सामाजिक व्यवस्था से आप क्या समझते? - saamaajik vyavastha se aap kya samajhate?

चेतावनी: इस टेक्स्ट में गलतियाँ हो सकती हैं। सॉफ्टवेर के द्वारा ऑडियो को टेक्स्ट में बदला गया है। ऑडियो सुन्ना चाहिये।

हाय दोस्तों कैसे हो आप जैसे समाज समाज सामाजिक परिवर्तन होते हमारे समझ में नहीं आते हैं हम किसी के पास वाले व्यक्ति आपने 1 तारीख कॉन्ट्रैक्ट पूरा साथ नहीं कर सकते जैसे हम दोनों में होता है कि अपने मामा को के शादी कर लेते हैं और समाज में होने वाली हर गतिविधि पर बहुत सारी ऐसी चीजें

hi doston kaise ho aap jaise samaj samaj samajik parivartan hote hamare samajh me nahi aate hain hum kisi ke paas waale vyakti aapne 1 tarikh contracts pura saath nahi kar sakte jaise hum dono me hota hai ki apne mama ko ke shaadi kar lete hain aur samaj me hone wali har gatividhi par bahut saari aisi cheezen

हाय दोस्तों कैसे हो आप जैसे समाज समाज सामाजिक परिवर्तन होते हमारे समझ में नहीं आते हैं हम

  10      

सामाजिक व्यवस्था से आप क्या समझते? - saamaajik vyavastha se aap kya samajhate?
 348

सामाजिक व्यवस्था से आप क्या समझते? - saamaajik vyavastha se aap kya samajhate?

सामाजिक व्यवस्था से आप क्या समझते? - saamaajik vyavastha se aap kya samajhate?

सामाजिक व्यवस्था से आप क्या समझते? - saamaajik vyavastha se aap kya samajhate?

सामाजिक व्यवस्था से आप क्या समझते? - saamaajik vyavastha se aap kya samajhate?

Vokal App bridges the knowledge gap in India in Indian languages by getting the best minds to answer questions of the common man. The Vokal App is available in 11 Indian languages. Users ask questions on 100s of topics related to love, life, career, politics, religion, sports, personal care etc. We have 1000s of experts from different walks of life answering questions on the Vokal App. People can also ask questions directly to experts apart from posting a question to the entire answering community. If you are an expert or are great at something, we invite you to join this knowledge sharing revolution and help India grow. Download the Vokal App!

सामाजिक व्यवस्थाओं का विश्लेषण मूल समाजशास्त्रीय ज्ञान की पूर्व शर्त है ताकि यह जाना जा सके कि समाज के संगठन का स्वरूप व उसके परिवर्तन की दिशा क्या है? समाज व सम्बद्ध सामाजिक व्यवस्थाएं केवल व्यक्तियों की समष्टि नहीं हैं अपितु सम्बन्धों व परिसीमाओं की गत्यात्मक जटिलता भी है। समाज में परिवर्तन सामाजिक व्यवस्थाओं की क्रियाशीलता की स्थितियों को बदल देता है, अतः उन्हें अपने को समायोजित करना पड़ता है।

क्या भारतीय समाज में अराजकता और मानकशून्यता की स्थिति उत्पन्न हो रही है?

आज भारतीय समाजशास्त्र के सम्मुख यह अहम् सवाल है जिसका उत्तर देना समाजशास्त्रियों का दायित्व है। हमारे समाज में अन्तर्धार्मिक व अन्तर्जातीय संघर्ष जटिल हुए हैं। राजनीति का धर्मीकरण और धर्म का राजनीतिकरण हो गया है। धर्मनिरपेक्षता के विचार पर प्रहार हो रहा है और साम्प्रदायिकता की धारणाएं नवीन संदर्भों के साथ विकसित हो रही हैं। ऐसा लगता है कि आज समाज में एकता और अखण्डता का आधार टूट रहा है। इन स्थितियों के बावजूद भी विकास और आधुनिकीकरण सम्बन्धी हमारी आकांक्षाएं मिथ्या सिद्ध नहीं हुई हैं। परम्परागत सामाजिक व्यवस्थाएं पूर्णरूपेण विघटित नहीं हुई हैं। इन्होंने केवल पुराने आधार पर परिचालन न कर सकने के कारण स्वयं को नये परिवेश में अनुकूलित किया है।

इस पुस्तक में भारतीय समाज में उप-व्यवस्थाओं के समायोजन की प्रकृति को व सामाजिक परिवर्तन के प्रतिमानों को आंकने का प्रयास किया गया है। पुस्तक परिवर्तन सम्बन्धी प्रवृत्तियां इंगित करती है तथा उन आकस्मिक, अल्पकालिक व अव्याख्येय परिवर्तनों की भी पहचान करती है जिन्हें मतभेद समर्थक व विच्छेदकारी प्रवृत्तियों के रूप में अंकित किया गया है।


Contents

• हिन्दू दर्शन: निरन्तरता और परिवर्तन

• जातिः अवधारणा, उत्पत्ति एवं संरचना

• जाति की परिवर्तित संरचना एवं भविष्य

• अन्तर्जातीय एवं अन्तःजातीय सम्बन्ध और जाति संघर्ष

• संस्कृतिकरण तथा पश्चिमीकरण

• सामाजिक परिवर्तन और विकास

• आर्थिक विकास तथा सामाजिक परिवर्तन


About the Author / Editor

राम आहूजा राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर के समाजशास्त्र विभाग के प्रोफेसर व विभागाध्यक्ष एवं भारतीय समाज विज्ञान शोध परिषद (आई.सी.एस.एस.आर.) के सीनियर फेलो रहे। दीर्घ शैक्षणिक व शोध अनुभव के आधार पर उनकी अनेक पुस्तकें और शोध प्रबन्ध प्रकाशित हो चुके हैं। विभिन्न राष्ट्रीय और प्रादेशिक अकादमियों और प्रशासकीय प्रशिक्षण संस्थाओं में वे दो दशकों तक अतिथि वक्ता रहे। इनकी लिखी पुस्तक ‘अपराधशास्त्र’ पर वर्ष 1984 में गोविन्दवल्लभ पन्त पुरस्कार एवं वर्ष 1998 में कलकत्ता विश्वविद्यालय द्वारा ‘वायलेंस अगेन्सट वुमैन’ पर सुप्रभा देब गोल्ड मेडल से सम्मानित किया गया।

इसे सुनेंरोकेंव्यक्ति और समाज एक दूसरे के साथ सामंजस्यपूर्ण संबंध में बंधे हों, यही किसी सामाजिक व्यवस्था का सार है। सामाजिक व्यवस्था की अवधारणा के पीछे एक अत्यंत महत्वपूर्ण और सवालिया मान्यता यह है कि सामाजिक व्यवस्था भी लगभग प्राकृतिक व्यवस्था की तरह ही एक संतुलित ‘आत्म-नियंत्रणकारी’ और ‘आत्म-संतुलनकारी’ व्यवस्था है।

सामाजिक व्यवस्था क्या है?

इसे सुनेंरोकेंAnswer with Explanation: सामाजिक व्यवस्था का अर्थ : समाजिक व्यवस्था का अर्थ है किसी विशेष प्रकार के सामाजिक संबंधों , मूल्यों तथा परिमापों को तीव्रता से बना कर रखना तथा उनको दोबारा दोबारा बनाते रहना अथवा दोबारा करते रहना।

इसे सुनेंरोकेंसामाजिक व्यवस्था (SocialOrder) ः I) समाज में संस्थाओं का विन्यास, II) भूमिकाओं और प्रस्थितियों का विन्यास, III) इस ‘ढांचे’ का सुचारू, आत्मनियंत्रित, संतुलित और समन्वित ढंग से कार्य करना। धर्म, सामाजिक व्यवस्था, स्थिरता और बदलाव वे चार अवधारणात्मक माध्यम हैं जिन की मदद से इस इकाई को समझा जा सकता है।

पढ़ना:   टी20 मैच की शुरुआत कब हुई?

मैक्स वेबर ने कौन सा सिद्धांत दिया था?

इसे सुनेंरोकेंवेबर के मतानुसार समाजशास्त्र को फर्टेहन (जर्मन भाषा का शब्द जिसका अर्थ है समझना) अर्थात अंतर्दृष्टि या व्यक्तिगत बोध की पद्धति अपनानी चाहिए। फस्र्टेहन पद्धति के अनुसार समाजशास्त्री को कर्ता की भावनाओं और उसकी परिस्थिति की समझ की व्याख्या करने का प्रयास कर उसकी अभिप्रेरणा की कल्पना करनी होगी।

इसे सुनेंरोकें“एक सामाजिक प्रणाली में व्यक्तिगत अभिनेताओं की बहुलता होती है जो एक-दूसरे के साथ एक ऐसी स्थिति में बातचीत करते हैं जिसमें कम से कम एक भौतिक या पर्यावरणीय पहलू होता है, ऐसे अभिनेता जो ‘संतुष्टि के अनुकूलन’ में एक प्रवृत्ति के संदर्भ में प्रेरित होते हैं और जिनकी स्थितियों में उनके संबंध होते हैं।

सामाजिक व्यवस्था क्या है समझाइए?

इसे सुनेंरोकेंसमाजिक व्यवस्था का अर्थ है किसी विशेष प्रकार के सामाजिक संबंधों , मूल्यों तथा परिमापों को तीव्रता से बना कर रखना तथा उनको दोबारा दोबारा बनाते रहना अथवा दोबारा करते रहना। विस्तृत शब्दों में सामाजिक व्यवस्था को दो ढंगों से प्राप्त किया जा सकता है।

पढ़ना:   जब मैं उठता हूं तो मेरे पैरों के नीचे दर्द क्यों होता है?

ग्रामीण क्षेत्रों की सामाजिक व्यवस्था की विशेषता क्या है?

इसे सुनेंरोकेंगाँव की सामाजिक संरचना परंपरागत तरीकों से चालित होती है। इसलिए सामाजिक संस्थाएँ जैसे-जाति, धर्म तथा सांस्कृतिक एवं परंपरागत सामाजिक प्रथाओं के दूसरे स्वरूप यहाँ अधिक प्रभावशाली हैं। इन कारणों से जब तक कोई विशिष्ट परिस्थितियाँ न हों, गाँवों में परिवर्तन नगरों की अपेक्षा धीमी गति से होता है।

सामाजिक संगठन क्या है इसकी प्रमुख विशेषताएं बताइए?

इसे सुनेंरोकेंसामाजिक संगठन व्यक्तियों का ऐसा संग्रह है जिनके सम्मिलित उद्देश्य होते है। सदस्यों के बीच कार्य का बँटवारा होता है, संगठन के कुछ निश्चित नियम होते हैं जिनके आधार पर व्यक्ति पर व्यक्ति अपनी भूमिका का निर्वाह करते है। समाज का निर्माण करने वाली अनेक इकाइयां होती हैं। उनके निश्चित पद तथा कार्य होते हैं।

सामाजिक विकास क्या है और इसकी विशेषताओं पर चर्चा?

इसे सुनेंरोकें1) सामाजिक विकास की सबसे पहली और महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि, सामाजिक परिणामस्वरूप सरल सामाजिक व्यवस्था जटिल सामाजिक व्यवस्था में परिवर्तित हो जाती है। 2) सामाजिक विकास के फलस्वरूप सामाजिक गतिशीलता में वृद्धि हो जाती है। 3) सामाजिक विकास के कारण धर्म के प्रभाव में ह्रास होने लगता है।

पढ़ना:   समांतर चतुर्भुज और समचतुर्भुज में क्या अंतर है?

ग्रामीण समाज से आप क्या समझते हैं ग्रामीण समाज की विशेषताएं लिखिए?

इसे सुनेंरोकेंग्रामीण लोग जीवन यापन के लिए प्रकृति पर निर्भर होते हैं। इनके प्रमुख कार्य कृषि आधारित व्यवसाय, पशुपालन, शिकार, मछली मारना और भोजन की व्यवस्था करना आदि होते हैं। भूमि जंगल, मौसम आदि प्रकृति के अंग होते हैं और वे दशाएँ ग्रामीण जीवन को प्रभावित करती है।

ग्रामीण समाज से आप क्या समझते हो समाज की प्रमुख विशेषताएं लिखिए?

इसे सुनेंरोकेंग्रामीण समाज की सबसे मुख्य विशेषता कृषि है ग्रामीण समाज की अर्थव्यवस्था कृषि पर ही टिकी है। हांलाकि गांव मे अन्य व्यवसाय भी होते है लेकिन 70 से 75 प्रतिशत लोग प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कृषि पर ही आशर्ति होते है। ग्रामीण समाज में संयुक्त परिवारों की प्रधानता पाई जाती है, यहां एकल परिवारों का आभाव होता है।

सामाजिक व्यवस्था से आप क्या समझते हैं?

सामाजिक व्यवस्था वह स्थिति या अवस्था हैं जिसमें सामाजिक संरचना का निर्माण करने वाले विभिन्न अंग या इकाइयां सांस्कृतिक व्यवस्था के अंतर्गत निर्धारित पास्परिक प्रकार्यात्मक संबंध के आधार पर सम्बध्द समग्रता की ऐसी सन्तुलित स्थिति उत्पन्न करते हैं जिससे मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति तथा सामाजिक लक्ष्यों की प्राप्ति संभव होती ...

सामाजिक व्यवस्था क्या है इसके तत्वों का वर्णन कीजिए?

सामाजिक व्यवस्था (SocialOrder) ः I) समाज में संस्थाओं का विन्यास, II) भूमिकाओं और प्रस्थितियों का विन्यास, III) इस 'ढांचे' का सुचारू, आत्मनियंत्रित, संतुलित और समन्वित ढंग से कार्य करना। धर्म, सामाजिक व्यवस्था, स्थिरता और बदलाव वे चार अवधारणात्मक माध्यम हैं जिन की मदद से इस इकाई को समझा जा सकता है।

सामाजिक व्यवस्था के प्रकार क्या है?

वेबर के अनुसार सामाजिक व्यवस्था तीन प्रकार की होती है। मैक्स वेबर सामाजिक आर्थिक तथा वैधानिक व्यवस्थाओं में अंतर मानते हैं। सामाजिक व्यवस्था तथा आर्थिक व्यवस्था दोनों ही प्रायः समान रूप से वैधानिक व्यवस्था से संबंधित होती है। सामाजिक व्यवस्था तथा आर्थिक व्यवस्था एक नहीं है।

सामाजिक व्यवस्था से क्या तात्पर्य है इसकी मुख्य विशेषताओं की व्याख्या करें?

दुबे के अनुसार सामाजिक व्यवस्था सामाजिक संरचना की, विभिन्न नियामक संस्कृतियों द्वारा निर्धारित प्रकार्यात्मक संबंध के फलस्वरूप उत्पन्न होने वाली वह गतिशील स्थिति या अवस्था है, जिसके कारण मानवीय आवश्यकता की पूर्ति तथा सामाजिक लक्ष्यों की प्राप्ति संभव होती है।”