चुरू जिले का सबसे बड़ा गांव कौन सा है - churoo jile ka sabase bada gaanv kaun sa hai

चूरू राजस्थान के मरुस्थलीय भाग का एक नगर एवं लोकसभा क्षेत्र है। इसे थार मरुस्थल का द्वार भी कहा जाता है। यह चूरू जिले का जिला मुख्यालय है। इसकी स्थापना 1620 ई में निर्बान राजपूतों द्वारा की गई थी।[3] चूरू भारत की आजादी से पहले बीकानेर जिले का एक हिस्सा था। 1948 में, इसका पुनर्गठन होने पर इसे बीकानेर से अलग कर दिया गया।[4]

यह नगर थार मरुस्थल में संगरूर से अंकोला को जोड़ने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग ५२ पर बीकानेर को जाने वाले रेल मार्ग 28.2900° N, 74.9600° E पर स्थित है।

यह एक ऐतिहासिक किला है। काफी संख्या में पर्यटक यहां घूमने के लिए आते हैं। इस किले का निर्माण बीकानेर के राजा रत्‍नसिंह ने 1820 ई. में करवाया था। यह किला आगरा-बीकानेर मार्ग पर स्थित है। इस जगह के आसपास कई हवेलियां भी है। यहां रेतीले टीले हवा की दिशा के साथ आकृति और स्थान बदलते रहते हैं। इस शहर में कन्हैया लाल बंगला की हवेली और सुराना हवेली आदि जैसी कई बेहद खूबसूरत हवेलियां हैं, जिनमें हजारों छोटे-छोटे झरोखे एवं खिड़कियाँ हैं। ये राजस्थानी स्थापत्य शैली का अद्भुत नमूना हैं जिनमें भित्तिचित्र एवं सुंदर छतरियों के अलंकरण हैं। नगर के निकट ही नाथ साधुओं का अखाड़ा है, जहां देवताओं की मूर्तियां बनी हैं। इसी नगर में एक धर्म-स्तूप भी बना है जो धार्मिक समानता का प्रतीक है। नगर के केन्द्र में एक दुर्ग है जो लगभग ४०० वर्ष पुराना है।

यह भगवान हनुमान का मंदिर है। यह मंदिर जयपुर-बीकानेर मार्ग पर स्थित है। चूरू भारत के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है। माना जाता है कि यहां जो भी मनोकामना मांगी जाए वह पूरी होती है। प्रत्येक वर्ष यहां दो बड़े मेलों का आयोजन किया जाता है। यह मेले चैत्र (अप्रैल) और अश्विन पूर्णिमा (अक्टूबर) माह में लगते हैं। लाखों की संख्या में भक्तगण देश-विदेश से सालासार बालाजी के दर्शन के लिए यहां आते हैं। यह मंदिर पूरे साल खुला रहता है।

यह छ: मंजिला इमारत है। यह काफी बड़ी हवेली है। इस हवेली की खिड़कियों पर काफी खूबसूरत चित्रकारी की गई है। इस हवेली में 1111 खिड़कियां और दरवाजे हैं। इस हवेली का निर्माण 1870 में किया गया था।

ऐतिहासिक दृष्टि से यह स्थान काफी महत्वपूर्ण है। यह स्थान चूरू से 36 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह गांव अपनी प्राकृतिक सुंदरता और खूबसूरत हवेलियों के प्रसिद्ध है। यहां आकर राजस्थान के असली ग्रामीण परिवेश का अनुभव किया जा सकता है। इसके अलावा यहां ऊंटों की सवारी भी काफी प्रसिद्ध है।

ताल छापर अभयारण्य चुरू जिले में स्थित है। यह जगह मुख्य रूप से काले हिरण के लिए प्रसिद्ध है। इस अभयारण्य में कई अन्य जानवर जैसे-चिंकारा, लोमड़ी, जंगली बिल्ली के साथ-साथ पक्षियों की कई प्रजातियां भी देखी जा सकती है। इस अभयारण्य का क्षेत्रफल 719 वर्ग हेक्टेयर है।तथा यह कुंरजा पक्षीयो ( demoiselle cranes) के लिये भी नामित है।यह चुरू जिले के छापर शहर के पास स्थित है इसे 11 मई 1966 को एक अभयारण्य का दर्जा दिया गया।

इस हवेली का निर्माण एक प्रसिद्ध व्यापारी ओसवाल जैन कोठारी ने करवाया था जिसका नाम उन्होंने अपने गोत्र के नाम पर रखा। इस हवेली पर की गई चित्रकारी काफी सुंदर है। कोठारी हवेली में एक बहुत कलात्मक कमरा है, जिसे मालजी का कमरा कहा जाता है। इसका निर्माण उन्होंने सन 1925 में करवाया था।

चूरू में कई आकर्षक गुम्बद है। अधिकतर गुम्बदों का निर्माण धनी व्यापारियों ने करवाया था। ऐसे ही एक गुम्बद-आठ खम्भा छतरी का निर्माण सन 1776 में किया गया था।

साहवा, भारत के राजस्थान राज्य के अंतर्गत चुरू जिले की तारानगर तहसील का एक गाँव है। नीले आकाश के नीचे, बालू रेत से आवृत बड़े-बड़े टीले मानसून के साथ संलग्न भाग्य की रेखाएं, गर्मी में अधिक गर्म और शीत में ठिठुरन भरे जीवन से जुड़ा साहवा चूरू जिले के अंतिम छोर पर स्थित एक गाँव है।
आर्य पूजित कुलटा एंव सरस्वती के पाट के बीच जिसने आर्य संस्कार गृहण किये। देव मंदिरों पर धर्म ध्वजा, गुरुद्वारों से गूंजती गुरुवाणियाँ, मस्जिदों से अजान के स्वर, धर्म सहिष्णुता एंव भ्रातृत्व की असीम गहराई में डूबा गाँव है साहवा। गाँव क्या स्वर्ग की सुषमा भी जिसके सामने फीकी लगे, ऐसा है ये साहवा। प्राचीन नाथद्वारा जिस भीतिचित्र एंव ऐतिहासिक तथ्यों का आलेख। भाड़ंग के थेह पर प्राचीन अब शेष जहाँ "लछासर रास" में जैनियों का ऐतिहासिक उत्थान, सहू, सहारण जाट जनपदों का उत्थान एंव पतन सिमटा है। अति प्राचीन यह भूभाग अनंत लहरों से भरे समुन्द्र में डूबा। भौगोलिक परिवर्तनों के बाद, सिन्धु, सरस्वती व कुलटा आदि वैदिक नदियों से घिरा रहा। रामायण का मरुकान्तर, महाभारत की कुरु जांगल व प्रवीण शाम्ब पांडिया का छाया क्षेत्र। राजपूत काल में जोधपुर से नयी रियासत स्थापना हेतु कांधल और बीका का पराक्रम क्षेत्र। कांधल, खेत सिंह, लाल सिंह आदि जैसे राठौड़ वीर पुरुषो ने भटनेर, भादरा, रावतसर, जैतपुर, चूरू इत्यादि ठिकाने स्थापित किये। मालदेव के सेनापति कूंचा एंव जैतसिंह के साथ साहवा में भयंकर युद्ध हुआ। युद्ध की साक्षी रही यह पावन धरा जिस पर अंतिम युद्ध कांधल व सारंग खान के मध्य हुआ। साहवा की महानता के साथ यहाँ का ऐतिहासिक तालाब, जोगीआसन एंव गुरुद्वारा जुड़े हैं। तालाब पर गुरु गोविन्द सिंह का आगमन जहाँ इतिहास सम्पत है वहीँ पीपल की प्राचीनता एंव तालाब की प्राचीन दीवारों का निर्माण भी 500 वर्ष पूर्व का है।
जोगीआसन जो कि साहवा की स्थापना की गवाही देता है,कहा जाता है कि जोगी आसन की स्थापना के बाद ही यहाँ लोगों ने निवास करना प्रारंभ किया. जोगी आसन मे माता जी का प्राचीन महाशक्ति मंदिर है,जहाँ पर बाबा जमनानाथ जी महाराज लोगों के दुख दर्द दूर करते है. जोगीआसन में खालसा आक्रमण का उल्लेख दीवारों पर हुआ है जिसका जिक्र चूरू मंडल के शोधपूर्ण इतिहास में सम्मिलित है। खालसा आक्रमण की गवाही मठ की दीवारों पर लिखे वो लेख शायद और नयी सदियों तक साक्षी बने रहेंगे।

साहवा में सन्न 1541-42 में साहेबा/पाहेबा का युद्ध हुआ था-राव मालदेव व जैतसी के मध्य।

चूरू जिले के अंदर सबसे बड़ा गांव कौन सा है?

चैनपुरा बड़ा चुरू जिले का राठौड़ राजपूतो का सबसे बड़ा गांव है, यहां राठौड़ो के 500 परिवार बस्ते है।

चूरू में कितने गांव?

Information about Churu in Hindi.

चूरू का पुराना नाम क्या है?

चूरु शहर की स्थापना: कालेर एवं नैन जाटों द्वारा - इतिहासकार डॉ. पेमाराम के अनुसार चूरु की स्थापना कालेर जाटों द्वारा किए जाने का उल्लेख है तथा इसका प्राचीन नाम 'कालेरा बास' था। चूरू के शोधपूर्ण इतिहास में लेख है कि ठाकुर बाघ के ज्येष्ठ पुत्र बणीर थे, जिनका ठिकाना घांघू था।

चूरू जिले में सबसे बड़ी तहसील कौन सी है?

चूरू की सबसे बड़ी तहसील सरदारशहर है।