सन्निधाता उत्तर भारत में प्रचलित 'प्राचीन भारतीय कृषिजन्य व्यवस्था एवं राजस्व संबंधी पारिभाषिक शब्दावली' में एक शब्द है। सन्निधाता का अर्थ है- राजस्व के रूप में विभिन्न प्रकार की वस्तुओं को राजा के कोषागार में जमा कराने वाला प्रभारी अधिकारी। Show मौर्य कालमौर्य काल में राजकीय कोष का विभाग सन्निधाता के हाथ में होता था। राजकीय आय और व्यय का हिसाब रखना और उसके सम्बन्ध में नीति का निर्धारण करना सन्निधाता का ही कार्य था। चाणक्य ने लिखा है- 'सन्निधाता को सैकड़ों वर्ष की बाहरी तथा अन्दरूनी आय-व्यय का परिज्ञान होना चाहिये, जिससे कि वह बिना किसी संकोच या घबराहट के तुरन्त व्ययशेष अथवा अधिशेष को बता सके'। सन्निधाता के अधीन भी अनेक उपविभाग थे- कोशगृह, पण्यगृह, कोष्ठागार, कुप्यगृह, आयुधागार और बंधनागार ऐसे ही उप-विभाग थे, जिन पर सन्निधाता का नियंत्रण था। कोषगृह के अध्यक्ष को कोषाध्यक्ष कहते थे। वह कोषगृह में सब प्रकार के रत्नों तथा अन्य बहुमूल्य पदार्थों का संग्रह करता था। चाणक्य के अनुसार 'कोषाध्यक्ष का कर्तव्य है कि वह रत्नों के मूल्य, प्रमाण, लक्षण, जाति, रूप, प्रयोग, संशोधन, देश तथा काल के अनुसार उनका घिसना या नष्ट होना, मिलावट, हानि का प्रत्युपाय आदि बातों का परिज्ञान रखे'। पण्यगृह में राजकीय पण्य (विक्रय पदार्थ) एकत्र किये जाते थे। राज्य की तरफ से जिन अनेक व्यवसायों का संचालन होता, उनसे तैयार किये गए पदार्थ सन्निधाता के अधीन पण्यगृह में भेज दिये जाते थे। राजकीय पण्य की बिक्री के अतिरिक्त पण्याध्यक्ष का यह कार्य भी था कि वह अन्य विक्रय माल की बिक्री को नियन्त्रित करे। माल के विक्रय के सम्बन्ध में 'अर्थशास्त्र 'में यह सिद्धांत प्रतिपादित किया गया है कि उसे जनता की भलाई की दृष्टि से बेचा जाए। कोष्ठागार में वे पदार्थ संगृहीत किये जाते थे, जिनकी राज्य को आवश्यकता रहती थी। सेना, राजपुरुष आदि के खर्च के लिए राज्य की ओर से जो माल खरीदा जाता था, स्वयं बनाया जाता था या बदले में प्राप्त किया जाता था, वह सब कोष्ठागार में रखा जाता था। कुप्यगृह में कुप्य पदार्थ (जंगल से प्राप्तव्य विविध प्रकार के काष्ठ, ईंधन आदि) एकत्र किये जाते थे। आयुधागार में सब प्रकार के अस्त्रों-शस्त्रों का संग्रह रहता था। कारागार (जेलखाना) का विभाग भी सन्निधाता के अधीन था। इन्हें भी देखें: मौर्यकालीन भारत, मौर्य काल का शासन प्रबंध, मौर्ययुगीन पुरातात्विक संस्कृति एवं मौर्यकालीन कला पन्ने की प्रगति अवस्था
टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख
मौर्य काल में समाहर्ता कौन है?समाहर्ता राज्य का बहुत ही महत्त्वपूर्ण अधिकारी होता था, और जनपदों के शासन का संचालन बहुत-कुछ इसी के हाथ में रहता था। सन्निधाता- राजकीय कोष का विभाग सन्निधाता के हाथ में होता था। राजकीय आय और व्यय का हिसाब रखना और उसके सम्बन्ध में नीति का निर्धारण करना सन्निधाता का ही कार्य था।
मौर्य काल में प्रांतों को क्या कहा जाता था?मौर्य काल में प्रान्तों को 'चक्र' कहा जाता था, जो मंडलों में विभाजित थे। इन प्रान्तों का शासन सीधे सम्राट द्वारा नियंत्रित न होकर उसके प्रतिनिधि द्वारा संचालित होता था। अशोक के समय में प्रांतों की संख्या चार से बढ़कर पांच हो गई। पांचवां प्रांत कलिंग था, जिसकी राजधानी तोसली थी।
महाश्रेष्ठी कौन था?सार्थवोहों के अतिरिक्त अलग-अलग उद्योगों के प्रमुख और जेठ्ठ होते थे। यह भी उल्लेख है कि व्यापारिक श्रेणियों के झगड़े महासेट्ठि (महाश्रेष्ठी) निपटाता था। यह महासेट्ठि वस्तुतः शिल्पियों की श्रेणियों के चौधरियों के ऊपर बड़ा चौधरी जैसा होता था।
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