है जो उनके परिपक्व चिंतन को समेट देता है। उनकी प्रमुख काव्यकृतियाँ हैं – ‘उच्छ्वास’, ‘पल्लव’, ‘वीणा’, ‘ग्रंथि’, ‘गुंजन’, ‘युगांत’, ‘युगवाणी’, ‘ग्राम्या’, ‘स्वर्णधूलि’, ‘स्वर्णकिरण’, ‘युगपथ’, ‘चिदंबरा’ आदि । पंतजी ने नाटक, आलोचना, कहानी, उपन्यास आदि भी लिखा । ‘चिदंबरा’ पर उन्हें भारतीय ज्ञानपीठ’ भी मिला। प्रकृति सौंदर्य की कविता के लिए विख्यात कवि की रचनाओं में यह कविता हिंदी की यथार्थवादी कविता के एक नये उन्मेष. की तरह है। प्रख्यात छायावादी कवि सुमित्रानंदन पंत की यह प्रसिद्ध कविता उनकी कविताओं के संग्रह ‘ग्राम्या’ से संकलित है । यह कविता आधुनिक हिंदी के उत्कृष्ट प्रगीतों में शामिल की जाती है । अतीत के गरिमा-गान द्वारा अब तक भारत का ऐसा चित्र खींचा गया था जो ऐतिहासिक चाहे जितना रहा हो, वर्तमान को देखते हुए वास्तविक प्रतीत नहीं होता था । धन-वैभव, शिक्षा-संस्कृति, जीवनशैली आदि तमाम दृष्टियों से पिछड़ा हुआ, धुंधला और मटमैला दिखाई पड़ता यह देश हमारा वही भारत है जो अतीत में कभी सभ्य, सुसंस्कृत, ज्ञानी और वैभवशाली रहा था। कवि यहाँ इसी भारत का यथातथ्य चित्र प्रस्तुत करता है। भारतमाता Summary in Hindiपाठ का अर्थ छायावाद के चार स्तम्भों में एक सुमित्रानंदन पंत द्वारा चित्र भारतमाता शीर्षक कविता एक चर्चित कविता है। कवि प्रवृत्ति से छायावादी है, परन्तु उनके विचार उदार मानवतावादी है। इनकी प्रतिमा कलात्मक सूझ से सम्पन्न है। युगबोध के अनुसार अपनी काव्य भूमिका विस्तार करते रहना पंत की काव्य-चेतना की विशेषता है। प्रस्तुत कविता कवि की प्रसिद्ध कविता उनकी कविताओं के संग्रह ‘ग्राम्या’ से संकलित है। यह कविता आधुनिक हिन्दी के उत्कृष्ट प्रगीतों में शामिल की जाती है। इसमें अतीत के गरिमा, गान द्वारा अबतक भारत का ऐसा चित्र खींचा गया था जो वास्तविक प्रतीत नहीं होता है। धन-वैभव शिक्षा-संस्कृति, जीवनशैली आदि तमाम दृष्टियों से पिछड़ा हुआ धुंधला और मटमैला दिखाई पड़ता है। परन्तु कवि भारत का यथातथ्य चित्र प्रस्तुत किया है। भारत की आत्मा गाँवों में बसती है। ऐसी धारणा रखने वाली भारतमाता क्षुब्ध और उदासीन है। शस्य श्यामला धरती आज धूल-धूसरित हो गई है। करोड़ों लोग-नग्न, अर्द्धनग्न हैं। अलगाववाद, आतंकवाद, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी सुरसा की तरह फैलते जा रहे हैं। चारो तरफ अज्ञानता, अशिक्षा फैली हुई है। गीता की उपदेशिका आज किंकर्तव्य विमूढ़ बनी हुई है। जीवन की सारी भंगिमाएँ धूमिल हो गई है। वस्तुतः कवि यथातथ्यों के माध्यम सम्पूर्ण भारतवासियों को अवगत करना चाहता है। शब्दार्थ श्यामल : साँवला कवि की दृष्टि में आज भारतमाता का तप संयम क्यों सफल है?कवि की दुष्टि में आज भारतमाता का तप-संयम क्यों सफल है ? उत्तर :- किन्तु भारतमाता ने गाँधी जैसे पूत को जन्म दिया और अहिंसा का स्तन्यपान अपने पुत्रों को कराई है । अतः विश्व को अंधकारमुक्त करनेवाली, संपूर्ण संसार को अभय का वरदान देनेवाली भारत माता का तप-संयम आज सफल है ।
भारत माता कविता की दृष्टि से वर्तमान भारत में क्या परिवर्तन हुआ है?उत्तर- प्रस्तुत कविता में कवि ने दर्शाया है कि परतंत्र भारत की स्थिति दयनीय हो गई थी। परतंत्र भारतवासियों को नंगे वदन, भूखे रहना पड़ता था। यहाँ की तीस करोड़ जनता शोषित-पीड़ित, मूढ़, असभ्य, अशिक्षित, निर्धन एवं वृक्षों के नीचे निवास करने वाली थी। उत्तर- भारत को अंग्रेजों ने गुलामी की जंजीर में जकड़ रखा था।
भारत माता कविता का भावार्थ क्या है?भारत माता ग्रामवासिनी. शीर्षक कविता में भारत माता को देश की आत्मा कहा है तथा इसे गाँव में निवास करने वाली माँ के रूप में चित्रित किया है। प्रस्तुत कविता में ग्रामीण जीवन की वास्तविकता और महत्ता को रेखांकित करते हुए कवि कहते हैं कि भारत माता की आत्मा गाँव में निवास करती है।
कवि के अनुसार भारत माता किसकी उन्नति करना चाहता है?कवि सुमित्रानंदन पंत जी कहते हैं कि भारतमाता कि धरती बहुत ही उपजाऊ है। प्राकृतिक संपदा से समृद्ध है, लेकिन भारतवासी निर्धन है। उनका मन कुंठित है। कवि भारत माता को दुख की प्रतिमा के रूप में प्रस्तुत करने के बाद भारत वासियों से आशा करता है कि अहिंसा, सत्य और तप, संयम के मार्ग पर चलकर वे अवश्य सफल होंगे।
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