Show स्थायी भाव प्रधान मानसिक क्रियाएँ है ! इनके साथ ही कुछ ऐसे
भाव है जो बहुत थोड़े समय तक रहते है, ये स्थायी भावों के सहायक मात्र होते है ! ये सभी रसों में यथासंभव संचार करते रहते है, इसलिए इन्हे संचारी भाव कहते है ! इन भावों को व्यभिचारी भी कहा गया है क्योंकि वे किसी एक ही रस में स्थायी रूप से नहीं टिकते ! वे कभी किसी के साथ दिखाई देते है तो कभी किसी के साथ ! इस व्यभिचारी वृत्ति के कारण ही इन्हे व्यभिचारी कि संज्ञा दी गयी है ! रूप विद्या, धन, शक्ति आदि के अभिमान को गर्व कहा जाता है !अविनय, अनादर ,उपेक्षा आदि इसके अनुभाव है व्याभिचारी भाव को संचारी भाव क्यों कहते हैं?व्यभिचारी भाव को संचारी भाव इसलिए कहते हैं क्योंकि ये भाव एक जगह स्थिर नही रहते तथा पानी के बुलबुले के समान चंचल होते हैं और यहाँ-वहाँ संचार करते रहते हैं।
व्यभिचारी भाव का अर्थ क्या है?व्यभिचारी भाव- 'विं' और 'अभि' उपसर्गपूर्वक गत्यर्थक 'चर्' धातु से निष्पन्न व्यभिचारी का अर्थ है, जो विभिन्न प्रकार के रसों की ओर उन्मुख होकर संचरणशील रहता है । व्यभिचारी भाव वाचिक, आंगिक एवं सात्त्विक अभिनयों से रस की प्रतीति कराते हैं ।
व्यभिचारी भाव कितने होते हैं?संचारी भाव या व्यभिचारी भाव, जो पल-पल पर बदलते हैं, आते-जाते रहते हैं। शास्त्रकारों ने इनकी संख्या तेतीस बताई है।
संचारी भाव कैसे होते?संचारी भाव कहलाता है:. वह भाव जो केवल थोड़ी देर के लिए स्थायी भाव को पुष्ट करने के निमित्त सहायक रूप में आते हैं और तुरंत लुप्त हो जाते हैं |. जो भाव सदैव के लिए स्थायी भाव को पुष्ट करने के निमित्त सहायक रूप में आते हैं और तुरंत लुप्त हो जाते हैं |. |