इसे सुनेंरोकेंउत्तरः तिब्बत में कानून व्यवस्था की स्थिति बहुत खराब होने के कारण यात्रियों की स्थिति दयनीय थी। पिस्तौल और बन्दूक का इस्तेमाल यहाँ डाकू लोग प्रायः करते हैं क्योंकि ये आसानी से उपलब्ध हैं। यहाँ की सरकार, खुफिया-विभाग और पुलिस पर ज्यादा खर्चा नहीं करती। भौगोलिक परिस्थितियों के कारण गवाह व सुरक्षा भी उपलब्ध नहीं हैं। Show
तिब्बत में हथियार की कानून की क्या व्यवस्था है? इसे सुनेंरोकेंतथा तिब्बत में हथियार रखने से सम्बंधित कोई क़ानून नहीं था। इस कारण लोग खुलेआम पिस्तौल बन्दूक आदि रखते थे। साथ ही, वहाँ अनेक निर्जन स्थान भी थे, जहाँ पुलिस का प्रबंध नहीं था। तिब्बत में कौन सा कानून नहीं था? इसे सुनेंरोकेंडाकू पहले लोगों को मार देते और फिर देखते कि उनके पास पैसा है या नहीं तथा तिब्बत में हथियार रखने से सम्बंधित कोई कानून नहीं था। इस कारण लोग खुले आम पिस्तौल बन्दूक आदि रखते थे साथ ही, वहाँ निर्जन स्थान भी थे, जहाँ पुलिस का प्रबंध नहीं था तथा कोई दुर्घटना हो जाने पर उसका गवाह भी नहीं मिलता था। पढ़ना: कम time में नींद पूरी कैसे करें? डंडे क्या है?इसे सुनेंरोकें: तिब्बत में डाँड़े खतरनाक जगह है जो समुद्रतल से सत्रह-हज़ार फीट ऊँचाई पर स्थित है। यह सुंदर स्थान निर्जन एवं सुनसान होता है। यहाँ के ऊँचे-ऊँचे पहाड़ों के कोने और नदियों के मोड के अलावा चारों ओर फैली हरियाली इसकी सुंदरता बढ़ाती हैं। तिब्बत में डाकुओं को कानून का भय क्यों नहीं है? इसे सुनेंरोकेंप्रश्न: तिब्बत में डाकुओं को कानून का भय क्यों नहीं है? उत्तर: तिब्बत में हथियारों का कानून न होने से डाकुओं को हथियार लेकर चलने में कोई कठिनाई नहीं होती। यदि वे किसी की हत्या कर देते हैं तो सुनसान इलाकों में हत्या का कोई गवाह नहीं मिलता है और वे आसानी से बच जाते हैं। तिब्बत में पिस्तौल का प्रयोग लाठी डंडे की तरह क्यों होता था? इसे सुनेंरोकेंउत्तर: उस समय तिब्बत में हथियार का कानून न रहने के कारण, वहाँ के लोग बंदूक और पिस्तौल ऐसे रखते थे जैसे कि लोग लाठी रखते हैं। ऐसे में किसी भी ओर से जानलेवा हमले का खतरा बना रहता था। पढ़ना: Fire कितने प्रकार का होता है? तिब्बत में सुरक्षा व्यवस्था कैसी है वहां सबसे खतरनाक जगह कौन सी है और क्यों?इसे सुनेंरोकेंउत्तर- तिब्बत में सबसे खतरनाक स्थान डाँडे है। सोलह सत्ररह हजार फीट ऊँचे स्थान होने कारण दूर तक कोई गाँव नही होता इसलिए डाकुओं का भय बना रहता है। 3. तिब्बत में हथियारों का कानून न होने के कारण यात्रियों को किसप्रकार का भय रहता है? उस समय तिब्बत में कौन सा कानून न होने की बात कही गई है * 1 Point जमीन का शिक्षा का हथियार का? इसे सुनेंरोकेंउस समय के तिब्बत में हथियार का कानून न रहने के कारण यात्रियों को किस प्रकार का भय बना रहता था? लेखक लङ्कोर के मार्ग में अपने साथियों से किस कारण पिछड़ गया? लेखक ने शेकर विहार में सुमति को उनके यजमानों के पास जाने से रोका, परंतु दूसरी बार रोकने का प्रयास क्यों नहीं किया? डाँड़े क्या हैं वे सामान्य जगहों से किस तरह भिन्न हैं? पढ़ना: टीवीएस अल्ट्रासाउंड खली पेट होता है क्या? इसे सुनेंरोकेंSolution. तिब्बत में डाँड़े सबसे खतरनाक जगह हैं। ये सत्रह-अठारह फीट ऊँचाई पर स्थित हैं। यहाँ आसपास गाँव न होने से डाकुओं का भय सदा बना रहता है। डांडिए के देवता का स्थान कहाँ था?इसे सुनेंरोकेंSolution. डाँड़े के देवता का स्थान सर्वोच्च स्थान पर था। उसे पत्थरों के ढेर रंग-बिरंगे कपड़े की झंडियों, जानवरों की सींगों आदि से सजाया गया था। तिब्बत में राहगीरों को किसका डर अधिक रहता था? इसे सुनेंरोकेंइन स्थानों पर डाकुओं का भय रहता है। यात्रियों को डाँड़े जैसे स्थानों पर चढ़ाई करते हुए जाना पड़ता था। उन स्थानों पर उन्हें जान-माल का खतरा रहता था क्योंकि वहाँ डाकुओं का भय था। वहाँ के रास्ते ऊँचे-नीचे थे। NCERT Solutions for Class 9 Hindi Kshitiz Chapter 2 ल्हासा की ओर is part of NCERT Solutions for Class 9 Hindi. Here we have given NCERT Solutions for Class 9 Hindi Kshitiz Chapter 2 ल्हासा की ओर. BoardCBSETextbookNCERTClassClass 9SubjectHindi KshitizChapterChapter 2Chapter Nameल्हासा की ओरNumber of Questions Solved30CategoryNCERT SolutionsNCERT Solutions for Class 9 Hindi Kshitiz Chapter 2 ल्हासा की ओरपाठ्यपुस्तक के प्रश्न-अभ्यास प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3.
प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8.
प्रश्न 9. मेरे विचार से वेशभूषा देखकर व्यवहार करना पूरी तरह ठीक नहीं है। अनेक संत-महात्मा और भिक्षु साधारण वस्त्र पहनते हैं किंतु वे उच्च चरित्र के इनसान होते हैं, पूज्य होते हैं। परंतु यह बात भी सत्य है कि वेशभूषा से मनुष्य की पहचान होती है। हम पर पहला प्रभाव वेशभूषा के कारण ही पड़ता है। उसी के आधार पर हम भले-बुरे की पहचान करते हैं। प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. यह पाठ अन्य विधाओं से इसलिए अलग है क्योंकि यह यात्रा वृत्तांत’ है जिसमें लेखक द्वारा तिब्बत की यात्रा का वर्णन किया गया है। यह उसकी यात्रा का अनुभव है न कि मानव चरित्र का चित्रण जैसा कि अन्य विधाओं में होता है। भाषा अध्ययन प्रश्न 13.
प्रश्न 14. प्रश्न 15. पाठेतर सक्रियता प्रश्न 16. 1930 में तिब्बत में आना-जाना आसान न था। ऐसा राजनैतिक कारणों से था। आज उचित पासपोर्ट के साथ आसानी से यह यात्रा की जा सकती है। अब भिखमंगों के वेश में यात्रा करने की आवश्यकता नहीं है। अब यात्रा के लिए विभिन्न साधनों का प्रयोग किया जा सकता है। आम दिनों में समुद्र किनारे के इलाके बेहद खूबसूरत लगते हैं। समुद्र लाखों लोगों को भोजन देता है और लाखों उससे जुड़े दूसरे कारोबारों में लगे हैं। दिसंबर 2004 को सुनामी या समुद्री भूकंप से उठने वाली तूफ़ानी लहरों के प्रकोप ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि कुदरत की यह देन सबसे बड़े विनाश का कारण भी बन सकती है। प्रकृति कब अपने ही ताने-बाने को उलट कर रख देगी, कहना मुश्किल है। हम उसके बदलते मिजाज को उसका कोप कह लें या कुछ और, मगर यह अबूझ पहेली अकसर हमारे विश्वास के चीथड़े कर देती है और हमें यह अहसास करा जाती है कि हम एक कदम आगे नहीं, चार कदम पीछे हैं। एशिया के एक बड़े हिस्से में आने वाले उस भूकंप ने कई द्वीपों को इधर-उधर खिसकाकर एशिया का नक्शा ही बदल डाला। प्रकृति ने पहले भी अपनी ही दी हुई कई अद्भुत चीजें इंसान से वापस ले ली हैं जिसकी कसक अभी तक है। दुख जीवन को माँजता है, उसे आगे बढ़ने का हुनर सिखाता है। वह हमारे जीवन में ग्रहण लाता है, ताकि हम पूरे प्रकाश की अहमियत जान सकें और रोशनी को बचाए रखने के लिए जतन करें। इस जतन से सभ्यता और संस्कृति का निर्माण होता है। सुनामी के कारण दक्षिण भारत और विश्व के अन्य देशों में जो पीड़ा हम देख रहे हैं, उसे निराशा के चश्मे से न देखें। ऐसे समय में भी मेघना, अरुण और मैगी जैसे बच्चे हमारे जीवन में जोश, उत्साह और शक्ति भर देते हैं। 13 वर्षीय मेघना और अरुण दो दिन अकेले खारे समुद्र में तैरते हुए जीव-जंतुओं से मुकाबला करते हुए किनारे आ लगे। इंडोनेशिया की रिजा पड़ोसी के दो बच्चों को पीठ पर लादकर पानी के बीच तैर रही थी कि एक विशालकाय साँप ने उसे किनारे का रास्ता दिखाया। मछुआरे की बेटी मैगी ने रविवार को समुद्र का भयंकर शोर सुना, उसकी शरारत को समझा, तुरंत अपना बेड़ा उठाया और अपने परिजनों को उस पर बिठा उतर आई समुद्र में, 41 लोगों को लेकर। महज 18 साल की जलपरी चल पड़ी पगलाए सागर से दो-दो हाथ करने। दस मीटर से ज्यादा ऊँची सुनामी लहरें जो कोई बाधा, रुकावट मानने को तैयार नहीं थीं, इस लड़की के बुलंद इरादों के सामने बौनी ही साबित हुईं। जिस प्रकृति ने हमारे सामने भारी तबाही मचाई है, उसी ने हमें ऐसी ताकत और सूझ दे रखी है कि हम फिर से खड़े होते हैं और चुनौतियों से लड़ने का एक रास्ता ढूंढ निकालते हैं। इस त्रासदी से पीड़ित लोगों की सहायता के लिए जिस तरह पूरी दुनिया एकजुट हुई है, वह इस बात का सबूत है कि मानवती हार नहीं मानती।
उत्तर-
अन्य पाठेतर हल प्रश्न लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3.
प्रश्न 4.
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तिब्बत की औरते क्या नहीं करती थी?उत्तरः तिब्बत की औरतें पर्दा नहीं करती थीं। वे अतिथि का स्वागत-सत्कार भी करती थीं, चाहे घर में कोई पुरुष हो या न हो। तिब्बती औरतें जाति-पाँति, छुआछूत में विश्वास नहीं करती थीं।
तिब्बत जाने के रास्ते में आदमी को बहुत दूर तक क्यों नहीं देखा जा सकता?डाँड़े तिब्बत में सबसे खतरे की जगह है। सोलह-सत्रह हजार फीट की ऊँचाई होने के कारण उनके दोनों तरफ मीलों तक कोई गाँव-गिराँव नहीं थे। नदियों के मोड़ और पहाड़ों के कोनों के कारण बहुत दूर तक आदमी को देखा नहीं जा सकता।
तिब्बत में शाम के समय ठहरने का स्थान मिलना कठिन हो जाता है क्यों?अतः परिचय के आधार पर मनुष्य को ठहरने के लिए उचित स्थान मिल जाता था किंतु जान - पहचान न होने पर उचित स्थान मिलना मुश्किल हो जाता था। इसके अतिरिक्त अपरिचित व्यक्ति को रात काटने के लिए उचित स्थान मिलना इसलिए भी कठिन हो जाता था क्योंकि शाम के समय तिब्बती लोग छङग पीकर मस्त हो जाते थे।
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