व्यक्तिगत स्वास्थ्य आप क्या समझते हैं? - vyaktigat svaasthy aap kya samajhate hain?

UP Board Solutions for Class 11 Home Science Chapter 9 व्यक्तिगत स्वास्थ्य : शारीरिक स्वच्छता (Individual Health: Cleanliness of Body)

UP Board Class 11 Home Science Chapter 9 विस्तृत उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
व्यक्तिगत स्वास्थ्य से क्या तात्पर्य है? इसकी देख-रेख तथा रक्षा के क्या उपाय किए जाने चाहिए?
अथवा
व्यक्तिगत स्वास्थ्य के लिए शारीरिक स्वच्छता क्यों आवश्यक है? सविस्तार लिखिए।
अथवा
व्यक्तिगत स्वास्थ्य बनाए रखने के लिए आप किन-किन नियमों का पालन करेंगी?
अथवा
व्यक्ति को अपने स्वास्थ्य के प्रति किस प्रकार से सजग रहना चाहिए?
अथवा
व्यक्तिगत स्वच्छता क्या है?
अथवा
टिप्पणी लिखिए-व्यक्तिगत स्वच्छता क्यों आवश्यक है?
अथवा
दैनिक जीवन में व्यक्तिगत स्वच्छता के महत्त्व का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
स्वास्थ्य : व्यक्तिगत स्वास्थ्य (Health : Individual Health) –
‘स्वास्थ्य’ को सामान्यत: रोग से मुक्त अवस्था समझा जाता है। वास्तव में, रोगमुक्त शरीर का हृष्ट-पुष्ट तथा बलशाली भी होना आवश्यक है। यह जीवन का एक विशेष गुण है जिसके अनुसार व्यक्ति सर्वोत्तम जीवन व्यतीत करता है तथा सर्वाधिक क्रिया करने के लिए समर्थ रहता है। अत: शरीर के विभिन्न अंगों की बनावट व क्रियाओं की सर्वोत्तम दशा तथा उनके कार्यों के करने की शक्ति का समुचित सन्तुलन ही स्वास्थ्य है।

इसके अतिरिक्त, व्यक्ति का मानसिक एवं संवेगात्मक सन्तुलन भी उसके स्वास्थ्य के लिए आवश्यक कारक होता है। शारीरिक रूप से स्वस्थ होते हुए भी यदि कोई व्यक्ति मानसिक रूप से असन्तुलित या असामान्य हो तो उस व्यक्ति को पूर्ण रूप से स्वस्थ नहीं माना जाएगा। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने स्वास्थ्य के अर्थ को इन शब्दों में स्पष्ट किया है, “शरीर की रोगों से मुक्त दशा स्वास्थ्य नहीं है, व्यक्ति के स्वास्थ्य में तो उसका सम्पूर्ण शारीरिक, मानसिक एवं संवेगात्मक कल्याण निहित है।” प्रस्तुत कथन के आधार पर कहा जा सकता है कि व्यक्तिगत स्वास्थ्य अपने आप में एक बहुपक्षीय अवधारणा है। स्वास्थ्य का सम्बन्ध व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक तथा संवेगात्मक पक्षों से है। उसी व्यक्ति को पूर्ण रूप से स्वस्थ माना जाएगा जो क्रमशः शारीरिक, मानसिक तथा संवेगात्मक रूप से पूर्ण स्वस्थ हो।

व्यक्तिगत स्वास्थ्य : देख-रेख तथा रक्षा (Individual Health : Care and Protection)
अथवा
व्यक्तिगत स्वास्थ्य रक्षा के नियम (Rules of Individual Hygiene) –
व्यक्तिगत स्वास्थ्य बनाए रखने के लिए निम्नलिखित नियमों का ध्यान रखना होगा –

1. नियमबद्धता – अपने शरीर को स्वस्थ रखने के लिए आवश्यक है कि दैनिक कार्यों को नियमानुसार किया जाए। उदाहरणार्थ-समय पर शौच आदि से निवृत्त होना, नाश्ता या भोजन समय से करना, व्यायाम नियमानुसार नित्यप्रति करना, समय पर सोना, समय से उठना आदि अनेक कार्य प्रतिदिन समय से करने होते हैं।

2. शारीरिक स्वच्छता – सम्पूर्ण शरीर की नियमित स्वच्छता स्वास्थ्य की दृष्टि से अति आवश्यक है अन्यथा अनेक प्रकार के रोग उत्पन्न हो सकते हैं। शारीरिक स्वच्छता के अभाव में विभिन्न संक्रामक रोगों के रोगाणु शरीर के सम्पर्क में आते रहते हैं तथा व्यक्ति रोगग्रस्त हो सकता है। इसके अतिरिक्त, मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी शारीरिक-स्वच्छता आवश्यक है। शारीरिक स्वच्छता के लिए निम्नलिखित अंगों की स्वच्छता का ध्यान रखना चाहिए –

(क)त्वचा की स्वच्छता – त्वचा की सफाई प्रत्येक व्यक्ति के लिए आवश्यक है किन्तु भारतवर्ष जैसे गर्म देश में तो यह और भी अधिक आवश्यक है क्योंकि यहाँ अधिक पसीना आता है। पसीना एक दूषित पदार्थ है और इसमें अनेक पदार्थ; जैसे – उपचर्म की टूटी-फूटी कोशिकाएँ, धूल के कण आदि के अतिरिक्त अनेक जीवाणु भी फंस जाते हैं तथा इन पदार्थों को सड़ाते हैं। इससे दुर्गन्ध आने लगती है तथा अनेक प्रकार के चर्म रोग उत्पन्न हो जाते हैं।

त्वचा की सफाई के लिए स्नान करना आवश्यक है। इससे त्वचा के छिद्र खुल जाते हैं और पसीना निकलता रहता है। त्वचा से गन्दगी हट जाने से बीमारियों की आशंका नहीं रहती है। स्नान करते समय शरीर को साबुन आदि से साफ करना अच्छा रहता है। शरीर को रगड़ना भी आवश्यक है ताकि इसकी मालिश हो सके। इससे शरीर में रक्त का संचार सुचारु बना रहता है।

(ख) मुँह तथा दाँतों की स्वच्छता – मुँह को स्वच्छ करना आवश्यक है क्योंकि भोजन इत्यादि के टुकड़े दाँतों में अथवा अन्य स्थानों पर रुक जाते हैं जो बाद में सड़ने लगते हैं। फलस्वरूप जीवाणु अपना घर बना लेते हैं, जो भोजन के साथ आहार नाल में चले जाते हैं तथा विभिन्न प्रकार के रोग उत्पन्न कर सकते हैं। वैसे भी मुँह में अम्ल (तेजाब) बन जाने से दाँतों का इनेमल (पॉलिश) खराब हो जाता है।

मुंह एवं दाँतों की स्वच्छता के लिए भोजन या नाश्ते के बाद भली भाँति कुल्ला करना आवश्यक है। प्रातः शौच के बाद दाँतों को अच्छे मंजन, दातून या ब्रुश इत्यादि से साफ करना चाहिए। रात्रि को सोने से पूर्व भी दाँतों तथा मुँह की पूर्ण सफाई आवश्यक है।

(ग) नाखूनों की स्वच्छता – नाखूनों के अन्दर किसी प्रकार की गन्दगी नहीं रहनी चाहिए क्योंकि भोजन के साथ इनमें उपस्थित रोगों के कीटाणु, जीवाणु आदि आहार नाल में पहुँचकर विकार उत्पन्न करेंगे। नाखूनों को काटते रहना चाहिए अथवा ब्रुश इत्यादि से भली-भाँति साफ करना चाहिए।

(घ) बालों की स्वच्छता – बालों को स्वच्छ रखने के लिए इनको धोना आवश्यक है। धूल, मैल, पसीना आदि पदार्थ इससे साफ हो जाते हैं। साबुन, रीठा, बेसन आदि पदार्थों को बाल धोने के लिए प्रयोग में लाने से अधिक लाभ प्राप्त किया जा सकता है। सिर के बालों को गन्दा रखने से उनमें आदि होने का भय रहता है जिससे सिर में घाव भी हो सकते हैं तथा अन्य रोग भी होने की सम्भावना रहती है।

(ङ) आँखों की स्वच्छता – आँखों की स्वच्छता तथा सुरक्षा के लिए निम्नलिखित नियमों का पालन करना आवश्यक है –

  • आँखों को धूल, मिट्टी, गन्दगी आदि से बचाना चाहिए।
  • आँखों को गन्दे वस्त्र आदि से साफ नहीं करना चाहिए।
  • कोई वस्तु या धूल इत्यादि गिर जाने पर आँखों को मलना नहीं चाहिए बल्कि पानी से साफ करना चाहिए।
  • चेहरे को साफ रखना चाहिए और धोते समय स्वच्छ जल के छीटें आँखों में लगाने चाहिए।
  • कम या अत्यधिक तेज रोशनी से आँखों को बचाना चाहिए। अध्ययन करते समय इस बात का विशेष ध्यान रखना आवश्यक है।
  • आँखों के किसी भी साधारण रोग के होते ही उचित उपचार करना चाहिए। इसमें किसी प्रकार की लापरवाही नहीं करनी चाहिए।

(च) नाक की स्वच्छता – नाक के अन्दर से निकले हुए तरल श्लेष्मक में गन्दगी एकत्रित होती है। प्रतिदिन इसे अच्छी प्रकार साफ कर देना चाहिए। नाक की नियमित सफाई से हमारा श्वसन-तन्त्र स्वच्छ रहता है तथा श्वसन-तन्त्र सम्बन्धी रोगों की प्राय: आशंका नहीं रहती।

(छ) कानों की स्वच्छता-कान की भित्ति के अन्दर एक प्रकार का तरल पदार्थ निकलता रहता है जो बाहरी पदार्थों को अपने अन्दर उलझाकर अन्दर जाने से रोकता है। इसी कारण कान में मैल एकत्रित होता है। इसको सरसों का तेल डालकर रुई की फुरहरी से साफ करना चाहिए।

(ज) वस्त्रों की स्वच्छता-शारीरिक स्वच्छता के लिए जहाँ एक ओर शरीर के विभिन्न अंगों को स्वच्छ रखना अनिवार्य है, वहीं शरीर पर धारण किए जाने वाले वस्त्रों की स्वच्छता का भी ध्यान रखना आवश्यक है। वस्त्र जहाँ एक ओर शरीर की रक्षा एवं ढकने का कार्य करते हैं वहीं दूसरी ओर . गन्दे वस्त्रों से स्वास्थ्य को खतरा पैदा हो सकता है। इनमें अनेक प्रकार के रोगों के रोगाणु पल सकते हैं। त्वचा की अनेक बीमारियाँ गन्दे वस्त्र पहनने से होती हैं।

3. उचित पोषण-व्यक्तिगत स्वास्थ्य के लिए उचित पोषण भी आवश्यक है। उचित पोषण के लिए पर्याप्त मात्रा में सन्तुलित आहार की आवश्यकता होती है। इस प्रकार के आहार के अभाव में व्यक्ति अनेक कुपोषण अथवा अल्प-पोषणजनित रोगों का शिकार हो जाता है तथा उसका स्वास्थ्य बिगड़ जाता है।

4. व्यायाम करना-शरीर को स्वस्थ बनाए रखने के लिए प्रतिदिन नियमित व्यायाम करना आवश्यक है। व्यायाम शरीर की मांसपेशियों को आवश्यक क्रियाशीलता देता है। इस प्रकार उसकी कार्य करने की शक्ति बढ़ती है। शरीर पुष्ट, स्फूर्तियुक्त तथा सुन्दर बन जाता है।

5. विश्राम तथा निद्रा-शरीर की थकान को दूर कर फिर से कार्य करने की शक्ति उत्पन्न करने के लिए आराम (विश्राम) आवश्यक है। इससे कार्यकुशलता बढ़ती है। विश्राम का सर्वोत्तम उपाय निद्रा है। निद्रा की अवस्था में मांसपेशियाँ शिथिल हो जाती हैं और उनके अन्दर एकत्र हुए विजातीय तत्त्व शरीर से विसर्जित हो जाते हैं। इसके परिणामस्वरूप शरीर की मांसपेशियाँ अधिक कुशलता से कार्य करने की क्षमता अर्जित कर लेती हैं।

6. मादक वस्तुओं से बचाव-व्यक्तिगत स्वास्थ्य के लिए यह आवश्यक है कि व्यक्ति हर प्रकार के नशों से दूर रहे। वास्तव में, सभी मादक पदार्थों के सेवन का स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

7. स्वस्थ मनोरंजन व्यक्तिगत स्वास्थ्य के लिए स्वस्थ मनोरंजन भी आवश्यक है। वास्तव में, मानसिक एवं संवेगात्मक स्वास्थ्य के लिए स्वस्थ मनोरंजन आवश्यक माना गया है। मनोरंजन के कुछ उपाय शारीरिक स्वास्थ्य के लिए भी विशेष लाभदायक होते हैं। खेल-कूद एवं व्यायाम इसी प्रकार के साधन हैं।

प्रश्न 2.
स्वास्थ्य के लिए विश्राम तथा निद्रा का क्या महत्त्व है? विश्राम तथा निद्रा के समय किन-किन बातों का ध्यान रखना आवश्यक है?
अथवा
निद्रा का स्वास्थ्य से सम्बन्ध लिखिए।
उत्तर:
विश्राम तथा निद्रा का महत्त्व (Importance of Rest and Sleep) –
शारीरिक अथवा मानसिक कार्य करने से शरीर में थकान आ जाती है। वास्तव में, शारीरिक परिश्रम करते समय शरीर में अनेक विषैले पदार्थ एकत्र हो जाते हैं। ये पदार्थ ही हमारी मांसपेशियों की थकाते हैं। इसके अतिरिक्त, कार्य करते समय शरीर के ऊतक अधिक टूटते-फूटते रहते हैं। इस समय इनकी मरम्मत भी पूर्ण रूप से नहीं हो पाती। अत: शरीर के स्वास्थ्य के लिए इन ऊतकों की मरम्मत तथा विषैले पदार्थों को बाहर निकालना अनिवार्य होता है। इन क्रियाओं के लिए विश्राम आवश्यक होता है।

विश्राम का सबसे उत्तम उपाय नींद है। विश्राम तथा निद्रा के समय शरीर में कार्य करने के परिणामस्वरूप हुई टूट-फूट की क्षतिपूर्ति हो जाती है। इस प्रकार शरीर नई शक्ति अर्जित कर लेता है। पर्याप्त नींद ले लेने से व्यक्ति एकदम तरोताजा एवं स्वस्थ हो जाता है। नींद के समय नाड़ी एवं श्वास की गति कुछ मन्द हो जाती है तथा रक्त चाप घट जाता है; अतः सम्बन्धित अंगों को कुछ आराम मिलता है। जिस व्यक्ति को पर्याप्त नींद नहीं आती उसका स्वास्थ्य बिगड़ जाता है, व्यक्ति दुर्बल हो जाता है, स्वभाव में चिड़चिड़ाहट आ जाती है तथा चेहरे पर उदासी छा जाती है, कार्य करने की चुस्ती तथा शारीरिक तेज कम हो जाता है। ऐसा व्यक्ति थका-थका रहता है, मस्तिष्क अत्यधिक तनावयुक्त हो जाता है तथा उसमें कार्यों के परिणाम के प्रति निराशा उत्पन्न हो जाती है।

नींद की कमी के उपर्युक्त लक्षणों को दूर करने के लिए, शरीर को रोगों से बचाने तथा स्वस्थ रखने के लिए उचित तथा आवश्यक विश्राम आवश्यक है। इसी प्रकार विश्राम की सर्वश्रेष्ठ विधि शान्त व गहरी नींद लेना है। इस प्रकार स्पष्ट है कि निद्रा का व्यक्ति के स्वास्थ्य से घनिष्ठ सम्बन्ध है। अच्छे स्वास्थ्य के लिए व्यक्ति को समुचित नींद अवश्य लेनी चाहिए।

विश्राम तथा निद्रा के समय ध्यान देने योग्य बातें (Important points to be kept in Mind at the Time of Rest and Sleep) –
शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य को सामान्य बनाए रखने के लिए तथा पर्याप्त गहरी एवं शान्त नींद लेने के लिए निम्नलिखित बातों पर विशेष ध्यान देना चाहिए –
1. निद्रा का समय-सामान्यतः रात्रि का समय सोने के लिए उपयुक्त है फिर भी विश्राम हेतु थोड़े समय के लिए दिन में (दोपहर के समय) सोया जा सकता है। शारीरिक श्रम करने वाले को अधिक समय तथा मानसिक कार्य करने वालों को अपेक्षाकृत कम समय की निद्रा चाहिए। सोने का समय तथा काल दोनों ही निश्चित होने चाहिए। कम-से-कम 6-8 घण्टे की निद्रा एक स्वस्थ व्यक्ति के लिए आवश्यक होती है।

2. विश्राम व निद्रा के लिए वातावरण-नींद तथा विश्राम के लिए वातावरण शान्त, तनावरहित तथा स्वस्थ होना चाहिए। इसके लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना आवश्यक है –

(क) शयन कक्ष शान्त स्थान में शोरगुल से दूर होना चाहिए।
(ख) शयन कक्ष के अन्दर का वातावरण भी शान्त होना आवश्यक है।
(ग) शयन कक्ष में शुद्ध वायु के लिए उचित संवातन व्यवस्था होनी चाहिए।
(घ) व्यक्ति का मस्तिष्क तनावरहित होना चाहिए।

3. निद्रा के लिए व्यवस्थाएँ–स्वस्थ व शान्त निद्रा के लिए निम्नलिखित व्यवस्थाएँ उपयोगी होती हैं –
(क) मच्छरों से बचने का प्रबन्ध किया जाना आवश्यक है। इसके लिए मच्छरदानी का उपयोग लाभदायक है।
(ख) चारपाई, पलंग इत्यादि कसा हुआ होना चाहिए।
(ग) बिस्तर मुलायम होना चाहिए।
(घ) विश्राम के समय वस्त्र ढीले-ढाले पहनने चाहिए।
(ङ) सोने के स्थान में सीलन, दुर्गन्ध आदि नहीं होनी चाहिए।
(च) ताजा या ठण्डे पानी से मुँह, हाथ व पैर धोकर सोना शान्त तथा गहरी निद्रा के लिए सभी प्रकार से उचित है।

UP Board Class 11 Home Science Chapter 9 लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
“स्वास्थ्य मानव जीवन की अमूल्य निधि है।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
व्यक्ति के जीवन में स्वास्थ्य का सर्वाधिक महत्त्व है। सामान्य स्वास्थ्य वाला व्यक्ति सामान्य जीवन व्यतीत करता है तथा दैनिक जीवन के सभी क्रिया-कलाप सुचारु रूप से सम्पन्न करता है। स्वस्थ व्यक्ति अपनी क्षमता एवं योग्यता के अनुसार जीविकोपार्जन करता है तथा अपनी और अपने परिवार की आवश्यकताओं की भली-भाँति पूर्ति करता है। शारीरिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति मानसिक रूप से भी स्वस्थ रहता है तथा सामाजिक जीवन में समायोजित रहता है। इसके विपरीत दुर्बल स्वास्थ्य वाला व्यक्ति सामान्य जीवन व्यतीत नहीं कर पाता तथा अभावग्रस्त जीवन व्यतीत करता है। अतः कहा जाता है कि ‘स्वास्थ्य मानव जीवन की अमूल्य निधि है।’

प्रश्न 2.
मुँह एवं दाँतों की स्वच्छता के महत्त्व को स्पष्ट कीजिए। अथवा मुख एवं दाँतों की सफाई और देखभाल क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
मुँह एवं दाँतों की स्वच्छता के महत्त्व –
व्यक्तिगत शारीरिक स्वच्छता में मुँह तथा दाँतों की स्वच्छता का अपना महत्त्व है। मुखगुहा में स्थित विभिन्न अंगों में से जीभ और गला सामान्य प्रक्रियाओं से ही साफ हो जाते हैं। साधारण कुल्ले आदि करने से मुँह साफ हो जाता है, किन्तु दाँतों की विशेष स्वच्छता आवश्यक होती है। भोजन को चबाते समय भोज्य-पदार्थों के कण दाँतों के मध्य उपस्थित स्थान में फँस जाते हैं। ये फँसे हुए भोजन के कण सड़कर दुर्गन्ध पैदा करते हैं। यह दुर्गन्ध विभिन्न बैक्टीरिया के कारण उत्पन्न होती है। इससे मुख में ही नहीं, आहार नाल में भी अनेक प्रकार के रोग पैदा हो जाते हैं। इन रोगों के होने से दाँत कमजोर हो सकते हैं, मसूड़े खराब हो सकते हैं, यहाँ तक कि पाचन-शक्ति कमजोर हो जाती है। दाँतों की सफाई के अभाव में पायरिया नामक रोग होने की आशंका रहती है। वैसे भी यदि दाँत कमजोर हैं, तो भोजन को ठीक प्रकार से नहीं चबाया जा सकता है, फलस्वरूप पाचन क्रिया में विघ्न पैदा होता है। अत: दाँतों का स्वच्छ होना अत्यन्त आवश्यक है।

प्रश्न 3.
दाँतों को स्वच्छ एवं स्वस्थ रखने की विधि का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
दाँतों को स्वच्छ एवं स्वस्थ रखने की विधि दाँतों एवं मुख को स्वच्छ रखने के लिए निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना आवश्यक है –

  • कुछ भी खाने के बाद कुल्ला अवश्य करना चाहिए ताकि दाँतों में फंसे हुए खाद्य-पदार्थों के कण निकल जाएँ। प्रतिदिन सुबह कोई भी कार्य करने से पूर्व दाँतों की सफाई आवश्यक है। इसी प्रकार रात्रि को सोते समय भी दाँतों की सफाई करनी चाहिए।
  • ब्रुश, दातून, पेस्ट अथवा किसी बारीक मंजन से दाँतों को प्रतिदिन साफ करना आवश्यक है। (3) मसूड़ों की सफाई तथा मालिश करते रहने से दाँत सुरक्षित एवं मजबूत रहते हैं।
  • दाँतों को स्वस्थ रखने के लिए अधिक गर्म एवं अधिक ठण्डे खाद्य अथवा पेय-पदार्थ ग्रहण नहीं करने चाहिए।
  • यदि कोई चिपकने वाला खाद्य-पदार्थ खाया जाए तो उसके उपरान्त दाँतों की सफाई का अतिरिक्त ध्यान रखना चाहिए।
  • समय-समय पर दन्त-चिकित्सक से परामर्श करते रहना चाहिए।

प्रश्न 4.
बालों की सफाई क्यों आवश्यक है? बालों को साफ करने की उपयुक्त विधि लिखिए।
उत्तर:
बालों की सफाई की आवश्यकता एवं विधि –
सिर के बालों की सफाई करना आवश्यक है क्योंकि बालों को साफ न करने से इत्यादि पड़ सकती हैं, जो हमारे शरीर का खून चूसती हैं। बालों के गन्दे रहने से त्वचा के छिद्र भी बन्द हो जाते हैं फलतः पसीना नहीं निकल पाता है और त्वचा के रोग उत्पन्न हो सकते हैं। अत: यह आवश्यक है कि बालों को नियमित रूप से साफ किया जाए। स्वच्छ बाल सौन्दर्य बढ़ाने वाले होते हैं, विशेषकर नारियों के लिए।

बालों को साफ करने के लिए प्रमुख रूप से इन्हें धोना आवश्यक है। बालों को धोने के लिए कम-से-कम सोडे वाला साबुन प्रयोग में लाना चाहिए। अधिक सोडे वाला साबुन बालों की जड़ों को कमजोर कर देता है, इसलिए दही, रीठा, बेसन, मुलतानी मिट्टी आदि से बालों को धोया जाना उचित रहता है। आजकल अनेक प्रकार के शैम्पू भी बालों को धोने के लिए उपलब्ध हैं। किसी अच्छे शैम्पू द्वारा भी बालों को धोया जा सकता है। बालों की सफाई के लिए, विशेषकर ज़े मारने के लिए सोडे में सिरका मिलाकर बालों में लगाया जा सकता है।

नीबू तथा लहसुन के रस को बालों में लगाने से भी मर जाती हैं। जुएँ नष्ट करने के लिए कुछ औषधियाँ भी उपलब्ध हैं। नीम की पत्तियों को पानी में उबालकर उस पानी से नियमित रूप से बालों को धोने से भी जुएँ समाप्त हो जाती हैं। बालों की रक्षा करने के लिए नित्यप्रति कंघा करना चाहिए। इससे एक ओर तो बाल सँवरे रहते हैं तथा दूसरी ओर बालों से गन्दगी निकलती रहती है।

प्रश्न 5.
थकान किसे कहते हैं? इसे किस प्रकार दूर किया जा सकता है?
उत्तर:
थकान का अर्थ तथा दूर करने की विधि –
विभिन्न प्रकार के शारीरिक अथवा मानसिक कार्य करते रहने से शरीर के अंगों में थकान पैदा हो जाती है। श्रम करने से मांसपेशियों में उत्पन्न हुए विषैले पदार्थों के कारण विभिन्न अंग थक जाते हैं। सामान्य रूप से थकान का मुख्य कारण मांसपेशियों में लैक्टिक एसिड की मात्रा बढ़ जाना होता है। इसके अतिरिक्त, कार्य करते समय शरीर के ऊतक टूटते-फूटते रहते हैं और इस दौरान इनकी पूरी मरम्मत भी नहीं हो पाती है।

थकान को दूर करने के लिए विश्राम अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है। शरीर में उत्पन्न विषैले पदार्थों को बाहर निकालना तथा टूट-फूट की मरम्मत करना आदि क्रियाओं के लिए विश्राम आवश्यक होता है। मस्तिष्क एवं स्नायु सम्बन्धी अंगों को विश्राम देने से इनकी कार्यकुशलता तथा कार्यक्षमता अत्यधिक बढ़ जाती है। विश्राम करने के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया निद्रा है। निद्रा शरीर के अवयवों तथा इन्द्रियों का शिथिलन है। अत: ऐसे समय में शरीर के अन्दर विभिन्न प्रकार की टूट-फूट की मरम्मत हो जाती है और नई कार्य-शक्ति अर्जित हो जाती है तथा पर्याप्त नींद लेने के बाद व्यक्ति तरोताजा एवं प्रसन्नचित्त हो जाता है। इस समय नाड़ी तथा श्वास गति, रक्तचाप एवं शरीर का ताप कम हो जाता है तथा व्यक्ति थकान से मुक्त हो जाता है।

कई बार कार्यों के परिवर्तन से थकान दूर हो जाती है। इसके लिए मनोरंजन, व्यायाम तथा योगाभ्यास लाभदायक होता है। ये शरीर की कार्यक्षमता को बढ़ा देते हैं और थके हुए शरीर को शीघ्रता से, विश्राम के समय, पहले जैसी स्थिति में लाने में सहायता प्रदान करते हैं।

प्रश्न 6.
श्वसन और व्यायाम का क्या सम्बन्ध है?
उत्तर:
व्यायाम से शरीर के अंगों को उचित रूप से सुचारु गति प्राप्त होती है। इस गति से शरीर की ऊर्जा इस्तेमाल होती है। इस स्थिति में ऑक्सीकरण के लिए अधिक मात्रा में ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है। अधिक मात्रा में ऑक्सीजन ग्रहण करने के लिए श्वसन-क्रिया को सामान्य से तीव्र होना पड़ता है। व्यायाम की दशा में श्वसन के माध्यम से अधिक मात्रा में वायु ग्रहण की जाती है। इससे फेफड़ों में अधिक वायु भरती है तथा फेफड़ों द्वारा रक्त के शुद्धीकरण की दर में भी वृद्धि होती है। स्पष्ट है कि व्यायाम तथा श्वसन में घनिष्ठ सम्बन्ध है। व्यायाम श्वसन-क्रिया को सुचारु बनाने में सहायक होता है तथा सुचारु श्वसन से व्यक्ति के स्वास्थ्य पर अच्छा प्रभाव पड़ता है।

प्रश्न 7.
निम्नलिखित मादक पदार्थों के विषय में आप क्या जानते हैं? इनके सेवन करने से लाभ तथा हानियाँ समझाइए –
(क) अफीम
(ख) भाँग
(ग) गाँजा व चरस।
उत्तर:
सामान्यतः सभी प्रकार की मादक वस्तुएँ शरीर के लिए हानिकारक होती हैं। इनके लाभ बहुत सीमित, केवल दवाएँ आदि बनाने में होते हैं। इनकी लत या आदत निश्चित रूप से स्वास्थ्य को नष्ट कर देती है।

(क) अफीम – यह एक तीव्र मादक पदार्थ है। इसका निर्माण पोस्त के पौधे से किया जाता है। यद्यपि इसकी खेती एवं व्यापार पूर्णत: नियन्त्रित तथा कानूनन प्रतिबन्धित है, फिर भी चोरी-छिपे या तस्करी से इसका निर्माण किया जाता है। इसका प्रयोग अनेक प्रकार से किया जाता है। कुछ व्यक्ति इसके चूर्ण को खाते हैं तो कुछ इसको सूंघकर नशा प्राप्त करते हैं। सिगरेट में भरकर धूम्रपान के रूप में इसका प्रयोग किया जाता है। कुछ लोगों को इसके इंजेक्शन लगवाने की आदत पड़ जाती है।
अफीम के सेवन से अनेक हानियाँ हैं –

  • व्यक्ति आलसी हो जाता है।
  • शरीर पीला पड़ जाता है अर्थात् रक्त की कमी हो जाती है।
  • शारीरिक शक्ति क्षीण हो जाती है।
  • आँखों की ज्योति कम हो जाती है।

वास्तव में, अफीम एक मीठा और भयंकर विष है। इसके सेवन से अनेक प्रकार की स्नायु तथा मस्तिष्क सम्बन्धी शिथिलताएँ उत्पन्न हो जाती हैं।

(ख) भाँग-भाँग एक पौधे की पत्तियों से प्राप्त की जाती है। इसकी पत्तियों को पीसकर ऐसे ही खाया जाता है अथवा ठण्डाई आदि के रूप में घोटकर पिया जाता है। भाँग के सेवन से व्यक्ति का मानसिक सन्तुलन बिगड़ जाता है। यह आँतों को शुष्क व कमजोर बनाती है।

(ग) गाँजा व चरस-गाँजा एवं चरस पौधों से प्राप्त किए गए अधिक सान्द्र नशीले पदार्थ हैं। इनका सेवन सिगरेट, चिलम इत्यादि में भरकर धूम्रपान के रूप में किया जाता है। इन पदार्थों का नशा अत्यन्त तीव्र होता है। इनके सेवन से शरीर एवं स्वास्थ्य पर अत्यधिक गहरा प्रभाव पड़ता है। पाचन शक्ति नष्ट हो जाती है और मानसिक चेतना जाती रहती है। इस प्रकार इस नशे का सम्पूर्ण शरीर पर प्रतिकूल प्रभाव होता है।

प्रश्न 8.
धूम्रपान अथवा तम्बाकू सेवन से होने वाली हानियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
धूम्रपान अथवा तम्बाकू से हानि –
तम्बाकू एक मुख्य मादक पदार्थ है। इसे एक प्रकार के पौधे की पत्तियों को विशेष रूप से पकाकर तैयार किया जाता है। इसे खाने, पीने, सूंघने, धुआँ निकालने आदि के रूप में प्रयोग किया जाता है, जिनमें बीड़ी, सिगरेट, हुक्का आदि के रूप में धूम्रपान (smoking) करना प्रमुख है। पान में चूना, कत्था आदि वस्तुओं के साथ या सुर्ती के रूप में चूने के साथ खाने में, नसवार के रूप में सूंघने में भी इसका प्रयोग किया जाता है।

तम्बाक में अनेक विषैले पदार्थ होते हैं जिसमें सबसे घातक व तेज विष निकोटिन (nicotine) है। यह पदार्थ सूक्ष्म रूप में मादक है। तम्बाकू चाहे किसी भी प्रकार प्रयोग में लाया जाए, इसके प्रयोग से अनेक हानियाँ हैं। यदि बाल्यावस्था या युवावस्था में इसके सेवन की आदत पड़ गई तो वह अत्यन्त घातक एवं स्थायी प्रभाव उत्पन्न करती है। प्रौढ़ व्यक्ति पर इसका प्रभाव धीरे-धीरे होता है।

  • तम्बाकू का धुआँ फेफड़े, गले इत्यादि की श्लेष्म कला (भीतरी झिल्ली) को खराब कर देता है जिससे पहले कफ-खाँसी तथा बाद में दमा, तपेदिक तक हो जाते हैं।
  • गले, नाक, फेफड़े, श्वसन मार्ग आदि तथा सम्पूर्ण शरीर में शुष्कता (dryness) पैदा हो जाती है जिससे खराश तथा चटखन हो जाती है।
  • पाचन शक्ति कमजोर हो जाती है, पेट खराब रहता है, जी मिचलाता है, भूख मर जाती है, कब्ज रहने लगता है।
  • हृदय गति तेज होने से रुधिर परिसंचरण तथा हृदय सम्बन्धी रोग जैसे उच्च रक्त चाप (high blood pressure), केशिकाओं का चौड़ा होना आदि हो सकते हैं।
  • नींद कम हो जाती है।
  • मांसपेशियों की संकुचन-क्षमता (सिकुड़ने-फैलने की शक्ति) कम होने से कार्यकुशलता कम हो जाती है।
  • तम्बाकू के सेवन से कैंसर जैसा भयानक रोग हो सकता है, जिसमें मुँह, गाल, होंठ, फेफड़े, गले आदि का कैंसर प्रमुख है।
  • अधिक खुश्की होने के कारण मस्तिष्क कमजोर हो जाता है। इस प्रकार मानसिक शक्ति का ह्रास होता है।

यूरोपीय देशों में तो स्त्रियाँ भी धूम्रपान के रूप में तम्बाकू का सेवन करती हैं जिससे उनका सौन्दर्य कम हो जाता है। गर्भकाल में माता के धूम्रपान करने से अपरिपक्व और समय से पूर्व ही कम वजन के शिशु का जन्म होता है।

प्रश्न 9.
त्वचा की स्वच्छता के महत्त्व एवं उपायों का उल्लेख कीजिए। अथवा त्वचा की स्वच्छता से क्या तात्पर्य है? यह क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
त्वचा की स्वच्छता का महत्त्व एवं उपाय –
शारीरिक स्वच्छता के लिए सम्पूर्ण शरीर को ढकने वाली अपनी त्वचा को सदैव स्वच्छ रखना चाहिए। त्वचा पर असंख्य छिद्रों से हर समय, अनेक विषैले तथा हानिकारक पदार्थ पसीने के रूप में रिसते रहते हैं। यह पसीना सूखकर त्वचा पर ही जम जाता है। इसके अतिरिक्त, अनेक प्रकार की बाहरी गन्दगी, धूल, रोगाणु आदि त्वचा पर पसीने के साथ ही जमते रहते हैं। इसी प्रकार त्वचा के गन्दा रहने से पसीने के छिद्र भी बन्द हो सकते हैं और शरीर से हानिकारक पदार्थों के न निकलने से अनेक रोग उत्पन्न हो सकते हैं। वैसे भी गन्दगी से अनेक चर्म रोग (skin diseases) पैदा होते हैं क्योंकि इस गन्दगी में रोगाणु पनप जाते हैं। त्वचा की गन्दगी से व्यक्ति के शरीर एवं कपड़ों में दुर्गन्ध आने लगती है। अत: त्वचा की स्वच्छता व्यक्ति के लिए परम आवश्यक है।

त्वचा की स्वच्छता का मुख्य उपाय स्नान है। अत: सामान्यत: नित्य स्नान करना आवश्यक है किन्तु ठण्डे प्रदेशों में कभी-कभी बिना स्नान के ही रहा जा सकता है। भारत जैसे देश में सर्दियों में दिन में एक बार तथा गर्मियों में दो बार स्नान करना स्वास्थ्य के लिए हितकर है। साधारण रूप से ठण्डे पानी (अपने शरीर के ताप के लगभग ताप वाला जल) से स्नान करना चाहिए। बच्चों, दुर्बल व्यक्तियों तथा वृद्धजनों को गर्म पानी से स्नान कराया जा सकता है। स्नान करते समय पूरे शरीर को रगड़-रगड़कर साफ करना चाहिए। साबुन अथवा उबटन द्वारा भी त्वचा की गन्दगी को साफ किया जा सकता है। स्नान करने से जहाँ एक ओर त्वचा की सफाई होती है वहीं दूसरी ओर इससे चित्त प्रसन्न रहता है। अत: स्नान करना स्फर्तिदायक है।

प्रश्न 10.
बालक-बालिकाओं में व्यक्तिगत स्वच्छता का ज्ञान कराना क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
बालक-बालिकाओं को व्यक्तिगत स्वच्छता का ज्ञान प्रदान करना –
बालक-बालिकाओं में व्यक्तिगत स्वच्छता का ज्ञान कराना अति आवश्यक है क्योंकि –

  • किसी कार्य को सम्पादित करने के लिए सर्वप्रथम उसके बारे में जानकारी होनी आवश्यक है।
  • छोटी उम्र में व्यक्तिगत स्वच्छता का ज्ञान करा देने से उसके अन्दर संस्कार तथा आदत का निर्माण हो सकता है।
  • बालक या बालिका अपने स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहकर स्वच्छता का स्वयं ही ध्यान रखते हैं इस प्रकार उनका स्वास्थ्य बना रहता है। उनके पास रोग कम-से-कम आते हैं।

अत: यह आवश्यक है कि बालक-बालिकाओं को कम आयु में ही व्यक्तिगत स्वच्छता का ज्ञान कराना चाहिए तथा इसको उनकी आदत बना देना चाहिए।

प्रश्न 11.
बालकों को स्वस्थ एवं स्वच्छ रहने की आदत आप कैसे सिखाएँगी?
उत्तर:
बालकों में स्वस्थ रहने के लिए स्वच्छता की आदत डालना –
अच्छे स्वास्थ्य के लिए व्यक्तिगत स्वच्छता आवश्यक है तथा बालकों में अच्छे स्वास्थ्य के लिए स्वच्छता की आदत डालने के लिए कुछ नियमों को अपनाना आवश्यक है। माता-पिता, अभिभावक, सम्बन्धियों तथा परिवार के सभी सदस्यों का कर्त्तव्य है कि स्वयं स्वच्छता सम्बन्धी क्रियाओं का अनुसरण करें तथा इन्हें नियमों के रूप में बच्चों के लिए प्रतिस्थापित करें। इसके लिए निम्नलिखित आदतें अनुकरणीय हैं –

  • सोने व उठने में नियमितता निश्चित समय पर निश्चित अवधि की निद्रा अच्छे स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है। अत: सोने तथा जागने का समय निश्चित करना आवश्यक है।
  • नियमित शौच आदि-नियमित शौच आदि से निवृत्त होना आवश्यक है। यह कार्य प्रात: उठने के बाद होना चाहिए।
  • मुँह व दाँतों की सफाई–मुँह और दाँतों की सफाई मंजन, पेस्ट आदि के द्वारा शौच के बाद करना आवश्यक है। उसी समय हाथ-पैर आदि की सफाई भी नियमपूर्वक करनी चाहिए।
  • व्यायाम तथा योगासन-शरीर को उचित रूप से क्रियाशील रखने के लिए नियमित व्यायाम तथा योगासन आवश्यक हैं।
  • नियमित स्नान-प्रतिदिन नियमपूर्वक स्नान करना स्वच्छता के लिए आवश्यक है। इसके साथ ही स्वच्छ वस्त्र आदि धारण करने चाहिए।
  • अन्य आदतें-नियमित नाखून काटना तथा उनकी सफाई, भोजन करने से पूर्व तथा बाद में साबुन से हाथों को भली-भाँति साफ करना आवश्यक है।

प्रश्न 12.
टिप्पणी लिखिए – ‘जनसाधारण को स्वास्थ्य सम्बन्धी नियमों की जानकारी देने के आधुनिक साधन।’
उत्तर:
आधुनिक युग जन-संचार का युग है। आज महत्त्वपूर्ण तथ्यों की जानकारी को जन-साधारण तक पहुँचाने के लिए कुछ ऐसे उपाय प्रयोग में लाए जाते हैं जो व्यापक-क्षेत्र में प्रभावकारी होते हैं। इस प्रकार के प्रमुख उपाय या साधन हैं-दूरदर्शन, रेडियो तथा समाचार-पत्र एवं पत्रिकाएँ। इन समस्त साधनों में भी सर्वाधिक उपयोगी आधुनिक उपाय दूरदर्शन ही है। अत: जन-साधारण को स्वास्थ्य सम्बन्धी नियमों की जानकारी प्रदान करने के लिए दूरदर्शन को ही अपनाया जाना चाहिए। दूरदर्शन के कार्यक्रमों में स्वास्थ्य के नियमों को भली-भाँति दर्शाया जा सकता है तथा उसके व्यावहारिक महत्त्व को भी स्पष्ट किया जा सकता है।

UP Board Class 11 Home Science Chapter 9 अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
स्वास्थ्य से क्या आशय है? .
उत्तर:
“शरीर की रोगों से मुक्त दशा स्वास्थ्य नहीं है, व्यक्ति के स्वास्थ्य में तो उसका सम्पूर्ण शारीरिक, मानसिक एवं संवेगात्मक कल्याण निहित है।” – ( विश्व स्वास्थ्य संगठन )

प्रश्न 2.
व्यक्तिगत स्वास्थ्य के नियमों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
व्यक्तिगत स्वास्थ्य के मुख्य नियम हैं –

  • नियमबद्धता
  • शारीरिक स्वच्छता
  • उचित पोषण
  • व्यायाम करना
  • विश्राम एवं निद्रा
  • मादक वस्तुओं से बचाव तथा
  • स्वस्थ मनोरंजन।।

प्रश्न 3.
व्यक्तिगत स्वच्छता की परिभाषा लिखिए।
उत्तर:
शरीर के समस्त अंगों तथा शरीर पर धारण किए जाने वाले वस्त्रों की स्वच्छता को व्यक्तिगत स्वच्छता कहा जाता है।

प्रश्न 4.
व्यक्तिगत स्वच्छता क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
शरीर को स्वच्छ, नीरोग, चुस्त एवं प्रसन्नचित्त रखने के लिए व्यक्तिगत स्वच्छता आवश्यक है।

प्रश्न 5.
उचित पोषण से क्या आशय है?
उत्तर:
पर्याप्त मात्रा में सन्तुलित आहार ग्रहण करना ही ‘उचित पोषण’ है।

प्रश्न 6.
विश्राम तथा निद्रा को क्यों आवश्यक माना जाता है?
उत्तर:
शारीरिक एवं मानसिक थकान के निवारण के लिए विश्राम एवं निद्रा को आवश्यक माना जाता है।

प्रश्न 7.
नियमित रूप से व्यायाम का शरीर पर क्या प्रभाव पड़ता है? अथवा व्यायाम से क्या लाभ है?
उत्तर:
नियमित रूप से व्यायाम करने से शरीर सुन्दर, सुडौल तथा ओजस्वी बनता है।

प्रश्न 8.
दाँतों की नियमित रूप से सफाई न करने की दशा में किस रोग के हो जाने की आशंका रहती है?
उत्तर:
दाँतों की नियमित रूप से सफाई न करने की दशा में दाँतों में पायरिया रोग हो जाने की आशंका रहती है।

प्रश्न 9.
त्वचा की स्वच्छता का प्रमुख उपाय क्या है?
उत्तर:
त्वचा की स्वच्छता का प्रमुख उपाय है-प्रतिदिन स्नान करना।

प्रश्न 10.
मादक-द्रव्यों के सेवन का व्यक्तिगत स्वास्थ्य पर कैसा प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
मादक-द्रव्यों के सेवन का व्यक्तिगत स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

प्रश्न 11.
शराब से होने वाली एक मुख्य हानि बताइए।
उत्तर:
शराब के अधिक सेवन से केन्द्रीय तन्त्रिका-तन्त्र दुर्बल हो जाता है जिससे सोचने-समझने की शक्ति क्षीण हो जाती है।

प्रश्न 12.
नाखूनों की सफाई क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
नाखूनों के बड़े होने पर उनमें गन्दगी भर जाती है तथा उसमें अनेक प्रकार के कीटाणु एकत्र हो जाते हैं जो भोजन करते समय मुँह में पहुँचकर आहार-नाल में पहुँच जाते हैं तथा विभिन्न रोग उत्पन्न करते हैं।

UP Board Class 11 Home Science Chapter 9 बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

निर्देश : निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर में दिए गए विकल्पों में से सही विकल्प का चयन कीजिए –
1. व्यक्तिगत स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है –
(क) शारीरिक रूप से स्वस्थ होना
(ख) मानसिक रूप से स्वस्थ होना
(ग) संवेगात्मक रूप से स्वस्थ होना
(घ) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(घ) उपर्युक्त सभी।

2. व्यक्तिगत स्वास्थ्य की देख-रेख के लिए आवश्यक है –
(क) नियमित जीवन तथा उचित पोषण
(ख) शारीरिक स्वच्छता तथा नियमित व्यायाम
(ग) समुचित विश्राम, निद्रा तथा स्वस्थ मनोरंजन
(घ) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(घ) उपर्युक्त सभी।

3. त्वचा की स्वच्छता प्रतिदिन करनी चाहिए क्योंकि –
(क) इससे शरीर ठीक रहता है
(ख) इससे त्वचा का कोई रोग नहीं होता
(ग) इससे शरीर कोमल रहता है
(घ) इससे भूख अधिक लगती है।
उत्तर:
(ख) इससे त्वचा का कोई रोग नहीं होता।

4. स्वस्थ रहने के लिए व्यायाम आवश्यक है क्योंकि यह शरीर को बनाता है –
(क) आलसी एवं निष्क्रिय
(ख) क्रियाशील एवं स्वस्थ
(ग) आलसी एवं स्वस्थ
(घ) निष्क्रिय एवं स्वस्था
उत्तर:
(ख) क्रियाशील एवं स्वस्थ।

5. व्यायाम का शरीर पर क्या प्रभाव पड़ता है –
(क) शरीर स्वस्थ रहता है
(ख) शरीर का समुचित विकास होता है एवं क्रियाशील बनता है
(ग) शरीर के विकार दूर हो जाते हैं
(घ) इनमें से सभी।
उत्तर:
(घ) इनमें से सभी।।

6. शारीरिक थकान के निवारण का सर्वोत्तम उपाय है –
(क) घूमना-फिरना
(ख) टी० वी० देखना
(ग) नींद
(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(ग) नींद।

7. स्वस्थ मनोरंजन से सुधार होता है –
(क) व्यवहार में
(ख) पाचन-शक्ति में
(ग) मानसिक स्वास्थ्य में
(घ) रोग में।
उत्तर:
(ग) मानसिक स्वास्थ्य में।

8. व्यक्तिगत स्वास्थ्य के लिए बचना चाहिए –
(क) व्यायाम से
(ख) विश्राम से
(ग) मनोरंजन से
(घ) मादक द्रव्यों के सेवन से।
उत्तर:
(घ) मादक द्रव्यों के सेवन से।

9. ‘विश्व तम्बाकू निषेध दिवस कब मनाया जाता है –
(क) 1 मई
(ख) 11 मई
(ग) 21 मई
(घ) 31 मई।
उत्तर:
(घ) 31 मई।

10. व्यायाम से लाभ है –
(क) शारीरिक विकास
(ख) स्वास्थ्य में सुधार
(ग) मानसिक विकास
(घ) इनमें से सभी।
उत्तर:
(घ) इनमें से सभी।

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व्यक्तिगत स्वास्थ्य से आप क्या समझते हैं?

व्यक्तिगत स्वास्थ्य का अर्थ एंव नियम- शारीरिक तथा मानसिक स्वास्थ्य को व्यक्तिगत स्वास्थ्य कहते हैं। यदि व्यक्ति का शारीरिक स्वास्थ्य अच्छा हो तो व्यक्ति का मानसिक स्वास्थ्य भी ठीक रहेगा और परिणामस्वरूप घर में सुख, शान्ति तथा समृद्धि बनी रहेगी।

व्यक्तिगत स्वच्छता का क्या महत्व है?

यदि व्यक्तिगत स्वच्छता पर पर्याप्त ध्यान दिया जाए तो दस्त, चमड़ी और आँख के संक्रमण की सम्भावनाएँ काफी हद तक घट जाती है। व्यक्तिगत स्वच्छता सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है कि घर के पास पर्याप्त मात्रा में पानी उपलब्ध हो।

व्यक्तिगत स्वच्छता के तीन काम कौन से हैं?

कुछ सुझावों पर नजर डालते हैं जिनसे आपको स्वच्छ रहने में मदद मिलेगी:.
सुनिश्चित करें कि आप एक प्रतिदिन पर दो बार अपने दांतों को ब्रश करें। ... .
सुनिश्चित करें कि आप दैनिक स्नान करें, और मौसम की स्थिति पर निर्भर होते हुए, दो बार स्नान करने से परहेज़ न करें, अगर ज़रूरी लगे।.

स्वास्थ्य से आप क्या समझते हैं?

1) दैहिक, मानसिक और सामाजिक रूप से पूर्णतः स्वस्थ होना (समस्या-विहीन होना) ही स्वास्थ्य है। 2) किसी व्यक्ति की मानसिक,शारीरिक और सामाजिक रुप से अच्छे होने की स्थिति को स्वास्थ्य कहते हैं।। स्वास्थ्य सिर्फ बीमारियों की अनुपस्थिति का नाम नहीं है। हमें सर्वांगीण स्वास्थ्य के बारे में जानकारी होना बहुत आवश्यक है।