Bihar Board Class 10 Social Science Solutions Economics अर्थशास्त्र : हमारी अर्थव्यवस्था भाग 2 Chapter 4 हमारी वित्तीय संस्थाएँ Text Book Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes. Show
BSEB Bihar Board Class 10 Social Science Economics Solutions Chapter 4 हमारी वित्तीय संस्थाएँBihar Board Class 10 Economics हमारी वित्तीय संस्थाएँ Text Book Questions and Answersवस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर I. सही विकल्प चुनें। प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. II. रिक्त स्थानों को भरें: प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4.
प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. इसमें सुधार लाने तथा इसके क्षेत्र को विस्तृत रूप देने के लिए 1912 ई. में एक और अधिनियिम बनाया गया। 1919 ई. के राजनीतिक सुधारों के अनुसार सहकारिता प्रांतीय सरकारों का हस्तांतरित विषय बन गयी। अतएव इसके संचालन का भार अब राज्य सरकारों के हाथ में आ गया। सहकारिता समितियों की वित्तीय आवश्यकता की पूर्ति सहकारी बैंक के द्वारा होती है। जो हमारे देश में तीन स्तर पर काम करते हैं। पहला स्तर प्राथमिक सहकारी समितियाँ, दूसरा स्तर केन्द्रीय सहकारी बैंक तीसरा स्तर राज्य सहकारी बैंक हैं। प्रश्न 8. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. (i) भारतीय मदा बाजार भारतीय मुद्रा बाजार ऐसा मौद्रिक बाजार है जहाँ उद्योग एव व्यवसाय के क्षेत्र के लिए अल्पकालीन एवं मध्यकालीन वित्तीय व्यवस्था एवं प्रबंधन किया जात है। भारतीय मुद्रा बाजार को संगठित और असंगठित क्षेत्रों में विभक्त किया जाता है। संगठित क्षेत्र में वाणिज्य बैंक, निजी क्षेत्र के बैंक, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक एवं विदेशी बैंक शामिल किये जाते हैं जबकि असंगठित क्षेत्र में देशी बैंकर जिनमें गैर-बैंकिंग वित्तीय कम्पनियाँ शामिल की जाती हैं। (ii)भारतीय पंजी बाजार भारतीय पूंजी बाजार मुख्यतः दीर्घकालीन पूँजी उपलब्ध करातः है। दीर्घकालीन पूँजी की मांग बड़े-बड़े उद्योग घराने एवं सार्वजनिक निर्माण कार्यों के लिए होत है। इसका वर्गीकरण इस प्रकार किया जा सकता है भारतीय पंजी-(i) प्रतिभूति बाजार- इसके अन्तर्गत प्राथमिक बाजार और द्वितीयक बाजा आते हैं। (ii) औद्योगिक बाजार। (iii) विकास वित्त संस्थान। (iv) गैर-बैंकिंग वित्त कम्पनियाँ। भारतीय पूंजी बाजार मूलतः इन्हीं चार वित्तीय संस्थानों पर आधारित है जिसके चल राष्ट्र-स्तरीय सार्वजनिक विकास जैसे-सड़क, रेलवे, अस्पताल, शिक्षण-संस्थान, विद्युत उत्पादन संयंत्र एवं बड़े-बड़े निजी एवं सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योग संचालित किये जाते हैं। फलस्वरूप राष्ट्र प्रश्न 2.
प्रश्न 3. (ii) ऋण प्रदान करना-व्यावसायिक बैंक का दूसरा मुख्य कार्य लोगों को ऋण प्रदान – करना है। बैंक के पास जो रुपया जमा के रूप में आता है उसमें से एक निश्चित राशि नकद कोष में रखकर बाकी रुपया बैंक द्वारा दूसरे व्यक्तियों को उधार दे दिया जाता है। ये बैंक प्रायः उत्पादक कार्यों के लिए ऋण देते हैं तथा उचित जमानत की मांग करते हैं। ऋण की रकम प्रायः जमानत के मूल्य से कम होती है। (iii) सामान्य उपयोगिता संबंधी कार्य-इसके अतिरिकत व्यावसायिक बैंक अन्य बहुत से कार्यों को भी सम्पन्न करते हैं जिन्हें सामान्य उपयोगिता संबंधी कार्य भी कहा जाता है। (iv) एजेंसी संबंधी कार्य-वर्तमान समय में व्यावसायिक बैंक ग्राहकों की एजेंसी के रूप : में सेवा करते हैं। इसके अतिरिक्त बैंक चेक, बिल व ड्राफ्ट का संचालन, ब्याज तथा लाभांश का संकलन तथा वितरण, ब्याज, ऋण की किस्त बीमे की किस्त का भुगतान प्रतिभूतियों का – क्रय-विक्रय तथा ड्राफ्ट तथा डाक द्वारा कोष का हस्तांतरण आदि क्रियाएँ करते हैं। प्रश्न 4. दूसरा इसका प्रबंधन व संचालन जनतंत्रात्मक आधार पर होता है। इसके सदस्यों के बीच पूँजी, हैसियत अथवा किसी अन्य आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाता है। वे एक-दूसरे के बराबर समझे जाते हैं और सबकों एक जैसे अधिकार व अवसर प्राप्त होते हैं। तीसरा इसके आर्थिक उद्देश्यों में नैतिक और सामाजिक तत्व भी शामिल रहते हैं। यह केवल ‘ आर्थिक लाभ कमाने के लिए नहीं बल्कि नैतिक और सामाजिक पहलू से भी सदस्यों के हित लाभ के लिए कार्य करता है। इसका ध्येय दूसरों को लूट-खसोट करके धनवान बनाना नहीं है। बल्कि बिहार भारत का एक पिछड़ा राज्य है। एकीकृत बिहार (झारखण्ड सहित) के समय इसका – आर्थिक संसाधन अत्यधिक था। परन्तु राज्य बँटवारा के बाद यह सारी सम्पदा आज के बिहार से अलग हो गयी। वह सारा भूखण्ड राज्य बँटवारे के बाद झारखण्ड के पास चला गया। – फलस्वरूप शेष बचे बिहार में खेती ही एक मात्र मूल साधन है जिसपर बिहार की कुल जनसंख्या का 80% आबादी निर्भर करती है। यहाँ की खेती भी मॉनसून पर आधारित है। सामान्चतः खेती में निवेश एक जुआ के समान माना जाता है। चूंकि, खेती बिहारवासियों की जीविका का आधार है इसलिए आर्थिक तंगी के बावजूद बिहारी कृषक एवं मजदूर कृषि पर धन लगाने के लिए विवश है। बिहार में खासकर ग्रामीण स्तर पर धनकुट्टी, अगरबत्ती निर्माण, बीड़ी निर्माण, जूता निर्माण, ईंट निर्माण इत्यादि जैसे महत्वपूर्ण रोजगार सहकारिता के सहयोग से चलाये जा रहे हैं। इसके लिए राज्य स्तरीय सहकारी बैंक ऋण मुहैया कराती है। इस सहकारी बैंक से रोजगार को बढ़ावा ग्रामीण स्तर पर काफी हद तक किया जा रहा है। जहाँ भी इस तरह के रोजगार चलाये जा रहे हैं वहाँ की जनता पर अनुकूल आर्थिक प्रभाव देखने को मिल रहा है। फलस्वरूप व्यक्ति की आय धीरे-धीरे बढ़ रही है और लोगों का जीवन-स्तर ऊँचा उठ रहा है। प्रश्न 5. इस स्वयं सहायता समूह में छोटे पैमाने पर साख अथवा ऋण की सुविधा प्रदान की जाती है। क्योंकि साधारणतः ये महिलाओं द्वारा चलायी जाती हैं। महिलाओं द्वारा बचत की गयी पूँजी को उचित ब्याज दर पर जमीन छुड़वाने के लिए, घर बनाने के लिए, सिलाई मशीन खरीदने के लिए, हथकरघा एवं पशु खरीदने के लिए, बीज, खाद और बाँस खरीदने के लिए ऋण दिये जाते हैं। इन ऋणों पर जो ब्याज आता है इससे स्वयं सहायता समूह की पूँजी का निर्माण हो जाता है। इससे न केवल महिलाएँ आर्थिक रूप से स्वावलंबी हो जाती हैं बल्कि समूह के नियमित बैठकों के जरिये लोगों को एक आम मंच मिल जाता है, जहाँ वे तरह-तरह के सामाजिक जैसे स्वास्थ्य, पोषण और घरेलू हिंसा इत्यादि पर आपस में चर्चा कर पाती हैं और इन समस्याओं का निदान करने की कोशिश भी करती हैं। स्वयं सहायता समह के जरिये महिलाएँ छोटे-मोटे स्वरोजगार कर अपनी आमदनी कमाती हैं जिससे वे आर्थिक रूप में सशक्त हो रही हैं और दूसरी जरूरतमंद महिलाओं को सामाजिक तथा आर्थिक रूप से मदद कर उनके जीवन-स्तर को ऊंचा उठाने की कोशिश करती हैं। अतः महिलाएँ स्वयं सहायता समूह में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती हैं। अतिरिक्त परियोजना/कार्यकलाप नीचे दी गयी प्रश्नावली के अनुरूप अपने पास-पड़ोस के किसी भी बैंक में जाकर वहाँ इस बात का सर्वेक्षण करें कि किस वर्ग
समूह को कितने ऋण की आवश्यकता थी, उन्हें ऋण उपलब्ध कराया गया अथवा नहीं, यदि ऋण उपलब्ध कराया गया तो ऋण की कितनी राशि मिली और कितने दिनों में ऋण उपलब्ध कराया गया। यदि नहीं, तो उसके कारण की चर्चा करें। परियोजना Bihar Board Class 10 Economics हमारी वित्तीय संस्थाएँ Additional Important Questions and Answersवस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. अतिलघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4.
प्रश्न 5.
प्रश्न 6.
प्रश्न 7. प्रश्न
8. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. आधुनिक समय में सभी वृहत उद्योग या संस्थान संयुक्त पूँजी कंपनी के रूप में चलाए जाते हैं जिसमें बहुत बड़ी मात्रा में पूँजी या साख की आवश्यकता होती है। व्यावसायिक बैंकों द्वारा इतनी मात्रा में पूंजी या साख की व्यवस्था संभव नहीं है। संयुक्त पूँजी कंपनी दीर्घकालीन पूँजी की आवश्यकता की पूर्ति अंशपत्रों या हिस्सों को विक्रय कर तथा ऋणपत्रों के निर्गमन द्वारा करती है। संयुक्त पूँजी कंपनी के हिस्सों और ऋणपत्रों का क्रय-विक्रय पूँजी बाजार में होता है। पूँजी बाजार के दो मुख्य अंग होते हैं।
हमारे देश में मुंबई देश की वित्तीय गतिविधियों का केन्द्र है। मुंबई का शेयर बाजार दबाव स्ट्रीट में स्थित है जिसके माध्यम से इस पूँजी बाजार का संचालन होता है। प्रश्न 2. देश में कृषि एवं ग्रामीण साख की आवश्यकताओं की पूर्ति तथा इस कार्य में संलग्न विभिन्न संस्थाओं के कार्यों में समन्वय स्थापित करने का कार्य करता है। कृषि एवं अन्य क्रियाकलापों के लिए ऋण उपलब्ध कराने तथा इस संबंध में नीति-निर्धारण के लिए यह एक शीर्ष संस्था है। विकास कार्यों के लिए निवेश तथा उत्पादक ऋण देनेवाली संस्थाओं के पुनर्वित के लिए मुख्य प्रतिनिधि का कार्य करता है। राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक का दूसरा महत्वपूर्ण कार्य पुनर्वास योजनाएँ तैयार, ‘ करना उनपर निगरानी रखना तथा ऋण उपलब्ध करानेवाली संस्थाओं का पुनर्गठन एवं उनके कर्मचारियों का प्रशिक्षण है। बैंक का एक अन्य कार्य ऋण वितरण प्रणाली की क्षमता को बढ़ाने के लिए उनकी संस्थागत व्यवस्था को विकसित करना है। इसके साथ ही यह परियोजनाओं की देखरेख तथा मूल्यांकन करता है जिनके लिए उसने पुनर्वित की व्यवस्था की है। लघु सिंचाई, कृषि यंत्रीकरण, स्वर्णजयंती ग्राम स्वरोजगार योजना स्वयं सहायता समूह तथा ग्रामीण गैर-कृषि प्रक्षेय आदि के लिए वर्ष 2007-08 में नाबार्ड द्वारा बिहार में लगभग 184 करोड़ रुपये का ऋण वितरित किया गया है। प्रश्न 3. (i) केंद्रीय सहकारी बैंक- केंद्रीय सहकारी बैकों का मुख्य कार्य प्रारंभिक समितियों का संगठन करना तथा उन्हें वित्तीय सहायता प्रदान करना है। अपनी अंशपूँजी एवं जमा-राशि, जनता द्वारा जमा की गई राशि तथा राज्य सहकारी बैंक से प्राप्त ऋण एवं अग्रिम केंद्रीय सहकारी बैंकों के पूँजी के मुख्य स्रोत है। केंद्रीय सहकारी बैंक उन सभी कार्यों का संपादन करते हैं जो एक व्यावसायिक बैंक द्वारा किए
जाते हैं, जैसे जनता के धन को जमा के रूप में स्वीकार करना, ऋण देना, चेक, बिल, हुंडी आदि (ii) राज्य सहकारी बैंक- प्रत्येक राज्य में इस प्रकार का केवल एक ही बैंक होता है जो उसके मुख्यालय में स्थित होता है। राज्य सहकारी बैंक राज्य के सभी केंद्रीय सहकारी बैंकों के प्रधान होते हैं। राज्य सहकारी बैंक के वित्तीय साधन उनकी अपनी अंशपूंजी, केंद्रीय सहकारी बैंक एवं जनता की जमाराशि तथा राज्य सरकार से प्राप्त ऋण एवं अग्रिम है। राज्य, सहकारी बैकों का मुख्य कार्य केंद्रीय सहकारी
बैंकों का संगठन तथा उन्हें ऋण प्रदान करना है। भूमि विकास बैंक- प्रारंभिक कृषि-साख समितियाँ कृषि की अल्पकालीन एवं मध्यकालीन साख की आवश्यकताओं को पूरा करती है। भूमि विकास बैंक किसानों के लिए दीर्घकालीन ऋण की व्यवस्था करते हैं। दीर्घकालीन ऋणि सिंचाई, ट्रेक्टर आदि जैसे महंगे कृषि-यंत्र, पुराने ऋणों के भुगतान तथा भूमि में स्थायी सुधार के लिए होते हैं। भूमि विकास बैंक को पहले ‘भूमि.बंधक बैंक भी कहा जाता था। भूमि विकास बैंक अपनी अंशपूँजी, जमाराशि तथा ऋणपत्रों की बिक्री आदि से वित्तीय साधन एकत्र भूमि विकास बैंक भी दो प्रकार की होती हैं केंद्रीय भूमि विकास बैंक तथा प्रारंभिक भूमि, विकास बैंक। देश के कई राज्यों में प्रारंभिक भूमि विकास बैंक नहीं है। ऐसे राज्यों में किसानों को सीधा केंद्रीय भूमि विकास बैंक से ही ऋणों की प्राप्ति होती है। प्रश्न 4. भारत की बैंकिंग प्रणाली व्यावसायिक बैंकों पर आधारित है। व्यावसायिक बैंकों का मुख्य कार्य जनता की बचत को जमा के रूप में स्वीकार करना तथा उद्योग एवं व्यवसाय को उत्पादन कार्यों के लिए ऋण प्रदान करना है। व्यावसायिक बैंक कई प्रकार की अन्य वित्तीय सेवाएँ भी प्रदान करते हैं, जैसे मुद्रा का हस्तांतरण, साखपत्र जारी करना इत्यादि। कुछ समय पूर्व तक हमारे देश के अधिकांश व्यावसायिक बैंकों की शाखाएँ शहरी क्षेत्रों में स्थित थीं। ये बैंक उद्योग एवं व्यापार के लिए केवल अल्पकालीन ऋण की व्यवस्था करते थे। परंतु, हमारी अर्थव्यवस्था में बैंकिंग के महत्त्व को देखते हुए सरकार ने देश के प्रमुख व्यावसायिक बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर लिया है। इसका मुख्य उद्देश्य समाज के पिछड़े और उपेक्षित वर्ग को वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में इनकी अधिक-से-अधिक शाखाओं का विस्तार करना था। 1975 से सरकार ने ग्रामीण क्षेत्र के निवासियों को ऋण प्रदान करने के लिए क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की एक नई योजना आरंभ की है। इन बैंकों का मुख्य कार्य ग्रामीण क्षेत्र के छोटे एवं सीमांत किसानों, कृषि श्रमिकों, कारीगरों, छोटे व्यापारियों आदि को आर्थिक सहायता प्रदान करना है। कृषि-साख की आवश्यकताओं को पूरा करनेवाली वित्तीय संस्थाओं में सहकारी साख समितियों की भूमिका भी महत्त्वपूर्ण है। ग्रामीण तथा कृषि क्षेत्र की वित्तीय संस्थाओं को सुदृढ़ बनाने के लिए सरकार ने जुलाई 1982 में ‘राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक’ की स्थापना की है। यह बैंक कृषि तथा ग्रामीण साख की पूर्ति के लिए देश की शीर्ष संस्था है। भारतीय मुद्रा बाजार का एक असंगठित क्षेत्र भी है जिसे देशी बैंकर की संज्ञा दी जाती है। यह क्षेत्र प्राचीन पद्धति के अनुसार ऋणों के लेन-देन का कार्य करता है तथा इसे देश के विभिन्न भागों में साहूकार, महाजन, चेट्टी, सर्राफ आदि नामों से पुकारा जाता है। भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी देशी बेंकरों की ही प्रधानता है। Bihar Board Class 10 Economics हमारी वित्तीय संस्थाएँ Notes
कृषि में साख का क्या महत्व है?कृषि साख का अर्थ (meaning of agriculture credit in hindi) - अतः कृषि साख का अर्थ उस मुद्रा या पूंजी से होता है जिसे कृषक भविष्य में लौटाने के वायदे पर लेता है चाहे वह पूंजी या मुद्रा फार्म के खर्च के लिए ली गई हो या परिवार के घरेलू खर्चे चलाने के लिए ली गई हो ।
किसान को साख की आवश्यकता क्यों पड़ती है?किसानों को ऋण दिया जाता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि भले ही वे फसल की विफलता का सामना कर रहे हों, लेकिन इससे उनकी वित्तीय स्थिति प्रभावित नहीं होती है। अक्सर हम देखते हैं कि फसलों पर सरकारी दरों के कारण किसानों को नुकसान उठाना पड़ता है।
कृषि साख से क्या अभिप्राय है भारत में कृषि साख के विभिन्न स्रोतों की विवेचना कीजिए?ग्रामीण साख सर्वेक्षण के अनुसार ''कृषि की वह साख जिसकी कृषको को कृषि कार्यों को पूर्ण करने में आवश्यकता होती है, कृषि वित्त या साख के अन्तर्गत आती है।'' दूसरे शब्दों में कृषि वित्त या साख से तात्पर्य उस वित्त अथवा साख से होता है जिसका उपयोग कृषि से सम्बन्धित विभिन्न कार्यों के संपादन हेतु किया जाता है।
कृषि साख के स्रोत क्या है?Solution : कृषि साख संबंधी गैर-संस्थागत स्रोतों में गाँव का बनिया तथा महाजन, भू-स्वामी, संबंधी, मित्र आदि शामिल किए जाते हैं।
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