महामारी : विभीषिकाएंएवंपरिस्थितियाँ - ‘पहलवानकी
ढोलक’ कहानीकेविशेषसन्दर्भमें Show बीजशब्द :महामारी, इतिहास, बीमारी, प्रथमविश्वयुद्ध, परिस्थितियाँ, प्रभाव, पहलवान, ढोलक, कहानी, लेखक, सत्ता, व्यवस्था, भयानक, त्रासदी, अप्रगतिशील, मानव। मूलआलेख :वर्तमानमेंमहामारीशब्दहमारेलिएअनुभवसेपरेनहींहै। ‘महामारी’ सेइससमयहमसबगुजररहेहैं।यहएकऐसीविभीषिकाहै, जोसम्पूर्णमानवजातिकेलिएअकल्याणकारीकालिमालेआतीहै।इसकेप्रभावपूरेमानवसभ्यताकेलिएहानिकारकहैं।इससमयपूराविश्व ‘कोरोना’ नामकभयानक महामारीसेजूझरहाहै।इसबीमारीकेकारणअब तकलाखोंलोगोंकीमौतहोचुकीहै।अगरहम इतिहासकेपृष्ठोंमेंमहामारीकेअहितकारीतामसिकतत्त्वों परनज़रडालेंतोयहसहजहीपताचलताहै किप्रथमविश्वयुद्धकेबादसेहीहरसौ सालमेंकोईनकोईबीमारीमहामारीकारूपधारण करतीआयीहै।उनमहामारियोंकीवजहसेनजाने कितनेकरोड़लोगोंकीमृत्युहोचुकीहै।इतिहासमें हमकुछप्रमुखमहामारियोंकोदेखसकतेहैं, जिसकेकारण एकबड़ीआबादीकानुकसानहुआहै।महामारीकेइस ताण्डवनेलोगोंकीजीवनजिजीविषाकोअस्त-व्यस्त करदियाहै।सन1915में ‘फेलाइटिसलेटाग्रिका’ नामक महामारीपूरेविश्वमेंफैलनेलगीथी, जो1926तक मानवसभ्यताकेलिएहानिकारकसिद्धहुई।इसकेकारण लोगोंकी ‘नर्वससिस्टम’ मेंकुप्रभावपड़ताथा।इसका इन्फेक्शनलोगोंमेंतेजीसेफैलताथा। ‘कोरोना’ महामारीकीतरहहीइसमहामारीमेंभीकरोड़ोंकीमौत हुईथी।(1) सन1918मेंआये ‘स्पेनिशफ्लू’ का प्रकोप1920तककाफीतेज़ीसेफैलनेलगाथा।इस महामारीकाप्रकोपपूरेविश्वकेसाथभारतमेंभी तेजीसेबढ़नेलगा।(2) सन1961सेलेकर1975तक ‘हैजामहामारी’ नेपूरेदेशकोअपनीचपेटमेंले लियाथा।भारतऔरबांग्लादेशमेंभीइसकाप्रभाव काफ़ीपड़ाथा।यहबीमारी ‘बिब्रियोकोलेरा’ नामकबेक्टेरिया केकारणफैलतीथी।(3) सन1968सेलेकर1969तक हांगकांगमें ‘फ्लूमहामारी’ फैलीथी।इससमयवियतनाम कायुद्धहोरहाथा।युद्धमेंजिनसैनिकोंने भागलियाथा, उनसबसेधीरे-धीरेअन्यदेशोंमें भीयहवायरसफैलगयाथा।इसमहामारीनेभी मृत्युकीविभीषिकासेमानवसभ्यताकोछलनी-छलनी करदियाथा।(4) 1974में ‘चेचक’ नामकखतरनाकबीमारीपूरे विश्वमेंफैलीथी। ‘वायरलमाइनर’ वायरसतथा ‘वेरियोला मेंजर’ नामकवायरससेयहबीमारीफैलनेलगीथी। पूरेभारतमेंलगभग60प्रतिशतलोगइसकेप्रकोपमें आगएथे।इसबीमारीसेछुटकारापानेकेलिए भारतसरकारद्वारा ‘राष्ट्रीयचेचकउन्मूलनकार्यक्रम’ भीचलाया गया।इसखतरनाकबीमारीसेविश्वको1977मेंछुटकारा मिला।(5) सन1994मेंसूरतशहरमें ‘न्यूमोनिकप्लेग’ महामारीफैली।इसमहामारीकेकारणसूरतकीआधी आबादीकोसूरतछोड़करजानापड़ाथा।सूरतशहरकी गन्दीनालियोंऔरखराब सीवेज सेयहमहामारीफैलनेलगीथी।यहमहामारीएक-दूसरेमेंसहजहीसंक्रमितहोतेथे।(6) सन2002सेलेकर2004तक ‘सार्स’ नामकएक बीमारीफैलीथी।इसबीमारीकेलक्षणकुछ-कुछ ‘कोरोना’ सेमिलते-जुलतेथे।सन2006मेंदिल्लीजैसे बड़ेशहरमेंभी ‘डेंगूऔरचिकनगुनिया’ जैसीबिमारियों नेफनउठायेथे।यहबीमारीमच्छरोंद्वाराफैलती थी।यहबीमारीभीकहींनकहींपूरेदिल्लीशहर मेंमहामारीकाहीरूपधारणकरचुकीथी।इसी तरह2009मेंगुजरातमें ‘हेपाटाइटिसबी’ नामकबीमारीफैली थीतो2014मेंओडिशाराज्यमें ‘पीलिया’ नामकबीमारी खराबजलव्यवस्थाकेकारणफैलीथी, जिसकाप्रकोपलगभग 2015तकरहा।इसकेअलावा ‘स्वाइनफ्लू’ जो2014में H1V1वायरसद्वाराफैलीथी, जिसकेकारणतक़रीबन2000लोगों कीमौतहोगयीथी।(7) सन2017मेंगोरखपुरमें ‘इंसेफलाइटिस’ बीमारीफैलीथी, जिसकेकारणछोटे-छोटेबच्चों कीमौतहोगयीथीयालोगविकलांगहोगए थे।सन2018मेंकेरलमें ‘निपाहवायरस’, चमगादड़ों सेफैलीथी, जिसकेकारणभीकेरलमेंमृत्युकीसंहारलीलाहुई।(8) भारतदेशअलग-अलगसमयमें विविधमहामारियोंसेपीड़ितहोताआयाहै, जिसकाप्रभावन केवलसापेक्षिकबल्किभविष्यमेंभीइसकाप्रभावदेखने कोमिलताहै।आजपूरेविश्वकेसाथभारतभी ‘कोरोना’ महामारीसे2019सेअबतकलगातारजूझरहाहै। महामारीसेकोईभीअछूतानहींरहता।चाहेअमीरहोयागरीब, अच्छेहोयाबुरेसभीको समानरूपसेमहामारीग्रसितकरतीहै।इसविभीषिका सेसाहित्यकारहोयाकलाकार, राजनीतिज्ञआदिसमाजकेसभी बुद्धिजीवीकहींनकहींप्रभावितरहेहैं।अन्यसाहित्यकारों कीतरहहिंदीसाहित्यकारभीइसकीविभीषिकाजन्यतासेमुक्त नहींहैं।भक्तिकालसेलेकरआधुनिकहिंदीसाहित्य केपरिप्रेक्ष्यतकमहामारीकीत्रासदकेशब्दचित्रभरे पड़ेहैं।महामारीकेसंहारकरूपनेसाहित्यकारकीस्वानुभूतिएवंजीवनजगतकोदेखनेकेउनकेनजरियेमें काफीबदलावलायेहैं।साहित्यकारकाजीवनएवंभाव जगतमेंमहामारीकोलेकरजोभोगाहुआयथार्थहैं, उसेहमभक्तिकालकीसाहित्यिकभूमिसेपरिलक्षित करसकतेहैं।हिंदीसाहित्यकारोंकीकुछकृतियोंको लेसकतेहैं, जिसमेंअनेकतरहकीभूखमरीएवंमहामारी कावर्णनहुआहै।अकालऔरमहामारीकावर्णनसबसे पहलेहमेंभक्तिकालमेंकबीरएवंतुलसीदासजीके साहित्यमेंदिखाईपड़ताहै।तुलसीदासकी'कवितावली' में अकालकेकारणहोनेवालेदु:खोंकाजिक्रकिया गयाहै।आधुनिककालतकआते-आतेमहामारीकी विभीषिकाकेत्रासदसाहित्यविस्तृतरूपमेंमिलतेहैं। केदारनाथअग्रवालकीकविता ‘अकालसेलड़ताकमासिन’ और ‘बंगालकाअकाल’ मेंभूखमरीकामार्मिकचित्रणहुआ है।नागार्जुनकी ‘प्रेतकाबयान’ नामककवितामें भीभूखमरीकेकारणहुईदयनीयस्थितिकावर्णनहुआ है।केदारनाथसिंहकी ‘अकालमेंदूब’ और ‘अकाल मेंसारस’ नामककवितामेंअकालऔरउसकेबादकी स्थितियोंकाविशदवर्णनहुआहै। जयशंकरप्रसादके उपन्यास ‘कंकाल’, अमृतलालनागरके ‘महाकाल’, रांगेयराघवके ‘विषादमठ’, निरालाके ‘अलका’ और ‘कुल्लीभाट’, केशवप्रसाद मिश्रके ‘कोहबरकीशर्त’, राहीमासूमराजाके ‘आधागांव’, नरेशमेहताके ‘उत्तरकथा’, कमलाकांतत्रिपाठीके ‘पाहीघर’, प्रभाखेतानके ‘पीलीआंधी’, शरदचंद्र चट्टोपाध्यायके ‘गृहदाह’, रेणुकेउपन्यास ‘मेलाआँचल’ में समय-समयआईमहामारीऔरभुखमरीकावर्णनकियागया है।इसकेअतिरिक्तअनेककहानियोंमेंभीमहामारीऔर अकालकेवर्णनदेखनेकोमिलतेहैं।भगवानदासके ‘प्लेगकीचूड़ैल’, पांडेयबेचनशर्माउग्रके ‘वीभत्स’, धर्मवीरभारतीके ‘मुर्दोंकागांव’ आदिकेसाथ रेनूकी ‘पहलवानकीढोलक’ मुंशीप्रेमचंदके ‘ईदगाह’ मेंभीमहामारीऔरभूखमरीकासफलचित्रणमिलताहै।इसकेअलावाबनारसीदासजैनकी ‘अर्द्धकथानक’ नामकआत्मकथामें महामारीकाविशदवर्णनहुआहै।(9) हरिशंकरपरसाईकी संस्मरण ‘गर्दिशकेदिन’ मेंभीमहामारीकास्पष्ट वर्णनहुआहै।इसीतरहसमय-समयपरअनेकलोगों नेअपनीप्रतिभाकेबलपरमहामारीकोसाहित्यमें उताराहै। एंडेमिक, एपिडेमिक्सऔरपेंडेमिकमहामारियोंकेइतिहास केबारेमेंहमसभीभलीभाँतिजानतेहैं।महामारियों सेमानवसमाजकेराजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, शैक्षिक, पारिवारिक, साहित्यिकइत्यादिसभीपक्षप्रभावितहोतेहैं।कलाकार, साहित्यकार, राजनीतिज्ञ, वैज्ञानिकआदिमहामारीकेअकल्याणकारीतत्त्वोंसेमानवजाति केउद्धारकेलिएप्रयत्नरतहोनेकेसाथस्वयंभी इसकेसंक्रमणमेंआजातेहैं।महामारीकेप्रलयकारी रूपकोउजागरकरनेवालेइसतरहकेसाहित्यिककृति कोपढ़नेसेवास्तवमेंयहज्ञातव्यहोताहैकि मानवीयताकेलिएमहामारीकीविभीषिकाकितनीभयानकहै। इसीभयावहताकाचित्रणप्रसिद्धहिंदीलेखक, साहित्यकारफणीश्वर नाथरेणुनेअपनीकहानी ‘पहलवानकीढोलक’ में कियाहैं।यहएकऐसीकहानीहै, जिसमेंसामाजिकपृष्ठभूमि कीविभिन्नसमस्याओंकेअकल्याणकारीतत्त्वोंकोउद्घाटितकरने कीकोशिशकीगईहै।सत्ता-व्यवस्थाकेबदलते परिप्रेक्ष्यमेंमानवसभ्यतासेलेकरकिसतरहएक कलाकारकाजीवनभीबदलजाताहै, उसीकाचित्रणइसकहानीमेंकियागयाहै।कलाकारकेजीवनमें मानोअँधेरा-साछाजाताहै।ऐसेबदलतेपरिदृश्य मेंऔरजहांहैजेऔरमलेरिया, अकालऔरभूखमरीजैसे भयानकतत्त्वोंकाखुलातांडवहोतोमानवीयसभ्यता कहाँतकसुरक्षितरहपाएगी? ऐसीहीदयनीयस्थितिका वर्णनकरतेहुएकोरोनापीड़ितवर्तमानपरिदृश्यमें ‘पहलवान कीढोलक’ कहानीकीप्रासंगिकता, महामारीऔरभूखमरीके अकल्याणकारीतत्त्वोंकापर्दाफाशतथाकहानीमेंवर्णितअहितकर महामारीऔरअकालकीत्रासदीऔरवर्तमानमहामारीकी भयावहतासेउसकातादात्म्यआदिकाचित्रणइसलेख मेंसुव्यवस्थितकियागयाहै। ‘पहलवानकीढोलक’ कहानी काशुभारंभमहामारीसेपीड़ितएकगाँवकेचित्रणसे सेहोताहै।मलेरियाऔरहैजानामकमहामारीकेकारण गाँवमेंएकदमसन्नाटाछागयाथा।ऐसालगताहै मानोरातकाअँधेराअपनीआँचलमेंसन्नाटाऔर निस्तब्धतालिएहुएहै।कहानीकारकेशब्दमें– “अँधेरी रातचुपचापआंसूबहारहीथी।निस्तब्धताकरुणसिसकियों औरआहोंकोबलपूर्वकअपनेहृदयमेंहीदबानेकी चेष्टाकररहीथी।आकाशमेंतारेचमकरहेथे। पृथ्वीपरकहींप्रकाशकानामनहीं”।(10) कहानीकार नेमहामारीकीविभीषिकाकाचित्रणकरनेकेसाथ-साथ सत्ता-व्यवस्थाकेबदलतेस्वरूपकोभीउजागरकिया हैऔरइसभयावहपरिस्थितिसेपीड़ितकलाकारकीजीवन जिजीविषाकोभीपाठकोंकेसामनेमुखरकरनेकीकोशिश कीहै।देशकीसत्ता-व्यवस्थाकेबदलनेसे राजदरबारीपहलवानकोगाँवमेंआकरजीवनव्यतीतकरना पड़ताहै।जीवननिर्वाहकीअनेकसमस्याओं सेजूझने केअलावामहामारीकेसंहारककालिमासेभीउसेजूझना पड़ताहै।ऐसीभयंकरमृत्युशृंखलाकावर्णनइस कहानीमेंकियागयाहै।कहानीकामुख्यचरित्र पहलवानलुट्टनसिंहएकराजदरबारीपहलवानहै।राजाके स्वर्गवासकेपश्चातविलायतसेराजकुमारआकरराजदरबारकाभारलेलेतेहैं।राजकुमारकुश्तीकीजगहघोड़ेकी रेसपरबलदेतेहैंऔरपहलवानकोराजदरबारसे निकालदियाजाताहै।यहींसेराजदरबारीपहलवानकी जीवनशैलीदूसरामोड़लेतीहै।पहलवानअपनेदोनोंबेटों केसाथगाँवमेंजाकररहनेलगतेहै।गाँववाले एकझोपड़ीकीव्यवस्थाकरदेतेहैंऔरखानपानकी जिम्मेदारीभीगाँववालोंद्वाराहीउठाईजातीहै। पहलवान गाँवमेंहीअनेकबच्चोंकोकुश्तीसीखानेकाकाम करनेलगताहै।गाँववालेविभिन्नआफतोंसेजूझरहे हैं।गाँवकीआर्थिकएवंसामाजिकस्थितिदयनीयथी। कहानीकारकेअनुसार- “अकस्मात्गाँवपरयहवज्रपातहुआ। पहलेअनावृष्टि, फिरअन्नकीकमी, तबमलेरियाऔरहैजे नेमिलकरगाँवकोभूननाशुरूकरदिया”।(11) इसतरहकीसमस्याओंसेनकेवलगाँववालेजूझ रहेथेबल्किलुट्टनपहलवानभीइससेबचानहींथा। गाँवकेदूसरेलोगोंकेसाथपहलवानभीमहामारीसे संक्रमितहोगया।पहलवानअपनेबच्चोंकेसाथ जैसे-तैसेमजदूरीकरकेमहामारीकेदिनोंमेंभी दिनगुजाराकररहाथा।परन्तुमहामारीऔरभूखमरीने पहलवानकेजीवनकोउलट-पुलटदियाथा।महामारीसे पूरागाँवध्वस्तहोगयाथा।ऐसीदयनीयभूखमरीएवं भयानकमहामारीकेतहतएकदरबारीपहलवानकाजीवन अस्त-व्यस्तहोजाताहै।इससेकहानीकारनेइसतथ्य कोउजागरकरनेकीकोशिशकीहैकिस्वतन्त्रताके पश्चातदेशस्वतंत्रतोज़रूरहोगया, सत्तामेंभी बदलावकाफीआयापरन्तुजोगाँवकापरिवेशहै, परिस्थितियाँ हैं, वोकहींनकहींआजभीवैसाहीहै। जैसेकुश्तीकीजगहआजलोगघोड़ेकीरेसदेखना पसंदकरतेहैं।क्यायहीबदलावहैं? आजकोरोनामहामारी केदौरानगाँवकीजोदयनीयदशाहै, देशके ठेकेदारजिसतरहइसकीमार्केटिंगकरतेहैं, सत्ताधारीजिस तरहसियासीखेलखेलतेहैं, ऐसीहीदयनीयस्थितिऔर सत्ताधारीकीकुटिलमानसिकताकाचित्रण ‘पहलवानकीढोलक’ कहानीमेंकियागयाहै। आजभीदेशके गाँवकीव्यवस्थापहलवानकेगाँवकीतरहहीहै। महामारीसेपीड़ितएवंप्रताड़ितग्रामीणजीवनके शब्द-चित्रखींचतेहुएलेखकलिखतेहैं- “गाँवकी झोपड़ियोंसेकराहनेऔरकैकरनेकीआवाज, हरेराम! हेभगवान्! कीटेरअवश्यसुनाईपड़तीथी।”(12) आज भीकोरोनाकालकीसंहारकत्रासदीमेंपहलवानके गाँवकेजैसेदयनीयचित्रमिलजातेहैं।कहानीकार ने'मलेरिया' और'हैजे' जैसीमहामारीकेचित्रणके दौरानपहलवानजैसेकल्पितपात्रकेव्यक्तित्वकोपाठकों केसमक्षरखा, जोकभीहारनहींमानता।पहलवानसम्पूर्ण गाँवकेलिएप्रेरणास्रोतबनजाताहै।गाँवमेंवह एकऐसाव्यक्तिहै, जिसनेमहामारीकेदौरानरात-रात भरढोलकबजाकरगाँवकीनिस्तब्धताकोदूरकरनेकी कोशिशकीहैतथागाँववालोंकेमनोजगतमेंआशा कीकिरणभरताहै। पहलवानकोलगताथाकि ढोलककीइसआवाजसेलोगोंमेंहिम्मतपैदाहोगी औरउन्हेंमहामारीकेसाथलड़नेकीताकतमिलेगी। कहानीकारकाकथनहै- “रात्रिअपनीभीषणताकेसाथ चलतीरहतीऔरउसकीसारीभीषणताकोतालठोककर ललकारतीरहतीथी- सिर्फपहलवानकीढोलक! संध्यासे लेकरप्रात:कालतकएकहीगतिसेबजतीरहती- चट-धा, गिड़-धा...... चट-धा, गिड़-धा...! यानीआ जाभीड़जा, आजाभीड़जा..... बीच-बीचमें चटाक-चट-धा!, यानीउठाकरपटकदे, उठाकरपटक दे! यहीआवाजमृतप्रायगाँवमेंसंजीवनीशक्तिभरती थी”।(13) जिससमयगाँवमेंमृतकोंकाढेरजमाहोनेलगाथा, लोगबेघरहोगएथे, घरके आंगनमेंशून्यताछागईथी, उससमयभीएक पहलवानकाव्यक्तित्वथा, जोकलाकारभीहै, अपनेस्व मेंसाहसलिएहुएहैं, जोदिनरातएकाकारकरकेपूरेगाँवकेलिएकल्याणकारीसोचरखताथा।अपनेढोलक केस्वरसेलोगोंकेमनकोशांतकरनेकी कोशिशकरताथा, उन्हेंप्रेरणादेताथाऔरग्रामीणजनमानस मेंउत्साहकेरागभरदेताथा। ग्रामीणपरिवेश मेंमहामारीकेकारणजोभयानकस्थितिउत्पन्नहोगई थी, पहलवानउसेठीककरनेकीकोशिशकरताथा।गाँव कीभयानकस्थितिकावर्णनलेखककेशब्दोंमें- “पूरेगाँवमेंहैजेऔरमलेरियाइसतरहकारूप धारणकरलेतेहैंकिगाँवप्राय: सूनाहोचला था।घरकेघरखालीपड़गएथे।रोजदो-तीनलाशेंउठनेलगीं।लोगोंमेंखलबलीमचीहुई थी।”(14) महामारीकेमृत्युयज्ञकीनिस्तब्धताकोदूर करनेकेलिए, लोगोंकोहोरहीपरेशानियोंको, विवश मनःस्थितिकोदूरकरनेकेलिएपहलवानरातसेलेकर प्रात:कालतकलगातारढोलकबजातारहताथा।कहानीके एकअंशमेंकहानीकारनेऐसासंवेदनजन्यवर्णनकियाहै, मानोकहानीकारनेवर्तमानपीठिकाकोदेखाहो।इस कोरोनाकालकेदौरानजनमानसकीवहीहालतहोगयी है, जोकहानीमेंपरिलक्षितहोतीहै।महामारीकीत्रासदी कावर्णनकरतेहुएलेखकलिखतेहैं- “भैया! घरमें मुर्दारखकरकबतकरोओगे? कफ़न? कफ़नकीक्याजरुरत है, देआओनदीमें”।(15) लाशकेअंतिम संस्कारकेलिएकफ़ननहींमिलपारहेथे, जिसकेकारणलाशोंकोजैसे-तैसेनदीमेंबहानापड़ाथा। कहींनकहींआजकोरोनाकेदौरमेंभीहमें इसदृश्यसेगुजरनापड़ाहै।जबहजारोंलाशेंएक साथउठनेलगींतबकफ़नकहाँसेनसीबहोंगे? इसीलिए सबकोनदीमेंहीबहादियागयाथा।इसतरहकीभयानकस्थितिसेकैसेलोगजूझसके, उसका जीता-जागतास्वरूपहमेंपहलवानकीअपराजेयमनःस्थितिमें दिखाईदेताहै।कैसेपहलवानलुट्टनसिंहअपनीकलाकारियों सेरातकीविभीषिकाओंकोभीचुनौतीदेकरआशाकी किरणलेआतीथी, जनमानसमेंफैलादेतीथी।कोरोना महामारीकेदौरानभीहमऐसेअनेककलाकारवआशावादी जनताकेव्यक्तित्वसेरूबरूहोतेहैं, जिन्होंनेपहलवानकी तरहहीकोरोनाकीविभीषिकाओंसेलड़नेकेलिए सर्वसाधारणजनमानसकोउत्साहितकिया, लोगोंकोप्रेरणादी, खानपान काध्यानरखाआदि।उदाहरणकेतौरपरहमयहाँ ‘सोनूसूद’ जैसेकलाकारकोलेसकतेहैं, जिन्होंनेहजारों लोगोंकीमददकरतेहुएउनमेंआशाकीनईकिरण भरदीऔरउन्हेंमंजिलतकपहुँचाया।हमएकपल केलिएइन्हेंपहलवानकेस्थानपररखकरदेखसकते हैंकिएककाल्पनिकपात्रकाकल्याणकारीव्यक्तित्वआज केयथार्थकेलिएप्रेरणास्रोतहै।एककलाकारहोने केनातेएकपहलवानमहामारीमेंलोगोंकेलिएजो करसकतेथा, उसनेउसेपूराकिया।कहानीकारकेशब्दों में- “पहलवानसंध्यासेसुबहतक, चाहेजिसख़यालसे ढोलकबजाताहो, किन्तुगाँवकेअर्द्धमृत, औषधी-उपचार-पथ्य-विहीनप्राणियोंमेंवहसंजीवनीशक्तिहीभरतीथी।बूढ़े-बच्चे-जवानोंकीशक्तिहीनआँखोंके आगेदंगलकादृश्यनाचनेलगताथा”।(16) अत: विचारणीयहैकिएककलाकारकीकलाओंनेमहामारीकी भीषणपरिस्थितियोंमेंउससेलड़नेकेलिएजनमानसको ताकतदी, यहींपरसाहित्यकीजीवनकलाजिन्दाबादघोषित होतीहैं।इसतरहकापरिवेशविशेषत: गाँवमेंहमें आजभीदेखनेकोमिलताहै।कभी-कभीयेफरिश्ते कलाकारभीमहामारीकेप्रकोपमेंआजातेहैं।हैजे औरमलेरियापहलवानकेदोनोंबेटोंकेसाथउसेभी संक्रमितकरतेहैं।अपनेबेटोंकोखोनेकेबादभी वहहिम्मतनहींहारतातथाउसीउत्साहकेसाथढोलक काआशावादीस्वरनिरन्तरसुनाताहै।पहलवानअपनेबेटों कोखोकरभीकर्तव्यरतहै।कहानीकारनेपहलवानके व्यक्तित्वकोमुखरकरतेहुएलिखाहैं- “प्रात:काल उसनेदेखा- उसकेदोनोंबच्चेजमीनपरनिस्पंदपड़े हैं।दोनोंपेटकेबलपड़ेहुएथे।एकने दांतसेथोड़ीमिट्टीखोदलीथी।एकलम्बीसांस लेकरपहलवाननेमुस्कुरानेकीचेष्टाकीथी- दोनों बहादुरगिरपड़े”।(17) महामारीकीभयावहतासेगाँव वालेकभी-कभीव्यथितहोतेहैंपरन्तुरातके अंधकारकोतोड़करआशाकीआभादिखानेवालेढोलककी आवाज़गाँववालोंकीहिम्मतदुगनीकरदेतीहै। महामारीसेलोगोंकेसामनेअनेकतरहकीसमस्याएँआती हैं।आर्थिक, पारिवारिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिकइत्यादितमामतरहकी समस्याओंकेकारणपरिस्थितियाँवपरिवेशदयनीयहोजाता है।महामारीकेसाथभूखमरीजैसीसमस्याएंलोगोंकी दशाऔरअधिकदयनीयकरदेतीहैं।जोलोगप्रतिदिन मजदूरीकरकेजीवनगुजाराकरतेहैं, उनकेलिएजिन्दारहना भीदुष्करबनजाताहै।समस्याओंकीविभीषिकासे सामनाकरनेकेलिएलोगोंमेंहिम्मतकीज़रूरतपड़ती है, जोपहलवानमेंसामान्यत: है, पहलवानउसेलोगोंमेंभीजगानेकीकोशिशकरताहै। आजभीकहींन कहींगाँवकापरिवेशवैसाहीहै, जोसौसाल पहलेहुआकरताथा।तत्कालीनसमयमेंमहामारियोंसे लोगजिसतरहजूझतेथे, कहींनकहींआजभी लोगवैसेहीक्षतिकारकसमस्याओंकासामनाकरतेहैं। हमारादेशस्वतंत्रहोनेकेबावजूदभीकहींनकहीं गाँवकापरिवेशहाशियेपरहै।सत्ता-व्यवस्थामें अनेकबदलावआएपरन्तुगाँवकापरिवेशवहींकावहीं है।कहानीकारनेकल्पितपात्रपहलवानकीधैर्यशीलता, संयम, उदारवादिता एवंमानवीयताजैसेबहुमूल्यव्यक्तित्वसेमहामारीसेजूझने कीप्रेरणादी।आजकीपतनमुखीमानवसभ्यताकेलिए पहलवानकीमानवीयचेतनाअत्यावश्यकहै। निष्कर्ष :एक विश्वयुद्धविश्वमानवताकोआघातकरताहैऔर महामारीजैसेविश्वयुद्धमानवताकेवर्तमानऔरभविष्य कोखोखलेकरदेतीहैं।कितनोंकेघरतहस-नहस होजातेहैं, कितनेलोगबेघरहोतेहैंऔरमहामारी औरभूखमरीकीभयावहतासेकितनोंकाविवेकविकलांग होजाताहै।लोगोंकीलाशेंनदीमेंनिराधारबहा दीजातीहैं, उनकोंकफ़नतकनसीबनहींहोते। ‘पहलवान कीढोलक’ कहानीमेंभीहमइसीतरहकीपरिस्थितियों कोदेखपातेहैं।इसकहानीमें ‘हैजे’ और ‘मलेरिया’ जैसीमहामारियोंसेकाफीलोगोंकीमौतहोती है।यहाँतककि ‘लुट्टनपहलवान’ जैसेकलाकारभी इसकेप्रकोपमेंआजातेहैं।कोरोनामहामारीकीवजह सेनजानेकितनेलुट्टनकीमौतहुई, कितनेबेघरहोगए।यहविचारणीयविषयहै।महामारीकीविभीषिकाके बारेमेंकिसीनेसचहीकहाहै- “कोरोनामहामारी नहींएकयुद्धहै, इसीबीमारीसेलड़नेकायुद्ध, दवाईयावैक्सीनबनानेकायुद्ध, अपनोंसेबिछड़जाने केबादजीनेकायुद्ध, प्रकृतिसेऑक्सीजनप्राप्तकरने कायुद्ध, बेरोजगारोंकेरोजगारकेलिएयुद्ध, अपनोंकेखोएहुएप्यारकेलिएयुद्धइसप्रकारचारोंतरफ हाहाकारफैलाहुआहै”।(18) ‘पहलवानकीढोलक’ कहानी मेंलुट्टनसिंहअपनेकलाकारीअस्तित्वकोजीवितरखते हुएगांवकेजनमानसकोअनावृष्टि, भूखमरी, बेरोज़गारी, हैजेऔर मलेरियाजैसीमहामारियोंकेभयानकआक्रमणसेरक्षाकरने कीकोशिशकीहै।जबभीहमआजकेदौर मेंइसकहानीकोपढ़तेहैंतोकहींनकहीं इसकोरोना-कालमेंभीऐसेअनेकचरित्रोंकोसमक्ष पातेहैं, जोउनसभीसमस्याओंसेप्रत्यक्षएवंपरोक्ष रूपमेंकहींनकहींलड़ेहैं।चूँकिआजदेश स्वतन्त्रताप्राप्तकरनेकी75सालमेंआज़ादीकाअमृत महोत्सवमनारहाहै, लेकिनगाँवकापरिवेशजैसाका तैसाहै।आजभीगाँवमेंलुट्टनजैसेऐसेअनेक पात्रहोंगे, जिन्होंनेअपनीस्व-इच्छाएवंउत्साहीव्यक्तित्व सेजनमानसकीभलाईकी। कहानीकारकेनायकपहलवान होयासमकालीनसमयकागांवकाकल्याणकारीनायकहो, सभीनेअपनीपरवाहनकरतेहुएलोगोंमेंजीवन जिजीविषाकीशक्तिदी, निराशाकोदूरकरअपराजेयताकी प्रेरणादी, सत्ताधारीकेसियासीघटनाक्रमसेमुक्तकर सर्वसाधारणकोसहजताकीसीखदी।पहलवानकीजिस कलाकारीनेमहामारीमेंरात्रिकेनिस्तब्धताकोदूर करआशाकीकिरणजगाई, लोगोंमेंजीवनसंजीवनीभर दी, आजउसीकीप्रासंगिकताहमेंनजरआतीहै।पहलवान कीढोलककेनायकलुट्टनसिंहनेजिससमस्यासे ख़ुदजूझकरमानवसभ्यताकीभलाईकी, वहकभीभी अप्रासंगिकनहींहोसकती।यहांकहानीकारकेनायकऔरपरिस्थितिनिर्मितयथार्थजन्यनायककेव्यक्तित्वकीतुलनाकरनेका कोईभीउद्देश्यनहींहैं।सिर्फकहानीकारकेमनोजगत कीपृष्ठभूमिऔरवर्तमानसमयकेभोगेहुएयथार्थके सामाजिकत्रासदी, महामारीकीविभीषिकाएवंकल्याणकारीउद्देश्यधर्मिताको रेखांकितकरनेकाविधिवतप्रयासकियागयाहैं।अतः ज्ञातव्यहैंकि ‘पहलवानकीढोलक’ कहानीआजके दौरमेंप्रासंगिकएवंउपादेयहैं। सन्दर्भ :
आलियाजेसमिना
अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati) फणीश्वर नाथ रेणु
विशेषांक, अंक-42, जून 2022, UGC Care Listed Issue कहानी में लुट्टन के जीवन में क्या क्या परिवर्तन आया?माता-पिता का बचपन में देहांत होना।. सास द्वारा उसका पालन-पोषण किया जाना और सास पर हुए अत्याचारों का बदला लेने के लिए पहलवान बनना।. बिना गुरु के कुश्ती सीखना। ... . पत्नी की मृत्यु का दुःख सहना और दो छोटे बच्चों का भार संभालना।. नए राजकुमार के आने के बाद पहलवान के जीवन में क्या बदलाव आ गया?नए राजकुमार ने विलायत से आकर राजकाज अपने हाथ में ले लिया। उसने पहलवानों की छुट्टी कर दी। लुट्टन ढोलक कंधे से लटकाकर अपने पुत्रों के साथ गाँव लौट आया। गाँव वालों ने उसकी झोपड़ी बना दी तथा वह गाँव के नौजवानों व चरवाहों को कुश्ती सिखाने लगा।
मृत्यु होने पर पहलवान की क्या इच्छा थी?उत्तर: पहलवान की अंतिम इच्छा थी कि मरने के बाद उसे चिता पर पेट के बल लिटा दिया जाए क्योंकि वह जीवन में कभी 'चित' नहीं हुआ। इसके अलावा चिता सुलगाने के समय ढोलक बजाया जाए।
पहलवान की ढोलक की आवाज का पूरे गाँव में क्या असर होता था?ढोलक की आवाज़ सुनकर लोगों को प्रेरणा तथा सहानुभूति मिलती थी। मृत्यु के भय से आक्रांत लोग, अर्धचेतन अवस्था में पड़े लोग, जिदंगी से हारे लोग ढोलक की आवाज़ से जी उठते थे। रात की विभीषिका उन्हें आक्रांत नहीं कर पाती थी। जब तक ढोल बजता था उनकी अश्रु से भरी आँखें उसे सुनकर चमक उठती थी।
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