हीमोग्लोबिन असल में लाल रंग का आयरनयुक्त प्रोटीन है, जिसका काम फेफड़ों से ऑक्सीजन लेकर शरीर की विभिन्न कोशिकाओं तक पहुंचाना है। Show ऑक्सीजनयुक्त हीमोग्लोबिन और रक्त का रंग हमेशा लाल ही दिखाई पड़ता है। ऑक्सीजन पहुंचाने की प्रक्रिया एनर्जी लेवल बनाए रखने और अन्य कार्यप्रणालियों के लिए बहुत जरूरी है।
Answer (Detailed Solution Below)Explore Supercoaching For FREE सही उत्तर हीमोग्लोबिन है। Key Points
Additional Information प्लाज्मा
ग्लोब्युलिन
एल्बुमिन
India’s #1 Learning Platform Start Complete Exam Preparation Trusted by 3.5 Crore+ Students खून का रंग लाल होता है, फिर भी हमारे शरीर की नसें नीले या जामुनी रंग की दिखती है. आमतौर पर एक धारणा बनी हुई है कि ऑक्सीजन युक्त खून लाल होता है, जबकि बिना ऑक्सीजन वाला खून नीला होता है. लेकिन यह सच नहीं है. खून का रंग सिर्फ लाल होता है. लाल रक्त कोशिकाओं में प्रोटीन जिसमें ऑक्सीजन होती है, उसे हीमोग्लोबिन कहते हैं. इसके प्रत्येक अणु में आयरन के चार परमाणु होते हैं, जो लाल प्रकाश को दर्शाते हैं. हमारे खून को लाल रंग देते हैं. खून में ऑक्सीजन के स्तर पर लाल का शेड बदलता है. ऑक्सीजन के स्तर खून को गहरा लाल या हल्का लाल बनाता है (Photo: Pixabay)खून अलग-अलग लाल रंग का हो सकता है जब हीमोग्लोबिन फेफड़ों से ऑक्सीजन लेता है, तो खून का रंग चमकदार चेरी रेड होता है. इसके बाद यह खून धमनियों में और वहां से शरीर की टिश्यू तक जाता है. वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी के हीमैटोलॉजी के प्रोफेसर डॉ. क्लेबर फेरट्रिन (Dr. Kleber Fertrin) के मुताबिक, शरीर की सभी टिश्यू तक ऑक्सीज़न पहुंचाने के बाद, जब यह खून फेफड़ों तक वापस आता है, तो नसों में बहने वाला बिना ऑक्सीज़न वाला खून गहरे लाल रंग का होता है. कहने का मतलब है कि खून अलग-अलग लाल रंग का हो सकता है लेकिन ऐसा कभी नहीं होता कि इंसान का खून नीला हो जाए. नीली दिख रही नसों से अगर खून निकाला जाए, तो वह लाल ही होगा. नीली या हरी नस दिखना इल्यूज़न है डॉ. क्लेबर फेरट्रिन का कहना है कि नीली या हरी नस दिखना एक इल्यूज़न है, क्योंकि नसें त्वचा की पतली परत के नीचे होती हैं. हम जो रंग देखते हैं, वे उस वेवलेंथ पर आधारित होते हैं जिसे हमारा रेटिना समझता है. और त्वचा की अलग-अलग परतें वेवलेंथ को अलग-अलग तरीकों से बिखेरती हैं. गहरे रंग की त्वचा के नीचे, नसें अक्सर हरी दिखाई देती हैं. जबकि हल्के रंग की त्वचा के नीचे नसें नीले या जामुनी दिखती हैं. ऐसा इसलिए है क्योंकि प्रकाश की हरी और नीली वेवलेंथ, लाल वेवलेंथ से छोटी होती हैं. नीली रोशनी की तुलना में, लाल रोशनी इंसान के टिश्यू को भेदने में बेहतर है. इसलिए हमारी त्वचा लाल वेवलेंथ को अवशोषित करती है और हरे या नीले रंग परावर्तित हो जाते हैं और हमारे पास वापस बिखर जाते हैं. वैसे जानकारी के लिए बता दें कि खून का रंग नीला भी होता है. लेकिन इंसानों में नहीं, बल्कि केकड़ों, झींगा मछलियों, ऑक्टोपस और मकड़ियों में. लहू या रुधिर या खून(Blood) एक शारीरिक तरल (द्रव) है जो लहू वाहिनियों के अन्दर विभिन्न अंगों में लगातार बहता रहता है। रक्त वाहिनियों में प्रवाहित होने वाला यह गाढ़ा, कुछ चिपचिपा, लाल रंग का द्रव्य, एक जीवित ऊतक है। यह प्लाज़मा और रक्त कणों से मिल कर बनता है। प्लाज़मा वह निर्जीव तरल माध्यम है जिसमें रक्त कण तैरते रहते हैं। प्लाज़मा के सहारे ही ये कण सारे शरीर में पहुंच पाते हैं और वह प्लाज़मा ही है जो आंतों से शोषित पोषक तत्वों को शरीर के विभिन्न भागों तक पहुंचाता है और पाचन क्रिया के बाद बने हानिकारक पदार्थों को उत्सर्जी अंगो तक ले जा कर उन्हें फिर साफ़ होने का मौका देता है। रक्तकण तीन प्रकार के होते हैं, लाल रक्त कणिका, श्वेत रक्त कणिका और प्लैटलैट्स। लाल रक्त कणिका श्वसन अंगों से आक्सीजन ले कर सारे शरीर में पहुंचाने का और कार्बन डाईआक्साईड को शरीर से श्वसन अंगों तक ले जाने का काम करता है। इनकी कमी से रक्ताल्पता (अनिमिया) का रोग हो जाता है। श्वैत रक्त कणिका हानीकारक तत्वों तथा बिमारी पैदा करने वाले जिवाणुओं से शरीर की रक्षा करते हैं। प्लेटलेट्स रक्त वाहिनियों की सुरक्षा तथा खून बनाने में सहायक होते हैं। मनुष्य-शरीर में करीब पाँच लिटर लहू विद्यमान रहता है। लाल रक्त कणिका की आयु कुछ दिनों से लेकर १२० दिनों तक की होती है। इसके बाद इसकी कोशिकाएं तिल्ली में टूटती रहती हैं। परन्तु इसके साथ-साथ अस्थि मज्जा (बोन मैरो) में इसका उत्पादन भी होता रहता है। यह बनने और टूटने की क्रिया एक निश्चित अनुपात में होती रहती है, जिससे शरीर में खून की कमी नहीं हो पाती। मनुष्यों में लहू ही सबसे आसानी से प्रत्यारोपित किया जा सकता है। एटीजंस से लहू को विभिन्न वर्गों में बांटा गया है और रक्तदान करते समय इसी का ध्यान रखा जाता है। महत्वपूर्ण एटीजंस को दो भागों में बांटा गया है। पहला ए, बी, ओ तथा दूसरा आर-एच व एच-आर। जिन लोगों का रक्त जिस एटीजंस वाला होता है उसे उसी एटीजंस वाला रक्त देते हैं। जिन पर कोई एटीजंस नहीं होता उनका ग्रुप "ओ" कहलाता है। जिनके रक्त कण पर आर-एच एटीजंस पाया जाता है वे आर-एच पाजिटिव और जिनपर नहीं पाया जाता वे आर-एच नेगेटिव कहलाते हैं। ओ-वर्ग वाले व्यक्ति को सर्वदाता तथा एबी वाले को सर्वग्राही कहा जाता है। परन्तु एबी रक्त वाले को एबी रक्त ही दिया जाता है। जहां स्वस्थ व्यक्ति का रक्त किसी की जान बचा सकता है, वहीं रोगी, अस्वस्थ व्यक्ति का खून किसी के लिये जानलेवा भी साबित हो सकता है। इसीलिए खून लेने-देने में बहुत सावधानी की आवश्यकता होती है। लहू का pH मान 7.4 होता है खून को लाल रंग कौन देता है?खून का रंग सिर्फ लाल होता है. लाल रक्त कोशिकाओं में प्रोटीन जिसमें ऑक्सीजन होती है, उसे हीमोग्लोबिन कहते हैं. इसके प्रत्येक अणु में आयरन के चार परमाणु होते हैं, जो लाल प्रकाश को दर्शाते हैं. हमारे खून को लाल रंग देते हैं.
लाल रक्त का निर्माण कौन करता है?लाल रक्त कोशिकाओं का निर्माण अस्थि मज्जा (bone marrow) में होता है।
लाल खून कैसे बनता है?लाल रक्त कणों की उत्पत्ति लाल अस्थि मज्जा (रेड बोन मैरो) में होती है। लाल रक्त कण ऑक्सीजन से भरी कोशिकाएं होती हैं, लेकिन अपनी ऊर्जा की आवश्यकता के लिए वे ऑक्सीजन का उपयोग नहीं करती हैं। लाल रक्त कण ही शरीर की वे कोशिकाएं हैं, जिनमें केंद्रक ही नहीं, माइटोकोंड्रिया भी नहीं होते हैं।
शरीर में खून कहाँ बनता है?मॉडर्न मेडिसिन के मुताबिक रक्त का निर्माण अस्थि मज्जा से होता है। वहीं आयुर्वेद में यकृत और प्लीहा द्वारा इसके निमार्ण की बात उल्लिखित है। बीएचयू व संस्कृत विवि की संयुक्त टीम के शोध निष्कर्षों के मुताबिक रंजक पित्त अमाशय, यकृत और प्लीहा में होता है, जिसका मुख्य कार्य रक्त धातु को रंग प्रदान करना है।
|