पाठ्यक्रम और पाठ्यचर्या से क्या समझते हैं? - paathyakram aur paathyacharya se kya samajhate hain?

हेलो दोस्तों… आज हम आपको पाठ्यक्रम और पाठ्यचर्या में क्या अंतर होते हैं उनके बारे में जानकारी देने जा रहे हैं. क्यूंकि कई बार हमने देखा है की लोग पाठ्यक्रम और पाठ्यचर्या को एक ही समझ लेते हैं और जब कहीं इसे लेके बात हो रही होती है तो उन्हें ये पता ही नहीं चल पाता की आखिर दोनों में अंतर क्या क्या हैं जिनके कारण उन्हें काफी शर्मिंदगी उठानी पड़ जाती है. इसलिए दोस्तों आज हम आपको बताने जा रहे हैं की आखिर पाठ्यक्रम और पाठ्यचर्या में अंतर क्या क्या हो सकते हैं और उससे पहले हम आपको ये दोनों होते क्या हैं उनके बारे में बताएंगे.

सूची

  • पाठ्यक्रम क्या है | करिकुलम क्या है !!
  • पाठ्यचर्या क्या है | सिलेबस क्या है !!
  • पाठ्यक्रम और पाठ्यचर्या में अंतर | करिकुलम और सिलेबस में अंतर !!

पाठ्यक्रम क्या है | करिकुलम क्या है !!

विद्यार्थी को उनकी पूरी शिक्षा के दौरान मिला अनुभव और कैसे पूरी शिक्षा का एक नियम होता है इन्ही सभी बातों को पाठ्यक्रम कहते हैं. पाठ्यक्रम को अंग्रेजी में करिकुलम कहते हैं जो की लैटिन भाषा से लिया गया है. अगर आसान भाषा में कहा जाये तो पूरी शिक्षा प्रदान करने का नियम बनाया गया है उसे ही पाठ्यक्रम कहा जाता है.

पाठ्यचर्या क्या है | सिलेबस क्या है !!

किसी भी विद्यालय या विश्वविद्यालय में एक नियम के साथ प्रदान की जाने वाली शिक्षा और उसकी सामग्री को पाठ्यचर्या कहते हैं. ये निर्देशों के अनुसार ही काम करती है ये सामान्य सिलेबस पर आधारित होती है. जो आपको ये बताता है की किसी भी विशिष्ट ग्रेड या मानक को प्राप्त करने हेतु कौन कौन से विषय और उनकी कितनी जानकारी का होना अनिवार्य है.

पाठ्यक्रम और पाठ्यचर्या में अंतर | करिकुलम और सिलेबस में अंतर !!

# पाठ्यक्रम एक प्रकार का अनुभव है जो पूरी शिक्षा के दौरान विद्यार्थी को मिलता है. इसमें विद्यार्थी को पता चलता है कि किस आयु में उसे कितने अनुशासन के साथ अपनी शिक्षा लेनी है. वहीं पाठ्यचर्या में विद्यार्थी को बताया जाता है की उन्हें किस विषय की जानकारी किस कक्षा में प्राप्त होगी.

# पाठ्यक्रम का चयन शिक्षार्थी की वर्तमान आयु, उसकी अभिरुचि का स्तर और उसके वर्तमान और भविष्य को ध्यान में रख के किया जाता है और वहीं पाठ्यचर्या में विद्यार्थी के आयु और उसकी कक्षा के अनुसार उसके सिलेवस को निर्धारित कर के किया जाता है.

# किसी भी विद्यार्थी की रूचि और उसकी समझने की क्षमता के अनुसार पाठ्यक्रम का स्तर होना चाहिए. पाठ्यचर्या में किसी विद्यार्थी को उसकी समझने की क्षमता के अनुसार उसे शिक्षा का ज्ञान देना चाहिए.

# पाठ्यक्रम में प्रयोग और शोध पे ध्यान दिया जाता है जबकि पाठ्यचर्या में उन्हें किताबों द्वारा कैसे अच्छे से ज्ञान दिया जा सकता है इस्पे ध्यान दिया जाता है.

# पाठ्यक्रम में कुछ चीजों को बदलने में भी ध्यान देना चाहिए जैसे की किताबों को रटने की जगह कुछ खोज करने में ध्यान देना चाहिए और पाठ्यचर्या में उन किताबों में कुछ ऐसे एक्सरसाइज बनानी चाहिए जिसके लिए विद्यार्थी को स्वयं खोज करने की आवश्यकता हो.

# पाठ्यक्रम को अंग्रेजी में करिकुलम कहते हैं और पाठ्यचर्या को अंग्रेजी में सिलेबस कहते हैं.

# पाठ्यक्रम के अंदर पाठ्यचर्या आता है. पाठ्यचर्या पाठ्यक्रम का महत्वपूर्ण अंग माना जाता है.

# पाठ्यक्रम में शिक्षा केवल लिखित में ही नहीं दी जाती है बल्कि कुछ अनुशासन, उठने बैठने का ढंग, नैतिकता आदि भी सिखाई जाती है. जबकि पाठ्यचर्या में आपको किताबों का ज्ञान और कई विषयों की जानकारी दी जाती है.

# पाठ्यचर्या कुछ नियमों तक सीमित है जबकि पाठ्यक्रम की कोई सीमा नहीं है.

आपको हमारे द्वारा दी गयी जानकारी कैसी लगी और आपके कितना काम आयी हमे बताना न भूले और यदि आपके मन में कोई प्रश्न, कोई सुझाव या कोई शिकायत हो तो हमे नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स में बता सकते हैं हम उसे सुलझाने की कोशिश करेंगे।

औपचारिक शिक्षा के क्षेत्र में पाठ्यचर्या या पाठ्यक्रम (करिकुलम) विद्यालय या विश्वविद्यालय में प्रदान किये जाने वाले पाठ्यक्रमों और उनकी सामग्री को कहते हैं। पाठ्यक्रम निर्देशात्मक होता है एवं अधिक सामान्य सिलेबस पर आधारित होता है जो केवल यह निर्दिष्ट करता है कि एक विशिष्ट ग्रेड या मानक प्राप्त करने के लिए किन विषयों को किस स्तर तक समझना आवश्यक है।

  • (1) पाठ्यक्रम के द्वारा ही स्पष्ट किया जाता है कि विद्यालय में विभिन्न स्तरों पर किस-किस विषय का ज्ञान छात्रों को दिया जायेगा। इस प्रकार पाठ्यक्रम से पाठ्यसामग्री का निर्धारण होता है जिससे शिक्षण-प्रक्रिया को सुनियोजित करने में सहायता मिलती है।[1]
  • (2) पाठ्यक्रम के निश्चित होने से अध्यापक को यह पता लगता है कि पूरे शिक्षण-सत्र के दौरान उसे किस कक्षा विशेष को क्या व कितना पढ़ाना है।
  • (3) छात्रों को भी यह पता चल जाता है कि किसी कक्षा विशेष में उन्हें पूरे शिक्षण-सत्र के दौरान क्या-क्या पढ़ना व सीखना है।
  • (4) पाठ्यक्रम माता-पिता का मार्गदर्शन करता है।
  • (5) पाठ्यक्रम की सहायता से अध्यापक कक्षा-शिक्षण के दौरान अपने शिक्षण-लक्ष्यों से नहीं भटकता है।
  • (6) पाठ्यक्रम की सहायता से छात्रों की योग्यता का मूल्यांकन एक निश्चित समय के पश्चात् किया जा सकता है।
  • (7) पाठ्यक्रम पूरे समाज व देश में शिक्षा के सामान्य स्तर को बनाए रखने में सहायक है।
  • (8) परीक्षण के प्रश्नपत्र का निर्माण करने हेतु पाठ्यक्रम एक मार्गदर्शक की भूमिका निभाता है।
  • (9) पाठ्यपुस्तकों का निर्माण पाठ्यक्रम के आधार पर ही होता है।
  • (10) पाठ्यक्रम की सहायता से मुख्याध्यापक या निरीक्षक अपने विद्यालय की शैक्षिक प्रगति का निरीक्षण कर सकते हैं।

पाठ्यक्रम और पाठ्यचर्या से क्या समझते हैं? - paathyakram aur paathyacharya se kya samajhate hain?

1918 में इस विषय पर प्रकाशित प्रथम पुस्तक द करिकुलम में[2] जॉन फ्रेंकलिन बौबिट ने कहा कि एक विचार के रूप में पाठ्यक्रम की जड़ें रेस-कोर्स के लिए लैटिन शब्द में है और पाठ्यक्रम का वर्णन ऐसे कार्यों एवं अनुभवों के रूप में किया है जिनके माध्यम से बच्चे अपेक्षित वयस्क के रूप में विकसित होते हैं ताकि वयस्क समाज में सफलता प्राप्त की जा सके। इसके अलावा, पाठ्यक्रम में केवल विद्यालय में होने वाले अनुभव ही नहीं बल्कि विद्यालय एवं उसके बाहर होने वाले गठन कार्य एवं अनुभव अपनी संपूर्णता में समाहित होते हैं; वे अनुभव जो अनियोजित और अनिर्दिष्ट रहे हैं और वे अनुभव भी जिन्हें समाज के वयस्क सदस्यों के उद्देश्यपूर्ण गठन की दिशा में जानबूझकर कर प्रदान किया गया है। (Cf. छवि दाहिनी ओर है)

बौबिट के लिए पाठ्यक्रम एक सामाजिक इंजीनियरिंग का क्षेत्र है। उनके सांस्कृतिक अनुमान एवं सामाजिक परिभाषाओं के अनुसार उनके पाठ्यक्रम निर्माण के दो उल्लेखनीय लक्षण हैं: (i) वैज्ञानिक विशेषज्ञ अपने इस विशेष ज्ञान के आधार पर कि समाज के वयस्क सदस्यों में क्या गुण होने चाहिए एवं कौन से अनुभव ऐसे गुण उत्पन्न करेंगे, वे पाठ्यक्रमों का निर्माण करने हेतु योग्य होंगे तथा यही न्यायसंगत भी होगा और (ii) पाठ्यक्रम को ऐसे कार्य-अनुभवों के रूप में परिभाषित है जो छात्र को अपेक्षित वयस्क बनने के लिए उसके पास होने चाहिए।

इसलिए, उन्होंने पाठ्यक्रम को लोगों के चरित्र का निर्माण करने वाले कार्यों एवं अनुभवों की ठोस वास्तविकता के स्थान पर एक आदर्श के रूप में परिभाषित किया है।

पाठ्यक्रम संबंधित समकालीन विचार बौबिट के इन तत्वों को अस्वीकार करते हैं, परंतु इस आधार को यथावत रखते हैं कि पाठ्यक्रम अनुभवों का दौर है जो मानव को व्यक्ति बनाता है। पाठ्यक्रमों के माध्यम से वैयक्तिक गठन का व्यक्तिगत और सामूहिक स्तर (अर्थात सांस्कृतिक एवं सामाजिक स्तर पर) पर अध्ययन किया जाता है; उदाहरण के लिए पेशेवर गठन, ऐतिहासिक अनुभव के माध्यम से शैक्षिक अनुशासन). एक समूह का गठन उसके व्यक्तिगत प्रतिभागियों के गठन के साथ ही होता है।

यद्यपि औपचारिक रूप से यह बौबिट की परिभाषा में दिखाई दिया है, रचनात्मक अनुभव के रूप में पाठ्यक्रम की चर्चा को जॉन डेवी के कार्य में भी देखा जा सकता है (जो महत्वपूर्ण मामलों पर बौबिट से असहमत थे). हालांकि बौबिट और डेवी की "पाठ्यक्रम" के विषय में आदर्शवादी समझ शब्द के वर्तमान प्रतिबंधित उपयोगों से अलग है, पाठ्यक्रम लेखक और शोधकर्ता आम तौर पर इसे पाठ्यक्रम की एक समान तथ्यात्मक समझ के रूप में देखते हैं।[3][4]

औपचारिक स्कूली शिक्षा में पाठ्यक्रम[संपादित करें]

औपचारिक शिक्षा या स्कूली शिक्षा (cf. शिक्षा) में एक पाठ्यक्रम, किसी विद्यालय या विश्वविद्यालय में प्रदान किये जाने वाले पाठ्यक्रमों, पाठ्यक्रम संबंधी कार्यों और उनकी सामग्री को कहते हैं। एक पाठ्यक्रम को किसी बाह्य, आधिकारिक संस्था (जैसे कि, अंग्रेजी स्कूलों में नेशनल करिकुलम फॉर इंग्लैंड) द्वारा आंशिक अथवा पूर्ण रूप से निर्धारित किया जा सकता है। अमेरिका में प्रत्येक राज्य व्यक्तिगत स्कूल जिलों में पढ़ाए जाने वाले पाठ्यक्रम को स्थापित करता है[5]. हालांकि प्रत्येक राज्य संयुक्त राज्य अमेरिका शिक्षा विभाग द्वारा चयनित राष्ट्रीय[6] अकादमिक विषय समूहों की व्यापक भागीदारी से अपने पाठ्यक्रम तैयार करता है। उदाहरण के लिए, गणित की शिक्षा के लिए गणित शिक्षकों की राष्ट्रीय परिषद् (एनसीटीएम). ऑस्ट्रेलिया में हर राज्य का शिक्षा विभाग, 2011 में एक राष्ट्रीय पाठ्यचर्या के लिए योजनाओं के साथ पाठ्यक्रम स्थापित करता है। यूनेस्को के अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा ब्यूरो का प्राथमिक मिशन है, दुनिया भर में पाठ्यक्रमों का अध्ययन करना और उनके क्रियान्वयन पर नजर रखना.

पाठ्यक्रम[7] के दो अर्थ हैं: (i) वे पाठ्यक्रम जिनमें से छात्र अपनी पसंद के विषय चुनते हैं और (ii) एक विशिष्ट शिक्षा कार्यक्रम. बाद वाले मामले में पाठ्यक्रम, अध्ययन के लिए दिए गए कोर्स की शिक्षा, ज्ञान और उपलब्ध मूल्यांकन सामग्री का सामूहिक वर्णन करता है।

वर्तमान में, एक सर्पिल (स्पाइरल) पाठ्यक्रम को बढ़ावा दिया जा रहा है जिसके माध्यम से छात्र अध्ययन किये जा रहे विषयों की सामग्री को विकास के विभिन्न स्तरों पर आंक सकेंगे। टायकोइल पाठ्यक्रम का रचनात्मक दृष्टिकोण प्रस्तावित करता है कि शैक्षणिक वातावरण के साथ सक्रिय भागीदारी के माध्यम से बच्चे उत्तम रीति से सीखते हैं, अर्थात खोज द्वारा सीखना. पाठ्यक्रम के लिए महत्वपूर्ण है कोर्स के उद्देश्य जो आम तौर पर सीखने के परिणामों के रूप में दर्शाए जाते हैं और जिनमे सामान्यतः कार्यक्रम की मूल्यांकन रणनीति शामिल होती है. ये परिणाम और मूल्यांकन, इकाईयों (या माड्यूल) के रूप में वर्गीकृत किये जाते हैं और इसलिए पाठ्यक्रम ऐसी इकाईयों का एक संग्रह होता है, जहां प्रत्येक इकाई में पाठ्यक्रम के विशिष्ट एवं निश्चित हिस्से शामिल होते हैं। तो एक सामान्य पाठ्यक्रम में संचार, संख्यात्मक कार्य, सूचना प्रौद्योगिकी और सामाजिक कौशल की इकाईयां शामिल होती हैं और प्रत्येक के लिए विशिष्ट शिक्षण प्रदान किया जाता है।

सोवियत और रुसी विश्वविद्यालयों और तकनीकी संस्थानों में कोर करिकुलम को अत्यधिक महत्त्व दिया जाता था। इस तस्वीर में, एक छात्र कक्षाओं के पहले दिन विश्वविद्यालय के मुख्य अनुसूची बोर्ड के पास आता है, यह देखने के लिए कि वह और उसकी विशेषज्ञता (सब-मेजर) वाले अन्य सभी छात्र इस सत्र में किन कक्षाओं में भाग लेंगे.

संयुक्त राज्य अमेरिका में पाठ्यक्रम के प्रकार[संपादित करें]

कई शिक्षण संस्थान वर्तमान में दो परस्पर विरोधी ताकतों में संतुलन स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं। एक ओर कुछ का मानना है कि सभी छात्रों के ज्ञान की नींव को एक समान होना चाहिए, समान प्रकार के पाठ्यक्रम के रूप में; वहीँ दूसरी ओर अन्य चाहते हैं कि छात्रों के पास अपनी पसंदीदा शिक्षा प्राप्ति का अधिकार होना चाहिए, इसके लिए वे शुरुआत में ही किसी विषय में विशेषज्ञता प्राप्त करने की कोशिश कर सकते हैं या अपनी पसंद के हिसाब से अपने विषयों को चुन सकते हैं। हार्वर्ड विश्वविद्यालय द्वारा अपनी मुख्य आवश्यकताओं का पुनर्गठन किये जाने के कारण यह तनाव काफी चर्चा में रहा है।

प्रत्येक कोर्स की पूर्व-आवश्यकताओं की पहचान, पाठ्यक्रम डिजाइन की एक अनिवार्य विशेषता है जिसे हर कॉलेज सूची एवं विद्यालयी शिक्षा के हर स्तर पर देखा जा सकता है। इन आवश्यकताओं को विशेष पाठ्यक्रमों द्वारा पूर्ण किया जा सकता है और कुछ मामलों में परीक्षा द्वारा या कार्य अनुभव द्वारा भी इसे पूर्ण किया जा सकता है। सामान्यतः किसी भी विषय में अधिक उन्नत पाठ्यक्रमों के लिए कुछ बुनियादी पाठ्यक्रमों की नींव की आवश्यकता होती है, लेकिन कुछ कोर्सेज में अन्य विभागों में अध्ययन की आवश्यकता होती है, जैसे कि भौतिकी में विशेषज्ञता प्राप्त करने के लिए गणित की कुछ कक्षाएं आवश्यक हैं या साहित्य, संगीत अथवा वैज्ञानिक शोध के छात्रों के लिए भाषा प्रवीणता की आवश्यकता. एक अधिक विस्तृत पाठ्यक्रम को बनाते समय किसी पाठ्यक्रम के भीतर रखे गए प्रत्येक विषय की पूर्व-आवश्यकताओं का अवश्य ध्यान रखा जाना चाहिए। एक बार विषयों के बीच आपसी निर्भरता ज्ञात हो जाने पर, कोर्स की व्यवस्था और समयावधि की समस्याएं उत्पन्न होने लगती हैं।

शिक्षण में एक मुख्य पाठ्यक्रम, एक पाठ्यक्रम अथवा अध्ययन का कोर्स होता है जिसकी भूमिका को केंद्रीय माना जाता है तथा जिसे आमतौर पर एक स्कूल या स्कूल पद्धति के सभी छात्रों के लिए अनिवार्य रूप से लागू किया जाता है। हालांकि, हमेशा ही ऐसा नहीं होता है। उदाहरण के लिए, कोई स्कूल संगीत संबंधी कक्षा को अनिवार्य कर सकता है लेकिन यदि छात्र यदि आर्केस्ट्रा, बैंड, कोरस इत्यादि जैसी किसी प्रदर्शन संबंधी संगीत में भाग लेते हैं तो वे इससे बाहर रहने का चुनाव कर सकते हैं। प्रमुख (कोर) पाठ्यक्रम को अक्सर प्राथमिक तथा माध्यमिक स्तर पर स्कूली बोर्ड, शिक्षा विभाग या शिक्षा का कार्य देखने वाली अन्य प्रशासनिक संस्थाओं द्वारा स्थापित कर दिया जाता है।

प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा में[संपादित करें]

संयुक्त राज्य अमेरिका में "कॉमन कोर स्टेट स्टेंडर्ड इनिशिएटिव (एक सरकारी पहल)" राज्यों को एक प्रमुख पाठ्यक्रम अपनाने और उसका विस्तार करने के लिए प्रोत्साहित करती है। इस समन्वय का उद्देश्य राज्यों में समान पाठ्यपुस्तकों के अधिक उपयोग और न्यूनतम स्तर की शिक्षा प्राप्ति में और अधिक समानता को बढ़ावा देना है। 2009-10 में राज्यों को इन मानकों को अपनाने के लिए प्रोत्साहन के रूप में संघ के 'रेस टू दी टॉप' कार्यक्रम से धन मुहैया करवाने की संभावन का आश्वासन दिया गया।

उच्च शिक्षा में[संपादित करें]

कई कॉलेज और विश्वविद्यालय प्रशासन एवं फैकल्टी कभी-कभी स्नातक स्तर पर कोर पाठ्यक्रम को अनिवार्य कर देते हैं, विशेष रूप से लिबरल आर्ट्स में. छात्रों द्वारा अध्ययन किये जा रहे प्रमुख विषयों की गहराई तथा अधिक विशेषज्ञता के कारण, उच्च शिक्षा के एक सामान्य कोर पाठ्यक्रम में हाई स्कूल अथवा प्राथमिक स्कूल की अपेक्षा छात्रों के अध्ययन संबंधी कार्यों को काफी कम मात्रा में निर्धारित किया जाता है।

अमेरिका के प्रमुख कॉलेजों के प्रमुख पाठ्यक्रम कार्यक्रमों (कोर करिकुला प्रोग्राम्स) में से सर्वाधिक प्रसिद्ध एवं विस्तृत कार्यक्रमों में, कोलंबिया विश्वविद्यालय के कोलंबिया कॉलेज तथा शिकागो विश्वविद्यालय का नाम आता है। बिना किसी उन्नत विशेषज्ञता के भी इन दोनों को पूर्ण करने में दो साल तक का समय लग सकता है और इन्हें कई प्रकार के शैक्षणिक विषयों में महत्वपूर्ण कौशल के विकास हेतु बनाया गया है, जैसे कि: सामाजिक विज्ञान, मानविकी, भौतिक और जैविक विज्ञान, गणित, लेखन और विदेशी भाषाएं.

1999 में शिकागो विश्वविद्यालय ने अपने कोर पाठ्यक्रम की सामग्री को घटाने और संशोधित करने की योजना की घोषणा की, जिसमे शामिल था आवश्यक पाठ्यक्रमों की संख्या 21 से घटाकर 15 करना और विषयों की एक और अधिक व्यापक श्रृंखला को प्रदान करना। जब न्यूयॉर्क टाइम्स, द इकोनोमिस्ट और अन्य प्रमुख समाचार पात्रों ने इस कहानी के बारे में छापना शुरू किया, यह विश्वविद्यालय शिक्षा पर राष्ट्रीय बहस का एक केन्द्र बिन्दु बन गया। द नेशनल एसोसिएशन ऑफ़ स्कॉलर्स ने एक बयान जारी करते हुए कहा कि, "शिकागो विश्वविद्यालय द्वारा अपने बेहतरीन स्नातक कोर पाठ्यक्रम का यह परित्याग वाकई काफी निराशाजनक है, जो एक लंबे समय तक अमेरिकी शैक्षणिक संस्था के बीच एक मानक के रूप में स्थापित रहा है। "[1] हालांकि, इसके साथ ही अध्यक्ष ह्यूगो सोंनेनशाईन जैसे विश्वविद्यालय प्रशासकों ने यह तर्क दिया कि मुख्य पाठ्यक्रम को घटाना, वित्तीय और शैक्षिक रूप से अनिवार्य हो गया था क्योंकि विश्वविद्यालय के लिए अपने स्नातक विभाग में उचित संख्या में आवेदकों को आकर्षित कर पाना कठिन हो रहा था; ऐसा इसलिए था क्योंकि इसके अति विस्तृत कोर पाठ्यक्रम को "एक औसत 18 वर्षीय" द्वारा पसंद नहीं किया जा रह था (परिवर्तन का समर्थन करने वाले दल का ऐसा मानना था).

इसके अलावा जैसे-जैसे बीसवीं सदी में कई अमेरिकी स्कूलों के कोर पाठ्यक्रम में कमी आने लगी, कई छोटी संस्थाएं ऐसे कोर पाठ्यक्रम को अपनाने के लिए प्रसिद्ध हो गयीं जिनमें छात्र की लगभग पूरी स्नातक शिक्षा को समाहित किया जाता था और विज्ञान सहित सभी विषयों को पढ़ाने के लिए अक्सर पारंपरिक पश्चिमी सिद्धांतों के पाठ का उपयोग भी किया जाता था। संयुक्त राज्य अमेरिका का सेंट जॉन कॉलेज इस दृष्टिकोण का एक उदाहरण है। कोंकोर्डिया विश्वविद्यालय, इरविन (कैलिफोर्निया) ने भी 2010 से एक ऐसा ही पारंपरिक कोर पाठ्यक्रम लागू किया है।

वितरण संबंधी आवश्यकताएँ[संपादित करें]

कुछ कॉलेज वितरण आवश्यकताओं की एक प्रणाली का उपयोग करके निर्दिष्ट और अनिर्दिष्ट पाठ्यक्रम के बीच संतुलन स्थापित करने की कोशिश करते हैं। ऐसी प्रणाली में छात्रों को विशेष श्रेणियों में कोर्स लेना आवश्यक होता है लेकिन वे इन श्रेणियों के भीतर अपनी पसंद से चुनाव कर सकते हैं।

अन्य संस्थाओं ने इन पाठ्यक्रम संबंधी प्रमुख आवश्यकताओं को लगभग पूरी तरह से समाप्त कर दिया है, उदाहरण के लिए, ब्राउन विश्वविद्यालय और कॉर्नेल विश्वविद्यालय में पाठ्यक्रम का चयन पूर्णतया छात्र के हाथ में होता है। एमहर्स्ट कॉलेज में छात्र को प्रथम-वर्ष सेमिनारों की सूची में से किसी एक को चुनना होता है लेकिन इसके लिए किसी कक्षा अथवा वितरण की आवश्यकता नहीं होती है।

पाठ्यक्रम और पाठ्यचर्या से आप क्या समझते हैं?

पाठ्यक्रम (करिकुलम)के जरिए छात्रों का सर्वांगीण विकास किया जाता हैं। जबकि पाठ्यचर्या (सिलेबस) द्वारा छात्रों के ज्ञानात्मक पक्ष पर अधिक बल दिया जाता हैंपाठ्यक्रम का क्षेत्र विस्तृत होता हैं अर्थात इसका विकास व्यापक रूप में होता हैं जबकि पाठ्यचर्या या पाठ्यवस्तु का निर्माण संकुचित रूप में किया जाता हैं

पाठ्यक्रम और पाठ्यचर्या में अंतर क्या है?

पाठ्यक्रम बालक के सम्पूर्ण व्यक्तित्व के चहुँमुखी विकास से सम्बन्धित होती है । पाठ्यवस्तु मात्र विषय से सम्बन्धित विकास पर आधारित होती है। 3. पाठ्यक्रम का विषय-क्षेत्र व्यापक होता है।

पाठ्यचर्या से आप क्या समझते हैं?

औपचारिक शिक्षा के क्षेत्र में पाठ्यचर्या या पाठ्यक्रम (करिकुलम) विद्यालय या विश्वविद्यालय में प्रदान किये जाने वाले पाठ्यक्रमों और उनकी सामग्री को कहते हैं।

पाठ्यचर्या से आप क्या समझते हैं पाठ्यचर्या की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए?

पाठ्यचर्या दो शब्दों से मिलकर बना है-- पाठ्य और चर्या। पाठ्य का अर्थ है 'पढ़ने योग्य' अथवा 'पढ़ाने योग्य' और चर्या का अर्थ है नियमपूर्वक अनुसरण'। इस प्रकार पाठ्यचर्या का अर्थ हुआ-- पढ़ने योग्य (सीखने योग्य) अथवा पढ़ाने योग्य (सिखाने योग्य) विषयवस्तु और क्रियाओं का नियमपूर्वक अनुसरण।