मुहम्मद बिन तुगलक ( Muhammad Bin Tughluq ) के बारे में पूरी जानकारी – मुहम्मद बिन तुग़लक़ 1325 ईo में दिल्ली का सुल्तान बना। यह मध्यकालीन सभी सुल्तानों में सर्वाधिक शिक्षित, विद्वान व योग्य था। इसे अरबी, फारसी के साथ खगोलशास्त्र, गणित,दर्शन, चिकित्सा विज्ञान और तर्कशास्त्र का भी अच्छा ज्ञान था। इसने
कृषि के विकास के लिए एक नए विभाग अमीर ए कोही की स्थापना की। राजधानी दिल्ली से देवगिरि स्थानांतरिक की और इसका नाम बदलकर दौलताबाद रखा। इसकी मृत्यु 20 मार्च 1351 को सिंध जाते वक्त थट्टा में हो गयी। इसकी मृत्यु पर बदायूंनी लिखता है “अंततः लोगों को उससे मुक्ति मिली और उसको लोगों से”। इसी के शासनकाल में अफ्रीकी देश मोरक्को से इब्नबतूता भारत आया। इसे तुगलक ने दिल्ली का काजी नियुक्त
कर दिया। इसने अपनी पुस्तक रेहला में मुहम्मद तुगलक के समय की सभी घटनाओं का वर्णन किया है। इसके अनुसार तुगलक साम्राज्य 23 प्रांतों में बंटा हुआ था। कश्मीर व आधुनिक बलूचिस्तान को छोड़कर समस्त हिंदुस्तान उसके शासन में था। 1342 ईo में सुल्तान ने इसे अपना राजदूत बनाकर चीन के शासक तोगन तिमूर के दरबार में भेज दिया। इसी के शासनकाल में दक्षिण भारत में 1336 ईo में हरिहर व बुक्का ने विजयनगर की स्थापना की। महाराष्ट्र में अलाउद्दीन बहमन शाह ने बहमनी राज्य की स्थापना की। मुहम्मद तुगलक की भूलेंसर्वाधिक शिक्षित व योग्य होने के बाद भी सुल्तान में कुछ कमियाँ भी थीं जिसके कारण उसकी बहुत सी योजनाएं असफल रहीं। सांकेतिक मुद्रा का प्रचलनसुल्तान अपनी विजय योजनाओं को पूरा करने के लिए राज्य की आय अधिक से अधिक बढ़ाना चाहता था। मुहम्मद तुगलक ने 1330 ईo में सांकेतिक मुदा का प्रचलन किया और इसकी कीमत चाँदी के टंके के बराबर घोषित कर दी। यह सिक्का किस धातु का था इसमें एकराय नहीं है। जियाउद्दीन बरनी के अनुसार यह ताँबे का, तो फरिश्ता ने कांसे का बताया है। उसके इस कार्य के लिए एडवर्ड थॉमस ने उसे प्रिंस ऑफ़ मनीअर्स कहा है। इस योजना की असफलता का कारण सिक्कों पर कोई राजकीय चिन्ह का न होना था। जिसके कारण कोई भी इस मुद्रा को आसानी से ढाल सकता था। राजधानी परिवर्तनपहले 1327 ईo में दिल्ली से देवगिरि ले गया और देवगिरि का नाम बदलकर दौलताबाद रख दिया। बाद में 1335 ईo में दौलताबाद से पुनः दिल्ली ले आया। देवगिरि सबसे पहले उसकी माँ मखदूम ए जहाँ को भेजा गया। सलाहकारों ने उसे देवगिरि के बजाय उज्जैन को राजधानी बनाने की सलाह दी थी। इसामी के अनुसार सुल्तान दिल्ली वासियों को दण्ड देना चाहता था। क्योंकि वे उसे गाली भरे पत्र लिखा करते थे। वहीं बरनी देवगिरि को राज्य के केंद्र में स्थित होना इस राजधानी परिवर्तन का कारण बताता है। गार्डन ब्राउन इसका कारण मंगोल आक्रमण को बताते हैं। इस योजना की असफलता का कारण यह था कि उसने 1327 ईo में सारी जनता को एक साथ स्थानांतरण का आदेश दे दिया। बरनी बताता है कि दिल्ली में सिर्फ कुत्ता और बिल्ली शेष बचे। वहीं इब्नबतूता के अनुसार एक अंधा और लंगड़ा बचा था। इसामी तो कहता है कि सुलतान ने दिल्ली को जला देने का आदेश दे दिया। दिल्ली से देवगिरि तक का 700 मील का सफर 40 दिन में पूरा किया गया और यह स्थानन्तरण गर्मी के मौसम में किया गया। जब सुल्तान को अपनी गलती का एहसास हुआ तो 1335 ईo में पुनः राजधानी दिल्ली स्थानांतरित कर ली। खुरासान अभियानयह अभियान तरमाशरीन और मिश्र के सुल्तान के साथ बनाये गए त्रिमैत्री संगठन का परिणाम था। यह संगठन इन्होंने खुरासान के सुल्तान अबू सैयद के विरुद्ध बनाया गया था। जियाउद्दीन बरनी के अनुसार 3 लाख 70 हजार सैनिकों की एक विशाल सेना बनाई गयी। इस सेना को एक वर्ष का अग्रिम वेतन दे दिया गया। बाद में मध्य एशिया में राजनीतिक परिवर्तनों के कारण सुल्तान को यह अभियान रद्द करना पड़ा। कराचिल का सैनिक अभियानकराचिल की तुलना हिमाचल में कांगड़ा के पर्वतीय प्रदेश से की जाती है। यह सल्तनत और चीन के बीच का क्षेत्र था। प्रारंभिक विजय के पश्चात तिब्बत की हड्डी गला देने वाली सर्दी और तूफ़ान में सारे सैनिक मारे गए। जो बच गए वो प्लेग के कारण मर गए। इब्नबतूता सिर्फ तीन सैनिकों के और बरनी 10 सैनिकों के बचने की बात करते हैं। दोआब क्षेत्र में कर वृद्धिइस क्षेत्र में कर की दर पहले 1/10 से 1/20 थी। इसे बढाकर 1/2 कर दिया गया। परंतु दुर्भाग्यवश उसी वर्ष अकाल और बाद में प्लेग की महामारी फ़ैल गयी। इसी समय समस्या से निपटने के लिए सुल्तान ने एक कृषि विभाग अमीर ए कोही की स्थापना की। साथ ही एक अकाल राहत संहिता तैयार करवाई तथा कृषकों को तकवी ऋण की व्यवस्था की। इन कार्यों में सुल्तान ने 70 लाख टंका का व्यय किया। मुहम्मद बिन तुगलक के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी –
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