सिंहावलोकनभारत में शिक्षक शिक्षा नीति को समय के हिसाब से निरूपित किया गया है और यह शिक्षा समितियों/आयोगों की विभिन्न रिपोर्टों में निहित सिफारिशों पर आधारित है, जिनमें से महत्वपूर्ण हैं : कोठारी आयोग (1966), चट्टोपाध्याय समिति (1985), राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एन पी ई 1986/92), आचार्य राममूर्ति समिति (1990), यशपाल समिति (1993) एवं राष्ट्रीय पाठ्यचर्या ढॉंचा (एन सी एफ, 2005)। नि:शुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा अधिकार (आर टी ई) अधिनियम, 2009, जो 1 अप्रैल, 2010 से लागू हुआ, का देश में शिक्षक शिक्षा के लिए महत्वपूर्ण निहितार्थ है। Show
विधिक और सांस्थानिक ढांचादेश की संघीय ढांचे में हालांकि शिक्षक शिक्षा पर विस्तृत नीतिगत और विधिक ढांचा केन्द्र सरकार द्वारा प्रदान किया जाता है, फिर भी विभिन्न कार्यक्रमों और स्कीमों का कार्यान्वयन प्रमुखत: राज्य सरकारों द्वारा किया जाता है। स्कूली बच्चों की शिक्षा उपलब्धियों के सुधार के विस्तृत उद्देश्य की दोहरी कार्यनीति है : (क) स्कूल प्रणाली के लिए अध्यापकों को तैयार करना (सेवा पूर्व प्रशिक्षण); और (ख) मौजूदा स्कूल अध्यापकों की क्षमता में सुधार करना (सेवाकालीन प्रशिक्षण)। सेवा पूर्व प्रशिक्षण के लिए राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद (एन सी टी ई), जो केन्द्र सरकार का सांविधिक निकाय है, देश में शिक्षक शिक्षा के नियोजित और समन्वित विकास का जिम्मेदार है। एन सी टी ई विभिन्न शिक्षक शिक्षा पाठ्यक्रमों के मानक एवं मानदंड, शिक्षक शिक्षकों के लिए न्यूनतम योग्यताएं, विभिन्न पाठ्यक्रमों के लिए छात्र-अध्यापकों के प्रवेश के लिए पाठ्यक्रम एवं घटक तथा अवधि एवं न्यूनतम योग्यता निर्धारित करती है। यह ऐसे पाठ्यक्रम शुरू करने की इच्छुक संस्थाओं (सरकारी, सरकारी सहायता प्राप्त और स्व-वित्तपोषित) को मान्यता भी प्रदान करता है और उनके मानदंड और गुणवत्ता विनियमित करने और उन पर निगरानी के निमित्त व्यवस्था है। सेवाकालीन प्रशिक्षण के लिए देश में सरकारी स्वामित्व वाली शिक्षक प्रशिक्षण संस्थाओं (टी टी आई) का बड़ा नेटवर्क है, जो स्कूल अध्यापकों को सेवाकालीन प्रशिक्षण प्रदान करता है। इन टी टी आई का फैलाव रैखिक एवं क्षैतिज दोनों है। राष्ट्रीय स्तर पर छह क्षेत्रीय शिक्षा संस्थाओं (आर ई ए) के साथ राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद विभिन्न शिक्षक प्रशिक्षण पाठ्यक्रमों के लिए मॉड्यूलों का समूह तैयार करता है और अध्यापकों तथा शिक्षक शिक्षकों के प्रशिक्षण के विशिष्ट कार्यक्रम भी शुरू करता है। राष्ट्रीय शैक्षिक योजना एवं प्रशासन विश्वविद्यालय (एनयूईपीए) द्वारा संस्थानिक सहायता भी दी जाती है। एन सी ई आर टी और एन यू ई पी ए दोनों राष्ट्रीय स्तर के स्वायत्तशासी निकाय हैं। राज्य स्तर पर राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषदें (एस सी ई आर टी), शिक्षक प्रशिक्षण के मॉड्यूल तैयार करती हैं और शिक्षक शिक्षकों और स्कूल शिक्षकों के लिए विशिष्ट पाठ्यक्रमों का संचालन करती हैं। शिक्षक शिक्षा महाविद्यालय (सी टी ई) और उन्नत शिक्षा विद्या संस्थान (आई ए एस ई), माध्यमिक और वरिष्ठ माध्यमिक स्कूल अध्यापकों और शिक्षक शिक्षकों को सेवाकालीन प्रशिक्षण प्रदान करते हैं। जिला स्तर पर सेवाकालीन प्रशिक्षण जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थानों (डी आई ई टी) द्वारा प्रदान किया जाता है। स्कूल अध्यापकों को सेवाकालीन प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए प्रखंड संसाधन केन्द्र (बी आर सी) और समूह संसाधन केन्द्र (सी आर सी) रैखिक सोपान में सबसे निचले सोपान के संस्थान हैं। इनके अलावा सिविल सोसायटी, गैर सहायता प्राप्त स्कूलों और अन्य स्थापनाओं की सक्रिय भूमिका के साथ भी सेवाकालीन प्रशिक्षण प्रदान किए जाते हैं। कार्यक्रमों और कार्यकलापों का वित्तपोषणसेवा-पूर्व प्रशिक्षण के लिए सरकारी और सरकार सहाय्यित शिक्षक शिक्षा संस्थाओं को संबंधित राज्य सरकारों द्वारा वित्तीय सहायता दी जाती है। इसके अलावा शिक्षक शिक्षा की केन्द्र प्रायोजित स्कीम के अंतर्गत केन्द्र सरकार भी डी आई ई टी, सी टी ई और आई ए सी ई सहित 650 से अधिक संस्थाओं को सहायता करती है। सेवाकालीन प्रशिक्षण के लिए केन्द्र सरकार द्वारा वित्तीय सहायता मुख्यत: सर्व शिक्षा अभियान (एस एस ए) के अंतर्गत दी जाती है, जो आर टी ई अधिनियम के कार्यान्वयन के लिए मुख्य साधन है। एस एस ए के अंतर्गत स्कूल अध्यापकों को 20 दिन का सेवाकालीन प्रशिक्षण, अप्रशिक्षित अध्यापकों को 60 दिन का पुनश्चर्या पाठ्यक्रम और नव नियुक्त प्रशिक्षित व्यक्तियों को 30 दिन का अभिमुखन प्रदान किया जाता है। शिक्षक शिक्षा की केन्द्र प्रायोजित स्कीम के अंतर्गत जिला शिक्षा और प्रशिक्षण संस्थानों (डी आई ई टी), शिक्षक शिक्षा महाविद्यालयों (सी टी ई) और उन्नत शिक्षा अध्ययन संस्थानों (आई ए एस ई) को भी सेवाकालीन प्रशिक्षण के लिए केन्द्रीय सहायता प्रदान की जाती है। राज्य सरकारें भी सेवाकालीन कार्यक्रमों को वित्तीय सहायता देती है। बहु-पक्षीय संगठनों सहित विभिन्न एन जी ओ सेवाकालीन प्रशिक्षण कार्यकलापों सहित विभिन्न हस्तक्षेपों की सहायता करता है। नि:शुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा अधिकार अधिनियम, 2009 में शिक्षक शिक्षा का निहितार्थनि:शुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा अधिकार अधिनियम, 2009 का वर्तमान शिक्षक शिक्षा प्रणाली और शिक्षक शिक्षा पर केन्द्र प्रायोजित स्कीम का निहितार्थ है। अधिनियम में अन्य बातों के साथ-साथ ये प्रावधान हैं कि :
शिक्षक शिक्षा का राष्ट्रीय पाठ्यचर्या ढांचाराष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद (एन सी टी ई) ने शिक्षक शिक्षा पर राष्ट्रीय पाठ्यचर्या ढांचा तैयार किया है, जिसे मार्च 2009 में परिचालित किया गया था। यह ढांचा एन सी एफ, 2005 की पृष्ठभूमि में तैयार किया गया है और नि:शुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा अधिकार अधिनियम, 2009 में निर्धारित सिद्धांतों ने शिक्षक शिक्षा पर परिवर्तित ढांचा अनिवार्य कर दिया है, जो एन सी एफ, 2005 में संस्तुत स्कूल पाठ्यचर्या के परिवर्तित दर्शन के अनुकूल हो। शिक्षक शिक्षा का दर्शन स्पष्ट करते हुए इस ढांचे में नए दृष्टिकोण के कुछ महत्वपूर्ण आयाम हैं :
विनियामक ढांचे में सुधारराष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद का गठन देश में शिक्षक शिक्षा के नियोजन एवं समन्वित विकास की प्राप्ति, शिक्षक शिक्षा प्रणाली के मानकों एवं मानदंडों के विनियमन और उपयुक्त अनुरक्षण के लिए राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद अधिनियम, 1993 के अंतर्गत किया गया था। पिछले दिनों में एन सी टी ई ने अपने कार्यकरण में क्रमिक सुधार और शिक्षक शिक्षा प्रणाली में सुधार के विभिन्न उपाय किए हैं, जो इस प्रकार हैं :
अधिक ब्योरे के लिए यहां क्लिक करें : www.teindia.nic.in परावर्ती स्तर के शिक्षण से आप क्या समझते है?परावर्तक स्तर को आत्मनिरीक्षण स्तर के रूप में भी जाना जाता है। किसी चीज़ पर चिंतन करने का अर्थ है किसी चीज़ पर समय के साथ सावधानीपूर्वक विचार करना। चिंतनशील स्तर पर शिक्षण छात्रों को जीवन की वास्तविक समस्याओं को हल करने में सक्षम बनाता है।
शिक्षण के स्तर से आप क्या समझते हैं?शिक्षण के स्तर (Levels of Teaching) वह आधार है जिसके माध्यम से छात्रों का बौद्धिक विकास किया जाता है। इसमें छात्रों का क्रमबद्ध तरीके से बौद्धिक विकास किया जाता है। शिक्षा अर्थात छात्रों का बौद्धिक, मानसिक एवं शारीरिक तीनों पक्षों के विकास करने हेतु शिक्षण की आवश्यकता पड़ती हैं।
शिक्षण के तीन स्तर कौन कौन से हैं?शिक्षण के स्तर (Levels of Teaching). चिंतन स्तर (Reflective Level). बोध स्तर (Understanding Level). स्मृति स्तर (Memory Level). शिक्षण के कितने चरण होते हैं?उत्तर-क्रिया अवस्था (Post-active Stage)
2. समुचित मूल्यांकन प्रविधियों का चयन। 3. छात्रों की निष्पत्तियों (उद्देश्यों की प्राप्ति) के आधार पर अनुदेशन एवं शिक्षण युक्तियों के सुधार एवं विकास और शिक्षण व्यूह-रचना में परिवर्तन पर विचार।
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