शिक्षण प्रक्रिया के लिए सबसे उपयुक्त संसाधन कौन सा है? - shikshan prakriya ke lie sabase upayukt sansaadhan kaun sa hai?

शैक्षिक प्रौद्योगिकी (अधिगम प्रौद्योगिकी भी कहा जाता है) उचित तकनीकी प्रक्रियाओं और संसाधनों के सृजन, उपयोग तथा प्रबंधन के द्वारा अधिगम और कार्य प्रदर्शन सुधार के अध्ययन और नैतिक अभ्यास को कहते हैं।[1] शैक्षिक प्रौद्योगिकी शब्द के साथ प्रायः अनुदेशात्मक सिद्धांत तथा अधिगम सिद्धांत संबद्ध और शामिल होते हैं। जबकि अनुदेशी प्रौद्योगिकी में अधिगम एवं अनुदेश की प्रक्रियाएं तथा प्रणालियां शामिल हैं, शैक्षिक प्रौद्योगिकी में मानवीय क्षमताओं के विकास हेतु प्रयुक्त अन्य प्रणालियां शामिल होती हैं। शैक्षिक प्रौद्योगिकी सॉफ्टवेयर, हार्डवेयर और इंटरनेट अनुप्रयोगों तथा गतिविधियों का समावेश करती है किंतु इन तक सामित नहीं है। लेकिन इन शब्दों के अर्थ को लेकर अब भी बहस होती है।[2]

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विवरण और अर्थ[संपादित करें]

शैक्षिक प्रौद्योगिकी को सर्वाधिक सरलता और सुगमता से ऐसे उपकरणों की एक सरणी के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जो शिक्षार्थी के सीखने की प्रक्रिया में सहायक सिद्ध हो सकें. शैक्षिक प्रौद्योगिकी, प्रौद्योगिकी "शब्द" की एक व्यापक परिभाषा पर निर्भर करती है। प्रौद्योगिकी, मानव उपयोग की भौतिक सामग्रियों जैसे मशीनों या हार्डवेयर के रूप में संदर्भित की जा सकती है, लेकिन इसमें प्रणालियां, संगठऩ की विधियां तथा तकनीक जैसे व्यापक विषय भी शामिल हो सकते हैं। कुछ आधुनिक उपकरण शामिल हैं लेकिन ये सिर्फ ओवरहैड प्रोजेक्टर, लैपटॉप, कंप्यूटर और कैलकुलेटर तक ही सीमित नहीं हैं। "स्मार्टफोन" और गेम (ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों) जैसे नए उपकरण गंभीरता से अपनी अभिज्ञान क्षमता की वजह से काफी ध्यान आकर्षित करने लगे हैं।

जो वैचारिक खोज और आशय संप्रेषण के लिए शैक्षिक प्रौद्योगिकी का उपयोग करते हैं वो या तो शिक्षार्थी हैं या शिक्षक हैं।

मानवीय कार्य-प्रदर्शन प्रौद्योगिकी हस्तपुस्तिका पर विचार करें। [3] सम विषयक क्षेत्रों, शैक्षिक और मानवीय कार्य-प्रदर्शन प्रौद्योगिकी के लिए प्रौद्योगिकी का अर्थ "व्यावहारिक विज्ञान है।" दूसरे शब्दों में, वैज्ञानिक पद्धति के उपयोग के द्वारा मौलिक शोध से व्युत्पन्न कोई भी प्रक्रिया या प्रक्रियाएं प्रौद्योगिकी मानी जा सकती हैं। शैक्षिक या मानवीय कार्य-प्रदर्शन प्रौद्योगिकी विशुद्ध रूप से कलनविधीय या स्वानुभविक प्रक्रियाओं पर आधारित हो सकती हैं, किंतु दोनों में से किसी का भी तात्पर्य आवश्यक रूप से भौतिक प्रौद्योगिकी से नहीं है। प्रौद्योगिकी शब्द यूनानी शब्द “टेक्ने” से बना है जिसका अर्थ है शिल्प या कला. एक अन्य शब्द "तकनीक" भी उसी मूल से आया है, जिसका उपयोग शैक्षिक प्रौद्योगिकी पर विचार करते समय किया जा सकता है। इसलिए शिक्षक की तकनीकों का समावेश करने के लिए शैक्षिक प्रौद्योगिकी का विस्तार किया जा सकता है।[कृपया उद्धरण जोड़ें]

1956 की ब्लूम की पुस्तक, टेक्सोनोमी ऑफ एजुकेशनल ऑवूजेक्टिव्ज शैक्षिक मनोविज्ञान के पाठ का एक उत्तम उदाहरण है।[4] ब्लूम की टेक्सोनोमी, अधिगम गतिविधियां अभिकल्पित करते समय, यह ध्यान में रखने के लिए उपयोगी हो सकती है कि शिक्षार्थियों के अधिगम लक्ष्य क्या हैं तथा उनसे क्या अपेक्षित है। बहरहाल, ब्लूम का कार्य स्पष्ट रूप से स्वतः ही शैक्षिक प्रौद्योगिकी से संबद्ध नहीं होता और शैक्षणिक रणनीतियों से अधिक संबंधित है।

कुछ के अनुसार, एक शैक्षिक प्रौद्योगविज्ञ वह है, जो आधारभूत शैक्षणिक एवं मनोवौज्ञानिक शोध को अधिगम अथवा अनुदेश हेतु साक्ष्य-आधारित प्रयुक्त विज्ञान (या प्रौद्योगिकी) में रूपांतरित कर देता है। शैक्षिक प्रौद्योगविज्ञों के पास प्रायः शैक्षिक मनोविज्ञान, शैक्षिक मीडिया, प्रयोगात्मक मनोविज्ञान, संज्ञानात्मक मनोविज्ञान या अधिक विशुद्ध रूप में, शैक्षिक, अनुदेशात्मक या मानवीय कार्य-प्रदर्शन प्रौद्योगिकी या अनुदेशात्मक (प्रणाली) अभिकल्पना के क्षेत्रों में स्नातक उपाधि (स्नातकोत्तर, डॉक्टरेट, पीएच.डी. या डी.फिल) होती है। लेकिन नीचे सूचीबद्ध कुछ सिद्धांतकारों में से कुछ हमेशा स्वयं अपना वर्णन करने के लिए "शिक्षक" जैसे शब्द पर वरीयता देते हुए "शैक्षिक प्रौद्योगविज्ञ" शब्द का प्रयोग करते थे।[कृपया उद्धरण जोड़ें] शैक्षिक प्रौद्योगिकी के एक कुटीर उद्योग से एक व्यवसाय में रूपांतरण के बारे में शुरविले, ब्राउन तथा व्हिटेकर ने चर्चा की है।[5]

एक लघु इतिहास[संपादित करें]

शैक्षिक प्रौद्योगिकी के उद्भव को उसकी राह में गुफाओं की दीवारों पर बनी पेंटिंग्स में बहुत ही प्रारंभिक उपकरणों के रूप में पाया जा सकता है। लेकिन आमतौर पर इसके इतिहास का आरंभ शैक्षिक फिल्म (1900 का) या 1920 के दशक की सिडनी प्रेस्से की यांत्रिक शिक्षण मशीन से माना जाता है। नई प्रौद्योगिकियों का बड़े पैमाने पर पहला उपयोग, प्रशिक्षण फिल्मों और अन्य मीडिया सामग्री के माध्यम से द्वित्तीय विश्वयुद्ध के अमेरिकी सैनिकों के प्रशिक्षण में पाया जा सकता है। आज की प्रस्तुतिकरण आधारित प्रौद्योगिकी इस विचार पर आधारित है कि लोग विषय वस्तु को श्रव्य और दृश्य अभिग्रहण से सीख सकते हैं, जो अनेक प्रारूपों में उपलब्ध है, जैसे- स्ट्रीमिंग ऑडियो और वीडियो, पॉवरपॉइंट प्रस्तुतिकरण + आवाज. 1940 के दशक का एक अन्य रोचक आविष्कार हाइपरटेक्स्ट, यानी वी. बुश का मेमेक्स था। 1950 के दशक ने दो प्रमुख स्थिर लोकप्रिय अभिकल्प दिये। स्किनर्स कार्य ने अनुदेशात्मक विषयवस्तु को छोटी इकाइयों में विभाजित कर, तथा सही अनुक्रियाओं को अक्सर जल्दी पुरस्कृत कर, "क्रमादेशित अनुदेशों" का व्यवहारजन्य लक्ष्यों के संरूपण पर ध्यान केंद्रित करना संभव बनाया। अपने बौद्धिक व्यवहारों के वर्गीकरण के आधार अधिगम के प्रति एक प्रवीण दृष्टिकोण की वकालत करते हुए, ब्लूम ने अनुदेशात्मक तकनीकों का समर्थन किया जिसने शिक्षार्थी की आवश्यकतानुसार अनुदेश एवं समय दोनों को परिवर्तित किया। 1970 के दशक से 1990 के दशक तक इन डिजाइनों पर आधारित मॉडल आम तौर पर कंप्यूटर आधारित प्रशिक्षण (सीबीटी (CBT)), कंप्यूटर सहायतायुक्त अनुदेश या कंप्यूटर की सहायता से अनुदेश (CAI) कहलाते थे। एक अधिक सरलीकृत रूप में वे आज के "ई-कंटेंट्स" जो कि अक्सर "ई-सेट अप" का मुख्य भाग होता है, जैसे थे है, कभी-कभी इसे वेब आधारित प्रशिक्षण (WBT) या ई-अनुदेश भी कहा जाता था। पाठ्यक्रम अभिकल्पक अधिगम सामग्री के, ग्राफिक्स और मल्टीमीडिया प्रस्तुति के साथ संवर्धित छोटे-छोटे पाठ-खंड बनाते हैं। आत्म मूल्यांकन और मार्गदर्शन के लिए तत्काल प्रतिक्रिया के साथ लगातार बहुविकल्पी प्रश्न जोड़े जाते हैं। ऐसी ई-सामग्री आईएमएस (IMS), एडीएल/स्कॉर्म (ADL/SCORM) और आईईईई (IEEE) द्वारा परिभाषित मानकों पर भरोसा करती है। 1980 और 1990 के दशकों ने विविध प्रकार की संस्थाएं, जिनको एक लेबल कंप्यूटर आधारित शिक्षा (CBL) की छतरी के नीचे रखा जा सकता है, दी। अक्सर रचनावादी और संज्ञानवादी अधिगम सिद्धांतों पर आधारित, इन परिवेशों ने अमूर्त एवं प्रक्षेत्र-विशिष्ट समस्या समाधान शिक्षण पर जोर दिया। पसंदीदा प्रौद्योगिकियां सूक्ष्म संसार (कंप्यूटर वातावरण जहां शिक्षार्थी खोज सकता था, निर्माण कर सकता था), अनुरूपण (कंप्यूटर वातावरण जहां शिक्षार्थी गतिशील प्रणालियों के मापदंडों के साथ खेल सकते हैं) और हाइपरटेक्स्ट थे। शिक्षा के क्षेत्र में डिजीटल संचार और नेटवर्किंग 80 के दशक के मध्य में शुरू हुए और 90 के दशक के मध्य में, विशेषकर विश्वव्यापी वेब (www), ईमेल तथा मंचों (फोरम्स) के माध्यम से लोकप्रिय हुए. ऑनलाइन अधिगम के दो प्रमुख प्रारूपों में अंतर है। कंप्यूटर आधारित प्रशिक्षण (सीबीटी) या कंप्यूटर आधारित अधिगम (CBL), पूर्व के इन दोनों ही प्रकारों ने एक ओर छात्र और कंप्यूटर अभ्यास एवं अनुशिक्षण तथा दूसरी ओर छात्र और सूक्ष्म संसार एवं अनुरूपण पर जोर दिया। आज, कंप्यूटर के माध्यम से संचार (CMC) नियमित विद्यालय प्रणाली में प्रचलित रूपावली है, जहां छात्र एवं अनुदेशकों के बीच पारस्परिक क्रिया का प्राथमिक प्रारूप कंप्यूटर के माध्यम से है। आमतौर पर सीबीटी/सीबीएल (CBT/CBL) का मतलब है वैयक्तीकृत अधिगम (स्व-अध्ययन), जबकि सीएमसी (CMC) में शिक्षक/निजी शिक्षक सुविधा शामिल है और लचीली शिक्षण गतिविधियों के मानसदर्शन की आवश्यकता है। इसके अलावा, आधुनिक आईसीटी (ICT) उपकरणों के साथ, अधिगम समूहों और संबद्ध ज्ञान प्रबंधन कार्य को बनाए रखने के लिए शिक्षा प्रदान करता है। यह छात्र और पाठ्यक्रम प्रबंधन के लिए उपकरण भी उपलब्ध कराता है। अधिगम प्रौद्योगिकियां कक्षा संवर्द्धन के अलावा, पूर्णकालिक दूरस्थ शिक्षण में भी प्रमुख भूमिका निभाती हैं। जबकि अधिकांश गुणवत्ता की पेशकश कागज, वीडियो और सामयिक सीबीटी/सीबीएल (CBT/CBL) सामग्री पर भरोसा करती हैं, मंचों, तत्क्षण संदेशों, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग आदि के माध्यम से ई-शिक्षण का उपयोग बढ़ा है। छोटे समूहों को लक्ष्यित पाठ्यक्रम अक्सर मिश्रित या संकर अभिकल्पना जिसमें वर्तमान पाठ्यक्रम मिश्रित होता है, का दूरस्थ गतिविधियों के साथ उपयोग करते हैं (प्रायः मॉड्यूल के आरंभ और अंत में) और विभिन्न शैक्षणिक शैलियों (जैसे प्रशिक्षण अभ्यास और अभ्यास, कवायद, परियोजनाएं, आदि) का उपयोग करते हैं। 2000 के दशक में बहुगुण मोबाइल तथा सर्वव्यापी प्रौद्योगिकियों के उद्भव ने अधिगम- के-संदर्भ परिदृश्यों के अनुकूल स्थानिक अधिगम को नई प्रेरणा दी। कुछ साहित्य स्कूल एवं प्रामाणिक (उदाहरण के लिए कार्यस्थल) व्यवस्था दोनों को एकीकृत करने वाले मिश्रित अधिगम परिदृश्यों का वर्णन करने के लिए एकीकृत अधिगम अवधारणा का उपयोग करते हैं।

सिद्धांत एवं व्यवहार[संपादित करें]

शैक्षिक प्रौद्योगिकी साहित्य में तीन मुख्य सैद्धांतिक स्कूल या दार्शनिक ढांचे उपस्थित रहे हैं। ये हैं व्यवहारवाद, संज्ञानवाद और रचनावाद, तीनों वैचारिक स्कूलों में से प्रत्येक आज के साहित्य में उपस्थित है, लेकिन इनका विकास उसी प्रकार हुआ है जिस प्रकार मनेविज्ञान साहित्य का हुआ है।

व्यवहारवाद[संपादित करें]

इस सैद्धांतिक संरचना का विकास इवान पावलोव, एडवर्ड थोर्नडिके, एडवर्ड सी. टोलमैन, क्लार्क एल हल, बी. एफ. स्किनर और अन्य कई लोगों के पशु अधिगम प्रयोगों के साथ 20वीं शताब्दी में हुआ था। कई मनोवैज्ञानिकों ने इन सिद्धांतों का मानव अधिगम के साथ वर्णन और प्रयोग करने के लिए इस्तेमाल किया। जबकि यह अभी भी बहुत उपयोगी है, इस अधिगम दर्शन ने कई शिक्षकों का समर्थन खो दिया है।

स्किनर का योगदान[संपादित करें]

बी.एफ. स्किनर ने अपने मौखिक व्यवहार[6] के प्रकार्यात्मक विश्लेषण के आधार पर शिक्षण में सुधार पर व्यापक रूप से लिखा था और समकालीन शिक्षा में निहित मिथकों को समाप्त करने के प्रयास में तथा साथ ही अपनी प्रणाली जिसे वे क्रमादेशित अनुदेश कहते थे, का प्रोत्साहन करने के लिए "द टेक्नोलोजी ऑफ टीचिंग"[7] लिखी. ऑगडेन लिंड्सले ने भी इसी प्रकार व्यवहार विश्लेषण पर आधारित सेलेरेशन अधिगम प्रणाली विकसित की थी लेकिन वह केलर और स्किनर के मॉडल से बिलकुल अलग थी।

संज्ञानवाद[संपादित करें]

संज्ञानात्मक विज्ञान ने शिक्षकों के अधिगम के प्रति दृष्टिकोण को बदला है। 1960 और 1970 के दशक में संज्ञानात्मक क्रांति की शुरुआत के बहुत प्रारंभ से अधिगम सिद्धांत में काफी परिवर्तन आया है। व्यवहारवाद की अनुभवजन्य रूपरेखा को ज्यादातर बरकरार रखा गया भले ही एक नया प्रतिमान शुरू हो चुका था। संज्ञानात्मक सिद्धांत मस्तिष्क आधारित अधिगम को समझाने के लिए व्यवहार से परे देखते हैं। संज्ञानवादी इस पर विचार करते हैं कि मानव स्मृति अधिगम को बढ़ावा देने के लिए कैसे काम करती है।

संज्ञानात्मक मनोविज्ञान में एटकिंसन-शिफ्रिन के स्मृति मॉडल तथा बैडेले के कार्यकारी स्मृति मॉडल जैसे स्मृति सिद्धांत के सैद्धांतिक ढांचे के रूप में स्थापित हो जाने के बाद, 1970, 1980, 1990 के दशकों में अधिगम का नया संज्ञानात्मक ढांचा उभरने लगा था। इस पर ध्यान देना महत्वपूर्ण है कि कंप्यूटर विज्ञान और सूचना प्रौद्योगिकी का संज्ञानात्मक विज्ञान के सिद्धांत पर एक बड़ा प्रभाव पड़ा है। कम्प्यूटर साइंस के क्षेत्र में अनुसंधान और प्रौद्योगिकी द्वारा कार्यकारी स्मृति (पूर्व में अल्पकालिक स्मृति के नाम से ज्ञात) और दीर्घ अवधि स्मृति की संज्ञानात्मक अवधारणाओं को सुगम बना दिया गया। संज्ञानात्मक विज्ञान के क्षेत्र पर एक अन्य प्रमुख प्रभाव नोआम चोमस्की का है। आज शोधकर्ता संज्ञानात्मक भार तथा सूचना संसाधन सिद्धांत जैसे विषयों पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं।

रचनावाद/रचनात्मकतावाद[संपादित करें]

रचनावाद एक अधिगम सिद्धांत है या शैक्षिक दर्शन है जिस पर अनेक शिक्षकों ने 1990 के दशक में विचार करना शुरू कर दिया था। इस दर्शन के प्राथमिक सिद्धांतों में से एक है कि शिक्षार्थी नई जानकारी से अपने स्वयं के अर्थों की रचना करते हैं, जब वे वास्तविकता या भिन्न दृष्टिकोण वाले अन्य लोगों के साथ पारस्परिक क्रिया करते हैं।

रचनावादी अधिगम वातावरण की आवश्यकता होती है कि छात्र अपने पूर्व ज्ञान एवं अनुभवों का उपयोग करके अधिगम की नई, संबद्ध और/या अनुकूली अवधारणाएं तैयार करे. इस ढांचे के तहत शिक्षक की भूमिका एक मार्गदर्शन देने वाले सुविधाप्रदाता की हो जाती है, ताकि शिक्षार्थी अपने स्वयं के ज्ञान की रचना कर सकें. रचनावादी शिक्षकों को चह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि पूर्व अधिगम अनुभव उपयुक्त तथा सिखाई जाने वाली अवधारणाओं से संबंधित हैं या नहीं। जोनासेन (1997) का सुझाव है "अच्छी तरह से संरचित" अधिगम वातावरण नौसिखिया शिक्षार्थियों के लिए उपयोगी होता है और "बीमार संरचित" वातावरण केवल अधिक उन्नत शिक्षार्थियों के लिए उपयोगी होते हैं। प्रौद्योगिकी का उपयोग करने वाले शिक्षकों को एक रचनावादी दृष्टिकोण से पढ़ाते समय ऐसी प्रौद्योगिकी का चुनाव करना चाहिए जो समस्या समाधान के वातावरण में पूर्व ज्ञान को सुदृढ़ करे.

संयोजनवाद[संपादित करें]

संयोजनवाद "डिजिटल युग के लिए एक अधिगम सिद्धांत" है, जिसे जॉर्ज सीमेन्स तथा स्टीवन डाउनेस द्वारा अपने व्यवहारवाद, संज्ञानवाद तथा रचनावाद के विश्लेषण के आधार पर, यह समझाने के लिए कि हम कैसे जीते हैं, हम कैसे संवाद करते हैं और हम कैसे सीखते हैं, इस पर प्रौद्योगिकी का क्या प्रभाव हुआ था, विकसित किया गया था। शिक्षण प्रौद्योगिकी और दूरस्थ शिक्षा के अंतर्राष्ट्रीय जर्नल के कार्यकारी संपादक, डोनाल्ड जी पेरिन का कहना है कि सिद्धांत "डिजिटल युग में सीखने के लिए एक शक्तिशाली सैद्धांतिक अवधारणा की रचना करने के लिए कई शिक्षण सिद्धांतों, सामाजिक संरचना और प्रौद्योगिकी के प्रासंगिक तत्वों को जोड़ता है।"

अनुदेशात्मक तकनीक और प्रौद्योगिकी[संपादित करें]

समस्या आधारित अधिगम और पूछताछ आधारित अधिगम सक्रिय अधिगम शैक्षिक प्रौद्योगिकियां हैं जिनका उपयोग सीखने की सुविधा के लिए किया जाता है। वह प्रौद्योगिकी जिसमें भौतिक एवं प्रक्रिया प्रयुक्त विज्ञान शामिल हैं, को इस परियोजना, समस्या, पूछताछ-आधारित अधिगम के साथ सम्मिलित किया जा सकता है क्योंकि इन सब में एक समान शैक्षिक दर्शन है। ये तीनों ही छात्र केन्द्रित, आदर्शतः ये वास्तविक दुनिया के परिदृश्यों को शामिल करते हैं जिनमें छात्र सक्रिय रूप से विवेचनात्मक सोच की गतिविधियों में शामिल होते हैं। वह प्रक्रिया एक प्रौद्योगिकी मानी जाती है, जिसे अपनाने के लिए छात्र प्रोत्साहित (जब तक यह अनुभवजन्य अनुसंधान पर आधारित है) होते हैं। शिक्षकों और शैक्षिक प्रौद्योगविदों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली प्रौद्योगिकी के उत्कृष्ट उदाहरण है ब्लूम की टैक्सोनोमी और अनुदेशात्मक अभिकल्प.

सिद्धांतकार[संपादित करें]

यह एक ऐसा क्षेत्र है जहां नए विचारक हर रोज आगे आ रहे हैं। अनेक विचारों का सिद्धांतकारों, शोधकर्ताओं और विशेषज्ञों ने अपने ब्लॉग के माध्यम से प्रसार किया है। अभिरुचि के क्षेत्रवार शैक्षिक व्लॉगर्स की व्यापक सूची स्टीव हरगाडोन के “सपोर्टव्लॉगर्स” (SupportBloggers) स्थल या स्कॉट मैक्लिऑड द्वारा शुरू किये गये विकी “मूविंगफॉरवर्ड” (movingforward) पर उपलब्ध है।[8] इन में से अनेक ब्लॉग्स को उनके मित्रसमूह द्वारा प्रति वर्ष एडुव्लॉगर (edublogger) के माध्यम से पुरस्कार देकर सम्मानित किया जाता है।[9] वेब 2.0 प्रौद्योगिकियों ने इस विषय पर उपलब्ध जानकारी में और इस पर औपचारिक या अनौपचारिक रूप से चर्चा करने वाले शिक्षकों की संख्या में भारी वृद्धि की है। ऊपर वर्णित कुछ नये विचारक तथा एक दशक से अधिक से सक्रिय विचारक यहां नीचे सूचीबद्ध हैं।

  • एलन नवम्बर
  • सेमुर पेपर्ट[10]
  • विल रिचर्डसन
  • जॉन स्वेलर
  • एलेक्स जोन्स
  • जॉर्ज सीमेंस
  • डेविड विले
  • डेविड विल्सन

लाभ[संपादित करें]

शैक्षिक प्रौद्योगिकी का उद्देश्य, प्रौद्योगिकी के बिना शिक्षा की जो स्थिति होती, उसमें सुधार करना है। दावा किये गये लाभों में से कुछ नीचे सूचीबद्ध हैं:

  • आसान सामग्री का उपयोग करने वाला पाठ्यक्रम. अनुदेशक पाठ्यक्रम सामग्री या किसी पाठ्यक्रम पर महत्वपूर्ण जानकारी वेबसाइट पर पोस्ट कर सकते हैं, जिसका मतलब है कि छात्र जिस समय या स्थान पर चाहे अध्ययन कर सकता है और अधययन सामग्री को शीघ्रता से प्राप्त कर सकता है।[11]
  • छात्र अभिप्रेरणा . कंप्यूटर-आधारित अनुदेश छात्रों को तत्क्षण प्रतिपुष्टि दे सकते हैं और सही उत्तरों की व्याख्या कर सकते हैं। इसके अलावा, एक कंप्यूटर धैर्यवान तथा गैर-आलोचनात्मक होता है, जो विद्यार्थी को शिक्षा जारी रखने के लिए प्रेरणा दे सकता है। जेम्स कुलिक के अनुसार, जो अनुदेशों के लिये प्रयुक्त कंप्यूटर की प्रभावशीलता पर विचार करते हैं, वे छात्र प्रायः कंप्यूटर आधारित अनुदेश प्राप्त कर के कम समय में अधिक सीख जाते हैं और वे कक्षाओं को अधिक पसंद करते हैं और कंप्यूटर आधारित कक्षाओं में कंप्यूटर के प्रति अधिक सकारात्मक दृष्टिकोण रखते हैं।[12] अमेरिकी शिक्षक, कैसेंड्रा बी व्हाइट ने शोध किया और नियंत्रण के ठिकाने तथा सफल अकादमिक कार्य-प्रदर्शन के बारे में बताया तथा 1980 के दशक के अंत तक उन्होंने लिखा कि किस प्रकार भविष्य में उच्च शिक्षा में कंप्यूटर का उपयोग और सूचना प्रौद्योगिकी महत्वपूर्ण हो जाएगी.[13][14]
  • विस्तृत सहभागिता . अधिगम सामग्री का दीर्घ दूरस्थ अधिगम के लिए उपयोग किया जा सकता है और यह व्यापक श्रोताओं की पहुंच में होती है।[15]
  • उन्नत छात्र लेखन. छात्रों के लिए शब्द संसाधक पर अपने लिखित कार्य का संपादन करना सुविधाजनक है, जो परिणामस्वरूप उनके लेखन की गुणवत्ता में सुधार कर सकता है। कुछ अध्ययनों के अनुसार, कंप्यूटर नेटवर्क पर परिचित छात्रों के बीच आदान-प्रदान किये गये लिखित कार्य की समीक्षा और संपादन में छात्र बेहतर हैं।[11]
  • सीखने के लिए विषय आसान बन गये हैं . विशिष्ट विषयों को सीखने के लिए बच्चों और किशोरों की सहायता के लिए विभिन्न प्रकार के अनेक शैक्षिक सॉफ्टवेयर डिजाइन किये गये हैं। उदाहरण में, पूर्व स्कूल सॉफ्टवेयर, कम्प्यूटर सिम्युलेटर्स और ग्राफ़िक्स सॉफ्टवेयर शामिल हैं।[12]
  • एक संरचना जो मापन और परिणामों में सुधार की अनुगामी है। उचित संरचना के साथ, छात्र के काम का निरीक्षण करना, उसके काम को बनाये रखना और छात्र के अधिगम में वृद्धि करने के लिए आवश्यकतानुसार अनुदेशो में संशोधन करना आसान हो जाता है।

आलोचना[संपादित करें]

हालांकि कक्षा में प्रौद्योगिकी के कई लाभ है, वहां स्पष्ट कमियां भी हैं। उचित प्रशिक्षण की कमी, एक प्रौद्योगिकी की पर्याप्त मात्रा तक सीमित पहुंच और प्रौद्योगिकी के कई क्रियान्वयनों के लिए अतिरिक्त समय की आवश्यकता, कुछ कारण हैं जिनकी वजह से अक्सर कक्षा में प्रौद्योगिकी का बड़े पैमाने पर प्रयोग नहीं किया जाता है।

एक नया कार्य या व्यापार सीखने के समान, कक्षा प्रौद्योगिकी का प्रभावी एकीकरण सुनिश्चित करने के लिए विशेष प्रशिक्षण महत्वपूर्ण है। चूंकि प्रौद्योगिकी शिक्षा का अंतिम लक्ष्य नहीं है, बल्कि एक साधन है जिसके द्वारा यह प्राप्त की जा सकती है, प्रयुक्त होने वाली प्रौद्योगिकी और अधिक पारंपरिक पद्धतियों की तुलना में इसके लाभों पर शिक्षकों की अच्छी पकड़ होनी चाहिये। यदि इन दोनों में क्षेत्रों में से किसी एक में भी कमी है, तो प्रौद्योगिकी शिक्षण के लक्ष्यों के लिए एक लाभ न हो कर बाधा के रूप में देखी जाएगी.

एक और कठिनाई पेश की जाती है जब एक संसाधन की पर्याप्त मात्रा तक पहुंच सीमित होती है। यह अक्सर देखा गया है कि कंप्यूटर की मात्रा या कक्षा के उपयोग के लिए डिजिटल कैमरों की संख्या एक पूरी कक्षा की जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं होती है। कुछ कम सूचित रूप में ऐसा भी होता है कि प्रौद्योगिकी की ऊंची लागत और खराब होने के डर से प्रौद्योगिकी अनुसंधान के लिए सीमित पहुंच होती है। अन्य मामलों में, लैपटॉप के माध्यम से एक कक्षा में ही कंप्यूटर पहुंच की सुविधा होने के बजाय एक कक्षा को परिवहन द्वारा कंप्यूटर प्रयोगशाला में ले जाने जैसी संसाधन स्थापन की असुविधा एक बाधा है।

प्रौद्योगिकी कार्यान्वयन में भी समय लग सकता है। कुछ प्रौद्योगिकियों के प्रयोग में एक प्रारंभिक सेटअप या प्रशिक्षण समय लागत निहित हो सकती है। इन कार्यों के पूरा होने के बाद भी, गतिविधि के दौरान प्रौद्योगिकी की विफलता पाए जाने पर, परिणाम में शिक्षकों के पास एक वैकल्पिक पाठ तैयार होना चाहिए। एक अन्य प्रमुख मुद्दा प्रौद्योगिकी के विकासशील स्वभाव की वजह से उठता है। जब भी तकनीकी मंच बदल जाता है, नये संसाधन डिजाइन और वितरित करने होते हैं। इस तरह के परिवर्तनों के बाद अक्सर कक्षा उद्देश्यों का समर्थन करने के लिए गुणवत्ता सामग्री प्राप्त मुश्किल होता है, उनकी पर्याप्त मात्रा में उपलब्धता के बाद भी शिक्षकों को इन संसाधनों को अपने मुताबिक डिजाइन करना होता है।

ये भी देखें:[16]

शैक्षिक प्रौद्योगिकी और मानविकी[संपादित करें]

अलबर्टा इनीशिएटिव फॉर स्कूल इम्प्रूवमेंट (AISI)[17] के शोध के अनुसार पाठ्यक्रम केंद्रित पूछ-ताछ और परियोजना-आधारित दृष्टिकोण प्रभावी रूप से शैक्षिक प्रौद्योगिकी के अधिगम एवं शिक्षण प्रक्रिया में सम्मिश्रण को समर्थन देते हैं।

कक्षा में प्रौद्योगिकी[संपादित करें]

पारंपरिक कक्षाओं में वर्तमान में कंप्यूटर और गैर कंप्यूटर प्रौद्योगिकी के कई प्रकार उपयोग में हैं। इनमें शामिल हैं:

  • कक्षा में कम्प्यूटर: कक्षा में कंप्यूटर होना एक शिक्षक के लिए एक संपत्ति है। कक्षा में एक कंप्यूटर के साथ, शिक्षक एक नया पाठ प्रदर्शित करने, नयी सामग्री प्रस्तुत करने, नये प्रोग्राम का उपयोग समझाने और नयी वेबसाइट दिखाने में सक्षम होते हैं।[18]
  • कक्षा वेबसाइट: अपने छात्रों के काम को प्रदर्शित करने का इससे बेहतर तरीका और क्या हो सकता है कि अपनी कक्षा के लिए डिजाइन किया हुआ एक वेब पेज बनाया जाये. एक बार एक वेब पेज बनाया लिया गया है, तो शिक्षक उस पर गृहकार्य, छात्र कार्य, प्रसिद्ध उद्धरण, छोटे-मोटे गेम और भी बहुत कुछ पोस्ट कर सकते हैं। आजकल के समाज में, बच्चे कंप्यूटर का उपयोग जानते हैं, वे वेबसाइट खोल सकते हैं, तो उन्हें क्यों नहीं कंप्यूटर उपलब्ध करवा दिया जाये जहां वे एक प्रकाशित लेखक बन सकें. जरा सावधानी के साथ, क्योंकि अधिकतर जिलों में स्कूल और कक्षाओं में आधिकारिक वेबसाइट प्रबंधन के लिये सख्त नीतियां हैं। इसके अलावा, सभी स्कूल जिले शिक्षक वेबपेज उपलब्ध करवाते हैं जिन्हें आसानी से स्कूल जिले की वेबसाइट के माध्यम से देखा जा सकता है।
  • कक्षा ब्लॉग और विकी: वेब 2.0 के उपकरणों के कुछ प्रकार हैं जिन्हें कक्षाओं में क्रियान्वित किया जा रहा है। ब्लॉग से छात्रों को विचार, कल्पनाओं और कार्य, छात्र टिप्पणी और बार-बार दुहरानेवाले प्रतिबिंब के लिए एक पत्रिका की तरह चल रहे संवाद को बनाए रखने की सुविधा निलती है। विकी अधिक समूह केंद्रित हैं जहां समूह के कई सदस्यों को एक एकल दस्तावेज़ को संपादित करने और वास्तव में सब के सहयोग से और ध्यान से संपादित अंतिम उत्पाद बनाने की सुविधा प्रदान करता है।
  • वायरलेस कक्षा माइक्रोफोन: कक्षाओं में एक दैनिक घटना है, माइक्रोफोन की मदद से छात्र अपने शिक्षकों को स्पष्ट सुनने में सक्षम हैं। बच्चों को बेहतर सीखते हैं जब वे शिक्षक को स्पष्ट रूप से सुनते हैं। शिक्षकों के लिए लाभ यह है कि वे अब दिन के अंत में अपनी आवाज नहीं खोते.
  • मोबाइल डिवाइस: या स्मार्टफोन मोबाइल उपकरण जैसे क्लिकर्स या स्मार्टफोन कक्षा अनुभव बढ़ाने के लिए उपयोग किये जा सकते हैं, इससे प्रोफेसरों को प्रतिपुष्टि प्राप्त होने की संभावना होती है।[19]
(एमलर्निंग (MLearning) लेख में और अधिक पढ़ें).
  • स्मार्टबोर्ड्स: एक इंटरैक्टिव सफेद बोर्ड है जो कंप्यूटर अनुप्रयोगों के लिए स्पर्श नियंत्रण प्रदान करता है। जो कुछ भी एक कंप्यूटर स्क्रीन पर किया जा सकता है उसे दिखाने से कक्षा में अनुभव में वृद्धि होती है। यह न केवल दृश्य अधिगम में सहायक है, बल्कि यह परसस्पर प्रभावी है ताकि छात्र उस पर चित्र बना सकते हैं, लिख सकते हैं या स्मार्टबोर्ड पर पर छवियों में हेरफेर कर सकते हैं।
  • ऑनलाइन मीडिया: कक्षा पाठ के संवर्द्धन हेतु प्रदर्शित वीडियो वेबसाइट का उपयोग किया जा सकता है (जैसे यूनाइटेड स्ट्रीमिंग, टीचर ट्यूब आदि).

स्थानीय स्कूल बोर्ड और कोष उपलब्धता के आधार पर अन्य बहुत से उपकरणों का उपयोग किया जाता है। इन में डिजिटल कैमरा, वीडियो कैमरा, इंटरैक्टिव व्हाइटबोर्ड उपकरण, दस्तावेज़ कैमरा या एलसीडी प्रोजेक्टर शामिल हो सकते हैं।

समाज/संस्थाएं[संपादित करें]

शैक्षिक प्रौद्योगिकी के साथ संबंधित संस्थाओं में शामिल हैं:

  • शिक्षा के क्षेत्र में कंप्यूटिंग की प्रगति के लिए एसोसिएशन (AACE)
  • शैक्षिक संचार और प्रौद्योगिकी के लिए एसोसिएशन
  • एसोसिएशन प्रौद्योगिकी अधिगम
  • प्रदर्शन में सुधार के लिए इंटरनेशनल सोसायटी
  • इंटरनेशनल सोसायटी फॉर टेक्लोलोजी इन एजुकेशन - (ISTE)

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

तकनीकी
  • एड्डी (ADDIE) मॉडल
  • दूरस्थ शिक्षा
  • सूचना और शिक्षा के क्षेत्र में संचार प्रौद्योगिकी
  • अनुदेशात्मक प्रणाली डिजाइन
  • तकनीकी शैक्षणिक सामग्री ज्ञान
  • मिश्रित अध्ययन
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  • मौखिक व्यवहार
  • लागू व्यवहार विश्लेषण
  • प्रॉक्सिमल विकास के क्षेत्र

सन्दर्भ[संपादित करें]

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आगे पढ़ें[संपादित करें]

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  • Januszewski, Alan (2001). Educational Technology: The Development of a Concept. Libraries Unlimited. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 1-56308-749-9.
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  • Jonassen, D H (2006). Modeling with Technology: Mindtools for Conceptual Change. OH: Merrill/Prentice-Hall.
  • कर्शनर, पी. ए. स्वेलर, जे. और क्लार्क, आर. ई. (2006) अनुदेशन के दौरान न्यूनतम मार्गदर्शन क्यों काम नहीं करता है: रचनावादी, खोज, समस्या-आधारित, अनुभवात्मक और पूछताछ के आधार पर शिक्षण की विफलता का विश्लेषण. शैक्षिक मनोवैज्ञानिक 41 (2) 75-86
  • Kumar, K L (1997). Educational Technology: A Practical Textbook for Students, Teachers, Professionals and Trainers. नई दिल्ली: New Age International. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 81-224-0833-8.
  • शैक्षिक प्रौद्योगिकी का विश्वकोश, शैक्षिक प्रौद्योगिकी के बारे में लेखों के लिए एक व्यापक संसाधन, शैक्षिक प्रौद्योगिकी विभाग के द्वारा प्रकाशित, सैन डिएगो राज्य विश्वविद्यालय
  • आगे देखने के लिए पीछे देखो - आत्मा के माध्यम से और मानव आत्मा से सीखना.[मृत कड़ियाँ]
  • 2008 में बंगलौर में स्कूलों में शिक्षा और प्रौद्योगिकी पर संगोष्ठी में गीता नारायणन का मुख्य उद्बोधन.[मृत कड़ियाँ]
  • एल लो एंड एम ओ'कौनेल, Learner-Centric Design of Digital Mobile Learning, क्विंसलैंड यूनिवर्सिटी ऑफ़ टेक्नोलॉजी, 2006.
  • प्रोफेसर ब्रायन जे. फोर्ड, निरपेक्ष जेनो, प्रयोगशाला समाचार पृष्ठ 16 जनवरी 2006.
  • मैकेंजी, जॅमी (2006). "लेखन और सोच से प्रेरित होकर"
  • मैकेंजी, जॅमी (2007). "डिजिटल Nativism, डिजिटल भ्रम और डिजिटल अभाव"
  • मैकेंजी, जॅमी (2008). "डिजिटल का युग क्या है?"
  • मिश्रा, पी. एंड कोहलर, एम्.जे. (2006). तकनीकी शैक्षणिक ज्ञान सामग्री: शिक्षक ज्ञान में एकीकरण प्रौद्योगिकी के लिए एक रूपरेखा. शिक्षकों के कॉलेज रिकार्ड, 108(6), 1017-1054.
  • मोनाहन, टोरिन (2005). वैश्वीकरण, तकनीकी परिवर्तन और सार्वजनिक अध्ययन. न्यूयॉर्क रूटलेज: ISBN 0-415-95103-8.
  • Randolph, J. J. (2007). Multidisciplinary Methods in Educational Technology Research and Development. Hameenlinna, Finland: HAMK. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-951-784-453-6. मूल से 26 नवंबर 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2008-06-10.
  • Soni, S K (2004). An Information Resource on Educational Technology for: Technical & Vocational Education and Training (TVET). Sarup & Sons Publishers, Location- नई दिल्ली, e-mail <. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 81-7625-506-8.
  • शेरेर, एम.जे. (2004). अध्ययन के लिए संयोजक: विकलांग लोगों के लिए शैक्षिक और सहायक प्रौद्योगिकी. वॉशिंगटन, डीसी: अमेरिकन साइकोलॉजिकल एसोसिएशन पुस्तकें (एपीए (APA)): ISBN 1-55798-982-6.
  • शुर्विले, एस., ब्राउन, एच. और व्हिटेकर, एम. (2008). "अध्यनन प्रौद्योगिकीविदों को नियोजित करना: सबूत बदलाव के लिए एक कॉल". इन हेलो

! शैक्षिक प्रौद्योगिकी के परिदृश्य में हैं तुम कहां हो? कार्यवाही ऐसिलिट मेलबर्न 2008.

  • Skinner, B.F. (1968). The technology of teaching. New York: Appleton-Century-Crofts. Library of Congress Card Number 68-12340 E 81290.

प्रकाशन[संपादित करें]

  • शैक्षिक प्रौद्योगिकी और इलेक्ट्रौनिक अध्यनन के संयुक्त अरब अमीरात जर्नल

शिक्षण प्रक्रिया के लिए सबसे उपयुक्त संसाधन कौन सा है? - shikshan prakriya ke lie sabase upayukt sansaadhan kaun sa hai?

२०वीं सदी के मध्य तक मनुष्य ने तकनीक के प्रयोग से पृथ्वी के वायुमंडल से बाहर निकलना सीख लिया था।

शिक्षण प्रक्रिया के लिए सबसे उपयुक्त संसाधन कौन सा है? - shikshan prakriya ke lie sabase upayukt sansaadhan kaun sa hai?

एकीकृत परिपथ (IC) के आविष्कार ने कम्प्यूटर क्रान्ति को जन्म दिया ।

प्रौद्योगिकी, व्यावहारिक और औद्योगिक कलाओं और प्रयुक्त विज्ञानों से संबंधित अध्ययन या विज्ञान का समूह है। कई लोग तकनीकी और अभियान्त्रिकी शब्द एक दूसरे के लिये प्रयुक्त करते हैं। जो लोग प्रौद्योगिकी को व्यवसाय रूप में अपनाते है उन्हे अभियन्ता कहा जाता है। आदिकाल से मानव तकनीक का प्रयोग करता आ रहा है। आधुनिक सभ्यता के विकास में तकनीकी का बहुत बड़ा योगदान है। जो समाज या राष्ट्र तकनीकी रूप से सक्षम हैं वे सामरिक रूप से भी सबल होते हैं और देर-सबेर आर्थिक रूप से भी सबल बन जाते हैं।

ऐसे में कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिये कि अभियांत्रिकी का आरम्भ सैनिक अभियांत्रिकी से ही हुआ। इसके बाद सडकें, घर, दुर्ग, पुल आदि के निर्माण सम्बन्धी आवश्यकताओं और समस्याओं को हल करने के लिये सिविल अभियांत्रिकी का प्रादुर्भाव हुआ। औद्योगिक क्रान्ति के साथ-साथ यांत्रिक तकनीकी आयी। इसके बाद वैद्युत अभियांत्रिकी, रासायनिक प्रौद्योगिकी तथा अन्य प्रौद्योगिकियाँ आयीं। वर्तमान समय कम्प्यूटर प्रौद्योगिकी और सूचना प्रौद्योगिकी का है।

प्रौद्योगिकी का प्रभाव[संपादित करें]

समाज[संपादित करें]

1) प्रौद्योगिकी, व्यापार के माध्यम से लोगों तक पहुँचती है

आदमी को व्यापार से नई खोजों की उम्मीद है। समाज या राष्ट्र की आर्थिक समृद्धि लाभ के लिए व्यापार पर निर्भर करता है।

2) उपभोक्ताओं की उच्च उम्मीद

जब प्रौद्योगिकी बढ़ता है तब उपभोक्ताओं की उम्मीद भी उत्पादों की विविधता, अच्छी गुणवत्ता और सुरक्षा की तरह बढ़ जाती है।

3) प्रणाली जटिलता

प्रौद्योगिकी जटिलता का कारण है। आधुनिक तकनीक बेहतर है और तेजी से काम करते हैं। लेकिन अगर वे बिगड़ जाते है तो उन्हें मरम्मत करने के लिए विशेषज्ञों की सेवाओं की जरूरत है।

4) सामाजिक परिवर्तन

कोई नया आविष्कार, नए रोजगार के अवसर खोल सकता है। इस के कारण श्रमिकों के लिए अवकाश के समय बढ़ जाती है।

अर्थव्यवस्था[संपादित करें]

1) बढ़ती उत्पादकता

प्रौद्योगिकी, उत्पादन को बढ़ाने में मदद करती है।

2) अनुसंधान और विकास पर खर्च करने की जरूरत

अनुसंधान और विकास के लिए धन का आवंटन करते समय, समय एक महत्वपूर्ण कारक है।

3) जॉब अधिक बौद्धिक हो जाते हैं

नौकरियां अधिक बौद्धिक और उन्नत हो गई हैं। नौकरियों के लिए अब शिक्षित या कुशल श्रमिकों के सेवाओं की आवश्यकता है।

4) उत्पादों और संगठनों के बीच प्रतियोगिता

एक नए उत्पाद की शुरूआत एक और संगठन की गिरावट का कारण है।

5) बहुराष्ट्रीय कम्पनी की स्थापना

बहुराष्ट्रीय कंपनियों की शुरूआत सबसे अच्छा उदाहरण है।

शिक्षा[संपादित करें]

1) एक कमरे कक्षाओं की गिरावट

शिक्षा प्रक्रिया विशाल होता जा रहा है।

2) केंद्रीकृत दृष्टिकोण से पारी

शिक्षा के क्षेत्र में शक्तियों का समान वितरण।

3) ई-शिक्षा

इंटरनेट का उपयोग करके सीखने की प्रणाली शुरू की गई है।

वातावरण[संपादित करें]

1) पारिस्थितिक संतुलन

प्रौद्योगिकी से पर्यावरण पर सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रभाव पड़ते हैं।

2) प्रदूषण

वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण आधुनिक तकनीक का उपयोग करने के कारण बढ़ गए हैं।

3) नए रोग

प्रौद्योगिकी के कारण नए रोग फैल जाते है।

4) प्राकृतिक संसाधनों की कमी

तकनीकी क्रांति के कारण प्राकृतिक संसाधनों दुर्लभ होते जा रहे हैं।

5) पर्यावरण का विनाश और वन्यजीवन

वन्यजीव प्रजातियों के विलुप्त होना पर्यावरण के लिए खतरा है।

कारखाना स्तर[संपादित करें]

1) संगठनात्मक संरचना

उदाहरण: लाइन ऑफ़ कमांड, स्पान ऑफ़ कण्ट्रोल आदि।

2) जोखिम का डर

उदाहरण: तकनीक में परिवर्तन का डर

3) परिवर्तन के लिए प्रतिरोध

कर्मचारी प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में परिवर्तन का विरोध करते हैं।

4) सम्पूर्ण गुणवत्ता प्रबंधन (टोटल क्वालिटी कन्ट्रोल)

उदाहरण: दोष के बिना उत्पादन

5) लचीला विनिर्माण प्रणालियाँ

उदाहरण: असेंबली लाइन इंडस्ट्री

सन्दर्भ[संपादित करें]

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

  • प्रौद्योगिकीय क्रमविकास (टेक्नॉलोजिकल इवोल्यूशन)
  • प्रौद्योगिकीय परिवर्तन (टेक्नॉलोजिकल चेंज)
  • औद्योगिक प्रविधि (इन्डस्ट्रियल टेक्नॉलोजी)
  • सम्यक प्रौद्योगिकी (Appropriate technology)
  • प्रौद्योगिकी विसरण (टेक्नॉलोजी डिफ्यूजन)
  • प्रौद्योगिकी हस्तान्तरण
  • प्रौद्योगिकीय राष्ट्रवाद
  • प्रौद्योगिकी शिक्षा
  • प्रौद्योगिकी का इतिहास

शिक्षण प्रक्रिया के लिए सबसे उपयुक्त संसाधन प्रकार कौन सा है?

इंटरनेट एक बहुत अधिक शक्तिशाली संसाधन है। एक विद्यालय में इंटरनेट तक पहुंच होने से शिक्षकों और छात्रों को उपलब्ध अवसरों में बड़ा अंतर पैदा हो सकता है।

पहली बार प्रयोग करने के रूप में शिक्षण प्रक्रिया के लिए सबसे उपयुक्त संसाधन प्रकार कौन?

किसी संकल्पना को समुचित ढंग से स्पष्ट करने के लिए बच्चों को स्वयं करके सीखने का अवसर देना उपयुक्त होगा। सबसे अधिक महत्वपूर्ण है कक्षा का वातावरण जो पूर्णरूप से स्नेहमय सौहार्द तथा अधिगम के लिए अनुकूल हो । बच्चे को अपनी रुचि के अनुसार गतिविधि के चयन का अवसर दिया जाना चाहिए ।

शिक्षण अधिगम के संसाधन कौन कौन से हैं?

पाठ्यपुस्तक एक महत्त्वपूर्ण मूल शिक्षण-अधिगम संसाधन है। इसे विशेषरूप से पाठ्यक्रम की विशिष्ट आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए लिखा जाता है। ज्यादातर मामलों में, एक पाठ्यपुस्तक, अधिगम गतिविधियों के आयोजन के लिए केन्द्रीय आधार बिन्दु के रूप में कार्य करती है।

शिक्षण प्रक्रिया को बढ़ाने के लिए प्रौद्योगिकी के उपयोग को शिक्षा में क्या कहा जाता है?

विद्यार्थी अपने स्वयं के पूर्व ज्ञान का उपयोग करके भी नवीन ज्ञान के विकास का प्रयास करता है। शैक्षिक प्रौद्योगिकी के माध्यम से व्यावहारिक ज्ञान द्वारा सुनियोजित प्रविधियों का विकास करना होता हैं, जिससे विद्यालयों की शैक्षिक प्रणाली का परीक्षण, प्रभावी शिक्षण कार्य एवं अधिगम की व्यवस्था की जा सके ।