स्वदेशी और बहिष्कार आंदोलन के विकास की जड़ बताइए - svadeshee aur bahishkaar aandolan ke vikaas kee jad bataie

भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में एक महत्व पूर्ण आंदोलन है स्वदेशी आंदोलन। स्वदेशी का अर्थ है – अपने देश का। इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य था ब्रिटेन में बने माल का बहिष्कार करना तथा भारत में बने माल का अधिक प्रयोग करके साम्राज्यवादी ब्रिटेन को आर्थिक हानि पहुँचाना और भारत के लोगों के लिये रोजगार सृजन करना था। स्वदेशी आन्दोलन, महात्मा गांधी के स्वतन्त्रता आन्दोलन का केन्द्र बिन्दु था। उन्होंने इसे स्वराज की आत्मा भी कहा था।

स्वदेशी आंदोलन का मुख्य कारण

स्वदेशी आन्दोलन बंग-भंग के विरोध में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ पुरे भारत में चला। इसका मुख्य उद्देश्य अपने देश की वस्तु अपनाना और ब्रिटिश देश की वस्तु का बहिष्कार करना था। स्वदेशी का यह विचार बंग-भंग से बहुत पुराना है। भारत में स्वदेशी का पहले नारा बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय ने “वंगदर्शन” 1872 में विज्ञानसभा का प्रस्ताव रखते हुए दिया था। उन्होंने कहा था “जो विज्ञान स्वदेशी होने पर हमारा दास होता, वह विदेशी होने के कारण हमारा प्रभु बन बैठा है, हमसब दिनों दिन साधनहीन होते जा रहे हैं।

जुलाई, सन 1903 को सरस्वती पत्रिका में “स्वदेशी वस्त्र का स्वीकार” शीर्षक से एक कविता छपी। वह पत्रिका के सम्पादक महावीर प्रसाद द्विवेदी की रचना थी। “स्वदेशी” का विचार कांग्रेस के जन्म से पहले ही दे दिया गया था। जब 1905 ई. में बंग-भंग हुआ, तब स्वदेशी का नारा जोरों से अपनाया गया। उसी वर्ष कांग्रेस ने भी इसके पक्ष में मत प्रकट किया। वंदे मातरम् इस युग का महामन्त्र बना। उन दिनों सार्वजनिक रूप से “वन्दे मातरम्” का नारा लगाना गैर कानूनी बन चुका था और कई युवकों को नारा लगाने पर बेंत लगाने के अलावा अन्य सजाएँ भी मिली थीं।

आंदोलन की घोषणा

दिसम्बर, 1903 ई. में बंगाल विभाजन के प्रस्ताव की ख़बर फैलने पर चारो ओर विरोधस्वरूप अनेक बैठकें हुईं, जिसमें अधिकतर ढाका, मेमन सिंह एवं चटगांव में हुई। सुरेन्द्रनाथ बनर्जी, कुष्ण कुमार मिश्र, पृथ्वीशचन्द्र राय जैसे बंगाल के नेताओं ने ‘बंगाली’, ‘हितवादी’ एवं ‘संजीवनी’ जैसे अख़बारों द्वारा विभाजन के प्रस्ताव की आलोचना की। इस विरोध के बावजूद कर्ज़न ने 19 जुलाई, 1905 ई, को ‘बंगाल विभाजन’ के निर्णय की घोषणा की, जिसके परिणामस्वरूप 7 अगस्त, 1905 को कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) के ‘टाउन हाल’ में ‘स्वदेशी आंदोलन’ की घोषणा की गई तथा ‘बहिष्कार प्रस्ताव’ पास किया गया। इसी बैठक में ऐतिहासिक बहिष्कार प्रस्ताव पारित हुआ। 16 अक्टूबर, 1905 को बंगाल विभाजन के लागू होने के साथ ही विभाजन प्रभावी हो गया।

आन्दोलन का प्रभाव

1905 ई. में हुए कांग्रेस के ‘बनारस अधिवेशन’ की अध्यक्षता करते हुए गोखले ने भी स्वदेशी एवं बहिष्कार आंदोलन को समर्थन दिया। उग्रवादी दल के नेता तिलक, विपिनचन्द्र पाल, लाजपत राय एवं अरविन्द घोष ने पूरे देश में इस आंदोलन को फैलाना चाहा। स्वदेशी आंदोलन के समय लोगों का आंदोलन के प्रति समर्थन एकत्र करने में ‘स्वदेश बांधब समिति’ की महत्त्वपूर्ण भूमिका थी। इसकी स्थापना अश्विनी कुमार दत्त ने की थी। शीघ्र ही स्वदेशी आंदोलन का परिणाम सामने आ गया, जिसके परिणामस्वरूप 15 अगस्त, 1906 ई. को एक राष्ट्रीय शिक्षा परिषद की स्थापना की गयी। स्वदेशी आंदोलन का प्रभाव सांस्कृतिक क्षेत्र पर भी पड़ा, बंगाल साहित्य के लिए यह समय स्वर्ण काल का था।

रवींद्रनाथ टैगोर ने इसी समय “आमार सोनार बंगला” नामक गीत लिखा, जो 1971 ई. में बांग्लादेश का राष्ट्रीय गान बना। रवींद्रनाथ टैगोर को उनके गीतों के संकलन “गीतांजलि” के लिए साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला। कला के क्षेत्र में रवींद्रनाथ टैगोर ने पाश्चात्य प्रभाव से अलग हटकर स्वदेशी चित्रकारी शुरु की। स्वदेशी आंदोलन में पहली बार महिलाओं ने पूर्ण रूप से प्रदर्शन किया।

निष्कर्ष

स्वदेशी आंदोलन ब्रिटिश सरकार के खिलाफ की गयी थी ब्रिटिश सरकार के द्वारा लाई जाने वाली माल का बहिष्कार करके भारत में निर्मित सामान का अधिक से अधिक उपयोग किया जाने से है ये आंदोलन को बंगाल से पुरे भारत में फ़ैलाने में कई नेता ने सहयोग किया इस आंदोलन का एक ही उद्देश्य था स्वदेश (अपने देश में खुद का काम करे और ब्रिटिश की सम्राज्यवादी को आर्थिक हानि हो। इस दौरान महत्वपूर्ण घटना जैसे बंगाल विभाजन हुए।

Swadeshi Movement History, Effects, Causes and Results in Hindi | स्वदेशी आन्दोलन का इतिहास, प्रभाव, कारण और परिणाम हिंदी में

भारत की स्वतंत्रता का आन्दोलन एक महत्वपूर्ण आन्दोलन था. जिसमें बहुत से आन्दोलनों का समावेश था. स्वदेशी आन्दोलन भी उस समय पनप रहा था. स्वदेशी का अर्थ हैं “अपने देश का”. शिक्षित स्वतंत्रता सेनानियों इस आन्दोलन के दूरगामी परिणाम को अच्छी तरह जानते थे.

स्वदेशी आन्दोलन का मुख्य उद्देश्य ब्रिटेन में बनी वस्तुओं का बहिष्कार करना था. जिससे लोग अधिक से अधिक स्वदेशी वस्तुओं को उपयोग में लाये. जिससे ब्रिटेन को आर्थिक रूप से नुकसान पहुँचाया जा सके और भारत में रोजगार उत्पन्न हो सके. गांधीजी ने स्वदेशी आन्दोलन को स्वराज की आत्मा भी कहा था. इस आन्दोलन के मुख्य राजनेता वीर सावरकर, लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक, महात्मा गांधी, लाला लाजपत राय, रवीन्द्रनाथ टैगोर और अरविन्द घोष थे.

बंगाल विभाजन और स्वदेशी आन्दोलन(Bangal Vibhajan and Swadeshi Movement)

राजनैतिक लाभ की दृष्टि से दिसम्बर 1903 में अंग्रेजो ने बंगाल विभाजन का प्रस्ताव पारित किया था. जिसकी खबर पूरे भारत में फैल गयी थी. इस प्रस्ताव के विरोध स्वरूप कई बैठके हुई. बंगाल के नेता सुरेन्द्रनाथ बनर्जी और पृथ्वीश चन्द्र राय ने “बंगाली”, “हितवादी”, एवं “संजीवनी” जैसे अखबारों द्वारा विभाजन के प्रस्ताव की आलोचना की. इस विभाजन का मुख्य उदेश्य भारत की अखंडता को नष्ट करना था. विरोध होने के बाद भी लार्ड कर्जन ने 19 जुलाई 1905 को बंगाल विभाजन की घोषणा कर दी. जिसके विरोध में ही 7 अगस्त 1905 को कलकत्ता के टाउन हाल में “स्वदेशी आन्दोलन” की घोषणा हुई और इस आन्दोलन में विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार का निर्णय लिया गया.

स्वदेशी आंदोलन का प्रभाव(Effect of Swadeshi Movement)

उदारवादी नेता इस आन्दोलन को बंगाल तक ही सीमित रखना चाहते थे. परन्तु उग्रवादियों ने उदारवादी नेताओ की इस नीति को अस्वीकार कर दिया. उदारवादी नेता इस आन्दोलन को सिर्फ विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार तक ही सीमित रखना चाहते थे. पंरतु उग्रवादी नेता सिर्फ विदेशी वस्तुओं का ही नही बल्कि सरकारी स्कूलो, अदालतों और सरकारी नौकरियों का भी बहिष्कार इसमें शामिल करना चाहते थे.

उग्रवादी दल के नेता बाल गंगाधर तिलक, विपिनचंद्र पाल, लाला लाजपत राय और अरविन्द घोष ने इस आन्दोलन को पूरे देश में फैलाया. इस आन्दोलन के दौरान अश्विनी कुमार दत्त ने “स्वदेश बांधव समिति” स्थापना की थी. इस समिति ने आन्दोलन में जन समर्थन एकत्र करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. इस आन्दोलन का परिणाम 15 अगस्त 1906 को राष्ट्रीय शिक्षा परिषद् की स्थापना के रूप में सामने आया. इस आन्दोलन का प्रभाव सांस्कृतिक और साहित्यिक क्षेत्र पर भी पड़ा. इस आन्दोलन के दौरान प्रफुल्ल चन्द्र राय ने बंगाल केमिकल स्वदेशी स्टोर की स्थापना हुई.

स्वदेशी आन्दोलन के कारण बड़ी संख्या में छात्र राष्ट्रीय आन्दोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने लगे. जिसके परिणाम स्वरूप उन्हें सरकार की दमनकारी नीति का आक्रोश झेलना पड़ा और जिन छात्रों ने ने स्वदेशी आन्दोलन में भाग लिया था. उन्हें दी जाने वाली सरकारी सहायता और छात्रवृत्ति पर रोक लगा दी गयी. ऐसे छात्रों को सरकारी नौकरी के लिए अयोग्य घोषित कर दिया गया. इस आन्दोलन में महिलाओं ने भी सक्रिय रूप से भाग लिया.

क्रांतिकारी राष्ट्रवाद उभरने के भय से 1911 में बंगाल का विभाजन रद्द कर दिया गया. विभाजन रद्द किये जाने के साथ ही सरकार ने भारत की राजधानी कलकत्ता से बदलकर दिल्ली की बना दिया.

स्वदेशी आन्दोलन के असफलता के कारण(Swadeshi Movement Failure Cause)

अंग्रेज साकार ने आंदोलनकारियो के प्रति कठोर करवाई की. यह आन्दोलन एक विशाल रूप नहीं ले सका. क्योंकि 1908 तक अधिकांश नेता गिरफ्तार कर लिए गए थे. आन्दोलन में समाज के सभी वर्ग इसमें शामिल नहीं हुए थे. मुसलमानों और किसानों को यह आन्दोलन प्रभावित नहीं कर पाया था.

स्वदेशी और बहिष्कार आंदोलन क्या है?

स्वदेशी आन्दोलन विशेषकर उस आन्दोलन को कहते हैं जो बंग-भंग के विरोध में न केवल बंगाल अपितु पूरे ब्रिटिश भारत में चला। इसका मुख्य उद्देश्य अपने देश की वस्तु अपनाना और दूसरे देश की वस्तु का बहिष्कार करना था। यद्यपि स्वदेशी का यह विचार बंग-भंग से बहुत पुराना है।

राष्ट्रीय आंदोलन पर स्वदेशी और बहिष्कार आंदोलन का क्या प्रभाव पड़ा?

स्वदेशी एवं बहिष्कार आंदोलन के कारण भारतीय उद्योगों को अधिक प्रोत्साहन मिला। अनेक कपडा मिलें, साबुन और माचिस की फैक्ट्रियां, हस्तकरघा कारखाने, बैंक एवं बीमा कम्पनियां खोली गयीं। आचार्य प्रफुल्ल चंद्र राय ने प्रसिद्ध बंगाल कैमिकल स्वदेशी स्टोर की स्थापना की।

स्वदेशी और बहिष्कार आंदोलन कब हुआ?

स्वदेशी आंदोलन (Swadeshi Movement in Hindi) को आधिकारिक तौर पर 7 अगस्त, 1905 को कलकत्ता टाउन हॉल राज्य में घोषित किया गया था। यह बंगाल राज्य में स्थित है। स्वदेशी के कार्यक्रम के साथ ही बहिष्कार आंदोलन भी चलाया गया। कहा जाता है कि आंदोलनों में देश में उत्पादित वस्तुओं का उपयोग करना और ब्रिटिश माल को जलाना शामिल है।

बहिष्कार आंदोलन का क्या अर्थ है?

बहिष्कार आमतौर पर नैतिक, सामाजिक, राजनीतिक, या पर्यावरणीय कारणों के लिए विरोध की अभिव्यक्ति के रूप में किसी व्यक्ति, संगठन या देश के उपयोग से स्वैच्छिक और जानबूझकर रोकथाम का कार्य है। बहिष्कार का उद्देश्य किसी आपत्तिजनक व्यवहार को कुछ आर्थिक नुकसान कर या नैतिक आक्रोश कर मजबूरन बदलने की कोशिश है।