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10 Questions 10 Marks 6 Mins सही उत्तर 'औ' है।
Key Points
Last updated on Oct 19, 2022 The Application Links for the DSSSB TGT will remain open from 19th October 2022 to 18th November 2022. Candidates should apply between these dates. The Delhi Subordinate Services Selection Board (DSSSB) released DSSSB TGT notification for Computer Science subject for which a total number of 106 vacancies have been released. The candidates can apply from 19th October 2022 to 18th November 2022. Before applying for the recruitment, go through the details of DSSSB TGT Eligibility Criteria and make sure that you are meeting the eligibility. Earlier, the board has released 354 vacancies for the Special Education Teacher post. The selection of the DSSSB TGT is based on the Written Test which will be held for 200 marks. प्रत्ययप्रत्यय वे शब्द होते हैं जो दूसरे शब्दों के अन्त में जुड़कर, अपनी प्रकृति के अनुसार, शब्द के अर्थ में परिवर्तन कर देते हैं। प्रत्यय शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है – प्रति + अय। प्रति का अर्थ होता है ‘साथ में, पर बाद में‘ और अय का अर्थ होता है ‘चलने वाला‘, अत: प्रत्यय का अर्थ होता है साथ में पर बाद में चलने वाला। प्रत्यय की परिभाषाप्रति’ और ‘अय’ दो शब्दों के मेल से ‘प्रत्यय’ शब्द का निर्माण हुआ है। ‘प्रति’ का अर्थ ‘साथ में, पर बाद में होता है । ‘अय’ का अर्थ होता है, ‘चलनेवाला’। इस प्रकार प्रत्यय का अर्थ हुआ-शब्दों के साथ, पर बाद में चलनेवाला या लगनेवाला शब्दांश । अत: जो शब्दांश के अंत में जोड़े जाते हैं, उन्हें प्रत्यय कहते हैं। जैसे- ‘बड़ा’ शब्द में ‘आई’ प्रत्यय जोड़ कर ‘बड़ाई’ शब्द बनता है। or वे शब्द जो किसी शब्द के अन्त में जोड़े जाते हैं,
उन्हें प्रत्यय (प्रति + अय = बाद में आने वाला) कहते हैं। जैसे- गाड़ी + वान = गाड़ीवान, अपना + पन = अपनापन प्रत्यय के भेद (Pratyay ke Bhed):प्रत्यय के प्रकार :
संस्कृत के प्रत्यय:के दो मुख्य भेद हैं: 1- कृत् और 2- तद्धित । कृत्-प्रत्यय (Krit Pratyay):क्रिया अथवा धातु के बाद जो प्रत्यय लगाये जाते हैं, उन्हें कृत्-प्रत्यय कहते हैं । कृत्-प्रत्यय के मेल से बने शब्दों को कृदंत कहते हैं । कृत प्रत्यय के उदाहरण:
तद्धित प्रत्यय (Taddhit Pratyay):संज्ञा, सर्वनाम तथा विशेषण के अंत में लगनेवाले प्रत्यय को ‘तद्धित’ कहा जाता है । तद्धित प्रत्यय के मेल से बने शब्द को तद्धितांत कहते हैं । तद्धित प्रत्यय के उदाहरण:
कृत प्रत्यय के प्रकार (krit pratyay ke bhed)::विकारी कृत्-प्रत्यय (Vikari Krit Pratyay ):ऐसे कृत्-प्रत्यय जिनसे शुद्ध संज्ञा या विशेषण बनते हैं। अविकारी या अव्यय कृत्-प्रत्यय (Avikari Krit Pratyay):ऐसे कृत्-प्रत्यय जिनसे क्रियामूलक विशेषण या अव्यय बनते है। विकारी कृत्-प्रत्यय के भेद (Vikari Krit Pratyay ke Bhed):
हिंदी क्रियापदों के अंत में कृत्-प्रत्यय के योग से छह प्रकार के कृदंत शब्द बनाये जाते हैं-
कर्तृवाचककर्तृवाचक कृत्-प्रत्यय उन्हें कहते हैं, जिनके संयोग से बने शब्दों से क्रिया करनेवाले का ज्ञान होता है ।
कर्तृवाचक कृदंत निम्न तरीके से बनाये जाते हैं-
गुणवाचकगुणवाचक कृदंत शब्दों से किसी विशेष गुण या विशिष्टता का बोध होता है । ये कृदंत, आऊ, आवना, इया, वाँ इत्यादि प्रत्यय जोड़कर बनाये जाते हैं ।
कर्मवाचकजिन कृत्-प्रत्ययों के योग से बने संज्ञा-पदों से कर्म का बोध हो, उन्हें कर्मवाचक कृदंत कहते हैं । ये धातु के अंत में औना, ना और नती प्रत्ययों के योग से बनते हैं ।
करणवाचकजिन कृत्-प्रत्ययों के योग से बने संज्ञा-पदों से क्रिया के साधन का बोध होता है, उन्हें करणवाचक कृत्-प्रत्यय तथा इनसे बने शब्दों को करणवाचक कृदंत कहते हैं । करणवाचक कृदंत धातुओं के अंत में नी, अन, ना, अ, आनी, औटी, औना इत्यादि प्रत्यय जोड़ कर बनाये जाते हैं।
भाववाचकजिन कृत्-प्रत्ययों के योग से बने संज्ञा-पदों से भाव या क्रिया के व्यापार का बोध हो, उन्हें भाववाचक कृत्-प्रत्यय तथा इनसे बने शब्दों को भाववाचक कृदंत कहते हैं ! क्रिया के अंत में आप, अंत, वट, हट, ई, आई, आव, आन इत्यादि जोड़कर भाववाचक कृदंत संज्ञा-पद बनाये जाते हैं।
क्रियाद्योतकजिन कृत्-प्रत्ययों के योग से क्रियामूलक विशेषण, संज्ञा, अव्यय या विशेषता रखनेवाली क्रिया का निर्माण होता है, उन्हें क्रियाद्योतक कृत्-प्रत्यय तथा इनसे बने शब्दों को क्रियाद्योतक कृदंत कहते हैं । मूलधातु के बाद ‘आ’ अथवा, ‘वा’ जोड़कर भूतकालिक तथा ‘ता’ प्रत्यय जोड़कर वर्तमानकालिक कृदंत बनाये जाते हैं । कहीं-कहीं हुआ’ प्रत्यय भी अलग से जोड़ दिया जाता है ।
हिंदी के कृत्-प्रत्यय (Hindi ke Krit Pratyay)हिंदी में कृत्-प्रत्ययों की संख्या अनगिनत है, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं- अन, अ, आ, आई, आलू, अक्कड़, आवनी, आड़ी, आक, अंत, आनी, आप, अंकु, आका, आकू, आन, आपा, आव, आवट, आवना, आवा, आस, आहट, इया, इयल, ई, एरा, ऐया, ऐत, ओडा, आड़े, औता, औती, औना, औनी, औटा, औटी, औवल, ऊ, उक, क, का, की, गी, त, ता, ती, न्ती, न, ना, नी, वन, वाँ, वट, वैया, वाला, सार, हार, हारा, हा, हट, इत्यादि । ऊपर बताया जा चुका है कि कृत्-प्रत्ययों के योग से छह प्रकार के कृदंत बनाये जाते हैं। इनके उदाहरण प्रत्यय, धातु (क्रिया) तथा कृदंत-रूप के साथ नीचे दिये जा रहे हैं- कर्तृवाचक कृदंत:क्रिया के अंत में आक, वाला, वैया, तृ, उक, अन, अंकू, आऊ, आना, आड़ी, आलू, इया, इयल, एरा, ऐत, ओड़, ओड़ा, आकू, अक्कड़, वन, वैया, सार, हार, हारा, इत्यादि प्रत्ययों के योग से कर्तृवाचक कृदंत संज्ञाएँ बनती हैं ।
गुणवाचक कृदन्त:क्रिया के अंत में आऊ, आलू, इया, इयल, एरा, वन, वैया, सार, इत्यादि प्रत्यय जोड़ने से बनते हैं:
कर्मवाचक कृदंत:क्रिया के अंत में औना, हुआ, नी, हुई इत्यादि प्रत्ययों को जोड़ने से बनते हैं ।
करणवाचक कृदंत:क्रिया के अंत में आ, आनी, ई, ऊ, ने, नी इत्यादि प्रत्ययों के योग से करणवाचक कृदंत संज्ञाएँ बनती हैं तथा इनसे कर्ता के कार्य करने के साधन का । बोध होता है ।
भाववाचक कृदंत:क्रिया के अंत में अ, आ, आई, आप, आया, आव, वट, हट, आहट, ई, औता, औती, त, ता, ती इत्यादि प्रत्ययों के योग से भाववाचक कृदंत बनाये जाते हैं तथा इनसे क्रिया के व्यापार का बोध होता है ।
क्रियाद्योदक कृदंत:क्रिया के अंत में ता, आ, वा, इत्यादि प्रत्ययों के योग से क्रियाद्योदक विशेषण बनते हैं. यद्यपि इनसे क्रिया का बोध होता है परन्तु ये हमेशा संज्ञा के विशेषण के रूप में ही प्रयुक्त होते हैं-
कृदंत और तद्धित में अंतर (Difference between Kridant and Tadhit):
तद्धित प्रत्यय:हिंदी में तद्धित प्रत्यय के आठ प्रकार हैं-
कर्तृवाचक तद्धित प्रत्यय (Kartri Vachak Taddhit Pratyaya):संज्ञा के अंत में आर, आरी, इया, एरा, वाला, हारा, हार, दार, इत्यादि प्रत्यय के योग से कर्तृवाचक तद्धितांत संज्ञाएँ बनती हैं ।
भाववाचक तद्धित प्रत्यय (Bhav Vachak Taddhit Pratyaya):संज्ञा या विशेषण में आई, त्व, पन, वट, हट, त, आस पा इत्यादि प्रत्यय लगाकर भाववाचक तद्धितांत संज्ञा-पद बनते हैं । इनसे भाव, गुण, धर्म इत्यादि का बोध होता है ।
ऊनवाचक तद्धित प्रत्यय (Un Vachak Taddhit Pratyaya):संज्ञा-पदों के अंत में आ, क, री, ओला, इया, ई, की, टा, टी, डा, डी, ली, वा इत्यादि प्रत्यय लगाकर ऊनवाचक तद्धितांत संज्ञाएँ बनती हैं। इनसे किसी वस्तु या प्राणी की लघुता, ओछापन, हीनता इत्यादि का भाव व्यक्त होता है।
सम्बन्धवाचक तद्धित प्रत्यय (Sambandh Vachak Taddhit Pratyaya):संज्ञा के अंत में हाल, एल, औती, आल, ई, एरा, जा, वाल, इया, इत्यादि प्रत्यय को जोड़ कर सम्बन्धवाचक तद्धितांत संज्ञा बनाई जाती है.-
अपत्यवाचक तद्धित प्रत्यय (Apatya Vachak Taddhit Pratyaya):व्यक्तिवाचक संज्ञा-पदों के अंत में अ, आयन, एय, य इत्यादि प्रत्यय लगाकर अपत्यवाचक तद्धितांत संज्ञाएँ बनायी जाती हैं । इनसे वंश, संतान या संप्रदाय आदि का बोध होता हे ।
गुणवाचक तद्धित प्रत्यय (Gun Vachak Taddhit Pratyaya):संज्ञा-पदों के अंत में अ, आ, इक, ई, ऊ, हा, हर, हरा, एडी, इत, इम, इय, इष्ठ, एय, म, मान्, र, ल, वान्, वी, श, इमा, इल, इन, लु, वाँ प्रत्यय जोड़कर गुणवाचक तद्धितांत शब्द बनते हैं। इनसे संज्ञा का गुण प्रकट होता है-
स्थानवाचक तद्धित प्रत्यय (Sthan Vachak Taddhit Pratyaya):संज्ञा-पदों के अंत में ई, इया, आना, इस्तान, गाह, आड़ी, वाल, त्र इत्यादि प्रत्यय जोड़ कर स्थानवाचक तद्धितांत शब्द बनाये जाते हैं. इनमे स्थान या स्थान सूचक विशेषणका बोध होता है-
अव्ययवाचक तद्धित प्रत्यय (Avyay Vachak Taddhit Pratyaya):संज्ञा, सर्वनाम या विशेषण पदों के अंत में आँ, अ, ओं, तना, भर, यों, त्र, दा, स इत्यादि प्रत्ययों को जोड़कर अव्ययवाचक तद्धितांत शब्द बनाये जाते हैं तथा इनका प्रयोग प्राय: क्रियाविशेषण की तरह ही होता है ।
फारसी के तद्धित प्रत्यय:हिंदी में फारसी के भी बहुत सारे तद्धित प्रत्यय लिये गये हैं। इन्हें पाँच वर्गों में विभाजित किया जुा सकता है-
भाववाचक तद्धित प्रत्यय (Bhavvachak Taddhit Pratyaya):
कर्तृवाचक तद्धित प्रत्यय (Kartri Vachak Taddhita Pratyaya):
ऊनवाचक तद्वित प्रत्यय (Un vachak Taddhita Pratyaya):
स्थितिवाचक तद्धित प्रत्यय (Sthiti Vachak Taddhita Pratyaya):
विशेषणवाचक तद्धित प्रत्यय (Visheshan Vachak Taddhita Pratyaya):
अंग्रेजी के तद्धित प्रत्यय :हिंदी में कुछ अंग्रेजी के भी तद्धित प्रत्यय प्रचलन में आ गये हैं:
उपसर्ग और प्रत्यय का एकसाथ प्रयोग :कुछ ऐसे भी शब्द हैं, जिनकी रचना उपसर्ग तथा प्रत्यय दोनों के योग से होती है । जैसे –
हिन्दी व्याकरण –➭ भाषा ➭ वर्ण ➭ शब्द ➭
पद ➭ वाक्य ➭ संज्ञा ➭ सर्वनाम ➭ विशेषण ➭
क्रिया ➭ क्रिया विशेषण ➭ समुच्चय बोधक ➭ विस्मयादि बोधक ➭ वचन ➭
लिंग ➭ कारक ➭ पुरुष ➭ उपसर्ग ➭ प्रत्यय ➭ संधि
➭ छन्द ➭ समास ➭ अलंकार ➭ रस ➭ श्रंगार रस ➭ विलोम शब्द ➭
पर्यायवाची शब्द ➭ अनेक शब्दों के लिए एक शब्द
शब्द के बाद लगने वाले शब्दांश क्या कहलाते हैं *?दूसरे अर्थ में – शब्द निर्माण के लिए शब्दों के अंत में जो शब्दांश जोड़े जाते हैं, वे प्रत्यय कहलाते हैं। प्रत्यय दो शब्दों से मिलकर बना होता है – प्रति + अय। प्रति का अर्थ होता है 'साथ में, पर बाद में' और अय का अर्थ होता है 'चलने वाला'। अत: प्रत्यय का अर्थ होता है, साथ में पर बाद में चलने वाला।
किसी शब्द के प्रारंभ में लगाये जाने वाले शब्दांश को क्या कहते हैं?उपसर्ग ऐसे शब्दांश जो किसी शब्द के पूर्व जुड़ कर उसके अर्थ में परिवर्तन कर देते हैं या उसके अर्थ में विशेषता ला देते हैं। उप (समीप) + सर्ग (सृष्टि करना) का अर्थ है - किसी शब्द के समीप आ कर नया शब्द बनाना। उदाहरण: प्र + हार = प्रहार, 'हार' शब्द का अर्थ है पराजय।
जो शब्दांश किसी शब्द के पीछे लग कर उनके अर्थ में परिवर्तन लाते हैं वह क्या कहलाते हैं?प्रत्यय - वे शब्दांश जो किसी के अंत में लगकर उस शब्द के अर्थ में परिवर्तन कर देते हैं अर्थात नए अर्थ का बोध कराते हैं, उन्हें प्रत्यय कहते हैं।
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