वर्चुअल रियलिटी पर आधारित उपकरण का उदाहरण क्या है? - varchual riyalitee par aadhaarit upakaran ka udaaharan kya hai?

'वर्चुअल रियलिटी' की अनोखी दुनिया

  • टिम मौग़न
  • बीबीसी फ्यूचर

11 अगस्त 2016

वर्चुअल रियलिटी पर आधारित उपकरण का उदाहरण क्या है? - varchual riyalitee par aadhaarit upakaran ka udaaharan kya hai?

इमेज स्रोत, Nan Palmero Flickr CC BY 2.0

तकनीक की दुनिया में इस साल 'वर्चुअल रियलिटी' या VR की बड़ी चर्चा हो रही है.

सैमसंग, सोनी, गूगल, फ़ेसबुक और एचटीसी जैसी कंपनियां बड़ी रकम लगाकर 'वर्चुअल रियलिटी' हेडसेट तैयार कर रही हैं.

ये फ़िल्में और टीवी देखकर मनोरंजन करने के तरीक़े में क्रांति ला देंगी.

'वर्चुअल रियलिटी' असल में वो तजुर्बा है, जो आप तकनीक के ज़रिए कोई फ़िल्म या टीवी शो देखते वक़्त करते हैं.

इसमें हेडसेट या मोबाइल के ज़रिए आप फ़िल्म देखते हैं, या गेम खेलते हैं.

उस दौरान आपको ऐसा एहसास कराया जाता है कि आप उस जगह पर मौजूद हैं, जहां वो घटनाएं हो रही हैं.

आम तौर पर हम फ़िल्म देखते हैं तो सामने स्क्रीन पर तस्वीरें चलती-बोलती नज़र आती हैं.

इमेज स्रोत, Milica Zec Winslow Porter

टीवी के ज़रिए हम ऐसा ही तजुर्बा घर बैठकर करते हैं.

मगर 'वर्चुअल रियलिटी' में आप हेडसेट लगाकर मोबाइल पर या किसी अंधेरे स्टूडियो में ऐसा तजुर्बा करते हैं मानो आप जो तस्वीरें देख रहे हैं, उन्हीं के इर्द-गिर्द हैं.

तकनीक के जानकार साल 2016 को 'वर्चुअल रियलिटी' का साल बता रहे हैं.

कई कंपनियां हैं जो 'वर्चुअल रियलिटी' के लिए फ़िल्में, टीवी शो या गेम बना रही हैं.

इनका तजुर्बा आप ख़ास स्टूडियो में 'वर्चुअल रियलिटी' वाला हेडसेट लगाकर कर सकते हैं.

बीबीसी के संवाददाता, टिम मॉन ने अमरीका और ब्रिटेन में 'वर्चुअल रियलिटी' के ऐसे ही कुछ तजुर्बों को आज़माया.

इसके ज़रिए टिम का इरादा ये परखने का था कि आख़िर 'वर्चुअल रियलिटी' है क्या बला?

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इससे जितनी उम्मीदें लगाई जा रही हैं क्या वो उन पर खरी उतर पाएगी?

और इसमें किस तरह की तकनीक, कैसे लोग, और कितना पैसा लग रहा है?

टिम सबसे पहले न्यूयॉर्क की न्यू इन्कॉर्पोरेशन के बॉवरी स्थित स्टूडियो में गए.

यहां उन्होंने 'वर्चुअल रियलिटी' फ़िल्म 'जायंट' को 'वर्चुअल रियलिटी' हेडसेट की मदद से देखा.

इस फ़िल्म में एक ऐसे दंपति की कहानी दिखाई गई है, जो जंगी इलाक़े में फंसा है, जहां बमबारी हो रही है.

इस दंपति और इनकी बेटी पर जान गंवाने का ख़तरा मंडरा रहा है.

फ़िल्म देखकर टिम को कुछ देर के लिए लगा कि वो वाक़ई उस जगह हैं जहां पर ये दंपति जंग के हालात झेल रहे हैं.

इमेज स्रोत, Milica Zec Winslow Porter

'वर्चुअल रियलिटी' की ये फ़िल्म सर्बिया से आकर अमरीका में बसी मिलिसिया ज़ैक ने तैयार की है.

इसमें उनके बचपन की कहानी है, जब वो सर्बिया में रहती थीं.

नब्बे के दशक के उस दौर में नेटो देशों के विमान सर्बिया पर बम बरसा रहे थे.

'वर्चुअल रियलिटी' हेडसेट के ज़रिए ये फ़िल्म देखने पर ऐसा एहसास होता है कि आप उस वक़्त के सर्बिया में ख़ुद मौजूद हैं.

वहां मची चीख-पुकार से आपको दहशत होने लगती है. आप उस जगह से भागना चाहते हैं.

'वर्चुअल रियलिटी' फ़िल्में बनाने वाले, यही तजुर्बा कराने का दावा कर रहे हैं.

ऐसी फ़िल्में बनाने वाली मिलिसिया अकेली नहीं हैं. कई बड़ी कंपनियां 'वर्चुअल रियलिटी' में शानदार भविष्य देख रही हैं.

मिलिसिया के साथी विंस्लो पोर्टर कई 'वर्चुअल रियलिटी' प्रोजेक्ट्स पर काम कर चुके हैं.

ऐसा ही 'वर्चुअल रियलिटी' प्रोजेक्ट है गूगल का 360 कैमरा रिग.

इसमें सोलह कैमरों की मदद से वीडियो बनाया जाता है.

फिर इसे ग्राफिक्स वग़ैरह डालकर 'वर्चुअल रियलिटी' तकनीक से देखने के लिए तैयार किया जाता है.

इसके लिए एक स्मार्टफ़ोन और एक 'वर्चुअल रियलिटी' हेडसेट की ज़रूरत होती है.

इसमें आप ख़ुद से ही तस्वीरों का एंगल बदल सकते हैं. उन्हें ऊपर या नीचे कर सकते हैं.

गूगल की 'वर्चुअल रियलिटी' फ़िल्म निर्माता जेसिका ब्रिलहार्ट कहती हैं कि तजुर्बे के लिहाज़ से 'वर्चुअल रियलिटी' तमाम ख़्वाबों के पूरा होने जैसा है.

आप बहुत से सपने देखते हैं, जो हक़ीक़त की दुनिया में सच नहीं हो सकते.

उन्हें आभासी दुनिया या वर्चुअल वर्ल्ड में सच के तौर पर देखा जा सकता है.

ऐसा ही एक 'वर्चुअल रियलिटी' वीडियो तैयार किया है न्यूयॉर्क की एक कंपनी सिमिली ने, जिसका नाम ब्लैकआउट है.

इस वीडियो में आपको न्यूयॉर्क की लोकल ट्रेन में चलने का तजुर्बा होता है.

वीडियो को देखते वक़्त आप इसके किरदारों के ख़्यालों को भी पढ़ सकते हैं.

इस वीडियो को एचटीसी के स्मार्टफ़ोन और स्टीम के वाइव हेडसेट की मदद से देखा जा सकता है.

इस वीडियो की एक और ख़ासियत है. बाक़ी 'वर्चुअल रियलिटी' वीडियो को आप एक जगह बैठकर देखते हैं.

वहीं ब्लैकआउट का तजुर्बा आप पूरे स्टूडियो में टहलते हुए कर सकते हैं.

जैसे कि आप वाक़ई न्यूयॉर्क की लोकल ट्रेन में सफ़र कर रहे हों.

हालांकि 'वर्चुअल रियलिटी' का ये तजुर्बा फिलहाल काफ़ी महंगा है.

इसमें हेडसेट के लिए ही 800 डॉलर ख़र्च करने होंगे. फिर फ़ोन या कंप्यूटर की ज़रूरत भी होगी.

ब्लैकआउट वीडियो तैयार करने वाली कंपनी सिमिली के जॉर्ज और पोर्टर चाहते हैं कि 'वर्चुअल रियलिटी' के वीडियो तैयार करने में इस्तेमाल होने वाले यंत्र भी आम लोगों की पहुंच में हों.

ताकि लोग ख़ुद अपना वीडियो बनाकर दूसरों से शेयर कर सकें. ये कुछ-कुछ यू-ट्यूब जैसा अनुभव होगा.

गूगल के अलावा सोनी भी 'वर्चुअल रियलिटी' में अच्छा ख़ासा निवेश कर रही है.

सोनी की तकनीक के बारे में जानकार कहते हैं कि ये आम लोगों की पहुंच में होगी. सोनी बड़ी और मालदार कंपनी भी है.

इसीलिए वो रिसर्च में और आम लोगों तक तकनीक पहुंचाने में निवेश का जोखिम उठा सकती है.

आम लोग 'वर्चुअल रियलिटी' का लुत्फ़ उठा सकें, इसके लिए ज़रूरी है कि इसके उपकरण सस्ते हों.

लोगों की जेब ज़्यादा ढीली न हो. सोनी का प्लेस्टेशन आई, माइक्रोसॉफ्ट का एक्सबॉक्स काइनेक्ट जैसे कई 'वर्चुअल रियलिटी' गेमिंग कंसोल पहले से ही बाज़ार में हैं.

जो गेमिंग में आभासी दुनिया का एहसास दिलाते हैं. कभी इन्हें लेकर लोगों में ज़बरदस्त उत्साह दिखता था. मगर आज इनके कम ही ख़रीदार हैं.

ऐसे में सवाल ये उठता है कि कहीं 'वर्चुअल रियलिटी' तकनीक का भी यही हाल न हो.

जानकार कहते हैं कि इसका डर तो है. मगर 'वर्चुअल रियलिटी' को लेकर फिलहाल लोग उम्मीदें ज़्यादा पाले हुए हैं.

इसका तजुर्बा लोगों के लिए एकदम नया है. इसे बनाने वालों को भी लगता है कि वो लोगों को लुभा सकेंगे.

'वर्चुअल रियलिटी' के लिए पैसे ख़र्च करने को राज़ी कर सकेंगे.

'वर्चुअल रियलिटी' के ज़रिए गेम खेलना या फ़िल्म देखना लोगों के लिए एकदम अलग तरह का अनुभव होगा.

अभी तक आप सिर्फ़ दर्शक होते हैं. मगर 'वर्चुअल रियलिटी' की मदद से आप उस खेल में या उस फ़िल्म में साझीदार हो जाएंगे.

इस कारोबार में पैसा लगाने वाले निवेशक ये मानते हैं कि अभी इसका शुरुआती दौर है. उम्मीदें बहुत हैं.

मगर 'वर्चुअल रियलिटी' का दुनिया में डंका बजेगा, ये कहना ज़रा मुश्किल है.

ऐसे में इसमें ज़्यादा पैसे लगाना जोखिम का काम तो है.

लेकिन, जो रिस्क लेते हैं वो लोग ही कामयाबी का स्वाद चखते हैं.

ऐसे में 'वर्चुअल रियलिटी' के लिए अपना करियर दांव पर लगाने वाले हों या फिर इसमें पैसा लगाने वाले, दोनों फिलहाल उत्साहित हैं.

उन्हें लगता है कि मनोरंजन के इस नए अनुभव से दुनिया रोमांचित हो उठेगी.

वर्चुअल रियलिटी के मुख्य प्रकार क्या है?

सेमी-इमर्सिव Non-Immersive तथा Fully-Immersive वर्चुअल रियलिटी के मध्य का अनुभव है। इस प्रकार कि वर्चुअल रियलिटी का मुख्य रूप से शैक्षिक एवं प्रशिक्षण उद्देश्यों के लिए उपयोग किया जाता है। नॉन-इमर्सिव वर्चुअल रियलिटी सिस्टम कंप्यूटर, डिस्प्ले तथा अन्य इनपुट डिवाइस जैसे कीबोर्ड, माउस और कंट्रोलर आदि पर निर्भर करते हैं।

वर्चुअल रियलिटी क्या है व्याख्या करें?

Virtual reality एक ऐसा कृत्रिम वातावरण जो सॉफ़्टवेयर के मदद से बनाया गया है। इसके साथ ये उपयोगकर्ता को इस तरह प्रस्तुत किया गया जाता है जो कि उपयोगकर्ता को उसके असली होने के लिए प्रेरित करता है। यानी की उपयोगकर्ता को ये बिलकुल ही आसानी से विश्वास हो जाता है की वो जो देख, सुन और महसूस कर रहा है वो सच में महजूद है।

वर्चुअल वास्तविकता का वर्तमान में क्या उपयोग है?

वर्तमान में वर्चुअल रियलिटी का उपयोग अलग-अलग क्षेत्रों में किया जाता है जैसे कि सैन्य क्षेत्र, चिकित्सा क्षेत्र, मोटर वाहन क्षेत्र, शिक्षा ओर प्रशिक्षण, अंतरिक्ष, खेलकूद ओर मनोरंजन आदि जैसे क्षेत्रों में इसका उपयोग किया जाता है.

वर्चुअल का मतलब क्या है?

वर्चुअल का अर्थ होता है। एक ऐसी माया जिसे हमलोग देख सकते है सिर्फ छू नहीं सकते है। जिसे हमलोग ढेखर ज्ञान ले सकते है बूत उसे हमलोग सिर्फ आभाष करते है। जैसे की मैन आपको पहले बता दिया गेम का एक्साम्प्ले लेकर की पहले लोगो फिजिकल चीजों का प्रयोग करते थे।