प्रभावी शिक्षण की क्या आवश्यकता है? - prabhaavee shikshan kee kya aavashyakata hai?

“प्रभावी शिक्षण” की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए । आप अपने शिक्षण को प्रभावी बनाने हेतु क्या उपाय/सुझाव करेंगे ?

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  • September 13, 2022
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“प्रभावी शिक्षण” की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए । आप अपने शिक्षण को प्रभावी बनाने हेतु क्या उपाय/सुझाव करेंगे ? 

उत्तर— प्रभावकारी शिक्षण – शिक्षक जिस सीमा तक शिक्षार्थी पर प्रभाव डालने में सफल होता है, वह उसी सीमा तक प्रभावी शिक्षक कहलाता है और शिक्षण उद्देश्य भी उसी सीमा तक पूरा हो जाता है। प्रभावकारी शिक्षण का अर्थ शिक्षक की कार्यक्षमता से है जिस सीमा तक वह अपने कार्य में कुशल हो पाता है उस हद तक उसे प्रभावी माना जाता है। दाश के अनुसार, “प्रभावकारी शिक्षण का अर्थ है शिक्षण की पूर्णता अर्थात् कार्य-कुशलता तथा उत्पादकता का अनुकूलतम स्तर । “

शिक्षार्थी सरलता से अधिगम कर सकें, पाठ्य-वस्तु को सरलता से ग्रहण कर सकें तथा शिक्षण समय का शिक्षक अधिकाधिक समुचित प्रयोग कर सके, इसके लिए पाठ योजना का संगठन तथा विषय-वस्तु पर प्रभुत्व के साथ-साथ शिक्षक को रोचक विधियों का भी अपने शिक्षण में प्रयोग करना चाहिए तभी शिक्षण प्रभावी होगा।

शिक्षण को प्रभावी बनाने के लिए शिक्षक को पांठ योजना में निर्धारित क्रियाकलापों के अलावा तुरन्त परिवर्तन हेतु निर्णय लेने पड़ते हैं।

शिक्षण को प्रभावशाली बनाने के उपाय—

(1) पाठ-योजना का निर्माण – कक्षा शिक्षण से पूर्व पाठयोजना का निर्माण करके तथा उसी योजनानुसार शिक्षण करके शिक्षक प्रभावी शिक्षण करने में सफलता प्राप्त कर सकता है।

(2) उद्देश्यों का ज्ञान – शिक्षा के उद्देश्यों का ज्ञान होने पर ही शिक्षक उन्हें प्राप्त करने के लिए विभिन्न क्रियाएँ करके शिक्षण को प्रभावशाली बना सकता है।

(3) उपयुक्त शिक्षण विधियों का ज्ञान एवं प्रयोग — प्रभावशाली शिक्षण के लिए उपयुक्त शिक्षण विधि का प्रयोग आवश्यक होता है।

(4) शिक्षण कौशलों का प्रयोग — अपने शिक्षण को प्रभावी बनाने के लिए शिक्षक को आवश्यकतानुसार विभिन्न शिक्षण कौशलों का प्रयोग करना चाहिए।

(5) विषय-वस्तु का ज्ञान – शिक्षक को पढ़ाई जाने वाली विषयवस्तु का अच्छा ज्ञान होना चाहिए। तभी वह आत्मविश्वासपूर्वक शिक्षण कर इसे प्रभावी बना सकता है।

(6) पुनर्बलन का उपयोग — छात्रों का सहयोग शिक्षण में मिलने से ही शिक्षण प्रभावी बनता है । इसके लिए शिक्षक को शिक्षण के मध्य छात्रों को सही अनुक्रिया के लिए उन्हें पुनर्बलन प्रदान करना चाहिए।

(7) शिक्षण सहायक सामग्री का प्रयोग – शिक्षण को रोचक, सरल तथा प्रभावी बनाने के लिए शिक्षक को पाठ्यवस्तु तथा छात्रों के स्तर के अनुसार शिक्षण सहायक सामग्री का प्रयोग करना चाहिए।

(8)  शिक्षा मनोविज्ञान के सिद्धान्तों का पालन – शिक्षक को शिक्षण के समय शिक्षा मनोविज्ञान के सिद्धान्तों को ध्यान में रखना चाहिए। इसके द्वारा शिक्षण को प्रभावशीलता में वृद्धि की जा सकती है।

(9) मूल्यांकन परिणामों के आधार पर शिक्षण में सुधार – मूल्यांकन से प्राप्त परिणामों के द्वारा शिक्षक को शिक्षण की प्रभावशीलता का ज्ञान होता है, उसे आवश्यकतानुसार सुधार के द्वारा शिक्षण को प्रभावशाली बनाने के लिए सदैव तैयार रहना चाहिए।

(10) स्वाध्याय की प्रवृत्ति का विकास – शिक्षक को अपने अन्दर स्वाध्याय की आदत का विकास करना चाहिए क्योंकि इससे वह अपने ज्ञान भण्डार को विस्तृत एवं व्यापक बना सकता है। परिणामस्वरूप शिक्षण प्रभावी बन जाता है।

 भावना ग्रंथियां भी शिक्षण को प्रतिकूल रूप से ही प्रभावित करती है। जब कोई अच्छा शिक्षक स्वयं को सर्वश्रेष्ठ समझने लगता है तो उसमें अहं जागृत हो जाता है।अहं के पनपने पर उसका अध्ययन टूट जाता है। अध्ययन टूटने पर अध्यापन में धीरे-धीरे वह कुशलता कम होने लगती है जो उसने पहले अर्जित की थी। यही हाल हीनभावना की है। जब कोई शिक्षक स्वयं को अन्य शिक्षकों की तुलना में हीन समझने लगता है तो उसकी अध्यापन कुशलता में धीरे-धीरे कमी आने लगती है। इस प्रकार दोनों ही प्रकार की भावना ग्रंथियां, शिक्षक को ऋणात्मक रूप से प्रभावित करती है।

शिक्षण में समस्याएं | problems in teaching | प्रभावी शिक्षण की विशेषताएं  – दोस्तों सहायक अध्यापक भर्ती परीक्षा में शिक्षण कौशल 10 अंक का पूछा जाता है। शिक्षण कौशल के अंतर्गत ही एक विषय शामिल है जिसका नाम शिक्षण अधिगम के सिद्धांत है। यह विषय बीटीसी बीएड में भी शामिल है।

आज हम इसी विषय के समस्त टॉपिक को पढ़ेगे।  बीटीसी, बीएड,यूपीटेट, सुपरटेट की परीक्षाओं में इस टॉपिक से जरूर प्रश्न आता है। जिसमें आज हम एक टॉपिक शिक्षण में समस्याएं | problems in teaching | प्रभावी शिक्षण की विशेषताएं  पढ़ेगे ।

अतः इसकी महत्ता को देखते हुए hindiamrit.com आपके लिए शिक्षण की समस्याएं | problems in teaching | प्रभावी शिक्षण की विशेषताएं  लेकर आया है।

Contents

  • 1 problems in teaching | शिक्षण में समस्याएं | प्रभावी शिक्षण की विशेषताएं
    • 1.1 शिक्षण में समस्याएं | problems in teaching | प्रभावी शिक्षण की विशेषताएं
  • 2 प्रभावी शिक्षण की विशेषताएं | characteristics of good teaching in hindi
    • 2.1 (1) शिक्षण सुनियोजित होना चाहिए
    • 2.2 (2) शिक्षण सुझावात्मक होता है
    • 2.3 (3) शिक्षण दया एवं सहानुभूतिपूर्ण होता है
    • 2.4 (4) अच्छा शिक्षण प्रेरणादायक होता है
    • 2.5 (5) अच्छे शिक्षण में व्यक्तिगत विभिन्नताओं को ध्यान में रखा जाता है
    • 2.6 (6) शिक्षण प्रजातन्त्रीय होना चाहिए
    • 2.7 (7) शिक्षण प्रगतिशील होना चाहिए
    • 2.8 (8) सहयोग पर आधारित
    • 2.9 (9) प्रजातन्त्रीय (Democratic)
    • 2.10 (10) शिक्षण निर्देशात्मक होना चाहिए
    • 2.11 (11) शिक्षण निदानात्मक एवं उपचारात्मक होना चाहिए
  • 3 शिक्षण में समस्याएँ (Problems in Teaching)
    • 3.1 (1) बालक के समक्ष शिक्षण की समस्याएं
    • 3.2 (2) अध्यापक के समक्ष शिक्षण की समस्याएं
    • 3.3 आपको यह भी पढ़ना चाहिए।

problems in teaching | शिक्षण में समस्याएं | प्रभावी शिक्षण की विशेषताएं

प्रभावी शिक्षण की क्या आवश्यकता है? - prabhaavee shikshan kee kya aavashyakata hai?
शिक्षण में समस्याएं | problems in teaching | प्रभावी शिक्षण की विशेषताएं

शिक्षण में समस्याएं | problems in teaching | प्रभावी शिक्षण की विशेषताएं

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प्रभावी शिक्षण की विशेषताएं | characteristics of good teaching in hindi

(1) शिक्षण सुनियोजित होना चाहिए

किसी भी व्यवस्था का अच्छा या बुरा होना उसकी योजना (Planning) पर निर्भर करता है । यदि कार्य की योजना उत्तम है तो कार्य भी उत्तम होगा । ठीक इसी प्रकार शिक्षण की सफलता एवं असफलता उसकी योजना पर निर्भर करता है ।

जिन शिक्षकों की योजना शिक्षण से पूर्व तैयार होती है उनका शिक्षण भी सफल होता है । लेकिन योजना में लचीलापन होनी चाहिए जिससे कक्षा में परिस्थितियोंवश परिवर्तन किया जा सके । इसके विषय में डॉ. भाटिया ने लिखा है- “Good Teaching is planned carefully in advance but is not rigid, the plane is flexible enough to make allowances for the changes.”

(2) शिक्षण सुझावात्मक होता है

अच्छा शिक्षण सुझावात्मक होना चाहिए इसमें बालकों को आदेश प्रदान न करके सुझाव प्रदान किया जाता है । अच्छा शिक्षण वह है जिसमें कलम स्वयं पर किसी का तनिक भी दबाव महसूस नहीं करता है। अतः शिक्षक ऐसा हो जिसे जो सुझावात्मक तरीके का प्रयोग करना चाहिए इस विषय में डॉ. भाटिया ने लिखा है-A good teacher suggests rather than dictates.

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(3) शिक्षण दया एवं सहानुभूतिपूर्ण होता है

सफल शिक्षक के लिए यह परम आवश्यक होता है कि वह दया एवं सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार छात्रों के साथ करें क्योंकि छात्रों की जो मूल समस्याएँ हैं। उनकी जानकारी प्राप्त हो सकेंगी तथा अध्यापकों के द्वारा इन समस्याओं को जानने के बाद उनका समाधान किया जायेगा तथा छात्रों को उत्तम ज्ञान तो प्राप्त होता ही लेकिन इसके अतिरिक्त उनमें कोई ग्रन्थि पैदा नहीं होती है।

(4) अच्छा शिक्षण प्रेरणादायक होता है

अच्छा शिक्षण वह कहलाता है जिसमें शिक्षक के द्वारा ऐसा वातावरण तैयार किया जाता है। जिसमें बालक स्वयं क्रिया करने को तत्पर होता है और उससे कुछ सीखता है। शिक्षक को चाहिए कि वह बालक को अधिक-से-अधिक प्रेरित कर सके क्योंकि बालक को सीखने की जितनी रुचि होती है बालक उतना ही अधिक सीखने का प्रयास करेगा।

(5) अच्छे शिक्षण में व्यक्तिगत विभिन्नताओं को ध्यान में रखा जाता है

मनोवैज्ञानिकों ने यह स्पष्ट कहा है कि कोई दो व्यक्ति एक जैसी रुचि और आदत के नहीं होते हैं सभी में विभिन्नता पायी जाती है। इसलिए एक अच्छे अध्यापक को अच्छे शिक्षण में उनकी व्यक्तिगत समस्याओं को ध्यान में रखकर शिक्षण कार्य करना चाहिए । इसकी अनुपस्थिति में सभी छात्र ज्ञानार्जन में सक्षम नहीं होंगे।

(6) शिक्षण प्रजातन्त्रीय होना चाहिए

अच्छा शिक्षण वही है जो बालकों में प्रजातन्त्रात्मक मनोवृत्ति को उत्पन्न कर दे और वह अपने प्रतिदिन के व्यवहार एवं आचरण में प्रजातन्त्रीय भावनाओं द्वारा प्रेरणा ग्रहण करे तथा उनमें प्रजातन्त्रीय विचारों को जीवन में उतारने की भावना का विकास करे । अत: कक्षा में प्रत्येक विद्यार्थी को शिक्षण प्रक्रिया में समान अधिकार प्रदान किये जाने चाहिए।

(7) शिक्षण प्रगतिशील होना चाहिए

बालक की सच्ची शिक्षा उसके निजी अनुभवों पर आधारित होनी
चाहिए । शिक्षण बालक के पूर्व अनुभवों को ध्यान में रखते हुए नवीन ज्ञान प्रस्तुत करता है । अत: बालक की शिक्षा उसके निजी अनुभवों पर आधारित होनी चाहिए।

(8) सहयोग पर आधारित

शिक्षण एक मार्गीय नहीं होता, उसके लिये अध्यापक तथा विद्यार्थियों के बीच सहयोग होना अनिवार्य है। यदि विद्यार्थियों का सहयोग अध्यापक को प्राप्त नहीं होगा तो कभी भी सफल शिक्षण नहीं हो सकता। विद्यार्थियों के सहयोग के लिये अध्यापक को चाहिये कि वह उनके लिये अच्छी क्रियाओं का आयोजन करे।

(9) प्रजातन्त्रीय (Democratic)

वर्तमान युग प्रजातन्त्र का युग है। कक्षा के प्रत्येक विद्यार्थी को शिक्षण प्रक्रिया में समान अधिकार प्रदान किये जाने चाहिये। वास्तव में अच्छा शिक्षण वही है जो बालकों में प्रजातन्त्रात्मक मनोवृत्ति को उत्पन्न कर दे और वह अपने प्रतिदिन के व्यवहार तथा आचरण में प्रजातन्त्रीय भावनाओं द्वारा प्रेरणा ग्रहण करे तथा उनमें प्रजातन्त्रीय विचारों को जीवन में उतारने की भावना का विकास करे।

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(10) शिक्षण निर्देशात्मक होना चाहिए

अच्छे शिक्षण में बालक को आदेश न देकर निर्देश दिया जाता है । कक्षा का वातावरण निर्देशात्मक होना चाहिए । कक्षा में शिक्षक को ऐसी स्थिति उत्पन्न करनी चाहिए जिनमें कार्य करके बालक को अनेक ज्ञान ग्रहण करना चाहिए।

(11) शिक्षण निदानात्मक एवं उपचारात्मक होना चाहिए

वस्तुनिष्ठ परीक्षाओं के माध्यम से बालक की योग्यताओं क्षमताओं तथा संवेगात्मक विशेषताओं का पता सरलतापूर्वक लगाया जा सकता है। इन साधनों के द्वारा हम शिक्षण को निदानात्मक बना सकते हैं। साथ ही व्यक्तिगत भिन्नता, शिक्षण की नवीन पद्धतियों तथा पिछड़ेपन के कारणों का ज्ञान प्राप्त करके हम शिक्षण को उपचारात्मक बना सकते हैं।

(12) अच्छे शिक्षण में सहयोग की भावना होती है।

(13) अच्छे शिक्षण के छात्रों के लिए पूर्व अनुभवों को ध्यान में रखना चाहिए।

(14) अच्छा शिक्षण प्रगतिशील होता है।

(15) अच्छे शिक्षण में बालकों की कठिनाइयों का निदान किया जाता है।

(16) अच्छा शिक्षण बालकों में आत्मविश्वास पैदा करता है।

(17) अच्छा शिक्षण बालक व मस्तिष्क को स्वतन्त्रता प्रदान करता है।

(18) अच्छे शिक्षण में बालकों के ज्ञान का उचित मूल्यांकन करता है।

सारांशत: अच्छे शिक्षण के विषय में योकम तथा सिम्पसन ने लिखा है-“कुशल नियन्त्रण एक ऐसी यात्रा है जो अनुभवों के बिम्ब में की जाती है जिसमें शिक्षक यात्रा का संयोजक होता है । यात्रा की सफलता भावी प्रदर्शन पर आश्रित होती है और मार्ग प्रदर्शन की आवश्यकता प्रत्येक स्तर पर आवश्यक है।

सबसे प्रथम-उसकी आवश्यकता यात्रा का उद्देश्य निश्चित करने तथा योजना बनाने में पड़ती है । दूसरे-यात्रा की साधन सामग्री जुटाने में, तीसरे-बालकों की रुचि आकर्षित करने वाले स्थानों की ओर संकेत करने में, चौथे-इन वस्तुओं को बालक के लिए सार्थक बनाने में, पाँचवें यात्रियों के आराम एवं सुविधा की ओर ध्यान में और अन्त में स्थानुभावों में मूल्यांकन करने में जिससे कि वे उसी प्रकार की यात्रा को करने में पुनः पथ पर रहे।”

शिक्षण में समस्याएँ (Problems in Teaching)

प्रत्येक समाज की संरचना, उसके सिद्धान्त, उसकी सभ्यता और संस्कृति तथा उसकी बदलती हुई आवश्यकता होती हैं। और शिक्षा का उद्देश्य वर्तमान समाज में स्थापित सिद्धान्त, संस्कृति, मूल्य, आदर्श एवं आवश्यकताओं को जनसामान्य तक पहुँचाना होता है । और शिक्षण के उद्देश्य शिक्षा के उद्देश्यों से ही निर्मित होते हैं । जिस प्रकार समाज परिवर्तनशील होता है। उसी प्रकार शिक्षा-शिक्षण के उद्देश्य परिवर्तनशील होते हैं ।

शिक्षण करते समय अध्यापक के समक्ष अनेक प्रकार की समस्याएँ आती हैं। कभी भिन्नता की तथा कभी नवीन शिक्षण विधियों से सम्बन्धित समस्याएँ आती हैं लेकिन कुशल अध्यापक वही है जो इन समस्याओं का निराकरण करते हुए उत्तम शिक्षण करते हैं ।

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(1) बालक के समक्ष शिक्षण की समस्याएं

1. स्वास्थ्य (Health)-

अस्वस्थता किसी भी बात को सीखने में बाधक है क्योंकि अस्वस्थ बालक अपना ध्यान पाठ पर केन्द्रित नहीं कर सकता।

2. बुद्धि (Intelligence)-

तीव्र बुद्धि बालक किसी भी बात को शीघ्रता से समझ लेते हैं, जबकि मन्द बुद्धि बालक उसे इतनी शीघ्र नहीं सीख पाते।

3. क्षमता (Capacity)-

किसी बात को सीखने की क्षमता भी प्रत्येक बालक में भिन्न हुआ करती है। कोई बालक किसी बात को शीघ्र सीख लेता है तो दूसरा बालक अन्य किसी बात को। कोई बालक दो बातें सीख पाता है तो कोई केवल एक ही।

4. योग्यता (Capability)-

योग्यता के अन्तर्गत आता है-किसी बालक को कितना आता है और उससे आगे उसे क्या बताया जाना सम्भव है अथवा क्या बताया जाना चाहिये?

5. अवधान (Concentration)-

जो बालक अपना ध्यान पाट पर केन्द्रित कर सकता है वह पाठ को शीघ्र समझ लेता है, किन्तु जिसमें अवधान की कमी है वह सरल बात को भी देर से सीख पाता है।

6. रुझान/अभिरुचि (Aptitude)-

बालक बुद्धिमान हो सकता है परन्तु वह किसी विषय को तो मन लगाकर पढ़ता है, जबकि दूसरे की ओर ध्यान ही नहीं देता। यह उसकी अभिरुचि (Aptitude) पर आधारित है कि किस विषय को पढ़ना पसन्द करता है और किसको नहीं?

7. रुचि (Interest)-

जिस बात में या पाठ में बालक रुचि लेगा उसे वह शीघ्र सीख जायेगा अन्यथा नहीं। अत: शिक्षक को जानना चाहिये कि कौन बालक पाठ में रुचि नहीं ले रहा है और क्यों? और भी अनेक बातें हैं, जिनका सीधा सम्बन्ध विद्यार्थी से है और जो सीखने में सहायक हैं।

8. अनुशासन (Discipline)-

नियमों का पालन करना, समय का ध्यान रखना शिक्षक की आज्ञा का पालन करना, सभी कुछ अनुशासन के अन्तर्गत आ जाता है। इन बातों के अभाव में भी बालक उतना नहीं सीख पाते जितना उन्हें सीख लेना चाहिये ।

प्रभावी शिक्षण के लिए क्या आवश्यक है?

अनुक्रम में प्रभावी शिक्षण के लिए आवश्यक पूर्व आवश्यक विशेषताएं हैं:.
शिक्षण जुनून का एक पेशा है: शिक्षण एक पेशा नहीं है; यह एक जुनून है। ... .
बच्चों के साथ काम करना पसंद: ... .
सामग्री क्षमता: ... .
शिक्षण के तरीकों में विशेषज्ञता: शिक्षण प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष हो सकता है। ... .
संचार कौशल:.

प्रभावी शिक्षण से आप क्या समझते हैं?

उत्तर— प्रभावकारी शिक्षण – शिक्षक जिस सीमा तक शिक्षार्थी पर प्रभाव डालने में सफल होता है, वह उसी सीमा तक प्रभावी शिक्षक कहलाता है और शिक्षण उद्देश्य भी उसी सीमा तक पूरा हो जाता है। प्रभावकारी शिक्षण का अर्थ शिक्षक की कार्यक्षमता से है जिस सीमा तक वह अपने कार्य में कुशल हो पाता है उस हद तक उसे प्रभावी माना जाता है।

प्रभावशाली शिक्षण की क्या विशेषता है?

प्रभावशाली शिक्षण वह है जिससे अधिकांश शिक्षण उद्देश्यों की प्राप्ति की जा सके अर्थात अधिक से अधिक अधिगम हो सके। इस प्रकार प्रभावशाली शिक्षण वह होता है जिससे शिक्षण प्रक्रिया की अधिगम से अधिकतम निकटता होती है।

शिक्षण की आवश्यकता क्यों होती है?

शिक्षा हमें विभिन्न प्रकार का ज्ञान और कौशल को प्रदान करती है। यह सीखने की निरंतर, धीमी और सुरक्षित प्रक्रिया है, जो हमें ज्ञान प्राप्त करने में मदद करती है। यह निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है, जो हमारे जन्म के साथ ही शुरु हो जाती है और हमारे जीवन के साथ ही खत्म होती है।