एकांकी और नाटक के तत्व क्या है? - ekaankee aur naatak ke tatv kya hai?


एकांकी का अर्थ 

एकांकी एक अंग का दृश्य काव्य है जिसमें एक ही कथा और कुछ ही पात्र होते है। उसमे एक विशेष उद्देश्य की अभिव्यक्ति करते हुए केवल एक ही प्रभाव की पुष्टि सृष्टि की जाती है। कम से कम समय मे अधिक से अधिक प्रभाव एकांकी का लक्ष्य होता हैं। आज हम एकांकी किसे कहते हैं? एकांकी के तत्व और एकांकी के प्रकारों के बारें मे विस्तार से चर्चा करेंगे। हम आपसे अनुरोध करते हैं कि आप इस लेख को पूरा पढ़े बीच से छोड़कर ना भागें क्योंकि आप जितना ज्यादा पढ़गें आपको उतना ही ज्यादा और अच्छे से समझ आएगा।

एकांकी और नाटक के तत्व क्या है? - ekaankee aur naatak ke tatv kya hai?

एकांकी किसे कहते है? (ekanki kise kahate hain)

एक अंग वाले नाटक को एकांकी कहते हैं। आकार मे छोटा होने के कारण इसमे जीवन का खण्ड चित्र प्रस्तुत होता है। नाटक के समान इसके भी छः तत्व होते हैं।
आज मनुष्य के पास पहले की तरह प्रचुर अवकाश नही हैं। अपनी व्यस्तता के कारण महाकाव्यों तथा मोटे-मोटे उपन्यासों को पढ़ने और नाटकों को देखने के लिए उसे पर्याप्त समय नही मिल पाता। इसलिए थोड़े समय मे पढ़ी जाने वाली कहानियों और खेल जाने वाली एकांकीयों के प्रति उसका झुकाव स्वाभाविक ही हैं।

एकांकी के तत्व 

1. कथावस्तु
कथावस्तु के माध्यम से एकांकीकार अपना उद्देश्य व्यक्त करता है। इसे वह प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करता है। अपेक्षित प्रभाव उत्पन्न करने के लिए इसे कथा के क्रम मे इस प्रकार योजना करता है कि दर्शक का मन उसमें रम जाए, कहीं भी उचटने न पाए। उसका मन निरंतर आगे का घटनाक्रम या दृश्य जानने के लिए उत्सुक बना रहे। सरल शब्दावली मे कहें तो उसका कौतूहल बना रहना चाहिए। कथानक या कथावस्तु को तीन भागों मे विभाजित किया जा सकता है। 1. प्रारंभ 2. विकास 3. चरमोत्कर्ष।


2. पात्र और चरित चित्रण
एकांकी का दूसरा तत्व पात्र और चरित्र चित्रण है। नाटकों मे नायक तथा उसके सहायकों का चरित्र-चित्रण मूलतः घटनाओं के माध्यम से किया जाता हैं, किन्तु एकांकी के पात्रों के चित्रण नाटकीय परिस्थितियों, भीतर बाहर के संघर्षों के सहारे सांकेतिक रहते है। एकांकी के चरित्र चित्रण मे स्वाभाविकता, यथार्थता और मनोवैज्ञानिकता का  ध्यान रखना आवश्यक होता है। प्रत्येक पात्र के क्रिया-कलाप मे कार्य कारण भाव अवश्य सांकेतिक होना चाहिए।

3. भाषा-शैली
एकांकी का तीसरा तत्व भाषा और शैली हैं। साहित्य की विभिन्न विधाओं की भाषा-शैली अलग-अलग होती है। एक सी विषय वस्तु के आधार पर कहानी भी लिखी जा सकती है और एकांकी भी काव्य भी लिखा जा सकता है, और नाटक भी। किन्तु उसी विषय वस्तु को कवि अपने ढंग से ग्रहण करेगा और नाटककार अपने ढंग से। विषयवस्तु  के प्रति लेखक का जैसा दृष्टिकोण होगा, उसकी अभिव्यक्ति के लिए वह वैसा ही माध्यम भी चुनेगा। माध्यम के भिन्न हो जाने से भाषा शैली भी भिन्न हो जाती है। कहानी की भाषा शैली वर्णन के लिए अधिक उपयुक्त होती है। केवल संवाद मे लिखी गई कहानी की भाषा शैली एकांकी की भाषा-शैली नही हो सकती है, क्योंकि उसमें नाटकीय तत्व नही रहता।
एकांकी की भाषा शैली के संबंध मे एक बात और ध्यान देने योग्य है। भाषा का प्रयोग पात्र की शिक्षा, संस्कृति वातावरण, परिस्थितियों के अनुरूप होना चाहिए।


4. देशकाल-वातावरण
एकांकी के नाट्यशिल्प को सफल बनाने के लिए संकलन-त्रय का प्राय: आधार लिया जाता है। कहा जाता है कि एकांकी मे देश, काल और कार्य-व्यापार की अन्विति का अर्थ है कि संपूर्ण घटना एक ही स्थान पर घटित हो और उसमें दृश्य परिवर्तन कम से कम हो। सामान्यतः काल की अन्विति से अभिप्राय है कि एकांकी की घटना वास्तविक जीवन मे जितनी देर मे घटित हुई उतनी देर मे उसका अभिनय भी हो सके। यदि दो घटनाओं मे वर्षों का अंतर हो तो उन्हें एकांकी का विषय नही बनाया जाना चाहिए। कार्य की अन्विति का अर्थ है प्रासंगिक कथाओं को उसमें स्थान न दिया जाए और कार्य व्यापार मे क्रमिकता बनी रहें।

5. रंगमंचीयता
एकांकी के सफल अभिनय के लिए उपयुक्त रंगमंच सज्जा के साथ-साथ कुशल अभिनेताओं का होना अनिवार्य है, क्योंकि एकांकी के मूल उद्देश्य की अभिव्यक्ति का मुख्य दायित्व उन्हीं पर होता हैं। उसे और प्रभावशाली बनाने के लिए और प्रकाश का भी यथावसर उपयोग किया जाता हैं।

6. उद्देश्य 
एकांकी का कोई ना कोई उद्देश्य होना चाहिए।

एकांकी के प्रकार

1. सामाजिक एकांकी
2. पौराणिक एकांकी
3. ऐतिहासिक एकांकी
4. राजनीति से सम्बंधित एकांकी
5. चरित्र प्रधान एकांकी
6. अर्थपूर्ण एकांकी।
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एकांकी और नाटक के तत्व कौन से हैं?

ऐसे नाटकों में स्थान या दृश्य, काल और घटनाक्रम में अनवरत परिवर्तन स्वाभाविक था। लेकिन एकांकी में यह संभव नहीं। एकांकी किसी एक नाटकीय घटना या मानसिक स्थिति पर आधारित होता है और प्रभाव की एकाग्रता उसका मुख्य लक्ष्य है। इसलिए एकांकी में स्थान, समय और घटना का संकलनत्रय अनिवार्य सा माना गया है।

नाटक के तत्व क्या है?

संस्कृत आचार्यों ने नाटक के तत्त्व कुल 5 माने हैं-कथावस्तु, नेता, रस, अभिनय और वृत्ति। पाश्चात्य विद्वान छः मूलतत्त्व मानते हैं- कथावस्तु, पात्र, कथोपकथन, देश-काल, शैली और उद्देश्य।

एकांकी किसे कहते हैं एकांकी के कितने तत्व होते हैं?

एकांकी किसे कहते है? (ekanki kise kahate hain) एक अंग वाले नाटक को एकांकी कहते हैं। आकार मे छोटा होने के कारण इसमे जीवन का खण्ड चित्र प्रस्तुत होता है। नाटक के समान इसके भी छः तत्व होते हैं

एकांकी क्या है एकांकी के तत्व?

एकांकी की कथा जीवन आदर्श, यथार्थ, समाज, घर-परिवार, राजनीति, धर्म, इतिहास-पुराण आदि से भी ली जाती है। इसमें संभाव्यता भी अनिवार्य होती है। एकांकी की कथावस्तु में स्थान, समय, कार्य की एकता का भी ध्यान रखना आवश्यक है। इसके कथा विकास की पांच अवस्थाएं मानी गई है- प्रारंभ, नाटकीय स्थल, द्वंद्व, चरम सीमा,अंतिम परिणति आदि।