सूर्य भगवान का उद्यापन कैसे होता है? - soory bhagavaan ka udyaapan kaise hota hai?

सूरज रोट का व्रत Suraj Rot ka Vrat होली तथा गणगौर के व्रत ( चैत्र शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि ) के बीच आने वाले रविवार को किया जाता है। सूरज रोट के व्रत में सूरज भगवान का पूजन किया जाता है।

एक समय भोजन करके पूरे दिन निराहार रहते हैं। भोजन में रोट खाते है जिसे झूठा नहीं छोड़ते। इस दिन नमक नहीं लिया जाता है। व्रत खोलने के लिए सूर्य छिपने से पहले भोजन किया जाता है। धूप में खड़े होकर सीधे सूरज की पूजा करनी चाहिये। ऐसा संभव ना हो तो सूर्य भगवान के चित्र की पूजा भी कर सकते हैं।

सूर्य भगवान का उद्यापन कैसे होता है? - soory bhagavaan ka udyaapan kaise hota hai?

सूरज रोट व्रत के पूजन की सामग्री

suraj roth vart poojan samgri

—  रोली

—  चावल

—  लच्छा

—  मेहंदी

—  घेवर या हलवा और रोट

—  जल का लोटा

—  गंगाजल

सूरज रोट बनाने की विधि

Suraj Rot kaise banate he

सूरज रोट की पूजा के लिए रोट बनाने के लिए गेंहू के आटे में घी का मोयन डालकर आटा गूँथ ले। आटे में नमक ना डालें। यह रोट अलूना होता है। इसे थोड़ी देर रख दें।

अब आटे को हाथ से मठार लें और थोड़ी मोटी रोटी बेल लें ।

बेली हुई रोटी के चारों और अंगूठे व अनामिका अंगुली की सहायता से मोटी मोटी चूटी काटकर डिजाइन बना लें।

यह रोटी सूरज जैसी दिखेगी।

रोटी के बीचो बीच किसी गोल चीज जैसे बोतल के ढक्कन से काटकर गोल छेद बना लें।

रोटी के इसी छेद में से देख कर सूरज भगवान की पूजा की जाती है।

रोटी को तवे पर धीमी आंच पर दोनों तरफ से अच्छी तरह सेक लें ।

एक बार मे जितना खा सकते है उतना ही बड़ा रोट बनाना चाहिए क्योंकि रोट झूठा नहीं छोड़ा जाता है।

सूरज रोट व्रत के पूजन की विधि

Suraj rot vrat pooja vidhi

दो रोट बनाये जाते हैं एक पूजा के लिए और एक खाने के लिए। पूजा वाला रोट पूजा के बाद ब्राह्मणी को या गाय को दिया जाता है। दूसरा रोट खुद खाया जाता है।

एक थाली में पूजा का सारा सामान रख ले। यदि होली पर दशामाता का डोरा लिया हो तो वह भी पूजा की थाली में रखें।

सूर्य भगवान को जल और गंगाजल के छींटे दें। इसके बाद रोली , लच्छा , अक्षत , मेहंदी अर्पित करें।

घेवर या हलवे का भोग अर्पित करें। रोट का भोग भी लगा सकते है लेकिन रोट टूटना नहीं चाहिए।

व्रत करने वाली स्त्री बाये हाथ में रोट या घेवर लेकर उसमें से सूरज को देखे और कोई दूसरी महिला सूरज की तरफ लोटे से थोड़ा थोड़ा जल  छोड़ती जाए।

जल छोड़ने वाली पूछे –

” सखी – सखी सूरज जी दिख्या ”

अर्थात –   हे सखी , क्या सूर्य भगवान दिख रहे हैं ?

व्रत करने वाली स्त्री जवाब में बोले –

” सूरज जी दिख्या , दिख्या सो ही टूट्या “

अर्थात – हाँ सखी , जैसे सुन्दर सूर्य भगवान दिख रखे हैं , वैसी ही हम पर कृपा करेंगे ।

इस तरह सात बार जल छोड़ने वाली यह प्रश्न पूछे और हर बार व्रत करने वाली यही जवाब दे। सातों बार यह जवाब घेवर या रोट में देखते हुए ही देने होते हैं।

इसके बाद सूर्य भगवान को धोक लगाकर प्रणाम करें।

अब आखे ( गेँहू  के कुछ दाने ) हाथ में लेकर सूर्य भगवान की कहानी कहें या सुने।

( इसे भी पढ़ें : सूर्य भगवान की कहानी सूरज रोट के व्रत वाली )

इसके बाद गणेश जी की कहानी सुने। क्लिक करे –

सूरज रोट के व्रत का उद्यापन

Suraj rot vrat ka ujman

किसी भी व्रत का उद्यापन करने से आने वाले वर्षों में व्रत करने की अनिवार्यता समाप्त हो जाती है। इसे उजमन  Ujman , उजाणा , उजमना Ujmana या उजरना के नाम से भी जाना जाता है।

सूरज रोट के व्रत का उद्यापन जरुरी होता है क्योंकि इस उद्यापन के बाद ही गणगौर के व्रत का उद्यापन किया जा सकता है। अतः सूरज रोट का उद्यापन जरूर कर लेना चाहिए, ताकि यदि गणगौर के व्रत का उद्यापन करना हो तो कर सकें।

सूरज रोट के व्रत का उद्यापन suraj rot ke vrat ka udyapan भी होली और गणगौर के बीच वाले रविवार को ही किया जाता है। यह उद्यापन लड़की अपनी शादी से पहले भी कर सकती है और शादी के बाद भी। जैसी परिवार में परंपरा हो वैसा कर सकते हैं। सूरज रोट का उद्यापन पीहर की तरफ से होता है।

उद्यापन की विधि  – Udyapan Vidhi

इस व्रत के उद्यापन में आठ महिलाओं को भोजन कराया जाता है। भोजन में एक ही तरह का अनाज काम में लिया जाता है। पूड़ी या रोट  परोसे जाते हैं। कोई भी रोट झूठा ना छोड़े इसका ध्यान रखना चाहिए। महिलाओं को टीका करते हैं ,  प्लेट में बिंदी का पत्ता रखकर देते है , इसके बाद ही विदा करते हैं ।

सूरज रोट उद्यापन के लिए एक दिन पहले यानि शनिवार को मेंहंदी लगा लें। दूसरे दिन यानि रविवार को जिस दिन उद्यापन करना है , उस दिन सुबह सिर धोकर नहा लें और सुन्दर वस्त्र , गहने आदि धारण करके श्रृंगार करें। पूजा के लिए रोट बना कर तैयार कर लें।

रोट और पूजा की थाली के साथ ऊपर बताए अनुसार सूर्य भगवान की पूजा करें।

सूर्य भगवान की कहानी सुनें ।

इसके बाद आठ महिलाओं को भोजन करायें। भोजन में रोट या पुड़ी और सब्जी तथा इसके अलावा श्रद्धा के अनुसार भोजन बनाया जा सकता है। लेकिन कोई भोजन झूठा ना छोड़े खासकर पुड़ी या रोट।

महिलायें जब भोजन कर लें तो उन्हें टीका करें ,प्लेट में रखकर बिंदी का पत्ता, साथ में श्रद्धानुसार 11 /-या 21 /- रूपये ऊपर रखकर उपहार में दें। एक प्लेट में घेवर , बिंदी का पत्ता , रूपये रखकर सासु माँ को पैर छूकर दें।

साखिये को भोजन करायें। साखिया आपके उद्यापन का साक्षी होता है। साखिया घर का कोई भी लड़का या देवर हो सकता है। साखिया को टीका करके वस्त्र उपहार में दें और कान पकड़ कर बरु करायें। यानि उससे कहलवायें कि वह उद्यापन का साक्षी रहेगा। इस प्रकार उद्यापन संपन्न होता है।

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सूर्य देव के व्रत का उद्यापन कैसे करें?

रविवार के व्रत का उद्यापन रविवार के व्रत वाले दिन सिर्फ गेहूं की रोटी या गेहूं का दलिया गुड़ डाल कर प्रसाद के रूप में सेवन करें. ऐसा करते हुए जब आपके व्रत का संकल्प पूरा हो जाए तो अंतिम रविवार वाले व्रत के दिन कम से कम चार ब्राह्मण को आदर के साथ भोजन कराएं.

उद्यापन में क्या क्या लगता है?

व्रत उद्यापन में शिव-पार्वती जी की पूजा के साथ चंद्रमा की भी पूजा करने का विधान है. उद्यापन पूरे विधि विधान से किया जाना जरूरी है..
शिव व पार्वती जी की प्रतिमा.
चंद्रदेव की मूर्ति या चित्र..
चौकी या लकड़ी का पटरा..
अक्षत..
पान (डंडी सहित)..
सुपारी..
ऋतुफल..
यज्ञोपवीत (हल्दी से रंगा हुआ)..

रविवार के कितने व्रत करने चाहिए?

रविवार व्रत के बारे में मान्यता है कि इसे एक साल में 30 या 12 रविवारों तक रखना चाहिए. कहा जाता है कि रविवार व्रत के दौरान एक समय ही भोजन करना चाहिए. भोजन में नमक का इस्तेमाल नहीं किया जाता है.

रविवार का व्रत कब से शुरू किया जाता है?

रविवार व्रत करने का सही तरीका सबसे पहले रविवार के दिन सूर्योदय से पहले उठकर नित्य कर्मों से निवृत्त हो जाएं, स्नान करके साफ लाल रंग के वस्त्र पहनें. मान्यता के अनुसार सूर्य देव का व्रत एक साल, 30 रविवार या फिर 12 रविवार तक करना अत्यंत शुभ माना जाता है. ये आपके सामर्थ्य पर निर्भर करता है.