महात्मा गांधी को गोली क्यों मारा गया? - mahaatma gaandhee ko golee kyon maara gaya?

महात्मा गांधी को गोली क्यों मारा गया? - mahaatma gaandhee ko golee kyon maara gaya?

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महात्मा गांधी को गोली क्यों मारा गया? - mahaatma gaandhee ko golee kyon maara gaya?

नाथूराम ने गांधी को क्यों मारी गोली, जानिए पूरा इतिहास

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30 जनवरी 1948 ये दिन इतिहास का सबसे बड़ा दुखद दिनों में शुमार हो गया है। दरअसल, 30 जनवरी की शाम को नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi 73rd Death Anniversary) को जान से मार दिया। माहात्मा गांधी रोज की तरह बिड़ला भवन में प्रार्थना करने के लिए जा रहे थे। तभी अचानक गांधीजी को बेहद करीब से गोली मारी और उन्होंने "हे राम" कहकर दुनिया विदा कह दिया। मोहन दास करमचंद गांधी (Mahatma Gandhi 73rd Death Anniversary) का नाम आज भी दुनियाभर में सम्मान से लिया जाता है।

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आखिर क्यो मारी गोली-

नाथूराम गोडसे (Nathuram Godse) ने 30 जनवरी 1948 को नई दिल्ली में महात्मा गांधी को गोली मारी थी।


नई दिल्ली: Mahatma Gandhi death anniversary 2022: भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में कई पन्ने हैं जिन्हें खोलते हुए आज भी देशवासियों की पलकें भींग जाती हैं. ऐसा ही एक इतिहास है राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या का. 30 जनवरी 1948 को प्रातः दिल्ली के बिड़ला हाउस स्थित प्रार्थना स्थल पर ही नाथूराम गोडसे ने लगातार तीन गोलियां दाग कर उस इंसान की जिंदगी छीन ली थी. आइए जानते हैं कौन था वो, आखिर क्या ऐसा कारण रहा कि उसने तात्कालिक समय के विश्व भर में सबसे लोकप्रिय नेता की हत्या की.

गोडसे का जन्म ब्रिटिश भारत के बॉम्बे प्रेसिडेंसी के पुणे जिले के अंतर्गत बारामती में हुआ था. 19 मई 1910 बारामती के विनायक वामनराव गोडसे और लक्ष्मी देवी के घर में जन्मे इस बालक का नाम रखा गया रामचन्द्र. यही बच्चा आगे चलकर इतिहास में नाथूराम गोडसे के नाम से जाना गया.

औपचारिक शिक्षा  
गोडसे की शिक्षा आठवीं कक्षा तक ही हो पाई. उसके बाद उन्होंने राजनीतिक गतिविधियों में रुचि लेना शुरू कर दिया था. 

राजनीतिक कैरियर
गांधी जी की हत्या करने वाले गोडसे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सदस्य थे साथ ही वो हिन्दू महासभा से जुड़ गए.

क्यूँ मारा गांधी को
नाथूराम गोडसे उग्र हिंदूवादी विचारधारा से प्रभावित था. गोडसे को लगता था कि गांधी जी मुस्लिमों को हिंदुओं की अपेक्षा ज्यादा तवज्जो देते हैं. इसके साथ ही वह भारत- पाकिस्तान के बंटवारे को लेकर भी गांधी जी को दोषी मानता था.

क्या हुआ था उस दिन
30 जनवरी 2948 को गांधी जी प्रातः प्रार्थना के लिए बिड़ला हाउस पहुंचे. उस दिन पटेल से हुई बातचीत के कारण गांधी जी खुद 15 मिनट लेट हो गए थे.
वो अभी प्रार्थना स्थल के अपने आसन पर बैठ ही रहे थे कि तभी भीड़ से निकलकर नाथूराम गोडसे ने पहले गांधी जी को प्रणाम किया और फिर लगातार तीन गोलियां दागकर उन्हें मौत के घाट उतार दिया.

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Jaipur: नाथूराम गोडसे (Nathuram Godse) का जन्म 19 मई 1910 को मुंबई-पूना रेलमार्ग पर स्थित रेलवे स्टेशन कामशेट से 10 मील दूर एक छोटे से गांव उक्सान में हुआ था. उनका जन्म चित्पावन ब्राह्मण परिवार में हुआ था. पिता विनायक गोडसे डाक विभाग में कर्मचारी थे.अशोक कुमार पांडेय (Ashok Kumar Pandey) अपनी किताब “उसने गांधी को क्यों मारा” में कहते है कि विनायक गोडसे के परिवार में बेटियां तो बच जाती थी. लेकिन बेटों का जन्म के कुछ वक्त बाद ही निधन हो जाता था. नाथूराम गोडसे से पहले भी तीन बेटों का जन्म हुआ था. लेकिन कुछ समय बाद मौत हो गई. ऐसे में परिवार ने चौथे बेटे को बेटी की तरह ही पाला. और नाक में नथ भी पहनाई. इसी नथ की वजह से उसका नाम नाथूराम पड़ गया.

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युवा होते नाथूराम में शारीरिक कसरत करने में रूचि बढ़ने लगी. तैराकी में भी उसकी विशेष रूचि थी. एक दिन उसने कुंए में गिरते एक अछूत बालक को भी बचाया था. जिससे उसे डांट भी पड़ी थी. नाथूराम गोडसे की पढ़ाई में खास रुचि नहीं थी, धार्मिक किताबें पढ़ना पसंद था. अंग्रेजी खास पसंद नहीं थी, तो नौकरी की तैयारी की बजाय कारोबार में हाथ आजमाने की कोशिश की. लिहाजा वो पुणे छोड़कर अपने पिता के पास कर्जट चला गया. यहां उसने करीब दो साल तक बढ़ई का काम सीखा. लेकिन तब तक पिता का तबादला हो गया. तो वहां से उन लोगों को रतनगिरी (Ratangiri) जाना पड़ा. ये वही वक्त था. जब वीर सावरकर ( Vinayak Damodar Savarkar) को अंडमान निकोबार (Andaman and Nicobar) से काला पानी की सजा से मुक्ति मिली थी. और उन्हैं रतनगिरी में अंग्रेजों ने नजरबंद कर रखा था.

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सावरकर पर किसी भी तरह की राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेने पर रोक लगी हुई थी. यहां नाथूराम गोडसे ने भी सावरकर से मुलाकात की. ध्यान रहे, इस दौरान महात्मा गांधी ने भी सावरकर से मिलने की कोशिश की थी. लेकिन अंग्रेज सरकार ने उन्हैं मिलने नहीं दिया था. सावरकर उस वक्त अपने हिंदू विचारों की वजह से पूरे महाराष्ट्र में प्रसिद्ध थे. सावरकर से मुलाकात के बाद गोडसे भी उनसे प्रभावित हुए. दो साल बाद पिता रिटायर हो गए. तो गोडसे रतनगिरी से सांगली चला गया. यहां उसने सिलाई का काम सीखा और कपड़ों की दुकान खोली. परिवार शादी ब्याह का दबाव डाल रहा था लेकिन गोडसे की उसमें कोई रुचि नहीं थी. इसी बीच हिंदु संगठनों की शाखा सांगली में भी खुली. नाथूराम गोडसे भी इस शाखा से जुड़ा. साल 1938 में हिंदु महासभा ने हैदराबाद में विरोध जुलुस निकाला. तो उसमें गिरफ्तार होने वालों में गोडसे भी एक था. गोडसे को करीब एक साल जेल में रहने के बाद रिहा किया. तब तक दूसरा विश्व युद्ध (Second World War) शुरु हो चुका था.
जिन्ना (Jinnah) की पाकिस्तान की मांग भी तेज हो रही थी. साल 1944 में ‘अग्रणी’ नाम का मराठी अखबार (Marathi newspaper Agrini) निकालना शुरु किया. अपने उग्र स्वरों के बावजूद इस अखबार को कोई खास कामयाबी नहीं मिली. और 1946 में जब बॉम्बे प्रांत में कांग्रेस की सरकार बनी. तो इस अखबार पर प्रतिबंध लगा दिया गया. जब अग्रणी पर प्रतिबंध लगा तो अगले ही दिन से ‘हिंदू राष्ट्र’ (Hindu Rashtra) नाम से नया अखबार निकाला गया. इस वक्त तक विभाजन की आग भड़क चुकी थी. देश में सांप्रदायिक तौर पर ध्रुवीकरण हो रहा था. लिहाजा हिंदू राष्ट्र अखबार को भी काफी कामयाबी मिली. बड़ी संख्या में लोग इस अखबार को वित्तीय सपोर्ट कर रहे थे. इस अखबार का आखिरी बार प्रकाशन 31 जनवरी 1948 यानि गांधीजी की हत्या के अगले दिन तक ही हुआ. इस दिन के बाद नाथूराम गोडसे का सफर भी कोर्ट के कटघरे से लेकर जेल की चारदीवारी होते हुए फांसी के फंदे तक पहुंचा.

गांधी जी को गोली से ने क्यों मारा था?

ऐसा इस वजह से क्योंकि तमाम संगठनों के साथ ही गोडसे मानता था कि भारत के बंटवारे और तब जो साम्प्रदायिक हिंसा हुई उसमें लाखों हिन्‍दुओं के मारे जाने के जिम्मेदार महात्मा गांधी हैं।

फांसी से पहले क्या बोले थे गोडसे?

उनसे गोडसे ने कहा था कि तुम्हारे पिताजी की मृत्यु का मुझे बहुत दुख है। महात्मा गांधी की हत्या करने वाले नाथूराम गोडसे को 15 नवंबर 1949 को एक अन्य षडयंत्रकारी नारायण आप्टे को फांसी दी गई थी। नाथूराम गोडसे का शव सरकार ने परिजन को नहीं दिया था। जेल के अधिकारियों ने घग्घर नदी के किनारे पर उसका अंतिम संस्कार कर दिया था।