ओम प्रकाश वाल्मीकि का संग्रह 'सलाम' दलित जीवन का आईना है .इस कहानी संग्रह में कुल चौदह कहानियाँ हैं। सलाम,बिरम की बहू ,पच्चीस चौका डेढ़ सौ इस संग्रह की चर्चित कहानियाँ हैं। सभी कहानियों में उपेक्षित और वंचित दलित जीवन के विविध पक्षों को प्रस्तुत किया गया है।उन्होंने दलित जीवन के पीड़ा ,संत्रास और छटपटाहट ,जीवन की विवशता को रचनात्मक रूप प्रदान किया।
उन्होंने शोषित जन समूह के अस्मिता को उभारा और समाज की विसंगतियों पर प्रहार किया। ओम प्रकाश वाल्मीकि ने अपनी रचनाओं के माध्यम से सामाजिक आंदोलनों को साहित्यिक अभिव्यक्ति देने का महत्वपूर्ण काम किया। सभी कहानियाँ सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक सन्दर्भों के बीच रची गयी हैं। एक बड़े वर्ग का असंवेदनशील चेहरा इन कहानियों में उभर कर सामने आता है। बरसों की उपेक्षा से उपजी व्यथा को वाल्मीकि जी ने स्वर दिया है। दलित साहित्य उस सामन्तवादी व्यवस्था के खिलाफ़ उठ खड़ा हुआ , जो
पीढ़ियों से एक वर्ग के लोगों को अछूत समझता रहा। दलित साहित्य उन दमित लोगों की अस्मिता की पहचान है। दलित जीवन संघर्ष से उपजी मुक्ति की चेतना ने नयी रचनाधर्मिता को अभिव्यक्ति दी। मानव विरोधी वर्ण व्यवस्था के परिणामस्वरूप साहित्य में नये नायकों का जन्म हुआ। Show इतिहास यहाँ नकली है मर्यादाएँ सब झूठी हत्यारों की रक्तरंजित उँगलियों पर जैसे चमक रही हरीश के भीतर आक्रोश है। वह कहता है - '' आप चाहे जो समझें .... मैं इस रिवाज को आत्मविश्वास तोड़ने की साजिश मानता हूँ। यह ' सलाम ' की रस्म बंद होनी चाहिए। '' समाज के कुछ बाहुबलि लोगों द्वारा किया जाने वाला शोषण अब दलित वर्ग और
नहीं सहेगा। शक्ति प्रदर्शन की यहाँ परंपरा ख़त्म होनी चाहिए। हरीश का सलाम से इंकार पूरे समाज को चुनौती है। प्रतिरोध के लिए साहस की आवश्यकता होती है। यह साहस शिक्षा से आया है। वाल्मीकि जी ने यहाँ दिखाने की कोशिश की है कि शिक्षा एक ऐसा औज़ार है जिसके द्वारा जाति व्यवस्था की बेड़ियों को काटा जा सकता है। दलित समाज अपने अधिकारों के प्रति तभी सचेत होगा जब वो शिक्षित हो। सलाम कहानी में वे जातिगत संस्कारों को तोड़ने की बात करते हैं ,उसी
के अंत में हिन्दू - मुसलमान के छुआछूत भेद को दिखाते हैं। सलाम करने न जाकर जिस हरीश को स्वाभिमान और आत्मविश्वास से भरा दिखाते हैं वही एक छोटे लड़के के ये बोल सुनकर ' मैं मुसलमान के हाथ की बनी रोटी नहीं खाऊंगा ' हताश हो जाता है। सम्भवतः लेखक ने इस कहानी के माध्यम से जाति के साथ-साथ धार्मिक भेदभाव की समाज में गहरी पैठ की ओर ईशारा किया है।
इस कहानी संग्रह में कई ऐसे भी पात्र हैं जो वंचित होने के कारण वे समाज के घृणा और तिरस्कार के पात्र बने। जिन पर बिना गलती किये भी सज़ा थोप दी गयी। कहाँ जाये सतीश कहानी में सतीश की गलती महज़ इतनी है कि वो दलित जाति का है। जब तक मिसेज़ पंत को ये पता नहीं था , उनकी बेटी सोनू ने सतीश को राखी बांधी थी। पर अब वो एक पल भी सतीश को बरदाश्त नहीं कर पा रही थी--'' हाँ … अब यही तो बचा है ,बाप-दादों की परंपरा ख़त्म कर दी। एक डोम को घर में रख लिया। सोनू तो उसका जूठा तक खा गई … मेरी तो समझ नहीं आ रहा कि प्रायश्चित कैसे होगा ....अगर मुझे पता होता तो घर में घुसने भी न देती उसे। जैसे वह वापस आएगा उसका सामान उठाकर बाहर फेंको। मुझे तो उसके कपड़ों से भी बदबू आने लगी है। '' यह घृणा बेमतलब थी। यह अधिकतर समाज की जड़ मानसिकता रही है जो इस कहानी के माध्यम से व्यक्त हुई है। गोहत्या कहानी का पात्र सुक्का में विरोध का साहस न था। उसे सिर्फ शक के आधार पर पंचायत ने सजा सुना दी। वह कसम खाकर कहता रह गया कि उसने गौ हत्या नहीं की। जिसने कभी सूअर न मारा हो वह गौहत्या कैसे कर सकता है। सब इस सच से वाकिफ़ थे। पर पंचायत की विरोध का साहस किसी में न था। निर्दयता की हद ये कि हल में काम आने वाली लोहे की फाल को आग में तपाकर उसके हाथ में थमा दिया गया। सुक्का की सजा से पूरा गांव जैसे गोहत्या के पाप से मुक्त हो गया हो। इसलिए वे उस प्रताडना के शिकार हुए। ओम प्रकाश वाल्मीकि ने साहित्य में एक अपरिचित समाज का पक्ष रखा. इनकी आत्मकथा जूठन साहित्य में एक विस्फोट की तरह आयी। इस रोंगटे खड़े कर देने वाली आत्मकथा ने साहित्य जगत का ध्यान अपनी ओर खींचा। इनकी कहानियों में भी अनुभव की प्रमाणिकता तो है ही ,साहित्य में जिन मानवीय मूल्यों के स्थापना की बात कही गयी है , उनकी स्थापना पर भी बल दिया गया है। वाल्मीकि जी ने
दलितों को लेकर भी प्रश्न उठाये हैं। अंधड़ कहानी के मिस्टर लाल अपने अतीत को भूल कर आगे बढ़ गये और उनकी परछाईयों से भी बचने की कोशिश करते रहे।दीपचंद की मृत्यु ने मिस्टर लाल को भावुक कर दिया था। दीपचंद की वजह से ही वे पढाई कर सके थे। उनके सहयोग की वजह से आज वे पूना के एक सरकारी संस्थान में वैज्ञानिक जैसे प्रतिष्ठित पद पर नियुक्त थे। लेकिन वो जीवन की सच्चाईयों से पलायन करते रहे थे. पत्नी सविता को याद हो आया था कि कैसे वे पूर्व में दीपचंद के घर जाने की बात पर
बिफर पड़े थे -'' मैं जिस गंदगी से तुम्हे बाहर निकालना चाहता हूँ …तुम लौट लौटकर उसी में जाना चाहती हो। तुम वहाँ जाओगी ,तो वे भी यहाँ आयेंगे। मैं नहीं चाहता यहाँ लोगों को पता चले कि हम 'शेड्यूल्ड कास्ट' हैं। जिस दिन लोग ये जान जायेंगे ,यह मान-सम्मान सब घृणा-द्वेष में बदल जायेगा। '' मिस्टर लाल की आज की भावुकता देखकर सविता पति के दोहरेपन पर विस्मित थी। यह कथन आईना है दलित समाज का ,जिसके लिए आगे बढ़ जाने पर उसका अपना ही समाज घृणित हो जाता है। जो अपनी वास्तविकताओं और यथार्थ को छोड़कर छद्म
जिंदगी जीने लग जाता है। बेटी पिंकी के सवालों का कोई जवाब नहीं मिस्टर लाल के पास --'' आपने इनके लिए क्या किया ?आई थिंक यू हैव इग्नोर्ड देम.... आपको ऐसा नहीं करना चाहिए था डैड। '' यह कटाक्ष है . मिस्टर लाल अपने साथ अगर अपने समाज के कुछ और लोगों को लेकर आगे बढ़ते तो कुछ स्थिति सुधरती। दलित लेखन और उनके साहित्यिक उभार ने परिवर्तनकामी समाज में एक तरह का अपराधबोध भी जागृत किया है। सामान्य वर्ग के वे लोग जो इस शोषणकारी व्यवस्था को बदलना चाहते हैं ,समाज के उस तबके के स्वर के साथ
स्वर मिला रहे हैं। जैसा की वाल्मीकि जी ने भी अपनी कई कहानियों में दिखाया है। कमल और ऋषि ऐसे ही बदलाव के पक्षधर हैं। भूमण्डलीकरण के युग में परम्परा के अमानवीय पहलुओं को नकार कर ही इस जाति व्यवस्था में स्थानांतरण किया जा सकता है। शहरीकरण , राजनीतिक ,आर्थिक बदलावों के परिणामस्वरूप व्यक्ति चेतना का उदय हुआ है। पूर्व में हाशिये पर रहा समाज अब मुख्य धारा में शामिल हो रहा है। कवि ,कथाकार ,विचारक के तौर पर वाल्मीकि जी ने पीड़ित समुदाय की विसंगतियों पर भी मुखरता से लिखा। ताकि समाज
में सामंजस्यपूर्ण और गुणात्मक परिवर्तन किया जा सके। उन्होंने साहित्य का नया सौंदर्यशास्त्र गढ़ा। दलित जीवन की ये कहानियाँ हमारे समाज की तस्वीर हैं ,जिसे हम अनदेखा करते आये हैं। यह साहित्य में किसी विमर्श का विषय नहीं ,समाज में मानव मूल्यों की स्थापना का विषय है। ओम प्रकाश वाल्मीकि के साहित्य में प्रश्नवाचकता है। जो साहित्य और समाज दोनों के लिए आवश्यक है . इसलिए इन कथाओं को थमकर ठहर कर पढ़ना होगा ताकि वे मात्र साहित्यिक निधि न रहें बल्कि समाज के भीतर
परिवर्तन लाने वाली तथा समतामूलक -न्यायसंगत व्यवस्था स्थापित करने में मददगार हो सकें। उन्होंने समाज और साहित्य के वर्चस्व को चुनौती देने का काम किया। उनका ऊर्जात्मक साहित्य आगे की पीढ़ियों के लिए मशाल का काम करेगा और नयी चेतना का वाहक बनेगा। सलाम कहानी संग्रह के लेखक कौन हैं?चर्चित कहानी संग्रह 'सलाम' ओमप्रकाश वाल्मीकि का पहला कहानी संग्रह है, जो वर्ष 2000 में प्रकाशित हुई।
सलाम कहानी का मुख्य पात्र कौन है?सलाम नामक कहानी ओमप्रकाश वाल्मीकि द्वारा लिखी गई एक कहानी ह। ै ओमप्रकाश वाल्मीकि ने यह कहानी दलित लेखन के अंतर्गत लिखी हैं। उनके द्वारा लिखी गई अधिकतर कहानियां दलित जीवन से जुड़ी रही है। सलाम कहानी का मुख्य पात्र मुख्य पात्र हरीश है जो कि भंगी समाज से संबंध रखता है।
सलाम कहानी के दो दोस्तों का नाम क्या है?हरीश और कमल की दोस्ती तथा एक-दूसरे का सहयोग, सानिध्य एवं मैत्री से लेखक के सरोकारों को कहानी पुष्ट करती है । 'सलाम' कहानी अन्ततः परम्परा एवं प्रथा के अमानवीय पहलुओं को उजागर करते हुए उसके नेपथ्य में काम कर रही जातिप्रथा एवं वर्चस्व की सोच को उजागर करती है।
सलाम कहानी का उद्देश्य क्या है?ओमप्रकाश वाल्मीकि कि 'सलाम' यह कहानी दलित जीवन का आईना है। 'सलाम' कहानी का उद्देश्य ही यह है कि दलितों को अपने अन्याय-अत्याचार के प्रतिरोध में जागृत करना। झूठ नहीं बोलते, दलित साहित्य का सौंदर्य शास्त्र, मुख्यधारा और दलित साहित्य आदि हैं।....
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