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गुप्त साम्राज्य के पतन के कारण निम्नलिखित थे- (1) राजनैतिक कारण
(क) अयोग्य उत्तराधिकारी एवं बाह्य आक्रमणगुप्त साम्राज्य के पतन में तत्कालीन राजनैतिक कारण प्रमुख रूप से उत्तरदायी थे। स्कन्दगुप्त के पश्चात् कोई ऐसा गुप्त शासक नहीं हुआ से समस्त साम्राज्य को एक सूत्र में बाँध सकता। स्कन्दगुप्त के उत्तराधिकारी किसी निश्चित नियम के अभाव में पारिवारिक कलह एवं गृहयुद्धों में ही लगे रहे जिसका फायदा उठाकर अनेक अधीनस्थ शासकों ने अपनी स्वतन्त्रता घोषित कर दी। राजघराने की स्थिति से लाभ उठाकर अनेक क्षेत्रों में स्वतन्त्र राजघरानों की स्थापना हुई, जिनमें मौखरि, मैत्रक, गौड़ इत्यादि के राज्य प्रसिद्ध है। मालवा में यशोधर्मन के उदय ने भी गुप्तों की शक्ति पर सांघातिक प्रहार किया। इतना ही नहीं, कुमारगुप्त प्रथम के समय में साम्राज्य को विदेशी आक्रमणकारियों का भी सामना करना पड़ा। हूणों (तोरमाण एवं मिहिरकुल) के आक्रमण ने साम्राज्य के विघटन की प्रक्रिया तीव्र कर दी। (ख) हूण आक्रमणहूण मध्य एशिया की एक बर्बर जाति थी। गुप्तों के समय में भारत की पश्चिमी सीमा को अनारक्षित पाकर हूणों ने अपना दबाव बढ़ाना आरम्भ किया। उनका पहला आक्रमण कुमारगुप्त प्रथम के समय में हुआ। स्कन्दगुप्त ने युवराज और शासक के रूप में हूणों को हराया और उन्हें आगे बढ़ने से रोका। स्कन्दगुप्त के बाद हूण सरदार तोरमाण ने अपना सैनिक अभियान आरम्भ किया । गुप्त साम्राज्य के पश्चिमी भाग पर आक्रमण कर उसने मालवा तक अपना प्रभाव स्थापित कर लिया। तोरमाण के प्रसार को नरसिंहगुप्त बालादित्य और गुप्त ने रोका। भानुगुप्त तोरमाण के आक्रमण से गुप्त साम्राज्य की प्रतिष्ठा को ठेस लगी। तोरमाण से भी अधिक क्षति मिहिरकुल के आक्रमण से हुई। शाकल को अपनी शक्ति का केन्द्र बनाकर उसने भारत के भीतरी भागों पर आक्रमण किए तथा अपनी सत्ता स्थापित कर ली। गुप्त शासक नरसिंहगुप्त आरम्भ में दो उसकी अधीनता स्वीकार कर ली परन्तु बाद में उसने मिहिरकुल को युद्ध में परास्त कर वापस लौटने पर बाध्य किया। इस सफलता के बाद भी गुप्तों की खोई शक्ति और प्रतिष्ठा नहीं लौटी। हूग आक्रमण ने गुप्त साम्राज्य के दिन पूरे कर दिए। (ग) प्रशासनिक दुर्बलता (सामन्ती व्यवस्था)गुप्त सम्राटों ने एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की थी, परन्तु वे उसे एक सुदृढ़ प्रशासनिक ढाँचा नहीं प्रदान कर सके। गुप्तों की प्रशासनिक व्यवस्था की सबसे बड़ी दुर्बलता थी इसका संघीय सामन्ती गठन गुप्त शासकों ने जिन क्षेत्रों पर अपनी सत्ता स्थापित की, उनमें बहुत कम पर ही सीधा प्रशासनिक नियन्त्रण रखा। अधिकांश क्षेत्रों को गुप्तों ने अपने अधीनस्थ शासकों या सामन्तों को प्रशासनिक स्वायत्तता देकर सौप दिया। फलतः, गुप्त सम्राट की अधीनता स्वीकार करने के बावजूद अधीन राजाओं की वास्तविक स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं आया। यह समूची व्यवस्था तभी तक सुचारू रूप से चल सकती थी, जब तक कि सम्राट शक्तिशाली हो दुर्बल शासकों के गही पर आते ही ऐसे शासक अपनी शक्ति का विस्तार करने एवं अपनी स्वतन्त्रता हासिल करने का प्रयास करने लग सकते थे। ठीक यही बात गुप्तों के साथ भी हुई। स्कन्दगुप्त तक इन अधीनस्थ शासकों पर सम्राट का नियन्त्रण बना रहा, परन्तु जब दुर्बल शासक गद्दी पर आसीन हुए, तब अनेक अधीनस्थ शासकों एवं सामन्तों ने अपनी स्वतन्त्रता घोषित कर दी, अपने-अपने स्वतन्त्र राज्यों की स्थापना कर ली एवं साम्राज्य का विनाश कर डाला। सबसे बड़ी बात तो यह थी कि गुप्तों ने मौयों के समान स्वयं की स्थायी सेना का संगठन नहीं किया। सैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए वे हमशा अधीनस्थों पर आश्रित रहे। अतः उनके पास इतनी शक्ति नहीं थी कि वे विद्रोही सामन्तों को दबा सकते। संकट की घड़ी में भी उन्हें पर्याप्त सैनिक सहायता प्राप्त नहीं हो सकी। धननंद और कौटिल्य के सम्बन्ध का उल्लेख कीजिए। (2) आर्थिक कारणगुप्त साम्राज्य के पतन में उनकी आर्थिक नीतियों ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। गुप्तकाल में भूमिदान की प्रथा एवं कृषि पर अत्यधिक बल के कारण आत्मनिर्भर प्रामों का उदय हुआ किसान, कारीगर, मजदूर सभी जमीन से बंध गए। उनकी गतिशीलता समाप्त हो गई। इस व्यवस्था का बुरा प्रभाव उद्योग-धन्धों, व्यापार-वाणिज्य एवं नगरों पर पड़ा। अनेक पुराने व्यापारिक और औद्योगिक केन्द्र नष्ट हो गए। इसका दुष्परिणाम मुद्रा व्यवस्था पर भी पड़ा। सिक्कों का प्रचलन कम हो गया। इससे विदेशी व्यापार भी प्रभावित हुआ। राज्य की आमदनी का स्रोत भी घट गया। जहाँ मौर्य शासक कृषि के अतिरिक्त अन्य स्रोतों से भी राजस्व प्राप्त करते थे, वहीं गुप्तों को मुख्यतः कृषि पर ही आश्रित रहना पड़ा। इस कारण राज्य की आर्थिक स्थिति भी बिगड़ गई। फलतः सोने के सिक्कों में स्वर्ण की मात्रा कम होने लगी। एक सुदृढ़ आर्थिक आधार के अभाव में साम्राज्य अधिक दिनों तक नहीं टिक सका। (3) धार्मिक कारणगुप्त सम्राट प्रारम्भ से ही ब्राह्मण धर्म के अनुयायी थे परन्तु कुमार समय में बौद्ध धर्म पुनः अपना प्रभाव बढ़ाने लगा। कुमार गुप्त के बाद स्कन्दगुप्त के समय गुप्त के में इन्हें राजाश्रय भी मिलने लगा। अब गुप्त नरेश एक चक्रवर्ती राजा के आदर्शों को भूलकर अपना अधिकांश समय दान-पुण्य में करने लगे। उनके राजनैतिक आदर्शों में भी इससे बदलाव आया। इसने गुप्त सम्राटों की युद्धप्रियता जो साम्राज्य की सुरक्षा एवं स्थायित्व के लिए आवश्यक यी नष्ट कर दिया। बौद्ध संस्थाओं को अधिक दान देने से राज्य को अर्थव्यवस्था पर भी प्रभाव पड़ा। इससे साम्राज्य का विघटन प्रारम्भ हो गया। You may also likeAbout the authorpriyanshu singhगुप्त साम्राज्य के पतन के प्रमुख कारण क्या थे?गुप्त साम्राज्य के पतन के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे-. अयोग्य उत्तराधिकारी. विदेशी आक्रमण. नयी शक्तियों का उदय. उत्तराधिकार के निश्चित नियम का अभाव. प्रशासनिक कमजोरियाँ. आर्थिक कारण. सामन्तों के विद्रोह. प्रान्तपतियों के विशेषाधिकार. गुप्त साम्राज्य का अंत कैसे हुआ?गुप्त साम्राज्य का पतन (Demise of the Gupta Empire)
जिनमें हूणों द्वारा आक्रमण को मुख्य कारण माना जाता है। सन् 550 में इस साम्राज्य का अंत हुआ।
गुप्त साम्राज्य का अंतिम अपराधी कौन था?कुमारगुप्त तृतीय
वह २४ वाँ शासक बना। कुमारगुप्त तृतीय गुप्त वंश का अन्तिम शासक था।
गुप्त साम्राज्य में क्या हुआ था?गुप्त साम्राज्य (Gupta Dynasty in Hindi) के दो महत्वपूर्ण राजा हुए, समुद्रगुप्त और दूसरे चंद्रगुप्त द्वितीय। गुप्त वंश के लोगों के द्वारा ही संस्कृत की एकता फिर एकजुट हुई। चंद्रगुप्त प्रथम ने 320 ईस्वी को गुप्त वंश की स्थापना की थी और यह वंश करीब 510 ई तक शासन में रहा।
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