मौलिक अधिकार को लागू करने की शक्ति किसके पास है?This question was previously asked in Show
DSSSB TGT Social Studies Female Subject Concerned -15 Oct 2018 Shift 2 View all DSSSB TGT Papers >
Answer (Detailed Solution Below)Option 1 : उच्चतम और उच्च न्यायालय Free 10 Questions 10 Marks 6 Mins मौलिक अधिकार संविधान के भाग III (अनुच्छेद 12-35) में निहित हैं। संविधान के भाग III को भारत के मैग्ना कार्टा के रूप में वर्णित किया गया है। संवैधानिक उपचार का अधिकार (अनुच्छेद 32):
इस प्रकार, हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि सर्वोच्च और उच्च न्यायालय के पास मौलिक अधिकार को लागू करने की शक्ति है। Last updated on Oct 19, 2022 The Application Links for the DSSSB TGT will remain open from 19th October 2022 to 18th November 2022. Candidates should apply between these dates. The Delhi Subordinate Services Selection Board (DSSSB) released DSSSB TGT notification for Computer Science subject for which a total number of 106 vacancies have been released. The candidates can apply from 19th October 2022 to 18th November 2022. Before applying for the recruitment, go through the details of DSSSB TGT Eligibility Criteria and make sure that you are meeting the eligibility. Earlier, the board has released 354 vacancies for the Special Education Teacher post. The selection of the DSSSB TGT is based on the Written Test which will be held for 200 marks.
मौलिक अधिकार भारत के संविधान के भाग 3 (अनुच्छेद 12 से 35) वर्णित भारतीय नागरिकों को प्रदान किए गए वे अधिकार हैं जो सामान्य स्थिति में सरकार द्वारा सीमित नहीं किए जा सकते हैं और जिनकी सुरक्षा का प्रहरी सर्वोच्च न्यायालय है। उद्भव एवं विकास[संपादित करें]भारतीय संविधान मे जितने विस्तृत और व्यापक रूप से इन अधिकारों का उल्लेख किया गया है उतना संसार के किसी भी लिखित संघात्मक संविधान में नहीं किया गया है। मूल अधिकारों से सम्बन्धित उपबन्धों का समावेश आधुनिक लोकतान्त्रिक विचारों की प्रवृत्ति के अनुकूल ही है। सभी आधुनिक संविधानों में मूल अधिकारों का उल्लेख है। इसलिए संविधान के अध्याय 3 को भारत का अधिकार - पत्र (Magna carta) कहा जाता है। इस अधिकार-पत्र द्वारा ही अंग्रेजों ने सन् 1215 में इंग्लैण्ड के सम्राट जॉन से नागरिकों के मूल अधिकारों की सुरक्षा प्राप्त की थी। यह अधिकार-पत्र मूल अधिकारों से सम्बन्धित प्रथम लिखित दस्तावेज है। इस दस्तावेज को मूल अधिकारों का जन्मदाता कहा जाता है। इसके पश्चात् समय-समय पर सम्राट् ने अनेक अधिकारों को स्वीकृति प्रदान की। अन्त में 1689 में बिल ऑफ राइट्स (Bill of Rights) नामक दस्तावेज लिखा गया जिसमें जनता को दिये गये सभी महत्वपूर्ण अधिकारों एवं स्वतन्त्रताओं को समाविष्ट किया गया। फ्रांस में सन् 1789 में जनता के मूल अधिकारों की एक पृथक् प्रलेख में घोषणा की गयी, जिसे मानव एवं नागरिकों के अधिकार घोषणा-पत्र के नाम से जाना जाता है। इसमें उन अधिकारों को प्राकृतिक अप्रतिदेय (inalienable) और मनुष्य के पवित्र अधिकारों के रूप में उल्लिखित किया गया है; यह दस्तावेज एक लम्बे और कठिन संघर्ष का परिणाम था।[1] भारतीय संविधान की जब रचना की जा रही थी तो इन अधिकारों के बारे में एक ऐतिहासिक पृष्ठभूमि तैयार थी। इन सबसे प्रेरणा लेकर संविधान निर्माताओं ने मूल अधिकारों को संविधान में समाविष्ट किया। भारतीय संविधान में मूल अधिकारों की कोई परिभाषा नहीं की गई है। संविधानों की परम्परा प्रारम्भ होने के पूर्व इन अधिकारों को प्राकृतिक और अप्रतिदेय अधिकार कहा जाता था, जिसके माध्यम से शासकों के ऊपर अंकुश रखने का प्रयास किया गया था। मौलिक अधिकार[संपादित करें]मूल संविधान में सात मौलिक अधिकार थे परन्तु वर्तमान में छः ही मौलिक अधिकार हैं| संविधान के भाग ३ में सन्निहित अनुच्छेद १२ से ३५ मौलिक अधिकारों के संबंध में है जिसे सऺयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान से लिया गया है ।[2] मौलिक अधिकार[3] सरकार को व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अतिक्रमण करने से रोकने के साथ नागरिकों के अधिकारों की समाज द्वारा अतिक्रमण से रक्षा करने का दायित्व भी राज्य पर डालते हैं। संविधान द्वारा मूल रूप से सात मूल अधिकार प्रदान किए गए थे- समानता का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार, शोषण के विरुद्ध अधिकार, धर्म, संस्कृति एवं शिक्षा की स्वतंत्रता का अधिकार, संपत्ति का अधिकार तथा संवैधानिक उपचारों का अधिकार। हालांकि, संपत्ति के अधिकार को 1978 में 44वें संशोधन द्वारा संविधान के तृतीय भाग से हटा दिया गया था [4] मौलिक अधिकार नागरिक और रहेवासी को राज्य की मनमानी या शोषित नीतियो और कार्यवाही के सामने रक्षण प्रदान करने के लिए दिये गए। संविधान के अनुच्छेद १२ मे राज्य की परिभाषा दी हुई है की “राज्य” के अंतर्गत भारत की सरकार और संसद तथा राज्यों में से प्रत्येक राज्य की सरकार और विधान- मंडल तथा भारत के राज्यक्षेत्र के भीतर या भारत सरकार के नियंत्रण के अधीन सभी स्थानीय और अन्य प्राधिकारी हैं।[5] समता का अधिकार (समानता का अधिकार)[संपादित करें]अनुच्छेद 14 से 18 के अंतर्गत निम्न अधिकार कानून के समक्ष समानता संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान से उद्धृत है।
स्वतंत्रता का अधिकार[संपादित करें]अनुच्छेद (19-22) के अंतर्गत भारतीय नागरिकों को निम्न अधिकार प्राप्त हैं-
इनमें से कुछ अधिकार राज्य की सुरक्षा, विदेशी राष्ट्रों के साथ भिन्नतापूर्ण संबंध, सार्वजनिक व्यवस्था, शालीनता और नैतिकता के अधीन दिए जाते हैं। शोषण के विरुद्ध अधिकार[संपादित करें]अनुच्छेद (23-24) के अंतर्गत निम्न अधिकार वर्णित हैं-
धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार[संपादित करें]अनुच्छेद(25-28) के अंतर्गत धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार वर्णित हैं, जिसके अनुसार नागरिकों को प्राप्त है-
संस्कृति और शिक्षा सम्बन्धी अधिकार[संपादित करें]अनुच्छेद(29-30) के अंतर्गत प्राप्त अधिकार-
कुछ विधियों की व्यावृत्ति[संपादित करें]अनुच्छेद(32) के अनुसार कुछ विधियों के व्यावृत्ति का प्रावधान किया गया है-
संवैधानिक उपचारों का अधिकार[संपादित करें]डॉ॰ भीमराव अंबेडकर ने संवैधानिक उपचारों के अधिकार (अनुच्छेद 32-35) को 'संविधान का हृदय और आत्मा' की संज्ञा दी थी।[8] सांवैधानिक उपचार के अधिकार के अन्दर ५ प्रकार के प्रावधान हैं-
सन्दर्भ[संपादित करें]
बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]
मौलिक अधिकार को लागू कौन करता है?इस प्रकार, हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि सर्वोच्च और उच्च न्यायालय के पास मौलिक अधिकार को लागू करने की शक्ति है।
मौलिक अधिकारों का दावा कौन कर सकता है?Supreme Court News: सुप्रीम कोर्ट ने मौलिक अधिकारों के संदर्भ में बड़ा फैसला दिया है। देश की सबसे बड़ी अदालत ने कहा है कि मौलिक अधिकार के नाम पर कोई भी सुरक्षा कवच उन्हीं नागरिकों को मिल सकता है, जो नियमों का पालन करते हों। जो कानूनी प्रक्रिया का सम्मान करते हों। कोर्ट ने एक केस की सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की।
मौलिक अधिकारों के अभिरक्षक कौन होते हैं?Detailed Solution. सही उत्तर भारत का सर्वोच्च न्यायालय है। सर्वोच्च न्यायालय भारत के संविधान का अभिरक्षक है। यह मौलिक अधिकारों का संरक्षक है (अनुच्छेद 32)।
यदि कोई व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है तो वह क्या कर सकता है?विधायिका या कार्यपालिका के किसी कार्य या निर्णय से यदि मौलिक अधिकारों का हनन होता है या उन पर अनुचित प्रतिबंध लगाया जाता है तो न्यायपालिका उसे अवैध घोषित कर सकती है।
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