खड़ी बोली के महान कवि कौन है? - khadee bolee ke mahaan kavi kaun hai?

आजमगढ़ : महाकवि हरिऔध स्मृति केंद्र के तत्वावधान में मंगलवार को सायंकाल पंडित अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध की जयंती समारोह हरिऔध नगर कालोनी स्थित संस्था के महामंत्री डा. श्रीनाथ सहाय के आवास पर श्रद्धापूर्वक मनाई गई।

मुख्य अतिथि मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट अशोक कुमार यादव ने महाकवि हरिऔध को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि वे हिन्दी खड़ी बोली के युग प्रवर्तक कवि रहे हैं। उनकी प्रेरणामयी स्मृति समस्त हिंदी जगत को स्फूर्ति प्रदान करती है। आज पूरा जनपद ही नहीं बल्कि संपूर्ण हिंदी संसार को इस बात का गर्व है कि उसने हरिऔध जैसा रत्न पैदा किया है। इसका एक गद्य काव्य ठेठ हिंदी का ठाट आइसीएस के कोर्स में निर्धारित किया गया था। इसका उल्लेख हिंदी भाषा मर्मज्ञ डा. ग्रियर्सन ने किया है। यह परीक्षा अंग्रेजी शासन काल में इंग्लैंड में हुआ करती थी। इस स्मृति केंद्र ने अगले वर्ष हरिऔधजी की सा‌र्द्धजन्म शताब्दी (150वीं जन्मगांठ) मनाए जाने का संकल्प लिया है। यह जनपद आजमगढ़ के लिए गौरव की बात है। इस कार्य में मैं व्यक्तिगत रूप से सहयोग करूंगा।

विषय प्रवर्तन करते हुए डा. द्विजराम यादव ने हिंदी साहित्य के इतिहास के विभिन्न युगों का उल्लेख करते हुए हरिऔधजी की महान काव्य कृति प्रिय प्रवास की काव्य कला पर विस्तृत प्रकाश डाला। डा. गीता सिंह ने प्रिय प्रवास और वैदेही वनवास सहित महाकवि के रस कलश की चर्चा की। जगदीश प्रसाद बरनवाल कुंद ने विदेशी हिंदी प्रेमियों की दृष्टि में हरिऔध के मूल्यांकन की बात कही। मंडल जेल अधीक्षक अखिलेश कुमार मिश्र ने इस अवसर पर काव्यपाठ कर कवि को श्रद्धांजलि अर्पित की। महाकवि के परिवार से जुड़े रवींद्र नाथ तिवारी ने विस्तार से हरिऔध परिवार की चर्चा की। नरेंद्र भूषण पूर्व ट्रेजरी सहायक निदेशक ने काव्यपाठ से हरिऔधजी को श्रद्धांजलि अर्पित की। स्मृति केंद्र के अध्यक्ष अमरनाथ तिवारी ने प्रिय प्रवास के शताब्दी वर्ष के काव्य समारोहों की चर्चा करते हुए अगले वर्ष 2015 में हरिऔध सा‌र्द्धजन्म शताब्दी (150वीं जन्मगांठ) आयोजनों की रूपरेखा प्रस्तुत की। डा. कन्हैया सिंह ने हरिऔध के व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डाला। श्रीमती आशा सिंह, प्रेमलता द्विवेदी, डा. आरडी यादव और कु. प्रीति चौबे ने काव्य पाठ किया। सिविल जज नीरज कुमार बक्शी, सिविल जज योगेश दुबे, गिरिजेश दुबे, फिल्मकार धु्रव मिश्र, एसपी तिवारी, डा. विंध्याचल लाल श्रीवास्तव, भानु प्रताप श्रीवास्तव, बद्रीनाथ सिन्हा, निशीथ रंजन तिवारी आदि उपस्थित थे। अध्यक्षता डा. कन्हैया सिंह व संचालन महामंत्री डा. श्रीनाथ सहाय ने किया।

कौरवी या खड़ी बोली- खड़ी बोली का तात्पर्य है ‘स्टैंडर्ड भाषा‘। इस अर्थ में सभी भाषाओं की अपनी खड़ी बोली हो सकती है। किन्तु हिन्दी में खड़ी बोली मेरठ, सहारनपुर, देहरादून, रामपुर, मुजफ्फर नगर, बुलंदशहर आदि प्रदेशों में बोली जाने वाली भाषा को कहा जाता है। इसे कौरवी, नागरी आदि नामों से भी सम्बोधित किया जाता है। ग्रियर्सन ने इसे देशी हिन्दुस्तानी कहा है।

खड़ी बोली की विशेषताएँ

खड़ी बोली की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –

  • खड़ी बोली आकारान्त प्रधान है। इसमें अधिकांशः आकारान्त शब्दों का प्रयोग मिलता है, जैसे-करता, क्रिया, खोटा, घोड़ा आदि।
  • खड़ी बोली में मूर्धन्य ‘ल’ का प्रयोग मिलता है, जिसका मानक हिन्दी में अभाव है, जैसे-जंगल, बाल आदि।
  • खड़ी बोली में द्वित्व व्यंजनों का प्रयोग प्रचुरता से होता है, जैसे-बेट्टी, गाड़ी, रोट्टी, जात्ता आदि।
  • खड़ी बोली में मानक हिन्दी के न, भ के स्थान पर क्रमणः ण, ब का प्रयोग होता है, जैसे-खाणा, जाणा, कबी, सबी आदि।
  • खड़ी बोली की क्रिया रचना में मानक हिन्दी से बड़ा साम्य है।
  • कतिपय परिवर्तनों के साथ मानक हिन्दी क्रिया-रूपों का प्रयोग खड़ी बोली में मिलता है, जैसे- चलता है > चले हैं।
  • निश्चयार्थक भूतकाल में खड़ी बोली में ‘या’ लगाया जाता है, जैसे-बैठा > बैठ्या, उठा > उठ्या आदि।।

खड़ी बोली का प्रथम कवि

खड़ी बोली के प्रथम कवि अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध‘ माने जाते हैं। अयोध्या सिंह हिन्दी के एक सुप्रसिद्ध साहित्यकार थे। वह दो बार हिंदी साहित्य सम्मेलन के सभापति रह चुके हैं और सम्मेलन द्वारा विद्यावाचस्पति की उपाधि से सम्मानित किये जा चुके हैं।

खड़ी बोली का प्रथम महाकाव्य

प्रिय प्रवास हरिऔध जी का सबसे प्रसिद्ध और महत्वपूर्ण ग्रंथ है। यह हिंदी खड़ी बोली का प्रथम महाकाव्य है और इसे मंगलाप्रसाद पारितोषिक पुरस्कार प्राप्त हो चुका है।  बतादें कि हरिऔध जी का जन्म उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले के निजामाबाद नामक स्थान में हुआ। उनके पिता का नाम पंडित भोलानाथ उपाध्याय था।

                
                                                                                 
                            हिंदी के कवि मैथिलीशरण गुप्त खड़ी बोली के पहले कवि माने जाते हैं। पंडित महावीर प्रसाद द्विवेदी जी की प्रेरणा से मैथिलीशरण गुप्त ने खड़ी बोली में कविताएं लिखीं। उन्होंने अपनी कविता के ज़रिए खड़ी बोली को एक काव्य-भाषा के रूप में मान्यता दिलाने के लिए बहुत कोशिश की। सिर्फ़ ब्रजभाषा जैसी समृद्ध काव्य-भाषा के अलावा नये कवियों ने खड़ी बोली में ही कविताएं लिखीं।

प्रभु ईसा

मूर्तिमती जिनकी विभूतियाँ
जागरूक हैं त्रिभुवन में;
मेरे राम छिपे बैठे हैं
मेरे छोटे-से मन में;
धन्य-धन्य हम जिनके कारण
लिया आप हरि ने अवतार;
किन्तु त्रिवार धन्य वे जिनको
दिया एक प्रिय पुत्र उदार;
हुए कुमारी कुन्ती के ज्यों
वीर कर्ण दानी मानी;
माँ मरियम के ईश हुए त्यों
धर्मरूप वर बलिदानी;
अपना ऐसा रक्त मांस सब
और गात्र था ईसा का;
पर जो अपना परम पिता है
पिता मात्र था ईसा का।

अर्जुन की प्रतिज्ञा 

उस काल मारे क्रोध के तन कांपने उसका लगा,
मानों हवा के वेग से सोता हुआ सागर जगा।
मुख-बाल-रवि-सम लाल होकर ज्वाल सा बोधित हुआ,
प्रलयार्थ उनके मिस वहाँ क्या काल ही क्रोधित हुआ?

साक्षी रहे संसार करता हूँ प्रतिज्ञा पार्थ मैं,
पूरा करुंगा कार्य सब कथानुसार यथार्थ मैं।
जो एक बालक को कपट से मार हँसते हैँ अभी,
वे शत्रु सत्वर शोक-सागर-मग्न दीखेंगे सभी।

अभिमन्यु-धन के निधन से कारण हुआ जो मूल है,
इससे हमारे हत हृदय को, हो रहा जो शूल है,
उस खल जयद्रथ को जगत में मृत्यु ही अब सार है,
उन्मुक्त बस उसके लिये रौ'र'व नरक का द्वार है। 

मैथिलीशरण गुप्त का जन्म 3 अगस्त 1886 को झांसी में हुआ। हिंदी कविता के इतिहास में मैथिलीशरण गुप्त का यह सबसे बड़ा योगदान माना जाता है। मानवीय संबंधों और नैतिक मूल्यों को बचाने की कोशिश गुप्त जी की कविताओं में देखी जा सकती है। मैथिलीशरण गुप्त का 12 दिसंबर 1964 में झांसी में निधन हुआ। उनकी कुछ रचनाओं को देखते हैं जिनके लिए वे याद किए जाते हैं -

नर हो, न निराश करो मन को

कुछ काम करो, कुछ काम करो
जग में रह कर कुछ नाम करो
यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो
समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो
कुछ तो उपयुक्त करो तन को
नर हो, न निराश करो मन को।

प्रभु ने तुमको कर दान किए
सब वांछित वस्तु विधान किए
तुम प्राप्त करो उनको न अहो
फिर है यह किसका दोष कहो
समझो न अलभ्य किसी धन को
नर हो, न निराश करो मन को।

किस गौरव के तुम योग्य नहीं
कब कौन तुम्हें सुख भोग्य नहीं
जान हो तुम भी जगदीश्वर के
सब है जिसके अपने घर के
फिर दुर्लभ क्या उसके जन को
नर हो, न निराश करो मन को।

करके विधि वाद न खेद करो
निज लक्ष्य निरन्तर भेद करो
बनता बस उद्यम ही विधि है
मिलती जिससे सुख की निधि है
समझो धिक् निष्क्रिय जीवन को
नर हो, न निराश करो मन को
कुछ काम करो, कुछ काम करो। 

माँ कह एक कहानी 

"माँ कह एक कहानी।"
बेटा समझ लिया क्या तूने मुझको अपनी नानी?"
"कहती है मुझसे यह चेटी, तू मेरी नानी की बेटी
कह माँ कह लेटी ही लेटी, राजा था या रानी?
माँ कह एक कहानी।"

प्रभु या दास?

बुलाता है किसे हरे हरे,
वह प्रभु है अथवा दास?
उसे आने का कष्ट न दे अरे,
जा तू ही उसके पास । 

किसान 

हेमन्त में बहुदा घनों से पूर्ण रहता व्योम है
पावस निशाओं में तथा हँसता शरद का सोम है

हो जाये अच्छी भी फसल, पर लाभ कृषकों को कहाँ
खाते, खवाई, बीज ऋण से हैं रंगे रक्खे जहाँ

आता महाजन के यहाँ वह अन्न सारा अंत में
अधपेट खाकर फिर उन्हें है काँपना हेमंत में

बरसा रहा है रवि अनल, भूतल तवा सा जल रहा
है चल रहा सन सन पवन, तन से पसीना बह रहा

बाहर निकलना मौत है, आधी अँधेरी रात है
है शीत कैसा पड़ रहा, औ’ थरथराता गात है

तो भी कृषक ईंधन जलाकर, खेत पर हैं जागते
यह लाभ कैसा है, न जिसका मोह अब भी त्यागते

भारत का झंडा 

भारत का झण्डा फहरै।
छोर मुक्ति-पट का क्षोणी पर,
छाया काके छहरै॥

मुक्त गगन में, मुक्त पवन में,
इसको ऊँचा उड़ने दो।
पुण्य-भूमि के गत गौरव का,
जुड़ने दो, जी जुड़ने दो।
मान-मानसर का शतदल यह,
लहर लहर का लहरै।
भारत का झण्डा फहरै॥ 

दोनों ओर प्रेम पलता है

दोनों ओर प्रेम पलता है।
सखि, पतंग भी जलता है हा! दीपक भी जलता है!

सीस हिलाकर दीपक कहता -
'बंधु वृथा ही तू क्यों दहता?'
पर पतंग पड़ कर ही रहता
कितनी विह्वलता है!
दोनों ओर प्रेम पलता है।
बचकर हाय! पतंग मरे क्या?
प्रणय छोड़ कर प्राण धरे क्या?
जले नहीं तो मरा करे क्या?
क्या यह असफलता है!
दोनों ओर प्रेम पलता है।
कहता है पतंग मन मारे -
'तुम महान, मैं लघु, पर प्यारे,
क्या न मरण भी हाथ हमारे?
शरण किसे छलता है?'
दोनों ओर प्रेम पलता है।
दीपक के जलने में आली,
फिर भी है जीवन की लाली।
किन्तु पतंग-भाग्य-लिपि काली,
किसका वश चलता है?
दोनों ओर प्रेम पलता है।
जगती वणिग्वृत्ति है रखती,
उसे चाहती जिससे चखती;
काम नहीं, परिणाम निरखती।
मुझको ही खलता है।
दोनों ओर प्रेम पलता है। 

आगे पढ़ें

खड़ी बोली के महानतम कवि कौन थे?

हिंदी के कवि मैथिलीशरण गुप्त खड़ी बोली के पहले कवि माने जाते हैं।

खड़ी बोली के जनक कौन है?

हिन्दी खड़ी बोली के जन्मदाता— भारतेन्दु हरिश्चन्द्र .

खड़ी बोली हिंदी के प्रथम प्रसिद्ध कवि कौन है *?

प्रियप्रवास अयोध्यासिंह उपाध्याय "हरिऔध" की हिन्दी काव्य रचना है। यदि 'प्रियप्रवास' खड़ी बोली का प्रथम महाकाव्य है तो 'हरिऔध' खड़ी बोली के प्रथम महाकवि।

खड़ी बोली के प्रथम लेखक कौन है?

खड़ी बोली हिन्दी गद्य की प्रथम रचना "गोरा बादल की कथा" है। इसका रचनाकाल 1623 ई. है। इसके रचनाकार या लेखक "जटमल" हैं।