पत्र लेखन हमारे जीवन में महत्वपूर्ण अंग क्यों माना जाता है? - patr lekhan hamaare jeevan mein mahatvapoorn ang kyon maana jaata hai?

पत्र लेखन का अर्थ- पत्र लेखन एक ऐसी कला है, जिसके माध्यम से दो व्यक्ति या दो व्यापारी जो एक दुसरे से काफी दूरी पर स्थित हो, परस्पर एक दूसरे को विभिन्न कार्यों अथवा सूचनाओं के लिए पत्र लिखते है। पत्र लेखन का कार्य पारिवारिक जीवन से लेकर व्यापारिक जगत तक प्रयोग में लाया जाता है। पत्र लेखन का कार्य अत्यंत प्रभावशाली होता है, क्योंकि इस साधन के द्वारा अनेकों लोगो से संपर्क स्थापित करने में भी सुविधा रहती है।

पत्र लेखन की उपयोगिता अथवा महत्व –

  • आजकल दूर-दूर रहने वाले सगे संबंधियों व व्यापारियों को आपस में एक दूसरे के साथ मेल जोल रखने एवं संबंध रखने की आवश्यकता पड़ती है, इस कार्य में पत्र लेखन एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • निजी अथवा व्यापारिक सूचनाओं को प्राप्त करने तथा भेजने के लिए पत्र व्यवहार विषय कारगर है। प्रेम, क्रोध, जिज्ञासा, प्रार्थना, आदेश, निमंत्रण आदि अनेक भावों को व्यक्त करने के लिए पत्र लेखन का सहारा लिया जाता है।
  • पत्रों के माध्यम से संदेश भेजने में पत्र में लिखित सूचना पूर्व रूप से गोपनीय रखी जाती है। पत्र को भेजने वाला तथा पत्र प्राप्त करने वाले के आलावा किसी भी अन्य व्यक्ति को पत्र में लिखित संदेश पड़ने का अधिकार नहीं होता है।
  • मित्र, शिक्षक, छात्र, व्यापारी, प्रबंधक, ग्राहक व अन्य समस्त सामान्य व्यक्त्तियों व विशेष व्यक्तियों से सूचना अथवा संदेश देने तथा लेने के लिए पत्र लेखन का प्रयोग किया जाता है।
  • वर्तमान व्यावसायिक क्षेत्र में ग्राहकों को माल के प्रति संतुष्टि देने हेतु, व्यापार की ख्याति बढ़ाने हेतु, व्यवसाय का विकास करने हेतु इत्यादि अनेक कार्यों में पत्र व्यवहार का विशेष महत्व है।

पत्र लेखन के आवश्यक तत्व अथवा विशेषताएं-

पत्र लेखन से संबंधित अनेक महत्व है परन्तु इन महत्व का लाभ तभी उठाया जा सकता है जब पत्र एक आदर्श पत्र की भांति लिखा गया हो। पत्र में सम्मिलित निम्नलिखित तत्वों के कारण ही पत्र को एक प्रभावशाली रूप दिया जा सकता है।

  1. भाषा- पत्र के अन्तर्गत भाषा एक विशेष तत्व है। पत्र की भाषा शिष्ट व नर्म होनी चाहिए। क्योंकि नर्म एवं शिष्ट पत्र ही पाठक को प्रभावित कर सकते हैं। कृपया, धन्यवाद जैसे आदि शब्दों का प्रयोग करके पाठक के मन को सीधे पत्र लिखने की भावना का महसूस कराना चाहिए।
  2. संक्षिप्त- वर्तमान युग में प्रतिएक व्यक्ति के लिए समय धन से कम मूल्यवान नहीं होता। इस कारण व्यर्थ के लंबे पत्र लेखक व पाठक दोनों का अमूल्य समय व्यर्थ नष्ट करते है। मुख्य बातों को बिना संकोच के लिखा जाना चाहिए। अनावश्यक रूप से लंबे शब्दों को लिखने का परित्याग किया जाना चाहिए।
  3. स्वच्छता- पत्र की भाषा सरल व स्पष्ट भी होनी चाहिए। साथ ही पत्र को साफ कागज पर अक्षरों का ध्यान रखते हुए साफ साफ लिखना चाहिए। यदि पत्र टाईप किया हुआ हो तो उसमे कोई गलती या काट – पीट नहीं होनी चाहिए। क्योंकि यह पाठक को अप्रिय लगती है तथा संशय भी उत्पन्न करती है।
  4. रूचिपूर्ण- पत्र में रोचकता के बिना पाठक को प्रभावित नहीं किया का सकता, इसीलिए पाठक के स्वभाव व सम्मान को ध्यान में रखकर पत्र को प्रारंभ करना चाहिए। पत्र में पाठक के सम्बन्ध में प्रयोग होने वाले शब्दों आदरणीय, प्रिय, महोदय आदि शब्दों का प्रयोग करना चाहिए।
  5. उद्देश्यपूर्ण- पत्र जिस उद्देश्य के लिए लिखा जा रहा हो, उस उद्देश्य को ध्यान में रखकर ही आवश्यक बातें पत्र के अन्तर्गत लिखनी चाहिए। पाठक का उद्देश्य पर ध्यान केंद्रित करने के लिए पत्र का उद्देश्यूर्ण होना परम आवश्यक है।

पत्र लेखन के प्रकार

पत्रों को लिखने के निम्न दो प्रकार होते है –

  1. औपचारिक पत्र (Formal Letter)
  2. अनौपचारिक पत्र (Informal Letter)

आइए पत्र लेखन के इन दोनों रूपों की विस्तृत से जानकारी प्राप्त करते है।

#1. औपचारिक पत्र(Formal Letter) – सरकारी तथा व्यावसायिक कार्यों से संबंध रखने वाले पत्र औपचारिक पत्रों के अन्तर्गत आते है। इसके अतिरिक्त इन पत्रों के अन्तर्गत निम्नलिखित पत्रों को भी शामिल किया जाता है।

  • प्रार्थना पत्र
  • निमंत्रण पत्र
  • सरकारी पत्र
  • गैर सरकारी पत्र
  • व्यावसायिक पत्र
  • किसी अधिकारी को पत्र
  • नौकरी के लिए आवदेन हेतु
  • संपादक के नाम पत्र इत्यादि।

औपचारिक पत्र का प्रारूप-

  1. औपचारिक पत्र लिखने की शुरुआत बाईं ओर से की जाती है। सर्वप्रथम ‘सेवा में‘ शब्द लिखकर, पत्र पाने वाले का नाम लिखकर, पाने वाले के लिए उचित सम्बोधन का प्रयोग किया जाता है। जैसे – श्री मान, मान्यवर, आदरणीय आदि।
  2. इसके बाद पत्र पर पत्र पाने वाले का “पता/ कंपनी का नाम” लिखा जाता है।
  3. तत्पश्चात पत्र जिस उद्देश्य के लिए लिखा जा रहा हो उसका “विषय” लिखा जाना आवश्यक है।
  4. विषय लिखने के बाद एक बार फिर पत्र पाने वाले के लिए सम्बोधन शब्द का प्रयोग किया जाता है।
  5. सम्बोधन लिखे के बाद, पत्र के मुख्य विषय का विस्तृत में वर्णन किया जाता है।
  6. मुख्य विषय का अंत करते समय उत्तर कि प्रतीक्षा में, सधन्यवाद, शेष कुशल आदि का प्रयोग किया जाना चाहिए।
  7. इसके बाद पत्र के अंतिम भाग में “भवदीय, आपका आभारी, आपका आज्ञाकारी” इत्यादि शब्द लिखे जाने चाहिए।
  8. पत्र भेजने वाले का “नाम/कंपनी का नाम, पता ,दिनांक” लिखते है।
  9. अंत में पत्र लिखने वाले के हस्ताक्षर किए जाते है।
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#2. अनौपचारिक पत्र (Informal Letter)– इन पत्रों के अन्तर्गत उन पत्रों को सम्मिलित किया जाता है, जो अपने प्रियजनों को, मित्रों को तथा सगे- संबंधियों को लिखे जाते है। उदहारण के रूप में – पुत्र द्वारा पिता जी को अथवा माता जी को लिखा गया पत्र, भाई-बंधुओ को लिखा जाना वाला, किसी मित्र की सहायता हेतु पत्र, बधाई पत्र, शोक पत्र, सुखद पत्र इत्यादि।

अनौपचारिक पत्र का प्रारूप-

1) सबसे पहले बाई ओर पत्र भेजने वाले का “पता” लिखा जाता है।
2) प्रेषक के पते के नीचे “तिथि” लिखी जाती है।
3) भेजने वाले का केवल नाम नहीं लिखा जाता है। यदि अपने से बड़ों को पत्र लिखा जा रहा है तो, “पूजनीय, आदरणीय, जैसे शब्दों के साथ उनसे संबंध लिखते है। जैसे – पूजनीय पिता जी। यदि अपने से किसी छोटे या बराबर के व्यक्ति को पत्र लिख रहे है तो उनके नाम के साथ प्रिय मित्र, बंधुवर इत्यादि शब्दों का प्रयोग किया जाता है।
4) इसके बाद पत्र का मुख्य भाग दो अनुच्छेदों में लिखा जाता है।
5) पत्र के मुख्य भाग की समाप्ति धन्यवाद सहित लिखकर किया जाता है।
6) अंत में प्रार्थी, या तुम्हारा स्नेही आदि शब्दावली का प्रयोग करके लेखक के हस्ताक्षर किए जाते है।

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औपचारिक तथा अनौपचारिक पत्रों में अंतर

औपचारिक पत्रअनौपचारिक पत्र
1. औपचारिक पत्रों को सरकारी सूचनाओं तथा संदेशों के प्रेषण में शामिल किया जाता है। 1. अनौपचारिक पत्रों को परिवारिक, निजी सगे संबंधियों, मित्रों आदि को लिखा जाता है।
2. अनौपचारिक पत्रों के अन्तर्गत शिष्ट भाषा का प्रयोग किया जाता है। 2. अनौपचारिक पत्रों के अन्तर्गत प्रेम, स्नेह, दया, सहानुभूति आदि भावनाओं से परिपूर्ण भाषा का प्रयोग किया जाता है।
3. इन पत्रों का व्यापारिक जगत में विशेष महत्व होता है। 3. अनौपचारिक पत्रों का व्यापारिक जगत में कोई उपयोग नहीं होता है।
4. औपचारिक पत्रों को लिखने का एक औपचारिक उद्देश्य होना आवश्यक होता है। 4. अनौपचारिक पत्रों को लिखने का कोई मुख्य उद्देश्य नहीं होता है।
5. औपचारिक पत्रों में मुख्य विषय को मुख्यता तीन अनुच्छेदों में विभाजित किया जाता है। 5. अनौपचारिक पत्रों के मुख्य विषय को अधिकतम दो अनुच्छेदों में विभाजित किया जाता है।
6. औपचारिक पत्रों को स्पष्टता से लिखा जाता है जिससे किसी सूचना या कार्य में बाधा अथवा संशय उत्पन्न ना हो सके। 6. अनौपचारिक पत्रों भावात्मक रूप से लिखे जाते है।

अनौपचारिक पत्रों को लिखने के उद्देश्य

  1. अनौपचारिक पत्रों को लिखने का मुख्य उद्देश्य अपने परिवारजनों को, प्रियजनों को, सगे संबंधियों को, मित्रजनों आदि को निजी संदेश भेजना है।
  2. किसी निजी जन को बधाई देने हेतु, शोक सूचना देने हेतु, विवाह, जन्मदिवस पर आमंत्रित करने हेतु, आदि के लिए इन्हीं पत्रों का प्रयोग किया जाता है।
  3. हर्ष, दुःख, उत्साह, क्रोध, नाराज़गी, सलाह, सहानुभूति इत्यादि भावनाओं को अनौपचारिक पत्र के माध्यम से व्यक्त करना।
  4. समस्त अनौपचारिक कार्यों के लिए अनौपचारिक पत्रों का प्रयोग किया जाता है।

औपचारिक पत्रों को लिखने के लिए कौन- कौन से तत्व आवश्यक है?

  1. मौलिकता- पत्र की भाषा पूर्ण मौलिक होनी चाहिए। पत्र सदैव उद्देश्य के अनुरूप लिखा होना चाहिए।
  2. संक्षिप्तता – आधुनिक युग में समय अत्यंत कीमती है। औपचारिक पत्र के लिए आवश्यक है कि मुख्य विषय को संक्षिप्त में परंतु पूर्ण रूप से लिखा जाए।
  3. योजनाबद्ध- पत्र लिखने से पूर्व पत्र के सबंध में योजना बनाना आवश्यक होता है। बिना योजना के पत्र का प्रारंभ व अंत अनुकूल रूप से नहीं हो पाता है।
  4. पूर्णता- पत्र को लिखते समय समय पूर्णता का ध्यान रखना भी जरूरी है। पत्र में समस्त बातें लिखने के बाद, महत्वपूर्ण दस्तावेजों को संलग्न करना चाहिए। अतः संपूर्ण पत्र पर विचार मंथन कर ही पत्र लिखना प्रारंभ करना चाहिए।
  5. आकर्षक- पत्र को आकर्षक करने का तत्व पाठक को अत्यंत प्रभावित करता है। पत्र पढ़ने व देखने में सुंदर व आकर्षक होना चाहिए। पत्र अच्छे कागज पर सुंदर ढंग से टाइप किया जाना चाहिए।

पत्र लेखन से सम्बंधित प्रश्न- उत्तर

प्रश्न 1- औपचारिक पत्र तथा अनौपचारिक पत्रों में क्या अंतर है?
उत्तर – औपचारिकारिक तथा अनौपचारिक पत्रों में अंतर-

औपचारिक पत्र
• औपचारिक पत्रों को सरकारी सूचनाओं तथा संदेशों के प्रेषण में शामिल किया जाता है।
• अनौपचारिक पत्रों के अन्तर्गत शिष्ट भाषा का प्रयोग किया जाता है।
• इन पत्रों का व्यापारिक जगत में विशेष महत्व होता है।
• औपचारिक पत्रों को लिखने का एक औपचारिक उद्देश्य होना आवश्यक होता है।
• औपचारिक पत्रों में मुख्य विषय को मुख्यता तीन अनुच्छेदों में विभाजित किया जाता है।
• औपचारिक पत्रों को स्पष्टता से लिखा जाता है जिससे किसी सूचना या कार्य में बाधा अथवा संशय उत्पन्न ना हो सके।

अनौपचारिक पत्र –

• अनौपचारिक पत्रों को परिवारिक, निजी सगे संबंधियों, मित्रों आदि को लिखा जाता है।
• अनौपचारिक पत्रों के अन्तर्गत प्रेम, स्नेह, दया, सहानुभूति आदि भावनाओं से परिपूर्ण भाषा का प्रयोग किया जाता है।
• अनौपचारिक पत्रों का व्यापारिक जगत में कोई उपयोग नहीं होता है।
• अनौपचारिक पत्रों को लिखने का कोई मुख्य उद्देश्य नहीं होता है।
• अनौपचारिक पत्रों के मुख्य विषय को अधिकतम दो अनुच्छेदों में विभाजित किया जाता है।
• अनौपचारिक पत्रों भावात्मक रूप से लिखे जाते है।

प्रश्न 2- अनौपचारिक पत्रों को किस उद्देश्य से लिखा जाता है?

उत्तर – अनौपचारिक पत्रों को लिखने के उद्देश्य-

  1. अनौपचारिक पत्रों को लिखने का मुख्य उद्देश्य अपने परिवारजनों को, प्रियजनों को, सगे संबंधियों को, मित्रजनों आदि को निजी संदेश भेजना है।
  2. किसी निजी जन को बधाई देने हेतु, शोक सूचना देने हेतु, विवाह, जन्मदिवस पर आमंत्रित करने हेतु, आदि के लिए इन्हीं पत्रों का प्रयोग किया जाता है।
  3. हर्ष, दुःख, उत्साह, क्रोध, नाराज़गी, सलाह, सहानुभूति इत्यादि भावनाओं को अनौपचारिक पत्र के माध्यम से व्यक्त करना।
  4. समस्त अनौपचारिक कार्यों के लिए अनौपचारिक पत्रों का प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 3- पत्रों को लिखने के लिए कौन- कौन से तत्व आवश्यक है?

उत्तर –

  1. मौलिकता- पत्र की भाषा पूर्ण मौलिक होनी चाहिए। पत्र सदैव उद्देश्य के अनुरूप लिखा होना चाहिए।
  2. संक्षिप्तता – आधुनिक युग में समय अत्यंत कीमती है। औपचारिक पत्र के लिए आवश्यक है कि मुख्य विषय को संक्षिप्त में परंतु पूर्ण रूप से लिखा जाए।
  3. योजनाबद्ध- पत्र लिखने से पूर्व पत्र के सबंध में योजना बनाना आवश्यक होता है। बिना योजना के पत्र का प्रारंभ व अंत अनुकूल रूप से नहीं हो पाता है।
  4. पूर्णता- पत्र को लिखते समय समय पूर्णता का ध्यान रखना भी जरूरी है। पत्र में समस्त बातें लिखने के बाद, महत्वपूर्ण दस्तावेजों को संलग्न करना चाहिए। अतः संपूर्ण पत्र पर विचार मंथन कर ही पत्र लिखना प्रारंभ करना चाहिए।
  5. आकर्षक- पत्र को आकर्षक करने का तत्व पाठक को अत्यंत प्रभावित करता है। पत्र पढ़ने व देखने में सुंदर व आकर्षक होना चाहिए। पत्र अच्छे कागज पर सुंदर ढंग से टाइप किया जाना चाहिए।

प्रश्न-4 वर्तमान युग में पत्र लेखन का क्या उपयोग है?

उत्तर- वर्तमान युग में सूचना प्रेषण के कई आधुनिक साधन
मौजूद है। परंतु इस दौर में भी पत्र लेखन का उपयोग किया जाता है। पत्र लेखन ही एक ऐसा संचार साधन है, जो आज भी सरकारी तथा निजी कार्यों के लिए प्रयोग में लाया जाता है। वर्तमान में विद्यालय में प्रधानाचार्य को अवकाश पत्र देने हेतु, छात्रवृति प्राप्त करने हेतु तथा किसी नौकरी के लिए आवेदन करने हेतु इत्यादि कार्यों में पत्र लेखन का ही उपयोग किया जाता है।
इसके अतिरिक्त किसी भी सरकारी कार्य में लिखित दस्तावेजों की ही मान्यता अधिक होती है। सरकारी तथा निजी संस्थाओं द्वारा अपनी समस्याओं के समाधान के लिए पत्र लेखन का ही सहारा लिया जाता है। भविष्य में संदर्भ हेतु, न्यायालय में प्रस्तुत करने हेतु पत्र लेखन द्वारा लिखे दस्तावेजों को ही उपयोग में लाया जाता है।

प्रश्न 5- पत्र लेखन के कितने घटक होते है?

उत्तर – पत्र लेखन के निम्नलिखित घटक होते है जिन्हें औपचारिक पत्र तथा अनौपचारिक पत्रों के प्रारूप के अनुसार प्रयोग किए जाते हैं।
• पत्र प्रापक का पदनाम तथा पता।
• विषय ( जिस विषय पर पत्र लिखा जा रहा हो, उसे संक्षेप में लिखा जाता है।)
• सम्बोधन (महोदय, माननीय आदि।)
• मुख्य विषय ( मुख्य विषय को दो अनुच्छेदों में लिखा जाता है।)
• धन्यवाद, सधन्यवाद आदि शब्दों का प्रयोग।
• प्रशंसात्मक वाक्य (भवदीय, आपका आज्ञाकारी, आदि शब्दों के नीचे हस्ताक्षर)
• हस्ताक्षर
• प्रेषक का नाम
• प्रेषक का पता, मोहल्ला, शहर, इलाका
• दिनांक।

प्रश्न-6 पत्रों को कितने प्रकार से लिखा जाता है?

उत्तर- पत्र लेखन विभिन्न क्षेत्रों में अलग अलग रूप से प्रयुक्त किया जाता है, किन्तु नी निर्धारित रूप से पत्र को मुख्यता दो प्रकार से लिखा जाता है।
1* औपचारिक पत्र,
2* अनौपचारिक पत्र।

1* औपचारिक पत्र – इन पत्रों के लिखने का एक मुख्य उद्देश्य निर्धारित होता है। सरकारी तथा व्यावसायिक कार्यों से संबंध रखने वाले पत्र औपचारिक पत्रों के अन्तर्गत आते है। इन पत्रों में शिष्टता की भाषा पर विशेष ध्यान देना पड़ता है।

2* अनौपचारिक पत्र- जिन पत्रों को शोक, खुशी, बधाई, सलाह, सहानुभूति इत्यादि भावनाओं को प्रकट करने के लिए लिखा जाता है उन्हें अनौपचारिक पत्र कहा जाता है। यह पत्र निजी परिवारिक, रिश्तेदारों, मित्रों आदि संबंधियों को लिखा जाता है।

प्रश्न -7 औपचारिक पत्रों के अन्तर्गत किन – किन पत्रों को सम्मिलित किया जाता है?

उत्तर – औपचारिक पत्रों के अन्तर्गत निम्नलिखित पत्रों को सम्मिलित किया जाता है-
• प्रार्थना पत्र,
• सम्पादकों के नाम पत्र,
• आदेश पत्र,
• बैंक से सबंधित पत्र,
• सरकारी कार्यों से संबंधित पत्र,
• व्यावसायिक पत्र ( पूछताछ पत्र, निर्ख पत्र, निवेदन पत्र आदि ),
• शिकायती पत्र,
• विदेशी पत्र
• नौकरी के आवेदन हेतु पत्र।

प्रश्न 8- औपचारिक पत्रों को लिखने के लिए कौन- कौन से तत्व सम्मिलित किए जाते है?

उत्तर – औपचारिक पत्रों को लिखने के लिए निम्नलिखित तत्व सम्मिलित किए जाते हैं-

  1. विषय- पत्र के अन्तर्गत एक विषय पर ही चर्चा हो सकती है। दो विषयों पर का उल्लेख नहीं होता। तथा औपचारिक पत्रों का विषय स्पष्ट होता है।
  2. हस्ताक्षर- औपचारिक पत्रों के अन्तर्गत हस्ताक्षर भी एक विशेष तत्व होता है। पत्र में लेखक अपने हस्ताक्षर करने के बाद अपने पद के नाम का भी उल्लेख आवश्यक रूप से करता है।
  3. औपचारिकता- यह पत्र गंभीर तथा नितांत औपचारिक प्रकृति के होते हैं। इन पत्रों के लेखन में विभिन्न प्रकार के नियमों व प्रारूपों का पालन करना अनिवार्य होता है।
  4. मौलिकता- औपचारिक पत्रों के अन्तर्गत आने वाले कुछ पत्रों में मौलिकता का तत्व भी शामिल किया जाता है।
  5. भाषा व शैली – पाठक के मन पर विशेष प्रभाव पड़े व लेखक का उद्देश्य पूर्ण हो, पत्र के लेखन में इस प्रकार की शैली का प्रयोग होगा है। पत्र की शैली में संयम हो लेकिन तथ्यों का सीधा व स्पष्ट उल्लेख किया जाता है।
  6. पत्र का आकार- औपचारिक पत्रों का कोई नियत आकार नहीं होता। विषय सामग्री काम या अधिक होने पर पत्रों का आकार घटता या बड़ता रहता है। पत्र के लिए प्रयोग में लाए जाने वाले लिफाफे में भिन्न भिन्न श्रेणी के होते है। अतः इन सबके अनुसार पत्र का आकार तय किया जाता है।
  7. डाक-टिकट – औपचारिक पत्रों में सम्मिलित होने वाले, सरकारी पत्रों पर शासकीय सेवा वाले डाक टिकट का प्रयोग होता है। इसके अतिरिक्त व्यापारिक पत्रों में साधारण डाक टिकट का प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 9- अनौपचारिक पत्रों के अन्तर्गत किन किन पत्रों को सम्मिलित किया जाता है?

उत्तर – अनौपचारिक पत्रों के अन्तर्गत निम्नलिखित पत्रों को सम्मिलित किया जाता है-
• शुभकामना संदेश,
• कुशल मंगल लेने हेतु पत्र,
• परिवारिक संदेश हेतु पत्र,
• प्रियजनों को संदेश देने हेतु पत्र,
• आमंत्रित पत्र,
• मित्रगणों को संदेश देने हेतु पत्र,
• क्षमा प्रार्थना पत्र,
• शोक पत्र।

प्रश्न 10- पत्र लेखन के प्रारूप को समझाइए।

उत्तर- पत्र लेखन के प्रारूप में निम्न अंगो का प्रयोग किया जाता है-
• पत्र प्रेषण कर्ता का नाम, पता/ पत्र प्रेषण कर्ता की कंपनी, संस्था, फर्म का नाम पता/ सरकारी कार्यालय का पता।
• पत्र लेखन की तिथि (दिनांक)।
• सम्बोधन
• अभिवादन वाक्यांश।
• पत्र प्राप्तकर्ता का नाम, पता/ पत्र प्राप्तकर्ता कंपनी का नाम, पता।
• प्रशंसात्मक शब्द।
• पत्र का विषय।
• पत्र की विषय वस्तु/ मुख्य विषय
• अंतिम प्रशंसात्मक वाक्य।
• पत्र प्रेषण कर्ता के हस्ताक्षर, पद।
• संलग्न पत्र।

पत्र लेखन को हमारे जीवन का महत्वपूर्ण अंग क्यों माना जाता है?

पत्रों की उपयोगिता/महत्व मनुष्य की भावनाओं की स्वाभाविक अभिव्यक्ति पत्राचार से भी होती हैं। निश्छल भावों और विचारों का आदान-प्रदान पत्रों द्वारा ही सम्भव है। पत्रलेखन दो व्यक्तियों के बीच होता है। इसके द्वारा दो हृदयों का सम्बन्ध दृढ़ होता है।

पत्र लेखन क्यों महत्वपूर्ण है?

पत्र लेखन की उपयोगिता अथवा महत्व निजी अथवा व्यापारिक सूचनाओं को प्राप्त करने तथा भेजने के लिए पत्र व्यवहार विषय अत्यंत कारगार है। प्रेम, क्रोध, जिज्ञासा, प्रार्थना, आदेश, निमंत्रण आदि अनेक भावों को व्यक्त करने के लिए पत्र लेखन का सहारा लिया जाता है।

पत्र के मुख्य अंग कौन कौन से हैं?

पत्राचार के प्रमुख अंग.
शीर्षक - शीर्षक प्रायः छपा हुआ होता है। ... .
प्रेषक का पता - यह पत्र के दाहिनी ओर रहता है। ... .
पत्र संख्या यह बाईं ओर लिखी जाती है। ... .
कलेवर यह पत्र का महत्वपूर्ण भाग है। ... .
अधोलेख इसे हस्ताक्षर से पूर्व लिखा जाता है, जैसे- भवदीय, आपका, आपका आज्ञाकारी आदि। ... .
प्रेषक का नाम - ... .
प्रेषक का पदनाम.

पत्र लेखन में सबसे ज्यादा महत्व किसका होता है?

✎... पत्र लेखन में सबसे अधिक महत्व तथ्यों का होता है, क्योंकि पत्र व्यवहार किसी सटीक जानकारी के आदान-प्रदान हेतु किया जाता है। यदि उसमें तथ्य गलत होंगे तो एक स्वस्थ पत्राचार संभव नहीं हो पाएगा और भ्रम की स्थिति पैदा होगी। इसलिए पत्र लेखन में तथ्यों का सबसे अधिक महत्व होता है।