गुर्जर समाज, प्राचीन एवं प्रतिष्ठित समाज में से एक है। यह समुदाय जो पहले गोचर, गुज्जर, गूजर, गोजर, आजादी के बाद से गुर्जर, गूर्जर और वीर गुर्जर नाम से भी जाना जाता है। गुर्जर मुख्यत: उत्तर भारत, पाकिस्तान और अफ़्ग़ानिस्तान में बसे हैं। इस जाति का नाम अफ़्ग़ानिस्तान के राष्ट्रगान में भी आता है। गुर्जरों के ऐतिहासिक प्रभाव के कारण उत्तर भारत और पाकिस्तान के बहुत से स्थान गुर्जर जाति के नाम पर रखे गए हैं, जैसे कि भारत का गुजरात राज्य, पाकिस्तानी पंजाब का गुजरात ज़िला और गुजराँवाला ज़िला और रावलपिंडी ज़िले का गूजर खान शहर।[1][2] प्राचीन काल में दूधिया में निपुण रहे गुर्जर मुख्य रूप से खेती और पशुपालन के व्यवसाय से जुड़े हुए हैं। गुर्जर अच्छे पशुपालन माने जाते थे और इसीलिए भारतीय सेना में अभी भी इनकी अच्छी ख़ासी संख्या है| गुर्जर महाराष्ट्र (जलगाँव जिला), दिल्ली, राजस्थान, हरियाणा, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर जैसे राज्यों में फैले हुए हैं। राजस्थान में सारे गुर्जर हिंदू हैं। सामान्यत: गुर्जर हिन्दू, सिख, मुस्लिम आदि सभी धर्मो में देखे जा सकते हैं।[3]मुस्लिम तथा सिख गुर्जर, हिन्दू गुर्जरो से ही परिवर्तित हुए थे। पाकिस्तान में गुजरावालां, फैसलाबाद और लाहौर के आसपास इनकी अच्छी ख़ासी संख्या है।[4] उत्पत्तिगुर्जर अभिलेखो के हिसाब से ये सूर्यवंशी या रघुवंशी हैं। प्राचीन महाकवि राजशेखर ने गुर्जरों को 'रघुकुल-तिलक' तथा 'रघुग्रामिणी' कहा है।[5] ७ वी से १० वी शतब्दी के गुर्जर शिलालेखो पर सुर्यदेव की कलाकृतियाँ भी इनके सुर्यवंशी होने की पुष्टि करती हैं।[6] राजस्थान में आज भी गुर्जरों को सम्मान से 'मिहिर' बोलते हैं, जिसका अर्थ 'सूर्य' होता है[7][8] कुछ इतिहासकारों के अनुसार गुर्जर मध्य एशिया के कॉकस क्षेत्र (अभी के आर्मेनिया और जॉर्जिया) से आए आर्य योद्धा थे। कुछ विद्वान इन्हे विदेशी भी बताते हैं क्योंकि गुर्जरों का नाम एक अभिलेख में हूणों के साथ मिलता है, परन्तु इसका कोई एतिहासिक प्रमाण नहीं है। संस्कृत के विद्वानों के अनुसार, गुर्जर शुद्ध संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ 'शत्रु का नाश करने वाला' अर्थात 'शत्रु विनाशक' होता है।[9][10] प्राचीन महाकवि राजशेखर ने गुर्जर नरेश महिपाल को अपने महाकाव्य में दहाड़ता गुर्जर कह कर सम्बोधित किया है।[11] कुछ इतिहासकार कुषाणों को गुर्जर बताते हैं तथा कनिष्क के रबातक शिलालेख पर अंकित 'गुसुर' को गुर्जर का ही एक रूप बताते हैं। उनका मानना है कि गुशुर या गुर्जर लोग विजेता के रूप में भारत में आये क्योंकि गुशुर का अर्थ 'उच्च कुलीन' होता है।[12]. गुर्जर साम्राज्यइतिहास के अनुसार ५वी सदी में भीनमाल गुर्जर सम्राज्य की राजधानी थी तथा इसकी स्थापना गुर्जरो ने की थी। भरुच का सम्राज्य भी गुर्जरो के अधीन था। चीनी यात्री ह्वेन्सान्ग अपने लेखो में गुर्जर सम्राज्य का उल्लेख करता है तथा इसे 'kiu-che-lo' बोलता है।[13] छठी से १२वीं सदी में गुर्जर कई जगह सत्ता में थे। गुर्जर प्रतिहार राजवंश की सत्ता कन्नौज से लेकर बिहार, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात तक फैली थी। मिहिरभोज को गुर्जर-प्रतिहार वंश का बड़ा शासक माना जाता है और इनकी लड़ाई बंगाल के पाल वंश और दक्षिण-भारत के राष्ट्रकूट शासकों से होती रहती थी। १२वीं सदी के पहले ही प्रतिहार वंश का पतन होना शुरू हुआ और ये कई राजवंशों में बँट गए जैसे कि (चौहान वंश, सोलंकी वंश, चंदीला और परमार वंश)|[14][15] अरब आक्रान्तो ने गुर्जरों की शक्ति तथा प्रशासन की अपने अभिलेखों में पूरी-पूरी प्रशंसा की है।[16][17] इतिहासकार बताते हैं कि मुगल काल से पहले तक लगभग पूरा राजस्थान तथा गुजरात, 'गुर्जरत्रा' (गुर्जरो से रक्षित देश) या गुर्जर-भूमि के नाम से जाना जाता था।[18]अरब लेखकों के अनुसार गुर्जर उनके सबसे भयंकर शत्रु थे। उन्होंने ये भी कहा है कि अगर गुर्जर नहीं होते तो वो भारत पर १२वीं सदी से पहले ही अधिकार कर लेते।[16] १८वी सदी में भी गुर्जरो के कुछ छोटे छोटे राज्य थे। दादरी के गुर्जर राजा, दरगाही सिंह के अधीन १३३ ग्राम थे। मेरठ का राजा गुर्जर नैन सिंह था तथा उन्होंने परिक्शित गढ का पुन्रनिर्माण करवाया था। भारत गजीटेयर के अनुसार १८५७ का प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम मे गुर्जर ब्रिटिश के बहुत बुरे दुश्मन साबित हुए। गुर्जरो का १८५७ की क्रान्ति में भी अहम योगदान रहा है। कोतवाल धन सिंह गुर्जर १८५७ की क्रान्ति के शहीद थे।[19][18]पन्ना धाय जैसी वीरांगना पैदा हुई, जिसने अपने बेटे चन्दन का बलिदान देकर उदय सिंह के प्राण बचाए| बिशलदेव गुर्जर बैसला (अजमेर शहर के संस्थापक) जैसे राजा हुए जिन्होने संभवत: वीं शताब्दी में अजमेर पर शासन किया था और साथ ही अरब घुसपैठ का सफलतापूर्वक प्रतिरोध किया और तोमर वंश के गुर्जरों को दिल्ली पर नियंत्रण पाने में मदद की।,[20] देवनारायण चौहान राजवंश के नाग वंशीय क्षत्रिय गुर्जर जैसे राजा हुए जिनका मूल स्थान वर्तमान में अजमेर के निकट नाग पहाड़ था।[21], विजय सिंह पथिक जैसे क्रांतिकारी नेता हुए जो राजा-महाराजा किसानो को लूटा करते थे, उनके खिलाफ आँदोलन चलाकर उन्होंने किसानो को मजबूत किया। मोतीराम बैसला जैसे पराक्रमि हुए जिन्होने मुगलो को आगरा में ही रोक दिया। धन सिंह जी कोतवाल हुए, जिन्होंने सबसे पहले मेरठ में अंग्रेजों से लड़ने का विगुल बजाया, सरदार वल्लभ भाई पटेल जैसा महापुरुष पैदा हुआ, जिन्होंने पूरे देश के राजा-महाराजो की विरासत को एक करके नवभारत का निर्माण किया। इस देश की रक्षा के लिए इस वीर गुर्जर जाति ने लाखो बच्चो की कुर्बानियाँ दी थी, अंग्रेजों की नाक में नकेल कसने वाले गुर्जरों को अंग्रेजों ने क्रिमिनल ट्राइब (यानी बदमाश समुदाय) कह कर पुकारा था। इसलिए उस वक़्त अंग्रेज़ों की सरकार ने गुर्जरों को बागी घोषित कर दिया था, इसी वजह से गुर्जर जंगलों और पहाड़ों में रहने लगे और इसी वजह गुर्जर पढाई-लिखाई से वंचित रह गये।[13]. स्रोत
इन्हें भी देखें
गुजरात में गुर्जरों को क्या कहते हैं?इसी पशुपालक वर्ग में रेवड़ (भेड़, बकरिया, ऊँट) पालने वाले गुर्जरों को उस समय रेबाडी गुर्जर कहा जाता था जो बाद में अलग थलग पड़कर सिर्फ रेबाडी रह गए. यही रेबाडी गुर्जर भारी संख्या मे गुजरात से जम्मू कश्मीर भी गए थे जो आज वह बकरवाल कहलाते हैं.
महाभारत में गुर्जर कौन थे?महाभारत काल से पहले तथा महाभारत के समय गुर्जरो के चेची तथा कुषाण वंश के राजनैतिक स्तर पर शक्तिशाली होने के प्रमाण मिलते है। कुषाणों को ऋषिक,देवपुत्र तथा तुषार भी कहा जाता था। कुषाणों ने महाभारत के युध्द में भाग लिया था क्योंकि वे कुरूवंशियों के निकट संबंधी थे।
गुर्जर कौन से वंश के हैं?प्राचीन इतिहास के जानकारों के अनुसार गूजर मध्य एशिया के कॉकेशस क्षेत्र ( अभी के आर्मेनिया और जॉर्जिया) से आए थे लेकिन इसी इलाक़े से आए आर्यों से अलग थे. कुछ इतिहासकार इन्हें हूणों का वंशज भी मानते हैं. भारत में आने के बाद कई वर्षों तक ये योद्धा रहे और छठी सदी के बाद ये सत्ता पर भी क़ाबिज़ होने लगे.
गुर्जरों में सबसे बड़ा गोत्र कौन सा है?गुर्जर ह्यूमन रिसोर्सेज मैनेजमेंट एंड सोशल सर्विस के सचिव एडवोकेट रणपाल अवाना के अनुसार जिले में 65 से 70 गोत्र के गुर्जर रहते हैं। इनमें भाटी और नागर गोत्र के गुर्जर सबसे अधिक हैं।
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