कौन सा धर्म मांस खाने की इजाजत देता है? - kaun sa dharm maans khaane kee ijaajat deta hai?

भारतीय संविधान के प्रमुख निर्माताओं में से एक डॉक्टर बीआर अंबेडकर अच्छे शोधकर्ता भी थे. उन्होंने गोमांस खाने के संबंध में एक निबंध लिखा था, 'क्या हिंदुओं ने कभी गोमांस नहीं खाया?'

यह निबंध उनकी किताब, 'अछूतः कौन थे और वे अछूत क्यों बने?' में है.

दिल्ली विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान के प्रोफ़ेसर शम्सुल इस्लाम ने इस निबंध को संपादित कर इसके कुछ हिस्से बीबीसी हिंदी के पाठकों के लिए उपलब्ध करवाए हैं.

अपने इस लेख में अंबेडकर हिंदुओं के इस दावे को चुनौती देते हैं कि हिंदुओं ने कभी गोमांस नहीं खाया और गाय को हमेशा पवित्र माना है और उसे अघन्य (जिसे मारा नहीं जा सकता) की श्रेणी में रखा है.

अंबेडकर ने प्राचीन काल में हिंदुओं के गोमांस खाने की बात को साबित करने के लिए हिन्दू और बौद्ध धर्मग्रंथों का सहारा लिया.

उनके मुताबिक, "गाय को पवित्र माने जाने से पहले गाय को मारा जाता था. उन्होंने हिन्दू धर्मशास्त्रों के विख्यात विद्वान पीवी काणे का हवाला दिया. काणे ने लिखा है, ऐसा नहीं है कि वैदिक काल में गाय पवित्र नहीं थी, लेकिन उसकी पवित्रता के कारण ही बाजसनेई संहिता में कहा गया कि गोमांस को खाया जाना चाहिए." (मराठी में धर्म शास्त्र विचार, पृष्ठ-180).

अंबेडकर ने लिखा है, "ऋगवेद काल के आर्य खाने के लिए गाय को मारा करते थे, जो खुद ऋगवेद से ही स्पष्ट है."

ऋगवेद में (10. 86.14) में इंद्र कहते हैं, "उन्होंने एक बार 5 से ज़्यादा बैल पकाए'. ऋगवेद (10. 91.14) कहता है कि अग्नि के लिए घोड़े, बैल, सांड, बांझ गायों और भेड़ों की बलि दी गई. ऋगवेद (10. 72.6) से ऐसा लगता है कि गाय को तलवार या कुल्हाड़ी से मारा जाता था."

'अतिथि यानि गाय का हत्यारा'

अंबेडकर ने वैदिक ऋचाओं का हवाला दिया है जिनमें बलि देने के लिए गाय और सांड में से चुनने को कहा गया है.

अंबेडकर ने लिखा "तैत्रीय ब्राह्मण में बताई गई कामयेष्टियों में न सिर्फ़ बैल और गाय की बलि का उल्लेख है बल्कि यह भी बताया गया है कि किस देवता को किस तरह के बैल या गाय की बलि दी जानी चाहिए."

वो लिखते हैं, "विष्णु को बलि चढ़ाने के लिए बौना बैल, वृत्रासुर के संहारक के रूप में इंद्र को लटकते सींग वाले और माथे पर चमक वाले सांड, पुशन के लिए काली गाय, रुद्र के लिए लाल गाय आदि."

"तैत्रीय ब्राह्मण में एक और बलि का उल्लेख है जिसे पंचस्रदीय-सेवा बताया गया है. इसका सबसे महत्वपूर्ण तत्व है, पांच साल के बगैर कूबड़ वाले 17 बौने बैलों का बलिदान और जितनी चाहें उतनी तीन साल की बौनी बछियों का बलिदान."

अंबेडकर ने जिन वैदिक ग्रंथों का उल्लेख किया है उनके अनुसार मधुपर्क नाम का एक व्यंजन इन लोगों को अवश्य दिया जाना चाहिए- (1) ऋत्विज या बलि देने वाले ब्राह्मण (2) आचार्य-शिक्षक (3) दूल्हे (4) राजा (5) स्नातक और (6) मेज़बान को प्रिय कोई भी व्यक्ति.

कुछ लोग इस सूची में अतिथि को भी जोड़ते हैं.

मधुपर्क में "मांस, और वह भी गाय के मांस होता था. मेहमानों के लिए गाय को मारा जाना इस हद तक बढ़ गया था कि मेहमानों को 'गोघ्न' कहा जाने लगा था, जिसका अर्थ है गाय का हत्यारा."

इस शोध के आधार पर अंबेडकर ने लिखा कि एक समय हिंदू गायों को मारा करते थे और गोमांस खाया करते थे जो बौद्ध सूत्रों में दिए गए यज्ञ के ब्यौरों से साफ़ है.

अंबेडकर ने लिखा है, "कुतादंत सुत्त से एक रेखाचित्र तैयार किया जा सकता है जिसमें गौतम बुद्ध एक ब्राह्मण कुतादंत से जानवरों की बलि न देने की प्रार्थना करते हैं."

अंबेडकर ने बौद्ध ग्रंथ संयुक्त निकाय(111. .1-9) के उस अंश का हवाला भी दिया है जिसमें कौशल के राजा पसेंडी के यज्ञ का ब्यौरा मिलता है.

संयुक्त निकाय में लिखा है, "पांच सौ सांड, पांच सौ बछड़े और कई बछियों, बकरियों और भेड़ों को बलि के लिए खंभे की ओर ले जाया गया."

अंत में अंबेडकर लिखते हैं, "इस सुबूत के साथ कोई संदेह नहीं कर सकता कि एक समय ऐसा था जब हिंदू, जिनमें ब्राह्मण और गैर-ब्राह्मण दोनों थे, न सिर्फ़ मांस बल्कि गोमांस भी खाते थे."

वैदिक धर्म में अहिंसा को सबसे परम धर्म माना गया है। वह हिंसा जो अत्‍याचारी से अपनी रक्षा के लिए न की गई हो, उसे सबसे बड़ा अधर्म माना जाता है और मांस का भोजन इसी प्रकार की हिंसा से प्राप्‍त होता है। इस प्रकार से हिंदुओं के लिए मांसभक्षण सबसे बड़ा पाप माना जाता है। महाभारत में 'मांसभक्षण' की घोर निन्दा की गई है। मनुष्य को मन, वचन और कर्म से हिंसा न करने और मांस न खाने का आदेश देते हुए ये श्‍लोक प्रासंगिक हैं। आइए जानते हैं कुछ ऐसे ही खास श्‍लोक और उनके अर्थ...

वेद ही हिन्दू धर्म के धर्म ग्रंथ है। वेदों का सार उपनिषद और उपनिषदों का सार गीता है। यहां तीनों का मत जानेंगे। वेदों में मांस खाने के संबंध में स्पष्ट मना किया गया है। वेदों में पशु हत्या पाप मानी गई है। वेनों में कुछ पशुओं के संबंध में तो सख्‍त अनुदेश (हिदायद) दी गई है।

यः पौरुषेयेण करविषा समङकते यो अश्वेयेन पशुयातुधानः।

यो अघ्न्याया भरति कषीरमग्ने तेषांशीर्षाणि हरसापि वर्श्च॥- (ऋग वेद, मंडल १०, सूक्त ८७, ऋचा १६)

अर्थात- जो मनुष्य नर, अश्व अथवा किसी अन्य पशु का मांस सेवन कर उसको अपने शरीर का भाग बनाता है, गौ की हत्या कर अन्य जनों को दूध आदि से वंचित रखता है, हे अग्निस्वरूप राजा, अगर वह दुष्ट व्यक्ति किसी और प्रकार से न सुने तो आप उसका मस्तिष्क शरीर से विदारित करने के लिए संकोच मत कीजिए।

गीता में मांस खाने या नहीं खाने के उल्लेख के बजाय अन्न को तीन श्रेणियों में विभाजित किया है। 1.सत्व, 2.रज और 3.तम।

गीता के अनुसार अन्न से ही मन और विचार बनते हैं। जो मनुष्य सात्विक भोजन ग्रहण करता है उसकी सोच भी सात्विक होगी। अत: सात्विकता के लिए सात्विक भोजन, राजसिकता के लिए राजसिक भोजन और तामसी कार्यों के लिए तामसी भोजन होता है। यदि कोई सात्विक व्यक्ति तामसी भोजन करने लगेगा तो उसके विचार और कर्म भी तामसी हो जाएंगे।

मांस दो तरह के होते हैं राजसिक और तामसिक। उसको पकाने के तरीके से भी उसकी श्रेणी तय होती है। संतों, ब्राह्मणों और धर्म के कार्य में कार्यरत लोगों को सात्विक भोजन करना चाहिए। लेकिन युद्ध, क्रीड़ा और भयंकर कर्म हेतु लोगों को राजसिक भोजन करना चाहिए। हालांकि ता‍मसिक भोजन कभी नहीं करना चाहिए, क्योंकि यह भोजन राक्षस, पिशाच और असुरों का भोजन होता है। तामसिक भोजन में अच्छे से नहीं धोया गया मांस, बासी भोजन, खराब भोजन, बहुत तीखा और मसालेदार भोजन आदि।

आयुर्वेदज्ञ सुश्रुत अनुसार रोगोपचार में शरीर की पुष्टि हेतु कभी-कभी मांसाहार करना जरूरी होता है। सुश्रुत संहिता अनुसार मांस, लहसुन और प्याज औषधीय है। औषधि किसी बीमारी के इलाज हेतु होती है आपके जिव्हा के स्वाद के लिए या इसका नियमित सेवन करने के लिए नहीं होती है।

आज भी मछली का तेल, सांप के जहर से अनेको औषधि का निर्माण होता है। इसी तरह बकरे की हड्डी के रस और खरगोश के खून का भी औषधीय उपयोग होता है। इनके उचित सेवन से रोग नष्ट होते हैं। इस तरह यह देखा गया है किसी विशेष रोग में कुछ पशुओं के मांस, हड्डी या अन्य अंगों का उपयोग होता है।

देवताओं को प्रसन्न करने के लिए बलि का प्रयोग किया जाता है। बलि प्रथा के अंतर्गत बकरा, मुर्गा या भैंसे की बलि दिए जाने का प्रचलन है। हिन्दू धर्म में खासकर मां काली और काल भैरव को बलि चढ़ाई जाती है। विद्वान मानते हैं कि हिन्दू धर्म में लोक परंपरा की धाराएं भी जुड़ती गईं और उन्हें हिन्दू धर्म का हिस्सा माना जाने लगा।

दरअसल, बलि प्रथा कभी भी हिन्दू धर्म की देना नहीं है। बलि प्रथा का प्राचलन हिंदुओं के शाक्त और तांत्रिकों के संप्रदाय में ही देखने को मिलता है लेकिन इसका कोई धार्मिक आधार नहीं है। शाक्त या तांत्रिक संप्रदाय अपनी शुरुआत से ऐसे नहीं थे लेकिन लोगों ने अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए कई तरह के विश्वास को उक्त संप्रदाय में जोड़ दिया गया। पशुबलि की यह प्रथा कब और कैसे प्रारंभ हुई, कहना कठिन है, लेकिन इतना तो तय है कि यह वेद, गीता, उपनिषद या पुराणों की देन नहीं है।

दो मार्ग है आत्मा और शरीर का:-

अतत: आपने सामने दो मार्ग है पहला है आत्मा का मार्ग और दूसरा है शरीर का मार्ग। यदि आप आत्मा के मार्ग पर चलना चाहते हैं तो आपको अपने जीवन में सात्विक भोजन, गुण और कर्म को अपनाने की जरूरत होगी। यदि आप सांसारिक मार्ग पर चलकर शरीर को पुष्‍ट करना चाहते हैं तो आपको तय करना है कि आपको क्या खाना और क्या नहीं खाना है।

हालांकि हिन्दू धर्म मांसाहार खाने की सलाह या अनुमति नहीं देता है। खासकर हिन्दू धर्म में अश्‍व, नर, गाय, श्वान, सर्प, सुअर, शेर, गज और पवित्र पक्षी (हंसादि) का मांस खाना घोर पाप माना गया है।

क्या हिंदू धर्म में मांस खाना चाहिए?

हालांकि हिन्दू धर्म मांसाहार खाने की सलाह या अनुमति नहीं देता है। खासकर हिन्दू धर्म में अश्‍व, नर, गाय, श्वान, सर्प, सुअर, शेर, गज और पवित्र पक्षी (हंसादि) का मांस खाना घोर पाप माना गया है।

क्या मुस्लिम धर्म में मांस खाना सही है?

दुनियाभर में जानी-मानी दरगाह खानकाहे बरकातिया के सज्जादानशीं सैयद नजीब हैदर नूरी ने मुस्लिम समाज से कहा है कि गो मांस इस्लाम में हराम है, इसे न खाएं। उन्होंने कहा कि अल्लाह भी मांस खाने से खुश नहीं होता। वह तो नमाज, रोजे और जकात चाहता है।

कौन सा भगवान मांस खाता है?

साथ ही भगवान विष्णु के वराह अवतार पृथ्वी देवी से यह कहते हैं कि जो मनुष्य मछली या दूसरे पशुओं के मांस का सेवन करता है मेरे लिए उससे बड़ा अपराधी और कोई भी नहीं। इसके अलावा भगवत गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने यह भी बताया है कि मनुष्य को क्या खाना चाहिए और क्या नहीं।

क्या ब्राह्मण गाय का मांस खाते है?

प्राचीन भारत में हिन्दू ही नहीं बल्कि ब्राह्मणों ने भी गौ मांस खाया हैं। उनके धर्मग्रंथो में इसका स्पष्ट उल्लेख हैं।