कंचनजंगा हिमशिखरपर्वतारोहण एक ऐसी गतिविधि है, जिसमें इंसान ऊंचे पर्वतों की चोटियों को छू लेना चाहता है। यह ऊंची चोटियां अंग्रेजी में माउंटेन पीक कहलाती हैं। जानते हो, संसार की विभिन्न पर्वत श्रेणियों में हजारों फुट... Show
लाइव हिन्दुस्तान टीमThu, 13 Aug 2009 02:12 PM पर्वतारोहण एक ऐसी गतिविधि है, जिसमें इंसान ऊंचे पर्वतों की चोटियों को छू लेना चाहता है। यह ऊंची चोटियां अंग्रेजी में माउंटेन पीक कहलाती हैं। जानते हो, संसार की विभिन्न पर्वत श्रेणियों में हजारों फुट ऊंची बहुत सी पीक्स हैं। बर्फ से ढकी ये चोटियां पर्वतारोहण के शौकीन लोगों को निरंतर आकर्षित करती हैं। तुम्हें अगर साहसी खेलों का शौक है तो बड़े होकर तुम भी माउंटेनियर यानी पर्वतारोही बन सकते हो। इसलिए हम अभी से तुम्हें अपने देश और अन्य देशों के महत्त्वपूर्ण पर्वत शिखरों के विषय में बता रहे हैं, ताकि तुम बड़े होकर इनकी ऊंचाइयों तक पहुंचने का साहस कर सको। आज हम तुम्हें कंचनजंगा पीक के बारे में बताते हैं। पता है यह संसार की तीसरी सबसे ऊंची पर्वत चोटी है, जिसकी ऊंचाई 28169 फुट है। सोचो इतनी ऊंचाई तक बर्फीले दुर्गम रास्तों से चढ़ना कितना कठिन होगा। लेकिन दुनिया में ऐसे साहसी लोग बहुत हैं, जो ऐसे शिखरों पर फतह पा चुके हैं। कंचनजंगा पीक भारत और नेपाल की सीमा पर स्थित है। इसका एक हिस्सा हमारे देश के सिक्किम राज्य में है तो शेष भाग नेपाल की सीमा में आता है। कंचनजंगा तिब्बती भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ होता है हिम के पांच भंडार। यह नाम इसलिए पड़ा, क्योंकि कंचनजंगा पर्वत पांच शिखरों का समूह है। तुम्हें एक रोचक बात बतायें, सन 1852 तक कंचनजंगा को ही विश्व की सबसे ऊंची चोटी माना जाता था, लेकिन 1849 में हुए ब्रिटिश सर्वे के बाद ज्ञात हुआ कि एवरेस्ट दुनिया की सर्वोच्च शिखर है। लेकिन कंचनजंगा शिखर पर पहुंचने के रास्ते बहुत दुर्गम हैं, इसलिए वहां तक पहुंचने के प्रयास कम ही हुए हैं। 1855 में पहली बार ब्रिटिश अभियान के जॉय ब्राउन और जॉर्ज बेंड सफलता पूर्वक इस चोटी पर पहुंच थे, जबकि कंचनजंगा पर पहुंचने के लिए 1905 में पहला प्रयास किया गया था। 1929 में एक जर्मन अभियान दल के सदस्य 24280 फुट की ऊंचाई तक पहुंच गये थे। किन्तु उन्हें पांच दिन तक चले एक भयंकर बर्फीले तूफान की वजह से वापस आना पड़ा। इससे तुम समझ सकते हो कि पर्वतारोही कितने साहसी व्यक्ति होते हैं। 1977 में भारतीय सेना के जवानों ने कर्नल नरेन्द्र कुमार के नेतृत्व में पूर्वात्तर के कठिन मार्ग की ओर से इस शिखर को फतह किया था। मार्ग में कई खतरनाक ग्लेशियर और बर्फ की खाइयों को पार करके यह लोग कंचनजंगा की चोटी तक पहुंचे थे। 1983 में पियरे बेगिन ने तो कमाल ही कर दिया। उन्होंने अकेले और बिना ऑक्सीजन के कंचनजंगा के शिखर को स्पर्श किया था। तुम समझ सकते हो ऐसा दुस्साहस करने वाले वह विश्व के पहले व्यक्ति थे। लेकिन वांदा रुत्कीविज नामक पोलैंड के पर्वतारोही इनसे भी ज्यादा दुस्साहसी थे। वह 1992 में शिखर के बेहद करीब थे कि तभी भयंकर तूफान आ गया। उनकी टीम के सदस्य तूफान का अंदेशा देख वापस चलने लगे तो उन्होंने वापस चलने से इंकार कर दिया। किन्तु वह उस तूफान से बच न सके। वैसे ऊंचे शिखरों पर चढ़ते हुए कई बार प्राकृतिक आपदाओं की वजह से कुछ पर्वतारोहियों की मृत्यु हो जाती है। 1998 में जिनेत हेरिसन कंचनजंगा पर पहुंचने वाली पहली महिला बनीं। देख लो, लड़कियां भी पर्वतारोहण जैसे साहस भरे कारनामे करने में किसी से पीछे नहीं रहतीं। तुम मम्मी-पापा के साथ कभी दार्जिलिंग घूमने जाओ तो वहां से कंचनजंगा हिम शिखर को देख सकते हो। साफ मौसम हो तो वहां तुम्हें कई स्थानों से बेहद सुंदर दृश्य नजर आएंगे। इसके अलावा सिक्किम में भी कई स्थानों से कंचनजंगा पीक नजर आती है। सिक्किम के लोग तो इस शिखर को पवित्र मान कर इसकी पूजा करते हैं। नेपाल के क्षेत्र में वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड द्वारा कंचनजंगा कंजरवेशन प्रोजेक्ट स्थापित किया गया है। भारतीय क्षेत्र में कंचनजंगा का संरक्षित क्षेत्र कंचनजंगा नेशनल पार्क कहलाता है। इस नेशनल पार्क में कई हिम क्षेत्र के वन्य जीवों के साथ लाल पांडा भी पाया जाता है। बर्फ से ढके इस क्षेत्र में सैर-सपाटे के लिए जाने की हिम्मत किसी में नहीं होती। बड़े होकर तुम पर्वतारोहण के प्रशिक्षण के बाद अन्य शिखरों के अलावा कंचनजंगा पर जाने का प्रयास भी करना। क्या आप जानते हैं कि कंचनजंगा में कितने भूतों का वास है या यहां पर कैसे लोग गायब हो जाते हैं। पढ़े इससे जुड़े मिथक और किंवदंतियां। दुनिया बहुत बड़ी है और उससे भी ज्यादा बड़े हैं इस दुनिया की कई जगहों से जुड़े रहस्य और उनसे जुड़ी कहानियां। यकीनन दुनिया की कई रहस्यमई जगहों से जुड़ी हज़ारों कहानियां होती हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि उन कहानियों के पीछे कैसी सच्चाई है? जब रहस्यमई जगहों की बात की जा रही है तो फिर हिमालय को कैसे पीछे छोड़ा जा सकता है। हिमालय से जुड़ी न जाने कितनी लोक कथाएं तो आपने सुनी ही होंगी, लेकिन आज हम बात करने जा रहे हैं हिमालय की एक खास चोटी की जिसका नाम है कंचनजंगा। भारत की सबसे ऊंची चोटी कंचनजंगा से जुड़ी बहुत सी कहानियां हैं जिनके बारे में हमें जानना चाहिए। ये कहानियां कंचनजंगा को खास बनाती हैं। क्या आप जानते हैं कि ये दुनिया की दूसरी सबसे ऊंची हिमालय चोटी है और भारत में ये सबसे ऊंची है। इतना ही नहीं इसके इर्द-गिर्द बहुत सी कहानियां भी बसी हुई हैं। इससे जुड़े कई विवाद भी हैं तो चलिए इस चोटी से जुड़ी कहानियां आपको बताते हैं। कंचनजंगा का नाम है खास जहां-हम हमेशा कंचनजंगा को इस तरह से बोलते हैं जैसे ये एक ही नाम हो पर असल में ये चार शब्दों का मेल है। कांग (बर्फ), चेन (बड़ा), डज़ो (खजाना), अंगा (पांच) ये तिब्बतियन शब्द हैं जिनका मतलब है 'बर्फ में दबे पांच खजाने'। ऐसा माना जाता है कि हर खजाना भगवान द्वारा रखा गया है। इसमें सोना, चांदी, जवाहरात, पौराणिक किताबें और अनाज शामिल है। पांच चोटियों में से तीन भारत-नेपाल बॉर्डर पर स्थित हैं और ये नॉर्थ सिक्किम और नेपाल की तापेलजंग डिस्ट्रिक्स के बीच मौजूद हैं। अन्य दो पूरी तरह से नेपाल में हैं। इसे जरूर पढ़ें- जानिए भारत की 5 रहस्यमय जगहों के बारे में, वैज्ञानिक भी नहीं सुलझा पाए यहां का रहस्य सन् 1800 तक कंचनजंगा को समझा जाता था सबसे ऊंचा पहाड़-वैसे तो अब आप जानते हैं कि हिमालयन चोटी माउंट एवरेस्ट सबसे ऊंचा पहाड़ है, लेकिन सन् 1800 तक कंचनजंगा को ही सबसे ऊंचा माना जाता था। दरअसल, 1852 में ब्रिटिश टीम ने एक ट्रिग्नोमेट्रिक सर्वे किया था जिसमें माउंट एवरेस्ट को सबसे ऊंची चोटी माना गया था। पर उससे पहले कंचनजंगा को ही सबसे ऊंचा माना जाता रहा है। तो अगर आप 200 साल पहले पैदा होते तो वर्ल्ड फैक्ट्स में थोड़ा बदलाव हो जाता। कंचनजंगा को लेकर हुए हैं कई विवाद-कंचनजंगा को लेकर बहुत सारे विवाद भी हुए हैं। भारत सरकार ने कंचनजंगा के एक्सपेडीशन सन् 2000 में बंद कर दिए थे। दरअसल एक ऑस्ट्रेलियाई टीम ने 20 हज़ार डॉलर के बदले कंचनजंगा पर चढ़ाई की थी और स्थानीय निवासियों को ये लगा था कि ये उनके भगवान का निरादर है। इस घटना से बौद्ध समाज के लोगों को बहुत ठेस पहुंची थी और उन्होंने कंचनजंगा पर इस तरह चढ़ने को लेकर आपत्ती जताई थी। पर अगर कोई अभी भी कंचनजंगा पर चढ़ना चाहे तो वो नेपाल की तरफ से चढ़ सकता है। एक खास कारण से कंचनजंगा की चोटी पर नहीं जाते हैं लोग-कंचनजंगा पर चढ़ने वाले पहले दो लोग थे जो ब्राउन और जॉर्ज बैंड जिन्होंने 25 मई 1955 को इसपर चढ़ाई की थी। उन्होंने स्थानीय निवासियों से वादा किया था कि वो पर्वत की चोटी पर नहीं चढ़ेंगे। ऐसा इसलिए क्योंकि उसकी चोटी पर धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवानों का निवास होता है। ये मान्यता आज भी है और आज तक कोई भी पर्वतारोही इसकी चोटी पर खड़े नहीं हो पाए हैं। करीब 200 पर्वतारोहियों ने इसके बहुत करीब जाने की कोशिश की और उनमें से 1/4 इसी कोशिश में मारे गए। हर पर्वतारोही इसकी चोटी से कुछ फिट दूर ही रुक जाता है। कंचनजंगा के राक्षस और भूत-कंचनजंगा पर न जाने कितने लोगों की मौत हुई है और उनके शव आज तक वापस नहीं आ पाए। कंचनजंगा को एक पौराणिक मान्यता के अनुसार एक दैत्य का घर माना जाता है जिसे स्थानीय भाषा में डज़ो-अंगा (Dzö-nga) कहा जाता है। 1925 में ब्रिटिश टीम ने एक ऐसा ही दैत्य देखने का दावा किया था जिसे स्थानीय लोगों ने कंचनजंगा दैत्य कहा था। कंचनजंगा में बहुत सारे भूतों की कहानियां भी बसी हुई हैं। दरअसल, ऑक्सीजन की कमी के कारण कई लोगों को भ्रम और हैलुसिनेशन्स भी होते हैं। ऐसे में कई लोगों ने भूत, प्रेत, आत्मा, दैत्य आदि दिखने और अनोखी आवाज़े सुनने का दावा किया है। इसे जरूर पढ़ें- भोलेनाथ के दर्शन करने जा रहे हैं ओमकारेश्वर तो इन 5 बातों का हमेशा रखें ख्याल कई लोग यहां हो चुके हैं गायब-कंचनजंगा की चोटी पर कई लोग गायब हो चुके हैं। तुलशुक लिंग्पा नामक एक तिब्बतियन भिक्षु अपने 12 साथियों के साथ एक नए पथ की खोज पर इस चोटी पर निकला था और वो ज़ोर-ज़ोर से मंत्र पढ़ता हुआ जा रहा था। ऐसा मानना है कि वो बर्फ के बीच गायब हो गया। कुछ लोग ये भी कहते हैं कि वो हिमस्खलन का शिकार हो गए। ऐसे ही 1992 में एक पोलिश पर्वतारोही वांडा ने कंचनजंगा पर जाने की कोशिश की। वांडा पहली महिला बनना चाहती थी जिसने हिमालय की सभी 14 चोटियों पर चढ़ाई की हो। पर वो भी अचानक गायब हो गई। उसका शरीर कभी नहीं मिला। माना जाता है कि वो भी बर्फ के नीचे दब गईं। ऐसी कई कहानियां और कई किस्से कंचनजंगा के जुड़े आपको मिल जाएंगे। ये पर्वत कुछ अलग है और कुछ खास है। अगर आपको ये स्टोरी अच्छी लगी तो इसे शेयर जरूर करें। ऐसी ही अन्य स्टोरी पढ़ने के लिए जुड़े रहें हरजिंदगी से। क्या आपको ये आर्टिकल पसंद आया ?बेहतर अनुभव करने के लिए HerZindagi मोबाइल ऐप डाउनलोड करें Disclaimer आपकी स्किन और शरीर आपकी ही तरह अलग है। आप तक अपने आर्टिकल्स और सोशल मीडिया हैंडल्स के माध्यम से सही, सुरक्षित और विशेषज्ञ द्वारा वेरिफाइड जानकारी लाना हमारा प्रयास है, लेकिन फिर भी किसी भी होम रेमेडी, हैक या फिटनेस टिप को ट्राई करने से पहले आप अपने डॉक्टर की सलाह जरूर लें। किसी भी प्रतिक्रिया या शिकायत के लिए, पर हमसे संपर्क करें। कंचनजंगा 2 की ऊंचाई कितनी है?इसकी ऊंचाई 8,586 मीटर है।
कंचनजंगा का दूसरा नाम क्या है?कंचनजंगा को नेपाली में कुंभकरण लंगूर कहा जाता है। कंचनजंगा दुनिया का तीसरा सबसे ऊंचा पर्वत (8,586 मीटर) है, जो दार्जिलिंग के उत्तर-पश्चिम में 74 किमी में स्थित है। भारतीय राज्य, जो नेपाल की सीमा को छूता है, हिमालय की सीमा का एक हिस्सा है।
क्या कंचनजंगा पूरी तरह से भारत में है?कंचनजंगा नेपाल और भारत दोनों में स्थित है और इसकी 16 चोटियाँ हैं जो 7,000 मीटर (23,000 फीट) से ऊपर उठती हैं।
कंचनजंगा की क्या विशेषता है?कंचनजंघा हिमालय की तीसरी सबसे ऊँची चोटी है। मौसम साफ हो तो गंतोक से यह दिखाई देती है। लेकिन लेखिका के गंतोक-प्रवास के दौरान मौसम अच्छा होने के बावजूद आसमान बादलों से ढंका था, जिस कारण लेखिका कंचनजंघा के दर्शन न कर पाई।
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