जलवायु परिवर्तन से वैश्विक स्तर पर पहाड़ों, मानव गतिविधियों पर असर पड़ेगा : अध्ययनडिसक्लेमर:यह आर्टिकल एजेंसी फीड से ऑटो-अपलोड हुआ है। इसे नवभारतटाइम्स.कॉम की टीम ने एडिट नहीं किया है। Show
| Updated: 8 Nov 2022, 3:50 pm जोहानिसबर्ग (दक्षिण अफ्रीका), आठ नवंबर (भाषा) जलवायु परिवर्तन पर्वतीय क्षेत्रों और मानव गतिविधियों पर वैश्विक रूप से नकारात्मक असर डालेगा और इससे हिमस्खलन, नदियों में बाढ़, भूस्खलन, मलबे के प्रवाह और झील के फटने जैसे खतरों के जोखिम भी बढ़ेंगे। एक अध्ययन में यह चेतावनी दी गई है। शोधकर्ताओं ने पाया कि जलवायु परिवर्तन के खतरे से दुनियाभर में पर्वतीय क्षेत्रों में रहने वाले समुदायों के लिए स्थिति और अधिक खतरनाक बनने का जोखिम है, जबकि उनका त्वरित विकास आगे पर्यावरणीय जोखिम ला सकता है। अध्ययन ‘पीर जे’ पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। अध्ययन से यह पता चलता है कि कैसे शोधकर्ताओं ने पाया कि जलवायु परिवर्तन के खतरे से दुनियाभर में पर्वतीय क्षेत्रों में रहने
वाले समुदायों के लिए स्थिति और अधिक खतरनाक बनने का जोखिम है, जबकि उनका त्वरित विकास आगे पर्यावरणीय जोखिम ला सकता है। अध्ययन ‘पीर जे’ पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। अध्ययन से यह पता चलता है कि कैसे जटिल पर्वतीय प्रणालियां जलवायु परिवर्तन के लिए बहुत अलग और कभी-कभी अप्रत्याशित तरीकों से प्रतिक्रिया करती हैं और ये प्रतिक्रियाएं पर्वतीय क्षेत्रों और समुदायों को कैसे प्रभावित कर सकती हैं। दक्षिण अफ्रीका में यूनिवर्सिटी ऑफ विटवाटरसैंड के प्रोफेसर जैस्पर नाइट
ने कहा, ‘‘दुनिया भर में ग्लोबल वार्मिंग के कारण पर्वतीय ग्लेशियर पिघल रहे हैं और इससे पर्वतीय भू-आकृतियों, पारिस्थितिक तंत्र और लोगों पर प्रभाव पड़ रहा है। हालांकि, ये प्रभाव अत्यधिक परिवर्तनशील हैं।’’ नाइट ने कहा, ‘‘इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) की नवीनतम रिपोर्ट सभी पहाड़ों को समान रूप से संवेदनशील मानती है और जलवायु परिवर्तन के प्रति समान प्रतिक्रिया देती है। हालांकि, यह दृष्टिकोण ठीक नहीं है।’’ शोधकर्ताओं ने पाया कि बर्फ से ढंके पहाड़ कम अक्षांश वाले उन पहाड़ों से अलग तरह से काम करते हैं जहां बर्फ आम तौर पर अनुपस्थित होती है। उन्होंने कहा कि यह निर्धारित करता है कि उनकी जलवायु को लेकर क्या प्रतिक्रिया होती हैं और भविष्य में पर्वतीय परिदृश्य विकास के किस पैटर्न की हम उम्मीद कर सकते हैं। बर्फ से ढंके ये पर्वतीय क्षेत्र विश्व स्तर पर करोड़ों लोगों के लिए पानी उपलब्ध कराते हैं, लेकिन बदलते मौसम के कारण यह जल आपूर्ति खतरे में है क्योंकि ये पर्वतीय हिमनद छोटे-और छोटे होते जा रहे हैं। शोधकर्ताओं के अनुसार, भविष्य में एशिया, उत्तरी अमेरिका, दक्षिण अमेरिका और यूरोप के शुष्क महाद्वीपीय क्षेत्रों में जल संकट और भी बदतर होगा। Navbharat Times News App: देश-दुनिया की खबरें, आपके शहर का हाल, एजुकेशन और बिज़नेस अपडेट्स, फिल्म और खेल की दुनिया की हलचल, वायरल न्यूज़ और धर्म-कर्म... पाएँ हिंदी की ताज़ा खबरें डाउनलोड करें NBT ऐप लेटेस्ट न्यूज़ से अपडेट रहने के लिए NBT फेसबुकपेज लाइक करें डेली अपडेट्स
इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में जलवायु परिवर्तन व उससे उपजी चुनौतियाँ और समाधान से संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं। वर्ष 2100 तक भारत समेत अमेरिका, कनाडा, जापान, न्यूजीलैंड, रूस और ब्रिटेन जैसे सभी
देशों की अर्थव्यवस्थाएँ जलवायु परिवर्तन के असर से अछूती नहीं रहेंगी। कुछ समय पूर्व कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय की एक शोध टीम ने 174 देशों के वर्ष 1960 के बाद जलवायु संबंधी आँकड़ों का अध्ययन किया है। अध्ययन के अनुसार, पृथ्वी पर 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान की स्थिति में विभिन्न देशों की अर्थव्यवस्थाओं के साथ-साथ मानव के अस्तित्व पर भी खतरा उत्पन्न हो जाएगा। इसके अतिरिक्त पिछली सदी से अब तक समुद्र के जल स्तर में भी लगभग 8 इंच की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। वहीँ संयुक्त राष्ट्र आपदा जोखिम
न्यूनीकरण कार्यालय (UN Office for Disaster Risk Reduction-UNDRR) के अनुसार, भारत को जलवायु परिवर्तन के कारण हुई प्राकृतिक आपदाओं से वर्ष 1998-2017 के बीच की समयावधि के दौरान लगभग 8,000 करोड़ डॉलर की आर्थिक क्षति का सामना करना पड़ा है। यदि पूरी दुनिया की बात की जाए तो इसी समयावधि में तकरीबन 3 लाख करोड़ डॉलर की क्षति हुई है। हाल ही में जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क के तत्वावधान में
आयोजित COP-25 सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने के लिये विभिन्न दिशा-निर्देश ज़ारी किये गए। इस आलेख में जलवायु परिवर्तन, जलवायु परिवर्तन के कारण, उससे उत्पन्न चुनौतियों पर विश्लेषण किया जाएगा। इसके साथ ही जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न चुनौतियों से निपटने के उपायों पर भी विचार-विमर्श किया जाएगा। क्या है जलवायु परिवर्तन?
जलवायु परिवर्तन के कारणजलवायु परिवर्तन के कारणों का बेहतर विश्लेषण करने के लिये इसे दो भागों में विभाजित कर सकते हैं।
प्राकृतिक गतिविधियाँ
मानवीय गतिविधियाँ
जलवायु परिवर्तन से प्रभाव
जलवायु परिवर्तन से निपटने हेतु वैश्विक प्रयास
जलवायु परिवर्तन से निपटने हेतु भारत के प्रयास
प्रश्न- जलवायु परिवर्तन से आप क्या समझते हैं? जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का उल्लेख करते हुए इससे निपटने की दिशा में किये जा रहे प्रयासों की समीक्षा कीजिये। × जलवायु परिवर्तन के क्या खतरे हैं?बाढ़, सूखा, झुलसाने वाली लू, जंगल में आग और क्षेत्रीय चक्रवातों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है। जलवायु परिवर्तन के कारण दुनिया भर में समुद्र का स्तर बढ़ रहा है। ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका में जमी बर्फ के पिघलने की दर बढ़ती जा रही है जिससे समुद्र का स्तर बढ़ रहा है।
जलवायु परिवर्तन के 5 प्रभाव क्या हैं?जलवायु परिवर्तन का क्या प्रभाव है? प्राकृतिक घटनाओं में जिस तरह से एकाएक बदलाव आए हैं, वह जलवायु परिवर्तन का ही परिणाम है. तूफ़ानों की संख्या बढ़ गई है, भूकंपों की आवृत्ति बढ़ गई है, नदियों में बाढ़ का विकराल स्वरूप आदि घटनाएं पहले से कहीं अधिक बढ़ गई हैं, जिसका सीधा असर जीवन और जीवित रहने के माध्यमों पर पड़ रहा है.
जलवायु परिवर्तन से क्या क्या समस्याएं हैं?जलवायु परिवर्तन के कारण कम वर्षा होने से कृषि उत्पादन में कमी आई है। जिसके परिणामस्वरूप खाद्य फसलों में कमी हो गई है।. तापमान में सामान्य से अधिक बढ़ोत्तरी:- जलवायु परिवर्तन के दौरान पृथ्वी का तापमान सामान्य से अधिक बढ़ रहा है। ... . समुद्री स्तर का लगातार बढ़ना:- जलवायु परिवर्तन के कारण ग्लेशियर पिघल रहे हैं।. जलवायु का हमारे जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है?अधिक उष्णता एवं आर्द्रता बीमारियों को तो जन्म देती है। बल्कि मनुष्य इनसे और आलसी हो जाता है जिससे मानव की कार्य क्षमता भी घट जाती है। 2. मानव की वेशभूषा भी जलवायु से प्रभावित होती है इसलिए उत्तरी भारत में लोग शीत ऋतु में ऊनी कपड़े पहनते हैं।
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