मां बाप के अलावा ऐसा कौन है जो बिना मतलब का प्यार करता है? - maan baap ke alaava aisa kaun hai jo bina matalab ka pyaar karata hai?

पति और पत्नी दोनों एक ही गाड़ी के दो पहिए होते हैं। अगर एक भी पहिया खराब हुआ तो जिंदगी की गाड़ी रुक जाएगी, लेकिन माता-पिता उस गाड़ी का इंजन होते हैं और अगर वो खराब हो गया तो भी जिंदगी की ये गाड़ी आगे नहीं बढ़ पाएगी। शादी की कामयाबी के लिए सिर्फ प्यार ही जरूरी नहीं है। कहते हैं कि शादी दो इंसानों के बीच नहीं, बल्कि दो परिवारों के बीच होती है और इसे बरकरार रखने के लिए पति-पत्नी के साथ-साथ उनके परिवारों को भी काफी मेहनत करनी पड़ती है और बहुत से समझौते भी करने पड़ते हैं। 

शादी के बाद एक लड़की को नए परिवार और नए माहौल में ढलना पड़ता है, लेकिन उसके साथ उसके पति को भी बहुत सी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। शादी के बाद उसके सामने ये सवाल खड़ा हो जाता है कि वो अपने माता-पिता और अपनी पत्नी में से किसे अहमियत दे। वैसे तो सुनने में ये बड़ा मामूली सवाल लगता है, लेकिन बहुत से शादीशुदा जोड़ों को इस कशमकश में फंसकर कई तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। 

Table of Contents

मां बाप के अलावा ऐसा कौन है जो बिना मतलब का प्यार करता है? - maan baap ke alaava aisa kaun hai jo bina matalab ka pyaar karata hai?

  • क्यों होती है ऐसी कशमकश?- ​Why The Dilemma Arises?
  • ऐसे में क्या करना चाहिए? - What Should Be Done?
  • माता-पिता हमेशा सही नहीं होते - ​Parents Are Not Always Right
  • आदर्श पति बनना भी गलत - It Is Wrong To Be An Ideal Husband
  • जब हालात हो जाएं खराब - When The Situation Grows Worse
  • जब हो स्टैंड लेने का वक्त - Time To Take A Stand

क्यों होती है ऐसी कशमकश?- ​Why The Dilemma Arises?

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ज्यादातर घरों में यह कशमकश प्यार की वजह से खड़ी होती है। मां या बाप अपने बेटे को बिना किसी मतलब के प्यार करते हैं। इसी तरह पत्नी भी अपने पति को बिना शर्त प्यार करती है। हालांकि सबका मकसद उस इंसान को खुश रखना होता है जिसे वो प्यार करते हैं, लेकिन इस मकसद को पाने का उनका तरीका अलग-अलग हो सकता है। ऐसे में टकराव होना लाजिमी है। बहू के आने पर एक मां को हमेशा अपने बेटे को खोने का डर बना रहता है। वहीं बहू पर भी खुद को अपनी सास से बेहतर साबित करने का दबाव रहता है। ऐसी हालत में बेटे को किसी एक का पक्ष लेना पड़ सकता है या मीडिएटर का रोल निभाना पड़ सकता है।

ऐसे में क्या करना चाहिए? - What Should Be Done?

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जब किसी शख्स के एक तरफ मां-बाप हों और दूसरी तरफ पत्नी, तो ऐसी हालत में उसे क्या करना चाहिए। वो या तो किसी एक का पक्ष ले सकता है और दूसरे को इग्नोर कर सकता है, या न्युट्रल रह सकता है। हालांकि बाद वाला ऑप्शन ज्यादा आसान है, लेकिन कभी-कभी जब आप सही-गलत जानते हों तो तो पक्ष लेना जरूरी हो जाता है, लेकिन ऐसा करने से पहले उसे दोनों पक्षों को ये बता देना चाहिए कि क्या सही है और उसने ऐसा फैसला क्यों किया है। 

माता-पिता हमेशा सही नहीं होते - ​Parents Are Not Always Right

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हमारे लिए ये यकीन करना नैचुरल है कि माता-पिता हमेशा सही होते हैं, लेकिन याद रखें कि वो भी इंसान हैं और गलती इंसानों से ही होती है। अपने माता-पिता की गलतियों को कुबूल करना मुश्किल जरूर है, लेकिन क्या आपको उनकी कमियों को नज़रअंदाज करके अपनी शादीशुदा जिंदगी को बर्बाद करना चाहिए? जरूरी नहीं कि आप अपनी पत्नी के सामने ही अपने पैरेंट्स को उनकी गलतियों के बारे में बताएं, लेकिन इतना जरूर करें कि उन्हें अपनी गलती का एहसास हो।  

आदर्श पति बनना भी गलत - It Is Wrong To Be An Ideal Husband

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जिस तरह मां-बाप की हां में हां मिलाना सही नहीं है, उसी तरह इसी तरह आदर्श पति बनने के चक्कर में अपनी पत्नी की हर बात मानना भी गलत है। उसकी हर प्रॉब्लम सॉल्व करने की आदत कतई न डालें। इसके बजाय उसे समझाएं कि पत्नी होने के साथ-साथ वह एक बहू भी है और अपने ससुराल वालों से उसे जो भी गिले-शिकवे हैं, उन्हें खुद से सुलझाना उसे सीखना चाहिए। उसे समझाएं कि क्या उसने कभी अपने माता-पिता से झगड़ा नहीं किया? और क्या तब उसने अपनी प्रॉब्लम्स को सॉल्व करने के लिए किसी तीसरे इंसान की मदद ली थी? उसे खुद इस बारे में सोचने दें और किसी नतीजे पर पहुंचने दें।

जब हालात हो जाएं खराब - When The Situation Grows Worse

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जब बात हाथ से निकल जाए और पत्नी व उसके ससुराल वालों के बीच हालात खराब हो जाएं तो बेटे को दोनों पक्षों को यह समझाना चाहिए कि वो सब अब एक परिवार हैं और उन्हें मतभेद बढ़ाने के बजाय प्रॉब्लम का हल खोजना चाहिए। यह बहुत कुछ इस बात पर भी निर्भर करता है कि आप हालात को कैसे संभालते हैं और मीडिएटर की भूमिका कितनी अच्छी तरह निभा पाते हैं। एक बेटा और पति होने के बीच में सही संतुलन बनाने से ही आप प्रॉब्लम को सॉल्व कर पाएंगे।

जब हो स्टैंड लेने का वक्त - Time To Take A Stand

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जब आपके सभी डिप्लोमैटिक हथियार नाकाम हो जाएं तो वक्त का तकाजा ये है कि आप स्टैंड लेते हुए किसी एक का पक्ष लें। हालांकि इसका चुनाव करने के लिए आपको काफी समझदारी से काम लेने की जरूरत है। सही और गलत में फर्क करना सीखें और गलत को गलत कहने का साहस दिखाएं। आप किसका पक्ष लेते हैं, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, लेकिन दूसरे पक्ष को अपने इस फैसले के पीछे की वजह जरूर बताएं। इसके अलावा अपनी पत्नी और माता-पिता को ‘माफ करो और भूल जाओ’ की पॉलिसी अपनाने के लिए प्रोत्साहित करें।

शादी करने के बाद पति-पत्नी दोनों को एक-दूसरे की जरूरत होती है, चाहे वो इमोशनल सपोर्ट हो या कुछ और,  लेकिन इसका मतलब ये बिल्कुल नहीं है कि आपके माता-पिता को आपकी जरूरत नहीं है। आपको इस बात का ख़याल रखना चाहिए कि एक अच्छा पति बनने की कोशिश में आप एक बेटे का फर्ज़ न भूल जाएं। यहां जरूरी ये है कि आपको एक बेटे और एक पति दोनों की भूमिका बखूबी निभानी है और दोनों रिश्तों को साथ लेकर जिंदगी में आगे बढ़ना है।

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