विषयसूची इसे सुनेंरोकेंइस पत्र में धर्म की स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, विधानसभा की स्वतंत्रता और शक्तियों के विभाजन के रूप में अधिकार, की सूचि की व्याख्या करते हैं। सभी पुरुषों को ये अधिकार है। यह सभी लोगो के लिए भी कुछ अधिकारों के बारे में व्याख्या करता है। संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा कब कब और कहां की गई?इसे सुनेंरोकेंराज्यों ने उन्हें अपनी विधि में प्रवर्तनीय अधिकार का दर्जा दिया। 10 दिसम्बर 1948 को संयुक्त राष्ट्र संघ की समान्य सभा ने मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा को स्वीकृत और घोषित किया। इसका पूर्ण पाठ आगे के पृष्ठों में दिया गया है। अनुवाद का जो पाठ यहाँ दिया गया है, वह भारत सरकार द्वारा स्वीकृत है। अधिकारों की घोषणा पत्र की मांग कब की गई? इसे सुनेंरोकेंयह घोषणापत्र विश्व इतिहास के सबसे महत्वपूर्ण दस्तावेज़ों में से एक है। इसे फ्रांस की क्रान्तिकारी राष्ट्रीय संविधान सभा ने 26 अगस्त 1789 में पारित किया था और वहाँ के राजा लूई (सत्रह) को इसे मजबूरन स्वीकार करना पड़ा। अधिकारों का क्या महत्व है?इसे सुनेंरोकेंकिसी वस्तु को प्राप्त करने या किसी कार्य को संपादित करने के लिए उपलब्ध कराया गया किसी व्यक्ति की कानूनसम्मत संविदासम्मत सुविधा, दावा विशेषाधिकार है। कानून द्वारा प्रदत्त सुविधाएँ अधिकारों की रक्षा करती हैं। दोनों का अस्तित्व एक-दूसरे के बिना संभव नहीं। मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा कब की गई?इसे सुनेंरोकेंमानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा इस घोषणा के परिणामस्वरूप संयुक्त राष्ट्र संघ ने 10 दिसम्बर 1948 को मानव अधिकार की सार्वभौम घोषणा अंगीकार की। संयुक्त राष्ट्र संघ में कितने देश शामिल हैं? संयुक्त राष्ट्र
भारतीय नागरिकों के मूल कर्तव्य क्या है?इसे सुनेंरोकें1. संविधान का पालन करे और उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्रध्वज और राष्ट्रगान का आदर करे. भारत के सभी लोगों में समरसता और समान भ्रात्रतत्व की भावना का निर्माण करे जो धर्म, भाषा और प्रदेश या वर्ग पर आधारित सभी भेदभावों से परे हो, ऐसी प्रथाओं का त्याग करे जो महिलाओं के सम्मान के विरुद्ध हों. … मानव अधिकार क्या है इसे स्पष्ट कीजिए?इसे सुनेंरोकेंकिसी भी व्यक्ति के जीवन, स्वतंत्रता, समानता और सम्मान का अधिकार ही मानव अधिकार है। मानव अधिकारों में आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक अधिकारों के समक्ष समानता का अधिकार एवं शिक्षा का अधिकार आदि नागरिक और राजनैतिक अधिकार भी सम्मिलित हैं। मानव अधिकार से आप क्या समझते हैं निबंध लिखिए? इसे सुनेंरोकेंमानवाधिकारों को सार्वभौमिक अधिकार कहा जाता है जिसका प्रत्येक व्यक्ति अपना लिंग, जाति, पंथ, धर्म, संस्कृति, सामाजिक/आर्थिक स्थिति या स्थान की परवाह किए बिना हकदार है। ये वो मानदंड हैं जो मानव व्यवहार के कुछ मानकों का वर्णन करते हैं और कानून द्वारा संरक्षित हैं। पृथ्वी पर रहने वाले हर इंसान को जीवित रहने का अधिकार है। भारत में मानवाधिकार का संरक्षण एवं विकास
इस लेख के ज़रिये आप मानवाधिकार, उनके प्रकारों व संरक्षण के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकेंगे। मनुष्य योनि में जन्म लेने वाले प्रत्येक प्राणी की एक गरिमा होती है, इस कारण वह अपने आप में बहुमूल्य है, और मनुष्य होने के नाते उसे गरिमामय जीवन जीने का पूरा अधिकार है, इसलिए पैदा होते ही प्रकृति उसे वे सब अधिकार प्रदान करती है जो एक मानव जाति के अस्तित्व के लिये ज़रूरी हैं। कोई भी व्यक्ति या राज्य किसी अन्य व्यक्ति से उन अधिकारों को छीन नहीं सकता है। ऐसे में मानव अधिकारों की रक्षा के लिये कानून द्वारा राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का गठन किया गया है। चलिये अब विस्तार से जानते हैं कि आखिर मानव अधिकार क्या हैं और इनके संरक्षण के लिये बनाया गया मानवाधिकार आयोग कितना सफल रहा है? मानवाधिकार क्या हैं?मानवाधिकार वे अधिकार हैं जो किसी भी व्यक्ति को जन्म के साथ ही मिल जाते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो किसी भी व्यक्ति के जीवन, स्वतंत्रता, समानता और प्रतिष्ठा का अधिकार ही मानव अधिकार है। इन अधिकारों की मांग प्रत्येक मनुष्य कर सकता है, चाहे इनके बारे में उस देश (जहाँ का वह निवासी है) के संविधान में प्रावधान किया गया हो या नहीं। इनकी उत्पत्ति का स्त्रोत मानवीय विवेक न होकर मानव का मानवोचित्त गुण है। इनके अंतर्गत राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक जैसे अन्य अधिकार भी शामिल हैं। इन्हीं अधिकारों के संबंध में संयुक्त राष्ट्र ने साल 1948 में एक घोषणा-पत्र जारी किया था। इस घोषणा-पत्र में कहा गया था कि मानव के बुनियादी अधिकार किसी भी नस्ल, जाति, धर्म, लिंग, समुदाय और भाषा आदि से भिन्न होते हैं। मानव अधिकारों की उत्पत्ति‘मानवाधिकार’ शब्द का प्रयोग 20वीं शताब्दी में किया गया था। इसके पहले अधिकारों के संदर्भ में ‘प्राकृतिक अधिकार’ अथवा ‘व्यक्ति के अधिकार’ शब्द प्रचलन में थे। प्राकृतिक अधिकारों के सिद्धांत की उत्पत्ति 17वीं शताब्दी में प्रसिद्ध दार्शनिकों ग्रोशियस, हॉब्स और लॉक की रचनाओं में हुई थी। उन्होंने बताया था कि प्राकृतिक अधिकारों का मुख्य आधार ‘प्राकृतिक कानून’ हैं। यह कानून प्रत्येक व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति के जीवन, स्वतंत्रता तथा संपत्ति का सम्मान करने की बात कहते हैं। जॉन लॉक ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक “दी टू ट्रीटसेज़ ऑन गवर्नमेंट” में इन प्राकृतिक सिद्धांतों का उल्लेख किया है। इसके अलावा, 1776 में अमेरिका द्वारा स्वतंत्रता के संबंध में जारी किये गए घोषणापत्र में भी कहा गया था कि ‘सभी व्यक्ति समान पैदा हुए हैं तथा सृष्टिकर्ता ने उन्हें जीवन, स्वतंत्रता तथा सुख की प्राप्ति जैसे कुछ अदेय अधिकार प्रदान किये हैं।’ तत्पश्चात 1789 में फ्रांस द्वारा घोषित मानव और नागरिक अधिकारों के घोषणापत्र में एक बार फिर व्यक्ति के अधिकारों की प्राकृतिक व अदेयता की बात कही गई थी। इन देशों ने अपने नागरिकों को ये अधिकार एक व्यक्ति होने के नाते दिया था न कि एक राज्य होने के नाते। 17वीं और 18वीं शताब्दी में प्राकृतिक अधिकारों से संबंधित जो घोषणाएँ की गई थीं; 20वीं शताब्दी में संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार घोषणापत्र और इनसे संबंधित कई अन्य समझौतों के माध्यम से उन्हीं का और विस्तार किया गया। आसान भाषा में कहें तो मानवाधिकार पुराने प्राकृतिक अधिकारों के ही उत्तराधिकारी हैं। मानव अधिकारों के प्रकारवैसे तो मानव अधिकारों की कोई एक निश्चित संख्या नहीं है। विविध प्रकार के समाजों में जैसे-जैसे नए खतरे और चुनौतियाँ सामने आ रहीं हैं, वैसे-वैसे मानवाधिकारों की सूची लगातार बढ़ती जा रही है। यहाँ पर हम संयुक्त राष्ट्र के सार्वभौमिक घोषणापत्र में उल्लिखित मानवाधिकारों के बारे में जानेंगे। इस घोषणापत्र में कुल 30 अनुच्छेद हैं, जिनमें उल्लिखित मानवाधिकारों को सामान्य तौर पर नागरिक-राजनीतिक और आर्थिक-सामाजिक-सांस्कृतिक श्रेणियों में बाँटा गया है। इसके अनुच्छेद-3 में व्यक्ति की स्वतंत्रता एवं सुरक्षा के अधिकारों की बात कही गई है जो अन्य सभी अधिकारों के उपभोग के लिये ज़रूरी हैं। नागरिक एवं राजनीतिक अधिकार- सार्वभौमिक घोषणापत्र में अनुच्छेद 4 से लेकर अनुच्छेद 21 तक नागरिक व राजनीतिक अधिकारों के बारे में विस्तार से बताया गया है। इनके अन्तर्गत आने वाले प्रमुख अधिकार इस प्रकार हैं-
आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक अधिकार- नागरिक एवं राजनीतिक अधिकारों के अतिरिक्त, घोषणापत्र के अगले छह अनुच्छेदों में आर्थिक,सामाजिक तथा सांस्कृतिक अधिकारों के बारे में बताया गया है। इनके अंतर्गत आने वाले प्रमुख अधिकार निम्नलिखित हैं-
मानवाधिकारों की विश्वव्यापी घोषणाद्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान मानवाधिकारों का जमकर उल्लंघन किया गया था। इस कारण से भविष्य में मानवाधिकारों के संरक्षण हेतु ठोस व्यवस्था किये जाने की ज़रूरत महसूस हुई और 10 दिसंबर 1948 को संयुक्त राष्ट्र की सामान्य सभा ने मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा को स्वीकार कर लिया। सामान्य सभा ने सभी सदस्य देशों से इस घोषणा-पत्र को प्रसारित करने का आह्वान किया था। मानवाधिकारों की रक्षा से संबंधित संयुक्त राष्ट्र के चार्टर में 48 देशों ने हस्ताक्षर किये थे जिनमें भारत भी शामिल था। लेकिन भारत में मानवाधिकारों से जुड़ी एक स्वतंत्र संस्था बनाने में 45 वर्ष लग गए। 12 अक्टूबर 1993 में मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम 1993 के तहत राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) का गठन किया गया। इसके अलावा, राज्यों में भी मानवाधिकार आयोगों के गठन का प्रावधान किया गया। चलिये जानते हैं NHRC के बारे में- राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (National Human Rights Commission)
NHRC की सीमाएँ
भारत में मानवाधिकार उल्लंघन से संबंधित आँकड़ेंNHRC द्वारा जारी आँकड़ों के मुताबिक, देश में आयोग ने बीते पाँच सालों यानी 2017 में 82,006, साल 2018 में 85,950, साल 2019 में 76,585 और साल 2020 में 75,064, साल 2021 में 106022 शिकायतें दर्ज की हैं। वहीं, वित्तीय वर्ष 2022-23 में मई माह तक 16,504 शिकायतें दर्ज की जा चुकी हैं और 17043 मामलों (नये और पुराने) का निपटारा किया जा चुका है। इतना ही नहीं, आयोग के समक्ष हज़ारों मामले विचाराधीन हैं। मानवाधिकारों का उल्लंघन करने वाले शीर्ष देशसाल 2021 के एक सर्वे के मुताबिक, दुनिया में मानवाधिकारों का उल्लंघन करने के मामलों में इजिप्ट, सीरिया, यमन, चीन, ईरान, उत्तर कोरिया, मध्य अफ्रीकी गणराज्य, बुरुंडी, काँगो गणराज्य, बर्मा, लीबिया,वेनेजु़एला, इरीट्रिया, रूस और नाइजीरिया शीर्ष पर हैं। आगे की राह
इन सबके साथ हमें यह भी नहीं भूलना चाहिये कि, अगर कोई कार्य हमारे स्वास्थ्य एवं कल्याण के साथ दूसरों के लिये भी नुकसानदेह है तो उसे अधिकार नहीं माना जा सकता है। केवल मानवाधिकार आयोग द्वारा शिकायतों का निवारण करने से ही मानव अधिकारों का संरक्षण नहीं हो पायेगा; लोगों को भी अपने अधिकारों के प्रति जागरूक रहना होगा। साथ ही, यह भी ध्यान रखना बहुत ज़रूरी है कि आपको अपने अधिकारों के प्रति जागरूक रहते हुए दूसरों के अधिकारों का सम्मान भी करना है। अर्थात जो आज़ादी, समानता, प्रतिष्ठा, शांति आप अपने लिये चाहते हैं, वह दूसरों को भी दें। तब जाकर हम सब अपने मानवाधिकारों का विकास और संरक्षण कर पाएँगे। "शालिनी ने 2018-19 में आईआईएमसी, नई दिल्ली से हिंदी पत्रकारिता में पीजी डिप्लोमा किया है। साहित्य और लेखन इनकी हमेशा से रुचि रही है इसीलिए यह लेखन के क्षेत्र में ही अपने करियर को एक नई उड़ान देना चाहती हैं।" --> |