नशा छोड़ने के लिए क्या करना चाहिए? - nasha chhodane ke lie kya karana chaahie?

ग्वालियर। ड्रग्स के भंवर में फंसने वाला व्यक्ति स्वयं को असहाय मानने लगता है, उसे लगता है कि वह इससे नहीं उबर पाएगा। वहीं कुछ ऐसे भी हैं, जिन्होंने अपनी इस लत को छुड़ाने के लिए कई जतन किए और वे सफल भी हुए। किसी ने तनाव दूर रखने के लिए तो किसी ने गलत संगत में ड्रग्स को साथी बना लिया। ड्रग्स के आदी हो चुके ये युवा इतने हताश हो चुके हैं कि उन्हें लगता है कि वे कभी सामान्य जिंदगी नहीं जी पाएंगे। वहीं शहर में कुछ ऐसे युवा भी हैं जिन्होंने आत्मबल और आत्मविश्वास से खुद को इस अंधकार से बाहर निकाल लिया। काउंसलर्स कहते हैं कि दृढ़ इच्छाशक्ति, परिवार व दोस्तों का साथ इस आदत से उबरने में मदद करता है। उनके मुताबिक कम उम्र के बच्चों में इसकी वजह क्यूरोसिटी वहीं २५ वर्ष से अधिक उम्र वालों के लिए बेरोजगारी सबसे बड़े कारण के रूप में सामने आई है। इससे उनकी हेल्थ ही नहीं बल्कि वैल्थ भी प्रभावित हुई। सैलरी से दोगुना खर्च और करियर में पिछड़ जाने से इन युवाओं को न केवल अपनी गलती का अहसास हुआ बल्कि ड्रग्स से पीछा छुड़ाने के लिए लाखों जतन भी किए। कई कोशिशों के बाद वे अपनी इस जिद में सफल हुए। अंतरराष्ट्रीय नशा मुक्ति दिवस पर सिटी भास्कर ने कुछ ऐसे ही लोगों से बात की और जाना कि उन्होंने कैसे स्वयं को ड्रग्स के अंधकार से बाहर निकाला। नशा छोड़ें ऐसे 1. परिवार का सहयोग मिलना जरूरी। इससे आत्मबल मिलता है। 2. ड्रग्स लेने का मन करें तो ऐसे में स्वयं को अन्य कार्यो में व्यस्त रखना जरूरी है। 3. खुद को असहाय महसूस करने पर परिवार वालों से छुपाएं नहीं बल्कि उन्हें जरूर बताएं। 4. ज्यादा से ज्यादा समय घर में ही रहने की कोशिश करें। 5. ड्रग लेने की इच्छा खाली पेट ज्यादा होती है, ऐसे में पानी पिएं या कुछ मनपसंद खाएं। खर्च ज्यादा हुआ तो रोका स्मैक पीना 29 साल के उदय प्राइवेट फर्म में काम करते हैं। कुछ साल पहले उन्हें स्मैक की लत लग गई, इससे उनकी हेल्थ और वैल्थ दोनों घटने लगी। वे कहते हैं कि मैंने स्वयं इससे पीछा छुड़ाने की पहल की। दोस्तों की संगत छोड़ी, जब तलब लगती,तो इसकी जगह टॉफी या चॉकलेट खा लेता था। एक महीने तक ऐसा किया और मेरी ये आदत खुद ब खुद छूट गई। कई बार तड़पा, फिर पीछा छुड़ा लिया मोहन सिंह ने कम उम्र में ही शराब पीना शुरू कर दिया था। शादी के बाद जब कई परेशानियों का सामना करना पड़ा, तो उन्हें गलती का अहसास हुआ। वे कहते हैं कि 14 साल की आदत को छुड़ाना आसान नहीं था। कई बार तड़पा और गुस्सा भी बढ़ता गया। लेकिन चार महीने शराब से दूर रहने की कोशिश की, आखिर में मेरा रिश्ता शराब के साथ टूट गया। सेमेस्टर पूरा करने के लिए छोड़ा ड्रग्स ‘20 साल की उम्र में बुरी संगत के कारण मैंने ब्राउन शुगर लेना शुरु कर दिया था। लेकिन इस कारण मेरा पढ़ाई में बहुत नुकसान हुआ’यह कहना है इंजीनियरिंग कर रहे संजय कुमार का। वे बताते हैं कि इस आदत के कारण मेरा एक सेमेस्टर बैक हो गया था। घरवालों ने मेरा ट्रीटमेंट कराया और मैंने भी साथ दिया। आखिरकार हमारी मेहनत सफल हुई। शौक जो बन रहा आदत जीआर मेडिकल कॉलेज के मनोरोग विभाग के डॉ.कमलेश उदेनिया बताते हैं कि युवा शौक में ड्रग्स लेना शुरू करते हैं। उनका शौक कब आदत बन जाता है, इसका उन्हें भी पता नहीं चलता। इसका असर ब्रेन रिसेप्टर्स पर पड़ता है। ड्रग्स के लगातार सेवन से इसका दिमाग पर असर कम हो जाता है, जिसे यूफोरिक इफेक्ट कहते हैं। आदत के कारण युवा आत्म संतुष्टि के लिए ड्रग्स की मात्रा बढ़ा देते हैं। कहीं जिज्ञासा तो कहीं तनाव है कारण मनोरोग चिकित्सालय के असिस्टेंट प्रोफेसर व काउंसलर रंजीत सिंह के अनुसार युवाओं में नशे की लत का सबसे बड़ा कारण जिज्ञासा है। 18 साल के युवाओं में अक्सर आसपास देखी जा रही चीजों के प्रति जिज्ञासा होती है। शराब, गांजा, सिगरेट, ब्राउन शुगर आदि ड्रग्स के प्रति उनकी जिज्ञासा इतनी बढ़ रही है कि वे एक बार इसका एक्सपीरियंस लेना चाहते हैं। कुछ युवाओं में तो यह स्टेटस सिंबल बन गया है। अपनों को दूर कर रही नशे की लत नशे की लत युवाओं को अपनों से दूर कर रही है। वे परिवार के सदस्यों के बीच सामंजस्य नहीं बैठा पा रहे हैं और यही वजह है कि उनके स्वभाव में चिड़चिड़ापन, गुस्सा शामिल हो गया है।कई बार तो बात छुपाने के लिए अपने पैरेंट्स से झूठ तक बोल रहे हैं। शहर के नशा मुक्तिकेंद्रों से मिले आंकड़े बताते हैं कि शहर में 8 फीसदी युवा ऐसे हैं, जिन्हें कई कारणों से नशा अपनी गिरफ्त में ले चुका है। फैक्ट फाइल - 1 हजार युवा- 5 हजार रुपए तक की ब्राउन शुगर का सेवन प्रतिदिन कर रहे हैं। - अधिकांश युवा प्रतिदिन 750 मिली अल्कोहल का सेवन करते हैं। - एक फीसदी ही लेते हैं स्लीपिंग पिल्स। (काउंसलर्स की सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक ) बीस दिन में लत छुड़ाते हैं नशा मुक्ति केंद्र मनोरोग चिकित्सालय में बने नशा मुक्ति केंद्र पर आने वालों की लत छुड़ाने के लिए डिटॉक्सिफिकेशन ट्रीटमेंट और फॉर्मेको थैरेपी का इस्तेमाल किया जा रहा है। काउंसिलिंग के लिए आने वालों को अधिकतर डिटॉक्सीफिकेशन ट्रीटमेंट दिया जाता है जो 12 दिन का होता है। इसमें दवाइयों का इस्तेमाल किया जाता है। वहीं फॉर्मेकों थैरेपी में नशे के कारण होने वाली न्यूट्रीशियन डेफिशियेंसी को दूर किया जाता है। साइको थैरेपी के जरिए काउंसिलिंग की जाती है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह से बीस दिन में नशा छुड़ाया जाता है।
लत किसी भी चीज की हो, बुरी है। खासकर नशे की लत की बात की जाए तो यह घर-बार से नाता तोड़कर सिर्फ बीयर-बार से जोड़ देता है। हकीकत यह है कि इस लत से आजाद होना मुश्किल तो है, लेकिन नामुमकिन नहीं। अगर सही तरीके से कोशिश की जाए, मरीज के साथ उसके परिवारवालों का साथ भी मिले तो यह मुश्किल भी आसान हो जाती है। नशे की लत छोड़ने के तरीकों और उपायों के बारे में एक्सपर्ट्स से बात कर पूरी जानकारी दे रहे हैं -

केस 1- राकेश को हुआ फायदा
पारिवारिक समस्या और उससे पैदा हुए तनाव की वजह से राकेश (बदला हुआ नाम) को शराब की लत लग गई। शराब की वजह से उनकी जॉब छूट गई। धीरे-धीरे 5 साल बीत गए। परिवार वाले समझ नहीं पा रहे थे कि क्या करें। बाद में उन्हें समझ में आया कि यह सिर्फ अडिक्शन नहीं, एक बीमारी है। इसके बाद राकेश के परिवार वाले राकेश को लेकर एम्स के साइकायट्री विभाग में गए। डॉक्टरों ने परिवार वालों से राकेश के बारे में हर तरह की जानकारी ली। पूरी केस हिस्ट्री देखने के बाद उनकी शारीरिक और मानसिक स्थिति का आकलन किया, जिससे पता चला कि शराब के कारण शरीर पर बहुत बुरा असर हुआ है। इसके अलावा डॉक्टरों ने पता लगाया कि इस वक्त वह नशा छोड़ने के लिए तैयार हैं या नहीं और यह भी कि उनका निश्चय कितना मजबूत है। शराब की वजह से डिप्रेशन या अन्य तरह की समस्या तो नहीं है। इसके बाद राकेश को बताया गया कि उनका जबर्दस्ती इलाज नहीं किया जाएगा। डॉक्टरों के इस कदम के बाद वह डॉक्टरों पर यकीन करने लगे। फिर उनका इलाज शुरू हुआ। पहले उनकी काउंसलिंग शुरू की गई और फिर अडिक्शन कंट्रोल करने की तकनीक सिखाई गई। फैमिली की भी काउंसलिंग हुई। डेढ़-दो साल के इलाज के बाद वह पूर्ण रूप से स्वस्थ हो गए और अब सामान्य जीवन जी रहे हैं।

केस 2- हर्षिता की परेशानी दूर
हर्षिता (बदला हुआ नाम) को स्मैक का अडिक्शन था। ऐसे में डॉक्टरों ने उनके लिए भी कमोबेश वही तरीका अपनाया जो राकेश के लिए अपनाया था। दरअसल, हर्षिता को अनजाने में ही स्मैक की लत लग गई थी। उन्हें इस खतरनाक अडिक्शन लगने से पहले माइग्रेन की समस्या थी और उससे निजात पाने के लिए एक झोलाछाप डॉक्टर के कहने पर उन्होंने पेनकिलर इंजेक्शन लेना शुरू कर दिया। यह स्मैक था। धीरे-धीरे उन्हें इसकी लत लग गई। घर में वह खुद से या पति से यह इंजेक्शन लगवाने लगीं। हर्षिता जैसे ही उस इंजेक्शन को बंद करने की कोशिश करतीं, उन्हें कई तरह की परेशानियां होने लगतीं। जब वह डॉक्टरों के पास पहुंचीं तो उनका इलाज शुरू हुआ। हर्षिता की असल परेशानी को डॉक्टरों ने जल्दी समझ लिया। अडिक्शन को दूर करने के लिए फौरन ही इलाज शुरू कर दिया। चूंकि हर्षिता खुद ही नशा नहीं करना चाहती थीं, इसलिए डॉक्टरों को ज्यादा समस्या नहीं हुई और वह नशे की गिरफ्त से छूट गईं। आज हर्षिता इस परेशानी से पूरी तरह आजाद हो चुकी हैं और सामान्य जीवन जी रही हैं।

अडिक्शन क्या है?
जब कोई शख्स नशे के सेवन को कंट्रोल नहीं कर पाता है तो नशीले पदार्थ का सेवन बीमारी का रूप धारण कर लेती है।
-अडिक्शन मानसिक बीमारी है।
-ज्यादा समय तक नशा करने पर दिमाग में बदलाव होने लगता है, जिसे बिना इलाज के ठीक करना मुमकिन नहीं है।
-इसमें लंबे समय तक इलाज की जरूरत पड़ती है। इलाज के दौरान दवाई, काउंसलिंग और सामाजिक मेल-मिलाप जरूरी होता है।
-इलाज के बाद भी बहुत सावधान रहने की जरूरत है। क्योंकि इसकी आशंका बनी रहती है कि अडिक्शन खत्म होने के बाद, यह फिर से शुरू हो जाए।

...तो समझो मामला गड़बड़ है
जब नशे की लत लग जाती है तो इससे दूर रहना बहुत मुश्किल हो जाता है। कोई नशे की लत का शिकार हो चुका है, इसके कुछ संकेत हैं:
-नशीली चीज का एक साल से ज्यादा समय से इस्तेमाल करना
-नशा बंद करने या सीमित इस्तेमाल के लिए की जाने वाली कोशिश का हमेशा नाकाम रहना या इच्छा का लगातार बने रहना
-नशे की वजह से ऑफिस, स्कूल या घर में जिम्मेदारियों को पूरा करने में विफल रहना
-रिश्तों में समस्या पैदा होना और लोग दूरी बनाने लगें
-खेल, टीवी यहां तक कि सिनेमा जैसे मनोरंजन के साधनों को छोड़ देना या बहुत कम कर देना
-नशे की वजह से शरीर में हो रही शारीरिक या मानसिक समस्या के बारे में जानकारी होने के बावजूद भी नशीली पदार्थों का बार-बार इस्तेमाल करना
-नशे का असर ज्यादा हो, इसके लिए लगातार इसकी मात्रा बढ़ाते जाना

परिवारवाले कर सकते हैं ऐसे मदद
मरीज को नशे की लत से बाहर लाने में परिवारअहम भूमिका निभा सकता है। इतना ही नहीं मरीज को पीड़ा, तनाव, शर्म और अपराधबोध से मुक्त कराने में मदद कर सकता है:
-फैमिली मेंबर्स, फ्रेंड्स, टीचर्स, हेल्थ सेंटर्स द्वारा, प्रेरणा देकर, बार-बार नशा करने से रोककर मदद कर सकते हैं।
-अडिक्शन की राह पर बढ़ रहे शख्स को नशे से बीमारी होने का कारण बताकर मदद कर सकते हैं।
-गलत धारणाओं को दूर करके मदद करें।
-मरीज को नशा छोड़ने और काउंसिलिंग और जरूरत पड़ने पर दवा लेने के लिए मोटिवेट करके भी हेल्प करें।
-नशे की तलब लगने वाली परस्थितियों के बारे में जागरुक करके उसकी मदद करें।
-किसी को मरीज के साथ बदसलूकी की इजाजत न दें।
-यदि आपके स्वयं के जीवन का कोई जरूरी पहलू खतरे में है तो काउंसलर की मदद लें।
-फैमिली को भी अडिक्शन संबंधित जानकारी होनी चाहिए। इससे उनका मरीज के प्रति गुस्सा कम होता है। इससे घर में इस मुद्दे पर बेवजह कलह भी कम होता है।
-पेशंट को समझना और दोष न देना सबसे ज्यादा जरूरी है।
-परिवार का तनावग्रस्त होना भी कॉमन है। इसके लिए उन्हें भी प्रफेशनल हेल्प की जरूरत होती है।
-मरीज के छोटे-छोटे प्रयासों की सराहना करें और नेगेटिव कॉमेंट्स पास करने से बचें।

ये हैं इलाज के तरीके
अडिक्शन छुड़वाना बहुत मुश्किल भी नहीं है। अगर कोई अडिक्ट हो गया है तो उसे विशेष डॉक्टर से मिलने में हिचकिचाना नहीं चाहिए। ऐसा कोई शख्स फैमिली, फ्रेंड्स या दफ्तर में हो तो उसे साइकायट्रिस्ट के पास ले जा सकते हैं। फैमिली को समझना पड़ेगा कि यह एक बीमारी है, न कि उसकी गलती। कोई जानबूझकर नशा कर रहा है और छोड़ना नहीं चाहता, जैसी बात नहीं सोचनी चाहिए। बीमारी है तो इसका इलाज भी है। मरीज को इलाज तक पहुंचने में और इलाज में मदद करे। मरीज को फिर से सुधरने के लिए कुछ मौका दें, थोड़ा वक्त दें।
जिस भी सरकारी अस्पताल में साइकायट्री डिपार्टमेंट है, वहां पर नशे की बीमारी का इलाज भी उपलब्ध होता है। हां, यह हो सकता है कि वहां सभी तरह के अडिक्शन का इलाज उपलब्ध न हो। ऐसे में आप किसी दूसरे नजदीकी अस्पताल में जा सकते हैं। नशा डिप्रेशन की ओर भी ले जाता है। नशा में मौजूद केमिकल ब्रेन के एक खास हिस्से को प्रभावित करता है। इससे डिप्रेशन हो सकता है। दरअसल, नशा करने की वजह से जीवन में दूसरी कई समस्याएं भी आ जाती हैं। मसलन: घर-बार छूटना, नौकरी छूटना, पैसे की परेशानी, पर्सनल लाइफ में किसी और तरह की समस्या होना, नशे के कारण अपराधबोध होना या हीन भावना से ग्रस्त होना। इन समस्याओं से भी डिप्रेशन की समस्या हो सकती है। इलाज के दौरान अगर मरीज सिर्फ नशे की लत का शिकार है तो सिर्फ उसी का इलाज किया जाता है। अगर वह नशे और डिप्रेशन, दोनों का शिकार होता है तो दोनों का साथ-साथ इलाज किया जाता है।

दवा के साथ काउंसलिग भी
दवा का दमः
तलब कम करने और नशे से हुए नुकसान ठीक करने के लिए दवा दी जाती है। लेकिन ऐसा अडिक्शन के हर मामले में नहीं होता। डॉक्टर अडिक्ट की अलग-अलग तरह से जांच करते हैं और फिर तय करते हैं कि दवा की जरूरत है भी या नहीं।

काउंसलिंग
-प्रेरित करना: मनोवैज्ञानिक यह काम बखूबी करते हैं। समझाने, रास्ता दिखाने और उत्साह बढ़ाकर असंभव से दिखने वाले काम को वे संभव बना सकते हैं। इससे मरीज को सीधे फायदा होता है।
-नशा करने से रोकना: परिवार के लोग नशे के बुरे प्रभावों के बारे में बताकर नशे से दूर रहने के लिए किसी को मना सकते हैं।
-जानकारी देकर: नशे के बुरे प्रभावों और इससे निकलने के रास्ते की जानकारी देकर अडिक्शन से बचाया जा सकता है।

क्या बताते हैं काउंसलिंग में
1. नशे के बुरे नतीजों के बारे में पूरी जानकारी दी जाती है।
2.इससे निकलने के आसान रास्ते की जानकारी दी जाती है।
3. अपने विचारों को कैसे बदलें, यह भी बताते हैं।
4. सोसाइटी-घर में जो कॉमेंट्स होते हैं, उन्हें कैसे हैंडल करें।
5. जब एक बार नशा छूट जाए तो फिर आगे इसे कैसे छोड़े रखें या तलब से दूर रहें।
6. नशा करने वाले यार-दोस्तों से कैसे दूर रहें।
7. नशा करने वाली जगह से कैसे दूर रहें।
8. स्ट्रेस को कैसे हैंडल करें।
9. कामकाज पर कैसे लौटें।
10. वर्कप्लेस पर किस तरह की समस्या आ सकती है जो उन्हें नशे की ओर जाने के लिए मजबूर कर सकती है।
11. परिवार-दोस्तों की भी काउंसलिंग होती है। उन्हें बताया जाता है कि मरीज से कैसा बर्ताव किया जाना है, उसे किस तरह से सपोर्ट करना है।

सबसे ज्यादा है शराब की लत
केंद्र सरकार के सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने AIIMS के साथ मिलकर इसी साल देश के सभी राज्यों में एक सर्वे कराया था। इसके मुताबिक, देशभर में 10 से 75 साल आयु वर्ग के 14.6 फीसदी यानी करीब 16 करोड़ लोग शराब का सेवन करते हैं। यह बहुत बड़ी संख्या है। वैसे असल समस्या इतनी बड़ी संख्या में शराब पीने वालों का होना नहीं है बल्कि सबसे अहम बात यह है कि इनमें से ज्यादातर को इलाज की जरूरत है।

कैसे लगती है बुरी लत
-संगति से
-घरेलू माहौल
-मस्ती या शौक के लिए
-जिनेटिक कारण

सर्वे के मुताबिक
16 करोड़ में से करीब 6 करोड़ लोग ऐसे हैं, जिन्हें इलाज की जरूरत
नशा करने वाली 2 फीसदी महिलाओं में से 6.5 फीसदी को इलाज की जरूरत
3 करोड़ लोग करते हैं भांग, गांजा, चरस या किसी दूसरे नशे का सेवन
1.14 फीसदी लोग करते हैं हेरोइन का इस्तेमाल
लगभग 1 फीसदी लोग नशीली दवाएं लेते हैं।

सही इलाज के लिए कहां जाएं
National Drug Dependence Treatment Centre, AIIIMS
-अडिक्शन के इलाज के लिए यह देश की सबसे बेहतरीन संस्था है। नशे के इलाज के लिए वेटिंग जैसी कोई स्थिति नहीं है। साढ़े 11 बजे तक ओपीडी में जो मरीज आते हैं, उन सभी का रजिस्ट्रेशन हो जाता है। यह सेंटर गाजियाबाद में है। यहां के बारे में डिटेल्ड जानकारी यहां ले सकते हैं: bit.ly/2MZuMZV
दिल्ली: एम्स, जीबी पंत, सफदरजंग जैसे लगभग सभी सरकारी अस्पतालों में इसका इलाज है।
लखनऊ: किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज
-अडिक्शन और इससे जुड़ी तमाम जानकारी के लिए देखें:
www.alcoholwebindia.in

योग से मिलेगी मदद
-विशेषज्ञों का दावा है कि अगर कोई योग करता है तो उसे नशा करने में परेशानी होगी।
-शीतली और शीतकारी प्राणायाम, अनुलोम-विलोम, कपालभाती आदि प्राणायाम नशे को दूर रहने में आपकी मदद करते हैं।
-हर दिन कम से कम 50 बार शीतली और 50 बार शीतकारी करें। इसमें 5-5 मिनट का समय लगेगा।
-जो व्यक्ति नियमित शीतली और शीतकारी प्राणायाम करता है उस व्यक्ति के शरीर का सिस्टम इस तरह का हो जाता है कि वह नशीली चीज का सेवन नहीं कर पाता और उससे दूर हो जाता है। उसके सेवन की इच्छा भी मर जाएगी। यह कोई भी कर सकता है। इससे खून साफ होता है। एक महीने के अंदर इसका असर दिखने लगेगा।

लत छोड़ने में होती हैं क्या-क्या परेशानियां
-जब भी कोई शराब का आदी शख्स इसे छोड़ने की कोशिश करता है तो उसके शरीर में कंपकंपी, पसीना आना, मितली या उलटी होना, सिर दर्द, नींद की कमी, कमजोरी, गुस्सा आना, मतिभ्रम की स्थिति रहना आदि आम बात है।
-स्मैक या हेरोइन जैसी नशीली चीजों का मादक पदार्थ सेवन बंद करने से उलटी, शरीर में दर्द, बहती नाक, आंखों में पानी, बहुत ज्यादा पसीना, बदहजमी, दस्त, लगातार उबासी लेना, बुखार, अनिंद्रा, उदास मन जैसी समस्याएं आती हैं।
-तंबाकू का एडिक्शन छोड़ने वाले व्यक्ति में: चिड़चिड़ापन, चिंता, मुश्किल से किसी काम या बात पर ध्यान दे, भूख लगने में वृद्धि, बेचैनी, मन उदास रहना, अनिंद्रा
-भांग या गांजा छोड़ने का प्रयास करने वाले व्यक्ति में: चिड़चिड़ापन, गुस्सा, घबराहट, चिंता, अनिंद्रा, भूख में कमी, वजन में कमी, बेचैनी, उदास मन, कंपकंपी, सिरदर्द जैसी समस्याएं होती हैं।
-धीरे-धीरे शरीर खुद अजस्ट कर लेता है तो ये दिक्कतें दूर होने लगती हैं।

गंभीरता के आधार पर अडिक्शन
हल्का: 2-3 पैग रोजाना
मध्यम: 4-5 रोजाना
गंभीर: 6 या उससे ज्यादा रोजाना

...लेकिन यह नहीं है अडिक्शन
अगर आप चाय, कोल्ड ड्रिंक ज्यादा मात्रा में पीते हैं तो भी यह अडिक्शन नहीं है। मेडिकल साइंस इसे नशे के तौर पर नहीं देखता। यहां एक बात का ध्यान रखना जरूरी है कि आदत यानी हैबिट और व्यसन यानी लत दो अलग-अलग चीजें हैं। अमूमन हम इन दोनों तरह को एकसाथ ही रख देते हैं। अगर किसी को हर दिन सुबह चाय पीने की आदत है और उसे अगर चाय न मिले कुछ लोगों में सिरदर्द जैसी परेशानी हाे सकती है, लेकिन शरीर में कंपकपी जैसी परेशानी तो नहीं ही होती। इसी तरह अगर कोई शख्स कोल्ड ड्रिंक दो-चार दिन न पिए तो उसे कोई परेशानी नहीं होगी, लेकिन नशे की लत है और उसे हर दिन नशा करने के लिए न मिले तो उसका एक-एक दिन काटना मुश्किल हो जाता है।

ज्यादा मात्रा में शराब पीने के खतरे
-पुरुष के लिए 2 घंटे में 5 या उससे ज्यादा पैग और महिलाओं के लिए 4 या उससे ज्यादा पैग खतरनाक हैं।
-पुरुष के लिए एक हफ्ते में 14 पैग और महिलाओं के लिए एक हफ्ते में 7 पैग खतरनाक।
शराब के नशे से बीमारीः लंबे समय तक सेवन करने से लिवर खराब हो जाएगा। कैंसर हो सकता है। ब्लड प्रेशर की समस्या, डायबीटीज बिगड़ सकता है और हार्ट की समस्या हो सकती है। बाद में मरीज की मौत भी हो सकती है।

फिर से फंसने से बचाने की तरकीब
नशे की लत छूटने के बाद फिर से फिर से नशे में पड़ जाना सामान्य है। इससे बचना जरूरी है। इसके लिए सीखना होगा कि:
1. किसी दोस्त द्वारा ऑफर किए जाने पर कैसे मना करें।
2. तलब को कैसे हैंडल करें, यह बताना। मसलन:
-ध्यान किसी और काम में लगाना
-लम्बी सांस लेकर मन को शांत करना
-टालना
-पानी पीना
-ध्यान किसी दूसरे जरूरी काम में लगाना
-लम्बी सांस लेकर मन को शांत करना

लत लगने के चरण
1- नशे की लत लग जाना
2- ज्यादा लेना शुरू करना यानी हानिकारक उपयोग
3- शुरुआत में कभी-कभार लेना

जितनी पुरानी लत, उतना लंबा इलाज
-व्यक्ति अडिक्शन की बीमारी के अलग-अलग चरण में होता है। ऐसे में एक जैसा इलाज सभी के लिए फायदेमंद नहीं होता है। जो जिस स्टेज में होता है, उसका इलाज उसी के अनुसार किया जाता है।
-नशे के अडिक्शन से निकल कर मरीज फिर उसमें फंस जाता है। ऐसे में इलाज के दौरान ध्यान रखना जरूरी है कि मरीज फिर से उसमें नहीं जाए। इसके लिए परिवार वालों को भी निर्देश दिए जाते हैं।
-नशे का ट्रीटमेंट महीनों और सालों तक चल सकता है। इसलिए सब्र बनाकर रखना बहुत जरूरी होता है।
-इलाज में भागीदारी होना ज्यादा फायदेमंद है। इसलिए इस बात का भी ध्यान रखा जाता है कि इलाज किस तरह हो और कहां किया जाए।

रीहैबिलिटेशन सेंटर कितने कारगर?
नशे के इलाज के लिए अक्सर मरीज को रीहैब सेंटर में भर्ती करा दिया जाता है। ऐसा कर परिजन निश्चिंत हो जाते हैं कि वह ठीक हो जाएगा, लेकिन इस मामले में थोड़ी सावधानी की जरूरत है:
- देश के करीब 80 फीसदी रीहैबिलिटेशन सेंटर प्राइवेट हैं और वे कितने प्रभावी हैं, इसके बारे में कहना मुश्किल है।
-प्राइवेट सेंटर ज्यादातर वे लोग चलाते हैं जो पहले खुद नशे से पीड़ित थे। वे इसी बात को हाईलाइट कर अडिक्ट के परिजनों को अपनी सेंटर की ओर खींचते हैं। लेकिन यह बात रीहैबिलिटेशन सेंटर के उपयोगी होने का सबूत कतई नहीं है।
-सर्वे में यह बात सामने आ चुकी है कि इस तरह के ज्यादातर सेंटरों में जरूरी दवाइयों की काफी कमी होती है जबकि इलाज के नाम पर काफी पैसे लिए जाते हैं।
-आमतौर पर इन सेंटरों पर शुरुआत में थोड़ी दवाई दी जाती है और बाद में उनकी काउंसलिंग की जाती है। साथ ही मरीजों को नशे से दूर रखने का प्रयास किया जाता है।
-इन सेंटरों के बारे में शिकायत रहती है कि मरीजों से काम करवाया जाता है और उनके साथ डांट-डपट और मारपीट तक की जाती है।
-रीहैब के अनुभव के बाद कई मरीज डॉक्टर के पास जाने से कतराने लगते हैं।

रीहैबिलिटेशन सेंटर को लेकर रहें सतर्क
-मरीजों को सीधे रीहैबिलिटेशन सेंटरों में भर्ती नहीं कराया जाना चाहिए बल्कि पहले उसे डॉक्टरों या ओपीडी में दिखाना चाहिए। कई बार स्थिति डॉक्टरों से ही संभल जाती है। रिहैब जाने से परेशानी बढ़ भी सकती है।
-एम्स के नशा मुक्ति विभाग का दावा है कि उसके यहां आने वाले मरीजों में से करीब 90 फीसदी मरीजों को ओपीडी से ही लाभ मिल जाता है।
-रीहैब सेंटर जाने से पहले एक ऑप्शन अस्पताल में भर्ती कराने का भी है। एम्स में इसके लिए पूरी व्यवस्था है। यह विकल्प भी सही है।
-हां, रीहैबिलिटेशन सेंटर का विकल्प अंतिम हो सकता है और वह भी थोड़े समय के लिए ही। इस ऑप्शन पर तब ही जाना चाहिए जब बाकी सभी ऑप्शन फेल हो गए हों या ज्यादा फायदा नहीं दिख रहा हो।
-कई रीहैबिलिटेशन सेंटर पैसा कमाने के लिए अडिक्शन के मरीजों को लंबे समय के लिए भर्ती के लिए कहते हैं। यह सही नहीं है। वह ऐसा पैसों के लिए करते हैं। इससे मरीज की स्थिति ठीक होने की बजाय खराब भी हो जाती है।
-किसी भी रीहैबिलिटेशन सेंटर में भर्ती करने से पहले वहां पहले से भर्ती मरीज का फीडबैक जानने की कोशिश करें। इससे उसके सक्सेस रेट के बारे में भी जानकारी मिल जाएगी।
-मेंटल हेल्थकेयर ऐक्ट 2017 के तहत रीहैबिलिटेशन सेंटर खोलने के लिए लाइसेंस की जरूरत होती है। भर्ती करने से पहले लाइसेंस जरूर मांगें।

मिथ मंथन
1. किसी शख्स के चरित्र या व्यक्तित्व में कमी के कारण वह नशीली चीजों का सेवन करने लगता है।
- इसका चरित्र या व्यक्तित्व से कोई लेना-देना नहीं है। नशे की लत किसी भी व्यक्ति को लग सकती है।

2. नशे का सेवन करने वाला शख्स कोई अप्रत्याशित काम कर सकता है या हमला कर सकता है।
-अमूमन नशे की वजह ऐसा कोई नहीं करता। दरअसल जब लोग किसी नशे में पहुंच चुके शख्स के साथ जबर्दस्ती करते हैं और उन्हें नशा करने से रोकने या समझाने की कोशिश करते हैं तो उसकी भावनाएं काबू से बाहर हो जाती हैं। उसे शारीरिक और मानसिक परेशानी होती है। ऐसे में वह अपना आपा खो देता है। किसी अडिक्ट को जब समझाना हो तो यह जरूरी है कि वह पूरे होशो-हवास में रहे।

3. नशे का आदी व्यक्ति कभी भी खुद से नशा नहीं छोड़ना चाहता।
-जिस शख्स को नशे की लत होती है, उसे यह पता होता है कि नशे की लत लग चुकी है। सच यह है कि ऐसे लोगों में से ज्यादातर नशा छोड़ना चाहते हैं, लेकिन जैसे ही वे छोड़ना चाहते हैं, उन्हें परेशानी शुरू हो जाती है। इस परेशानी से निकलने के लिए उन्हें मदद की जरूरत होती है।

4. जिस शख्स की इच्छाशक्ति बहुत मजबूत होगी, वही नशे का सेवन छोड़ सकता है।
-नशे की लत पर कोई भी शख्स लात मार सकता है। नशे की काउंसलिंग के लिए जब कोई शख्स शुरू में आता है तो वह नशा छोड़ने के बारे में नहीं सोच रहा होता, लेकिन जब काउंसलिंग शुरू होती है और काउंसलर दो-तीन बार उससे मिलते हैं तो वह तैयार हो जाता है। कई बार शख्स को खुद भी विश्वास नहीं होता कि वह नशा छोड़ सकता है।

5.नशा छुड़ाने का एक ही तरीका है कि उसे उसकी मर्जी से या जबर्दस्ती कुछ महीने के लिए रीहैबिलिटेशन सेंटर में भर्ती करा दिया जाए।
-यह पूरी तरह गलत है। आमतौर पर एक धारणा है कि नशा छुड़ाना है तो रीहैबिलिटेशन सेंटर में भर्ती करा दो। हमें समझना होगा कि अडिक्शन एक बीमारी है और इसका इलाज है।

6.काउंसलिंग और लाइफस्टाइल में बदलाव से नशे का इलाज संभव है?
-सिर्फ काउंसलिंग और जीवनशैली में बदलाव से इलाज संभव नहीं है। अडिक्शन के मामले में दवा की जरूरत पड़ेगी ही। मरीज के नशे की लत का इलाज करना होगा।

एक्सपर्ट्स पैनल
1- डॉ. आलोक अग्रवाल, असिस्टेंट प्रफेसर, एम्स
2- डॉ. आर. के. चड्ढा चीफ NDDTC, एम्स
3- डॉ. गौरीशंकर केलोया, एसोसिएट प्रफेसर, एम्स
4- डॉ. रवींद्र राव एसोसिएट प्रफेसर, एम्स
5- डॉ. अंजू धवन NDDTC, एम्स
6- आशीष चटर्जी योग गुरु, सत्या फाउंडेशन

नशा बंद करने के लिए कौन सा दवा है?

स्टॉप एडिक्ट नशा बैंड दावा स्टॉप एडिक्शन (नशा मुखी आयुर्वेदिक दवा) : Amazon.in: स्वास्थ्य और व्यक्तिगत देखभाल ₹560.00 नि: शुल्क डिलिवरी।

नशा कैसे छुड़ाएं घरेलू उपाय?

कैसे इस्तेमाल करें.
5-10 ग्राम अदरक को छोटे-छोटे टुकड़ों में काट लें.
अब इसमें सेंधा नमक मिला लें.
नींबू का एक चम्मच रस मिलाकर अदरक को सूखने के लिए धूप में रख दें.
सूख जाने के बाद यह अदरक नशा छुड़ाने का उत्तम घरेलू उपाय है.
अदरक के टुकड़ों को हमेशा अपने पास रखें, जब भी नशे का मन हो एक टुकड़ा मुंह में लेकर उसे चूसें.

अचानक नशा छोड़ने से क्या होता है?

अचानक शराब छोड़ने पर होगा ये असर इसके अलावा आपको थकान, एंग्जाइटी, घबराहट, कंपकंपी, चिड़चिड़ापन, इमोशनल होना, ब्लड प्रेशर बढ़ना, सिर दर्द, पसीना आना, नींदा न आना, भूख कम लगना, हार्ट बीट तेज होना और फोकस न कर पाने की स्थिति पैदा हो सकती है.

नशा छोड़ने के लिए क्या खाना चाहिए?

धतूरा, गांजा, भांग या फिर शराब जैसी विषाक्त नशीले पदार्थों का सेवन करने वाले लोगों को इसके प्रभावों तथा इसकी वजह से शरीर में आई कमियों को दूर करने के लिए अंगूर का सेवन करना चाहिए। शराब छोड़ने के लिए यह सर्वोत्तम औषधि मानी जाती है। लगभग 25 दिनों तक लगातार अंगूर खाने से आपकी शराब की आदत पूरी तरह से छूट सकती है।