मराठों के पतन के क्या कारण है? - maraathon ke patan ke kya kaaran hai?

उत्तर :

उत्तर की रूपरेखा:

  • शिवाजी की उपलब्धियों के बारे में लिखें। 
  • स्पष्ट करें कि उनकी यह नीति मराठा साम्राज्य के विस्तार में किस प्रकार सहायक थी। 
  • मराठों के पतन के कारणों पर प्रकाश डालें।

 शिवाजी एक योग्य सेनापति तथा कुशल राजनीतिज्ञ थे, जिन्होंने अपने प्रयासों से एक मज़बूत मराठा साम्राज्य की नींव रखी। शिवाजी की उपलब्धियों को निम्नलिखित रूपों में देखा जा सकता है-

  • शिवाजी से पूर्व  मराठे कुछ छोटे-छोटे स्थानीय रियासतों में बटें थे। किंतु शिवाजी की सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि उन्होंने दक्कन से लेकर कर्नाटक तक मराठा साम्राज्य के प्रभाव में वृद्धि की और अखिल भारतीय स्तर पर इसे एक स्थान प्रदान किया।
  • शिवाजी की उपलब्धि एक कुशल प्रशासनिक व्यवस्था के निर्माण के रूप में भी देखी जा सकती है। प्रशासन में सहायता के लिये अष्टप्रधानों की नियुक्ति कर उन्होंने वित्त, सेना, गुप्तचर-व्यवस्था तथा पत्र-व्यवहार जैसे क्षेत्रों में कुशलता को बढ़ाया।
  • शिवाजी ने आय हेतु एक प्रमाणिक राजस्व व्यवस्था का गठन किया तथा सरदेशमुखी के साथ-साथ चौथ  के माध्यम से साम्राज्य का आर्थिक आधार व्यापक किया।
  • नकद वेतन पर आधारित सेना का गठन शिवाजी की एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि थी। कठोर अनुशासन पर बल देकर उन्होंने मराठा सेना की प्रभावशीलता में वृद्धि की। इसके अलावा कुशल छापामार युद्ध की नीति का विकास भी सैन्य क्षेत्र में शिवाजी की महात्त्वपूर्ण उपलब्धि थी। 
  • अपने साम्राज्य की सुरक्षा के लिये मज़बूत किलेबंदी की व्यवस्था शिवाजी की एक अन्य उपलब्धि थी। अपनी दूरदर्शिता के कारण विश्वासघात से बचने के लिये उन्होंने समान दर्जे वाले तीन व्यक्तियों को किले का प्रभार देने की नीति अपनाई।

शिवाजी की ये नीतियाँ मराठा साम्राज्य के विकास में अत्यंत सहायक हुईं। कुशल राजस्व व्यवस्था से होने वाली आय के कारण मराठों की सैनिक शक्ति में भी वृद्धि हुई। वहीं अखिल भारतीय स्तर पर मराठों को उभारने के कारण आगे चल कर मुग़ल साम्राज्य द्वारा भी उन्हें पर्याप्त महत्त्व प्रदान किया गया। इससे मराठों के साम्राज्य का विस्तार हुआ। शिवाजी द्वारा विकसित की गई छापेमारी-युद्ध प्रणाली का प्रयोग करके ही बाजीराव प्रथम ने कृष्णा नदी से अटक तक मराठा साम्राज्य के विस्तार का प्रयास किया। 

मराठा साम्राज्य के पतन के कारण:

  • कुशल नेतृत्व का अभाव: माधवराव जैसे कुशल पेशवा की असमय मृत्यु से मराठों की नेतृत्व क्षमता प्रभावित हुई। इससे मराठों के आत्मविश्वास में कमी आई। 
  • मराठा सरदारों में आपसी एकता का अभाव होने से सत्ता के लिये मराठा सरदारों में आपसी संघर्ष शुरू हो गए, जिसका लाभ उठा कर अंग्रेजों ने  मराठा साम्राज्य पर अपना प्रभाव बढाया। 
  • चौथ कर वसूली को जबरदस्ती थोपे जाने के कारण पैदा हुए शत्रुओं ने संकट के मराठों का साथ नहीं दिया जो आगे चल कर मराठा साम्राज्य के पतन का कारण बना।
  • इन समस्याओं के कारण मराठों का मज़बूत सैन्य संगठन भी प्रभावित हुआ और युद्ध की स्थिति में उन्हें हार का सामना करना पड़ा।  

इन कारणों के अलावा अंग्रेजों की कूटनीति तथा सैन्य कुशलता भी मराठा साम्राज्य की कमजोरियों पर भारी पड़ी और उन्होंने ‘पुणे की संधि’ के द्वारा पेशवा के पद को समाप्त कर मराठों कीचुनौती को समाप्त कर दिया।

HomeGENERAL HISTORYमराठा साम्राज्य के पतन के कारण|Reasons for the downfall of Maratha Empire

मराठा साम्राज्य के पतन के कई कारण थे। मुगल साम्राज्य के पतन के बाद मराठा भारत के भाग्य निर्माता के रूप में समझे जाने लगे थे। किन्तु वह शीघ्र ही पतन के मार्ग पर चल पड़े।

मराठों के पतन के क्या कारण है? - maraathon ke patan ke kya kaaran hai?

अंग्रेजों के विरुद्ध मिली एक के बाद एक पराजयों ने मराठों का पतन कर दिया। इनके पतन के कारण निम्नलिखित हैं।

1-संगठन का अभाव

मराठा राज्य एक राज्य न होकर संघ-राज्य था। पेशवा माधवराव प्रथम के बाद यह संघ राज्य बिखर गया। सिंधिया, होल्कर और गायकवाड़ जैसे मराठा सरदार स्वतन्त्र शासक की भाँति व्यवहार करने लगे और आपस में ही झगड़ने लगे। सिंधिया और होल्कर की प्रतिद्वन्दिता अन्त तक बनी रही।

गायकवाड़ अंग्रेजों का मित्र बन गया और अन्त तक अंग्रेजों एवं मराठों के युद्ध में तटस्थ रहा। भोंसले ने भी कभी मिलकर कार्य नहीं किया। इससे मराठा शक्ति कमजोर हो गयी। और पतन की ओर अग्रसर होती चली गयी।

2-अर्थ का अभाव

मराठा साम्राज्य बलपूर्वक एकत्रित की गई धनराधि पर निर्भर था। मराठों के अपने आय के साधन सीमित थे। उत्तरकालीन युद्धों में मिली पराजय के कारण देश की अर्थ व्यवस्था बिगड़ गई। ऊपर से 1804 ई. में दक्कन में भीषण अकाल पड़ा। जिसका मराठा साम्राज्य की आर्थिक स्थिति पर विपरीत प्रभाव पड़ा।

3-कूटनीतिक असफलता

अंग्रेज कूटनीति में मराठों से अधिक योग्य थे। मराठों की कूटनीतिक असफलता इस बात से स्पष्ट होती है। कि वे भारत के मुसलमान शासकों को तो क्या राजपूत और जाट शासकों को भी अपने साथ नहीं मिला सके। बल्कि उन्हें असन्तुष्ट ही कर दिया। अतः मराठा अंग्रेजों से अकेले लड़े और पराजित हुए।

4-सैनिक अकुशलता

मराठों के पास प्रशिक्षित सैनिक, आधुनिक हथियार और बारूद का अभाव था। अंग्रेजों की तुलना में मराठों का सैनिक संगठन निश्चय ही दुर्बल था। जो उनके पतन का कारण बना।

5-जागीरदारी व्यवस्था

मराठों में जागीरदारी व्यवस्था का आरम्भ तब हुआ, जब प्रत्येक मराठा सरदार को अपने द्वारा जीती हुई भूमि का स्वामी स्वीकार कर लिया गया। पेशवा बाजीराव प्रथम ने इस व्यवस्था को बन्द करने का प्रयास किया। किन्तु वह सफल न हो सका। प्रत्येक मराठा सरदार अपनी-अपनी जागीरों का एकछत्र स्वामी हो गया जिसके कारण मराठा-संघ राज्य की स्थापना हुई और मराठा राज्य की एकता नष्ट हो गई। अतः जागीरदारी प्रथा के फलस्वरूप मराठों में आर्थिक व सैनिक दुर्बलता आ गई।

इस प्रकार अंग्रेजों सुगठित व कुशल सैनिक व्यवस्था, श्रेष्ठ नेतृत्व, विवेकपूर्ण कूटनीतिक युक्तियां तथा पर्याप्त युद्ध सामग्री के समक्ष मराठा शक्ति बिखर गई। मराठों की व्यक्तिगत स्वार्थपरता ने मराठों के विवेक और साहस को मिटा दिया था।

Q-किस व्यवस्था ने "संगठित मराठा साम्राज्य" को असंगठित समूह में बदल दिया?

@-जागीरदारी या सरंजामी व्यवस्था ने

Q-मोड़ी लिपि का प्रयोग किसके लेखों में किया गया?

@-मराठों के

Q-मराठा साम्राज्य में "पतदाम" क्या था?

@-विधवा पुनर्विवाह कर

मराठों के पतन का मुख्य कारण क्या था?

मराठों के पतन के प्रमुख कारण.
एकता का अभाव.
दृढ़ संगठन का अभाव.
योग्य नेतृत्व का अभाव.
दूरदर्शिता और कूटनीतिक अयोग्यता.
आदर्शो का त्याग.
दोषपूर्ण सैन्य संगठन.
कुप्रशासन और दूशित अर्थव्यव्स्था.
भारतीय राज्यो से शत्रुता.

मराठा साम्राज्य का अंत कैसे हुआ?

मराठा संघ एवं मराठा साम्राज्य एक भारतीय शक्ति थी जिन्होंने 18 वी शताब्दी में भारतीय उपमहाद्वीप पर अपना प्रभुत्व जमाया हुआ था। इस साम्राज्य की शुरुआत सामान्यतः 1674 में छत्रपति शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक के साथ हुई और इसका अंत 1818 में पेशवा बाजीराव द्वितीय की हार के साथ हुआ

मराठों का पतन कब हुआ?

में बाजीराव द्वितीय ने अंग्रेज़ों के आगे आत्म समर्पण कर दिया। अंग्रेज़ों ने उसे बन्दी बनाकर बिठूर भेज दिया था, जहाँ 1853 ई. में उसकी मृत्यु हो गई। मराठों के पतन में मुख्य भूमिका बाजीराव द्वितीय की ही रही थी, जिसने अपनी क़ायरता और धोखेबाज़ी से सम्पूर्ण मराठों और अपने कुल को कलंकित किया था।