वास्तु शास्त्र के अनुसार इस कोण में भूलकर भी ना रखें पानीवास्तु शास्त्र के अनुसार आग्नेय कोण का विस्तार 112.5 अंशों से 157.5 अंशों तक होता है। आग्नेय दिशा के स्वामी अग्निदेव हैं। इस दिशा का... Show
Praveenपंचांग पुराण टीम ,मेरठ Sat, 19 Sep 2020 03:45 PM वास्तु शास्त्र के अनुसार आग्नेय कोण का विस्तार 112.5 अंशों से 157.5 अंशों तक होता है। आग्नेय दिशा के स्वामी अग्निदेव हैं। इस दिशा का आधिपत्य शुक्र ग्रह के पास है। इस दिशा में पूर्व और दक्षिण का समावेश रहता है। इस दिशा में सूर्य की किरणें सर्वाधिक पड़ती हैं जिससे यह दिशा अन्य दिशाओं से गर्म रहती हैं। वास्तु शास्त्र के अनुसार यह दिशा अग्नि से संबंधित कार्यों के लिए है। अग्नि दिशा में रसाईघर, बिजली के उपकरण, इन्वर्टर, गर्म पानी करने की भट्टी एवं बॉयलर रखना श्रेष्ठ रहता है। यह भी पढ़ें: शनि के प्रकोप से बचना है तो करें ये 7 काम, बदल जाएगी आपकी किस्मत शुक्र का प्रतिनिधि होने के कारण यह दिशा महिलाओं के स्वास्थ्य को भी प्रभावित करती है। इस दिशा में ड्रेसिंग रूम और सौंदर्य प्रसाधन कक्ष बनाना भी शुभ रहता है। बार के लिए भी शुभ स्थान आग्नेय कोण होता है। यह दिशा रसोईघर के लिए अधिक
उपयुक्त है। क्योंकि अग्निक्षेत्र में अग्नि के पदार्थ लाभकारी होते हैं। आग्नेय कोण में कभी भी जल ना रखें। बोरिंग, नल, हैंडपंप और पानी की टंकी यहां अच्छी नहीं होती। ऐसा होने पर यह गृह स्वामी को कर्ज में डुबो देती है। यदि रसोई घर इस दिशा में है तो भी हमें रसोईघर को एक इकाई मानकर उसमें भी चूल्हा, ओवन, खाद्य पदार्थों का स्टोर सिंक और रेफ्रिजरेटर को रखने की समुचित व्यवस्था वास्तु के अनुसार ही करनी चाहिए। रसोईघर के उत्तर पूर्व में पीने का पानी का स्थान और आरओ लगाया जा सकता है।
दस दिशाएं होती है- पूर्व, आग्नेय, दक्षिण, नैऋत्य, पश्चिम, वायव्य, उत्तर, ईशान, नीचे और उपर। वास्तु अनुसार घर में चार कोण होते हैं, ईशान कोण, नैऋत्य कोण, आग्नेय कोण और वायव कोण। उत्तर और पश्चिम दिशा के बीच वायव्य दिशा होती है। आओ जानते हैं वायव कोण के 7 टिप्स। 1. वायव्य कोण में वायु का स्थान है और इस दिशा के स्वामी ग्रह चंद्र है। वायव्य कोण यदि गंदा है तो नुकसान होगा। 2. वायव्य कोण को खिड़की, उजालदान आदि का स्थान बना सकते हैं। 3. वायव्य कोण में गेस्ट रूम भी बना सकते हैं। 4. यदि वायव्य कोण का दरवाजा है और वायव कोण हर तरह से निर्दोष है तो यह दिशा आपको धन-संपत्ति और समृद्धि तो प्रदान करेगे। 5. यह भी देखा गया है कि यह स्थिति भवन में रहने वाले किसी सदस्य का रूझान अध्यात्म में बढ़ा देती है। 6. अगर घर के वायव्य कोण में केवल कोने में बढ़ाव होता तो शत्रुओं की संख्या बढ़ जाती है। शत्रुओं से विवाद होने के कारण सुख का अभाव होता है और परिवार के सम्मान में कमी होती है। 7. वायव्य कोण में धन रखा हो तो खर्च जितनी आमदनी जुटा पाना मुश्किल होता है। ऐसे व्यक्ति का बजट हमेशा गड़बड़ाया हुआ रहता है और वह कर्जदारों द्वारा सताया जाता है। धन को हमेशा ईशान या उत्तर दिशा में रखें। पूर्व और दक्षिण के मध्य दिशा को आग्नेश दिशा कहा जाता है। इस दिशा के स्वामी अग्निदेव हैं। यह दिशा अग्नि प्रधान होती है और आग्नेय कोण का मूल तत्व अग्नि है। इसलिए अग्नि को नियंत्रित रखने के लिए इस दिशा में रसोईघर का निर्माण वास्तु की दृष्टि से श्रेष्ठ है। अग्नि देव की इस दिशा में बिजली के उपकरण रखने पर किसी तरह की कोई समस्या नहीं आती। यदि भवन का निर्माण वास्तुसम्मत हुआ है तो इस दिशा के स्वामी ग्रह शुक्र अति प्रसन्न होते हैं। जिससे घर में सकारात्मक वातावरण बना रहता है। इस दिशा में वास्तु दोष होने पर घर का वातावरण तनावपूर्ण रहता है। धन की हानि होती है। यह दिशा दोष मुक्त होने पर भवन में रहने वाले उर्जावान और स्वस्थ रहते हैं। भवन को दोष मुक्त रखने के लिए ऐसे करे निर्माणआग्नेय दिशा में निर्मित भवन के मुख्य द्वार के अंदर और बाहर भगवान श्रीगणेश की मूर्ति अवश्य लगवाएं। जिससे घर में सकारात्मक वातावरण बना रहता है। भवन में रहने वालों को सुख और समृद्धि की प्राप्ति होती है। आग्नेय दिशा के भवन का मुख्य द्वार नैऋत्य कोण में न बनवायें। इससे घर में चोरी व धन हानि का भय सदैव बना रहता है। इस दिशा को बंद न करें। यहां छोटी खिड़की या दरवाजा जरूर लगवायें। आग्नेय कोण में शयन या अध्ययन कक्ष नहीं होना चाहिए। इस दिशा में घर का मुख्यद्वार भी नहीं होना चाहिए। इससे गृहकलह निर्मित होता है और निवासियों का स्वास्थ्य भी खराब रहता है। आग्नेय दिशा दोषयदि रसोईघर नैऋत्य कोण में स्थित है तो यहां निवास करने वाले लोग हमेशा बीमार रहते हैं। भवन में अग्नि वायव्य कोण में है तो यहां रहने वालों के मध्य अक्सर झगड़ा होता रहता है। मन में अशांति आती है और कई प्रकार के समस्याओं का सामना करना पड़ता है। अगर अग्नि उत्तर दिशा में व्याप्त है तो यहां धन हानि होती है। अग्नि की स्थिति ईशान कोण में होने पर बीमारी और झगड़े अधिक होते हैं साथ ही धन हानि और वंश वृद्धि में भी कमी होती है। रसोईघर से कुआं सटा होने पर गृहस्वामिनी चंचल स्वभाव की होगीं। अत्यधिक कार्य के चलते वह हमेशा थकी-मांदी सी रहेगी। जिससे भवन में दरीद्रता का वास होता है। उत्तर-पश्चिम दिशा की ओर रसोई का स्टोर रूम, रेफ्रिजरेटर और बर्तन आदि रखने का स्थान न बनाएं। रसोईघर के दक्षिण-पश्चिम भाग में खाद्यान्न - गेहूं, आटा, चावल आदि रखें। रसोई के मध्य में कभी भी गैस, चूल्हा आदि न जलाएं और न ही रखें। कभी भी उत्तर दिशा की ओर मुख करके भोजन न बनाएं। बस कुछ दिनों की बात है, ऐसा सोचकर किसी भी परिस्थिती में उत्तर दिशा में चूल्हा रखकर भोजन पकाने की चेष्टा न करें। घर में आग्नेय कोण कौन सा होता है?आग्नेय कोण पूर्व और दक्षिण दिशा के मध्य स्थान को कहते हैं। आग्नेय दिशा के स्वामी अग्निदेव हैं। इस दिशा का आधिपत्य शुक्र ग्रह के पास है। इस दिशा में सूर्य की किरणें सर्वाधिक पड़ती हैं जिससे यह दिशा अन्य दिशाओं से गर्म रहती हैं।
आग्नेय कोण कैसे पहचाने?दक्षिण और पूर्व के मध्य का कोणीय स्थान आग्नेय कोण के नाम से जाना जाता है। आग्नेय कोण का मूल तत्व अग्नि है और इस दिशा को गर्म दिशा भी माना जाता है। शुक्र ग्रह इस दिशा के स्वामी हैं। यह स्थान अग्नि देवता का प्रमुख स्थान है इसलिए रसोई या अग्नि संबंधी (इलैक्ट्रॉनिक उपकरणों आदि) के रखने के लिए विशेष स्थान है।
अग्नि कोण में क्या नहीं होना चाहिए?आग्नेय कोण में ये चीजें रखना हैं अशुभ
इसलिए इस दिशा में जल से संबंधित चीजों को नहीं रखना चाहिए। क्योंकि यह एक-दूसरे के विरोधी तत्व है। इसलिए इस दिशा में बोरिंग, हैंडपंप, पानी की टंकी, नल नहीं लगाना चाहिए। इसके अलावा अंडरग्राउंड वाटर टैंक भी इस दिशा में नहीं बनवाना चाहिए।
अग्नि कोण में बेडरूम होने से क्या होता है?आग्नेय के कमरे को शयन-कक्ष के लिये उपयोग करने वाले पुरुष वर्ग को अग्नि-तत्व से संबंधित उच्च रक्तचाप, डायबिटीज, हृदयघात इत्यादि बीमारियाँ पैदा होने की प्रबल संभावना एवं स्वभाव उत्तेजित प्रवृत्ति में परिवर्तित होने के साथ पति-पत्नी के आपस में वैचारिक मतभेद उत्पन्न होते हैं।
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