कृष्ण ने अर्जुन का साथ क्यों दिया? - krshn ne arjun ka saath kyon diya?

जीवन मंत्र डेस्क. हिंदू पंचांग के अनुसार, मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को गीता जयंती का पर्व मनाया जाता है। इस बार ये पर्व 8 दिसंबर, रविवार को है। एक-दूसरे को मारने का प्रण ले चुके कौरवों और पांडवों के बीच युद्ध शुरू होने से पहले योगीराज भगवान श्रीकृष्ण ने 18 अक्षौहिणी सेना के बीच मोह में फंसे और कर्म से विमुख अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था। श्रीकृष्ण ने अर्जुन को छंद रूप में यानी गाकर उपदेश दिया, इसलिए इसे गीता कहते हैं। चूंकि उपदेश देने वाले स्वयं भगवान थे, अत: इस ग्रंथ का नाम भगवद्गीता पड़ा। 

  • गीता माहात्म्य पर श्रीकृष्ण ने पद्म पुराण में कहा है कि भवबंधन (जन्म-मरण) से मुक्ति के लिए गीता अकेले ही पर्याप्त ग्रंथ है। गीता का उद्देश्य ईश्वर का ज्ञान होना माना गया है। भगवद्गीता में कई विद्याओं का वर्णन है, जिनमें चार प्रमुख हैं- अभय विद्या, साम्य विद्या, ईश्वर विद्या और ब्रह्म विद्या।
  • माना गया है कि अभय विद्या मृत्यु के भय को दूर करती है। साम्य विद्या राग-द्वेष से छुटकारा दिलाकर जीव में समत्व भाव पैदा करती है। ईश्वर विद्या के प्रभाव से साधक अहंकार और गर्व के विकार से बचता है। ब्रह्म विद्या से अंतरात्मा में ब्रह्मा भाव को जागता है।

  • गीता में दिए गए श्रीकृष्ण के ज्ञान में छुपे मैनेजमेंट सूत्र

न हि कश्चित्क्षणमपि जातु तिष्ठत्यकर्मकृत्।  कार्यते ह्यश: कर्म सर्व प्रकृतिजैर्गुणै:।। 

अर्थ - कोई भी मनुष्य क्षण भर भी कर्म किए बिना नहीं रह सकता। सभी प्राणी प्रकृति के अधीन हैं और प्रकृति अपने अनुसार हर प्राणी से कर्म करवाती है। 

मैनेजमेंट सूत्र - परिणामों के डर से अगर कुछ नहीं करेंगे, तो ये मूर्खता है। खाली बैठना भी कर्म ही है, जिसका परिणाम आर्थिक और समय की हानि के रूप में मिलता है। सारे जीव प्रकृति के अधीन हैं, वो हमसे अपने अनुसार कर्म करवा ही लेगी। हमें क्षमता और विवेक के आधार पर कर्म करते रहना चाहिए। 

त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं नाशनमात्मनः।  कामः क्रोधस्तथा लोभस्तरमादेतत्त्रयं त्यजेत्।। 

अर्थ - काम, क्रोध व लोभ। यह तीन प्रकार के नरक के द्वार अर्थात अधोगति में ले जाने वाले हैं, इसलिए इन तीनों को त्याग देना चाहिए। 

मैनेजमेंट सूत्र - काम यानी इच्छाएं, गुस्सा व लालच ही सभी बुराइयों के मूल कारण हैं। भगवान श्रीकृष्ण ने इन्हें नरक का द्वार कहा है। अगर हमें किसी लक्ष्य को पाना हैं तो ये 3 अवगुण छोड़ देना चाहिए। ये अवगुण हमारे मन में रहेंगे, हमारा मन अपने लक्ष्य से भटकता रहेगा। 

तानि सर्वाणि संयम्य युक्त आसीत मत्परः  वशे हि यस्येन्द्रियाणि तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता।। 

अर्थ - श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि मनुष्यों को चाहिए कि वह संपूर्ण इंद्रियों को वश में करके दृढ़तापूर्वक स्थित हो, क्योंकि जिस पुरुष की इंद्रियां वश में होती हैं, उसकी ही बुद्धि स्थिर होती है। 

मैनेजमेंट सूत्र - जो मनुष्य इंद्रियों पर काबू रखता है उसकी बुद्धि स्थिर होती है। जिसकी बुद्धि स्थिर होगी, वह अपने क्षेत्र में बुलंदी की ऊंचाइयों को छूता है और जीवन के कर्तव्यों का निर्वाह पूरी ईमानदारी से करता है। 

विहाय कामान् य: कर्वान्पुमांश्चरति निस्पृह:।  निर्ममो निरहंकार स शांतिमधिगच्छति।।

अर्थ - जो मनुष्य सभी इच्छाओं व कामनाओं को त्याग कर और अहंकार रहित होकर अपने कर्तव्यों का पालन करता है, उसे ही शांति प्राप्त होती है। 

मैनेजमेंट सूत्र - मन में किसी भी प्रकार की इच्छा व कामना को रखकर मनुष्य को शांति प्राप्त नहीं हो सकती। शांति प्राप्त करने के लिए इच्छाओं को मिटाना होगा। हम जो भी कर्म करते हैं, उसके साथ अपने अपेक्षित परिणाम को साथ में चिपका देते हैं। पसंद के परिणाम की इच्छा हमें कमजोर करती है।

Mahabharat 3rd May Episode online Updates: भगवान कृष्ण के द्वारा मिले ज्ञान और उनके अविनाशी चर्तुरभुजी रूप के दर्श करके अर्जुन को अब यकीन हो गया है कि इस युद्ध में वो अपनों के विरुद्ध नहीं बल्कि अधर्म के विरुद्ध युद्ध कर रहा हूं। भगवान ने अर्जुन से कहा मेरी ही भक्ति में मन को लगा जो चिंतन करे मेरा ही सदा निरंतर जो मुझमें लगे रहते हैं, मैं उनका योग और कार्य दोनों पूर्ण करता हूं। भगवान ने अर्जुन से कहा कर त्याग मोह का तू इस लोग में कर्म कर। सफलता या असफलता जो भी मिले मन को रख दोनों में ही समान है अर्जुन इसी क्षमाता का योग नाम।

इससे पूर्व भगवान श्री कृष्ण के ज्ञान से अर्जुन के मन में युद्ध से पूर्व पैदा होने वाली तमाम शंका धीरे-धीरे खत्म हो रही हैं। भगवान ने अर्जुन से कहा कि ये युद्ध किसी के स्वार्थ का हिस्सा नहीं है बल्कि समाज के कल्याण हेतु इस युद्ध का होना अनिवार्य है। श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा कर्मयोगी बनो पार्थ इसी में सबका कल्याण हैं। यदि तुम अपने कर्तव्य के पालन से भागोगे तो फिर अपने कर्तव्यों का पालन कौन करेगा।समस्त संसार मेरी इच्छा अनुसार चलता है, किंतु फिर भी मैं कर्म करता हूं। क्योंकि जिस दिन मैंने कर्म करना छोड़ दिया, तो ये कर्मचक्र रुक जाएगा और कोई भी इसका निर्वाह नहीं करेगा।

वहीं इससे पूर्व महाभारत की रणभूमि सज चुकी है, अपने सामने अपने परिवार के बड़ों को युद्ध भूमि में देख अर्जुन परेशान हो गया। इसके बाद भगवान श्री कृष्ण ने उसे समझाया ये युद्ध धर्म और अधर्म के बीच है और धर्म के मार्ग में आने वाला प्रत्येक व्यक्ति इस संसार के लिए उस कांटे की भांति है जो कमल तक नहीं पहुंचने देता। रिश्ते नातों से बढ़कर धर्म है। आज तुम्हारे पितामह भीष्म और गुरुद्रोण जैसे योद्धा धर्म के मार्ग को रोक रहे हैं। ऐसे में शस्त्र उठा कर न्याय और धर्म की स्थापना के लिए युद्ध अनिवार्य है।

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वहीं अपनों के साथ युद्ध करने से पूर्व अर्जुन वासुदेव कृष्ण से कहते हैं कि वो अपने ही परिवार के लोगों से युद्ध नहीं कर पाएंगे। वह युद्ध के मैदान में अपने लोगों का वध नहीं कर सकते। अर्जुन कहते हैं कि इन पर हमला करने से अच्छा है कि मैं इन हाथों से भिक्षा मांगू। युद्ध भूमि में अपने परिजनों को देख अर्जुन बहुत ज्यादा व्याकुल हो जाते हैं। अर्जुन वासुदेव कृष्ण से कहते हैं कि उनके लिए अब युद्ध करना संभव नही है। अर्जुन कृष्ण से विनती करते हैं कि ऐसे स्थिति में वो ही कोई मार्ग दिखाएं।

 

 

Live Blog

Highlights

20:01 (IST)03 May 2020

अर्जुन के गांडीव उठाने पर धृतराष्ट्र हुआ उदास

भगवान श्री कृष्ण के गीता के उपदेश सुनने के बाद तथा उनका अविनाशी रूप देखने के बाद, अर्जुन ने उनकी बात मानके हुए गांडीव को उठा लिया है। इसकी खबर जब संजय ने धृतराष्ट्र को दी तो वो चिंतित होकर कह रहा है, कि संजय ये देख कर मुझे बताओ की अर्जुन पहला बाण किस पर चला रहा है।

19:53 (IST)03 May 2020

भगवान के वचनों को सुन अर्जुन ने उठाया गांडीव

भगवान के विराट रूप के दर्शन करने के पश्चात और उनसे गीता के उपदेश सुनने के बाद अर्जुन ने युद्ध करने का निर्णय लिया है। भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा मेरी शरण में आजाओ पार्थ गांडीव उठाओ और युद्ध करो। इसके बाद अर्जुन ने भगवान के चरण स्पर्श करके अपना धनुष उठा लिया है।

19:51 (IST)03 May 2020

भगवान ने अर्जुन से कहा मुझमें मन लगाओ

भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा सारे रिश्तों और दूसरे मार्गों को त्यागों पार्थ और मेरी शरण में आजाओ। जो मेरी शरण में आता है मैं उसे सभी पापों से मुक्त करके अपनी भक्ति प्रदान करता हूं। वंदना करनी है तो मेरी करो, ध्यान लगाना है तो मुझमें लगाओ। 

19:49 (IST)03 May 2020

भगवान का विराट रूप देख मिटे अर्जुन के सारे संशय

भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को अपने विराट रूप के दर्शन कराए जिसके बाद अर्जुन के मन के सभी संशय मिट गए हैं। अर्जुन ने भगवान से क्षमा मांगते हुए कहा कि आप जैसा कहेंगे मैं वैसा ही करूंगा। मेरे मन के सारे संशय मिट गए हैं। इसके बाद भगवान ने अर्जुन से कहा भक्त और भगवान का हृदय का संबंध होता है, उसमें क्षमा याचना जैसे शब्द नहीं आते। इसके अलावा भगवान ने कहा कि मेरी शरण में आजाओ पार्थ तुम्हें मोक्ष की प्राप्ति अवश्य होगी। 

19:40 (IST)03 May 2020

भगवान का दिव्य रूप देख डरे अर्जुन

भगवान श्री कृष्ण का चर्तुभुज रूप को देख कर अर्जुन ने उनके दर्शन किए। इसके बात वो भगवान के इस अविनाशी रूप को देख कर भयभीत हो गए और भगवान से उनके वासुदेव वाले मनुष्य रूप में वापस लौट आने की प्रार्थना की। जिसके बाद भगवान अपने सामान्य रूप में लौट आए।

19:34 (IST)03 May 2020

भगवान ने अर्जुन को अपने चर्तुभुजी रूप के दर्शन कराए

भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को गीता के उपदेश देने के बाद अपने चर्तुभुज रूप के दर्शन कराए हैं। अपने अविनाशी स्वरूप के दर्शन के लिए भगवान ने अर्जुन को दिव्य दृष्टि प्रदान की है।

19:25 (IST)03 May 2020

भगवान ने अर्जुन से कहा मैं सबकुछ हूं

भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को बताया कि मैं सर्वत्र हूं। मैं अविनाशी हूं परम पिता हूं। सूर्य और चंद्र से पुरातन हूं और किसी वृक्ष पर खिली कली से भी ज्यादा नवीनतम हूं। इसके बाद भगवान ने कहा मैं सबकुछ हूं और मैं कुछ भी नहींं। भगवान ने कहा मै ही सबसे बड़ा ऋषि हूं और मैं ही सबसे बड़ा धर्म भी, मैं ज्ञान हूं बुद्धि हूं और तेज भी मैं ही हूं। भगवान ने अर्जुन से कहा मैं तुम में हूं और दुर्योधन में भी मैं ही हूं। मैं ना नर हूं ना स्त्री हूं और ना ही नपुंसक, ये युद्ध मेरी ही मर्जी से हो रहा है। इसका निर्णय भी मेरी ही मर्जी से ही आएगा। तुम सिर्फ शरीर देख रहे हो मैं आत्मा की बात कर रहा हूं। ये सब मेरी इच्छा अनुसार जी रहे हैं और मृत्यु को प्राप्त कर मुझमें ही लौट आएंगे। मेरी शरण में आ जाओ पार्थ तुम्हें मुक्ति का मार्ग मिल जाएगा।

19:18 (IST)03 May 2020

भ्रमित होना मनुष्य का ज्ञान भटकना होता है।

भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को बताया कि भ्रमित मनुष्य का ज्ञान अंधकार में डूब जाता है। ज्ञान प्रकाश है उसे प्राप्त करो। यदि ज्ञान की प्राप्ति चाहते हो और मुझे अपना प्रिय मानते हो तो युद्ध करो पार्थ। अपने मन, अपने तन और अपनी इंद्रियों को वश में करने वाले पुरुष को परमात्मा की प्राप्ति होती है।

19:07 (IST)03 May 2020

श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा कि मैं ही अविनाशी परमात्मा हूं

श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा मै ही अविनाशी परमात्मा हूं। जब जब अधर्म की मात्रा बढ़ती है, जब जब धर्म की हानि होती है मैं योग माया से अधर्म के नाश के लिए और धर्म की पुर्नस्थापना के लिए जन्म लेता हूं। ऐसा युगों युगों से होता आया है और आगे भी होता रहेगा। मेरी प्राफ्ति ही परमात्मा की प्राप्ति है अर्जुन मेरी शरण में आजाओ और निष्काम होकर युद्ध करो।

19:03 (IST)03 May 2020

भगवान ने बताया जीवन जीने के दो ही तरीके कर्मयोग और ज्ञानयोग

भगवना श्री कृष्ण ने अर्जुन को समझाया कि जीवन जीने के दो ही तरीके हैं। कर्म योग और ज्ञान योग। लेकिन ज्ञान योग वाले व्यक्ति को भी कर्म तो करना ही होता है। व्यक्ति को समाज के कल्याण के लिए कर्म तो करना ही चाहिए। तुम व्यक्तिगत लाभ के लिए युद्ध नहीं करना चाहते हो क्योंकि तुम्हारे सामने अपने खड़े हैं। लेकिन तुम ये भूल रहे हो कि तुम्हारा कर्तव्य समाज के लिए है और तुम्हारे अपने इस वक्त समाज के कल्याण कार्य में बाधा बन रहे हैं।

19:01 (IST)03 May 2020

भगवान ने अर्जुन से कहा ज्ञानी बनो

भगवना श्री कृष्ण अर्जुन को गीता के उपदेश के जरिए ज्ञान दे रहे हैं। इस दौरान भगवान ने अर्जुन से कहा कि ज्ञानी बनो कर्म करो फल की चिंता नमत करो। तमाम रिश्ेत नातों को दरकिनार करके केवल धर्म के लिए कार्य में जुट जाओ। क्योंकि धर्म ही सच है उसकी रक्षा करना प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है।

18:55 (IST)03 May 2020

भगवान ने अर्जुन से कहा नाश से पहले विवेक मर जाता है

भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा कि अपनी इंद्रियों को अपने वश में रखो। तुम धर्म के लिए कर्म करो अपनी चेतना को जगाओ, क्योंकि जब नाश मनुष्य पर छाता है तो पहले विवेक मर जाता है। 

18:50 (IST)03 May 2020

भगवान ने अर्जुन से कहा ये युद्ध लाभ हानि से बढ़कर है

भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को युद्ध के लिए समझा रहे हैं। इस दौरान अर्जुन ने कहा मुझे से इस युद्ध में लाभ हानि कुछ भी नहीं चाहिए। भगवना ने कहा कि ये युद्ध लाभ हानि और राज्य से बढ़कर है। इसके अलावा भगवान ने कहा ये युद्ध धर्म के लिए है और समाज के कल्याण के लिए है। इस युद्ध में तुम सिर्फ कर्म करो फल क्या मिलेगा उसकी चिंता मत करो सिर्फ और सिर्फ कर्म करो

18:44 (IST)03 May 2020

मारने और मरने का सवाल व्यर्थ है अर्जुन

वासुदेव अर्जुन को समझाते हैं और कहते हैं कि वर्तमान जीवन, संपूर्ण जीवन नहीं हैं। जो सुख और दुख को एक समान समझे वो ही मोक्ष का अधिकारी है। मारने और मरने की चिंता से हट जाओ। जन्म तो जीव का होता है आत्मा का नहीं और अगर आत्मा का जन्म नहीं होता तो उसका अंत कैसे हो सकता है। तो मारने और मरने का प्रशन व्यर्थ है।  

18:33 (IST)03 May 2020

अर्जुन ने श्री कृष्ण से की विनती

युद्ध भूमि में अपने परिजनों को देख अर्जुन बहुत ज्यादा व्याकुल हो जाता है। अर्जुन वासुदेव कृष्ण से कहता है कि उसके लिए अब युद्ध करना संभव नही है। अर्जुन कृष्ण से विनती करता है कि ऐसे स्थिति में वो ही उसको कोई मार्ग दिखाएं क्योंकि फिलहाल उसे कुछ समझ नही आ रहा है। वासुदेव कृष्ण अर्जुन की टूटते हौंसलो को सहारा प्रदान करते हैं।

13:17 (IST)03 May 2020

भगवान ने अर्जुन को गांडीव उठाने के लिए किया तैयार

भगवान श्री कृष्ण ने गीता के उपदेशों द्वारा अर्जुन को ज्ञान दिया है। जिसके बाद अर्जुन के मन में तनिक बहुत भी संशय  नही रह गया कि धर्म की स्थापना के लिए उसे युद्ध करना ही होगा। भगवान ने अर्जुन से कहा शस्त्र उठाओ और युद्ध करो अर्जुन…

12:59 (IST)03 May 2020

श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा कि मैं ही अविनाशी परमात्मा हूं

श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा मै ही अविनाशी परमात्मा हूं। जब जब अधर्म की मात्रा बढ़ती है, जब जब धर्म की हानि होती है मैं योग माया से अधर्म के नाश के लिए और धर्म की पुर्नस्थापना के लिए जन्म लेता हूं। ऐसा युगों युगों से होता आया है और आगे भी होता रहेगा। मेरी प्राफ्ति ही परमात्मा की प्राप्ति है अर्जुन मेरी शरण में आजाओ और निष्काम होकर युद्ध करो।

12:49 (IST)03 May 2020

धृतराष्ट्र डरा

श्री कृष्ण की बात सुनकर संजय और धृतराष्ट्र भी चौंक गए हैं। धृतराष्ट्र डर कर रहे हैं कि कहीं कृष्ण की बात मानकर अर्जुन युद्ध के लिए तैयार ना हो जाएं। 

12:48 (IST)03 May 2020

धृतराष्ट्र ने संजय से पूछा क्या वासुदेव स्वयं नारायण हैं

धृतराष्ट्र को संजय बैठे बैठे भगवान द्वारा अर्जुन को दिेए जा रहे गीता के उपदेश सुना रहा है। इस दौरान अर्जुन से भगवान ने कहा कि तीनो लोकों में ऐसा कुछ नही है जिसे मैं चाहूं और पा ना सकूं। लेकिन फिर भी मैं कर्म करता हूं। ये सुनकर धृतराष्ट्र भयभीत हो गया और उसने संजय से पूछा ये वासुदेव क्या कह रहे हैं ये तो साक्षात भगवान नारायण के अलावा कोई नहीं कह सकता है। इसके बाद संजय ने कहा आप बिल्कुल ठीक कह रहे हैं ये तो तीनों लोकों में भगवान श्री नारायण के सिवा कोई बोल ही नहीं सकता।

12:39 (IST)03 May 2020

भगवान ने बताया जीवन जीने के दो ही तरीके कर्मयोग और ज्ञानयोग

भगवना श्री कृष्ण ने अर्जुन को समझाया कि जीवन जीने के दो ही तरीके हैं। कर्म योग और ज्ञान योग। लेकिन ज्ञान योग वाले व्यक्ति को भी कर्म तो करना ही होता है। व्यक्ति को समाज के कल्याण के लिए कर्म तो करना ही चाहिए। तुम व्यक्तिगत लाभ के लिए युद्ध नहीं करना चाहते हो क्योंकि तुम्हारे सामने अपने खड़े हैं। लेकिन तुम ये भूल रहे हो कि तुम्हारा कर्तव्य समाज के लिए है और तुम्हारे अपने इस वक्त समाज के कल्याण कार्य में बाधा बन रहे हैं।

12:30 (IST)03 May 2020

भगवान ने अर्जुन से कहा ज्ञानी बनो

भगवना श्री कृष्ण अर्जुन को गीता के उपदेश के जरिए ज्ञान दे रहे हैं। इस दौरान भगवान ने अर्जुन से कहा कि ज्ञानी बनो कर्म करो फल की चिंता नमत करो। तमाम रिश्ेत नातों को दरकिनार करके केवल धर्म के लिए कार्य में जुट जाओ। क्योंकि धर्म ही सच है उसकी रक्षा करना प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है।

12:25 (IST)03 May 2020

भगवान ने अर्जुन से कहा नाश से पहले विवेक मर जाता है

भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा कि अपनी इंद्रियों को अपने वश में रखो। तुम धर्म के लिए कर्म करो अपनी चेतना को जगाओ, क्योंकि जब नाश मनुष्य पर छाता है तो पहले विवेक मर जाता है। 

12:20 (IST)03 May 2020

अर्जुन को सीख दे रहे श्री कृष्ण के वचन सुनकर क्रोधित हुए धृतराष्ट्र

अर्जुन को गीता का ज्ञान देकर युद्ध के लिए समझा रहे भगवान श्री कृष्ण की बात संजय सुनकर अपने मुख से धृतराष्ट्र क्रोधित हो गया है। उसने संजय से कहा कि कृष्ण क्यों अर्जुन को युद्ध के लिए भड़का रहे हैं। 

12:10 (IST)03 May 2020

भगवान ने अर्जुन से कहा ये युद्ध लाभ हानि से बढ़कर है

भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को युद्ध के लिए समझा रहे हैं। इस दौरान अर्जुन ने कहा मुझे से इस युद्ध में लाभ हानि कुछ भी नहीं चाहिए। भगवना ने कहा कि ये युद्ध लाभ हानि और राज्य से बढ़कर है। इसके अलावा भगवान ने कहा ये युद्ध धर्म के लिए है और समाज के कल्याण के लिए है। इस युद्ध में तुम सिर्फ कर्म करो फल क्या मिलेगा उसकी चिंता मत करो सिर्फ और सिर्फ कर्म करो

12:04 (IST)03 May 2020

मारने और मरने का सवाल व्यर्थ है अर्जुन

वासुदेव अर्जुन को समझाते हैं और कहते हैं कि वर्तमान जीवन, संपूर्ण जीवन नहीं हैं। जो सुख और दुख को एक समान समझे वो ही मोक्ष का अधिकारी है। मारने और मरने की चिंता से हट जाओ। जन्म तो जीव का होता है आत्मा का नहीं और अगर आत्मा का जन्म नहीं होता तो उसका अंत कैसे हो सकता है। तो मारने और मरने का प्रशन व्यर्थ है।  

12:00 (IST)03 May 2020

अर्जुन ने श्री कृष्ण से की विनती

युद्ध भूमि में अपने परिजनों को देख अर्जुन बहुत ज्यादा व्याकुल हो जाता है। अर्जुन वासुदेव कृष्ण से कहता है कि उसके लिए अब युद्ध करना संभव नही है। अर्जुन कृष्ण से विनती करता है कि ऐसे स्थिति में वो ही उसको कोई मार्ग दिखाएं क्योंकि फिलहाल उसे कुछ समझ नही आ रहा है। वासुदेव कृष्ण अर्जुन की टूटते हौंसलो को सहारा प्रदान करते हैं।

11:57 (IST)03 May 2020

भीष्म पितामह और गुरु द्रोणाचार्य को देखकर अर्जुन पड़ा कमजोर

अर्जुन, भीष्म पितामह और गुरु द्रोणाचार्य को देखकर कमजोर पड़ रहे हैं। वह श्री कृष्णा से कहते हैं कि वो अपने ही परिवार के लोगों से युद्ध नहीं कर पाएंगे। वह युद्ध के मैदान में अपने लोगों का वध नहीं कर सकते। अर्जुन कहते हैं कि इन पर हमला करने से अच्छा है कि मैं इन हाथों से भिक्षा मांगू।

11:49 (IST)03 May 2020

भीष्म पितामह को अर्जुन का बर्ताव समझ नही आया

अर्जुन के रथ को पास आता देख दुर्योधन कहता है कि ये अर्जुन मैदान के बीचों बीच क्यों आ रहा है क्या इसे इस बात से तनिक भी चिंता नही की हमारी सेना में एक से बढ़कर एक महारथी हैं या फिर इसका रथ भटक गया है। दुर्योधन की बात सुनकर कर्ण कहता है कि जिसके सारथी स्वंय वासुदेव हों उसका रथ कैसे भटक सकता है।

श्री कृष्ण ने अर्जुन का साथ क्यों दिया?

कृष्ण ने अर्जुन को कर्म योगी बनने के उपदेश दिए. उन्होंने अर्जुन से कहा-जो भी कर्म करो, यह सोचकर करो कि वह परमात्मा को समर्पित होता है. मृत्यु का भय हर व्यक्ति को होता है. भगवान कृष्ण कहते हैं- संसार के निर्माण के बाद से ही जन्म और मृत्यु का चक्र चलता आ रहा है और यह प्रकृति का नियम है.

कृष्ण ने पांडवों का साथ क्यों दिया?

दरअसल, द्यूत क्रीड़ा एक बुराई है यह जानते हुए भी युधिष्‍ठिर ने इससे खेलने को स्वीकार किया। शकुनि और दुर्योधन ने उन्हें सार्वजनिक रूप से इसका निमंत्रण भेजा था और उस दौर में यह क्रीड़ा क्षत्रियों में ज्यादा प्रचलित थी। दुर्योधन का द्यूत का निमंत्रण भेजने के पीछे मात्र एक मकसद था।

भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को क्या ज्ञान दिया था?

एक-दूसरे को मारने का प्रण ले चुके कौरवों और पांडवों के बीच युद्ध शुरू होने से पहले योगीराज भगवान श्रीकृष्ण ने 18 अक्षौहिणी सेना के बीच मोह में फंसे और कर्म से विमुख अर्जुन को गीता का उपदेश दिया थाश्रीकृष्ण ने अर्जुन को छंद रूप में यानी गाकर उपदेश दिया, इसलिए इसे गीता कहते हैं।

कृष्ण ने अर्जुन को क्या समझाया?

जब भगवान कृष्ण अर्जुन को जीवन के असली रहस्य के बारे में बता रहे थे तब उन्होंने कर्म के बारे में कहा " कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन, मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि " अर्थात कर्म ही पूजा है कर्म ही भक्ति है कर्म को पूरे मन से करना चाहिए और यह सोच कर करना चाहिए मैं जो कह रहा हूं वह परमात्मा को समर्पित है ...