Show
Register now for special offers +91 Home > English > Class 10 > Hindi > Chapter > मनुष्यता > अनंत अंतरिक्ष में अनंत देव हैं... अनंत अंतरिक्ष में अनंत देव हैं खड़े, <br> समक्ष ही स्वबाहु जो बढ़ा रहे बड़े-बड़े। <br> परस्परावलंब से उठो तथा बढ़ो सभी, <br> अभी अमर्त्य-अंक में अपंक हो चढ़ो सभी। <br> रहो न यों कि एक से न काम और का सरे, <br> वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।। <br> अतंरिक्ष में खड़े देव अपनी बाहु क्यों बढ़ा रहे हैं?Text Solution समृद्धि के लिएमार्गदर्शन के लिएमदद के लिएस्वस्थता के लिए। Answer : C Add a public comment... Follow Us: Popular Chapters by Class:
新建帐户 无法处理你的请求此请求遇到了问题。我们会尽快将它修复。
Meta © 2022 मैथिलीशरण गुप्त का जीवन परिचय- Maithili Sharan Gupt Ka Jeevan Parichay: राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त का जन्म सन 1886 में झाँसी के करीब चिरगांव में हुआ। इन्होंने घर पर ही संस्कृत, बांग्ला, मराठी और अंग्रेजी आदि विषयों की शिक्षा ली। मैथिलीशरण गुप्त जी एक रामभक्त कवि थे, जिन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से भारतीय जीवन को प्रस्तुत करने का प्रयास किया। मैथिलीशरण गुप्त जी ने अपनी कविताओं द्वारा खड़ी बोली को एक काव्य-भाषा के रूप में निर्मित करने का अथक प्रयास किया। हिन्दी कविता के इतिहास में यह गुप्त जी का सबसे बड़ा योगदान है। उनके काव्य में राष्ट्रीय चेतना, धार्मिक भावना और मानवीय उत्थान का भाव दिखाई देता है। वे भारतीय संस्कृति एवं इतिहास के परम-भक्त थे। इसी कारण, उनकी सभी रचनाएं राष्ट्रीय विचारधारा से ओत-प्रोत हैं। साकेत, यशोधरा, जयद्रथ-वध आदि मैथिलीशरण गुप्त जी की प्रमुख कृतियां हैं। “भारत-भारती” के लिए मैथिलीशरण गुप्त जी को
महात्मा गाँधी ने “राष्ट्रकवि” की पदवी दी और सन 1954 में भारत सरकार ने इन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया। मनुष्यता कविता का भावार्थ- Manushyata Poem Summary: मनुष्यता कविता में कवि मैथिलीशरण गुप्त जी ने उसी व्यक्ति को मनुष्य माना है, जो केवल अपने लिए ही नहीं, बल्कि दूसरों के हित के लिए भी जीते-मरते हैं। ऐसे मनुष्य को मृत्यु के बाद भी उसके अच्छे कर्मों के लिए युगों-युगों तक याद किया जाता है, इस प्रकार, परोपकारी मनुष्य मर कर भी दुनिया में अमर हो जाता है। विचार लो कि मर्त्य हो न मृत्यु से डरो कभी, उसी उदार की कथा सरस्वती बखानती, क्षुधार्त रतिदेव ने दिया करस्थ थाल भी, सहानुभूति चाहिए, महाविभूति है यही; रहो न भूल के कभी मदांध तुच्छ वित्त में, अनंत अंतरिक्ष में अनंत देव हैं खड़े, मनुष्य
मात्र बंधु है’ यही बड़ा विवेक है, चलो अभीष्ट मार्ग में सहर्ष खेलते हुए, विचार लो कि मर्त्य हो न मृत्यु से डरो कभी, मनुष्यता कविता का भावार्थ : प्रस्तुत पंक्तियों में कवि मैथिलीशरण गुप्त जी ने हमें मनुष्यता के
लक्षणों से अवगत कराया है। साथ ही, उन्होंने हमें इस सत्य से भी अवगत कराया है कि मनुष्य अमर नहीं है। मनुष्य मरणशील है, इस बात को हमें स्वीकार करना चाहिए, तभी हमारे अंदर से मृत्यु का भय दूर होगा। कवि के अनुसार मनुष्य कहलाने का अधिकार उसी को है, जो दूसरे के हित तथा दूसरों की ख़ुशी के लिए जीता और मरता है। ऐसे मनुष्य को मृत्यु के बाद भी उसके अच्छे कर्मों के लिए युगों-युगों तक याद किया जाता है, इस प्रकार परोपकारी मनुष्य मर कर भी दुनिया में अमर हो जाता है। जबकि स्वार्थी मनुष्य केवल अपना भला व
स्वार्थ सोचते हैं और खुद के लिए जीते हैं। ऐसे लोगों के मर जाने पर उन्हें कोई याद नहीं रखता। कवि के अनुसार ऐसे मनुष्यों एवं पशुओं में कोई अंतर नहीं होता है, क्योंकि पशु भी दूसरों के बारे में सोचे बिना केवल अपने हित के बारे में सोचते हैं और वैसे ही जीवन-यापन करते हैं। अवगत- परिचित उसी उदार की कथा सरस्वती बखानती, अखंड आत्म भाव जो असीम विश्व में भरे, मनुष्यता कविता का भावार्थ : प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने दानी एवं उदार व्यक्ति का गुणगान किया है। मैथिलीशरण गुप्त जी के अनुसार जो मनुष्य दानी एवं उदार होते हैं और इस विश्व में एकता तथा अखंडता का भाव फैलाते हैं, उन्हें सदैव याद किया जाता है एवं उनका गुणगान किया जाता है। ऐसे व्यक्तियों के नाम इतिहास की पुस्तकों में स्वर्णिम अक्षरों से लिखे जाते हैं। स्वयं सरस्वती माता उनकी कीर्ति का बखान करती हैं एवं धरती ख़ुद उनकी उदारता का ऋण मानती है। सारा संसार ऐसे उदार, परोपकरि और दानी मनुष्य की पूजा करता है। ऐसे मनुष्य ही विश्व में आत्मीयता का भाव भरते हैं। अंत में कवि कहते हैं कि सच्चे अर्थों में मनुष्य वही है, जो हमेशा दूसरे मनुष्य का भला सोचता है और उसके भले के लिए मर भी सकता है।
मनुष्यता कविता का भावार्थ : प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने पौराणिक कथाओं का उदाहरण देते हुए हमें यह बताया है कि ऐसे बहुत से क़िस्से हैं, जिनमें हमें दानी व्यक्तियों का गुणगान मिलता है। इन पंक्तियों में मैथिलीशरण गुप्त जी ने हमें कई उदाहरण दिए हैं। भूख से व्याकुल रतिदेव ने अपने हाथ में खाने की थाली भी दान में दे दी थी। वहीं दधीचि ऋषि ने असुरों से रक्षा के लिए देवताओं को अपनी हड्डियाँ दान कर दी थी। महर्षि दधीचि की हड्डियों से ही देवताओं ने वज्र (एक प्रकार का दैवीय अस्त्र) बनाकर असुरों का संहार किया। फिर एक कबूतर की रक्षा करने के लिए गांधार देश के राजा ने अपने शरीर का मांस काट कर दान में दे दिया था। यहाँ तक कि दान मांगे जाने पर वीर कर्ण ने अपने शरीर से लगे हुए रक्षा-कवच तक को दान कर दिया था। इसीलिए कवि कहते हैं कि आत्मा तो अमर है, फिर दूसरों की भलाई के लिए शरीर को जोख़िम में डालने से क्या डरना। अपने जीवन का उपयोग दूसरे मनुष्यों के अच्छे के लिए करने पर ही तो हम मनुष्य कहलाने के लायक हैं।
मनुष्यता कविता का भावार्थ : प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने सहानुभूति, करुणा, उपकार की भावना को मानव का सबसे बड़ा धन बताया है। जिस व्यक्ति में उपकार करने की भावना होती है, वही धनवान कहलाने योग्य है और ऐसे धनवान व्यक्ति तो स्वयं ईश्वर को भी अपने वश में कर सकते हैं। यही कारण है कि भगवान बुद्ध ने जन-कल्याण के लिए सामाजिक रूढ़िवाद का विरोध किया और दया को ही मनुष्य का असली आभूषण बताया। इसी वजह से लोग आज भी उन्हें पूजते हैं।
मनुष्यता कविता का भावार्थ : प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने हमें घमंड एवं अहंकार जैसी बुरी भावनाओं से दूर रहने को कहा है। उनके अनुसार इस संसार में कोई भी अकेला या अनाथ नहीं है, हर पल तीनों लोकों के स्वामी स्वयं हम सभी के साथ हैं। कवि हमें कहते हैं कि कभी भी अपने यश, धन-दौलत इत्यादि पर घमंड नहीं करना चाहिए और दूसरों को उपेक्षा की नज़र से नहीं देखना चाहिए। ईश्वर की नज़र में हम सब एक सामान है। आगे कवि उन व्यक्तियों को अत्यंत भाग्यहीन मानते हैं, जो संसार की चिंता में व्याकुल हैं और जिन्हें ईश्वर की उपस्थिति का ज़रा भी ज्ञान नहीं है।
मनुष्यता कविता का भावार्थ : प्रस्तुत पंक्तियों में कवि हमें एक-दूसरे की सहायता करते हुए उद्धार के रास्ते पर चलने का संदेश दे रहे हैं। उनके अनुसार मृत्यु के बाद देवतागण स्वयं अपने हाथ फैलाए परोपकारी एवं दयालु मनुष्यों का स्वागत करेंगे। वे चाहते हैं कि उद्धार पाने में मनुष्य परस्पर एक-दूसरे की सहायता करें। इस प्रकार कवि हमें एक-दूसरे का कल्याण करने का मार्ग बता रहे हैं। उनके अनुसार ऐसा मनुष्य, मनुष्य कहलाने के लायक ही नहीं है, जो ज़रूरत पड़ने पर दूसरे मनुष्य की सहायता ना कर सके।
मनुष्यता कविता का भावार्थ : प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने कहा है कि सबसे बड़ी समझदारी इस बात को समझने में है कि सभी मनुष्य भाई-बंधु हैं। उन्होंने कहा है कि सिर्फ़ बाहर से ही हमारे रंग-रूप में अंतर है। लोग कर्म के अनुसार एक-दूसरे को अलग-अलग समझने की भूल करते हैं लेकिन सभी की आत्मा में एक ही परमात्मा का निवास है। हम सभी परमेश्वर को पूज्य-पिता के सामान मानते हैं। फिर कवि कहते हैं कि ऐसे भाई (मनुष्य) के होने का फायदा ही क्या, जो ज़रूरत पड़ने पर दूसरे भाई (मनुष्य) की सहायता ना कर सके।
मनुष्यता कविता का भावार्थ : प्रस्तुत पंक्तियों में कवि हमें अपने लक्ष्य के मार्ग पर बिना रुके निरंतर चलते रहने का उपदेश दे रहे हैं। कवि कहते हैं कि रास्ते में जितनी भी बाधाएँ आएँ, उन्हें साहस-पूर्वक पार करके हमें आगे बढ़ते रहना चाहिए। परन्तु हमें ऐसा करते हुए, आपसी भेदभाव को कभी भी बढ़ने नहीं देना है और आपसी भाईचारे को कम भी नहीं होने देना है। हमारी सामर्थ्यता तभी सिद्ध होगी, जब हम अपने साथ-साथ दूसरों का भी भला करेंगे, ऐसा करने पर ही हम सही मायनों में मनुष्य कहलाने के लायक हैं। इस प्रकार हमें कवि ने परोपकार एवं भाईचारे के भावों को मन में रख कर हँसी-ख़ुशी जीवन जीने का संदेश दिया है। अंतरिक्ष में खड़े देव अपनी बाहु को क्यों बढ़ा रहे हैं?अंतरिक्ष में खड़े देव प्रेरणा नहीं देते हैं। वे ऐसे लोगों का बाँहें फैलाकर स्वागत करते हैं, जो लोगों की भलाई के लिए अपना सर्वस्व अपर्ण कर देते हैं। देवता ऐसे लोगों से प्रसन्न होते हैं और उनका स्वागत करने के लिए खड़े रहते हैं।
अनंत अंतरिक्ष में अनंत देव हैं खड़े समक्ष ही स्वबाहु जो बढ़ा रहे बड़े बड़े उपरोक्त पंक्तियों में कौन सा अलंकार है?स्वबाहु अमर्त्य- अंक = देवता की गोद, अपंक देवता की गोद, अपंक - कलंक - रहित । किया गया है। 3. 'दयालु दीनबंधु' में अनुप्रास अलंकार है ।
अंतरिक्ष में खड़े देवता हमें क्या प्रेरणा देते हैं?देवता मनुष्य को देवलोक आने की प्रेरणा दे रहे हैं c देवता मनुष्य को धन कमाने की प्रेरणा दे रहे हैं D. देवता मनुष्य को सुख प्राप्ति की प्रेरणा दे रहे हैं
अनंत अंतरिक्ष में कौन खड़े हैं?Answer: अनंत अंतरिक्ष में अनंत देव हैं खड़े, समक्ष ही स्वबाहु जो बढ़ा रहे बड़े-बड़े।
|