इसके बाद 1 9 60 के दशक के अंत में फिर से एक गंभीर प्राकृतिक आपदा आयी । इससे मधुबनी के गांव बिलकुल आर्थिक रूप से कमजोर हो गए थे ।, अखिल भारतीय हस्तशिल्प बोर्ड ने मधुबनी के चारों ओर के गांवों में महिलाओं को आय बनाने के लिए परियोजना के रूप में अपनी परंपरागत दीवार चित्रों को पेपर में स्थानांतरित करने के लिए प्रोत्साहित किया। पेंटिंग्स को अखिल भारतीय हस्तशिल्प बोर्ड खरीद कर बेचती थी इस तरह से ये पेंटिंग मिथिला क्षेत्र के बहुत सारे बर्बाद हुए घरो के लिए आय का श्रोत बना Show विदेश में पेंटिंग का प्रचार क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति को अपने चित्र के माध्यम से दिखाना , “लाइन पेंटिंग” और “रंगीन पेंटिंग” में महारथ हासलील कर के इन महिलाओं में से कई शानदार कलाकार बन गए । उनमें से चार जल्द ही यूरोप, रूस और संयुक्त राज्य अमेरिका में सांस्कृतिक मेलों में भारत का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। उनकी राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पहचान ने कई अन्य जातियों के कई अन्य महिलाओं को प्रोत्साहित किया – जिनमें हरिजन या दलित, पूर्व- “अस्पृश्य” भी शामिल थे – साथ ही साथ पेपर पर पेंटिंग शुरू करने के लिए भी। 1 9 70 के दशक के अंत तक, पेंटिंग की लोकप्रिय सफलता का मुख्य कारण भारतीय चित्रकला परंपराओं से अलग हटके चित्र का लगना था जिसने नई दिल्ली के पेंटिंग डीलरों को खूब आकर्षित किया । रामायण के सबसे लोकप्रिय देवताओं के बड़े पैमाने पर उत्पादित चित्रों औरकी मांग सबसे ज्यादा रही । गरीबी से बाहर निकलने के लिए , कई चित्रकारों ने डीलरों की मांगों का अनुपालन किया, और “मधुबनी पेंटिंग्स” के रूप में जाने वाली तेज़ और दोहराव वाली छवियों का उत्पादन किया। फिर भी, कई बाहरी लोगों के प्रोत्साहन के साथ – दोनों भारतीय और विदेशी – एक ही सौंदर्य परंपराओं के भीतर काम करने वाले अन्य कलाकारों ने अत्यधिक तैयार की गई, गहरी व्यक्तिगत और तेजी से विविध काम का निर्माण करना जारी रखा, जिसे अब “मिथिला चित्रकारी” कहा जाता है। महिलाओं द्वारा शुरू की गयी चिरत्कारी एक रूढ़िवादी परमपरा का अंत था मिथिला लंबे समय से भारत में अपनी समृद्ध संस्कृति और कई कवि, विद्वानों और धर्मशास्त्रियों यानि पुरुषो के कारण प्रसिद्ध थी – जबकि महिलाओं के लिए, यह एक रूढ़िवादी समाज रहा है और जब तक पेपर पर पेंटिंग शुरू नहीं हुई| 40+ साल पहले, ज्यादातर महिलाएं अपने घरों तक सीमित थीं और घरेलू घर के काम, बाल पालन, परिवार के अनुष्ठानों का प्रबंधन, और धार्मिक दीवार चित्रकला के लिए सीमित थी। महिलाओं द्वारा शुरू की गयी चित्रकला एक रूढ़िवादी परंपरा का अंत था| इसे पढ़े महात्मा गाँधी ने चम्पारण सत्याग्रह आंदोलन का नेतृत्व कैसे किया पेपर पर चित्रकारी और प्रसिद्धि जब पेपर पर चित्रकारी होने लगी और ये जब ये बाज़ार में बिकने लगी तब नई पारिवारिक आय पैदा करने के अलावा, बहुत सारी महिलाओं ने व्यक्तिगत रूप में स्थानीय, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त की है | कलाकारों को पूरे भारत, और यूरोप, अमेरिका और जापान में प्रदर्शनियों के लिए आमंत्रित किया जाने लगा |अब मिथिला के लोक कलाकार किसी परिचय के मोहताज़ नहीं हैं जहां एक बार उनके चित्र “गुमनाम” थे, अब वे गर्व से हस्ताक्षर किए जा रहे हैं | आर्थिक सफलता के साथ मिथिला के लोक कलाकार अब यात्रा करने लगे है और विदेशो में भी अपने चित्रकारी के लाइव शो करने लगे हैं | रेडियो और अब टीवी पर प्रचार उनकी इस कला को पुरे विश्व में फैला रहा है | मधुबनी कला में पांच विशिष्ट शैलियाँ मधुबनी कला में पांच विशिष्ट शैलियों, अर्थात् भर्णी, कच्छनी, तांत्रिक, गोदा और कोहबर हैं। 1 9 60 के दशक में भर्णी, कच्छनी और तांत्रिक शैली मुख्य रूप से ब्राह्मण और कायस्थ महिलाओं द्वारा की जाती थी, जो भारत और नेपाल में ‘ऊंची जाति’ की महिलाएं थी उनके विषय मुख्य रूप से धार्मिक थे और उन्होंने अपने चित्रों में देवताओं और देवियों, वनस्पतियों और जीवों को चित्रित किया। वही निचली जातियों के लोगों की चित्रकारी में उनके दैनिक जीवन और प्रतीकों, राजा शैलेश [गांव की रक्षा] की कहानी और आदि उनके चित्रों में शामिल था । लेकिन आजकल मधुबनी कला वैश्वीकृत कला रूप बन गई है, इसलिए जाति व्यवस्था के आधार पर इस क्षेत्र के कलाकारों के काम में कोई अंतर नहीं है। अब सभी लोग पांचों शैलियों में काम कर रहे हैं। इसी वजह से मधुबनी कला को विश्वव्यापी ध्यान मिला है। [the_ad_placement id=”adsense-in-feed”] कलाकार और पुरस्कार महासुंदरी देवी इसके अलावा बौवा देवी, यमुना देवी, शांति देवी, चानो देवी, बिंदेश्वरी देवी, चंद्रकला देवी, शशि कला देवी, लीला देवी, गोदावरी दत्ता और भारती दयाल ,चंद्रभूषण, अंबिका देवी, मनीषा झा को भी राष्ट्रीय पुरस्कार दिया गया। इस लेख में हम मधुबनी चित्रकला (Madhubani painting) पर सरल और सहज चर्चा करेंगे एवं इसके विभिन्न महत्वपूर्ण पहलुओं को समझने का प्रयास करेंगे; तो इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ें और अगर आप सीखना चाहते हैं तो नीचे दिये गए पीडीएफ़ को फॉलो कर सकते हैं। इसके साथ ही संबंधित अन्य लेखों का भी लिंक नीचे दिया हुआ है, उसे भी अवश्य पढ़ें। विभिन्न विषयों पर नियमित अपडेट के लिए हमारे फ़ेसबुक पेज़ को लाइक कर लें, और हमारे यूट्यूब चैनल को भी विजिट करें। 📌 Join YouTube📌 Join FB Group📌 Join Telegram📌 Like FB Page📖 Read This Article in Englishभारतीय कला में भारतीय चित्रकला की एक बहुत लंबी परंपरा और इतिहास है, हालांकि जलवायु परिस्थितियों के कारण बहुत कम प्रारंभिक उदाहरण बचे हैं। लेकिन जो बचे है, उन्हे देखें तो पता चलता है कि कुछ चित्रकला के उदाहरण 10,000 साल से भी ज्यादा पुराने हैं, जैसे कि भीमबेटका का गुफाचित्र। कालांतर में भारत में सैंकड़ों चित्रकला विकसित हुए, जिसमें से कुछ नष्ट हो गए और कुछ आज भी अभ्यास में लाये जाते हैं। इन्ही में से बहुत सारी क्षेत्रीय या ग्रामीण चित्रकलाएं है, जैसे कि पट्टाचित्र पेंटिंग (जो कि ओड़ीसा, बंगाल में कपड़े पर की जाती है), मधुबनी चित्रकला (इस पर हम इस लेख में बात करने वाले हैं), कलमकारी पेंटिंग (सूती वस्त्रों पर हाथ से की जाने वाली पेंटिंग, जो कि आंध्र प्रदेश में अभ्यास में लाया जाता है), एवं मंदाना पेंटिंग (जो कि राजस्थान एवं मध्य-प्रदेश में अभ्यास में लाया जाता है, इसे दीवार एवं जमीन पर बनाया जाता है) इत्यादि। विषय सूची
मधुबनी चित्रकला क्या है? (What is Madhubani painting?)मधुबनी चित्रकला [madhubani paintings] Brief Notes in Hindi - WonderHindi Watch this video on YouTube
मधुबनी चित्रकला (madhubani painting), एक लोक कला है,जिसकी उत्पत्ति बिहार के मिथिला क्षेत्र के मधुबनी जिले से हुई है। इस चित्र कला का इतिहास अति प्राचीन है, ऐसा माना जाता है कि राम-सीता विवाह के समय महिला कलाकारों से इसे बनवाया गया था| इस चित्रकला को बचाए रखने में महिलाओं की ही अधिक भूमिका रही है, आज भी यह अधिकतर महिलाओं द्वारा ही बनाया जाता है। इसके कई रूप घर-घर में प्रचलित है और आज भी विभिन्न अवसरों पर इसे बनाया जाता है। मधुबनी चित्रकला को शुरू में विभिन्न संप्रदाय द्वारा बनाया जाता था और बनाए जाने वाली चित्रों को पांच शैलियों में बाँटा गया था, जैसे कि तांत्रिक, कोहबर, भरनी, कटचन, और गोदना। वर्तमान समय में लगभग सारी शैलियों का एक दूसरे में विलय हो गया हैं। समकालीन कलाकारों द्वारा इसमें और नवीनता लाने का प्रयास किया जा रहा हैं, इसीलिए अब ये दीवार, कैनवास, हस्तनिर्मित, कागज एवं कपड़ों पर भी बनाई जाती है। मधुबनी चित्रकला के दो रूप प्रचलित है, (1) भित्ति चित्र (mural painting) और (2) अरिपन (aripan)। (1) भित्ति चित्रमधुबनी चित्रकला को आमतौर पर दीवारों पर बनाए जाने की परंपरा रही है। हालांकि यह परंपरा धीरे-धीरे खत्म हो रही है, क्योंकि यह मिट्टी के दीवारों पर बनाया जाता था और अब प्लास्टर वाले दीवारों पर सामान्यतः नहीं बनाया जाता है। भित्ति चित्र को समान्यतया: तीन रूपों में दर्शाया जाता हैं। गोसनी घर (पूजा घर) में बनाए गए चित्र धार्मिक महत्व के होते हैं इस प्रकार की धार्मिक चित्र में दुर्गा, राधा-कृष्ण, राम-सीता, शिव-पार्वती, विष्णु-लक्ष्मी आदि का अधिक चित्रण होता है| कोहबर घर में बनाए गए चित्र कामुक प्रवृत्ति के होते हैं इसमें कामदेव, रति तथा यक्षणियों का चित्रण किया जाता है। विशेष आयोजन जैसे कि- विवाह, मुंडन या उपनयन आदि में घर के अंदरूनी दीवारों सहित घर के बाहरी दीवारों की भी सजावट की जाती हैं । चित्रों की पृष्ठभूमि तैयार करने के लिए पशु-पक्षियों, जानवरों, तथा विभिन्न प्रकार के वनस्पतियों के चित्र निर्मित किए जाते हैं। (2) अरिपनमधुबनी कला का एक अन्य रूप अरिपन चित्र है। यह आंगन में एवं चौखट के सामने जमीन पर निर्मित किए जाने वाले चित्र है। चावल को पीस कर उसमें आवश्यकतानुसार रंग मिलाकर महिलाएं इसे अपनी हाथों और उंगलियों से बनाती है। इसमें बनाई जाने वाली जाने वाली चित्र निम्न प्रकार के हैं। वर्तमान परिदृश्यआज के समय में व्यवसायिक या फिर अधिक से अधिक लोगों तक इस कला को पहुंचाने के उद्देश्य से कपड़े एवं कागज पर भी चित्रांकन की प्रवृत्ति बढ़ी है। उँगलियों की जगह अब ब्रश की कूची ने ले ली है। इन चित्रों में प्रयोग किए जाने वाले रंग अधिकांश वनस्पतियों और घरेलू चीजों से ही बनाया जाता है, जैसे कि हल्दी, केले के पत्ते, पीपल की छाल इत्यादि। हालांकि अब सिंथेटिक रंगों का भी इस्तेमाल होता है। इस चित्रकला में अधिकतर हरा, पीला, नीला, केसरिया, लाल, बैंगनी आदि रंगों का इस्तेमाल होता है। वर्तमान में इस कला की लोकप्रियता राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खूब बढ़ रही है, इस कला को संरक्षित करने तथा इस में नवीनता लाने के लिए बहुत सारे नए कलाकारों प्रशिक्षण दिया जा रहा है इसके लिए कई प्रशिक्षण तथा बिक्री केन्द्रों की स्थापना की गई है। आये दिन राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लगातार प्रदर्शनियाँ आयोजित की जा रही हैं। | मधुबनी चित्रकला कैसे बनाया जाता है?मधुबनी चित्रकला अपने अलग स्टाइल, पैटर्न एवं खूबसूरत प्राकृतिक रंगों के कारण खूब ख्याति पायी है, ऐसे में इसे सीखना अब एक रोजगार का माध्यम भी है। नीचे पीडीएफ़ से आप इसे सीख सकते हैं कि इसे किस तरह से बनाया जाता है; मधुबनी पेंटिंग के जनक कौन है?इतिहास माना जाता है ये चित्र राजा जनक ने राम-सीता के विवाह के दौरान महिला कलाकारों से बनवाए थे। मिथिला क्षेत्र के कई गांवों की महिलाएँ इस कला में दक्ष हैं।
मधुबनी पेंटिंग का दूसरा नाम क्या है?मिथिला पेंटिंग (जवने के मधुबनी पेंटिंग के रूप में भी जानल जाला) नेपाल की मिथिला राज्य में और भारत की बिहार राज्य में भी प्रचलित बा।
मधुबनी पेंटिंग का अर्थ क्या है?मधुबनी चित्रकला बिहार के दरभंगा, पूर्णिया, सहरसा, मुजफ्फरपुर, मधुबनी एवं नेपाल के कुछ क्षेत्रों की प्रमुख चित्रकला है। प्रारम्भ में रंगोली के रूप में रहने के बाद यह कला धीरे-धीरे आधुनिक रूप में कपड़ो, दीवारों एवं कागज पर उतर आई है। मधुबनी चित्रकला बिहार की एक विश्वविख्यात चित्रकला शैली है।
मधुबनी क्यों प्रसिद्ध है?भारत के बिहार प्रान्त में दरभंगा प्रमंडल अंतर्गत एक प्रमुख शहर एवं जिला है। दरभंगा एवं मधुबनी को मिथिला संस्कृति का द्विध्रुव माना जाता है। मैथिली तथा हिंदी यहाँ की प्रमुख भाषा है। विश्वप्रसिद्ध मिथिला पेंटिंग एवं मखाना के पैदावार की वजह से मधुबनी को विश्वभर में जाना जाता है।
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