गले में गांठ का ऑपरेशन कैसे किया जाता है? - gale mein gaanth ka opareshan kaise kiya jaata hai?

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गले का ऑपरेशन कैसे करना है, डॉक्टरों ने देखा

सीनियर, जूनियर डाॅक्टरों और नाक, कान गला विभाग के साथ-साथ सर्जरी विभाग के स्टूडेंट्स साढ़े तीन घंटे तक खामोशी से गले के कैंसर का लाइव ऑपरेशन देखते रहे। सिम्स के ऑडिटोरियम में मौजूद ज्यादातर लोगों के लिए यह नजारा ज्ञानवर्धक था। स्वयं सर्जरी करने वाले डाॅक्टर भी इसे गंभीरता से देखते रहे। सभी के लिए यह सुखद अनुभव रहा कि लाइव देखते हुए उन्हें डाॅक्टर की आवाज भी सुनाई दे रही थी, जिसमें वे ऑपरेशन की बारीकियां समझा रहे थे।

ऑपरेशन थिएटर में सर्जरी करना और करके अलग हो जाना, यह सर्जन डाॅक्टर के लिए काफी आसान काम है। साधारण भाषा में कहें तो यह उनके लिए आम बात है, लेकिन जब वे स्वयं ऑपरेशन होता हुआ लाइव देखते हैं तो उन्हें काफी आश्चर्य होता है। सिम्स में नाक, कान, गला विभाग के एओटी एसोसिएशन और सिम्स के सहयोग से दो दिन का राज्य स्तरीय लाइव सर्जरी सेमिनार का आयोजन सिम्स के ऑडिटोरियम में हुआ। आयोजक सिम्स के नाक, कान और गला विभाग की एचओडी डाॅ. आरती पांडेय व उनका संगठन थे। पहले दिन मुंह के कैंसर का ऑपरेशन और थाइराइट के ऑपरेशन को हॉल में मौजूद डाॅक्टरों को लाइव दिखाया गया। दूसरे दिन रविवार सुबह 9.30 बजे सेमिनार शुरू हुआ। इसमें मौजूद डाॅक्टरों व स्टूडेंट्स को गले के कैंसर के ऑपरेशन और उसमें बरती जाने वाली सावधानियों के बारे में बताया जाना था। यह ऑपरेशन नागपुर से आए डाॅ. महेश को करना था। पहले दिन की तरह ऑपरेशन शुरू होना था।

ऑपरेशन टेबल पर मस्तूरी अकोला का ग्रामीण फत्तेलाल था। ऑपरेशन शुरू होने से लेकर अंत तक डाॅ. महेश ने ऑपरेशन की बारीकियां बताईं। चूंकि यह गले का मामला है, इसलिए इसमें अत्यंत ही सावधानी बरतनी पड़ती है। ऑपरेशन करते हुए वे एक-एक चीज को बताते रहे। ऑडिटोरियम से दूर वे सिम्स के ऑपरेशन थिएटर में थे। ऑडिटोरियम में बैठे सभी लाेग साढ़े तीन घंटे तक लाइव सर्जरी देखते रहे और गले के ऑपरेशन की बारीकियां समझते रहे। डाॅ. महेश ने बताया कि गले में कौन-कौन सी कितनी तरह की नसें होती हैं। इसका खास ख्याल रखना पड़ता है। कैंसर के जिस हिस्से को काटकर निकाला जाना है, उसे काटने से पहले यह तय कर लें कि और नस प्रभावित न हो।

सिम्स के ऑडिटोरियम में गले के ऑपरेशन के संबंध में जानकारी देते डॉ. महेश व उपस्थित डॉक्टर।

सभी का सम्मान
लाइव सर्जिकल सेमिनार में अतिथि के तौर पर मौजूद रहे नागपुर के डाॅ. महेश, एओआई के राष्ट्रीय सचिव डाॅ. राकेश गुप्ता रायपुर, डाॅ. राहलकर, सिम्स के डीन विष्णु दत, सिम्स अधीक्षक डाॅ. आरके दास समे अन्य लोगों को स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया। इसके अलावा सेमिनार में शामिल हुए सभी लोगों को प्रमाण पत्र भी दिए गए।

550 से अधिक सर्जरी कर चुके
सेमिनार में अतिथि के तौर पर मौजूद रहे डाॅ. चंद्रशेखर राहलकर के बारे में डाॅ. पांडेय ने बताया कि उन्होंने अब तक 550 से भी ज्यादा ऑपरेशन किए हैं। इसमें मुंह के कैंसर के मामले ज्यादा हैं। इन्होंने अपनी सेवा गनियारी के अस्पताल में भी दी है।

एसजीपीजीआई में एंडोक्राइन सर्जरी विभाग की ओर से शुरू हुई चार दिवसीय वर्कशॉ

लाइव सर्जरी कर चिकित्सकों को दी गई दूरबीन विधि की जानकारी

एनबीटी, लखनऊ :

एसजीपीजीआई में बुधवार को एंडोक्राइन सर्जरी विभाग की ओर से एस्थेटिक थायरॉइड सर्जरी पर चार दिवसीय वर्कशॉप शुरू हुई। टेलीमेडिसिन ऑडिटोरियम में शुरू हुई वर्कशॉप के पहले दिन विभाग के डॉ. ज्ञानचंद ने दूरबीन विधि से गले की गांठ का लाइव ऑपरेशन किया। वर्कशॉप में देशभर के चिकित्सा संस्थानों के चिकित्सक हिस्सा ले रहे हैं।

विभाग के हेड प्रो. एसके मिश्रा ने बताया कि थायरॉइड बढ़ जाने से गले पर गांठ बन जाती है। यह गांठ बड़ी होकर घेंगा जैसी गंभीर बीमारी में तब्दील हो जाती है। यह बीमारी महिलाओं में ज्यादा होती है। इसके लिए गले पर बड़ा चीरा लगाकर ऑपरेशन किया जाता था, जिसका निशान बन जाता था, लेकिन दूरबीन विधि से दो से तीन सेंटीमीटर तक की गांठ की बिना चीरा लगाए इसकी सर्जरी की जा सकती है। पीजीआई में इसका खर्च 30 हजार रुपये आता है जबकि चीरे वाली सर्जरी का खर्च 25 हजार रुपये आता था। इस मौके पर गूंज जौहरी, किंटु लुवाग, अंजलि मिश्रा, एके रमासुब्बु, आनन्द मिश्रा, रजनीकांत यादव, वेंकटेश राव सहित कई लोग मौजूद रहे।

पूर्वांचल के बच्चों पर होगी रिसर्च

प्रो. एसके मिश्रा ने बताया कि कि पूर्वांचल में थायरॉइड के मरीजों की संख्या अधिक है। इस बीमारी के कारणों का पता लगाने के लिए एंडोक्राइन विभाग की टीम गोंडा और गोरखपुर के सरकारी स्कूलों के बच्चों के यूरिन का सैंपल लेकर उसकी जांच करेगी। इसके अलावा बच्चों के घरों में इस्तेमाल होने वाले नमक की भी जांच की जाएगी। इससे यह पता लगाया जाएगा कि बच्चों को सही मात्रा में आयोडीन मिल रहा है या नहीं।

आज होगी लाइव रोबोटिक सर्जरी

प्रो. एसके मिश्रा ने बताया कि दक्षिण कोरिया में थायरॉइड बढ़ने से बनने वाली गांठ की रोबोटिक सर्जरी की जाती है। गुरुवार को कोरिया के विशेषज्ञ विडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए लाइव रोबोटिक सर्जरी कर इसके बारे में बताएंगे।

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गले में गांठ कितने प्रकार की होती है?

जवाब : तीन प्रकार की गांठ हो सकती हैं। इनमें टीवी, लाइकोमा व कैंसर हैं। जांच कराने से ही स्थिति स्पष्ट हो सकती है।

गले में गांठ होने का क्या मतलब है?

गांठ का स्थान गर्दन की गांठ का सटीक स्थान इसके कारण के बारे में संकेत सकता है। उदाहरण के लिए, थायरॉयड ग्रंथि में सूजन के कारण होने वाली गांठ आमतौर पर गर्दन के सामने दिखाई देगी। गर्दन के किनारे पर एक गांठ अक्सर सूजी हुई लिम्फ नोड का संकेत देती है, जो संक्रमण के कारण हो सकती है।

गले की सर्जरी कैसे की जाती है?

यह गांठ बड़ी होकर घेंगा जैसी गंभीर बीमारी में तब्दील हो जाती है। यह बीमारी महिलाओं में ज्यादा होती है। इसके लिए गले पर बड़ा चीरा लगाकर ऑपरेशन किया जाता था, जिसका निशान बन जाता था, लेकिन दूरबीन विधि से दो से तीन सेंटीमीटर तक की गांठ की बिना चीरा लगाए इसकी सर्जरी की जा सकती है।

गले में कैंसर की गांठ कैसे होती है?

गले का कैंसर एक ऐसी स्थिति है जिसमें आपके गले (ग्रसनी-फैरिंक्स), वॉयस बॉक्स (स्वरयंत्र-लैरिंक्स) या टॉन्सिल में कैंसर के ट्यूमर विकसित हो सकते हैं। लगातार खांसी, गले या कान में दर्द, निगलने में कठिनाई या गांठ/गले में दर्द जो ठीक नहीं हो रहा है, गले के कैंसर के लक्षण हो सकते हैं।