स्वनिम कितने प्रकार के होते है? - svanim kitane prakaar ke hote hai?

स्वनिम

स्वनिम कितने प्रकार के होते है? - svanim kitane prakaar ke hote hai?

किसी भाषा या बोली में, स्वनिम (phoneme) उच्चारित ध्वनि की सबसे छोटी ईकाई है। स्वनिम के लिए ध्वनिग्राम, स्वनग्राम आदि शब्द भी प्रयुक्त होते हैं। अंग्रेजी में इसका पर्यायी शब्द फोनीम (phoneme) है। Phoneme के लिए प्रयुक्त होने वाला ‘स्वनिम’ शब्द ‘ध्वनिग्राम’ की अपेक्षा कहीं अधिक नया है, किन्तु आजकल इसका ही प्रयोग चल रहा है। स्वनिम के स्वरूप के संदर्भ में विद्वानों में मतैक्य नहीं है। विभिन्न विद्वानों ने इसे भिन्न-भिन्न विषयों से सम्बन्धित माना है। ब्लूमफील्ड और डैनियल जोन्स से इसे भौतिक इकाई के रूप में स्वीकार किया है। एडवर्ड सापीर इसे मनोवैज्ञानिक इकाई मानते हैं। डब्ल्यू.

11 संबंधों: चीनी भाषा के रोमनीकरण पद्धतियों की सारणी, भाषाविज्ञान, रूपिम, सिंहल लिपि, स्वनिमिक लिपि, स्वनिमविज्ञान, स्वनिक परिवर्तन, हिन्दी पाठ से वाक (टीटीएस्), हिंदी स्वरविज्ञान, वर्णमाला, अंग्रेजी वर्णविन्यास।

चीनी भाषा के रोमनीकरण पद्धतियों की सारणी

यहाँ मानक चीनी भाषा के रोमनीकरण की विभिन्न पद्धतियों की तुलनात्मक सारणी दी गयी है। यह सारणी से ली गयी है। इस सारणी में चीनी भाषा के वे सभी अक्षर (सिलैबिल) सम्मिलित किये गये हैं जो स्वनिम की दृष्टि से अलग समझे जाते हैं। .

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भाषाविज्ञान

भाषाविज्ञान भाषा के अध्ययन की वह शाखा है जिसमें भाषा की उत्पत्ति, स्वरूप, विकास आदि का वैज्ञानिक एवं विश्लेषणात्मक अध्ययन किया जाता है। भाषा विज्ञान के अध्ययेता 'भाषाविज्ञानी' कहलाते हैं। भाषाविज्ञान, व्याकरण से भिन्न है। व्याकरण में किसी भाषा का कार्यात्मक अध्ययन (functional description) किया जाता है जबकि भाषाविज्ञानी इसके आगे जाकर भाषा का अत्यन्त व्यापक अध्ययन करता है। अध्ययन के अनेक विषयों में से आजकल भाषा-विज्ञान को विशेष महत्त्व दिया जा रहा है। .

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रूपिम

रूपिम (Morpheme) भाषा उच्चार की लघुत्तम अर्थवान इकाई है। रूपिम स्वनिमों का ऐसा न्यूनतम अनुक्रम है जो व्याकरणिक दृष्टि से सार्थक होता है। स्वनिम के बाद रूपिम भाषा का महत्वपूर्ण तत्व व अंग है। रूपिम को 'रूपग्राम' और 'पदग्राम' भी कहते हैं। जिस प्रकार स्वन-प्रक्रिया की आधारभूत इकाई स्वनिम है, उसी प्रकार रूप-प्रक्रिया की आधारभूत इकाई रूपिम है। रूपिम वाक्य-रचना और अर्थ-अभिव्यक्ति की सहायक इकाई है। स्वनिम भाषा की अर्थहीन इकाई है, किन्तु इसमें अर्थभेदक क्षमता होती है। रूपिम लघुतम अर्थवान इकाई है, किन्तु रूपिम को अर्थिम का पर्याय नहीं मान सकते हैं; यथा-परमेश्वर एक अर्थिम है, जबकि इसमें ‘परम’ और ‘ईश्वर’ दो रूपिम हैं। परिभाषा - विभिन्न भाषा वैज्ञानिकों ने रूपिम को भिन्न-भिन्न रूपों में परिभाषित किया है। कुछ प्रमुख विद्वानों की परिभाषाएँ द्रष्टव्य हैं- डॉ॰ उदयनारायण तिवारी ने रूपिम की परिभाषा इस प्रकार दी है, डॉ॰ सरयूप्रसाद अग्रवाल के अनुसार, डॉ॰ भोलानाथ तिवारी के मतानुसार, डॉ॰ जगदेव सिंह ने लिखा है,;पाश्चात्य विद्वानों द्वारा प्रदत्त परिभाषाएँ ब्लाक का रूपिम के विषय में विचार है- ग्लीसन का विचार है- आर.

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सिंहल लिपि

सिंहल लिपि में लिखा विज्ञापन सिंहल लिपि ब्राह्मी लिपि से व्युत्पन्न हुई लिपि है। यह सिंहल भाषा जो श्रीलंका की राजभाषा है। इसके अतिरिक्त यह लिपि पालि तथा संस्कृत लिखने के लिये प्रयुक्त होती है। अनेक भारतीय भाषाओं की लिपियों की तरह सिंहल भाषा की लिपि भी ब्राह्मो लिपि का ही परिवर्तित विकसित रूप हैं। जिस प्रकार उर्दू की वर्णमाला के अतिरिक्त देवनागरी सभी भारतीय भाषाओं की वर्णमाला है, उसी प्रकार देवनागरी ही सिंहल भाषा की भी वर्णमाला है। सिंहल भाषा को दो रूप मान्य हैं - शुद्ध सिंहल द्वारा सभी स्थानीय स्वनिम निरूपित किए जा सकते हैं। इस वर्णमाला में केवल बत्तीस अक्षर मान्य रहे हैं- मिश्रित सिंहल, शुद्ध सिंहल का विस्तारित रूप है। यह पालि तथा संस्कृत लिखने के लिए आवश्यक है। अतः वर्तमान मिश्रित सिंहल ने अपनी वर्णमाला को न केवल पाली वर्णमाला के अक्षरों से समृद्ध कर लिया है, बल्कि संस्कृत वर्णमाला में भी जो और जितने अक्षर अधिक थे, उन सब को भी अपना लिया है। इस प्रकार वर्तमान मिश्रित सिंहल में अक्षरों की संख्या चौवन है। अट्ठारह अक्षर "स्वर" तथा शेष छत्तीस अक्षर व्यंजन माने जाते हैं। शुद्ध सिंहल, मिश्रित सिंहल का उपसमुच्चय (एक भाग) है। .

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स्वनिमिक लिपि

स्वनिमिक लिपि (phonemic orthography) उस लिपि को कहते हैं जिसमें एक लिपिचिह्न (grapheme) एक निश्चित स्वनिम phoneme को निरूपित करता है। ब्राह्मी लिपि से व्युत्पन्न देवनागरी आदि लिपियाँ बहुत हद तक स्वनिमिक कही जा सकतीं हैं। श्रेणी:लिपि श्रेणी:भाषा-विज्ञान.

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स्वनिमविज्ञान

स्वनिमविज्ञान (Phonology) भाषाविज्ञान की वह शाखा है जो किसी भी मानव भाषा में ध्वनि के सम्यक उपयोग द्वारा अर्थपूर्ण अभिव्यक्ति से सम्बन्धित मुद्दों का अध्ययन करती है। किसी भाषा की सार्थक ध्वनियों की व्यवस्था का अध्ययन ही स्वनिमविज्ञान कहलाता है। स्वनिमविज्ञान अपनी मूल इकाई के रूप में स्वनिम (फोनीम) की संकल्पना करता है और इसके उपरांत स्वनिम तथा सहस्वन, उनके वितरण तथा अनुक्रम आदि का अध्ययन करता है। यह 'शब्द' के स्तर के नीचे के स्तर पर अध्यन करता है। .

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स्वनिक परिवर्तन

ऐतिहासिक भाषाविज्ञान के सन्दर्भ में, किसी भाषा की ध्वनि का कोई भी परिवर्तन जो उस भाषा के स्वनिमों की संख्या या उनका वितरण बदल दे, स्वनिक परिवर्तन या ध्वनि परिवर्तन (phonological change) कहलाता है। भाषा को गतिशील और परिवर्तनशील माना जाता है। प्रत्येक भाषा में आंतरिक परिवर्तन की प्रक्रिया निरंतर चलती रहती है। यह परिवर्तन या बदलाव सभी भाषिक स्तरों जैसे- ध्वन्यात्मक, रूपात्मक, अर्थात्मक आदि पर जारी रहता है। इन सभी परिवर्तनों में ध्वनि परिवर्तन मुख्य रूप से सबसे अधिक क्रियाशील रहता है। .

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हिन्दी पाठ से वाक (टीटीएस्)

हिन्दी पाठ से वाक प्रोग्रामों के निर्माण में लगभग वे ही चीजें लगतीं हैं जो अन्य भाषाओं के टीटीएस के लिये लगतीं हैं। परन्तु हिन्दी देवनागरी में लिखी जाती है, जो जैसी लिखी जती है वैसी ही पढ़ी भी जाती है। इसलिये इसके पाठ (ग्राफीम) को स्वनिम (फोनीम) में बदलने के नियम काफी सरल हैं तथा अपवाद कम हैं। .

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हिंदी स्वरविज्ञान

स्पर्श: हिन्दी में (प्रकार्यात्मक स्तर पर महत्त्वपूर्ण) १६ स्पर्श व्यंजन स्वनिम के रूप में प्रयोग किये जाते हैं। चार द्वयोष्ठ्य स्पर्श व्यंजन हैं जिनमें घोषत्व एवं प्राणत्व जैसे दो स्वनिमिक अभिलक्षणों द्वारा चार द्वयोष्ठ्य स्पर्श स्वनिम प्राप्त होते हैं - इन चारो के लिए प्रयुक्त देवनागरी वर्णमाला के चार वर्ण यहां दिए गए हैं। इसी प्रकार के अन्य तीन स्पर्श व्यंजन वर्ग हैं - दंत्य (त, द, थ, ध) मूर्धन्य (ट, ड, ठ, ढ) और कंठ्य (क, ग, ख, घ) तालव्य ध्वनियों का ऐसा ही व्यंजन वर्ग स्पर्श-संघर्षी व्यंजन ध्वनियों के अंतर्गत आता है यद्यपि इसे भी कुछ भाषाविदों ने स्पर्श ध्वनियों के साथ रखा है। ये व्यंजन स्वनिम हैं (च, ज, छ, झ)। संघर्षी - व्यंजन ध्वनियों में तीन स्वनिम हैं: दंत्य / वर्त्स्य ध्वनि /स्/ के लिए "वर्ण" प्रयोग किया जाता है तो /ह्/ के लिए 'ह' वर्ण प्रयुक्त होता है /स्~/ का उच्चारण हिन्दी भाषा के विकास की धारा में किसी स्तर पर दो अलग-अलग रूपों में किया जाता था अर्थात् तालव्य /स्~/ एवं मूर्धन्य /स्/ दो अलग स्वनिम माने जाते थे और इन दो के लिए दो वर्ण भी प्रयोग किए जाते थे - श-तालव्य एवं-मूर्धन्य जो कि आज भी देवनागरी लिपि में ज्यों के त्यों प्रयोग होते हैं परन्तु आज इन दोनों में ध्वनि स्तर पर अधिक अन्तर नहीं रह गया है, केवल तालव्य संघर्षी व्यंजन स्वनिम /स्~/ जिसका रूप मूर्धन्य ध्वनियों के साथ तालव्य न रहकर मूर्धन्य हो जाता है। जैसे कष्ट, नष्ट। दृष्टि आदि शब्दों में मूर्धन्य "ट"से पहले। इसीलिए इन्हें एक ही स्वनिम के दो उपस्वन मानना अनुचित न होगा। इसके अतिरिक्त चार संघर्षी ध्वनियां अरबी फारसी शब्दों के माध्यम से हिन्दी में आकर अब हिन्दी की ध्वनि व्यवस्था का अंग बन चुकी हैं। ये ध्वनियां हैं - फ़ द्वयोष्ठ्य संघर्षी व्यंजन स्वनिम /ं/, ज़ जो कि दंत्य ध्वनि स का ही सघोष रूप है /ॅ/ और कंठ्य ध्वनियां ख़ /द्/ अघोष कंठ्य संघर्षी और इसी का सघोष ध्वनि रूप ग़। नासिक्य - देवनागरी वर्णमाला में हमें प्रत्येक स्पर्श अथवा स्पर्श-संघर्षी व्यंजन वर्ग के अंत में एक नासिक्य व्यंजन वर्ण भी मिलता है जैसे कंठ्य ध्वनियों के साथ अ कंठ्य नासिक्य ध्वनि है तो मूर्धन्य ध्वनियों के साथ ण, मूर्धन्य नासिक्य है, तालव्य ध्वनियों के साथ ञ, तालव्य नासिक्य है और दंत्य एवं द्वयोष्ठ्य नासिक्य के साथ न एवं म, क्रमशः दंत्य नासिक्य एवं द्वयोष्ठ्य नासिक्य /म्/ लिखा जाता है। प्रकार्य की दृष्टि से देखा जाए तो अ एवं ञ़्अ कंठ्य एवं तालव्य नासिक्य व्यंजन केवल "न" नासिक्य के उपस्वनों के रूप में प्रयोग किए जाते हैं जबकि म, न, ण का स्वतंत्र स्वनिमों के रूप में प्रयोग होता है। अर्थात् म-न-ण अर्थभेद प्रकार्य करने वाली नासिक्य ध्वनियां हैं जब कि अ एवं ञ, न नासिक्य के साथ परिपूरक वितरण में मिलती हैं - न का उच्चारण कंठ्य ध्वनियों के पूर्व कंठ्य नासिक्य अ के रूप में होता है तो तालव्य ध्वनियों के पूर्व तालव्य नासिक्य ञ ध्वनि के रूप में होता है। पार्श्विक एवं लुंठित ध्वनियां - ये ध्वनियां क्रमशः /ई/ एवं /र्/ दोनों हिन्दी के दो स्वतन्त्र स्वनिम हैं जिनके लिए देवनागरी लिपि मे ल एवं र लिपि चिन्हों का प्रयोग होता है। लुंठित ध्वनि के साथ व्यतिरेक दिखाते हुए उत्क्षिप्त ध्वनियां ड़ /र्/ एवं इसका महाप्राण रूप ढ़ /र्ह्/ भी दो भिन्न स्वनिम हैं। ये दोनों ध्वनियां और मूर्धन्य नासिक्य व्यंजन ण शब्दों के शुरू में प्रयोग नहीं किए जाते। इन व्यंजन ध्वनियों के अतिरिक्त हिन्दी में दो अर्धस्वर /य्/ एवं /त्/ भी है जिनके लिए क्रमशः य एवं व लिपि चिन्हों का प्रयोग किया जाता है। य एक स्वनिम है और ब स्वनिम के उपस्वनों के रूप में एक ओर दंत्योष्ठ्य संघर्षी, सघोष ध्वनि है तो दूसरी ओर द्वयोष्ठ्य अर्धस्वर है जिन्हें उपस्वनों के रूप में इस प्रकार दिखाया जा सकता है । श्रेणी:हिन्दी श्रेणी:भाषा स्वरविज्ञान.

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वर्णमाला

तिब्बती वर्णमाला चित्रलिपि-आधारित शब्द है, जिसका अर्थ 'किताब' या 'लेख' होता है - यह अक्षर नहीं है और इसका सम्बन्ध किसी ध्वनि से नहीं है - जापान में इसे "काकू" पढ़ा जाता है जबकि चीन में इसे "शू" पढ़ा जाता है किसी एक भाषा या अनेक भाषाओं को लिखने के लिए प्रयुक्त मानक प्रतीकों के क्रमबद्ध समूह को वर्णमाला (.

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अंग्रेजी वर्णविन्यास

अंग्रेज़ी वर्णविन्यास (English orthography) अंग्रेज़ी भाषा द्वारा काम में लिया जाने वाली वर्णमाला शब्द-विन्यास निकाय है। अन्य भाषाओं से अलग, अंग्रेज़ी में लगभग प्रत्येक स्वनिम वर्तनी को उच्चारित करने का अपना एक अलग तरिका होता है। अधिकतर अक्षर और अक्षर-समूह प्रसंग और अर्थ के आधार पर भिन्न रूप से उच्चारित किये जा सकते हैं। इसका कारण व्यवस्थित वर्तनी सुधारों का अभाव वाला अंग्रेज़ी भाषा का जटिल इतिहास है। व्यापक रूप में आधुनिक अंग्रेज़ी वर्तनियों में ध्वनि परिवर्तन प्रतिबिम्बित नहीं होता जो पन्द्रहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध से आरम्भ हुआ। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

फोनीम।

स्वनिम के कितने भेद होते हैं?

स्वनिम और उपस्‍वन एक ही प्रकार्य संपन्न करते हैं। उनके प्रयोग की स्थितियाँ अलग-अलग होती हैं। दोनों में संबंध और अंतर को आगे 'स्वनिम और उपस्वन' शीर्षक के अंतर्गत स्‍पष्‍ट किया जाएगा। स्वनिमों में दो वर्ग किए गए हैं – खंडात्‍मक और अधिखंडात्‍मक।

स्वनिम का अर्थ क्या होता है?

स्वनिम उच्चारित भाषा की ऐसी लघुत्तम इकाई है, जिससे दो ध्वनियों का अन्तर स्पष्ट होता है। इस प्रकार यह भी स्पष्ट है कि स्वनिम का सम्बन्ध ध्वनि से है। ध्वनि का सम्बन्ध यदि उच्चारण से होता है, तो श्रवण से भी इसका अटूट सम्बन्ध होता है। यदि ध्वनि सुनी नहीं जाएगी तो उसका अस्तित्व भी संदिग्ध होगा।

स्वन विज्ञान का दूसरा नाम क्या है?

इसके लिए ध्वनिशास्त्र, ध्वन्यालोचन, स्वनविज्ञान, स्वनिति आदि नाम दिए गए हैं। अंग्रेजी में उसके लिए 'फोनेटिक्स' (phonetics) और 'फोनोलॉजी' (phonology) शब्दों का प्रयोग होता है।

स्वनिम और रूपिम क्या है?

स्वनिम भाषा की अर्थहीन इकाई है, किन्तु इसमें अर्थभेदक क्षमता होती है। रूपिम लघुतम अर्थवान इकाई है, किन्तु रूपिम को अर्थिम का पर्याय नहीं मान सकते हैं; यथा-परमेश्वर एक अर्थिम है, जबकि इसमें 'परम' और 'ईश्वर' दो रूपिम हैं। पदग्राम (रूपिम) वस्तुतः परिपूरक वितरण या मुक्त वितरण मे आये हुए सहपदों (संख्यों) का समूह है।