1. काव्य की परिभाषा Show ‘छन्दबद्ध’ रचना काव्य कहलाती है। आचार्य विश्वनाथ ने काव्य को परिभाषित करते हुए लिखा है—’वाक्यं रसात्मकं काव्यम्’। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के अनुसार, “कविता शेष सृष्टि के साथ हमारे रागात्मक सम्बन्धों की रक्षा और निवास का साधन है। वह इस जगत के अनन्त रूपों, अनन्त व्यापारों और अनन्त चेष्टाओं के साथ हमारे मन की भावनाओं को जोड़ने का कार्य करती है।” काव्य के भेद-काव्य के दो भेद माने गये हैं-
(1) श्रव्य काव्य
(क) प्रबन्ध काव्य-प्रबन्ध काव्य वह काव्य रचना कहलाती है जिसकी कथा शृंखलाबद्ध होती है। इसके छन्दों का सम्बन्ध पूर्वापर होता है। प्रबन्ध काव्य के दो प्रकार माने गये हैं- (i) महाकाव्य-महाकाव्य में किसी महापुरुष के समस्त जीवन की कथा होती है। इसमें कई सर्ग होते हैं। मूल कथा के साथ प्रासंगिक कथाएँ भी होती हैं। महाकाव्य का प्रधान रस श्रृंगार, वीर अथवा शान्त होता है। हिन्दी के प्रमुख महाकाव्य एवं उनके रचयिता- (ii) खण्डकाव्य-खण्डकाव्य में जीवन का खण्ड चित्रण होता है। इसका नायक यशस्वी होता है। सीमित कलेवर में इसकी कथा अपने आप में पूर्ण होती है। हिन्दी के प्रमुख खण्डकाव्य एवं उनके रचयिता- (ख) मुक्तक काव्य-मुक्तक काव्य में प्रत्येक छन्द स्वयं में पूर्ण होता है तथा पूर्वापर सम्बन्ध से मुक्त होता है। बिहारी सतसई के दोहे,कबीर की साखी मुक्तक काव्य हैं। 2. रस रस
की परिभाषा रस के चार अंग- (i) स्थायी भाव-मानव हृदय में स्थायी रूप से विद्यमान रहने वाले भाव स्थायी भाव कहलाते हैं। स्थायी भावों की संख्या नौ-रति,हास,शोक,उत्साह,क्रोध,
भय, घृणा, विस्मय एवं निर्वेद मानी गई है। कुछ विद्वान देव विषयक प्रेम और वात्सल्य भाव को स्थायी भाव मानते हैं। (क) आलम्बन विभाव-जिस कारण से स्थायी भाव जाग्रत हो. उसे आलम्बन विभाव कहते हैं। जैसे-वन में शेर को देखकर डरने का आलम्बन विभाव शेर होगा। (iii) अनुभाव-स्थायी भाव के जाग्रत होने तथा उद्दीप्त होने पर आश्रय की शारीरिक चेष्टाएँ अनुभाव कहलाती हैं। जैसे वन में शेर को देखकर डर के मारे काँपने लगना, भागना आदि। अनुभाव-
(iv) संचारी भाव-जाग्रत स्थायी भाव को पुष्ट करने के लिए कुछ समय के लिए जगकर लुप्त हो जाने वाले भाव संचारी या व्यभिचारी भाव कहलाते हैं। जैसे वन में शेर को देखकर भयभीत व्यक्ति को ध्यान आ जाये कि आठ दिन पूर्व शेर ने एक व्यक्ति को मार दिया था। यह स्मृति संचारी भाव होगा। संचारी भावों की संख्या 33 मानी गई है। रस नौ प्रकार के माने गये हैं-
कुछ विद्वान भक्ति एवं वात्सल्य को भी रस मानते हैं। (i) संयोग शृंगार–जहाँ नायक-नायिका के मिलन,वार्तालाप, स्पर्श आदि का वर्णन है। वहाँ संयोग श्रृंगार होता है; जैसे- “दूलह श्री रघुनाथ बने, दुलही सिय सुन्दर मन्दिर माहीं। यहाँ राम और सीता का प्रेम (रति) स्थायी भाव है। राम आलम्बन और सीता आश्रय हैं। नग में राम का निहारना, गीत आदि उद्दीपन हैं। कर टेकना,पलक न गिराना अनुभाव हैं। जड़ता, हर्ष,मति आदि संचारी भाव हैं। (ii) वियोग शृंगार–जहाँ नायक-नायिका के वियोग का वर्णन हो वहाँ वियोग शृंगार होता है; जैसे- “भूषन वसन विलोकत सिय के यहाँ आलम्बन सीता तथा आश्रय राम हैं। सीता के आभूषण, वस्त्र आदि उद्दीपन हैं। कम्पन, पुलक,आँख में आँसू अनुभाव हैं। दर्द,स्मृति संचारी भाव हैं। (2) वीर रस युद्ध या कठिन कार्य करने के लिए जगा उत्साह भाव विभावादि से पुष्ट होकर वीर रस बन जाता है। इसका आलम्बन विरोधी होता है, शत्रु की गर्जना, रणभेरी आदि उद्दीपन हैं। हाथ उठाना, वीरता की बातें करना आदि अनुभाव और गर्व,उत्सुकता आदि संचारी भाव हैं; जैसे- “सौमित्र से घनानन्द का, रव अल्प भी न सहा गया, यहाँ मेघनाद आलम्बन तथा लक्ष्मण आश्रय हैं। मेघनाद का रव,रण वाद्य आदि उद्दीपन हैं। लक्ष्मण का युद्ध हेतु तैयार होना आदि अनुभाव और औत्सुक्य,अमर्ष आदि संचारी भाव हैं। (3) शान्त रस-संसार की असारता, वस्तुओं से विरक्ति के कारण उत्पन्न निर्वेद भाव विभावादि से पुष्ट होकर शान्त रस के रूप में परिणत होता है; जैसे- “मो सम कौन कुटिल खल कामी। यहाँ भक्त आश्रय तथा विषय वासना, संसार की असारता आलम्बन है। शरीर विस्मृत कर देना,सत्संग में आलस्य आदि उद्दीपन विभाव हैं। द्रोह भरकर विषय को धाना, गुलामी करना आदि अनुभाव और मति, वितर्क, विवोध आदि संचारी भाव हैं। (4) करुण रस-प्रिय व्यक्ति वस्तु के विनाश या अनिष्ट की आशंका से जागे शोक स्थायी भाव का विभावादि से पुष्ट होने पर करुण रस का परिपाक होता है; जैसे- [2012] “करि विलाप सब
रोबहिं रानी। इसमें रानियाँ आश्रय, राजा दशरथ की मृत्यु आलम्बन है। मृत्यु की सूचना उद्दीपन है। आँसू बहाना, रोना, विलाप करना, अनुभाव और विषाद, दैन्य, बेहोशी आदि संचारी भाव हैं। (5) हास्य रस-विचित्र वेश-भूषा, विकृत आकार, चेष्टा आदि के कारण जाग्रत हास स्थायी भाव विभावादि से पुष्ट होकर हास्य रस में परिणत होता है; जैसे [2017] “हँसि हँसि भजे देखि दूलह दिगम्बर को,
यहाँ दर्शक आश्रय हैं तथा शिवजी आलम्बन हैं। उनकी विचित्र आकृति, नग्न स्वरूप आदि उद्दीपन हैं। लोगों का हँसना, भागना आदि अनुभाव तथा हर्ष, उत्सुकता, चपलता आदि संचारी भाव हैं। (6) रौद्र रस-दुष्ट के अत्याचारों, अपने अपमान आदि के कारण जाग्रत क्रोध स्थायी भाव का विभावादि में पुष्ट होकर रौद्र रस रूप में परिपाक होता है; जैसे- “श्रीकृष्ण के सुन वचन, अर्जन क्रोध से जलने लगा। यहाँ अर्जुन आश्रय, अभिमन्यु के वध पर कौरवों का हर्ष आलम्बन है। श्रीकृष्ण के वचन उद्दीपन विभाव हैं। हाथ मलना, कठोर बोल,उठकर खड़ा होना, अनुभाव तथा अमर्ष,उग्रता, गर्व आदि संचारी भाव हैं। (7) भयानक रस-किसी भयंकर व्यक्ति, वस्तु के कारण जाग्रत भय स्थायी भाव विभावादि के संयोग से भयानक रस रूप में परिणत होता है; जैसे- “एक ओर अजगर सिंह लखि, एक ओर मृगराय। यहाँ आश्रय वटोही तथा आलम्बन अजगर और सिंह हैं। अजगर एवं सिंह की डरावनी चेष्टाएँ उद्दीपन हैं। बटोही (राहगीर) का मूच्छित होना अनुभाव तथा स्वेद, कम्पन, रोमांच आदि संचारी भाव हैं। (8) वीभत्स रस-घृणापूर्ण वस्तुओं के देखने या अनुभव करने के कारण जगने वाला जुगुप्सा (घृणा) स्थायी भाव का विभावादि के संयोग से वीभत्स रस रूप में परिपाक होता है; जैसे- “सिर पर बैठो काग आँखि दोऊ खात निकारत। यहाँ युद्ध क्षेत्र या श्मशान आलम्बन तथा दर्शक आश्रय हैं। कौओं का आँख निकालना, स्यार का जीभ खींचना, गिद्ध का मांस नोंचना आदि उद्दीपन हैं। इन्हें देखने पर हृदय की व्याकुलता,शरीर का कम्पन आदि अनुभाव तथा मोह,स्मृति, मूर्छा आदि संचारी भाव हैं। (9) अद्भुत रस-किसी असाधारण या अलौकिक वस्तु के देखने में जाग्रत विस्मय स्थायी भाव विभावादि के संयोग से अद्भुत रस में परिणत होता है; जैसे- “अखिल भुवन चर-अचर सब, हरि मुख में लखि मातु। यहाँ माँ यशोदा आश्रय तथा श्रीकृष्ण के मुख में विद्यमान सब लोक आलम्बन हैं। चर-अचर आदि उद्दीपन हैं। आँख फाड़ना,गद-गद स्वर,रोमांच अनुभाव तथा दैन्य,त्रास आदि संचारी भाव हैं। (10) वात्सल्य रस-सन्तान के प्रति वात्सल्य भाव उपयुक्त विभाव, अनुभाव और संचारी भावों के सम्मिश्रण के परिणामस्वरूप जब आनन्द में परिणत हो जाता है, तब वहाँ वात्सल्य रस होता है। [2009, 10, 18] उदाहरण- “जसोदा हरि पालने झलावै। 3. अलंकार परिभाषा-काव्य में भाव तथा कला के सौन्दर्य को बढ़ाने वाले उपकरण अलंकार कहलाते हैं। भेद-जिन अलंकारों के प्रयोग से शब्द में चमत्कार उत्पन्न होता है, वे शब्दालंकार तथा जिनसे अर्थ में चमत्कार पैदा होता है,वे अर्थालंकार कहलाते हैं। शब्दालंकारों में प्रमुख अनुप्रास, यमक और श्लेष तथा अर्थालंकारों में उपमा, रूपक एवं उत्प्रेक्षा प्रमुख हैं। अलंकार परिचय 1. वक्रोक्ति अलंकार [2009, 16] लक्षण-जहाँ किसी उक्ति का अर्थ जानते हुए कहने वाले के आशय से भिन्न लिया जाए, वहाँ वक्रोक्ति अलंकार होता है; जैसे “कौन तुम? हैं घनश्याम हम, तो बरसो कित जाई।” यहाँ राधा ने ‘घनश्याम’ का अर्थ जानते हुए भी श्रीकृष्ण न लगाकर बादल लिया है। अतः यहाँ वक्रोक्ति अलंकार है। 2. अतिश्योक्ति अलंकार [2009, 10, 12, 13, 15,
17] “हनुमान की पूँछ में, लगन न पाई आग। यहाँ बात को बढ़ा-चढ़ाकर वर्णन हुआ है। अतः अतिश्योक्ति अलंकार है। 3. अन्योक्ति अलंकार [2009, 11, 18] “माली आवत देखकर, कलियन करी पुकार। यहाँ पर बात तो अप्रस्तुत माली,कलियाँ, फूलों की कही गई है परन्तु बोध प्रस्तुत वृद्धजनों और प्रौढ़जनों का कराया गया है। 4. छन्द (क) परिभाषा-छन्द का शब्दार्थ बन्धन है। वर्ण,मात्रा, गति, यति,तुक आदि नियमों से नियोजित शब्द-रचना छन्द कहलाती है। (ख) छन्द के अंग- (2) मात्रा-वर्ण के बोलने में जो समय लगता है, उसे मात्रा कहते हैं। मात्रा दो प्रकार की होती हैं- (3) यति–विराम या रुकने को यति कहते हैं। छन्द पढ़ते समय जहाँ कुछ समय रुकते हैं,वही यति है। इसके संकेत के लिए विराम चिह्न प्रयोग किये जाते हैं। (4) चरण या पाद-छन्द के एक भाग को चरण या पाद कहते हैं। प्रत्येक छन्द में चरणों की संख्या निश्चित होती है; जैसे–चार पद,छ: पद आदि। (5) तुक-छन्द की प्रत्येक पंक्ति के अन्तिम भाग की समान ध्वनि तुक कहलाती है। (i) मात्रिक छन्द-जिन छन्दों में मात्रा की गणना की जाती है, वे मात्रिक छन्द कहलाते हैं। छन्दों का परिचय 1. गीतिका [2009, 11, 13, 14,
17] हे प्रभो आनन्ददाता, ज्ञान हमको दीजिए। 2. हरिगीतिका [2009, 14, 16, 18] संसार की समर स्थली में, वीरता धारण करो। 3. उल्लाला [2015] करते अभिषेक पयोद हैं, बलिहारी इस वेष की। 4. रोला नीलाम्बर परिधान हरित पट पर सुन्दर है। प्रश्नोत्तर (क) वस्तुनिष्ठ प्रश्न बहु-विकल्पीय प्रश्न 1. ‘छन्दबद्ध रचना कहलाती है 2. ‘वाक्यं रसात्मकं काव्यम्’ परिभाषा दी है. 3. सर्वाधिक लोकप्रिय महाकाव्य है [2013] 4. काव्य की आत्मा है- 5. स्थायी भाव को जगाने वाले और उद्दीप्त करने वाले कारण कहलाते हैं- 6. काव्य में भाव तथा कला के सौन्दर्य को बढ़ाने वाले तत्त्व कहलाते हैं- 7. हरिगीतिका के प्रत्येक चरण में मात्राएँ होती हैं- 8. जहाँ अप्रस्तुत कथन के द्वारा प्रस्तुत का बोध हो, वहाँ अलंकार होता है- 9. वर्ण के बोलने में जो समय लगता है, उसे कहते हैं- 10. उल्लाला छन्द में मात्राएँ होती हैं [2009] 11. ‘श्रीकृष्ण के सुन वचन अर्जुन क्रोध से जलने लगे’ में कौन-सा रस विद्यमान है? [2012] 12. ‘चौपाई छन्द में मात्राएँ होती हैं [2012, 15] 13. ‘रौद्र रस का स्थायी भाव’ है [2014] 14. ‘अद्भुत रस का स्थायी भाव’ है [2016] रिक्त स्थानों की पूर्ति 1. महाकाव्य में जीवन का ………………………………. चित्रण होता है। सत्य/असत्य सही जोड़ी बनाइए उत्तर- 1. → (ग), 2. → (क), 3. → (ख), 4. → (ङ), 5. → (घ)। उत्तर- 1. → (घ), 2. → (ङ), 3. → (क), 4. → (ख), 5.→ (ग)। एक शब्द/वाक्य में उत्तर (ख) लघु उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. कविता से क्या तात्पर्य है? प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5.
प्रश्न 6. उदाहरण- छाया करती रहे सदा, तुझ पर सुहाग की छाँह। (2) प्रसाद गुण-जब किसी कविता का अर्थ आसानी से समझ में आ जाये तब वहाँ प्रसाद गुण होता है। उदाहरण- “अब हरिनाम सुमिरि सुखधाम, (3) ओज गुण [2012] -जिस काव्य के सुनने या पढ़ने से चित्त की उत्तेजना वृत्ति जाग्रत हो,वह रचना ओज गुण सम्पन्न होती है। उदाहरण- “बुन्देले हरबोलों के मुख हमने सुनी कहानी थी। प्रश्न 7. विशेषताएँ-
प्रश्न 8. प्रश्न 9.
प्रश्न 10. इसकी विशेषताएँ निम्नवत् हैं-
दो प्रमुख महाकाव्यों के नाम-
प्रश्न 11.
प्रश्न 12. प्रबन्ध काव्य के दो प्रकार माने गये हैं-
उदाहरण- महाकाव्य-रामचरितमानस, साकेत, कामायनी। प्रश्न 13. प्रश्न 14.
प्रश्न 15. प्रश्न 16. प्रश्न 17. प्रश्न 18. प्रश्न 19. उदाहरण- “बुंदेले हर बोलो के मुख हमने सुनी कहानी थी। प्रश्न 20.
प्रश्न 21. MP Board Class 10th Hindi Solutionsविभाव से आप क्या समझते हैं?विभाव संज्ञा पुं॰ [सं॰] साहित्य में वह वस्तु जो रति आदि स्थायी भावों को आलंबन में उत्पन्न करनेवाली या उदीप्त करनेवाली हो । रसविधान में भाव का आलंबन या विभावक या उद्दीपक । उ॰—इसी भाव (प्रेम) के विविध प्रकार के आलंबनों और उद्दीपनों का चित्रण इस भूमि के विभाम पक्ष में पाया जाता है ।
विभाव किसे कहते हैं और इसके कितने भेद होते हैं?विभाव- काव्य में किसी वस्तु या विषय के वर्णन को पड़ने से जो भाव उपन्न होते हैं, उन्हें विभाव कहते हैं। विभाव दो प्रकार के होते हैं। आलंबन को दो भागो में बाटा गया है। उद्दीपन विभाव- जिन वस्तुओ और परिस्तिथियों को देख कर जो भाव उद्दीप्त होने लगते है, उन्हें उद्दीपन विभाव कहते हैं।
विभाव के कितने प्रकार?विभाव दो प्रकार के हैं- आलंबन और उद्दीपन । जिसका आश्रय लेकर स्थायी भाव उबुद्ध होता है, वह आलंबन विभाव है ।
व्यभिचारी भाव कितने प्रकार के होते हैं?नायिका के अनुभाव माने गए है - 28 प्रकार के। व्यभिचारी या संचारी भाव कहते हैं - वह भाव जो स्थायी भाव की ओर चलते है, जिससे स्थायी भाव रस का रूप धारण कर लेवे। इसे यो भी कह सकते हैं जो भाव रस के उप कारक होकर पानी के बुलबुलों और तरंगों की भांति उठते और विलिन होते है। उन्हें व्यभिचारी या संचारी भाव कहते है।
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