संज्ञा के जिस रूप से किसी को पुकारा जाए उसे क्या कहते हैं? - sangya ke jis roop se kisee ko pukaara jae use kya kahate hain?

karak in hindi – किसी वाक्य में संज्ञा या सर्वनाम का अन्य शब्दों या क्रिया के साथ संबंध बनाने के लिए जिन शब्दों का प्रयोग किया जाता है, उन्हें कारक कहा जाता है.

साधारण शब्दों में बताएं तो संज्ञा सर्वनाम शब्द की वह स्थिति जिसके द्वारा वाक्य में उसका क्रिया के साथ संबंध प्रकट होता है उसे क्या कहते हैं.

चलिए कारक को उदाहरण से समझते है….

उदाहरण वाक्य – राम ने बैट से बॉल को मारा

इस उदाहरण में राम एक संज्ञा है. जो की क्रिया कर रहा है बॉल को बैट से मारने का.

इस वाक्य में बॉल से क्रिया के बीच संबंध को “को” शब्द बना रहा है. तो यहां “को” एक कारक है.

उसी तरह ‘राम ने’ में “ने” भी एक कारक है.

‘बैट से’ में “से” शब्द भी यहां अन्य वाक्यों से संज्ञा का संबंध बना रहा है. इसलिए “से” भी कारक है.

हिंदी में कुल 8 कारक होते हैं कर्ता, कर्म, करण, संप्रदान, अपादान, संबंध, अधिकरण और संबोधन

कारक विभक्ति

संज्ञा अथवा सर्वनाम शब्दों के बाद ‘ने’, ‘को’, ‘से’, ‘के लिए’ आदि जो चिन्ह लगते हैं.

कारक विभक्ति कहलाते हैं. अथवा संज्ञा सर्वनाम तथा विशेषण के आगे लगा हुआ वह प्रत्यय या चिन्ह विभक्ति कहलाता है.

जिससे पता लगता है कि उस शब्द का क्रिया से क्या संबंध है.

जैसे – राम ने कलम से लिखा

यहां ‘ने’ और ‘से’ शब्द विभक्ति हैं जो राम का सम्बन्ध जोड़ती हैं कलम और लिखने से

कारक चिन्ह
कर्ता ने
कर्म को
करण से, द्वारा
सम्प्रदान को, के लिए
अपादान से (अलग होने लिए)
सम्बन्ध का, के, की, रा, रे, री ,ना, ने, नी
अधिकरण में, पे, पर
सम्बोधन हे ! अरे ! ओ!

कर्ता कारक (karta karak in hindi)

जिस शब्द या रूप से क्रिया करने वाले की जानकारी होती है, उसे कर्ता कारक (karak in hindi) कहा जाता है.

कहा जाता है.

इसका विभक्ति चिन्ह ‘ने’ होता है. परंतु इस ‘ने’ का प्रयोग भविष्य और वर्तमान काल के लिए नही प्रयुक्त होता है.

सकर्मक धातुओं के साथ इसका प्रयोग भूतकाल में इसका प्रयोग होता है.

या सीधे शब्दों में आप ऐसे भी जान सकते हैं कि वाक्य में कार्य करने वाला जो भी व्यक्ति होता है, वह कर्ता होता है.

जैसे – रमेश ने सुरेश को मारा।

यहां पर रमेश कर्ता है, जिस पर विभक्ति चिन्ह ‘ने’ लगा हुआ है.

यहां पर क्रिया भूतकाल की हो रही है. जिसमें रमेश ने सुरेश को मारा है भूतकाल में.

sangya ki paribhasha

कर्म कारक

कर्ता द्वारा क्रिया का फल जिस संज्ञा या सर्वनाम को प्राप्त होता है, वह कर्म कारक (karak in hindi) कहलाता है.

इसका विभक्ति-चिह्न ‘को’ है. यह चिह्न भी बहुत-से स्थानों पर नहीं लगता।

कार्य का फल अर्थात प्रभाव जिसपर पड़ता है, उसे कर्म कारक कहते हैं।

जैसे – राम ने पेड़ की टहनियों को काटा।

इस वाक्य में ‘पेड़ की टहनियां’ कर्म है, क्योंकि राम के कार्य (काटने) का प्रभाव पेड़ की टहनियों पर पड़ा है।

करण कारक (karan karak in hindi)

संज्ञा आदि शब्दों के जिस रूप से क्रिया के करने के साधन का बोध हो अर्थात् जिसकी सहायता से कार्य संपन्न हो वह करण कारक कहलाता है।

इसके विभक्ति-चिह्न ‘से’ के ‘द्वारा’ है। जिसकी सहायता से कोई कार्य किया जाए, उसे करण कारक कहते हैं।

जैसे – वह चम्मच से खाता है।

इस वाक्य में ‘चम्मच’ करण है, क्योंकि खाने का काम चम्मच से किया गया है।

संप्रदान कारक

संप्रदान का अर्थ है-देना। अर्थात कर्ता जिसके लिए कुछ कार्य करता है, अथवा जिसे कुछ देता है उसे व्यक्त करने वाले रूप को संप्रदान कारक कहते हैं

लेने वाले को संप्रदान कारक कहते हैं।

इसके विभक्ति चिह्न ‘के लिए’ को हैं। जिसके लिए कोई कार्य किया जाए, उसे संप्रदान कारक कहते हैं।

जैसे – मैं दिनेश के लिए चाय बना रहा हूँ।

इस वाक्य में ‘दिनेश’ संप्रदान है, क्योंकि चाय बनाने का काम दिनेश के लिए किया जा रहा।

https क्या हैं

अपादान कारक (apadan karak in hindi)

संज्ञा के जिस रूप से एक वस्तु का दूसरी से अलग होना पाया जाए वह अपादान कारक (karak in hindi) कहलाता है।

इसका विभक्ति-चिह्न ‘से’ है। कर्त्ता अपनी क्रिया द्वारा जिससे अलग होता है, उसे अपादान कारक कहते हैं।

जैसे – 1. बच्चा छत से गिर पड़ा। 2. संगीता घोड़े से गिर पड़ी।

इन दोनों वाक्यों में ‘छत से’ और घोड़े ‘से’ गिरने में अलग होना प्रकट होता है। अतः घोड़े से और छत से अपादान कारक हैं।

संबंध कारक

शब्द के जिस रूप से किसी एक वस्तु का दूसरी वस्तु से संबंध प्रकट हो वह संबंध कारक कहलाता है।

इसका विभक्ति चिह्न ‘का’, ‘के’, ‘की’, ‘रा’, ‘रे’, ‘री’ है।

जैसे – 1. यह राधेश्याम का बेटा है। 2. यह कमला की गाय है।

इन दोनों वाक्यों में ‘राधेश्याम का बेटे’ से और ‘कमला का’ गाय से संबंध प्रकट हो रहा है। अतः यहाँ संबंध कारक है।

शब्द के जिस रूप से एक का दूसरे से संबंध पता चले, उसे संबंध कारक (karak in hindi) कहते हैं।

जहाँ एक संज्ञा या सर्वनाम का सम्बन्ध दूसरी संज्ञा या सर्वनाम से सूचित होता है,

वहाँ सम्बन्ध कारक होता है। इसके विभक्ति चिह्न का, की, के; रा, री, रे; ना, नी, ने हैं।

अधिकरण कारक (adhikaran karak in hindi)

जिस शब्द से क्रिया के आधार का बोध हो, उसे अधिकरण कारक कहते हैं।

जैसे – पानी में मछली रहती है।

इस वाक्य में ‘पानी में’ अधिकरण कारक है, क्योंकि यह मछली के आधार पानी का बोध करा रहा है।

इसके विभक्ति-चिह्न ‘में’, ‘पर’ हैं।

जैसे- 1.भँवरा फूलों पर मँडरा रहा है। 2.कमरे में टी.वी. रखा है।

इन दोनों वाक्यों में ‘फूलों पर’ और ‘कमरे में’ अधिकरण कारक (karak in hindi) है।

संबोधन कारक

जिससे किसी को बुलाने अथवा पुकारने का भाव प्रकट हो उसे संबोधन कारक कहते है

और संबोधन चिह्न (!) लगाया जाता है।

जैसे – 1.अरे भैया ! क्यों रो रहे हो ? 2. हे गोपाल ! यहाँ आओ। इन वाक्यों में ‘अरे भैया’ और ‘हे गोपाल’ ! संबोधन कारक है।

जिस शब्द से किसी को पुकारा या बुलाया जाए उसे सम्बोधन कारक कहते हैं।

जैसे – हे राम ! यह क्या हो गया।

इस वाक्य में ‘हे राम!’ सम्बोधन कारक है, क्योंकि यह सम्बोधन है।

karak wikipedia

तो उम्मीद हैं आप जान गए होंगे कि कारक क्या हैं वो भी हिंदी में (what is karak in hindi), कारक के भेद सहित।